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तीसरा वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन (VOGSS)

  • 21 Aug 2024
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ सम्मेलन, वसुधैव कुटुंबकम, ग्लोबल साउथ, प्राकृतिक खेती, सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs), डिजिटल परिवर्तन, ब्रांट लाइन, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)

मेन्स के लिये:

वैश्विक भागीदार के रूप में भारत के उदय में ग्लोबल साउथ का महत्त्व और संबंधित चिंताएँ।

स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स

चर्चा में क्यों?

भारत ने 17 अगस्त, 2024 को वर्चुअल प्रारूप में तीसरे वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन (Voice of Global South Summit- VOGSS) की मेजबानी की, जिसकी व्यापक विषयवस्तु थी, "An Empowered Global South for a Sustainable Future अर्थात् एक सतत् भविष्य के लिये सशक्त वैश्विक दक्षिण"।

  • तीसरे VOGSS में 123 देशों ने भाग लिया। हालाँकि, चीन और पाकिस्तान को इसमें आमंत्रित नहीं किया गया था ।
  • भारत ने 12-13 जनवरी 2023 को प्रथम VOGSS और 17 नवंबर 2023 को द्वितीय VOGSS की मेज़बानी की थी, उल्लेखनीय है इन दोनों सम्मेलनों की मेज़बानी भी वर्चुअल प्रारूप में ही की गई थी।

वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन क्या है?

  • सम्मेलन के बारे में: यह भारत के नेतृत्व में एक नवीन और अनूठी पहल है, जिसका उद्देश्य ग्लोबल साउथ/वैश्विक दक्षिण के देशों को एक साथ लाना तथा विभिन्न मुद्दों पर पर उनके दृष्टिकोण और प्राथमिकताओं के प्रकटन हेतु एक साझा मंच प्रदान करना है।
  • VOGSS की आवश्यकता: हाल के वैश्विक घटनाक्रमों, जैसे कि कोविड महामारी, यूक्रेन में जारी संघर्ष, बढ़ता ऋण, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा की चुनौतियों आदि ने विकासशील देशों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। 
    • व्यापक अनदेखी: प्रायः विकासशील देशों की चिंताओं को वैश्विक मंचों पर उचित महत्त्व नहीं मिलता।
    • अपर्याप्त संसाधन: प्रासंगिक मौजूदा मंच विकासशील देशों की चुनौतियों और चिंताओं का समाधान करने के क्रम में अपर्याप्त सिद्ध हुए हैं।
    • नवीनीकृत सहयोग: भारत का प्रयास विकासशील देशों को प्रभावित करने वाली चिंताओं, हितों एवं प्राथमिकताओं पर विचार-विमर्श करने तथा विचारों व समाधानों का आदान-प्रदान करने के लिये एक साझा मंच प्रदान करना है।
  • तीसरे VOGSS 2024 के मुख्य परिणाम :
    • वैश्विक विकास समझौता: भारत के प्रधानमंत्री ने चार तत्त्वों से युक्त एक व्यापक चार-स्तरीय वैश्विक विकास समझौते (Global Development Compact-GDC) का प्रस्ताव रखा:
      • विकास के लिये व्यापार
      • सतत् विकास के लिये क्षमता निर्माण
      • प्रौद्योगिकी साझाकरण
      • परियोजना विशिष्ट रियायती वित्त एवं अनुदान।
    • वित्तपोषण और समर्थन: भारत के प्रधानमंत्री ने ग्लोबल साउथ के देशों के साथ अपनी विकास साझेदारी को आगे बढ़ाने में भारत द्वारा कई महत्त्वपूर्ण पहलों की घोषणा की, जिनमें शामिल हैं:
      • व्यापार संवर्द्धन गतिविधियों के संवर्द्धन हेतु 2.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर का फंड
      • व्यापार नीति और व्यापार वार्ता में  क्षमता निर्माण हेतु 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर का फंड
    • स्वास्थ्य देखभाल संवर्द्धन: भारत ग्लोबल साउथ के देशों को सस्ती एवं प्रभावी जेनेरिक दवाएँ उपलब्ध कराने, दवा नियामकों के प्रशिक्षण का समर्थन करने तथा कृषि क्षेत्र में 'प्राकृतिक खेती' से जुड़े अनुभव व प्रौद्योगिकी साझाकरण की दिशा में कार्य करेगा।
    • वैश्विक संस्थानों में सुधार: प्रधानमंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि तनावों और संघर्षों का समाधान न्यायसंगत एवं समावेशी वैश्विक शासन पर निर्भर करता है।
      • वैश्विक संस्थानों में सुधार की आवश्यकता है ताकि उनकी प्राथमिकताओं में ग्लोबल साउथ की चिंताओं के समाधान को वरीयता दी जाए साथ ही विकसित देशों को भी अपने उत्तरदायित्वों एवं प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की आवश्यकता है।
    • सतत् विकास लक्ष्यों के लिये सहयोग: तीसरा VOGSS ग्लोबल साउथ के साझा दृष्टिकोण से प्रेरित था, जिसमें सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को पूरी तरह से प्राप्त करना तथा वर्ष 2030 से आगे तीव्र विकास पथ पर अग्रसर होना शामिल है
      • इसमें विकास वित्त, स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन, प्रौद्योगिकी, शासन, ऊर्जा, व्यापार, युवा सशक्तीकरण और डिजिटल परिवर्तन सहित वैश्विक दक्षिण के समक्ष आने वाली चुनौतियों के समाधान हेतु सामूहिक प्रयासों को सशक्त करने पर ज़ोर दिया गया। 
  • ग्लोबल साउथ क्या है?
  • ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग अमेरिकी विद्वान कार्ल ओग्लेसबी (Carl Oglesby) द्वारा वर्ष 1969 में ग्लोबल नॉर्थ के ‘प्रभुत्व’ (राजनीतिक और आर्थिक शोषण के माध्यम से) से प्रभावित देशों के समूह को दर्शाने के लिये किया गया था।
  • "ग्लोबल साउथ" वाक्यांश मोटे तौर पर लैटिन अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ओशिनिया के क्षेत्रों को संदर्भित करता है जो ब्रांट रेखा द्वारा पृथक्कृत होते हैं। 
    • यह यूरोप और उत्तरी अमेरिका के बाहर के क्षेत्रों को दर्शाता है, जो अधिकांशतः निम्न आय वाले तथा प्रायः राजनीतिक या सांस्कृतिक रूप से हाशिये पर हैं।
  • चीन और भारत ग्लोबल साउथ के अग्रणी समर्थक हैं।
  • ब्रांट रेखा प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के आधार पर, समृद्ध उत्तरी देशों और निर्धन दक्षिणी देशों के बीच विश्व के आर्थिक विभाजन का एक दृश्य प्रतिनिधित्व है। 
    • इसे 1970 के दशक में विली ब्रांट द्वारा प्रस्तावित किया गया था और यह लगभग 30° उत्तरी अक्षांश पर विश्व को घेरे हुए है।

‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ’ के रूप में भारत के लिये चुनौतियाँ क्या हैं?

  • भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा: ग्लोबल साउथ का नेतृत्व करने में भारत को चीन के प्रतिस्पर्द्धी के रूप में देखा जा रहा है। 
    • चीन बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के माध्यम से ग्लोबल साउथ में तेज़ी से अपनी पैठ बना रहा है।
  •  खाद्य सुरक्षा दुविधा: ग्लोबल साउथ के नेतृत्वकर्त्ता के रूप में भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक खाद्य सुरक्षा को हल करना है।
    • जुलाई 2023 में चावल के निर्यात को प्रतिबंधित करने के भारत के निर्णय की आलोचना की गई है, क्योंकि यह उसकी नेतृत्वकारी भूमिका के अनुरूप नहीं है, विशेष रूप से वैश्विक खाद्य चुनौतियों से निपटने के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को देखते हुए।
    • आलोचकों का तर्क है कि इस तरह के कदम ग्लोबल साउथ का नेतृत्व करने के भारत के दावे को कमज़ोर कर सकते हैं।
  • फार्मास्यूटिकल चुनौती: भारतीय निर्माताओं से जुड़े दूषित दवाओं के विवाद के कारण विश्व की फार्मेसी’ के रूप में भारत की प्रतिष्ठा भी जाँच के दायरे में आ गई है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) ने घटिया दवाओं के बारे में कई चेतावनियाँ जारी की हैं, जिसमें भारत द्वारा अपने दवा निर्यात में उच्च मानक बनाए रखने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
  • आंतरिक विकास के मुद्दे: आलोचकों का तर्क है कि भारत को अन्य मुद्दों से पहले असमान धन वितरण, बेरोज़गारी और अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे जैसे अपने घरेलू विकास के मुद्दों को प्राथमिकता देनी चाहिये।
    • भारत की विशाल ग्रामीण आबादी को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा तक पहुँच का अभाव है, जिससे अन्य विकासशील देशों में इसी प्रकार की समस्याओं के समाधान की इसकी क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं।

आगे की राह

  • रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करना: भारत को प्रौद्योगिकी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में सहयोगी परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए वैश्विक दक्षिण के देशों के साथ गठबंधन बनाना तथा मज़बूत करना जारी रखना चाहिये।
    • इससे चीन के प्रभाव का मुकाबला करने में मदद मिल सकती है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative- BRI) प्रमुख है।
  • संतुलित विकास मॉडल: भारत को एक ऐसे विकास मॉडल का समर्थन करना चाहिये जो स्थिरता और समावेशिता को प्राथमिकता दे तथा खुद को चीन के ऋण जाल दृष्टिकोण से अलग रखे।
    • भारत स्वयं को अधिक नैतिक और जन-केंद्रित नेता के रूप में स्थापित कर सकता है।
  • निर्यात नीतियों का पुनर्मूल्यांकन: वैश्विक दक्षिण में विश्वसनीयता बनाए रखने के लिये भारत को घरेलू खाद्य सुरक्षा और वैश्विक ज़िम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाना चाहिये।
    • कृषि नवाचार और प्रौद्योगिकी में निवेश से घरेलू खाद्य उत्पादन बढ़ाने में मदद मिल सकती है, जिससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि भारत अपनी घरेलू आवश्यकताओं और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं दोनों को पूरा कर सके।
  • घरेलू चुनौतियों को प्राथमिकता देना: गरीबी, बेरोज़गारी और अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे जैसे घरेलू मुद्दों का समाधान करना भारत के लिये उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए आवश्यक है।
    • एक मज़बूत, सुविकसित भारत के पास अन्य विकासशील देशों को मार्गदर्शन देने के लिये अधिक विश्वसनीयता और नैतिक अधिकार होगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: ग्लोबल साउथ में नेतृत्व की भूमिका निभाने में भारत को महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। भारत को एक ज़िम्मेदार और प्रभावी अग्रेता के रूप में स्थापित करने के लिये इन चुनौतियों का समाधान कैसे किया जा सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स

प्रश्न. "यदि विगत कुछ दशक एशिया की विकास की कहानी के रहे, तो परवर्ती कुछ दशक अफ्रीका के हो सकते हैं।" इस कथन के आलोक में, हाल के वर्षों में अफ्रीका में भारत के प्रभाव की परीक्षण कीजिये। (2021)

प्रश्न.  शीतयुद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के संदर्भ में, भारत की पूर्वोन्मुखी नीति के आर्थिक और सामरिक आयामों का मूल्यांकन कीजिये। (2016)

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