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भारतीय अर्थव्यवस्था

सीमा-पार भुगतान

  • 27 Aug 2024
  • 23 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वित्तीय स्थिरता बोर्ड, UPI-पेनाउ, सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी, अनिवासी भारतीय, नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर, भारतीय रिज़र्व बैंक, भुगतान एग्रीगेटर्स, प्रोजेक्ट नेक्सस

मेन्स के लिये:

वैश्विक व्यापार में सीमा-पार भुगतान और चुनौतियाँ, वैश्विक सीमा-पार भुगतान प्रणालियों में भारत की भूमिका

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों

हाल ही में वित्तीय स्थिरता बोर्ड (Financial Stability Board- FSB) ने सीमा-पार भुगतान (Cross-Border Payments- CBP) प्रणालियों में अकुशलताओं को दूर करने की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर दिया है। वैश्विक सीमा-पार भुगतान बाज़ार वर्ष 2032 तक लगभग दोगुना होने वाला है, इसलिये इन प्रणालियों में सुधार करना एक महत्त्वपूर्ण केंद्र बन गया है।

सीमा-पार भुगतान क्या हैं?

  • परिचय: CBP ऐसे लेनदेन हैं जिनमें भुगतानकर्त्ता और प्राप्तकर्त्ता अलग-अलग देशों में स्थित होते हैं। ये लेनदेन अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, निवेश और व्यक्तिगत हस्तांतरण के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • प्रकार
    • थोक सीमा-पार भुगतान: यह आमतौर पर वित्तीय संस्थानों के बीच, उधार लेने, देने और विदेशी मुद्रा, इक्विटी और वस्तुओं में व्यापार जैसी गतिविधियों के लिये उपयोग किया जाता है।
      • इसका उपयोग सरकारों और बड़ी कंपनियों द्वारा आयात, निर्यात और वित्तीय बाज़ारों से संबंधित महत्त्वपूर्ण लेनदेन के लिये भी किया जाता है।
    • खुदरा सीमा-पार भुगतान: इसमें आमतौर पर व्यक्ति और व्यवसाय शामिल होते हैं, जिसमें व्यक्ति-से-व्यक्ति (P2P), व्यक्ति-से-व्यवसाय (P2B) और व्यवसाय-से-व्यवसाय (B2B) लेनदेन शामिल हैं।
      • इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण धनप्रेषण है, जिसमें प्रवासी अपने देश को धन भेजते हैं।
  • महत्त्व: वैश्विक CBP बाज़ार, जिसका मूल्य वर्ष 2022 में 181.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है, वर्ष 2032 तक 356.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, जो वार्षिक 7.3% की वृद्धि दर को दर्शाता है। यह वृद्धि वैश्विक आर्थिक गतिविधियों और वित्तीय अंतःक्रियाओं के विस्तार को दर्शाती है।
    • आपूर्ति शृंखला, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और ई-कॉमर्स के वैश्वीकरण के कारण आर्थिक गतिविधियों को समर्थन देने के लिये कुशल सीमा-पार भुगतान आवश्यक हो गया है।
  • कार्य पद्धति:
    • CBP के पारंपरिक मॉडल::
      • प्रत्यक्ष बैंक हस्तांतरण: अंतर्राष्ट्रीय हस्तांतरण की सुविधा के लिये बैंक अन्य देशों में अपने समकक्षों के साथ खाते रखते हैं।
        • भौतिक रूप से धन हस्तांतरित करने के बजाय, विभिन्न अधिकार क्षेत्रों में खातों के बीच धनराशि जमा और  निकाली की जाती है।
      • संवाददाता बैंकिंग: जब दो बैंकों के बीच सीधा संबंध नहीं होता है, तो वे लेनदेन को सुविधाजनक बनाने के लिये एक संवाददाता बैंक का उपयोग करते हैं, जिसके खाते दोनों बैंकों के पास होते हैं। इससे लेनदेन शृंखला में कई परतें जुड़ जाती हैं। किंतु  उच्च लागत और विनियामक बोझ के कारण इसमें गिरावट आ रही है।
      • एकल प्रणाली मॉडल: यह मॉडल एकल भुगतान सेवा प्रदाता पर निर्भर करता है, लेकिन इसमें अंतर-संचालन संबंधी समस्याएँ होती हैं।
      • भुगतान अवसंरचनाओं को आपस में जोड़ना: निर्बाध लेनदेन के लिये राष्ट्रीय प्रणालियों को जोड़ता है, लेकिन इसमें तकनीकी और नियामक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
      • पीयर-टू-पीयर प्रणालियाँ: प्रत्यक्ष भुगतान के लिये वितरित खाता बही जैसी प्रौद्योगिकियों का उपयोग करती हैं, जो पारंपरिक अकुशलताओं के लिये एक संभावित समाधान प्रदान करती हैं।
    • नये युग के मॉडल:
      • तीव्र भुगतान प्रणालियों (FPS) को जोड़ना: सिंगापुर और थाईलैंड के बीच पेनाउ-प्रॉम्प्टपे लिंकेज तथा भारत एवं सिंगापुर के बीच UPI-PayNow लिंकेज जैसी पहल वास्तविक समय में सीमा-पार निधि हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करती हैं।
      • सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (Central Bank Digital Currencies- CBDC): अंतर्राष्ट्रीय लेनदेन को सुव्यवस्थित करने की क्षमता के लिये CBDC की खोज की जा रही है।
      • वितरित खाता प्रौद्योगिकी (DLT): DLT परियोजनाएँ, जिन्हें अक्सर CBDC के साथ जोड़ा जाता है, का उद्देश्य लेनदेन की गति, सुरक्षा और लागत प्रभावशीलता को बढ़ाना होता है।
        • DLT एक नेटवर्क डेटाबेस में एक साथ पहुँच, सत्यापन और रिकॉर्ड अद्यतन करने की अनुमति देता है, जिससे उपयोगकर्त्ता परिवर्तन देख सकते हैं और यह भी जान सकते हैं कि परिवर्तन किसने किये हैं, डेटा का ऑडिट करने की आवश्यकता कम हो जाती है, डेटा की विश्वसनीयता सुनिश्चित होती है और केवल उन लोगों को पहुँच प्रदान की जाती है, जिन्हें इसकी आवश्यकता होती है।

सीमा-पार भुगतान प्रणालियों के संबंध में चुनौतियाँ क्या हैं?

  • कानूनी और विनियामक अनुपालन: भुगतान को विभिन्न न्यायक्षेत्रों में अलग-अलग घरेलू कानूनों का पालन करना होता है, जिसमें धन शोधन निवारण (Anti-Money Laundering- AML), ग्राहक की उचित तत्परता, डेटा साझाकरण तथा निपटान प्रक्रियाएँ शामिल हैं।
    • AML और आतंकवाद-रोधी वित्तपोषण (Counter-Terrorist Financing- CFT) ढाँचे के खंडित कार्यान्वयन से तंत्र  डिज़ाइन और कार्यक्षमता में संघर्ष पैदा होता है।
    • वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) की 2023 रिपोर्ट में असंगत वायर ट्रांसफर रिकॉर्डकीपिंग के मुद्दों पर प्रकाश डाला गया है, जो ग्राहक पहचान और प्रतिबंध स्क्रीनिंग को प्रभावित करता है।
  • उच्च लागत: सीमा-पार लेनदेन में कई शुल्क शामिल हो सकते हैं, जिनमें मध्यस्थ बैंकों के शुल्क और मुद्रा रूपांतरण लागत शामिल हैं।
    • लेनदेन को सुविधाजनक बनाने के लिये बैंकों को विभिन्न मुद्राओं में पूंजी रखने की आवश्यकता होती है, जिससे संसाधन बाधित होते हैं और लागत बढ़ जाती है।
    • प्रच्छन्न शुल्क और अस्पष्ट लागत विवरण के कारण उपयोगकर्त्ताओं के लिये सीमा-पार लेनदेन की सटीक लागत का निर्धारण करना कठिन हो सकता है।
  • कम गति: कई मध्यस्थों की भागीदारी और टाइम ज़ोन के अंतर के कारण लेनदेन पूरा होने में कई दिन लग सकते हैं।भुगतान प्रणालियाँ विशेषकर स्थानीय व्यावसायिक घंटों (व्यावसाय के लिये निर्धारित अवधि) के दौरान संचालित होती हैं, जिससे विभिन्न समय क्षेत्रों में सीमा-पार भुगतान के प्रसंस्करण में देरी होती है।
    • भुगतान प्रणालियाँ विशेषकर स्थानीय व्यावसायिक घंटों (व्यावसाय के लिये निर्धारित अवधि) के दौरान संचालित होती हैं, जिससे विभिन्न समय क्षेत्रों में सीमा-पार भुगतान के प्रसंस्करण में देरी होती है।
  • सीमित पहुँच: सभी देशों या क्षेत्रों की कुशल सीमा-पार भुगतान प्रणालियों तक पहुँच नहीं है, विशेष रूप से अल्प विकसित या अल्पसेवित क्षेत्रों में।
    • बैंकिंग सेवाओं या आधुनिक वित्तीय प्रौद्योगिकियों तक सीमित पहुँच व्यक्तियों और व्यवसायों की सीमा-पार भुगतान करने या प्राप्त करने की क्षमता में बाधा उत्पन्न कर सकती है।
  • कम गति: कई मध्यस्थों की भागीदारी और टाइम ज़ोन के अंतर के कारण लेनदेन पूरा होने में कई दिन लग सकते हैं।

  • खंडित डेटा प्रारूप: विभिन्न देशों व प्रणालियों के बीच डेटा प्रारूपों एवं मानकों में भिन्नता के कारण भुगतान प्रक्रिया में देरी और त्रुटियाँ हो सकती हैं।

    • विभिन्न अधिकार क्षेत्रों में डेटा की गुणवत्ता और आवश्यकताओं में अंतर लेनदेन की सटीकता एवं दक्षता को प्रभावित कर सकता है।

  • प्रौद्योगिकी प्लेटफॉर्म: कई सीमा-पार भुगतान प्रणालियाँ पुरानी प्रौद्योगिकी पर निर्भर हैं, जो वास्तविक समय प्रसंस्करण या आधुनिक प्रणालियों के साथ एकीकरण हेतु अनुकूलित नहीं है।

    • पुराने प्लेटफार्मों में स्वचालन और वास्तविक समय निगरानी के लिये उन्नत सुविधाओं का अभाव हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप अकुशलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।

  • लंबी लेनदेन शृंखला: भुगतान शृंखला में कई संवाददाता बैंकों की भागीदारी से लागत, देरी और डेटा से छेड़छाड़ का जोखिम बढ़ सकता है।

    • लंबी लेनदेन शृंखलाएँ भुगतान प्रक्रिया को जटिल बना देती हैं और प्रबंधन हेतु अधिक संसाधनों की आवश्यकता होती है।

  • कमज़ोर प्रतिस्पर्द्धा: नए प्रदाताओं के लिये प्रवेश में उच्च बाधाएँ सीमा-पार भुगतान बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा और नवाचार को सीमित कर सकती हैं।

    • लागतों का आकलन और तुलना करने में कठिनाई से प्रतिस्पर्धी प्रभाव कम हो सकता है तथा अंतिम उपयोगकर्त्ताओं के लिये कीमतें बढ़ सकती हैं।

भारत में सीमा-पार भुगतान

  • भारत वैश्विक धन प्रेषण का एक प्रमुख केंद्र है, जो पर्याप्त सीमा-पार भुगतान प्रवाह को संभालता है, जिसमें लगभग 80 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आवक धन प्रेषण और 19 बिलियन अमेरिकी डॉलर का बाह्य धन प्रेषण शामिल है।
  •  सीमा-पार प्रेषण में विकास:
    • प्रौद्योगिकी-पूर्व युग: प्रौद्योगिकीय प्रगति से पहले, अनिवासी भारतीय (NRI) फेडरल बैंक द्वारा ज़ारी डिमांड ड्राफ्ट का उपयोग करते थे, जिसे भुनाने/नकदीकरण के लिये कूरियर के माध्यम से भेजा जाता था।
    • ऑनलाइन प्रेषण: 2000 के दशक के मध्य में नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (NEFT) शुरू किया गया तथा भारत में खातों में सीधे और सुरक्षित स्थानान्तरण की अनुमति दी गई।
      • NEFT एक राष्ट्रव्यापी केंद्रीकृत भुगतान प्रणाली है, जिसका स्वामित्व और संचालन भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के पास है।
    • IMPS एकीकरण: NPCI द्वारा तत्काल भुगतान सेवा (IMPS) के शुरू होने से 3 मिनट से कम समय में क्रेडिट पूरा किया जा सकेगा, जिससे दक्षता में और वृद्धि होगी
    • विदेशी आवक धन-प्रेषण के लिये UPI: विदेशी आवक धन-प्रेषण (FIR) के लिये एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) के एकीकरण से धन प्रेषण प्रक्रिया सरल और नवीन हो गई है।
  • नियामक परिवर्तन: RBI ने आयात और निर्यात लेनदेन सहित सीमा-पार भुगतान को सुव्यवस्थित और विनियमित करने के लिये सीमा-पार लेनदेन के भुगतान एग्रीगेटर्स (PA-CB विनियमन) की शुरुआत की।
  • यह नया फ्रेमवर्क पिछले दिशानिर्देशों का स्थान लेता है और सीमा-पार भुगतान में शामिल सभी संस्थाओं को RBI की प्रत्यक्ष निगरानी के अधीन करता है

सीमा-पार भुगतान में सुधार हेतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्या किया जा रहा है?

  • G-20: G-20 ने लागत कम करने, गति और पारदर्शिता बढ़ाने और समावेशिता को बढ़ावा देने के लिये सीमा-पार भुगतान में सुधार को प्राथमिकता दी है।
    • वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) द्वारा निर्धारित 11 मात्रात्मक लक्ष्यों द्वारा समर्थित सीमा-पार भुगतान को बढ़ाने के लिये वर्ष 2020 रोडमैप का लक्ष्य वर्ष 2027 के अंत तक वैश्विक स्तर पर इन चुनौतियों का समाधान करना है।
    • इन लक्ष्यों में थोक भुगतान, खुदरा भुगतान तथा धनप्रेषण में लेनदेन की गति, लागत, पहुँच और पारदर्शिता शामिल हैं।
  • SWIFT GPI: सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन (SWIFT) ने सीमा-पार भुगतान की गति और पारदर्शिता बढ़ाने के लिये ग्लोबल पेमेंट्स इनोवेशन (GPI) की शुरुआत की।
    • यह भुगतानों की वास्तविक समय पर ट्रैकिंग की अनुमति देता है और यह सुनिश्चित करता है कि धनराशि एक दिन के भीतर स्थानांतरित हो जाए।
  • प्रोजेक्ट नेक्सस: इसकी संकल्पना बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स (BIS) के इनोवेशन हब द्वारा की गई है। प्रोजेक्ट नेक्सस एक वैश्विक पहल है, जिसे कई घरेलू स्तर की त्वरित भुगतान प्रणालियों (IPS) को एकीकृत करके सीमा-पार भुगतान को सुगम बनाने हेतु डिज़ाइन किया गया है।
    • इस परियोजना का उद्देश्य एक ऐसा मानकीकृत प्लेटफॉर्म विकसित करना है, जो घरेलू फास्ट पेमेंट सिस्टम (FPS) को विश्व की अन्य भुगतान प्रणालियों से जोड़े, जिससे सीमा-पार तत्काल भुगतान संभव हो सके।
    • प्रोजेक्ट नेक्सस के संस्थापक सदस्यों में भारत और दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्र संघ (ASEAN) के चार देश- मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर और थाईलैंड शामिल हैं।
  • वैश्विक भुगतान सेवा प्रदाता: वीज़ा और मास्टरकार्ड नवीन प्रौद्योगिकियों की सहायता से सीमा-पार भुगतान को उन्नत बना रहे हैं।
    • वीज़ा का B2B कनेक्ट, बैंकों के बीच बड़ी राशि के लेनदेन का उसी दिन या अगले दिन निपटान करने हतु एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (API) और DLT का उपयोग करता है तथा भुगतान संदेश को सुरक्षा सुविधाओं के साथ एकीकृत करता है।

वित्तीय स्थिरता बोर्ड

  • FSB एक अंतर्राष्ट्रीय निकाय है, जो वैश्विक वित्तीय प्रणाली की निगरानी और संबंधित अनुशंसाएँ करता है। इसकी स्थापना वर्ष 2009 में G20 पिट्सबर्ग शिखर सम्मेलन में वित्तीय स्थिरता मंच (Financial Stability Forum- FSF) के परवर्ती के रूप में की गई थी।
  • FSB की सदस्यता में FSF सदस्यों के साथ-साथ G20 देश, स्पेन और यूरोपीय आयोग भी शामिल हैं।
  • FSB वैश्विक वित्तीय प्रणाली में प्रणालीगत भेद्यताओं की पहचान और उनका आकलन करता है।
    • इससे अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली को सुदृढ़ करने हेतु ज़ारी प्रयासों को बल मिलेगा।
  • भारत FSB का सक्रिय सदस्य है, जिसकी पूर्ण सत्र में तीन सीटें हैं, जिनकी अध्यक्षता सचिव (आर्थिक कार्य), डिप्टी गवर्नर-RBI और चेयरमैन-भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) करते हैं।
  • आर्थिक कार्य के विभाग में वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद सचिवालय, FSB के समक्ष भारत के मतों को प्रस्तुत करने के लिये वित्तीय क्षेत्र के विनियामकों एवं अभिकरणों के साथ समन्वय करता है।

आगे की राह 

  • वित्तीय अखंडता और गोपनीयता का संतुलन: ऐसे विधिक ढाँचे स्थापित करने की आवश्यकता है, जो AML और CFT आवश्यकताओं के साथ प्रयोगकर्त्ता की गोपनीयता को सुसंगत बनाते हों।
    • व्यवधानों और अक्षमताओं की रोकथाम करने हेतु सभी स्तरों पर विनियामक स्थिरता लाने की आवश्यकता है।
    • अनुपालन को सुव्यवस्थित करने के लिये सीमा-पार भुगतान में सभी हितधारकों की भूमिकाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिये। लघु स्तर के लेनदेन के लिये अनुपालन आवश्यकताओं को कम करने हेतु सीमाएँ स्थापित करना चाहिये जिससे व्यवसायों पर बोझ कम हो।
    • गोपनीयता संबंधी चिंताओं का समाधान करने और उनकी सुरक्षा के लिये गोपनीयता आधारित सिद्धांतों को  क्रियान्वित करने की आवश्यकता है।
  • KYC की उपयोगिताओं का अन्वेषण: पहचान सत्यापन को मानकीकृत और सुव्यवस्थित करने के लिये अपने ग्राहक को जानें (Know Your Customer- KYC) सुविधाओं को विकसित एवं एकीकृत करने की आवश्यकता है।
    • विभिन्न भुगतान प्रणालियों के बीच तकनीकी एकीकरण और अंतर-संचालन को बढ़ावा देना चाहिये। शुल्क, शर्तों और शिकायत निवारण तंत्र के बारे में पारदर्शिता सुनिश्चित करना आवश्यक है।
  • विवाद समाधान ढाँचे का विकास: प्रयोगकर्त्ता की शिकायतों और अंतर-प्रदाता विवादों का प्रबंधन करने के लिये एक केंद्रीकृत प्रणाली विकसित करना आवश्यक है। भुगतान सेवा प्रदाताओं (PSP) के बीच संघर्षों को हल करने के लिये स्पष्ट प्रक्रियाएँ स्थापित करने की आवश्यकता है।
  • केंद्रीय बैंक के साथ सहयोग: केंद्रीय बैंकों को अंतर-संचालनीय भुगतान प्रणालियों के विकास पर सहयोग करने और सीमा-पार भुगतान के लिये CBDC की क्षमताओं का अन्वेषण करने के लिये प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है ।
  • प्रतिस्पर्द्धा: लागत कम करने और गुणवत्ता में सुधार करने के लिये निजी क्षेत्र को शामिल करके भुगतान सेवा प्रदाताओं के बीच प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. वैश्विक व्यापार को सुकर बनाने में सीमा-पार भुगतान के महत्त्व की विवेचना कीजिये। वर्तमान सीमा-पार भुगतान प्रणालियों से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. ‘वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद’ (Financial Stability and Development Council) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

  1. यह नीति आयोग का एक अंग है।
  2. संघ का वित्त मंत्री इसका प्रमुख होता है।
  3. यह अर्थव्यवस्था के समष्टि सविवेक (मेक्रो-प्रूडेंशियल) पर्यवेक्षण का अनुवीक्षण (मॉनिटरिंग) करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)

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