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भूगोल

भूस्खलन और फ्लैश फ्लड

  • 16 Jul 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये 

फ्लैश फ्लड, भूस्खलन, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण

मेन्स के लिये 

फ्लैश फ्लड और भूस्खलन के कारण तथा इनका प्रबंधन 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हिमाचल प्रदेश के कई हिस्सों में हुई भारी बारिश के कारण फ्लैश फ्लड  (Flash Flood) और भूस्खलन (Landslide) की स्थिति उत्पन्न हो गई।

प्रमुख बिंदु 

भूस्खलन:

  • परिचय:
    • भूस्खलन को सामान्य रूप से शैल, मलबा या ढाल से गिरने वाली मिट्टी के बृहत संचलन के रूप में परिभाषित किया जाता है।
    • यह एक प्रकार के वृहद् पैमाने पर अपक्षय है, जिससे गुरुत्वाकर्षण के प्रत्यक्ष प्रभाव में मिट्टी और चट्टान समूह खिसककर ढाल से नीचे गिरते हैं।
    • भूस्खलन शब्द में ढलान संचलन के पाँच तरीके शामिल हैं: गिरना (Fall), लटकना (Topple), फिसलना (Slide), फैलाना (Spread) और प्रवाह (Flow)।

Flash-Flood

  • कारण:
    • ढलान संचलन तब होता है जब नीचे की ओर (मुख्य रूप से गुरुत्वाकर्षण के कारण) कार्य करने वाले बल ढलान निर्मित करने वाली पृथ्वी जनित सामग्री से अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं।
    • भू-स्खलन तीन प्रमुख कारकों के कारण होता है: भू-विज्ञान, भू-आकृति विज्ञान और मानव गतिविधि।
      • भू-विज्ञान भू-पदार्थों की विशेषताओं को संदर्भित करता है। पृथ्वी या चट्टान कमज़ोर या खंडित हो सकती है या अलग-अलग परतों में विभिन्न बल और कठोरता हो सकती है।
      • भू-आकृतिक विज्ञान भूमि की संरचना को संदर्भित करता है। उदाहरण के लिये वैसे ढलान जिनकी वनस्पति आग या सूखे की चपेट में आने से नष्ट हो जाती है, भूस्खलन के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
        • वनस्पति आवरण में पौधे मृदा को जड़ों में बाँधकर रखते हैं, वृक्षों, झाड़ियों और अन्य पौधों की अनुपस्थिति में भूस्खलन की अधिक संभावना होती है।
      • मानव गतिविधि जिसमें कृषि और निर्माण कार्य शामिल हैं, में भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
  • भूस्खलन संभावित क्षेत्र:
    • संपूर्ण हिमालय पथ, उत्तर-पूर्वी भारत के उप-हिमालयी क्षेत्रों में पहाड़ियाँ/पहाड़, पश्चिमी घाट, तमिलनाडु कोंकण क्षेत्र में नीलगिरि भूस्खलन-प्रवण क्षेत्र हैं।
  • निवारण (Mitigation) :
    • भूस्खलन संभावी क्षेत्रों में सड़क और बड़े बाँध बनाने जैसे निर्माण कार्य तथा विकास कार्य पर प्रतिबंध होना चाहिये।
    • इन क्षेत्रों में कृषि नदी घाटी तथा मध्यम ढाल वाले क्षेत्रों तक सीमित होनी चाहिये 
    • उच्च सुभेद्यता वाले क्षेत्रों में बड़ी बस्तियों के विकास पर नियंत्रण।
    •  जल बहाव को कम करने के लिये वृहत् स्तर पर वनीकरण को बढ़ावा देना और बाँधों का निर्माण करना चाहिये।
    • पूर्वोत्तर पहाड़ी राज्यों के झूमिंग कृषि (स्थानांतरण कृषि या झूम कृषि ) वाले क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेत बनाकर कृषि की जानी चाहिये।

उठाए गए कदम:

  • भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) ने देश में  संपूर्ण 4,20,000 वर्ग किमी. के भूस्खलन-प्रवण क्षेत्र के 85% के लिये एक राष्ट्रीय भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्रण तैयार किया है। आपदा की प्रवृत्ति के अनुसार क्षेत्रों को अलग-अलग ज़ोन में बाँटा गया है।
    • पूर्व चेतावनी प्रणाली में सुधार करके निगरानी और संवेदनशील क्षेत्रों में  भूस्खलन से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।

फ्लैश फ्लड:

  • फ्लैश फ्लड के विषय में:
    • यह घटना बारिश के दौरान या उसके बाद जल स्तर में हुई अचानक वृद्धि को संदर्भित करती है।
    • यह बहुत ही उच्च स्थानों पर छोटी अवधि में घटित होने वाली घटना है, आमतौर पर वर्षा और फ्लैश फ्लड के बीच छह घंटे से कम का अंतर होता है।
    • फ्लैश  घटना, खराब जल निकासी लाइनों या पानी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित करने वाले अतिक्रमण के कारण भयानक हो जाती है।
  • कारण:
    • यह घटना भारी बारिश की वजह से तेज़ आँधी, तूफान, उष्णकटिबंधीय तूफान, बर्फ का पिघलना आदि के कारण हो सकती है।
    • फ्लैश फ्लड की घटना बाँध टूटने और/या मलबा प्रवाह के कारण भी हो सकती है।
    • फ्लैश फ्लड के लिये ज्वालामुखी उद्गार भी उत्तरदायी है, क्योंकि ज्वालामुखी उद्गार के बाद आस-पास के क्षेत्रों के तापमान में तेज़ी से वृद्धि होती है जिससे इन क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर पिघलने लगते हैं।
    • फ्लैश फ्लड के स्वरूप को वर्षा की तीव्रता, वर्षा का वितरण, भूमि उपयोग का प्रकार तथा स्थलाकृति, वनस्पति प्रकार एवं विकास/घनत्व, मिट्टी का प्रकार आदि सभी बिंदु निर्धारित करते हैं।

न्यूनीकरण:

  • लोगों को घाटियों के बजाय ढलानों वाले दृढ़ ज़मीन वाले क्षेत्रों में रहना चाहिये।
  • जिन क्षेत्रों में ज़मीन पर दरारें विकसित हो गई हैं, वहाँ वर्षा जल और सतही जल की पहुँच को रोकने के लिये उचित कदम उठाए जाने चाहिये।
  • "अंधाधुंध" और "अवैज्ञानिक" निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध लगाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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