जैव विविधता और पर्यावरण
‘मृत प्रवाल’ भित्तियों का महत्त्व
- 04 Sep 2020
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प्रिलिम्स के लिये:प्रवाल भित्तियाँ, तीन वृहद ब्लीचिंग की घटनाएँ मेन्स के लिये:‘मृत प्रवाल’ भित्तियों का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 'क्वींसलैंड विश्वविद्यालय' ( University of Queensland- UQ) की एक अनुसंधान टीम ने एक अध्ययन में पाया कि ‘जीवित प्रवालों’ की तुलना में ‘मृत प्रवालों’ के मलबे द्वारा अधिक जीवों को संरक्षण तथा समर्थन दिया जाता है।
प्रमुख बिंदु:
- शोधकर्त्ताओं ने प्रवाल भित्तियों में जीवों के सर्वेक्षण के लिये 'मलबे में जैव विविधता के नमूना एकत्रीकरण (RUbble Biodiversity Samplers- RUBS) नामक एक त्रि-आयामी मुद्रित प्रवाल स्तंभ (एक प्रकार का कृत्रिम प्रवाल) का उपयोग किया।
- RUBS की द्वारा एकत्रित जानकारी के आधार पर वैज्ञानिकों की टीम ने समय के साथ प्रवाल भित्तियों की जैव-विविधता में आए बदलाव का अध्ययन किया।
प्रवाल भित्तियाँ (Coral Reefs):
- प्रवाल भित्तियाँ समुद्र के भीतर स्थित चट्टान हैं जो प्रवालों द्वारा छोड़े गए कैल्सियम कार्बोनेट से निर्मित होती हैं।
- वस्तुतः ये प्रवाल भित्तियाँ मूँगों सहित अनेक छोटे फ्लोरा तथा फौना की बस्तियाँ होती हैं।
जीवित प्रवाल भित्तियाँ (Live Coral Reefs):
- प्रवाल कठोर संरचना वाले चूना प्रधान जीव (कोरल पॉलिप) होते हैं। इन प्रवालों का शैवाल जूजैंथिली (Zooxanthellae) के साथ सहजीवी संबंध पाया जाता है, अत: प्रवाल भित्तियाँ रंगीन होती है। इन प्रवाल भित्तियों को 'जीवित प्रवाल भित्ति' के रूप में जाना जाता है।
- ‘जीवित प्रवाल भित्तियों' (Live Coral Reefs) को पृथ्वी पर सर्वाधिक विविधता वाले पारिस्थितिक तंत्र के रूप में माना जाता है।
मृत प्रवाल भित्तियाँ (Dead Coral Reefs):
- जीवित प्रवाल भित्तियाँ तापमान परिवर्तन के प्रति बहुत अधिक संवेदनशील होती हैं, अत: वैश्विक तापन से कोरल अर्थात मूँगों के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो जाता है।
- प्रदूषण, वैश्विक तापन या अन्य किसी प्रकार की आवासीय परिस्थितियों में परिवर्तन होने पर प्रवाल तनावग्रस्त हो जाते हैं तथा ये सहजीवी शैवाल को निष्कासित कर देते हैं, जिसे 'कोरल ब्लीचिंग' अथवा मृत प्रवाल के रूप में जाना जाता है।
अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष:
- 'जीवित' प्रवाल भित्तियाँ मत्स्य सहित अन्य समुद्री जीवों को संरक्षण और पोषण प्रदान करती हैं। अब तक ऐसा माना जाता रहा है कि 'जीवित प्रवाल' के 'मृत प्रवाल' में बदलने के साथ प्रवाल भित्तियों द्वारा समुद्री जैव-विविधता के संरक्षण में निभाई जाने वाली भूमिका कम हो जाती है।
- शोध कार्य के अनुसार, मृत प्रवाल भित्तियों के मलबे द्वारा भी समुद्री जैव-विविधता के संरक्षण में व्यापक भूमिका निभाई जाती है, अत: इसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिये।
प्रवाल भित्तियों में जैव-विविधता:
- प्रवाल भित्तियों में व्यापक जैवविधता पाई जाती है अत: इन्हें 'समुद्री वर्षावन' (Rainforests of the Sea) भी कहा जाता है।
- महासागरों की लगभग 25% मत्स्य प्रजातियाँ स्वस्थ प्रवाल भित्तियों पर निर्भर होती हैं।
- मत्स्य और अन्य जीवों की अनेक प्रजातियाँ आश्रय, भोजन, प्रजनन आदि के लिये प्रवाल भित्तियों पर निर्भर रहती है।
- सामान्यत: एक प्रवाल भित्ति पर मत्स्य, अकशेरुकी, पौधों, समुद्री कछुओं, पक्षियों और समुद्री स्तनधारियों की 7,000 से अधिक प्रजातियाँ निर्भर रहती है।
प्रमुख प्रवाल विरंजन की घटनाएँ:
- वर्ष 1998, वर्ष 2010 और वर्ष 2016 में हुई वृहद स्तरीय 'कोरल ब्लीचिंग' की घटनाओं को 'तीन वृहद ब्लीचिंग की घटनाओं' (Three Mass Bleaching Events) के रूप में जाना जाता है।
- 'कोरल ब्लीचिंग' की इन घटनाओं से भारत के पाँच प्रमुख भारतीय भित्तियों के क्षेत्र; अंडमान एवं निकोबार, लक्षद्वीप, मन्नार की खाड़ी और कच्छ की खाड़ी, बहुत अधिक प्रभावित हुए हैं।
- यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि भारतीय तटरेखा एक प्राचीन और वृहद प्रवाल विविधता का क्षेत्र है, जो वृहद पारिस्थितिकी तंत्र के लिये एक प्राकृतिक आवास प्रदान करती है।
निष्कर्ष:
- प्रवाल भित्तियों के संबंध में 'मृत प्रवालों' की भूमिका का अध्ययन 'प्रवाल भित्तियों' के प्रबंधन तथा संरक्षण में मदद करेगा तथा पर्यावरणविदों के बीच प्रवालों के प्रति जागरूकता बढ़ाने का एक नया अवसर प्रदान करती है।