भारतीय अर्थव्यवस्था
CBDT द्वारा आयकर अधिनियम, 1961 में संशोधन
- 24 Aug 2024
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प्रिलिम्स के लिये:प्रत्यक्ष कर, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, आयकर अधिनियम, 1961, विवाद से विश्वास, एंजल टैक्स, पूंजीगत लाभ मेन्स के लिये:भारत में कराधान प्रणाली में सुधार, मुद्दे, भारतीय अर्थव्यवस्था और नीतियों से संबंधित मुद्दे, कर व्यवस्था में परिवर्तन |
स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स
चर्चा में क्यों?
आयकर विभाग एक नवगठित आंतरिक समिति के माध्यम से आयकर अधिनियम, 1961 में महत्त्वपूर्ण बदलाव कर रहा है।
- केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) के अध्यक्ष द्वारा घोषित यह कदम केंद्र सरकार द्वारा संचालित पहल का हिस्सा है जिसका उद्देश्य भारत के प्रत्यक्ष कर कानूनों को सरल और आधुनिक बनाना है।
आयकर अधिनियम की समीक्षा क्यों की जा रही है?
- ऐतिहासिक जटिलता: आयकर अधिनियम, 1961 की इसकी जटिलता और पुराने प्रावधानों के कारण आलोचना की जाती रही है।
- अधिनियम को सरल बनाने के लिये किये गए विगत प्रयासों (जैसे: 1958 में विधि आयोग द्वारा 1922 के आयकर अधिनियम पर किये गए कार्य) ने प्रदर्शित किया कि वास्तविक सरलीकरण के लिये कर ढाँचे में पूर्ण संशोधन आवश्यक है।
- आधुनिकीकरण की आवश्यकता: अधिनियम की जटिलता के कारण सरकार एवं करदाताओं के मध्य विवाद और भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई है। समीक्षा का उद्देश्य वर्तमान आर्थिक वास्तविकताओं और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को प्रतिबिंबित करने के लिये कानून को अद्यतन करना है, जिससे इसे अधिक पारदर्शी और नेविगेट करना आसान हो सके।
- अनुपालन में सुधार: कर कानून को सरल बनाने से अस्पष्टता कम होने और फाइलिंग प्रक्रिया को अधिक सरल बनाने से करदाता अनुपालन में वृद्धि होने की उम्मीद है।
- यह समीक्षा कर प्रणाली को अधिक कुशल तथा वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने के व्यापक प्रयास का हिस्सा है।
- विवाद समाधान: लंबे समय से चले आ रहे विवादों को निपटाने के लिये विवाद से विश्वास योजना लागू की गई है।
- समीक्षा में पुनर्मूल्यांकन अवधि को छोटा करने तथा करदाताओं और कर विभाग के मध्य टकराव को कम करने के लिये उच्च मौद्रिक सीमा निर्धारित करने पर भी विचार किया जाएगा।
आयकर अधिनियम, 1961 के मुख्य पहलू क्या हैं?
- परिचय: आयकर अधिनियम, 1961 भारत में आयकर को नियंत्रित करने वाला एक मूलभूत कानून है। एक व्यापक तंत्र के रूप में, यह तय करता है कि व्यक्तियों और निगमों से आयकर किस प्रकार लगाया, प्रशासित एवं एकत्र किया जाए।
- इसमें 298 धाराएँ, 23 अध्याय और कई महत्त्वपूर्ण प्रावधान हैं, जिनमें भारत में कराधान के सभी पहलू शामिल हैं।
- आयकर एक प्रत्यक्ष कर है जिसे व्यक्तियों को वहन करना होता है, इसे हस्तांतरित करने का विकल्प नहीं होता।
- उद्देश्य:
- आर्थिक स्थिरता: अधिनियम का उद्देश्य निजी व्यय को विनियमित करके और प्रगतिशील कराधान सुनिश्चित करके आर्थिक स्थिरता बनाए रखना है।
- प्रगतिशील कराधान: इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि व्यक्ति अपनी आय के स्तर के अनुसार करों में योगदान दें, जिससे कर प्रणाली में निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा मिले।
- राजस्व संग्रह: विभिन्न स्रोतों से आय पर कर लगाने के लिये स्पष्ट नियमों की रूपरेखा बनाकर, अधिनियम कुशल राजस्व संग्रह और प्रबंधन में मदद करता है।
- मुख्य प्रावधान:
- कर स्लैब: आय वर्ग और व्यक्तियों तथा व्यवसायों पर लागू संबंधित कर दरों को परिभाषित करता है।
- कटौतियाँ: वार्षिक सीमा के अधीन, 80C (निवेश), 80D (चिकित्सा बीमा प्रीमियम) और 80G (दान) जैसी धाराओं के अंतर्गत कटौती की अनुमति देता है।
- मूल्यांकन: कर योग्य आय का आकलन करने, रिटर्न दाखिल करने और ऑडिट करने की प्रक्रियाओं का विवरण देता है।
- स्रोत पर कर कटौती (TDS): कुछ भुगतानों के लिये स्रोत पर कर कटौती की आवश्यकता होती है, जिससे कर संग्रह प्रक्रिया सरल हो जाती है।
- पूंजीगत लाभ: अल्पकालिक और दीर्घकालिक लाभ के प्रावधानों सहित परिसंपत्तियों की बिक्री से होने वाले मुनाफे पर कराधान को विनियमित करता है।
- दंड और अपील: गैर-अनुपालन के लिये दंड और अपील के माध्यम से विवादों को हल करने की प्रक्रियाओं की रूपरेखा तैयार करता है।
- हाल के प्रमुख सुधार:
- कॉर्पोरेट कर दरें: हाल के सुधारों में कॉर्पोरेट कर दरों को कम करना और कुछ प्रोत्साहनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना शामिल है।
- कॉर्पोरेट करदाताओं के लिये प्रभावी कर दर सत्र 2017-18 में 29.49% से घटकर सत्र 2021-22 में 23.26% हो गई। विदेशी कंपनियों के लिये कॉर्पोरेट कर की दर भी घटाकर 35% कर दी गई है और एंजेल टैक्स को समाप्त कर दिया गया है।
- व्यक्तिगत आयकर स्लैब: कम आय वाले समूहों के लिये कम आयकर स्लैब और कम दरों से बड़ी संख्या में व्यक्तिगत करदाताओं को लाभ होने की उम्मीद है।
- कर स्लैब के सरलीकरण से करदाताओं की संख्या में वृद्धि हुई है, जो सत्र 2019-20 और सत्र 2022-23 के दौरान 89.8 मिलियन से बढ़कर 93.7 मिलियन हो गई है।
- कॉर्पोरेट कर दरें: हाल के सुधारों में कॉर्पोरेट कर दरों को कम करना और कुछ प्रोत्साहनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना शामिल है।
आयकर अधिनियम, 1961 में किये गए संशोधन से क्या अपेक्षित लाभ होंगे?
- संक्षिप्तता और स्पष्टता: संशोधित अधिनियम अधिक संक्षिप्त होगा, जिससे इसे समझना और नेविगेट करना आसान हो जाएगा।
- अनावश्यक और पुराने प्रावधानों को समाप्त करने से अधिनियम कम बोझिल होगा, जिससे करदाताओं एवं कर अधिकारियों पर प्रशासनिक बोझ कम हो जाएगा।
- बेहतर करदाता अनुभव: अधिक सरल कर कानून अस्पष्टता को कम करेगा और करदाताओं के लिये सिस्टम को नेविगेट करना आसान बना देगा, जिससे विश्वास एवं अनुपालन को बढ़ावा मिलेगा।
- पूंजीगत लाभ कर सुधार: सरकार वैश्विक रुझानों के साथ तालमेल बैठाते हुए पूंजीगत लाभ व्यवस्था में सुधार करने की योजना बना रही है।
- इसमें इक्विटी पूंजीगत लाभ पर कर बढ़ाना और वायदा एवं विकल्पों पर प्रतिभूति लेन-देन कर बढ़ाना शामिल है। सुधार का उद्देश्य विभिन्न परिसंपत्ति वर्गों और आय समूहों के बीच कर के बोझ को संतुलित करना है।
- व्यापक कर आधार: सरलीकृत अनुपालन प्रक्रियाएँ और स्पष्ट विनियमन उच्च कर अनुपालन एवं कर आधार को व्यापक बना सकते हैं।
- बेहतर प्रवर्तन और कम खामियों के साथ, सरकार को कर दरों या छूटों में संभावित कटौती के बावजूद राजस्व संग्रह को बढ़ावा देने की उम्मीद है।
- बेहतर कारोबारी माहौल: अधिक पारदर्शी और पूर्वानुमानित कर व्यवस्था भारत को विदेशी एवं घरेलू निवेशकों के लिये अधिक आकर्षक गंतव्य बनाएगी।
- निवेश और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये कॉर्पोरेट और पूंजीगत लाभ कर दरों में समायोजन किया जा सकता है।
- दीर्घकालिक आर्थिक लाभ: आधुनिक कर प्रणाली आर्थिक विकास और स्थिरता का समर्थन करेगी, जो वर्ष 2047 तक विकसित देश का दर्जा प्राप्त करने के भारत के लक्ष्य में योगदान देगी।
- सुव्यवस्थित प्रक्रियाएँ और स्पष्ट विनियमन कर प्रशासन की समग्र दक्षता को बढ़ाएँगे तथा अनुपालन की लागत को कम करेंगे।
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के संदर्भ में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: CBDT की उत्पत्ति केंद्रीय राजस्व बोर्ड अधिनियम, 1924 से हुई, जिसने शुरू में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों करों के लिये ज़िम्मेदार केंद्रीय राजस्व बोर्ड की स्थापना की।
- प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों करों के प्रबंधन के प्रशासनिक बोझ के कारण वर्ष 1964 में बोर्ड का विभाजन हो गया।
- इस विभाजन से दो अलग-अलग निकाय बने: प्रत्यक्ष करों के लिये केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) और अप्रत्यक्ष करों के लिये केंद्रीय उत्पाद शुल्क एवं सीमा शुल्क बोर्ड।
- इस पुनर्गठन को केंद्रीय राजस्व बोर्ड अधिनियम, 1963 के तहत औपचारिक रूप दिया गया था।
- यह वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग का एक हिस्सा है, CBDT भारत में प्रत्यक्ष करों के प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- संरचना: CBDT का नेतृत्व एक अध्यक्ष करता है, जो बोर्ड के कार्यों का समन्वय करता है।
- बोर्ड में छह सदस्य होते हैं, जिनमें से प्रत्येक भारत सरकार के पदेन विशेष सचिव का पद धारण करता है।
- चयन: अध्यक्ष और सदस्यों का चयन भारतीय राजस्व सेवा (IRS) से किया जाता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनका नेतृत्व कर प्रशासन एवं नीति में निपुण हो।
- कार्यप्रणाली: CBDT आयकर और निगम कर सहित प्रत्यक्ष करों से संबंधित नीतियों को तैयार करने के लिये ज़िम्मेदार है।
- बोर्ड पूरे आयकर विभाग के कामकाज की देखरेख करता है, जिससे कर कानूनों का कुशल प्रशासन और प्रवर्तन सुनिश्चित होता है।
- CBDT सरकार की नीतियों के अनुरूप प्रत्यक्ष कर कानूनों और दरों में बदलाव का प्रस्ताव करता है। यह कर प्रणाली को बढ़ाने के लिये विधायी संशोधनों का भी सुझाव देता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. आयकर अधिनियम, 1961 की जटिलता और वर्तमान आर्थिक वास्तविकताओं तथा वैश्विक प्रथाओं के साथ तालमेल बैठाने के लिये आधुनिकीकरण की आवश्यकता का विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में काले धन के सृजन के निम्नलिखित प्रभावों में से कौन-सा भारत सरकार की चिंता का प्रमुख कारण है? (a) स्थावर संपदा के व्रय और विलासितायुक्त आवास में निवेश के लिये संसाधनों का अपयोजन उत्तर:(d) मेन्स:प्रश्न. 'कर व्यय' शब्द का क्या अर्थ है? आवास क्षेत्र को उदाहरण के रूप में लेते हुए, चर्चा कीजिये कि यह सरकार की बजटीय नीतियों को कैसे प्रभावित करता है। (2013) |