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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

नैनोटेक्नोलॉजी

  • 28 Sep 2024
  • 31 min read

प्रिलिम्स के लिये:

नैनोटेक्नोलॉजी, पृथ्वी की पपड़ी, नैनोडिवाइस, पॉलिमर, ग्राफीन, सेमीकंडक्टर, क्वांटम कंप्यूटर, सिलिकॉन चिप्स, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI),  इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), 3D प्रिंटिंग, बायोमार्कर, कीमोथेरेपी, हाइड्रोजेल, नैनोरोबोट, जीवाश्म ईंधन, प्रकाश उत्सर्जक डायोड

मेन्स के लिये:

नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर राष्ट्रीय मिशन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विकास और उनके अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन में प्रभाव।

नैनोटेक्नोलॉजी आणविक स्तर पर नई संभावनाओं का द्वार खोलते हुए उद्योगों में एक नई क्रांति का सूत्रपात कर रही है। यह चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में नवाचार को प्रोत्साहित कर रही है, किंतु इसके साथ ही यह सुरक्षा, नैतिकता और विनियमन से संबंधित महत्त्वपूर्ण प्रश्नों को भी उजागर कर रही है।

नैनोटेक्नोलॉजी क्या है?

  • परिचय: नैनोटेक्नोलॉजी विज्ञान और इंजीनियरिंग की उस शाखा को संदर्भित करती है जो नैनोस्केल अर्थात, एक या एक से अधिक आयाम 100 नैनोमीटर (मिलीमीटर का 100 मिलियनवाँ भाग) या उससे कम पर परमाणुओं और अणुओं में हेरफेर करके संरचनाओं, उपकरणों तथा प्रणालियों को डिज़ाइन करने, उत्पादन करने और उपयोग करने के लिये समर्पित है।
    • नैनोटेक्नोलॉजी के विकास के लिये आणविक सिमुलेशन अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह वैज्ञानिकों को कंप्यूटर मॉडल का उपयोग करके विभिन्न परिस्थितियों में परमाणु, आणविक और नैनो संरचना व्यवहार का अनुकरण करने में सक्षम बनाता है।
  • नैनो पदार्थ: नैनो पदार्थ को मुख्य रूप से उनकी उत्पत्ति, आयाम और संरचना के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।
    • उत्पत्ति: उत्पत्ति के आधार पर इन्हें प्राकृतिक और कृत्रिम में वर्गीकृत किया जा सकता है।
      • प्राकृतिक: नैनो पदार्थ जो प्राकृतिक रूप से जैसे, कि पृथ्वी की पपड़ी में या जैविक प्रणालियों में पाए जाते हैं।
      • कृत्रिम: नैनो पदार्थ जो विशिष्ट गुणों के लिये मनुष्यों द्वारा निर्मित किये जाते हैं।
    • आयाम: नैनो पदार्थ को शून्य-आयामी नैनो पदार्थ (0D), एक-आयामी नैनो पदार्थ (1D), दो-आयामी नैनो पदार्थ (2D) और तीन-आयामी नैनो पदार्थ (3D) के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। जैसे-जैसे आयाम घटता है, सतह-से-आयतन अनुपात बढ़ता जाता है।
      • 0D: सभी आयाम (x, y, z) 100 nm से कम होते हैं, जैसे नैनोस्फेयर (nanospheres) और नैनोक्लस्टर (nanoclusters)
      • 1D: दो आयाम (x, y) नैनोस्केल होते हैं, जबकि तीसरा आयाम (z) बड़ा होता है, जैसे नैनोफाइबर (nanofibres), नैनोट्यूब (nanotubes) और नैनोवायर (nanowires)
      • 2D: एक आयाम (x) नैनोस्केल होता है, और अन्य दो आयाम बड़े होते हैं, जैसे नैनोफिल्म्स (nanofilms), नैनोलेयर्स (nanolayers) और नैनोकोटिंग्स (nanocoatings)
      • 3D: इनमें से कोई भी आयाम नैनोस्केल तक सीमित नहीं होता है, लेकिन इनमें नैनोस्केल तत्त्व शामिल होते हैं, जैसे नैनोवायर के बंडल और बहु-नैनोलेयर्ड संरचनाएँ।
    • संरचना: पदार्थों की संरचना के आधार पर नैनो पदार्थ को कार्बनिक/डेनड्रीमर, अकार्बनिक, कार्बन-आधारित और कम्पोज़िट के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
      • कार्बनिक/डेनड्रीमर: पॉलिमर, लिपिड या प्रोटीन जैसे कार्बनिक अणुओं से बने, जिसमें डेनड्रीमर एक विशिष्ट प्रकार की अत्यधिक शाखित कार्बनिक संरचना होती है।
      • अकार्बनिक/धातु आधारित: धातु, धातु ऑक्साइड या अन्य अकार्बनिक यौगिकों जैसे गैर-कार्बन तत्त्वों से बने नैनो पदार्थ।
      • कार्बन-आधारित: मुख्य रूप से कार्बन परमाणुओं से बने पदार्थ, जैसे कार्बन नैनोट्यूब, ग्राफीन या फुलरीन, इस श्रेणी में आते हैं।
      • कम्पोज़िट: विभिन्न प्रकार के नैनो पदार्थ जैसे कार्बनिक पॉलिमर मैट्रिक्स के भीतर अकार्बनिक नैनोकणों को एम्बेड करके, अद्वितीय गुणों के साथ एक समग्र संरचना को मिलाकर बनाया गया है।

  • गुण:
    • यांत्रिक गुण: नैनो पदार्थ के छोटे दाने के आकार के कारण उच्च यांत्रिक शक्ति होती है। इनका उपयोग ऐसे अनुप्रयोगों में किया जाता है जहाँ मज़बूत, हल्के पदार्थों की आवश्यकता होती है, जैसे कि एयरोस्पेस और ऑटोमोटिव उद्योग।
    • क्वांटम परिरोध: जैसे-जैसे अनाज का आकार घटता जाता है, क्वांटम यांत्रिक प्रभाव अधिक प्रमुख होते जाते हैं। यह गुण सेमीकंडक्टर, ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक्स (optoelectronics) और नॉनलाइनियर ऑप्टिक्स (nonlinear optics) में आवश्यक होता है।
      • उदाहरण के लिये, क्वांटम डॉट्स, कण आकार में परिवर्तन करके प्रकाश की विशिष्ट तरंगदैर्घ्य को उत्सर्जित और अवशोषित कर सकते हैं, जिससे वे डिस्प्ले प्रौद्योगिकियों तथा सौर कोशिकाओं में अमूल्य बन जाते हैं।
    • उत्प्रेरक गतिविधि: बढ़े हुए सतह क्षेत्र वाले नैनो पदार्थ में बेहतर उत्प्रेरक गुण होते हैं, जो उन्हें रासायनिक प्रतिक्रियाओं और पर्यावरण सुधार के लिये आदर्श बनाते हैं।
    • चुंबकीय गुण: नैनोकण अक्सर एकल चुंबकीय डोमेन बनाते हैं, जिससे सुपरपैरामैग्नेटिज्म होता है। यह विशेषता चुंबकीय रिकॉर्डिंग और सूचना भंडारण जैसे अनुप्रयोगों में उपयोगी है।
  • नैनोडिवाइस: नैनोडिवाइस अत्यधिक संगठित रासायनिक प्रणालियाँ होती हैं, जो नैनोस्केल पर निर्मित होती हैं, जो इलेक्ट्रॉन, आयन, फोटॉन या यांत्रिक गुणों के प्रसंस्करण जैसे विभिन्न कार्य करती हैं।
    • नैनोडिवाइस के अनुप्रयोग
      • क्वांटम इलेक्ट्रॉनिक्स: नैनोडिवाइस क्वांटम यांत्रिक प्रभावों पर सटीक नियंत्रण की अनुमति देते हैं, जो क्वांटम कंप्यूटर और नॉनलाइनियर ऑप्टिक्स में आवश्यक होता है।
      • कीमोसेलेक्टिव सेंसिंग (Chemoselective Sensing): नैनो पदार्थ से निर्मित सेंसर विशिष्ट रासायनिक प्रतिक्रियाओं का पता लगा सकते हैं, जिससे पर्यावरण निगरानी और चिकित्सा निदान में प्रगति संभव हो सकती है।
      • उत्प्रेरण और अधिशोषक: नैनोडिवाइस उत्प्रेरक प्रतिक्रियाओं को बढ़ाते हैं, जो ऊर्जा उत्पादन और प्रदूषण नियंत्रण में उपयोगी होते हैं।
      • सूचना भंडारण और प्रसंस्करण: चुंबकीय रिकॉर्डिंग उपकरणों में नैनो पदार्थ का उपयोग तेज़ी से बढ़ रहा है, जिससे भंडारण क्षमता में सुधार हो रहा है।

नैनोटेक्नोलॉजी के अनुप्रयोग क्या हैं?

  • कंप्यूटर उद्योग: माइक्रोइंजीनियरिंग से उत्पन्न; नैनोट्यूब तेज़ी से सिलिकॉन चिप्स की जगह ले रहे हैं। नैनो पदार्थसेंसर के प्रदर्शन को बढ़ाते हैं, जिससे वे अधिक मजबूत और संवेदनशील बन जाते हैं।
  • चिकित्सा: नैनोटेक्नोलॉजी का प्रयोग जीनोम संपादन, चिकित्सा इमेजिंग में आयरन ऑक्साइड नैनोपार्टिकल, चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग में क्वांटम डॉट्स, और CT स्कैन के लिये सोने के नैनोपार्टिकल के लिये किया जा सकता है।
    • संवेदनशील बायोमार्कर का पता लगाने के लिये नैनोवायर, नैनोट्यूब और क्वांटम डॉट-आधारित बायोसेंसर का उपयोग किया जाता है।
    • नैनोपार्टिकल्स का उपयोग करके लक्षित कीमोथेरेपी और चुंबकीय अतिताप किया जा सकता है।
    • बायोडिग्रेडेबल नैनोपार्टिकल्स का उपयोग नियंत्रित एंटीजन (पदार्थ जो आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को एंटीबॉडी उत्पन्न करने के लिये प्रेरित करता है) रिलीज और स्थिर सहायक के लिये किया जाता है।
    • संक्रमण नियंत्रण के लिये नैनोपार्टिकल्स -युक्त हाइड्रोजेल ड्रेसिंग और सिल्वर नैनोकण पट्टियाँ।
    • लक्षित दवा वितरण, माइक्रोसर्जरी और आंतरिक निदान के लिये नैनोरोबोट
  • जैव प्रसंस्करण उद्योग: नैनो प्रौद्योगिकी के माध्यम से खाद्य सुरक्षा, गुणवत्ता निगरानी और टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ाता है ।
    • उत्पादन, भंडारण और वितरण में बेहतर निगरानी के लिये नैनोडिवाइस का उपयोग करता है।
    • नैनोकंपोजिट फिल्म्स पैकेजिंग सामग्रियों की यांत्रिक शक्ति, अवरोधक गुण, ताप प्रतिरोध और जैवनिम्नीय को बढ़ाती हैं।
  • कृषि-उद्योग: नैनो-उर्वरक पौधों तक पोषक तत्त्वों की आपूर्ति बढ़ाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप विकास दर में सुधार होता है और उत्पादकता बढ़ती है। 
    • नैनोटेक्नोलॉजी कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण में सहायता करती है, तथा खाद्य पदार्थों को परिष्कृत और संरक्षित करने की विधियों को उन्नत करती है।
    • नैनो पॉलीमेरिक कोटिंग्स अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों में अंकुरण को बढ़ावा देती हैं। यह नवाचार फसलों की बेहतर उत्तरजीविता दर और उत्पादकता सुनिश्चित करने में सहायता करता है।
    • नैनो कीटनाशक घुलनशीलता, फैलाव और लक्ष्य-विशिष्ट वितरण में सुधार करते हैं। नैनोकैप्सूल और नैनोजेल सक्रिय अवयवों को धीरे-धीरे रिलीज़ करने की अनुमति देते हैं, जिससे आवश्यक खुराक और विषाक्तता कम हो जाती है।
  • विनिर्माण उद्योग: 
    • ऑटोमोटिव उद्योग: मिश्र धातुओं में नैनोपार्टिकल्स के उपयोग से वजन कम होता है और ईंधन दक्षता में सुधार होता है।
      • नैनो कोटिंग्स सतह की कठोरता, संक्षारण प्रतिरोध और सौंदर्यपूर्ण फिनिश को बढ़ाती हैं। नैनोपार्टिकल्स-आधारित उत्प्रेरक दहन दक्षता में सुधार करते हैं और उत्सर्जन को कम करते हैं। नैनोसेंसर वास्तविक समय में वाहन के प्रदर्शन और सुरक्षा की निगरानी करते हैं।
    • एयरोस्पेस उद्योग: नैनोटेक्नोलॉजी विमानों के लिये हल्के, उच्च-शक्ति वाले पदार्थ बनाती है।
    • इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग: छोटे, अधिक शक्तिशाली उपकरणों के लिये घटकों का लघुकरण सक्षम करना। क्वांटम डॉट्स प्रकाश उत्सर्जक डायोड (LED) डिस्प्ले में रंग की चमक को बढ़ाते हैं।
    • चिकित्सा विनिर्माण: नैनोस्केल इंजीनियरिंग प्रत्यारोपण के एकीकरण और कार्यक्षमता में सुधार करती है।
    • निर्माण उद्योग: नैनो पदार्थ स्थायित्व बढ़ाती है और कंक्रीट में वज़न कम करती है।
    • ऊर्जा क्षेत्र: नैनो पदार्थ सौर कोशिकाओं में ऊर्जा रूपांतरण दक्षता को बढ़ाती है, तथा नवीकरणीय ऊर्जा अनुप्रयोगों के लिये भंडारण क्षमता को बेहतर बनाने में सहायता करती है।
  • पर्यावरण सुधार:
    • विनिर्माण में प्रदूषण में कमी: प्रोपिलीन ऑक्साइड के उत्पादन में सिल्वर नैनोक्लस्टर्स के उपयोग से प्रदूषणकारी उपोत्पादों में काफी कमी आती है, जिससे प्लास्टिक, पेंट, डिटर्जेंट के लिये स्वच्छ विनिर्माण प्रक्रियाएँ संभव होती हैं।
    • कुशल सौर सेल्स: पॉलिमर में सिलिकॉन नैनोवायर को एम्बेड करके कम लागत वाली, उच्च दक्षता वाली सौर सेल का विकास, जिससे सौर ऊर्जा को जीवाश्म ईंधन के समान आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाया जा सकेगा।
    • उन्नत पवन ऊर्जा उत्पादन: कार्बन नैनोट्यूब युक्त इपॉक्सी से बने मज़बूत, हल्के ब्लेड पवन टर्बाइनों के विद्युत उत्पादन को बढ़ाते हैं।
    • भूजल उपचार: लौह नैनोपार्टिकल्स भूजल में कार्बनिक विलायकों को प्रभावी ढंग से विघटित करते हैं, जिससे पारंपरिक निष्कर्षण विधियों के लिये लागत प्रभावी विकल्प उपलब्ध होता है।
    • तेल रिसाव की सफाई: फोटोकैटेलिटिक कॉपर टंगस्टन ऑक्साइड नैनोपार्टिकल्स सूर्य के प्रकाश द्वारा सक्रिय होने पर तेल को जैवनिम्नीकरणीय यौगिकों में तोड़ देते हैं, जिससे तेल रिसाव के उपचार के लिये एक प्रभावी समाधान उपलब्ध होता है।
    • ईंधन सेल वाहनों के लिये हाइड्रोजन भंडारण: हाइड्रोजन बाइंडिंग ऊर्जा को बढ़ाने के लिये ग्रेफीन (2D नैनोमटेरियल) का उपयोग करने से हल्के ईंधन टैंकों में भंडारण क्षमता में सुधार होता है, जिससे हाइड्रोजन-ईंधन वाली कारों के विकास में सहायता मिलती है।

भारत में नैनोटेक्नोलॉजी का विकास कैसे हुआ?

  • प्रारम्भिक चरण:
    • 9वीं पंचवर्षीय योजना (1998-2002): भारत के रणनीतिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी लक्ष्यों के अंतर्गत नैनोमटेरियल्स का पहला उल्लेख किया गया। सुपरकंडक्टिविटी, रोबोटिक्स, न्यूरोसाइंसेस और नैनोमटेरियल्स जैसे अग्रणी क्षेत्रों के लिये कोर अनुसंधान समूह स्थापित किये गए।
    • दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-2007): नैनोविज्ञान की औपचारिक शुरूआत की गई, जिसके तहत वर्ष 2001 में  राष्ट्रीय नैनोविज्ञान और नैनोप्रौद्योगिकी पहल (NSTI) की शुरुआत की गई।
      • NSTI का उद्देश्य अनुसंधान के लिये बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना और बुनियादी अनुसंधान को बढ़ावा देना था, विशेष रूप से दवा वितरण, जीन लक्ष्यीकरण और नैनोमेडिसिन जैसे क्षेत्रों में।
      • 10 वीं पंचवर्षीय योजना ने नैनोटेक्नोलॉजी को मिशन-मोड अनुसंधान एवं विकास प्रयासों में आगे बढ़ाने के लिये वर्ष 2007 में नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मिशन (NSTM) के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया।
  • बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017): सरकार ने NSTM के दूसरे चरण के माध्यम से नैनोटेक्नोलॉजी का समर्थन जारी रखा। ज़ोर अनुप्रयोग-उन्मुख अनुसंधान एवं विकास की ओर स्थानांतरित हो गया, जहाँ मिशन का उद्देश्य अनुसंधान प्रयोगशालाओं से उद्योग तक मूर्त उत्पाद, प्रक्रियाएँ और प्रौद्योगिकियाँ लाना था।
    • नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (INST), मोहाली, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग का एक स्वायत्त संस्थान है, जिसे भारत में नैनो अनुसंधान पर ज़ोर देने के लिये NSTM के तहत स्थापित किया गया है।
  • संस्थागत समर्थन और पहल:
    • DST कार्यक्रम: उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में अनुसंधान गहनता (IRHPAS) और स्मार्ट सामग्रियों पर राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPSM) ने नैनोटेक्नोलॉजी अनुसंधान के लिये आधार तैयार किया।
      • नैनो फंक्शनल मैटेरियल्स टेक्नोलॉजी सेंटर (NFMTC): नैनोमैटेरियल्स के लागत प्रभावी उत्पादन और सिरेमिक और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में अनुप्रयोगों पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) : नैनो-जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान एवं विकास में सक्रिय, स्वास्थ्य देखभाल, कृषि और पर्यावरण प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करना।
      • यह ऊतक-विशिष्ट दवा वितरण और खाद्य सुरक्षा के लिये नैनो-सेंसर जैसे क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देता है।
    • इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग (DeITy) : इलेक्ट्रॉनिक्स के लिये नैनो पदार्थ विकसित करने हेतु इलेक्ट्रॉनिक्स प्रौद्योगिकी सामग्री केंद्र (C-MET) की स्थापना की गई।
      • विशेष प्रोत्साहन पैकेज योजना (SIPS) ने सूक्ष्म और नैनोटेक्नोलॉजी उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहित किया, विशेष रूप से सेमीकंडक्टर क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किया।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: नैनो विज्ञान और नैनोटेक्नोलॉजी पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (ICONSAT)।
    • भारत-अमेरिका नैनोटेक्नोलॉजी सम्मेलन: यह सभी हितधारकों को एक साथ मिलकर कार्य करने और सही समय पर वैश्विक समाज को नैनोटेक्नोलॉजी का उपयोग करके लागत प्रभावी गुणवत्ता वाले उत्पाद प्रदान करने के लिये एक मंच पर लाता है।
  • भारत में नैनो प्रौद्योगिकी में नवीनतम नवाचार: 
    • सी. एन. आर. राव: डॉ. चिंतामणि नागेश रामचंद्र राव को " भारतीय नैनोटेक्नोलॉजी का जनक" माना जाता है। अकार्बनिक नैनोट्यूब और कार्बन नैनोट्यूब पर उनका कार्य नैनोकेमिस्ट्री में एक उत्कृष्ट योगदान है, जो उन्हें नैनोसाइंस का एक महान प्रतिपादक बनाता है। 
    • जल शोधन: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित कार्बन नैनोट्यूब फिल्टर , ये फिल्टर पानी से सूक्ष्म से लेकर नैनो स्तर के प्रदूषकों को प्रभावी ढंग से हटाते हैं।
      • कार्बन नैनोट्यूब से निर्मित ये नैनोट्यूब मज़बूत, पुन: प्रयोज्य और ताप प्रतिरोधी हैं, तथा पोलियो वायरस और ई. कोली जैसे बैक्टीरिया को भी फिल्टर करने में सक्षम हैं।
    • स्वास्थ्य सेवा समाधान: रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान (DRDE), ग्वालियर ने नैनोटेक्नोलॉजी का उपयोग करके टाइफाइड का तेज़ी से पता लगाने वाली किट बनाई है। यह किट 1-3 मिनट के भीतर रोगी के सीरम में साल्मोनेला टाइफी एंटीजन का पता लगा लेती है, जो पारंपरिक तरीकों की तुलना में एक महत्त्वपूर्ण सुधार है।
    • ऊर्जा उत्पादन: भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरू द्वारा किये गए अनुसंधान से पता चला है कि कार्बन नैनोट्यूब में तरल प्रवाह विद्युत धारा उत्पन्न कर सकता है , जिससे स्व-शक्तियुक्त हृदय पेसमेकर (हृदय को सामान्य गति से धड़कने में सहायता करने के लिये विद्युत स्पंदन भेजना) का विकास हो सकता है।
      • इस नवाचार से बैटरी पर निर्भरता कम होने की संभावना है, जिससे हृदय संबंधी समस्याओं वाले रोगियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार होगा।
    • औषधि वितरण प्रणालियाँ: दिल्ली विश्वविद्यालय की एक टीम ने बेहतर औषधि वितरण के लिये कई नैनोकण-आधारित प्रौद्योगिकियाँ विकसित की हैं।
      • नवाचारों में गैर-स्टेरायडल दवाओं को नैनोकणों में समाहित करना शामिल है, जिससे दुष्प्रभाव को न्यूनतम करते हुए उनकी प्रभावकारिता बढ़ाई जा सके।

नैनोटेक्नोलॉजी के लिये प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • सुरक्षा और विषाक्तता: नैनो पदार्थ के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को पूरी तरह से समझा नहीं गया है। नैनो पदार्थ के लिये संभावित विषाक्तता और सुरक्षित हैंडलिंग प्रथाओं का आकलन करने के लिये शोध की आवश्यकता है।
  • मापनीयता: यद्यपि प्रयोगशाला स्तर पर नैनोटेक्नोलॉजी के अनेक अनुप्रयोग आशाजनक हैं, लेकिन व्यावसायिक उपयोग के लिये उत्पादन को बढ़ाना लागत, दक्षता और गुणवत्ता नियंत्रण के संदर्भ में चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।
  • विनियामक ढाँचे: मौजूदा विनियामक ढाँचे अक्सर नैनो पदार्थ के अद्वितीय गुणों को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं करते हैं। नवाचार को बाधित किये बिना सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये विशिष्ट दिशा-निर्देशों और मानकों की आवश्यकता है।
  • आर्थिक कारक: नैनो पदार्थ के संश्लेषण और प्रसंस्करण से जुड़ी लागत अत्यधिक ऊँची हो सकती है, जिससे उनकी बाज़ार प्रतिस्पर्द्धात्मकता प्रभावित हो सकती है।
    • सुरक्षा और प्रभावोत्पादकता संबंधी चिंताओं के कारण उपभोक्ता और उद्योग नैनोटेक्नोलॉजी को अपनाने में अनिच्छुक हो सकते हैं ।
  • अंतःविषयक सहयोग: नैनोटेक्नोलॉजी के प्रभावी अनुप्रयोग के लिये अक्सर कई विषयों (रसायन विज्ञान, भौतिकी, जीव विज्ञान, इंजीनियरिंग) के बीच सहयोग की आवश्यकता होती है, जिसे प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • अंतःविषयक अनुसंधान पहलों के लिये वित्तपोषण प्राप्त करना कठिन हो सकता है, जिससे नवीन नैनोटेक्नोलॉजी समाधानों के विकास पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • बौद्धिक संपदा के मुद्दे: नैनोटेक्नोलॉजी की तेज़ी से विकसित होती प्रकृति, पेटेंटिंग, स्वामित्व और नवाचारों के संरक्षण के बारे में प्रश्न उठाती है, जिससे संभावित कानूनी विवाद उत्पन्न होते हैं। 

आगे की राह

  • अनुसंधान और विकास: सामाजिक और आर्थिक लाभ की उच्च संभावना वाले क्षेत्रों में अनुसंधान को प्राथमिकता देना। प्रगति में तेज़ी लाने और ज्ञान साझा करने के लिये शोधकर्त्ताओं के बीच अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
    • अनुसंधान और व्यावसायीकरण के बीच की खाई को पाटने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
  • सुरक्षा और स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का समाधान: नैनो सामग्रियों की संभावित विषाक्तता और पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करने के लिये उनका कठोर परीक्षण किया जाना चाहिये।
  • नैतिक और सामाजिक ज़िम्मेदारी: नैनोटेक्नोलॉजी के विकास और अनुप्रयोग के लिये नैतिक दिशा-निर्देश विकसित करना और उन्हें लागू करना। सुनिश्चित करना कि नैनोटेक्नोलॉजी के लाभ समान रूप से वितरित किये जाएं और मौजूदा सामाजिक और आर्थिक विषमताओं को न बढ़ाएं।
  • विनियामक और नीतिगत ढाँचा: नैनोटेक्नोलॉजी के सुरक्षित और ज़िम्मेदार उपयोग को सुनिश्चित करने के लिये व्यापक विनियामक ढाँचे का विकास करना। स्थिरता और सामंजस्य सुनिश्चित करने के लिये नैनोटेक्नोलॉजी के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानक और विनियम विकसित करना।
  • जन जागरूकता और शिक्षा: नैनोटेक्नोलॉजी की समझ बढ़ाने के लिये जनता, नीति निर्माताओं और उद्योग पेशेवरों के लिये शैक्षिक कार्यक्रम विकसित करना।

निष्कर्ष

नैनोटेक्नोलॉजी में विभिन्न क्षेत्रों में अपार संभावनाएँ हैं, जो अभूतपूर्व नवाचार प्रदान करती हैं। हालाँकि, सुरक्षा, मापनीयता और नैतिक चिंताओं जैसी चुनौतियों का समाधान किया जाना चाहिये ताकि इसके लाभों का ज़िम्मेदारी से दोहन किया जा सके। इसके सतत् विकास के लिये अनुसंधान, विनियमन और जन जागरूकता को मिलाकर एक संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है।

 यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स:

प्रश्न: विभिन्न उत्पादों के विनिर्माण में उद्योग द्वारा प्रयुक्त होने वाले कुछ रासायनिक तत्त्वों के नैनो-क्णों के बारे में कुछ चिन्ता है। क्यों?

  1. वे पर्यावरण में संचित हो सकते हैं तथा जल और मृदा को संदूषित कर सकते हैं।
  2. वे खाद्य शृंखलाओं में प्रविष्ट हो सकते हैं।
  3. वे मुक्त मूलकों के उत्पादन को विमोचित कर सकते हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्नः निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

  1. परासूक्ष्मकण (नैनोपार्टिकल्स), मानव-निर्मित होने के सिवाय प्रकृति में अस्तित्व में नहीं है।
  2. कुछ धात्विक ऑक्साइडों के परासूक्ष्मकण, प्रसाधन-सामग्री (कॉस्मेटिक्स) के निर्माण में काम आते हैं।
  3. कुछ वाणिज्यिक उत्पादों के परासूक्ष्मकण, जो पर्यावरण में आ जाते हैं, मनुष्यों के लिए असुरक्षित हैं।

उपर्युक्त कथनों में कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 3
(c) 1 और 2
(d) 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्नः नैनोटेक्नोलॉजी से आप क्या समझते हैं और यह स्वास्थ्य क्षेत्र में कैसे मदद कर रही है? (2020) 

प्रश्नः अतिसूक्ष्म प्रौद्योगिकी (नैनोटेक्नोलॉजी) 21वी शताब्दी की प्रमुख प्रौद्योगिकियों में से एक क्यों है? अतिसूक्ष्म विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर भारत सरकार के मिशन की प्रमुख विशेषताओं तथा देश के विकास के प्रक्रम में इसके प्रयोग के क्षेत्र का वर्णन कीजिये। (2016)

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