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जैव विविधता और पर्यावरण

नेशनल मिशन ऑन सस्टेनिंग हिमालयन ईकोसिस्टम

  • 15 Apr 2021
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

वैज्ञानिकों ने नेशनल मिशन ऑन सस्टेनिंग हिमालयन ईकोसिस्टम (National Mission on Sustaining Himalayan Ecosystem- NMSHE) का समर्थन करते हुए कहा है कि यह कार्यक्रम लेह क्षेत्र में सतत् और जलवायु अनुरूप कृषि को सक्षम बनाने के लिये किसानों को उपलब्ध वैज्ञानिक जानकारी देता है।

प्रमुख बिंदु :

परिचय:

  • NMSHE कार्यक्रम को वर्ष 2010 में शुरु किया गया था परंतु सरकार द्वारा औपचारिक रूप से वर्ष 2014 में इसे अनुमोदित किया गया था ।
  • यह विभिन्न क्षेत्रों में एक बहु-आयामी, क्रॉस-कटिंग मिशन है ।
  • यह जलवायु परिवर्तन के बेहतर प्रबंधन द्वारा देश के सतत विकास में योगदान देता है, जो इसके संभावित प्रभावों और हिमालय के उन क्षेत्रों, जिन पर भारत की आबादी का एक महत्त्वपूर्ण अनुपात जीविका के लिये निर्भर है, को आवश्यक अनुकूल दशाएँ प्रदान करता है।

राज्य विस्तार :

  • ग्यारह राज्य: हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, मेघालय, असम और पश्चिम बंगाल।
  • दो केंद्रशासित प्रदेश: जम्मू- कश्मीर और लद्दाख।

उद्देश्य:

  • हिमालयी  पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की  स्थिति का लगातार पता लगाने के लिये एक स्थायी राष्ट्रीय क्षमता  विकसित करना और उचित नीति उपायों तथा समयबद्ध कार्रवाई कार्यक्रमों के लिये नीति निर्माण निकायों को सक्षम बनाना है।
  • राष्ट्रीय स्तर पर हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र की स्वास्थ्य स्थिति का लगातार आकलन करने के लिये उपयुक्त प्रबंधन और नीतिगत उपायों को विकसित करना।
  • इसमें विभिन्न क्षेत्रों के हिमालयी ग्लेशियर एवं  जल विज्ञान संबद्ध परिणामों को   प्राकृतिक खतरों की भविष्यवाणी और प्रबंधन का अध्ययन करना शामिल हैं।

हिमालय:

  • परिचय:
    • हिमालय दुनिया की सबसे ऊँची और नवीन वलित पर्वत शृंखला  है।
    • इसकी भूगर्भीय संरचना नवीन, मुलायम और मोड़दार है क्योंकि हिमालयी उत्थान एक सतत् प्रक्रिया है, जो उसे दुनिया के उच्च भूकंप-संभावित क्षेत्रों में से एक बनाती है। भारतीय भूकंपीय ज़ोनिंग एक सतत्  प्रक्रिया है जो भूकंप की घटना संबंधी अधिक-से-अधिक आँकड़े प्राप्त होने पर बदलती रहती है।
    • यह भारत को अपने उत्तर-मध्य और पूर्वोत्तर सीमांत के साथ चीन (तिब्बत) से अलग करता है।
  • क्षेत्रफल:
    • भारतीय हिमालय लगभग 5 लाख वर्ग किमी. (देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 16.2%) क्षेत्र में फैला हुआ है जो देश की उत्तरी सीमा बनाता है।
    • इस क्षेत्र को भारतीय उपमहाद्वीप के सर्वाधिक भू-भाग में जल की उपलब्धता के लिये उत्तरदायी माना जाता है। गंगा और यमुना जैसी पवित्र मानी जाने वाली कई नदियाँ हिमालय से निकलती हैं।
  • पर्वत श्रेणी:
    • हिमालय समानांतर पर्वत श्रेणी की एक शृंखला है जो उत्तर-पश्चिम से लेकर दक्षिण-पूर्व दिशा तक फैली हुई है। इन श्रेणियों को अनुदैर्ध्य घाटियों द्वारा अलग किया जाता है। उनमें शामिल है:
      • ट्रांस-हिमालय या पार हिमालय
      • महान हिमालय या हिमाद्रि
      • लघु हिमालय या हिमाचल
      • शिवालिक या बाह्य हिमालय
      • पूर्वी पहाड़ी या पूर्वांचल

जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC) 

परिचय:

  • इसे वर्ष 2008 में प्रधानमंत्री-जलवायु परिवर्तन परिषद नामक समिति द्वारा शुरू किया गया था।
  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) NAPCC का समन्वय मंत्रालय है।

उद्देश्य:

  • इसका उद्देश्य जनता के प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों को जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे और इनसे मुकाबला करने के उपायों के बारे में जागरूक करना है।

मिशन या लक्ष्य:

NAPCC

  • राष्ट्रीय कार्ययोजना में प्रमुख रूप से आठ राष्ट्रीय मिशन शामिल हैं, जो जलवायु परिवर्तन में महत्त्वपूर्ण लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये बहुआयामी, दीर्घकालिक और एकीकृत रणनीतियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
    • राष्ट्रीय सौर मिशन: वर्ष  2010 में इस मिशन की शुरुआत सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने के लिये की गई ।
    • विकसित ऊर्जा दक्षता के लिये राष्ट्रीय मिशन: इस पहल की शुरुआत वर्ष 2009 में की गई जिसका उद्देश्य अनुकूल नियामक और नीतिगत व्यवस्था द्वारा ऊर्जा दक्षता के लिये बाज़ार को मज़बूत करना और ऊर्जा दक्षता के क्षेत्र में नवीन और स्थायी व्यापार मॉडल को बढ़ावा देने की परिकल्पना करना  है।
    • सुस्थिर निवास पर राष्ट्रीय मिशन: 2011 में अनुमोदित, इसका उद्देश्य इमारतों में ऊर्जा दक्षता में सुधार, ठोस कचरे के प्रबंधन और सार्वजनिक परिवहन में बदलाव के माध्यम से शहरों का  विकास करना है।
    • राष्ट्रीय जल मिशन: राष्‍ट्रीय जल मिशन इस प्रकार आयोजित किया जाएगा ताकि जल संरक्षण, जल के अपव्यय को कम करने और राज्‍यों तथा राज्‍यों के बीच जल का अधिक समीकृत वितरण सुनिश्चित करने हेतु समेकित जल संसाधन प्रबंधन सुनिश्‍चित किया जा सके।
    • सुस्थिर हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन: हिमालय की रक्षा करने के उद्देश्य से इसने सरकारी और गैर-सरकारी एजेंसियों के बीच समन्वय में आसानी के लिये हिमालयी पारिस्थितिकी पर काम करने वाले संस्थानों और नागरिक संगठनों को चिह्नित किया है।
    • हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन: 20 फरवरी, 2014 को केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय ग्रीन इंडिया मिशन को एक केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में शामिल करने के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान की गई। इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन से सुरक्षा  प्रदान करना अर्थात् अनुकूलन और शमन उपायों के संयोजन से भारत के कम होते वन आवरण को बहाल करना तथा जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने के लिये तैयारी करना है। 
    • सतत कृषि के लिये राष्ट्रीय मिशन: इसे 2010 में शुरू किया गया था। यह विशेष रूप से एकीकृत खेती, जल उपयोग दक्षता, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन और संसाधन संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करते हुए वर्षा आधारित क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिये तैयार किया गया है।
    • जलवायु परिवर्तन हेतु रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन: यह एक गतिशील और जीवंत ज्ञान प्रणाली का निर्माण करता है जो राष्ट्र के विकास लक्ष्यों पर समझौता न करते हुए जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का प्रभावी ढंग से जवाब देने के लिये राष्ट्रीय नीति और कार्रवाई को सूचित और समर्थित करता है।

स्रोत-पीआईबी

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