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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ब्रिक्स के लिये भारत के रणनीतिक दृष्टिकोण

  • 29 Oct 2024
  • 28 min read

यह संपादकीय 25/10/2024 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित" “Why this is not just another BRICS in the wall” पर आधारित है। लेख में 16वाँ ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से कज़ान घोषणा पर चर्चा की गई है, जिसमें समान वैश्विक विकास के लिये बहुपक्षवाद पर ज़ोर दिया गया है, जिसमें ब्रिक्स के लिये भारत के दृष्टिकोण को रेखांकित किया गया है। मूल रूप से वर्ष 2006 में ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन द्वारा गठित, ब्रिक्स में अब दक्षिण अफ्रीका और नए भागीदार शामिल हैं, जो आर्थिक सहयोग तथा वैश्विक नियंत्रण में सुधार पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

प्रिलिम्स के लिये:

16वाँ ब्रिक्स शिखर सम्मेलन, ग्लोबल साउथ, ब्रिक्स समूह का विस्तार, संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन, विश्व बैंक, IMF, आकस्मिक रिज़र्व व्यवस्था (CRA),  न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB), वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC), वाॅइस् फॉर द ग्लोबल साउथ, सतत् विकास, आतंकवाद विरोध, आतंकवाद का वित्तपोषण, रूस-यूक्रेन संघर्ष, वैश्विक वित्तीय सुरक्षा नेट

मेन्स के लिये:

भारत के सामरिक हितों के लिये अंतर्राष्ट्रीय समूहों और समझौतों का महत्त्व।

रूस के कज़ान में आयोजित  16वाँ ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में " न्यायसंगत वैश्विक विकास और सुरक्षा के लिये बहुपक्षवाद को सुदृढ़ करने "पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिसमें वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिये प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला गया। भारत ने विस्तारित ब्रिक्स के लिये अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, जो संगठन के विकास में एक महत्वपूर्ण क्षण था। वर्ष 2006 में स्थापित, ब्रिक्स का उद्देश्य विकसित देशों के साथ संबंध बनाए रखते हुए ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन की शक्तियों का लाभ उठाना था। वर्तमान में इसमें दक्षिण अफ्रीका, मिस्र और सऊदी अरब शामिल हैं, जो इसके बढ़ते प्रभाव को दर्शाते है

ब्रिक्स ने सभी देशों के साथ साझेदारी के लिये अपनी गुटनिरपेक्षता और प्रतिबद्धता पर ज़ोर दिया। कज़ान घोषणापत्र में ब्रिक्स देशों के बीच सहयोग तथा स्थानीय मुद्रा व्यापार को बढ़ावा देने जैसे अभिनव वित्तीय समाधानों पर भी ज़ोर दिया गया।

ब्रिक्स की उत्पत्ति, विकास और महत्त्व क्या हैं?

विकास:

  • सदस्यता में विस्तार: दक्षिण अफ्रीका वर्ष 2010 में ब्रिक्स में शामिल हुआ, जिससे उभरती अर्थव्यवस्थाओं के प्रतिनिधित्त्व में वृद्धि हुई। 
    • वर्ष 2024 में, मिस्र, इथियोपिया, संयुक्त अरब अमीरात, ईरान और सऊदी अरब के शामिल होने से ब्रिक्स समूह में विस्तार होगा, जिससे इसका प्रभाव और विकास संबंधी एजेंडा का व्यापक विस्तार होगा।
  • सदस्यता में परिवर्तन: मिस्र, इथियोपिया, संयुक्त अरब अमीरात, ईरान और सऊदी अरब का शामिल होना ब्रिक्स के लिये एक महत्त्वपूर्ण है, जो इसके क्षेत्रीय प्रभाव और सहयोग को बढ़ाएगा। 
    • ब्रिक्स राष्ट्र (10) वर्तमान में वैश्विक अर्थव्यवस्था के एक चौथाई से अधिक तथा विश्व की लगभग आधी आबादी का प्रतिनिधित्त्व करते हैं।
    • संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब जैसे प्रमुख तेल उत्पादक देशों की सदस्यता से ब्रिक्स की वैश्विक ऊर्जा बाज़ारों को प्रभावित करने की क्षमता में वृद्धि होगी। 
    • नए सदस्यों के बीच विविधता सर्वसम्मति आधारित निर्णय लेने के महत्त्व पर ज़ोर देती है, जो ब्रिक्स के लिये एक आधारभूत महत्त्व रखता है।
  • संस्थागत विकास: ब्रिक्स का विकास संयुक्त राष्ट्र और विश्व व्यापार संगठन सहित वैश्विक शासन संरचनाओं में सुधार का समर्थन करने तथा विश्व बैंक और IMF जैसी वित्तीय संस्थाओं में परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिये हुआ है । 
    • वित्तीय स्थिरता और विकास को समर्थन देने के लिये आकस्मिक रिज़र्व व्यवस्था (CRA) और न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) (फोर्टालेजा घोषणा द्वारा स्थापित) जैसे प्रमुख तंत्र स्थापित किये गए हैं।

महत्त्व: 

  • आर्थिक विकास: वर्ष 2023 में ब्रिक्स ब्लॉक का वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 37% हिस्सा रहा है।
  • ब्रिक्स ने संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद (PPP के संदर्भ में) और विकास दर में G-7 को पीछे छोड़ दिया है, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था में इसके बढ़ते महत्त्व को दर्शाता है। 
    • ब्रिक्स देशों के बीच बढ़ता सहयोग इस वृद्धि को समर्थन प्रदान करता है, जिससे सदस्य देशों को लाभ मिलता है।
  • भू-राजनीतिक परिदृश्य को आकार देना: ब्रिक्स भू-राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करने और वैश्विक शासन संरचनाओं में सुधार का समर्थन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    •  इसका सर्वसम्मति-संचालित दृष्टिकोण जटिल वैश्विक मुद्दों से निपटने के लिये सदस्य देशों की सक्रिय भागीदारी और नेतृत्त्व को आवश्यक बनाता है।
  • महिला सशक्तीकरण: ब्रिक्स महिला सशक्तीकरण और निर्णय लेने में भागीदारी के महत्त्व पर प्रकाश डालता है, जिसे महिला मामलों पर मंत्रिस्तरीय बैठक और ब्रिक्स महिला मंच द्वारा समर्थन प्राप्त है।
    • ब्रिक्स महिला व्यापार गठबंधन महिला उद्यमियों को समर्थन बढ़ाने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म और क्षेत्रीय कार्यालयों जैसी पहलों के माध्यम से उद्यमशीलता को बढ़ावा देता है।
  • किफायती आवास और शहरी विकास: ब्रिक्स देश वर्ष 2030 सतत् विकास एजेंडे के अनुरूप ब्रिक्स शहरीकरण फोरम और नगर पालिका फोरम जैसी पहलों के माध्यम से किफायती आवास एवं शहरी अनुकूलता को आगे बढ़ा रहे हैं।

भारत के लिये ब्रिक्स का महत्त्व और चुनौतियाँ क्या हैं?

भारत के लिये ब्रिक्स का महत्त्व

  • भू-राजनीतिक प्रभाव: ब्रिक्स भारत को प्रमुख रूस-चीन धुरी को संतुलित करने और वैश्विक राजनीति में अपनी बहु-ध्रुवीय दृष्टिकोण को लागू करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण मंच प्रदान करता है।
    • उदाहरण के लिये 16 वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के अवसर पर सहयोग करते हुए, भारतीय एवं चीनी वार्ताकार वास्तविक नियंत्रण रेखा (LC) पर "पेट्रोलिंग (गश्त) व्यवस्था" पर एक समझौते पर पहुँचे हैं, जिससे वर्ष 2020 में इन क्षेत्रों में सामने आए मुद्दों के समाधान में मदद मिलेगी।
    • इसके अलावा, ब्रिक्स भारत को वैश्विक वित्तीय प्रणाली में सुधारों का समर्थन करने तथा IMF और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं में विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिये अधिक प्रतिनिधित्त्व की मांग करने का अवसर प्रदान करता है।
  • विकासात्मक वित्तपोषण: पिछले पाँच वर्षों में, NDB ने सदस्य देशों में 25.07 बिलियन अमेरिकी डॉलर की 70 परियोजनाओं को मंज़ूरी दी है, जिनमें भारत में 6.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर की 18 परियोजनाएँ शामिल हैं
    • यह ब्रिक्स ढाँचा भारत की रणनीतिक स्थिति को रेखांकित करता है, तथा सदस्य देशों के बीच अधिक क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देते हुए इसके बुनियादी ढाँचे के विकास और आर्थिक विकास को बढ़ाता है।
  • विकासशील देश: ब्रिक्स के एक प्रमुख सदस्य के रूप में, भारत वैश्विक दक्षिण की भागीदारी के रूप में अपनी भूमिका को बढ़ा सकता है, विशेष रूप से निष्पक्ष व्यापार, जलवायु ज़िम्मेदारी और सतत् विकास जैसे मुद्दों पर। 
    • ब्रिक्स एक ऐसा मंच है जहाँ भारत विकासशील देशों के हितों का समर्थन कर सकता है तथा उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की उन नीतियों के विरुद्ध आवाज उठा सकता है जो उभरते बाज़ारों में विकास में बाधा बन सकती हैं।
  • आतंकवाद विरोधी अभियान: भारत ने आतंकवाद विरोधी अभियानों पर ध्यान केंद्रित करने के लिये ब्रिक्स का उपयोग किया है, तथा सदस्य देशों द्वारा आतंकवाद के वित्तपोषण और क्षेत्रीय सुरक्षा संबंधी चुनौतियों जैसे विशिष्ट पहलुओं पर ध्यान देने का आग्रह किया है, जो भारत की राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सुरक्षा हेतु महत्त्वपूर्ण हैं
  • नए सदस्यों के साथ रणनीतिक साझेदारी: सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और इथियोपिया जैसे देशों को हाल ही में शामिल करने से भारत की साझेदारी और मज़बूत हुई है, विशेष रूप से ऊर्जा, व्यापार और बुनियादी ढाँचे जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में। 
    • उदाहरण के लिये सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात भारत के लिये महत्त्वपूर्ण व्यापार और ऊर्जा साझेदार हैं, जबकि इथियोपिया की रणनीतिक स्थिति तथा संसाधन क्षमता पूर्वी अफ्रीका में भारत की उपस्थिति को बढ़ाती है, जिससे उसके क्षेत्रीय हितों को समर्थन मिलता है।

ब्रिक्स में भारत के लिये चुनौतियाँ:

  • विविध सदस्य हित: ब्रिक्स समूह में विभिन्न आर्थिक प्रणालियों, राजनीतिक संरचनाओं और रणनीतिक हितों वाले देश शामिल हैं, जो एकजुट कार्रवाई के लिए समन्वय चुनौतियां पेश करते हैं। 
    • भारत के लिए, चीन, ब्राजील और रूस जैसे विभिन्न क्षेत्रीय लक्ष्यों वाले देशों सहित सभी ब्रिक्स सदस्यों की प्राथमिकताओं के साथ अपनी प्राथमिकताओं को संरेखित करना अक्सर जटिल होता है और इसके लिए सावधानीपूर्वक कूटनीति की आवश्यकता होती है।
    • चीन का प्रभुत्व: ब्रिक्स के भीतर चीन की पर्याप्त आर्थिक स्थिति, विशेष रूप से समूह की चीनी व्यापार और निवेश पर बढ़ती निर्भरता को देखते हुए, भारत के स्थायित्त्व को कमज़ोर कर सकती है। 
    • भारत के औद्योगिक वस्तुओं के आयात में चीन की हिस्सेदारी पिछले 15 वर्षों में 21% से बढ़कर 30% हो गयी है।
    • इसके अलावा, रूस के साथ चीन के तनावपूर्ण संबंधों ने ब्रिक्स की गतिशीलता को जटिल बना दिया है। पश्चिमी प्रभाव का मुकाबला करने में साझा हितों के बावजूद, क्षेत्रीय विवाद और क्षेत्रीय प्रभुत्त्व के लिये प्रतिस्पर्द्धा जैसे तनाव एकीकृत निर्णय लेने में बाधा बन सकते हैं।
    • यह प्रभुत्व भारत के लिये एक चुनौती प्रस्तुत करता है, क्योंकि चीन के साथ उसका व्यापार घाटा काफी अधिक है तथा ब्रिक्स के भीतर अपने आर्थिक एजेंडे को लागू करने का प्रयास करते हुए उसे इस असंतुलन को भी दूर करना होगा।
    • क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता का प्रबंधन: ब्रिक्स में अब सऊदी अरब और ईरान जैसे ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्विता वाले देश भी शामिल हैं, जिनके बीच तनाव समूह की एकजुटता को प्रभावित कर सकता है। 
    • भारत के सामने इन देशों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने की चुनौती है, क्योंकि क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता ब्रिक्स निर्णय प्रक्रिया को जटिल बना सकती है, जिससे प्रमुख मुद्दों पर आम सहमति बनाना कठिन हो जाएगा।
    • वैश्विक शासन मॉडल: वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता, व्यापार तनाव और संरक्षणवाद के बीच, ब्रिक्स के सामने एक समावेशी शासन मॉडल विकसित करने की चुनौती है। 

कज़ान में भारत-चीन समझौते के मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • गश्त समझौता: भारत और चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर "पेट्रोलिंग (गश्त) व्यवस्था" पर एक समझौते पर पहुँच गए हैं, जिससे वर्ष 2020 में उत्पन्न तनाव से मुक्ति मिल सकेगी
    • कज़ान में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भारत और चीन के बीच इस समझौते पर चर्चा हुई।
  • अधिकारों की बहाली: यह समझौता भारतीय सैनिकों को देपसांग मैदानों और डेमचोक में गश्त करने की अनुमति प्रदान करता है, जिससे मई 2020 से पहले की गतिविधियाँ फिर से शुरू हो सकेंगी।
  • सैनिकों की संख्या में कमी: इस समझौते का उद्देश्य प्रत्येक पक्ष की 50,000 से 60,000 सैनिकों की उपस्थिति को कम करना है, जिसका क्रियान्वयन 10 दिनों में होने की उम्मीद है
  • सावधानियाँ: विभिन्न तरह के बयानों से विश्वास-निर्माण की आवश्यकता का संकेत मिलता है, भारत इस बात पर ज़ोर देता है कि सामान्यीकरण सीमा मुद्दों के समाधान पर निर्भर करती है। भविष्य की वार्ता में विशेष प्रतिनिधि शामिल हो सकेंगे

16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के कज़ान घोषणापत्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?

  • व्यापक रूपरेखा: शिखर सम्मेलन का समापन कज़ान घोषणा को अपनाने के साथ हुआ, जो ब्रिक्स देशों के बीच सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों को रेखांकित करने वाला एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है। 
    • यह घोषणापत्र आपसी सम्मान, संप्रभु समानता और एक निष्पक्ष अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के प्रति ब्लॉक की प्रतिबद्धता को पुष्ट करता है ।
  • सामरिक महत्त्व: यह घोषणापत्र विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिये आधारशिला रखता है, जिसका लक्ष्य सतत् विकास और शांति है, जो वैश्विक दक्षिण के सामने आने वाली जटिल चुनौतियों का समाधान करने हेतु महत्त्वपूर्ण है।
  • संघर्ष का कूटनीतिक समाधान: ब्रिक्स नेताओं ने कूटनीतिक माध्यमों से  रूस-यूक्रेन संघर्ष को सुलझाने के महत्त्व की पुनः पुष्टि की।
    • घोषणापत्र में कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्र में मानवीय संकट, विशेष रूप से गाजा और पश्चिमी तट में बढ़ती हिंसा के संबंध में गंभीर चिंता व्यक्त की गई।
    • उन्होंने संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों के पालन पर प्रकाश डालते हुए मध्यस्थता प्रयासों के प्रति समर्थन व्यक्त किया। 
    • यह रुख बहुपक्षवाद और शांतिपूर्ण संघर्ष समाधान के प्रति ब्रिक्स की प्रतिबद्धता को दर्शाता है तथा इस समूह को वैश्विक संघर्षों में मध्यस्थ के रूप में स्थापित करता है।
  • G-20 और बहुपक्षवाद: शिखर सम्मेलन में वैश्विक निर्णय लेने के लिये एक प्रमुख मंच के रूप में G-20 के महत्त्व को दोहराया गया तथा सर्वसम्मति के आधार पर इसके निरंतर और प्रभावी कामकाज का समर्थन किया गया।
    • ब्रिक्स देशों ने वैश्विक वित्तीय सुरक्षा नेट के हिस्से के रूप में एक मज़बूत और प्रभावी IMF बनाए रखने के लिये अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की।
    • नेताओं ने ऐसे सुधारों का आह्वान किया जो IMF की संरचना और परिचालन को उभरती अर्थव्यवस्थाओं के हितों के साथ बेहतर ढंग से संरेखित करें, जिससे अधिक न्यायसंगत वैश्विक वित्तीय प्रणाली की दिशा में प्रयास का संकेत मिले।
  • व्यापार एवं डॉलर-विमुक्तीकरण: इसका एक प्रमुख परिणाम ब्रिक्स देशों के बीच स्थानीय मुद्राओं में व्यापार और वित्तीय लेनदेन को बढ़ावा देने पर सहमति थी, जिसका उद्देश्य अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता को कम करना है।
    • ब्रिक्स देश पश्चिमी मुद्राओं पर निर्भरता कम करने के लिये एक डिजिटल मुद्रा विकसित कर रहे हैं। यह मुद्रा अतिरिक्त सुरक्षा के लिये सोने पर आधारित हो सकती है तथा वित्तीय स्वतंत्रता चाहने वाले देशों को आकर्षित कर सकती है।
    • इस पहल का उद्देश्य वैश्विक तनाव के बीच मुद्रास्फीति से बचाव करना तथा अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करना है ।
    • इसके अलावा ब्रिक्स पे एक स्वतंत्र, विकेन्द्रीकृत भुगतान संदेश प्रणाली है जिसे सीमा पार वित्त की सुविधा के लिये डिज़ाइन किया गया है, जो ब्रिक्स संगठन या इसकी परिषदों से सीधे संबद्धता के बिना संचालित होती है।
  • ब्रिक्स अनाज एक्सचेंज: नेताओं ने ब्रिक्स अनाज एक्सचेंज की स्थापना और सीमा पार भुगतान प्रणाली की संभावनाओं पर चर्चा की।
    • अनाज विनिमय से अनाज वस्तुओं का व्यापार संभव होता है, जिससे भागीदार देशों के बीच बाज़ार की दक्षता, मूल्य निर्धारण और खाद्य सुरक्षा में सुधार होता है।
  • वैश्विक ज़िम्मेदारियाँ: शिखर सम्मेलन में स्वास्थ्य प्रणालियों में सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया गया, जिसमें ब्रिक्स अनुसंधान एवं विकास वैक्सीन केंद्र और संक्रामक रोगों के लिये एकीकृत प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली जैसी पहलों का समर्थन किया गया
    • इसके अलावा यह प्रतिबद्धता ब्रिक्स देशों के साथ पर्यावरण संरक्षण के महत्त्व को भी रेखांकित करती है।
    • नेताओं ने इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस के लिये भारत की पहल की सराहना की तथा लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण के प्रयासों पर मिलकर काम करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की।

आगे की राह

  • कूटनीतिक संबंधों को मज़बूत करना: भारत को विभिन्न राष्ट्रीय हितों के बीच सेतु बनाने के लिये ब्रिक्स के भीतर कूटनीतिक संबंधों को मज़बूत करना चाहिये।
    • नए और मौजूदा सदस्यों के साथ मज़बूत द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देकर, भारत विशेष रूप से व्यापार, जलवायु कार्रवाई और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर अधिक आम सहमति बना सकता है
    • भारत के लिये यह आवश्यक है कि ब्रिक्स पश्चिम विरोधी गुट के रूप में न जुड़ जाए, बल्कि एक सहयोगात्मक वैश्विक ढाँचे को आगे बढ़ाए, जिसमें विकसित तथा उभरती हुई दोनों अर्थव्यवस्थाओं को शामिल किया जा सके। 
    • इसके लिये भारत को संतुलित नीतियों का समर्थन करना होगा, जिससे वैश्विक आर्थिक व्यवस्था को खंडित होने से बचाया जा सके।
  • व्यापार और निवेश संबंधों को बढ़ाना: ब्रिक्स देशों, विशेषकर संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब जैसे नए सदस्यों के साथ व्यापार का विस्तार करने से चीन के साथ भारत के व्यापार असंतुलन को कम करने में मदद मिल सकती है । 
    • इन आर्थिक साझेदारियों का लाभ उठाकर भारत के व्यापार पोर्टफोलियो में विविधता लाई जा सकती है तथा ब्रिक्स में इसकी स्थिति मज़बूत हो सकती है
  • बहुपक्षीय सुधारों को बढ़ावा देना: भारत को IMF और विश्व बैंक जैसी वैश्विक संस्थाओं में सुधारों का समर्थन जारी रखनी चाहिये तथा विकासशील देशों के लिये अधिक न्यायपूर्ण प्रतिनिधित्व पर जोर देना चाहिये। 
    • एक संशोधित बहुपक्षीय प्रणाली ब्रिक्स के साझा दृष्टिकोण के अनुरूप होगी तथा एक समतापूर्ण वैश्विक व्यवस्था को बढ़ावा देने में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका को मज़बूत करेगी।
  • आतंकवाद विरोधी सहयोग को आगे बढ़ाना: भारत आतंकवाद विरोधी प्रयासों पर अधिक संरचित सहयोग बनाने के लिये ब्रिक्स के भीतर काम कर सकता है तथा वित्तपोषण और कट्टरपंथ जैसे मुद्दों का समाधान कर सकता है। 
    • मज़बूत सुरक्षा सहयोग वैश्विक सुरक्षा खतरों के प्रति ब्रिक्स की सामूहिक लचीलापन को बढ़ा सकता है, जिससे भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंडे को लाभ होगा।
  • ऊर्जा सुरक्षा के लिये ब्रिक्स का लाभ उठाना: जैसे-जैसे भारत की ऊर्जा जरूरतें बढ़ती जा रही हैं, सऊदी अरब और रूस जैसे ऊर्जा संपन्न ब्रिक्स सदस्यों के साथ साझेदारी दीर्घकालिक ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित कर सकती है। 
    • ब्रिक्स के अंतर्गत ऊर्जा अवसंरचना पर सहयोग और नवीकरणीय ऊर्जा की खोज से भारत के ऊर्जा स्रोतों में विविधता आ सकती है, तथा सतत् ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा मिल सकता है।
  • दक्षिण-दक्षिण सहयोग पहल का समर्थन: भारत को दक्षिण-दक्षिण सहयोग को आगे बढ़ाने के लिये ब्रिक्स को एक मंच के रूप में उपयोग करना चाहिये तथा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, सतत् विकास और बुनियादी ढाँचे में निवेश पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। 
    • ब्रिक्स के अंतर्गत विकासशील देशों के बीच सहयोग को मज़बूत करना भारत के बहुध्रुवीय विश्व के दृष्टिकोण के अनुरूप है तथा वैश्विक दक्षिण में इसके प्रभाव को बढ़ाता है
  • संतुलित ब्रिक्स पहचान को बढ़ावा देना: ब्रिक्स को पश्चिम विरोधी गुट बनने से बचाने के लिये भारत को समूह हेतु एक संतुलित पहचान को बढ़ावा देना चाहिये तथा पूर्वी और पश्चिमी दोनों अर्थव्यवस्थाओं के साथ सहयोग पर जोर देना चाहिये। 
    • इससे ब्रिक्स एक समावेशी मंच के रूप में उभरेगा तथा एक ऐसे वैश्विक शासन मॉडल को बढ़ावा मिलेगा जो पूर्व-पश्चिम के बीच के अंतर को समाप्त करेगा तथा भारत की बहु-संरेखण रणनीति को समायोजित करेगा।

निष्कर्ष

ब्रिक्स उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिये आर्थिक विकास और भू-राजनीतिक स्थिरता पर सहयोग करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण मंच के रूप में कार्य करता है। इसका महत्त्व विकासशील देशों का समर्थन करने में निहित है। राजनयिक संबंधों को मज़बूत करना, व्यापार संबंधों को बढ़ाना तथा आतंकवाद विरोधी पहल को आगे बढ़ाना सतत् विकास एवं वैश्विक समानता में ब्रिक्स की क्षमता को साकार करने के लिये आवश्यक है ।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: ब्रिक्स के अंतर्गत प्रमुख आर्थिक और भू-राजनीतिक चुनौतियाँ क्या हैं तथा भारत समूह में अपना सहयोग बढ़ाने के लिये इनका समाधान कैसे कर सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. हाल ही में समाचारों में आई में रहा 'फोर्टालेज़ा घोषणापत्र ('फोर्टालेज़ा डिक्लेरेशन)' निम्नलिखित में से किसके  मामलों से संबंधित है? (2015)

(a) ASEAN
(b) BRICS
(c) OECD
(d) WTO

उत्तर: (b)

मेन्स:

प्रश्न. भारत ने हाल ही में “नव विकास बैंक” (NDB) और एशियाई आधारित संरचना निवेश बैंक (AIIB) का संस्थापक सदस्य बनने हेतु हस्ताक्षर किये हैं। इन दोनों बैंकों की भूमिकाएँ एक दूसरे से किस प्रकार भिन्न होगी? भारत के लिये इन दोनों बैंकों के रणनीतिक महत्त्व पर चर्चा कीजिये। (2014)

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