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भारतीय राजनीति

आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं: सर्वोच्च न्यायालय

  • 12 Jun 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

आरक्षण संबंधी संवैधानिक प्रावधान, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय की रिट अधिकारिता में अंतर

मेन्स के लिये:

रिट अधिकारिता 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक आरक्षण संबंधी मामले में अनुच्छेद-32 के तहत दायर याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि आरक्षण एक मौलिक अधिकार नहीं है।

प्रमुख बिंदु: 

  • याचिका में तमिलनाडु में मेडिकल पाठ्यक्रमों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के अभ्यर्थियों को 50% आरक्षण नहीं देने के केंद्र सरकार के निर्णय को चुनौती दी गई थी। 
  • याचिका में तमिलनाडु के शीर्ष नेताओं द्वारा वर्ष 2020-21 के लिये ‘राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा’ (National Eligibility Cum Entrance Test- NEET) में राज्य के लिये आरक्षित सीटों में से 50% सीटें ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ (OBC) हेतु आरक्षित करने के लिये केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई थी।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत एक याचिका केवल मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामले में दायर की जा सकती है।
  • आरक्षण का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है। अत: आरक्षण नहीं देना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाकर्त्ताओं को उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने की अनुमति प्रदान करते हुए याचिका वापस लेने को कहा है।

आरक्षण संबंधी संवैधानिक प्रावधान:

  • यद्यपि भारतीय संविधान के भाग-III के अंतर्गत अनुच्छेद 15 तथा 16 में आरक्षण संबंधी प्रावधानों को शामिल किया गया हैं।
    • परंतु सर्वोच्च न्यायालय ने इन अनुच्छेदों की प्रकृति के आधार पर इन्हे मौलिक अधिकार नहीं माना है। इसलिये इन्हें लागू करना राज्य के लिये बाध्यकारी नहीं हैं।
  • आरक्षण की अवधारणा आनुपातिक नहीं, बल्कि पर्याप्त (Not Proportionate but Adequate) प्रतिनिधित्व पर आधारित है, अर्थात् आरक्षण का लाभ जनसंख्या के अनुपात में उपलब्ध कराने की बजाय पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिये है।

विभिन्न वर्गों के लिये आरक्षण की व्यवस्था:

  • वर्तमान में सार्वजनिक शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जातियों (SC) के लिये 15%, अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिये 7.5%, अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) के लिये 27% तथा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (EWS) के लिये 10% आरक्षण की व्यवस्था की गई है, यदि उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है ।

रिट की व्यवस्था:

  • उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय को देश में न्यायिक व्यवस्था को बनाए रखने, व्यक्ति के मौलिक अधिकारों तथा संविधान के संरक्षण का दायित्व प्रदान किया गया है।
  • सर्वोच्च न्यायालय को अनुच्छेद 32 तथा उच्च न्यायालय को अनुच्छेद 226 के तहत रिट अधिकारिता प्रदान की गई है । 
  • इन अनुच्छेदों के तहत बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus), परमादेश (Mandamus), प्रतिषेध (Prohibition), उत्प्रेषण ( Certiorari) और अधिकार-प्रच्छा (Quo-Warranto) आदि रिट जारी की जा सकती है।

उच्च न्यायालय में रिट की अनुमति क्यों?

  • उच्चतम न्यायालय केवल मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में ही रिट जारी कर सकता है जबकि उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों के अलावा अन्य मामलों में भी रिट जारी कर सकता है।
  • उच्चतम न्यायालय अनुच्छेद 32 के तहत दायर रिट की सुनवाई से मना नहीं कर सकता जबकि अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय सुनवाई के लिये याचिका स्वीकार करने से मना कर सकता है क्योंकि अनुच्छेद 226 मौलिक अधिकारों का भाग नहीं है। 

निर्णय का महत्त्व:

  • चूँकि सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है अत: आरक्षण के उल्लंघन पर अनुच्छेद 32 के तहत रिट स्वीकार करना अनिवार्य नहीं है।
  • निर्णय के बाद आरक्षण संबंधी मामलों में रिट याचिका सीधे सर्वोच्च न्यायालय के स्थान पर उच्च न्यायालयों में लगानी होगी क्योंकि उच्च न्यायालय की रिट अधिकारिता में मौलिक अधिकारों के अलावा अन्य मामले भी शामिल होते हैं। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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