शासन व्यवस्था
झारखंड हाईकोर्ट द्वारा निजी क्षेत्र की नौकरी में आरक्षण से संबंधित कानून पर रोक
प्रिलिम्स के लिये:अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19, अनुच्छेद 16, अनुच्छेद 371(d), अनुच्छेद 15, भारत का सर्वोच्च न्यायालय मेन्स के लिये:भारत में निवास पर आधारित आरक्षण, आरक्षण नीतियों के सामाजिक-आर्थिक और कानूनी निहितार्थ, बेरोज़गारी |
चर्चा में क्यों?
झारखंड उच्च न्यायालय ने झारखंड राज्य निजी क्षेत्र में स्थानीय उम्मीदवारों का नियोजन अधिनियम, 2021 में स्थानीय उम्मीदवारों के रोज़गार के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी है, जिसमें 40,000 रुपए तक के वेतन वाले निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय उम्मीदवारों के लिये 75% आरक्षण अनिवार्य था।
- यह कानून स्थानीय लोगों के लिये रोज़गार को बढ़ावा देने के लिये लाया गया था, लेकिन संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करने के कारण इसकी आलोचना की गई।
निजी क्षेत्र में नियोजन अधिनियम पर झारखंड हाईकोर्ट का फैसला क्या है?
- लघु उद्योगों द्वारा याचिका: झारखंड लघु उद्योग संघ (JSSIA) ने स्थानीय लोगों को 75 प्रतिशत आरक्षण की गारंटी देने वाले कानून को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की, जिसमें तर्क दिया गया कि यह समानता के सिद्धांत और व्यवसाय करने की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है।
- JSSIA का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि यह अधिनियम स्थानीय और गैर-स्थानीय उम्मीदवारों के बीच अनुचित रूप से विभाजन उत्पन्न करता है, तथा नियोक्ताओं की स्वतंत्र रूप से नियुक्ति करने की क्षमता को सीमित करता है।
- याचिका में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा हरियाणा राज्य स्थानीय अभ्यर्थी रोज़गार अधिनियम, 2020 को रद्द करने का हवाला दिया गया, जिसे पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन मानते हुए रद्द कर दिया था।
- झारखंड हाईकोर्ट का फैसला: झारखंड हाईकोर्ट ने निजी क्षेत्र की कंपनी में स्थानीय उम्मीदवारों के झारखंड राज्य नियोजन अधिनियम, 2021 के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी।
- न्यायालय ने JSSIA की इस दलील को सही पाया कि यह कानून गैर-स्थानीय उम्मीदवारों के साथ भेदभाव करके अनुच्छेद 14 के समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है। साथ ही निजी कंपनियों के नियुक्ति विकल्पों को प्रतिबंधित करके अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत व्यवसाय करने की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है।
अन्य राज्यों में भी इसी प्रकार के अधिवास आधारित आरक्षण कानून:
- आंध्र प्रदेश: उद्योगों/कारखानों में स्थानीय उम्मीदवारों के लिये आंध्र प्रदेश रोजगार अधिनियम, 2019 पारित किया गया (स्थानीय निवासियों के लिए निजी उद्योगों में 75% नौकरियाँ आरक्षित हैं)।
- आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि यह कानून “असंवैधानिक हो सकता है” लेकिन अभी तक इस पर अंतिम निर्णय नहीं दिया गया है।
- कर्नाटक: उद्योगों, कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में स्थानीय उम्मीदवारों के लिये कर्नाटक राज्य रोज़गार विधेयक, 2024 को मंजूरी दी गई, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में प्रबंधन भूमिकाओं में स्थानीय लोगों के लिये 50% और गैर-प्रबंधन पदों पर 75% आरक्षण का प्रावधान है।
- इस विधेयक पर काफी विवाद बना हुआ है तथा श्रमिकों की गतिशीलता और व्यवसाय संचालन पर इसके प्रभाव को लेकर चिंताएँ व्यक्त की गई हैं।
राज्य निजी क्षेत्र के रोज़गार में निवास पर आधारित आरक्षण क्यों लागू करते हैं?
- स्थानीय लोगों में उच्च बेरोजगारी: कई राज्यों में स्थानीय लोगों, को विशेष रूप से निम्न और अर्द्ध-कुशल पदों पर, बेरोज़गारी का सामना करना पड़ रहा है।
- स्थानीय नियोजन कानूनों को निवासियों को रोजगार के अवसरों तक बेहतर पहुँच सुनिश्चित करने के तरीके के रूप में देखा जाता है।
- प्रवासी श्रमिक के कारण रोज़गार में कमी: यह धारणा बढ़ती जा रही है कि अन्य राज्यों से आए प्रवासी श्रमिक स्थानीय लोगों के लिये निर्धारित रोज़गार छीन रहे हैं।
- इससे विशेष रूप से अधिक औद्योगिक और आर्थिक रूप से उन्नत क्षेत्रों में असंतोष बढ़ता है।
- राज्य रोज़गार प्राथमिकता: निजी क्षेत्र, एक प्रमुख रोज़गार सृजनकर्त्ता के रूप में, स्थानीय लोगों को रोज़गार के लिये प्राथमिकता देकर सामाजिक न्याय का समर्थन कर सकता है, खासकर तब जब इसे कर रियायतों और सस्ते ऋणों जैसे सरकारी प्रोत्साहनों का लाभ मिलता है, जो सकारात्मक नीतियों को उचित ठहराता है।
- राजनीतिक दबाव और वोट बैंक: राज्य सरकारों को स्थानीय आबादी से अपने हितों को प्राथमिकता देने के लिये दबाव का सामना करना पड़ता है। आरक्षण कानून लागू करना मतदाताओं की भावनाओं को खुश करने और राजनीतिक समर्थन हासिल करने का एक तरीका हो सकता है।
- कौशल बेमेल और शिक्षा स्तर: स्थानीय लोगों में उच्च वेतन वाली नौकरियों के लिये कौशल की कमी हो सकती है, जिससे उनके अवसर सीमित हो सकते हैं।
- इस कौशल असंतुलन को दूर करने तथा कम शिक्षित आबादी को अधिक रोज़गार उपलब्ध कराने के लिये कम वेतन वाली नौकरियों के लिये कोटा शुरू किया गया है।
- प्रतिभा को बनाए रखना: यह सुनिश्चित करके कि स्थानीय निवासियों को नौकरियों तक पहुँच प्राप्त हो, राज्य क्षेत्र के भीतर प्रतिभा को बनाए रख सकते हैं। यह उन क्षेत्रों में विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है जहाँ प्रतिभा पलायन हो रहा है, जहाँ कुशल कर्मचारी बेहतर अवसरों के लिये कहीं और चले जाते हैं।
निवास पर आधारित आरक्षण क्या है?
- निवास पर आधारित आरक्षण: यह प्रणाली व्यक्ति के निवास स्थान के आधार पर लाभ आरक्षित करती है। राज्य शिक्षा और सार्वजनिक नौकरियों जैसे क्षेत्रों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देते हुए निवासियों के लिये कुछ सीटें आवंटित कर सकता है।
- "जन्म स्थान" और "निवास" अलग-अलग अवधारणाएँ हैं, जिसमें निवास का तात्पर्य किसी व्यक्ति के जन्मस्थान के बजाय उसके निवास स्थान से है।
- संवैधानिक प्रावधान: अनुच्छेद 16(3), संसद द्वारा निर्धारित राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के भीतर सरकारी नियुक्तियों के लिये निवास-आधारित मानदंड की अनुमति देता है।
- अनुच्छेद 371(d) आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में स्थानीय कैडर की स्थापना करता है, जिससे सरकारी नौकरियों में स्थानीय प्रतिनिधित्व और अवसर सुनिश्चित होते हैं।
- अनुच्छेद 15 केवल जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है, निवास के आधार पर नहीं।
- ऐतिहासिक निर्णय:
- डीपी जोशी बनाम मध्य भारत, 1955: भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने अधिवास-आधारित आरक्षण की वैधता को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया कि अपने निवासियों को लाभ पहुँचाना राज्य का वैध हित है।
- डॉ. प्रदीप जैन बनाम भारत संघ, 1984: सर्वोच्च न्यायालय ने पुनः अधिवास-आधारित आरक्षण को बरकरार रखा तथा इस बात पर बल दिया कि यह अनुच्छेद 14 के तहत उचित वर्गीकरण के दायरे में आता है, जब तक कि यह समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करता है या दूसरों के अधिकारों को प्रभावित नही करता है।
- निवास पर आधारित आरक्षण से जुड़ी समस्याएँ: अधिवास-आधारित आरक्षण से योग्यता-आधारित चयन प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के कार्य प्रदर्शन में कमी आ सकती है।
- क्षेत्रीय पहचान पर ज़ोर देने से विभाजन को बढ़ावा मिल सकता है तथा स्थानीय स्तर पर तनाव बढ़ सकता है, जिससे राष्ट्रीय एकीकरण कमज़ोर हो सकता है।
- जिन प्रवासियों ने अर्थव्यवस्था और समाज में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है, उन्हें अनुचित रूप से अवसरों से वंचित किया जा सकता है।
- निवास के मानदंडों में हेरफेर किया जा सकता है, जिससे आरक्षित सीटों या पदों के आवंटन में शोषण और पक्षपात को बढ़ावा मिल सकता है ।
- आरक्षण पर निरंतर निर्भरता शिक्षा और कौशल विकास की गुणवत्ता में सुधार के प्रयासों को कमज़ोर कर सकती है, जो सशक्तीकरण के लिये अधिक सतत् समाधान हैं।
- निवास पर आधारित आरक्षण अंतर-क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने में विफल हो सकता है, जहाँ धनी या अधिक शिक्षित स्थानीय निवासी उसी क्षेत्र के गरीब, हाशिये पर पड़े समूहों की तुलना में अधिक लाभान्वित होते हैं।
आगे की राह:
- रोज़गार संतुलन: एक निष्पक्ष तंत्र स्थापित करना जहाँ स्थानीय और गैर-स्थानीय दोनों उम्मीदवार रोज़गार के लिये प्रतिस्पर्द्धा कर सकें, क्षेत्रीय बेरोज़गारी के मुद्दों का समाधान करते हुए योग्यता आधारित नियुक्ति को बढ़ावा देना।
- नीतियों को कार्यबल एकीकरण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, तथा राज्य की सीमाओं की परवाह किये बिना सभी नागरिकों के लिये आर्थिक अवसरों तक समान पहुँच सुनिश्चित करनी चाहिये।
- कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करना: स्थानीय लोगों के लिये शिक्षा और कौशल विकास कार्यक्रमों में निवेश करना ताकि उन्हें रोज़गार के प्रति अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाया जा सके तथा प्रतिबंधात्मक आरक्षण की आवश्यकता कम हो।
- स्थानीय व्यवसायों को प्रोत्साहित करना: सख्त आरक्षण सीमा लागू करने के बजाय, निजी क्षेत्र के उद्यमों को कर छूट या सब्सिडी जैसे प्रोत्साहन देकर स्थानीय भर्ती को प्राथमिकता देने के लिये प्रोत्साहित करना, ताकि नियोक्ता स्थानीय प्रतिभा और गुणवत्ता के आधार पर निर्णय ले सकें।
- श्रम अधिकारों को सुनिश्चित करना: राज्यों को प्रवासियों सहित सभी श्रमिकों के लिये बुनियादी श्रम अधिकारों को लागू करना चाहिये, ताकि उचित वेतन और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित हो सके और स्थानीय एवं प्रवासी दोनों श्रमिकों के लिये समान अवसर उपलब्ध हो सकें।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में निवास पर आधारित आरक्षण के कानूनी प्रावधानों का विश्लेषण कीजिये। क्या ये कानून क्षेत्रीय बेरोज़गारी को संबोधित करते हैं, या नई चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं? चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: प्रच्छन्न बेरोज़गारी का आमतौर पर अर्थ होता है- (2013) (a) बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार रहते हैं उत्तर:(c) मेन्स:प्रश्न: भारत में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धतियों का परीक्षण कीजिये और सुधार के सुझाव दीजिये। (2023) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत का FDI 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक
प्रिलिम्स के लिये:प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, विश्व प्रतिस्पर्द्धात्मक सूचकांक, वैश्विक नवाचार सूचकांक, एंजल टैक्स, मेक इन इंडिया पहल, उत्पादन संबंधी प्रोत्साहन योजना, उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग मेन्स के लिये:भारत का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), विकास में FDI की भूमिका |
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2000 से अब तक भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का प्रवाह 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर गया है, जो वैश्विक निवेश के केंद्र के रूप में इसके बढ़ते आकर्षण को दर्शाता है।
- इस उपलब्धि को चालू वित्त वर्ष 2024-25 की पहली छमाही में FDI में 26% की वृद्धि होकर 42.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने से भी बल मिला है, जो रणनीतिक पहलों, नीतिगत सुधारों और बढ़ी हुई वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता के प्रभाव को दर्शाता है।
भारत की FDI वृद्धि को कौन-से कारक प्रेरित कर रहे हैं?
- प्रतिस्पर्द्धात्मकता और नवाचार: विश्व प्रतिस्पर्द्धात्मक सूचकांक वर्ष 2024 में भारत की रैंकिंग वर्ष 2021 के 43 वें स्थान से सुधरकर 40 वें स्थान पर आ गई।
- वैश्विक नवाचार सूचकांक वर्ष 2023 में भारत ने 132 अर्थव्यवस्थाओं में से 40वाँ स्थान प्राप्त किया, जो वर्ष 2015 के 81वें स्थान से उल्लेखनीय वृद्धि है ।
- नवाचार और प्रतिस्पर्द्धात्मकता में प्रगति ने भारत को नवाचार-संचालित निवेश के लिये एक वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित कर दिया है।
- वैश्विक निवेश स्थिति: 1,008 घोषणाओं के साथ ग्रीनफील्ड परियोजनाओं के लिये भारत को वैश्विक स्तर पर तीसरा स्थान प्राप्त है (विश्व निवेश रिपोर्ट 2023)।
- भारत में अंतर्राष्ट्रीय परियोजना वित्त सौदों में भी 64% की वृद्धि हुई, जिससे यह अंतर्राष्ट्रीय वित्त सौदों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या प्राप्त करने वाला देश बन गया है।
- ये आँकड़े भारत की बढ़ती वैश्विक निवेश प्रमुखता को उज़ागर करते हैं।
- बेहतर व्यापारिक वातावरण: भारत ने अपने व्यापारिक वातावरण में उल्लेखनीय सुधार की है, जो वर्ष 2014 में 142 वें स्थान से बढ़कर विश्व बैंक डूइंग बिजनेस रिपोर्ट,2020 में 63वें स्थान पर पहुँच गया है।
- यह विनियमों को सरल बनाने के प्रयासों को दर्शाता है, जिससे नौकरशाही संबंधी बाधाओं में कमी से निवेशकों का विश्वास बढ़ा है।
- नीतिगत सुधार: आयकर अधिनियम, 1961 में वर्ष 2024 के संशोधन से एंजल टैक्स समाप्त हो गया तथा स्टार्टअप्स और निवेशकों के लिये अनुपालन को सरल बनाने हेतु विदेशी कंपनियों के लिये आयकर की दर कम कर दी गई।
FDI को बढ़ावा देने की पहल:
- संयुक्त अरब अमीरात के साथ द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT): संयुक्त अरब अमीरात के साथ BIT पर हस्ताक्षर करने का उद्देश्य निवेशकों का विश्वास बढ़ाना और 'आत्मनिर्भर भारत' के दृष्टिकोण के अनुरूप निवेश को प्रोत्साहित करना है।
- उत्पादन संबंधी प्रोत्साहन (PLI) योजना: PLI योजना विनिर्माण क्षेत्रों को समर्थन देती है, जिससे श्वेत वस्तु क्षेत्र में FDI को बढ़ावा मिलता है।
- मेक इन इंडिया पहल: वर्ष 2014-2022 के बीच मेक इन इंडिया पहल ने विनिर्माण क्षेत्र में FDI को 57% तक बढ़ा दिया।
- विदेशी निवेश सुविधा पोर्टल (FIFP): FIFP निवेशकों के लिये एकल इंटरफेस की पेशकश करके FDI अनुमोदन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करता है, अनुमोदन में तेजी लाता है और विदेशी निवेश के प्रवाह को सुगम बनाता है।
- PM गति शक्ति: PM गति शक्ति जैसे उपायों का उद्देश्य बुनियादी ढाँचे और कनेक्टिविटी में सुधार करके FDI को और बढ़ावा देना है।
- FDI उदारीकरण वाले प्रमुख क्षेत्र: भारत ने वैश्विक निवेश आकर्षित करने के लिये विभिन्न क्षेत्रों में FDI को उदार बनाने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।
- अंतरिक्ष क्षेत्र में 100% FDI की अनुमति, रक्षा क्षेत्र में स्वचालित मार्ग से FDI की सीमा को बढ़ाकर 74% तथा सरकारी अनुमोदन के माध्यम से 100% कर दिया गया है।
- फार्मास्यूटिकल क्षेत्र ब्राउनफील्ड परियोजनाओं में 74% FDI की अनुमति देता है, और नागरिक विमानन ब्राउनफील्ड हवाई पत्तन परियोजनाओं में 100% FDI की अनुमति देता है।
- खुदरा, बीमा और दूरसंचार क्षेत्रों में भी FDI सीमा में वृद्धि देखी गई है, साथ ही बुनियादी ढाँचे को बढ़ाने और निर्यात को बढ़ावा देने के उद्देश्य से महत्त्वपूर्ण सुधार किये गए हैं।
- राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र योजना और PLI पहल से परिधान क्षेत्र को लाभ मिलता है, जिससे FDI को और बढ़ावा मिलता है।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश क्या है?
- परिचय: जब एक देश की कोई फर्म या व्यक्ति किसी अन्य देश के व्यवसाय में निवेश करता है या किसी व्यवसाय में नियंत्रणकारी हिस्सेदारी प्राप्त करता है, तो इसे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) कहा जाता है।
- इसमें केवल पूंजी ही शामिल नहीं है, बल्कि इसमें विशेषज्ञता, प्रौद्योगिकी और कौशल भी शामिल हैं, जो मेजबान देश के आर्थिक विकास में योगदान दे सकते हैं।
- FDI के प्रकार:
- ग्रीनफील्ड निवेश: बहुत अधिक नियंत्रण और निजीकरण के साथ नई कंपनी की शुरूआत करना।
- ब्राउनफील्ड निवेश: मौजूदा सुविधाओं का उपयोग करके विलय, अधिग्रहण या संयुक्त उद्यम के माध्यम से विस्तार करना।
- संगठन द्वारा पहले से मौजूद संरचनाओं के उपयोग के कारण, ग्रीनफील्ड परियोजनाओं की तरह नियंत्रण उतना अधिक नहीं हो सकता है, यद्यपि पर्याप्त परिचालन प्रभाव की अभी भी अनुमति है।
भारत में FDI:
- शासन: भारत में FDI विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA), 1999 द्वारा शासित होता है, और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) द्वारा प्रशासित होता है।
- FDI की अनुमति: विभिन्न क्षेत्रों में FDI की अनुमति या तो स्वचालित मार्ग से या सरकारी मार्ग से प्रदान की जाती है।
- स्वचालित मार्ग के अंतर्गत, अनिवासी या भारतीय कंपनी को भारत सरकार से किसी अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती है।
- जबकि, सरकारी मार्ग के तहत निवेश से पहले भारत सरकार से अनुमोदन आवश्यक है।
- सरकारी मार्ग के अंतर्गत विदेशी निवेश के प्रस्तावों पर संबंधित प्रशासनिक मंत्रालय/विभाग द्वारा विचार किया जाता है।
- स्वचालित मार्ग के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र: पशुपालन और कृषि, वायु परिवहन, ऑटो पार्ट्स, कार, ग्रीनफील्ड जैव प्रौद्योगिकी, ई-कॉमर्स, नवीकरणीय ऊर्जा और अन्य उद्योग
- सरकारी मार्ग के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र: बैंकिंग और सार्वजनिक क्षेत्र, प्रसारण सामग्री सेवाएँ, खाद्य उत्पाद खुदरा व्यापार, उपग्रह की स्थापना और संचालन।
- भारत में FDI निषेध: परमाणु ऊर्जा उत्पादन, जुआ और सट्टेबाजी, लॉटरी, चिट फंड, रियल एस्टेट और तंबाकू व्यवसाय जैसे उद्योगों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पूर्णतया वर्जित है।
- भारत के शीर्ष FDI स्रोत: भारत को वर्ष 2023-24 में सिंगापुर से सबसे अधिक FDI प्राप्त हुआ, उसके बाद मॉरीशस, संयुक्त राज्य अमेरिका, नीदरलैंड और जापान का स्थान है।
नोट: कोविड-19 महामारी के कारण भारतीय कंपनियों के अवसरवादी अधिग्रहण/अधिग्रहण पर अंकुश लगाने के लिये, सरकार ने प्रेस नोट 3 (2020) के माध्यम से FDI नीति, 2017 में संशोधन किया।
- भारत के साथ स्थलीय सीमा साझा करने वाले देशों की कंपनियों या जिनके लाभकारी स्वामी उन देशों में से किसी एक से हैं, को केवल सरकारी मार्ग/चैनल के माध्यम से ही भारत में निवेश करने की अनुमति है।
- प्रेस नोट 3 के प्रयोजन के लिये, भारत पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान, चीन (हांगकांग सहित), बांग्लादेश और म्याँमार को भारत के साथ भूमि सीमा साझा करने वाले देशों (सीमावर्ती देशों) के रूप में मान्यता देता है।
FDI का महत्त्व क्या है?
- रोज़गार और आर्थिक विकास: FDI रोज़गार सृजन को बढ़ावा देकर बेरोज़गारी को कम करता है, तथा आय के स्तर को बढ़ाता है, जिससे समग्र आर्थिक विकास में योगदान मिलता है।
- FDI से पूंजी आती है, कर राजस्व में वृद्धि होती है और बुनियादी ढाँचे में सुधार होता है।
- उदाहरण के लिये अमेज़न और वॉलमार्ट (फ्लिपकार्ट के माध्यम से) जैसी वैश्विक कंपनियों के प्रवेश से खुदरा और लॉजिस्टिक्स क्षेत्रों में अनेक रोजगार उत्पन्न हुए हैं।
- मानव संसाधन विकास: वैश्विक कौशल और प्रौद्योगिकियों से परिचित होने से कार्यबल की गुणवत्ता में सुधार होता है, जिससे व्यापक अर्थव्यवस्था को लाभ मिलता है।
- उदाहरण के लिये, भारत में IBM और माइक्रोसॉफ्ट जैसी प्रतिष्ठित कंपनियों ने स्थानीय कार्यबल के कौशल को बढ़ाया है।
- पिछड़े क्षेत्रों का विकास: FDI अविकसित क्षेत्रों को औद्योगिक केंद्रों में बदलने में मदद करता है, जिससे क्षेत्रीय आर्थिक प्रगति को बढ़ावा मिलता है।
- हुंडई और फोर्ड जैसी कंपनियों के निवेश से तमिलनाडु में ऑटोमोबाइल हब ने स्थानीय अर्थव्यवस्था को काफी बढ़ावा दिया है।
- निर्यात में वृद्धि: FDI से निर्यातोन्मुख इकाईयों की स्थापना हो सकती है, जिससे देश की निर्यात क्षमता में वृद्धि होगी।
- उदाहरण के लिये, भारत का आईटी क्षेत्र, जिसे एक्सेंचर जैसी कंपनियों से महत्त्वपूर्ण FDI प्राप्त होता है, एक प्रमुख उद्योग बन गया है, जो विश्व भर के ग्राहकों को सॉफ्टवेयर सेवाएँ निर्यात करता है।
- विनिमय दर स्थिरता: निरंतर FDI का प्रवाह विदेशी मुद्रा उपलब्ध कराता है, जिससे मुद्रा स्थिरता को समर्थन मिलता है।
- दूरसंचार और फार्मास्यूटिकल्स जैसे प्रमुख क्षेत्रों में FDI का निरंतर प्रवाह स्थिर विनिमय दर बनाए रखने में सहायक है।
- प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार का निर्माण: FDI प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देता है, नवाचार को बढ़ावा देता है, और उपभोक्ताओं को प्रतिस्पर्द्धी मूल्यों पर उत्पादों की व्यापक रेंज प्रदान करता है।
- IKEA जैसे वैश्विक ब्रांड के प्रवेश से खुदरा क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ गई है, जिससे उपभोक्ताओं को लाभ हुआ है।
FDI के समक्ष चिंताएँ क्या हैं?
- राष्ट्रीय सुरक्षा: रक्षा या दूरसंचार जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में FDI से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
- उदाहरण के लिये विभिन्न देशों में महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे में चीनी निवेश को लेकर चिंताएँ व्यक्त की गई हैं।
- आर्थिक निर्भरता: जो देश FDI पर बहुत अधिक निर्भर है, वह निवेशक देश की अर्थव्यवस्था में होने वाले परिवर्तनों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकता है।
- यदि विदेशी निवेशक अपने निवेश में कटौती या वापसी का विकल्प चुनते हैं, तो इससे अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है।
- बैंकिंग जैसे उद्योगों में यह चिंता का विषय है, जहाँ विदेशी संगठन अपने हितों को देश के हितों से ऊपर रखते हैं।
- लाभ प्रत्यावर्तन: विदेशी व्यवसायों से होने वाले लाभ को अक्सर उनके गृह राष्ट्रों में वापस भेज दिया जाता है, जिससे मेजबान देश के आर्थिक लाभ कम हो सकते हैं। परिणामस्वरूप पूंजी का शुद्ध बहिर्वाह हो सकता है।
- स्थानीय व्यवसायों पर प्रभाव: बड़ी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियाँ क्षेत्रीय कंपनियों से प्रतिस्पर्द्धा में आगे निकल सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनका व्यवसाय बंद हो सकता है और रोज़गार में कमी आ सकती है।
- यह विशेष रूप से विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिये चिंता का विषय है, जहाँ स्थानीय व्यवसायों के पास प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये संसाधन की कमी होती हैं।
- पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: विदेशी निवेश, विशेषकर निष्कर्षण उद्योगों में, पर्यावरण क्षरण का कारण बन सकता है।
- ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ पेप्सिको जैसी विदेशी कंपनियों पर स्थानीय पर्यावरण नियमों का पालन नहीं करने का आरोप लगाया गया है।
- श्रम शोषण: विदेशी कंपनियाँ कम मज़दूरी देकर या श्रम कानूनों का पालन न करके स्थानीय श्रमिकों का शोषण कर सकती हैं। इससे कार्य करने की खराब परिस्थितियाँ और सामाजिक अशांति उत्पन्न हो सकती है।
आगे की राह:
- व्यापार करने में आसानी: अधिक विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिये FDI विनियमों को सरल बनाना, नौकरशाही बाधाओं को कम करना और अनुमोदन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना।
- स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करना: वैश्विक पर्यावरणीय लक्ष्यों के अनुरूप हरित एवं सतत् प्रौद्योगिकियों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना।
- स्थिर और पारदर्शी नीतियों को सुनिश्चित करने से निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा, जिससे निरंतर FDI प्रवाह को बढ़ावा मिलेगा।
- कौशल एवं रोज़गार: FDI स्थानीय रोज़गार और कौशल विकास को विशेष रूप से विनिर्माण और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में सुनिश्चित करना।
- अनुसंधान एवं विकास तथा नवप्रवर्तन में निवेश: नवप्रवर्तन को बढ़ावा देने तथा भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने के लिये अनुसंधान एवं विकास में FDI को बढ़ावा देना।
- अवसंरचना विकास: डिजिटल और भौतिक परिसंपत्तियों सहित अवसंरचना में निवेश करने से निवेश गंतव्य के रूप में भारत का आकर्षण बढ़ सकता है।
- क्षेत्र-विशिष्ट सुधार: नवाचार और निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये रक्षा, अंतरिक्ष और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे उच्च क्षमता वाले क्षेत्रों में लक्षित सुधारों को लागू करना।
निष्कर्ष:
भारत का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह, जो वर्ष 2000 से वर्तमान में 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो चुका है, इसकी बढ़ती वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता और सफल सुधारों को दर्शाता है। "मेक इन इंडिया" और क्षेत्रीय उदारीकरण जैसी पहल भारत को वैश्विक मंच पर सतत् विकास एवं वृद्धि के लिये तैयार करती हैं।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार FDI को कैसे प्रभावित करता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सी उसकी प्रमुख विशेषता मानी जाती है? (2020) (a) यह मूलत: किसी सूचीबद्ध कंपनी में पूंजीगत साधनों द्वारा किया जाने वाला निवेश है। (b) यह मुख्यत: ऋण सृजित न करने वाला पूंजी प्रवाह है। (c) यह ऐसा निवेश है जिससे ऋण-समाशोधन अपेक्षित होता है। (d) यह विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों में किया जाने वाला निवेश है। उत्तर: (b) प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2021) विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बॉण्ड कुछ शर्तों के साथ विदेशी संस्थागत निवेश वैश्विक डिपॉज़िटरी रसीदें अनिवासी बाहरी जमा उपर्युक्त में से किसको प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में शामिल किया जा सकता है? (a) केवल 1, 2 और 3 (b) केवल 3 (c) केवल 2 और 4 (d) केवल 1 और 4 उत्तर: (a) मेन्स भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की आवश्यकता का औचित्य सिद्ध कीजिये। हस्ताक्षरित MOU और वास्तविक FDI के बीच अंतर क्यों है? भारत में वास्तविक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ाने के लिये उठाए जाने वाले सुधारात्मक कदमों का सुझाव दीजिये। (2016) |
शासन व्यवस्था
“एक राष्ट्र, एक चुनाव” 129वाँ संविधान संशोधन विधेयक 2024
प्रिलिम्स के लिये:129वाँ संविधान संशोधन विधेयक, 2024 की मुख्य विशेषताएँ, संविधान संशोधन विधेयक, लोकसभा, राष्ट्रपति, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 मेन्स के लिये:विधेयक की मुख्य विशेषताएँ, भारत में एक राष्ट्र, एक चुनाव के निहितार्थ |
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, सरकार ने लोकसभा में दो संविधान संशोधन विधेयकों “एक राष्ट्र, एक चुनाव”-'129वाँ संविधान संशोधन विधेयक, 2024' और 'केंद्रशासित प्रदेश कानून संशोधन विधेयक, 2024' को पेश करके "एक राष्ट्र, एक चुनाव" को लागू करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया हैं।
- भारत में वर्ष 1951 से 1967 तक लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित किये गए थे।
विधेयक की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव'129वाँ संविधान संशोधन विधेयक 2024': विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को संरेखित करने के लिये पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिश पर संविधान में अनुच्छेद 82A (1-6) को जोड़ने का प्रस्ताव रखा गया है।
- अनुच्छेद 82 (1-6):
- 82A (1) में राष्ट्रपति द्वारा आम चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक की तिथि में प्रस्तावित परिवर्तनों को लागू करने के लिये समय-सीमा का प्रावधान किया गया है, जिसे "नियत तिथि (Appointed Date)" के रूप में निर्दिष्ट किया गया है।
- अनुच्छेद 82 (1-6):
- धारा 82(2) में कहा गया है कि नियत तिथि के बाद और लोक सभा का पूर्ण कार्यकाल समाप्त होने से पहले निर्वाचित सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल लोक सभा के कार्यकाल के साथ समाप्त हो जाएगा।
- अनुच्छेद 82A (3) में कहा गया है कि भारत का निर्वाचन आयोग (ECI) लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिये एक साथ आम चुनाव कराएगा।
- अनुच्छेद 82A (4) एक साथ चुनावों को "लोकसभा और सभी विधानसभाओं के एक साथ गठन के लिये आयोजित आम चुनाव" के रूप में परिभाषित करता है।
- अनुच्छेद 82A (5) भारत का निर्वाचन आयोग को लोकसभा चुनाव के साथ किसी विशेष विधानसभा चुनाव न कराने का विकल्प प्रदान करना है।
- भारत का निर्वाचन आयोग राष्ट्रपति को किसी विधान सभा के लिये बाद में चुनाव कराने की अनुमति देने हेतु आदेश जारी करने की सलाह दे सकता है।
- अनुच्छेद 82A (6) में कहा गया है कि यदि किसी विधानसभा का चुनाव स्थगित कर दिया जाता है तो उस विधानसभा का पूर्ण कार्यकाल भी आम चुनाव में निर्वाचित लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल के साथ समाप्त हो जाएगा।
- अनुच्छेद 83 और 172 में संशोधन:
- विधेयक के अनुसार, यदि लोकसभा अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग हो जाती है, तो अगली लोकसभा केवल शेष अवधि तक ही कार्य करेगी, जिसे "विघटन की तिथि और पहली बैठक की तिथि से पाँच वर्ष के बीच की अवधि" के रूप में परिभाषित किया गया है।
- इसका अर्थ यह है कि सदन के पूर्ण कार्यकाल तक चलने के बाद भी, जो विधेयक अभी भी लंबित हैं, उनकी समय-सीमा समाप्त हो जाएगी।
- राज्य विधानसभाओं के लिये अनुच्छेद 172 में संशोधन प्रस्तावित किया गया है, जो राज्य विधानसभाओं की अवधि को नियंत्रित करता है।
- यदि किसी राज्य विधानसभा को उसका कार्यकाल समाप्त होने से पहले भंग कर दिया जाता है, तो पिछली विधानसभा के शेष कार्यकाल के लिये चुनाव कराए जाएंगे।
- विधेयक के अनुसार, यदि लोकसभा अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग हो जाती है, तो अगली लोकसभा केवल शेष अवधि तक ही कार्य करेगी, जिसे "विघटन की तिथि और पहली बैठक की तिथि से पाँच वर्ष के बीच की अवधि" के रूप में परिभाषित किया गया है।
- अनुच्छेद 372 में संशोधन:
- विधेयक में अनुच्छेद 372 में संशोधन का प्रस्तावित है, जिसमें" निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन" के बाद एक साथ चुनाव कराने को शामिल किया जाएगा, जिससे राज्य विधान सभा चुनावों पर संसद की शक्ति का विस्तार होगा।
- इस विधेयक में स्थानीय निकायों और नगर पालिकाओं के चुनाव को शामिल नहीं किया गया।
- विधेयक में अनुच्छेद 372 में संशोधन का प्रस्तावित है, जिसमें" निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन" के बाद एक साथ चुनाव कराने को शामिल किया जाएगा, जिससे राज्य विधान सभा चुनावों पर संसद की शक्ति का विस्तार होगा।
- केंद्रशासित प्रदेश कानून संशोधन विधेयक 2024:
- विधेयक का उद्देश्य संघ राज्य क्षेत्र शासन अधिनियम, 1962 की धारा 5, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली शासन अधिनियम, 1991 की धारा 5 तथा जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 17 में संशोधन करना है, ताकि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा सकें।
भारत में चुनाव से संबंधित संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?
- भाग XV (अनुच्छेद 324-329): यह चुनाव और उनसे संबंधित मामलों के लिये आयोग की स्थापना के प्रावधान से संबंधित है।
- अनुच्छेद 324: यह निर्वाचन आयोग को संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनावों की संपूर्ण प्रक्रिया का पर्यवेक्षण, निर्देशन तथा नियंत्रण करने का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 325: इसमें लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के सभी चुनावों के लिये एकल निर्वाचक नामावली की स्थापना का प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 326: यह निर्दिष्ट करता है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव वयस्क मताधिकार पर आधारित होंगे।
- अनुच्छेद 82 और 170: ये निष्पक्ष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिये प्रत्येक जनगणना के बाद निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन अनिवार्य किये जाने से संबंधित हैं।
- अनुच्छेद 172: इसके अनुसार प्रत्येक राज्य की प्रत्येक विधानसभा, यदि पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अधिवेशन के लिये नियत तारीख से पाँच वर्ष तक बनी रहेगी।
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट
- समिति का गठन और उद्देश्य:
- पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति का गठन केंद्र सरकार द्वारा सितंबर 2023 में किया गया था।
- समिति को लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिये एक साथ चुनाव कराए जाने की व्यवहार्यता की जाँच करने का कार्य सौंपा गया था।
- एक साथ चुनाव कराए जाने का औचित्य:
- समिति ने स्पष्ट किया कि बार-बार चुनाव कराए जाने से अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न होती है, जबकि एक साथ चुनाव कराए जाने से स्थिर शासन सुनिश्चित होगा और व्यवधान कम होंगे।
- इसके अतिरिक्त, एक साथ चुनाव कराए जाने से लागत में कमी आने और मतदाता की सहभागिता बढ़ने की उम्मीद है।
- समिति ने स्पष्ट किया कि बार-बार चुनाव कराए जाने से अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न होती है, जबकि एक साथ चुनाव कराए जाने से स्थिर शासन सुनिश्चित होगा और व्यवधान कम होंगे।
- निर्वाचक नामावली प्रबंधन:
- निर्वाचन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिये समिति ने राज्य निर्वाचन आयोगों (SEC) के परामर्श से भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा तैयार एकल निर्वाचक नामावली के अंगीकरण का सुझाव दिया।
- इससे दोहराव कम होगा और निर्वाचन के प्रबंधन में शामिल विभिन्न एजेंसियों की कार्यकुशलता में सुधार होगा।
- निर्वाचन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिये समिति ने राज्य निर्वाचन आयोगों (SEC) के परामर्श से भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा तैयार एकल निर्वाचक नामावली के अंगीकरण का सुझाव दिया।
- रसद व्यवस्था:
- समिति ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ECI और SEC दोनों को एक साथ होने वाले चुनावों के दौरान सुचारु क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से रसद व्यवस्था करने हेतु विस्तृत आयोजना और उसका आकलन करना चाहिये।
एक साथ चुनाव कराए जाने से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- बुनियादी ढाँचे का विकास: एक साथ चुनाव कराए जाने की जटिलताओं से निपटने के लिये तकनीकी बुनियादी ढाँचे की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है।
- इसमें इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल्स (VVPAT) का प्रभावी परिनियोजन और प्रबंधन शामिल है।
- 2024 के आम चुनावों में, समग्र देश के 1.05 मिलियन मतदान केंद्रों पर लगभग 1.7 मिलियन नियंत्रण एकक और 1.8 मिलियन VVPAT प्रणालियों का परिनियोजन किया गया था।
- विधिक चुनौतियाँ: किसी भी संशोधन और एक साथ चुनाव क्रियान्वित करने की प्रक्रिया को विधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है और संवैधानिक प्रावधानों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये न्यायिक जाँच की आवश्यकता हो सकती है।
- क्षेत्रीय असमानताएँ: कुछ राजनीतिक दलों का मत है कि एक साथ चुनाव कराए जाने से राष्ट्रीय अभियान के दौरान क्षेत्रीय हितों और मुद्दों की उपेक्षा हो सकती है।
- विविध प्रतिनिधित्व बनाए रखने हेतु यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय हितों से प्रभावित न हों।
- प्रशासनिक चुनौतियाँ: विभिन्न राज्यों में एक साथ चुनाव आयोजित करने से अनेक चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं, जिनमें मतदाता सूचियों का प्रबंधन और सुरक्षा सुनिश्चित करना शामिल है।
- नागरिकों को नई निर्वाचन प्रक्रिया और उसके निहितार्थों के बारे में जानकारी देने के लिये एक व्यापक मतदाता शिक्षा अभियान की आवश्यकता होगी।
एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिये कौन-सी रणनीति अपनाई जा सकती है?
- विधिक स्पष्टता: एक साथ चुनाव कराने के लिये स्पष्ट निर्देश स्थापित करना, मतदाता पंजीकरण के लिये कार्यक्रम और प्रक्रियाओं का विवरण देना।
- सरकार के सभी स्तरों पर चुनावों के समन्वयन को सुगम बनाने के लिये आवश्यक संवैधानिक संशोधन को सुनिश्चित किये जाने चाहिये।
- चुनावी बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना: कोविंद समिति की सिफारिश के अनुसार, एक ऐसी एकीकृत मतदाता सूची प्रणाली विकसित की जानी चाहिये, जो सरकार के तीनों स्तरों लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिये उपयोगी हो, ताकि दोहराव और त्रुटियों को कम किया जा सके।
- मतदाता सत्यापन और परिणामों के सारणीकरण समेत चुनावी प्रक्रियाओं के कुशल प्रबंधन के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करना।
- चुनाव आयोग की सिफारिशों (2016) में मतदाता पंजीकरण और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के लिये प्रौद्योगिकी के उपयोग सहित चुनावी प्रक्रिया की दक्षता बढ़ाने के लिये परिवर्तनों का सुझाव दिया गया था।
- जन जागरूकता अभियान: मतदाताओं को एक साथ चुनाव कराने के लाभों और उनके मतदान अनुभव पर इसके प्रभाव के बारे में सूचित करने के लिये देशव्यापी अभियान शुरू करना।
- प्रस्तावित परिवर्तनों पर सूचना प्रसारित करने और जनता से फीडबैक एकत्र करने के लिये गैर सरकारी संगठनों तथा सामुदायिक संगठनों को शामिल करना।
- क्षमता निर्माण: सुचारु कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिये एक साथ चुनावों से जुड़ी नवीन प्रौद्योगिकियों और प्रक्रियाओं पर चुनाव अधिकारियों के लिये प्रशिक्षण सत्र आयोजित करना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न: भारत में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' को लागू करने के निहितार्थों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व और प्रशासनिक दक्षता से संबंधित चुनौतियों का भी उल्लेख कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न. आदर्श आचार-संहिता के उद्भव के आलोक में, भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका का विवेचन कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2022) |
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
पूर्वी समुद्री गलियारा
प्रिलिम्स के लिये:नीली अर्थव्यवस्था, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा, चेन्नई-व्लादिवोस्तोक समुद्री गलियारा, उत्तरी समुद्री मार्ग, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) मेन्स के लिये:पूर्वी समुद्री गलियारे का महत्त्व, समुद्री व्यापार और आर्थिक विकास का महत्त्व, भारत-रूस संबंध |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चेन्नई और व्लादिवोस्तोक (रूस) के मध्य हाल ही में खोले गए पूर्वी समुद्री गलियारे से शिपिंग/परिवहन समय और लागत में कमी से भारत-रूस व्यापार में वृद्धि हुई है।
- यह गलियारा कच्चे तेल, कोयला, उर्वरक और धातु जैसे क्षेत्रों में व्यापार बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भारत रूसी तेल का सबसे बड़ा आयातक बन गया है।
- इस गलियारे से द्विपक्षीय व्यापार की गतिशीलता में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आने तथा दोनों देशों के बीच आर्थिक और सामरिक सहयोग को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
पूर्वी समुद्री गलियारा (ईस्टर्न मैरीटाइम कॉरिडोर-EMC) क्या है?
- परिचय:
- चेन्नई-व्लादिवोस्तोक पूर्वी समुद्री गलियारा (EMC) भारत के पूर्वी तट (चेन्नई बंदरगाह) को रूस के सुदूर-पूर्वी क्षेत्र (व्लादिवोस्तोक बंदरगाह) के बंदरगाहों से जोड़ने वाला एक समुद्री गलियारा है।
- यह जापान सागर, दक्षिण चीन सागर और मलक्का जलडमरूमध्य से होकर गुज़रता है।
- महत्त्व:
- EMC से शिपिंग दूरी 8,675 समुद्री मील (यूरोप-सेंट पीटर्सबर्ग-मुंबई मार्ग के माध्यम से) से घटकर 5,600 समुद्री मील हो गई है, जिससे परिवहन समय 40 दिनों से घटकर केवल 24 दिन रह गया है।
- यह भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत जुलाई, 2024 में चीन को पीछे छोड़कर रूसी तेल का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है।
- रसद लागत में कमी:
- भारत अपनी कच्चे तेल की खपत का लगभग 85% आयात करता है।
- व्यापार का विविधीकरण:
- यह गलियारा न केवल कच्चे तेल के शिपमेंट को सुगम बनाता है, बल्कि कोयला, LNG, उर्वरक और अन्य वस्तुओं के शिपमेंट को भी सुगम बनाता है, जिससे देशों के मध्य व्यापारिक संबंध व्यापक होते हैं।
- भारत के समुद्री क्षेत्र में वृद्धि:
- यह गलियारा भारत के समुद्री क्षेत्र को सहयोग प्रदान करता है, जो देश के लगभग 95% (मात्रा के अनुसार) और 70% (मूल्य के अनुसार) व्यापार तथा इसके विकास एवं दक्षता में योगदान देता है।
- यह गलियारा भारत का समुद्री विज़न, 2030 के अनुरूप है, जिसमें समुद्री क्षेत्र में परिवर्तन लाने के उद्देश्य से 150 से अधिक पहल शामिल हैं।
- सामरिक महत्त्व:
- व्लादिवोस्तोक प्रशांत महासागर में स्थित सबसे बड़ा रूसी बंदरगाह है और यह गलियारा दक्षिण चीन सागर से होकर गुज़रता है तथा इस क्षेत्र में चीन के प्रभुत्व को संबोधित करते हुए भारत की रणनीतिक उपस्थिति को मज़बूत करता है।
- चेन्नई-व्लादिवोस्तोक गलियारा अन्य पहलों, जैसे उत्तरी समुद्री मार्ग और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) के साथ संरेखित है।
- भारत की ‘एक्ट फार ईस्ट नीति’ को आगे बढ़ाना:
- इसके अतिरिक्त, इससे पर्यटन, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और व्यापार साझेदारी के अवसर उत्पन्न होंगे, जिससे भारत एक प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित होगा।
- EMC रूसी संसाधनों तक भारत की पहुँच को बढ़ाएगा तथा प्रशांत क्षेत्र में व्यापारिक गतिविधियों में इसकी स्थिति को मज़बूत करेगा।
- क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ाकर, यह पूर्वी एशिया, आसियान और रूस के साथ व्यापार को बढ़ावा देता है, बहुविध परिवहन को सुविधाजनक बनाता है तथा बुनियादी ढाँचे के विकास को समर्थन प्रदान करता है।
भारत के लिये अन्य कौन-से समुद्री गलियारे महत्त्वपूर्ण हैं?
- अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC):
- INSTC 7,200 किलोमीटर लंबा बहुविध पारगमन मार्ग है, जो हिंद महासागर और फारस की खाड़ी को ईरान के माध्यम से कैस्पियन सागर से और आगे रूस के सेंट पीटर्सबर्ग के माध्यम से उत्तरी यूरोप से जोड़ता है।
- इसकी शुरूआत वर्ष 2000 में भारत, ईरान और रूस के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते के माध्यम से हुई थी, इसमें 13 सदस्य देशों को शामिल किया गया है।
- यह भारत, ईरान, अज़रबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच जहाज़, रेल और सड़क मार्गों को जोड़ता है।
- इस गलियारे के 3 मार्ग हैं: केंद्रीय गलियारा (भारत से ईरान होते हुए रूस), पश्चिमी गलियारा (अज़रबैजान-ईरान-भारत) और पूर्वी गलियारा (रूस से मध्य एशिया होते हुए भारत)।
- जून 2024 में रूस ने पहली बार INSTC के माध्यम से भारत को कोयला ले जाने वाली दो ट्रेनें भेजीं।
- यह भारत, ईरान, अज़रबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच जहाज़, रेल और सड़क मार्गों को जोड़ता है।
- भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) परियोजना:
- IMEC परियोजना की घोषणा G20 शिखर सम्मेलन (2023) में की गई थी, IMEC का उद्देश्य भारत, मध्य पूर्व और यूरोप को रेलवे, सड़क एवं जहाज़-से-रेल लिंक के नेटवर्क के माध्यम से जोड़ना है।
- इसमें दो गलियारे शामिल हैं: पूर्वी गलियारा, जो भारत को अरब की खाड़ी से जोड़ता है तथा उत्तरी गलियारा, जो खाड़ी को यूरोप से जोड़ता है।
- इस परियोजना में एक विद्युत केबल, एक हाइड्रोजन पाइपलाइन और एक हाई-स्पीड डेटा केबल भी शामिल होगी, जिससे एशिया, यूरोप और मध्य पूर्व में क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ावा मिलेगा।
- उत्तरी समुद्री मार्ग (NSR):
- NSR 5,600 किमी. लंबा आर्कटिक शिपिंग मार्ग है, जो बेरिंट और कारा सागर को बेरिंग जलडमरूमध्य से जोड़ता है।
- यह स्वेज़ नहर जैसे पारंपरिक मार्गों की तुलना में 50% कम पारगमन समय प्रदान करता है, जो वर्ष 2021 के स्वेज़ नहर ब्लॉकेज के बाद इसने ध्यान आकर्षित किया।
- यह एक ऐसा क्षेत्र बन गया है, जहाँ दोनों देश आर्कटिक शिपिंग और पोलर नेविगेशन से संबंधित परियोजनाओं पर कार्य कर रहे हैं, जो पश्चिमी यूरेशिया तथा एशिया-प्रशांत के बीच एक रणनीतिक शिपिंग मार्ग प्रदान करता है।
- भारत की दिलचस्पी NSR में इसलिये है क्योंकि रूसी कच्चे तेल और कोयले का आयात बढ़ रहा है। NSR क्षेत्र में रूस-चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिये भी महत्त्वपूर्ण है।
भारत-रूस संबंधों के प्रमुख पहलू क्या हैं?
- सामरिक साझेदारी: भारत और रूस ने वर्ष 2000 में अपनी सामरिक साझेदारी को औपचारिक रूप दिया, जिसे वर्ष 2010 में विशेष एवं विशेषाधिकार प्राप्त सामरिक साझेदारी में उन्नत किया गया।
- इसका लक्ष्य वर्ष 2025 तक 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश और 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार हासिल करना है तथा वर्ष 2030 तक 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का लक्ष्य हासिल करना है।
- द्विपक्षीय व्यापार और निवेश: वित्त वर्ष 2023-24 में भारत-रूस व्यापार 65.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया। रूस से प्रमुख आयात और निर्यात (वित्त वर्ष 2024):
- मूल्य के अनुसार:
- आयात: कच्चा तेल, परियोजना माल, कोयला, कोक, वनस्पति तेल और उर्वरक।
- निर्यात: प्रसंस्कृत खनिज, लोहा और इस्पात, चाय, समुद्री उत्पाद और कॉफी।
- मात्रा के अनुसार:
- आयात: कच्चा पेट्रोलियम, कोयला, उर्वरक, वनस्पति तेल तथा लोहा एवं इस्पात।
- निर्यात: प्रसंस्कृत खनिज, लोहा और इस्पात, चाय, ग्रेनाइट तथा प्रसंस्कृत फल और जूस।
- वर्ष 2018 में द्विपक्षीय निवेश 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर गया, जिसे वर्ष 2025 तक 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाने का संशोधित लक्ष्य रखा गया है।
- मूल्य के अनुसार:
- वंदे भारत स्लीपर के लिये भारत-रूस संयुक्त उद्यम: भारत-रूस संयुक्त उद्यम किनेट ने 1,920 वंदे भारत स्लीपर कोचों के निर्माण के लिये लातूर में मराठवाड़ा रेल कोच फैक्ट्री का अधिग्रहण कर लिया है।
- ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग: रूस भारत की ऊर्जा सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और दोनों देश तेल एवं गैस क्षेत्रों में व्यापक रूप से सहयोग करते हैं।
- रूस के राज्य स्वामित्व ऊर्जा कंपनियों ने भारत के ऊर्जा बुनियादी ढाँचे में महत्त्वपूर्ण निवेश किया है, जबकि भारतीय कंपनियाँ रूस में तेल अन्वेषण परियोजनाओं में शामिल हैं।
- रक्षा और सुरक्षा सहयोग: भारत और रूस का IRIGC-M&MTC तंत्र द्वारा विनियमित दीर्घकालिक रक्षा सहयोग रहा है, जिसमें इंद्र तथा वोस्तोक 2022 जैसे नियमित द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सैन्य अभ्यास शामिल हैं।
- दोनों देशों के प्रमुख रक्षा परियोजनाओं में S-400 प्रणाली, MiG-29, कामोव हेलीकॉप्टर, INS विक्रमादित्य, Ak-203 राइफलों और ब्रह्मोस मिसाइलों का प्रदाय एवं T-90 टैंक व Su-30 MKI का अनुज्ञापित उत्पादन शामिल है।
- यह सहयोग क्रेता-विक्रेता मॉडल से शुरू होकर उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियों के संयुक्त अनुसंधान, विकास एवं उत्पादन में परिणत हुआ है।
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी: इसमें अंतरिक्ष (गगनयान), नैनो प्रौद्योगिकी और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे क्षेत्रों में सहयोग शामिल है।
- दोनों देशों ने संयुक्त रूप से कुडनकुलम नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र का विकास किया। यह साझेदारी नवाचार के लिये वर्ष 2021 के रोडमैप द्वारा निर्देशित है, जिसका उद्देश्य प्रौद्योगिकियों का व्यावसायीकरण करना और संयुक्त परियोजनाओं का समर्थन करना है।
- भू-राजनीतिक और क्षेत्रीय सहयोग:
- भारत-रूस संबंध वैश्विक और क्षेत्रीय सुरक्षा में साझा हितों पर आधारित हैं, जिसमें संयुक्त राष्ट्र तथा BRICS जैसे बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग भी शामिल है।
- एशिया-प्रशांत क्षेत्र में रूस की बढ़ती सहभागिता विशेष रूप से चीन के समुद्री प्रभाव को संतुलित करने के संदर्भ में, भारत की रणनीतिक प्राथमिकताओं के अनुरूप है।
- आर्थिक कूटनीति और कराधान समझौते:
- भारत-रूस दोहरा कराधान परिहार समझौता (DTAA), जो वर्ष 1996 से प्रभावी है, दोहरे कराधान को समाप्त करके और राजकोषीय अपवंचन को रोककर सीमा पार निवेश तथा व्यापार को बढ़ावा देने में एक महत्त्वपूर्ण साधन है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: भारत-रूस सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों और चुनौतियों को उजागर करते हुए वर्तमान संबंधों की स्थिति की विवेचना कीजिये। भारत इस रणनीतिक सहभागिता को किस प्रकार मज़बूत कर सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. हिंद महासागर नौसेना परिसंवाद (सिम्पोज़ियम) (IONS) के संबंध में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) प्रश्न. 'इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन फॉर रीज़नल को-ऑपरेशन (IOR ARC)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. भू-युद्धनीति की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण क्षेत्र होने के नाते दक्षिणपूर्वी एशिया लंबे अंतराल और समय से वैश्विक समुदाय का ध्यान आकर्षित करता आया है। इस वैश्विक संदर्श की निम्नलिखित में से कौन-सी व्याख्या सबसे प्रत्ययकारी है? (2011) (a) यह द्वितीय विश्व युद्ध का सक्रिय घटनास्थल था। उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. परियोजना 'मौसम' को भारत सरकार की अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों की सुदृढ़ करने की एक अद्वितीय विदेश नीति पहल माना जाता है। क्या इस परियोजना का एक रणनीतिक आयाम है? चर्चा कीजिये। (2015) प्रश्न. दक्षिण चीन सागर के मामले में, समुद्री भूभागीय विवाद और बढ़ता हुआ तनाव समस्त क्षेत्र में नौपरिवहन की और ऊपरी उड़ान की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिये समुद्री सुरक्षा की आवश्यकता की अभिपुष्टि करते हैं। इस संदर्भ में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा कीजिये। (2014) |