अंतर्राष्ट्रीय संबंध
चार नए रामसर स्थल
प्रिलिम्स के लिये:मैंग्रोव, प्रवाल भित्ति, रामसर अभिसमय मेन्स के लिये:वर्तमान में आर्द्रभूमि क्षेत्रों के समक्ष प्रमुख खतरे, वैश्विक आर्द्रभूमि संरक्षण पहल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चार और भारतीय स्थल जिनमें दो हरियाणा और दो गुजरात में स्थित है, को रामसर अभिसमय (Ramsar Convention) के तहत अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमियों (Wetlands) के रूप में मान्यता दी गई है।
- इसके अलावा वेटलैंड्स इंटरनेशनल साउथ एशिया (Wetlands International South Asia) के हालिया अनुमानों के अनुसार, पिछले तीन दशकों में भारत के प्राकृतिक आर्द्रभूमि क्षेत्र में लगभग 30% की कमी हुई है। प्रमुख रूप से आर्द्रभूमि का नुकसान शहरी क्षेत्रों में अधिक हुआ है।
- वेटलैंड्स इंटरनेशनल साउथ एशिया की स्थापना वर्ष 1996 में नई दिल्ली में एक कार्यालय के साथ दक्षिण एशिया क्षेत्र में आर्द्रभूमियों के संरक्षण और सतत् विकास को बढ़ावा देने हेतु वेटलैंड्स इंटरनेशनल नेटवर्क के एक हिस्से के रूप में की गई थी।
प्रमुख बिंदु
आर्द्रभूमियों के बारे में:
- आर्द्रभूमि पारिस्थितिक तंत्र हैं जो या तो मौसमी या स्थायी रूप से जल से संतृप्त या भरे हुए होते हैं।
- इनमें मैंग्रोव, दलदल, नदियाँ, झीलें, डेल्टा, बाढ़ के मैदान और बाढ़ के जंगल, चावल के खेत, प्रवाल भित्तियाँ, समुद्री क्षेत्र जहाँ निम्न ज्वार 6 मीटर से अधिक गहरे नहीं होते तथा इसके अलावा मानव निर्मित आर्द्रभूमि जैसे- अपशिष्ट जल उपचारित जलाशय शामिल हैं।
- यद्यपि ये भू-सतह के केवल 6% हिस्से हो ही कवर करते हैं। सभी पौधों और जानवरों की प्रजातियों का 40% आर्द्रभूमियों में ही पाया जाता है या वे यहाँ प्रजनन करते हैं।
नए रामसर स्थल/साइट
- हाल ही में रामसर अभिसमय/समझौते (Ramsar Convention) ने भारत में चार नई आर्द्रभूमियों को वैश्विक महत्त्व की आर्द्रभूमि के रूप में नामित किया है। यह आर्द्रभूमि के संरक्षण और बुद्धिमानी से उपयोग हेतु एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है।
- भिंडावास वन्यजीव अभयारण्य, हरियाणा की सबसे बड़ी आर्द्रभूमि है। यह मानव निर्मित मीठे पानी की आर्द्रभूमि है।
- हरियाणा का सुल्तानपुर राष्ट्रीय उद्यान स्थानीय प्रवासी जलपक्षियों (Local Migratory Waterbirds) की 220 से अधिक प्रजातियों का उनके जीवन चक्र के महत्वपूर्ण चरणों जिनमें निवास स्थल और उनका शीतकालीन प्रवास शामिल है, को पूरा करने में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।
- गुजरात में थोल झील वन्यजीव अभयारण्य मध्य एशियाई फ्लाईवे पर स्थित है और यहांँ 320 से अधिक पक्षी प्रजातियांँ पाई जाती हैं।
- गुजरात की वाधवाना आर्द्रभूमि इसमें निवास करने वाले पक्षियों के जीवन के लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है क्योंकि यह प्रवासी जलपक्षियों को सर्दियों के समय रुकने के लिये स्थान प्रदान करती है, जिसमें 80 से अधिक प्रजातियांँ शामिल हैं जो मध्य एशियाई फ्लाईवे पर प्रवास करती हैं।
- ये आर्द्रभूमि मिस्र के गिद्ध, सेकर फाल्कन,सोशिएबल लैपविंग और संकटग्रस्त डेलमेटियन पेलिकन जैसी लुप्तप्राय पक्षी प्रजातियों का निवास स्थल हैं।
- इसके साथ ही भारत में रामसर स्थलों की संख्या 46 हो गई है।
शहरी आर्द्रभूमि की भूमिका:
- ऐतिहासिक महत्त्व: आर्द्रभूमि का मूल्य, विशेष रूप से शहरी परिप्रेक्ष्य में हमारे इतिहास के माध्यम से प्रमाणित होता है।
- दक्षिण भारत में चोलों, होयसलों ने पूरे राज्य में तालाबों का निर्माण किया।
- बहुस्तरीय भूमिका: आर्द्रभूमि न केवल जैव विविधता की उच्च सांद्रता का समर्थन करती है, बल्कि भोजन, पानी, फाइबर, भूजल पुनर्भरण, जल शोधन, बाढ़ नियंत्रण, तूफान संरक्षण, क्षरण नियंत्रण, कार्बन भंडारण, जलवायु विनियमन जैसे महत्त्वपूर्ण संसाधनों और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की एक विस्तृत शृंखला प्रदान करती है।
- शहरों की तरल संपत्ति: वे सांस्कृतिक विरासत में योगदान देने वाले विशेष गुणों के रूप में कार्य करते हैं और शहर के लोकाचार के साथ गहरे संबंध रखते हैं।
- मछली पकड़ने, खेती और पर्यटन जैसी गतिविधियों के माध्यम से स्थानीय आजीविका हासिल करने में आर्द्रभूमि का मूल्य अतुलनीय है।
आर्द्रभूमि के लिये प्रमुख खतरे:
शहरीकरण |
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मानवजनित गतिविधियाँ |
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कृषि गतिविधियाँ |
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जल विज्ञान संबंधी गतिविधियाँ |
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वनोन्मूलन |
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प्रदूषण |
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लवणीकरण |
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मत्स्य पालन |
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नई प्रजातियाँ |
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जलवायु परिवर्तन |
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आर्द्रभूमि संरक्षण संबंधी मुद्दे:
- ‘केंद्रीय आर्द्रभूमि विनियामक प्राधिकरण’ जैसे प्रमुख नियामक निकायों का सीमित प्रभाव और उनके पास केवल सलाहकारी शक्तियाँ होना।
- इसके अतिरिक्त आर्द्रभूमि पर शासन और निगरानी में मौजूदा कानून स्थानीय समुदायों की भागीदारी की उपेक्षा करते हैं।
- इसके अलावा नीतिगत शून्यता के कारण शहर पानी की मांग को पूरा करने में असमर्थ हैं, क्योंकि उनके पास शहरी जल प्रबंधन हेतु कोई भी बेहतर 'राष्ट्रीय शहरी जल नीति' नहीं है।
- शहरीकरण संबंधी ज़रूरतों के अलावा इस व्यापक नुकसान के लिये आर्द्रभूमि और उनकी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के बारे में जागरूकता व ज्ञान की कमी को भी उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
वैश्विक आर्द्रभूमि संरक्षण पहल
- रामसर कन्वेंशन
- मोंट्रेक्स रेकॉर्ड
- विश्व आर्द्रभूमि दिवस
- ‘सिटीज़4फाॅरेस्ट’ वैश्विक अभियान: यह वनों से जुड़ने के लिये दुनिया भर के शहरों के साथ मिलकर काम करता है, साथ ही शहरों में जलवायु परिवर्तन से निपटने तथा जैव विविधता की रक्षा में मदद करने के लिये आर्द्रभूमि के कई लाभों पर ज़ोर देता है।
भारत द्वारा संरक्षण उपाय
- जलीय पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण हेतु राष्ट्रीय योजना (NPCA)
- आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017
- इसरो ने वर्ष 2006 से वर्ष 2011 तक रिमोट सेंसिंग उपग्रहों का उपयोग करके राष्ट्रीय आर्द्रभूमि इन्वेंटरी और आकलन का कार्य किया है तथा भारत में लगभग दो लाख आर्द्रभूमियों का मानचित्रण किया है।
आगे की राह
- मेगा शहरी योजनाओं के साथ तालमेल करना: हमारी विकास नीतियों, शहरी नियोजन और जलवायु परिवर्तन शमन में आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को उजागर करने की आवश्यकता है।
- इस संदर्भ में स्मार्ट सिटी मिशन तथा अटल नवीकरण और शहरी परिवर्तन मिशन जैसी मेगा शहरी योजनाओं को आर्द्रभूमि के स्थायी प्रबंधन के पहलुओं से जोड़ने की आवश्यकता है।
- लोगों की भागीदारी को सक्षम बनाना: दिल्ली विकास प्राधिकरण ने राजधानी की जैव विविधता और माइक्रोक्लाइमेट को बनाए रखने के लिये दिल्ली की 'हरी और नीली संपत्ति' के एक एकीकृत नेटवर्क की रक्षा एवं विकास हेतु मास्टर प्लान दिल्ली 2041 पर सार्वजनिक टिप्पणियाँ आमंत्रित कीं।
- 'हरी-नीली नीति' से तात्पर्य उस स्थान से है जहाँ जल निकाय और भूमि अन्योन्याश्रित हैं तथा पर्यावरण और सामाजिक लाभ प्रदान करते हुए एक-दूसरे की मदद से बढ़ रहे हैं।
- इसी तरह स्वामीनी का दस महिलाओं का स्वयं सहायता समूह वर्ष 2017 से महाराष्ट्र में मांडवी क्रीक में पर्यटकों के लिये 'मैंग्रोव सफारी' का आयोजन कर रहा है। इसे पारिस्थितिक पर्यटन के माध्यम से समुदाय के नेतृत्व वाले संरक्षण हेतु एक मॉडल के रूप में मान्यता दी गई है।
- आगे के विकास और गरीबी उन्मूलन को समायोजित करते हुए हमारे सतत् विकास लक्ष्यों तथा लचीले शहरों के निर्माण के महत्त्वाकांक्षी एजेंडे को प्राप्त करने हेतु आर्द्रभूमि द्वारा प्रदान किये जाने लाभ और सेवाएँ महत्त्वपूर्ण हैं।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
भूगोल
भारत को अपडेटेड फ्लड मैप की आवश्यकता
प्रिलिम्स के लियेराष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, ‘राष्ट्रीय बाढ़ आयोग’, बाढ़ मेन्स के लियेअपडेटेड बाढ़ मानचित्र की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हुई भारी वर्षा की घटनाओं से देश भर के कई हिस्सों में बाढ़ आ गई है, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि देश में बाढ़-प्रवण क्षेत्रों की संख्या ‘केंद्रीय निगरानी मानचित्र’ में उल्लिखित क्षेत्रों से कहीं अधिक है।
- बाढ़ के पैटर्न और आवृत्तियों में बदलाव के लिये जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए बाढ़-प्रवण क्षेत्रों के मानचित्र को अपडेट करने की आवश्यकता है।
NDMA के अनुसार बाढ़-प्रवण क्षेत्र
प्रमुख बिंदु
भारत में बाढ़-प्रवण क्षेत्र
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के अनुसार, बाढ़ की आशंका वाले क्षेत्र मुख्यतः गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी बेसिन में हिमाचल प्रदेश और पंजाब के उत्तरी राज्यों (जो उत्तर प्रदेश और बिहार को कवर करते हैं) से लेकर असम और अरुणाचल प्रदेश तक फैले हुए हैं।
- ओडिशा और आंध्र प्रदेश के तटीय राज्यों, तेलंगाना और गुजरात के कुछ हिस्सों में भी बाढ़-प्रवण क्षेत्र हैं।
नए मानचित्र की आवश्यकता
- पुराना अनुमान
- वर्तमान सीमांकन चार दशक पूर्व गठित ‘राष्ट्रीय बाढ़ आयोग’ (RBA) द्वारा वर्ष 1980 के अनुमानों पर आधारित है।
- राष्ट्रीय बाढ़ आयोग को 1954 के राष्ट्रीय बाढ़ नियंत्रण कार्यक्रम के तहत शुरू की गई परियोजनाओं की विफलता के बाद वर्ष 1976 में कृषि एवं सिंचाई मंत्रालय द्वारा भारत के बाढ़ नियंत्रण उपायों का अध्ययन करने के लिये स्थापित किया गया था।
- राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के अनुसार, भारत में लगभग 40 मिलियन हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्र बाढ़ की चपेट में है।
- राष्ट्रीय बाढ़ आयोग ने बाढ़ के लिये विशुद्ध रूप से मानवजनित कारकों को उत्तरदायी ठहराया है, न कि भारी बारिश को।
- वर्तमान सीमांकन चार दशक पूर्व गठित ‘राष्ट्रीय बाढ़ आयोग’ (RBA) द्वारा वर्ष 1980 के अनुमानों पर आधारित है।
- जलवायु परिवर्तन:
- पिछले चार दशकों से भारत जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से जूझ रहा है। तापमान में वैश्विक वृद्धि के कारण अत्यधिक वर्षा होने के बाद लंबे समय तक वर्षा नहीं हुई है।
- साइंस नेचर जर्नल के अनुसार, वर्ष 1950 से 2015 के बीच मध्य भारत में तीव्र वर्षा की घटनाओं में तीन गुना वृद्धि हुई।
- केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, क्लाइमेट्स चेंज एंड इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2070 से वर्ष 2100 के मध्य तापमान में वृद्धि केचलते भारत में बाढ़ की आवृत्ति में वृद्धि होगी।
- मूसलाधार वर्षा की मात्रा में वृद्धि:
- हाल के दिनों में दक्षिण-पश्चिम मानसून की अवधि में देश के कुछ हिस्सों में बड़े पैमाने पर बाढ़ आई है।
- वर्ष 2020 में भारत के 13 राज्यों के 256 ज़िलों में अत्यधिक वर्षा के कारण बाढ़ की सूचना मिली है।
बाढ़:
- यह भूमि पर जल का अतिप्रवाह है। भारी बारिश के दौरान उस स्थिति में बाढ़ आ सकती है, जब समुद्र की लहरें तट पर आती हैं, बर्फ जल्दी पिघलती है, या जब बाँध टूटते हैं।
- हानिकारक बाढ़ कुछ इंच ज़मीन या एक घर को छत तक ढक सकती है। बाढ़ मिनटों के भीतर या लंबी अवधि में आ सकती है और दिनों, हफ्तों या उससे अधिक समय तक यह स्थिति रह सकती है। मौसम संबंधी सभी प्राकृतिक आपदाओं में बाढ़ सबसे आम और व्यापक है।
- फ्लैश फ्लड सबसे खतरनाक प्रकार की बाढ़ है, क्योंकि यह बाढ़ की विनाशकारी शक्ति को अत्यधिक तीव्र गति से जोड़ती है।
- बाढ़ अचानक तब आती है जब ज़मीन की जल अवशोषित करने की क्षमता से अधिक वर्षा होती है।
- यह स्थिति तब भी होती है जब पानी सामान्य रूप से सूखी खाड़ियों या नालों को भर देता है या पर्याप्त पानी जमा हो जाता है जिससे धाराएँ अपने किनारों को पार कर जाती हैं, जिससे कम समय में पानी का बहाव तेज़ी से बढ़ता है।
- यह वर्षा के कुछ मिनटों के भीतर हो सकता है जिसके कारण जनता को चेतावनी देने और उनकी सुरक्षा के लिये समय नहीं मिल पाता है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण
परिचय:
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण भारत में आपदा प्रबंधन के लिये शीर्ष वैधानिक निकाय है। इसका औपचारिक रूप से गठन सितंबर 2006 को आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत हुआ जिसमें प्रधानमंत्री (अध्यक्ष के रूप में) और नौ अन्य सदस्य होते हैं और इनमें से एक सदस्य को उपाध्यक्ष बनाया जाता है।
अधिदेश:
- प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं के दौरान प्रतिक्रियाओं में समन्वय कायम करना और आपदा से निपटने (आपदाओं में लचीली रणनीति) व संकटकालीन प्रतिक्रिया हेतु क्षमता निर्माण करना है।
- आपदाओं के प्रति समय पर प्रभावी प्रतिक्रिया के लिये आपदा प्रबंधन हेतु नीतियाँ, योजनाएँ और दिशा-निर्देश तैयार करने का यह एक शीर्ष निकाय है।
विज़न:
- एक समग्र, अग्रसक्रिय तकनीक संचालित और संवहनीय विकास रणनीति द्वारा सुरक्षित और आपदा-प्रत्यास्थ भारत बनाना, जिसमें सभी हितधारकों की मौजूदगी हो तथा जो रोकथाम, तैयारी और शमन की संस्कृति का पालन करती हो।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
शासन व्यवस्था
वाहन स्क्रैपिंग नीति लाँच
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गुजरात में निवेशक शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए वाहन स्क्रैपिंग नीति/राष्ट्रीय ऑटोमोबाइल स्क्रैपेज नीति का शुभारंभ किया।
- शिखर सम्मेलन के आयोजन का उद्देश्य वाहन स्क्रैपिंग नीति के तहत वाहन स्क्रैपिंग बुनियादी ढाँचे की स्थापना के लिये निवेश को प्रोत्साहित करना है।
- सरकार द्वारा मार्च 2021 में वाहन स्क्रैपिंग नीति की घोषणा की गई थी।
- इस नीति के तहत 51 लाख हल्के मोटर वाहन (LMV) शामिल होने का अनुमान है जो 20 वर्ष से अधिक पुराने हैं और अन्य 34 लाख LMV 15 वर्ष से अधिक पुराने हैं।
प्रमुख बिंदु
लक्ष्य:
- पुराने व खराब वाहनों की संख्या को कम करना, वायु प्रदूषकों को कम करना, सड़क और वाहनों की सुरक्षा में सुधार करना।
प्रावधान:
- फिटनेस परीक्षण:
- पुराने वाहनों को पुन: पंजीकरण से पहले एक फिटनेस टेस्ट पास करना होगा और नीति के अनुसार सरकारी वाणिज्यिक वाहन 15 वर्ष से अधिक पुराने तथा निजी वाहन जो 20 वर्ष से अधिक पुराने हैं, उन्हें रद्द कर दिया जाएगा।
- पुराने वाहनों का परीक्षण अधिकृत ऑटोमेटेड फिटनेस सेंटर में किया जाएगा और केवल आयु के आधार पर उन्हें स्क्रैप नहीं किया जाएगा।
- एमिशन टेस्ट, ब्रेकिंग सिस्टम, सेफ्टी कंपोनेंट्स की जाँच की जाएगी तथा फिटनेस टेस्ट में फेल होने वाले वाहनों को रद्द कर दिया जाएगा।
- यदि पुराना वाहन परीक्षण पास कर लेता है, तो मालिक उसका उपयोग जारी रख सकता है, लेकिन उसके पुन: पंजीकरण के लिये शुल्क बहुत अधिक होगा।
- केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्रालय ने स्क्रैपिंग सुविधाओं, उनकी शक्तियों और पालन की जाने वाली स्क्रैपिंग प्रक्रिया हेतु पंजीकरण प्रक्रिया के लिये भी नियम जारी किये हैं।
- सड़क कर छूट:
- राज्य सरकारों को सलाह दी गई है कि वे पुराने वाहनों के मालिकों को पुराने और अनुपयुक्त वाहनों को स्क्रैप करने हेतु प्रोत्साहन प्रदान करने के लिये निजी वाहनों के लिये 25% तक तथा वाणिज्यिक वाहनों के लिये 15% तक की रोड-टैक्स छूट प्रदान करें।
- वाहन छूट:
- वाहन निर्माता उन लोगों को भी 5% की छूट देंगे जो 'स्क्रैपिंग सर्टिफिकेट' का उपयोग करेंगे और नए वाहन की खरीद पर पंजीकरण शुल्क माफ कर दिया जाएगा।
- हतोत्साहन:
- प्रारंभिक पंजीकरण तिथि से 15 वर्ष या उससे अधिक आयु के वाहनों के लिये बढ़ा हुआ पुन: पंजीकरण शुल्क लागू होगा, जिससे लोग हतोत्साहित होंगे।
महत्त्व:
- स्क्रैप यार्ड का निर्माण:
- इससे देश में अधिक स्क्रैप यार्ड का निर्माण होगा और पुराने वाहनों के कचरे में सुधार होगा।
- भारत को पिछले वर्ष के दौरान 23,000 करोड़ मूल्य के स्क्रैप स्टील का आयात करना पड़ा क्योंकि भारत में बहुत सीमित मात्रा में का स्क्रैपिंग होती है और भारत ऊर्जा तथा दुर्लभ पृथ्वी धातुओं की प्राप्ति में सक्षम नहीं है।
- रोज़गार:
- नए फिटनेस सेंटरों में 35 हज़ार लोगों को रोज़गार मिलेगा और 10,000 करोड़ रुपए का निवेश किया जाएगा।
- बेहतर राजस्व:
- यह भारी और मध्यम वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री को बढ़ावा देगा जो आईएल एंड एफएस (इन्फ्रास्ट्रक्चर लीज़िग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज़ के दिवालिया होने और कोविड -19 महामारी से उत्पन्न आर्थिक मंदी के परिणामस्वरूप संकुचन की स्थिति में थे।
- इस नीति से सरकारी खजाने को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के ज़रिये करीब 30,000 से 40,000 करोड़ रुपए मिलने की उम्मीद है।
- कीमतों में कमी:
- धातु और प्लास्टिक के पुर्जों के पुनर्चक्रण से ऑटो घटकों की कीमतों में भारी गिरावट आएगी।
- जैसे-जैसे स्क्रैप की गई सामग्री सस्ती होगी वाहन निर्माताओं की उत्पादन लागत भी कम होगी।
- प्रदूषण को कम:
- यह वाहनों की संख्या के आधुनिकीकरण में प्रमुख भूमिका निभाएगा क्योंकि यह देश भर में अनुपयुक्त और प्रदूषणकारी वाहनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने में मदद करेगा एवं एक चक्रीय अर्थव्यवस्था तथा वेस्ट टू वेल्थ मिशनको बढ़ावा देगा।
- चूँकि पुराने वाहन 10 से 12 गुना अधिक पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं और अनुमानतः 17 लाख मध्यम और भारी वाणिज्यिक वाहन 15 वर्ष से अधिक पुराने हैं।
वाहन प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिये अन्य पहलें:
- गो इलेक्ट्रिक अभियान
- फेम इंडिया योजना चरण II
- दिल्ली के लिये इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) नीति, 2020
- हाइड्रोजन ईंधन सेल आधारित बस और कार परियोजना
- नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन 2020
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
आत्मनिर्भर नारीशक्ति से संवाद
प्रिलिम्स के लिये:आत्मनिर्भर नारीशक्ति से संवाद, स्वयं सहायता समूह मेन्स के लिये:महिला सशक्तीकरण के लिये विभिन्न सरकारी पहलें |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री (PM) ने 'आत्मनिर्भर नारीशक्ति से संवाद' में भाग लिया और दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM) के तहत पदोन्नत महिला स्वयं सहायता समूह (SHG) के सदस्यों के साथ संवाद किया।
प्रमुख बिंदु:
सम्मेलन की मुख्य विशेषताएँ:
- प्रधानमंत्री ने कोविड-19 के दौरान महिलाओं की अभूतपूर्व सेवाओं के लिये स्वयं सहायता समूहों की सराहना की।
- उदाहरण के लिये मास्क और सैनिटाइज़र बनाने तथा ज़रूरतमंदों को भोजन उपलब्ध कराने एवं जागरूकता फैलाने में महिलाओं का अद्वितीय योगदान।
- प्रधानमंत्री ने प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना (PM FME) और किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) के लिये SHG को सहायता राशि जारी की।
- प्रधानमंत्री ने यह भी घोषणा की कि अब बिना गारंटी के SHG को उपलब्ध ऋण की सीमा दोगुनी कर 20 लाख रुपए कर दी गई है।
- देश को सिंगल यूज़ प्लास्टिक से मुक्त बनाने के प्रयास में स्वयं सहायता समूह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
- SHG सिंगल यूज़ प्लास्टिक के बारे में जागरूकता बढ़ा सकते हैं और इसके विकल्प के लिये कार्य कर सकते हैं।
- इस संदर्भ में SHG ऑनलाइन गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस का पूरा लाभ उठा सकते हैं।
स्वयं सहायता समूहों (SHGs) के संदर्भ में:
- SHG उन लोगों का अनौपचारिक संघ है जो अपने रहने की स्थिति में सुधार के तरीके खोजने के लिये एक साथ आने का विकल्प चुनते हैं।
- इसे समान सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले लोगों के स्व-शासित, सहकर्मी नियंत्रित सूचना समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो सामूहिक रूप से सामान्य उद्देश्य को पूरा करने की इच्छा रखते हैं।
- गाँवों में गरीबी, निरक्षरता, कौशल की कमी, औपचारिक ऋण की कमी आदि से संबंधित कई समस्याएँ हैं। इन समस्याओं का समाधान व्यक्तिगत स्तर पर नहीं किया जा सकता है तथा सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है।
- इस प्रकार SHG गरीबों और हाशिये पर पड़े लोगों के लिये बदलाव का माध्यम बन सकता है। SHG स्व-रोज़गार और गरीबी उन्मूलन को प्रोत्साहित करने के लिये "स्वयं सहायता" की धारणा पर निर्भर करता है।
- वर्ष 1999 में भारत सरकार ने SHG के गठन और कौशल के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोज़गार को बढ़ावा देने के लिये स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोज़गार योजना (SGSY) की शुरुआत की। यह कार्यक्रम वर्ष 2011 में एक राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में विकसित हुआ और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) में परिवर्तित हो गया।
- एसएचजी को बढ़ावा देने के लिये अन्य पहलें:
- कृषि अवसंरचना कोष
- प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना (PM FME)
- प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY)
- अम्बेडकर हस्तशिल्प विकास योजना (AHVY)
- पूर्वोत्तर ग्रामीण आजीविका परियोजना
- भारत के पिछड़े और वामपंथी उग्रवाद (वामपंथी उग्रवाद) प्रभावित ज़िलों में महिला SHG (WSHGs) को बढ़ावा देने की योजना।
- आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने शहरी SHG उत्पादों के विपणन के लिये 'सोन चिरैया' (एक ब्रांड और लोगो) को लॉन्च किया है। यह राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (DAY-NULM) को भी लागू करता है।
विभिन्न क्षेत्रों में महिला सशक्तीकरण के लिये सरकारी पहल:
- कृषि और कृषि आधारित उद्योग:
- नए कृषि कानूनों के तहत महिला स्वयं सहायता समूहों के लिये इस बात पर कोई प्रतिबंध नहीं है कि वे कितना भंडारण कर सकती हैं।
- स्वयं सहायता समूहों के पास यह विकल्प होता है कि वे सीधे खेत से उपज बेच सकती हैं या खाद्य प्रसंस्करण इकाई स्थापित करके अच्छी पैकेजिंग के साथ बेच सकती हैं।
- वित्तीय समावेशन:
- जन धन खाते: 42 करोड़ से अधिक जन धन खातों हैं जिनमें से करीब 55% खाते महिलाओं के हैं।
- DAY-NRLM: इसमें अन्य बातों के साथ-साथ प्रत्येक ग्रामीण गरीब परिवार से एक महिला सदस्य को SHG में शामिल करके सार्वभौमिक सामाजिक लामबंदी की परिकल्पना की गई है।
- पंचायतें:
- शिक्षा में:
- उद्यमिता में:
- महिला ई-हाट
- महिला उद्यमिता मंच (WEP)
- महिलाओं के लिये प्रशिक्षण और रोज़गार कार्यक्रम (STEP) योजना हेतु सहायता
- नई श्रम संहिता
- कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम अधिनियम, 2013
- अन्य पहलें:
- राष्ट्रीय शिशु गृह योजना
- वन स्टॉप सेंटर योजना
- देश भर में किशोरियों के लिये योजना (SAG)
- पोषण अभियान
- उज्ज्वला योजना
स्रोत: पी.आई.बी
भूगोल
लद्दाख में ग्लेशियरों का पीछे खिसकना
प्रिलिम्स के लियेग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, भूस्खलन मेन्स के लियेग्लेशियरों के पिघलने के परिणाम एवं प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (WIHG) के एक हालिया अध्ययन के अनुसार, लद्दाख की ज़ांस्कर घाटी में स्थित पेन्सिलुंगपा ग्लेशियर के तापमान में वृद्धि और सर्दियों के दौरान कम बर्फबारी होने के कारण यह ग्लेशियर पीछे खिसक रहा है।
- यह अध्ययन ग्लेशियरों पर जलवायु परिवर्तन के पड़ने वाले प्रभावों का आकलन करता है। इससे पूर्व संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने यह भी आकलन किया था कि हिंदूकुश हिमालयन (HKH) पर्वत शृंखलाएँ वर्ष 2100 तक अपनी दो-तिहाई बर्फ से विहीन हो सकती हैं।
- WIHG देहरादून, उत्तराखंड में स्थित विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्त निकाय है।
प्रमुख बिंदु
परिणाम :
- गिरावट की दर :
- ग्लेशियर अब 6.7 प्लस/माइनस 3 मीटर प्रतिवर्ष की औसत दर से पीछे खिसक रहा है।
- हिमनद तब पीछे खिसकते हैं जब उनकी बर्फ अधिक तीव्र गति से पिघलने लगती है, जिसके कारण हिमपात हो सकता है और नई हिमनद बन सकती है।
- मलबे का ढेर लगना:
- विशेष रूप से गर्मियों में ग्लेशियर के समापन बिंदु के द्रव्यमान संतुलन तथा पीछे खिसकने पर मलबे के ढेर का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
- इसके अलावा पिछले तीन वर्षों (2016-2019) के दौरान बर्फ के जमाव में नकारात्मक प्रवृत्ति देखी गई तथा यहाँ पर बहुत छोटे से हिस्से में ही बर्फ जमी है।
- ग्लेशियर का द्रव्यमान संतुलन सर्दियों में जमा हुई बर्फ और गर्मी के दौरान बर्फ के पिघलने के बीच का अंतर है।
- विशेष रूप से गर्मियों में ग्लेशियर के समापन बिंदु के द्रव्यमान संतुलन तथा पीछे खिसकने पर मलबे के ढेर का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
- हवा के तापमान में वृद्धि का प्रभाव:
- हवा के तापमान में लगातार बढ़ोतरी होने के कारण बर्फ पिघलने में तेज़ी आएगी और संभावना है कि गर्मियों की अवधि बढ़ने के कारण ऊँचाई वाले स्थानों पर बर्फबारी की जगह बारिश होने लगेगी, जो सर्दी-गर्मी के मौसमी पैटर्न को प्रभावित कर सकती है।
प्रभाव :
- मानव जीवन पर प्रभाव :
- यह मृदा अपरदन, भूस्खलन और बाढ़ के कारण मिट्टी के नुकसान सहित पानी, भोजन, ऊर्जा सुरक्षा एवं कृषि को प्रभावित करेगा।
- हिमनद झीलें पिघली हुई बर्फ के जमा होने के कारण भी बन सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) की स्थिति उत्पन्न हो सकती है और यहाँ तक कि महासागरों में ताज़े पानी को डंप करके यह वैश्विक जलवायु को स्थानांतरित कर सकता है और इस तरह उनके परिसंचरण को परिवर्तित कर सकता है।
- मलबा:
- हिमनदों के पीछे खिसकने से शिलाखंड और बिखरे हुए चट्टानी मलबे तथा मिट्टी के ढेर लग जाते हैं जिन्हें हिमनद मोराइन कहा जाता है।
हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के लिये पहल:
- नेशनल मिशन ऑन सस्टेनिंग हिमालयन ईकोसिस्टम (National Mission on Sustaining Himalayan Ecosystem- NMSHE) : यह जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC) के तहत 8 राष्ट्रीय मिशनों में से एक है।
हिमनद
परिचय:
- हिमनद जलवायु परिवर्तन के संवेदनशील संकेतक होते हैं। क्रिस्टलीय बर्फ, चट्टान, तलछट एवं जल से निर्मित क्षेत्र, जहाँ पर वर्ष के अधिकांश समय बर्फ जमी होती है, को हिमनद कहते हैं। अत्यधिक भार व गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से हिमनद ढलान की ओर प्रवाहित होते हैं।
- पृथ्वी पर कुल जल की मात्रा का 2.1% हिमनदों में बर्फ के रूप में मौजूद है, जबकि 97.2% की उपस्थिति महासागरों एवं अंतःस्थलीय समुद्रों में होती है।
हिमनद हेतु आवश्यक दशाएँ:
- औसत वार्षिक तापमान गलनांक बिंदु के आसपास होना चाहिये।
- सर्दियों में हिमपात से बर्फ की बड़ी मात्रा एकत्रित होनी चाहिये।
- सर्दियों के अलावा शेष वर्ष में भी तापमान इतना अधिक नहीं होना चाहिये कि सर्दियों के दौरान एकत्रित पूरी बर्फ पिघल जाए।
हिमनद भू-आकृतियाँ:
ज़ांस्कर घाटी
- यह एक अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र है जो 13 हज़ार फीट से अधिक की ऊँचाई पर महान हिमालय के उत्तरी भाग में स्थित है।
- ज़ांस्कर रेंज ज़ांस्कर को लद्दाख से अलग करती है और ज़ांस्कर रेंज की औसत ऊँचाई लगभग 6,000 मीटर है।
- यह पर्वत शृंखला लद्दाख और ज़ांस्कर को अधिकांश मानसून से बचाने के लिये जलवायु बाधा के रूप में कार्य करती है, जिसके परिणामस्वरूप गर्मियों में सुखद गर्म और शुष्क जलवायु होती है।
- ज़ांस्कर रेंज के चरम उत्तर-पश्चिम में मार्बल दर्रा, ज़ोजिला दर्रा इस क्षेत्र के दो उल्लेखनीय दर्रे हैं।
- कई नदियाँ इस श्रेणी की विभिन्न शाखाओं से शुरू होकर उत्तर की ओर बहती हैं और महान सिंधु नदी में मिल जाती हैं। इन नदियों में हनले नदी, खुर्ना नदी, ज़ांस्कर नदी, सुरू नदी (सिंधु) तथा शिंगो नदी शामिल हैं।
- ज़ांस्कर नदी तब तक उत्तर-पूर्वी मार्ग अपनाती है जब तक कि यह लद्दाख में सिंधु में शामिल नहीं हो जाती।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध
प्रिलिम्स के लिये:सिंगल यूज़ प्लास्टिक, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021 मेन्स के लिये:सिंगल यूज़ प्लास्टिक का पर्यावरण पर प्रभाव एवं इसे प्रबंधित करने के लिये किये गए प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021 को अधिसूचित किया है।
- ये नियम विशिष्ट सिंगल यूज़ प्लास्टिक से निर्मित वस्तुओं को प्रतिबंधित करते हैं जिनकी वर्ष 2022 तक "कम उपयोगिता और उच्च अपशिष्ट क्षमता" है।
प्रमुख बिंदु
परिचय:
- नए नियम:
- 1 जुलाई, 2022 से पहचाने गए सिंगल यूज़ प्लास्टिक का निर्माण, आयात, स्टॉकिंग, वितरण, बिक्री और उपयोग प्रतिबंधित रहेगा।
- कंपोस्टेबल प्लास्टिक से बनी वस्तुओं पर प्रतिबंध लागू नहीं होगा।
- इस अधिसूचना में सूचीबद्ध प्लास्टिक वस्तुओं को छोड़कर भविष्य में अन्य प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाने हेतु सरकार ने उद्योग को अनुपालन के लिये अधिसूचना की तारीख से दस वर्ष का समय दिया है।
- प्लास्टिक बैग की अनुमत मोटाई जो कि वर्तमान में 50 माइक्रोन है, को 30 सितंबर, 2021 से 75 माइक्रोन और 31 दिसंबर, 2022 से 120 माइक्रोन तक बढ़ाई जाएगी।
- अधिक मोटाई वाले प्लास्टिक बैग कचरे के रूप में अधिक आसानी से संभाले जा सकते हैं और उनमें उच्च पुनर्चक्रण क्षमता होती है।
- प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने के लिये कानूनी ढाँचा: वर्तमान में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 देश में 50 माइक्रोन से कम मोटाई के कैरी बैग और प्लास्टिक शीट के निर्माण, आयात, भंडारण, वितरण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है।
- प्लास्टिक कचरा प्रबंधन संशोधन नियम, 2021 वर्ष 2016 के नियमों में संशोधन करता है।
- कार्यान्वयन एजेंसी: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य प्रदूषण निकायों के साथ प्रतिबंध की निगरानी करेगा, उल्लंघनों की पहचान करेगा और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत निर्धारित दंड लगाएगा।
कम्पोस्टेबल प्लास्टिक:
- पेट्रोकेमिकल्स और जीवाश्म ईंधन से निर्मित प्लास्टिक की जगह प्रयोग में आने वाली कंपोस्टेबल प्लास्टिक मकई, आलू और टैपिओका स्टार्च, सेल्युलोज़, सोया प्रोटीन तथा लैक्टिक एसिड जैसे नवीकरणीय सामग्रियों से निर्मित की जाती है।
- ये गैर विषैले पदार्थ होते हैं और कम्पोस्टेबल होने या खाद में परिवर्तित होने पर वापस कार्बन डाइऑक्साइड, पानी और बायोमास में विघटित हो जाते हैं।
सिंगल यूज़ प्लास्टिक और प्रतिबंध का कारण:
- सिंगल-यूज़ प्लास्टिक या डिस्पोज़ेबल प्लास्टिक को फेंकने या पुनर्नवीनीकरण से पूर्व केवल एक बार उपयोग किया जाता है।
- यह प्लास्टिक इतना सस्ता और सुविधाजनक है कि इसने पैकेजिंग उद्योग की अन्य सभी सामग्रियों को प्रतिस्थापित कर दिया है लेकिन इसे विघटित होने में सैकड़ों वर्ष का समय लग जाता है।
- आंँकड़ों का अवलोकन करें तो हमारे देश में हर वर्ष पैदा होने वाले 9.46 मिलियन टन प्लास्टिक कचरे में से 43 फीसदी सिंगल यूज़ प्लास्टिक होता है।
- इसके अलावा पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक नॉन बायोडिग्रेडेबल (Non Biodegradable) होता है जिसे सामान्यतः लैंडफिल के माध्यम से दफनाया जाता है या यह पानी में मिलकर समुद्र में प्रवाहित हो जाता है।
- विखंडन की प्रक्रिया में यह ज़हरीले रसायनों (एडिटिव्स जो प्लास्टिक को आकार देने और सख्त करने के लिये उपयोग किया जाता है) को स्रावित करता है जो हमारे भोजन और पानी में मिश्रित हो जाते हैं।
- सिंगल यूज़ प्लास्टिक वस्तुओं के कारण उत्पन्न होने वाला प्रदूषण सभी देशों के सामने एक महत्त्वपूर्ण एवं गंभीर पर्यावरणीय चुनौती बन गया है और भारत सिंगल यूज़ प्लास्टिक के कूड़े से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिये कार्रवाई हेतु प्रतिबद्ध है।
- वर्ष 2019 में चौथी संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा में भारत ने सिंगल यूज़ प्लास्टिक उत्पादों के कारण होने वाले प्रदूषण की समस्या को संबोधित करने हेतु एक प्रस्ताव पेश किया।
- वर्ष 2018 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा भारतीय प्रधानमंत्री को वर्ष 2022 तक सभी सिंगल यूज़ प्लास्टिक को खत्म करने का संकल्प लेने के लिये ‘चैंपियंस ऑफ द अर्थ पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।
प्लास्टिक अपशिष्ट पर अंकुश लगाने हेतु पहलें
- स्वच्छ भारत मिशन
- इंडिया प्लास्टिक पैक्ट
- प्रोजेक्ट रिप्लान
- अन-प्लास्टिक कलेक्टिव
- गोलिटर पार्टनरशिप प्रोजेक्ट
आगे की राह
- सतत् विकल्प: आर्थिक रूप से किफायती और पारिस्थितिक रूप से व्यवहार्य ऐसे सतत् विकल्प को अपनाना, जो आवश्यक संसाधनों पर बोझ नहीं डालेंगे और उनकी कीमतें भी समय के साथ कम होंगी तथा मांग में वृद्धि होगी।
- कपास, खादी बैग और बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक जैसे विकल्पों को बढ़ावा देने की ज़रूरत है।
- सतत् रूप से व्यवहार्य विकल्पों की तलाश के लिये और अधिक ‘अनुसंधान एवं विकास’ (R&D) और वित्त की आवश्यकता है।
- सर्कुलर अर्थव्यवस्था: प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिये देशों को प्लास्टिक मूल्य शृंखला में सर्कुलर और सतत् आर्थिक प्रथाओं को अपनाना चाहिये।
- एक सर्कुलर इकाॅनमी एक क्लोज़्ड-लूप सिस्टम बनाने, संसाधनों के उपयोग को कम करने, अपशिष्ट के उत्पादन, प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये संसाधनों के पुन: उपयोग, साझाकरण, मरम्मत, नवीनीकरण, पुन: निर्माण और पुनर्चक्रण पर निर्भर होती है।
- व्यवहार परिवर्तन: नागरिकों के व्यवहार में बदलाव लाना और उन्हें अपशिष्ट पृथक्करण तथा अपशिष्ट प्रबंधन के लिये प्रोत्साहित करना आवश्यक है।
- विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व: नीतिगत स्तर पर ‘विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व’ (EPR) की अवधारणा, जो पहले से ही वर्ष 2016 के नियमों के तहत उल्लिखित है, को बढ़ावा देना होगा।
- ‘विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व’ (EPR) एक नीतिगत दृष्टिकोण है, जिसके तहत उत्पादकों को पोस्ट-कंज़्यूमर उत्पादों के उपचार या निपटान का महत्त्वपूर्ण दायित्व- वित्तीय और/या भौतिक सौंपा जाता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सामाजिक न्याय
अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस, 2021
प्रिलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस और वर्ष 2021 के लिये इसकी थीम मेन्स के लिये:युवा क्षमता को साकार करने संबंधी भारत सरकार की पहलें और संबंधित चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
युवाओं की समस्याओं को पहचानने और उन पर ध्यान दिलाने के लिये प्रत्येक वर्ष 12 अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है।
- राष्ट्रीय युवा दिवस प्रत्येक 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद की जयंती के रूप में मनाया जाता है।
प्रमुख बिंदु:
इतिहास:
- वर्ष 1999 में संयुक्त राष्ट्र ने इस दिन को प्रत्येक वर्ष अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया।
- यह संयुक्त राष्ट्र महासभा में, लिस्बन में युवाओं के कल्याण के लिये ज़िम्मेदार मंत्रियों के विश्व सम्मेलन द्वारा की गई एक सिफारिश पर आधारित था।
- प्रथम अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस 12 अगस्त, 2000 को मनाया गया था।
वर्ष 2021 के लिये थीम:
- ट्रांसफॉर्मिंग फूड सिस्टम्स: यूथ इनोवेशन फॉर ह्यूमन एंड प्लैनेटरी हेल्थ।
युवा क्षमता को साकार करने संबंधी चुनौतियाँ:
- शिक्षा और कौशल की कमी: भारत की अल्प वित्तपोषित शिक्षा प्रणाली रोज़गार के उभरते अवसरों का लाभ उठाने के लिये युवाओं को आवश्यक कौशल प्रदान करने हेतु अपर्याप्त रूप से सुसज्जित है।
- विश्व बैंक के अनुसार, शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय वर्ष 2020 में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का केवल 3.4% था।
- महामारी का प्रभाव: विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि स्कूल बंद होने से बच्चों के सीखने, जीवन और मानसिक कल्याण पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि विश्व में 65% किशोरों ने महामारी के दौरान कम सीखने की सूचना दी।
- युवा महिलाओं संबंधी मुद्दे: बाल विवाह, लिंग आधारित हिंसा, दुर्व्यवहार और तस्करी के प्रति उनकी संवेदनशीलता, ये सभी मुद्दे युवा महिलाओं को उनकी पूरी क्षमता हासिल करने से रोकते हैं।
- रोज़गारविहीन विकास: भारत के सकल घरेलू उत्पाद में मुख्य योगदानकर्त्ता सेवा क्षेत्र है जो श्रम प्रधान नहीं है और इस प्रकार रोज़गारविहीन विकास को बढ़ाता है।
- इसके अलावा भारत की लगभग 50% आबादी अभी भी कृषि पर निर्भर है जो कि अल्प-रोज़गार और प्रच्छन्न बेरोज़गारी के लिये प्रसिद्ध है।
- निम्न सामाजिक पूंजी: इसके अलावा भुखमरी का उच्च स्तर, कुपोषण, बच्चों में बौनापन, किशोरियों में रक्ताल्पता का उच्च स्तर, खराब स्वच्छता आदि ने भारत के युवाओं की उत्पादकता की क्षमता को कम कर दिया है।
भारत की पहल:
- राष्ट्रीय युवा नीति-2014 भारत के युवाओं के लिये एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करती है, इसका उद्देश्य देश के युवाओं की क्षमता का विकास करना तथा उनके माध्यम से भारत को अन्य राष्ट्रों के बीच अपना उपयुक्त स्थान स्थापित करने में सक्षम बनाना है।
- रोज़गार के लिये:
- कौशल विकास के लिये:
- सामाजिक मुद्दों के लिये:
- स्वास्थ्य और पोषण के लिये:
वैश्विक पहल:
आगे की राह
- 365 मिलियन (30 प्रतिशत) की युवा आबादी के साथ भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश एक बड़ी कामकाजी आयु की आबादी का आर्थिक लाभ है।
- भारत को सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में किशोरों के अनुकूल स्वास्थ्य सुविधाओं, लाभकारी रोज़गार तथा पोषण तक पहुँच में सुधार के प्रयास कर एक स्वस्थ युवा आबादी सुनिश्चित करनी चाहिये।