लोकसभा के बारे में वर्तमान चर्चाएँ
प्रीलिम्स के लिये:
लोकसभा की वर्तमान स्थिति, लोकसभा सदस्यों का निर्वाचन एवं अन्य तथ्य
मेन्स के लिये:
लोकसभा एवं संसदीय प्रणाली, लोकसभा की स्थिति में हुए क्रमिक परिवर्तन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक पूर्व केंद्रीय मंत्री द्वारा यह मांग की गई कि जनसंख्या के आधार पर लोकसभा सीटों की संख्या को तर्कसंगत बनाया जाना चाहिये। निम्न सदन की रचना लगभग चार दशकों से एक जैसी ही है।
लोकसभा की वर्तमान स्थिति:
- लोकसभा संसद का निम्न सदन है। इसके सदस्यों का निर्वाचन जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से होता है। भारत का हर नागरिक जिसकी आयु 18 वर्ष से कम नहीं है, लोकसभा के चुनावों में वोट देने का अधिकारी है (अनुच्छेद-326)।
- संविधान का अनुच्छेद-81 लोकसभा की संरचना को परिभाषित करता है। इसमें कहा गया है कि सदन में 550 से अधिक निर्वाचित सदस्य नहीं होंगे, जिनमें से राज्यों के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से 530 से अधिक तथा संघशासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करने के लिये 20 से अधिक सदस्य नहीं होंगे।
- इसके अलावा अनुच्छेद-331 के अनुसार, राष्ट्रपति आंग्ल-भारतीय समुदाय को प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिये अधिक-से-अधिक दो सदस्य मनोनीत कर सकता है। इस प्रकार लोकसभा सदस्यों की अधिकतम संख्या 552 निश्चित की गई है।
- अनुच्छेद 81 यह भी कहता है कि किसी राज्य को आवंटित लोकसभा सीटों की संख्या ऐसी होगी कि उस संख्या और राज्य की जनसंख्या के बीच का अनुपात, जहाँ तक संभव हो, सभी राज्यों के लिये समान हो। हालाँकि, यह तर्क उन छोटे राज्यों पर लागू नहीं होता है जिनकी आबादी 60 लाख से अधिक नहीं है। इसलिये कम-से-कम एक सीट हर राज्य को आवंटित की जाती है, भले ही उस राज्य का जनसंख्या-सीट-अनुपात उस सीट के लिये योग्य होने के लिये पर्याप्त नहीं हो।
स्थिति में परिवर्तन:
- संविधान के प्रारंभ में लोकसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 500 निर्धारित थी। वर्ष 1952 में गठित पहले सदन में 497 लोकसभा सदस्य थे। चूँकि संविधान जनसंख्या के आधार पर सीटों के आवंटन का निर्धारण करता है, इसलिये निम्न सदन की संरचना (कुल सीटों के साथ-साथ विभिन्न राज्यों को आवंटित सीटों का पुनर्मूल्यांकन) भी प्रत्येक जनगणना के साथ बदल गई है।
- पहला बड़ा बदलाव वर्ष 1956 में राज्यों के समग्र पुनर्गठन के बाद हुआ, जिसने देश को 14 राज्यों और 6 केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित किया।
- राज्य पुनर्गठन के बाद मौजूदा राज्यों की सीमाओं में हुए बड़े बदलावों के साथ-साथ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सीटों के आवंटन में भी बदलाव हुआ। इसलिये पुनर्गठन के साथ सरकार ने संविधान में भी संशोधन किया जिसके द्वारा राज्यों को आवंटित सीटों की अधिकतम संख्या 500 हो गई, लेकिन छह केंद्रशासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करने के लिये अतिरिक्त 20 सीटें (अधिकतम सीमा) भी जोड़ी गईं। इसलिये वर्ष 1957 में चुनी गई दूसरी लोकसभा में 503 सदस्य थे।
- इसके बाद के वर्षों में, लोकसभा की संरचना में तब और बदलाव आया जब वर्ष 1966 में हरियाणा राज्य को पंजाब से अलग किया गया तथा वर्ष 1961 में गोवा और दमन-दीव का भारतीय संघ में विलय कर दिया गया।
लोकसभा सीटों की स्थिति में अंतिम परिवर्तन:
- लोकसभा सीटों का निर्धारण जनसंख्या के अनुपात में होने के कारण ऐसे राज्यों का लोकसभा में अधिक प्रतिनिधित्व हो गया जो राज्य जनसंख्या नियंत्रण में रुचि नहीं दिखा रहे थे।
- दक्षिणी राज्य, जिन्होंने परिवार नियोजन का अच्छी तरह से अनुसरण किया था उन्हें यह चिंता होने लगी कि जनसंख्या के कम अनुपात के कारण कहीं उनका प्रतिनिधित्व लोकसभा में कम न हो जाए।
- इन आशंकाओं को दूर करने के लिये, आपातकालीन शासन के दौरान संविधान में संशोधन किया गया, जिसने वर्ष 2001 तक परिसीमन को स्थगित कर दिया तथा यह प्रावधान किया गया कि जनसंख्या शब्द का अर्थ वर्ष 2000 तक 1971 की जनगणना से माना जायेगा।
- 84वें संविधान संशोधन, 2001 के द्वारा यह कालावधि वर्ष 2026 तक बढ़ा दी गई है।
निष्कर्ष:
वर्ष 1970 के बाद यह महसूस किया जाता रहा है कि उत्तर भारत के राज्यों, जिनकी आबादी देश के बाकी हिस्सों की तुलना में तेजी से बढ़ी है, का प्रतिनिधित्व संसद में संवैधानिक रूप से कम हो गया है।