सामाजिक न्याय
द बिग पिक्चर: महिला नेतृत्व और विकास
- 08 Apr 2021
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चर्चा में क्यों?
विकास की नई कहानी को अपनाने के क्रम में भारत महिलाओं के विकास से महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास की ओर आगे बढ़ रहा है।
प्रमुख बिंदु
- आर्किटेक्ट के रूप में महिलाएँ: इस दृष्टि से महिलाओं को विकास के परिणामों का निष्क्रिय प्राप्तकर्त्ता होने के बजाय भारत की प्रगति और विकास के आर्किटेक्ट के रूप में परिभाषित किया गया है।
- महिलाओं को अप्रत्यक्ष रूप से सशक्त करने वाली योजनाएँ: विभिन्न महिला-केंद्रित योजनाओं के अलावा प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी अन्य योजनाएँ भी महिलाओं को सशक्त बना रही हैं क्योंकि इसमें आवास, परिवार की महिला के नाम पर दिया जाता है।
- एक महिला के नाम पर एक घर का अर्थ है, उसके पास एक संपत्ति का स्वामित्व होना जो एक महिला को आर्थिक रूप से सशक्त बनाता है।
- इसके अलावा कोविड -19 महामारी के दौरान प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) के तहत महिला खाताधारकों के खातों में 500 /- प्रतिमाह तीन महीने तक (अप्रैल '20 से जून' 20) जमा किये गए।
कार्यस्थल में महिलाएँ
वर्तमान स्थिति:
- UNDP के निष्कर्ष: लैंगिक असमानता से संबंधित अपनी नवीनतम रिपोर्ट में यूएनडीपी ने निम्नलिखित निष्कर्ष दिये हैं:
- अवैतनिक श्रम:
- अवैतनिक श्रम अर्थात् देखभाल और घरेलू कार्यों में पुरुषों की तुलना में महिलाएंँ औसतन प्रतिदिन 2.4 घंटे अधिक व्यतीत करती हैं।
- वैतनिक अर्थव्यवस्था में भाग लेने वाले लोगों में महिलाएंँ, भुगतान और अवैतनिक कार्य करने वाले पुरुषों की तुलना में प्रतिदिन औसतन चार घंटे अधिक कार्य करती हैं।
- कोविड का प्रभाव:
- महामारी के कारण आय में कमी होने तथा नौकरियाँ छूटने के कारण महिलाएँ पुरुषों की तुलना में अधिक प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो रही है।
- यह भेद्यता लैंगिक असमानता के कारण है।
- अत्यधिक गरीबी में महिलाओं के रहने की संभावना पुरुषों की तुलना में 25% अधिक है।
- कोविड-19 ग्लोबल जेंडर रिस्पांस ट्रैक के अनुसार, 10 देशों में से केवल एक में ही महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा ज़रूरतों से संबंधित नीतियों का निर्माण किया गया है।
- कोविड-19 ग्लोबल जेंडर रिस्पांस ट्रैकर, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और यूएन वीमेन (UN Women) की एक पहल है, जो महामारी के दौरान सामाजिक सुरक्षा और नौकरियों में बड़े पैमाने पर महिलाओं की ज़रूरतों की अनदेखी को प्रदर्शित करती है।
- महामारी के कारण आय में कमी होने तथा नौकरियाँ छूटने के कारण महिलाएँ पुरुषों की तुलना में अधिक प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो रही है।
- भारत के लिये WEF के निष्कर्ष: विश्व आर्थिक मंच (WEF) द्वारा प्रकाशित ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2021 के अनुसार भारत में इस वर्ष आर्थिक भागीदारी अंतर 3% बढ़ा है।
- पेशेवर और तकनीकी भूमिकाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी 29.2% तक घट गई है।
- उच्च और प्रबंधकीय पदों पर भी महिलाओं की हिस्सेदारी 14.6% है तथा देश में केवल 8.9% फर्मों में ही शीर्ष पदों पर महिला प्रबंधक हैं।
- भारत में महिलाओं की अनुमानित आय पुरुषों की केवल 1/5 है, जो इस संकेतक पर देश को वैश्विक स्तर पर 10 पायदान नीचे रखता है।
- पाकिस्तान और अफगानिस्तान में एक महिला की औसत आय पुरुष की औसत आय से 16% से भी कम है, जबकि भारत में यह 20.7% है।
विभिन्न क्षेत्रों में महिला सशक्तीकरण हेतु सरकार की पहलें:
पंचायतों में:
- ग्राम पंचायत में महिला सभा
- राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान (RGSA)
- पंचायत महिला विकास युवा शक्ति अभियान (PMEYSA)
शिक्षा में:
- विज्ञान ज्योति योजना
- गति योजना
- किरन योजना
- बेटी बचाओ बेटी पढाओ योजना
उद्यमिता में:
- महिला ई-हाट
- महिला बैंक
- महिला कॉयर योजना
- महिला उद्यमिता मंच (WEP)
- महिलाओं के लिये प्रशिक्षण और रोज़गार कार्यक्रम (एसटीईपी) योजना
अन्य नवाचार :
- राष्ट्रीय क्रेच योजना
- वन स्टॉप सेंटर योजना
- देश भर में किशोर लड़कियों (SAG) के लिये योजना
संबंधित मुद्दे
- निम्न श्रम बल भागीदारी: राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) के आंकड़ों से पता चला है कि शिक्षा और रोज़गार का यू-आकार का संबंध है (शिक्षा के स्तर में वृद्धि के साथ रोज़गार में वृद्धि और बाद में गिरावट)।
- AISHE रिपोर्ट 2019 के अनुसार, उच्च शिक्षा क्षेत्र में कुल नामांकन में महिला नामांकन का हिस्सा का लगभग आधा (48.6%) था, लेकिन श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी केवल 18.6% की निम्न स्थिति में थी।
- पारिवारिक उत्तरदायित्व: बड़ी संख्या में महिलाएँ अक्सर शादी करने के लिये अपनी नौकरी छोड़ देती हैं और पारिवारिक उत्तरदायित्व के चलते उन्हें वापस आने और अपनी नौकरी जारी रखने में कठिनाई होती है। इसके चलते उन्हें कंपनी के 'अविश्वसनीय' सदस्य के रूप में देखा जाता है।
- इसके अलावा पारिवारिक उत्तरदायित्व वाली महिलाओं से एक दिन में 12-14 घंटे काम करने की उम्मीद नहीं की जा सकती।
- सामाजिक दबाव: आमतौर पर महिलाओं को उस समुदाय द्वारा कलंकित किये जाने का डर होता है जो उनके काम को निम्न स्थिति का समझते हैं क्योंकि उनके अनुसार केवल परिवार के पुरुष की असमर्थता की स्थिति में ही एक महिला काम करती है।
- इसके अलावा रूढ़िवादी दृष्टिकोण में वृद्धि हुई है, जो मानता है कि एक महिला का स्थान घर के अंदर होता है और अगर वह सामाजिक रूप से स्वीकृत सीमा से बाहर कदम रखती है तो वह एक प्रतिघात को आमंत्रित करेगी।
- अनौपचारिक कार्य की व्यापकता: भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में, महिलाओं के वर्चस्व वाले अधिकांश व्यवसाय अल्पमूल्य वाले और अवैतनिक हैं।
- अकुशल अवैतनिक घरेलू कामों के लंबे घंटों के दौरान प्रायः महिलाओं को किये जाने वाले निम्नस्तरीय भुगतान महिला सशक्तीकरण की मुख्य चुनौतियों में से एक है।
- इसके अलावा सफेदपोश नौकरियों की अनुपलब्धता, कार्य के असंगत अधिक घंटे और कम सुरक्षा के कारण भारत में शिक्षित महिलाओं के लिये रोज़गार के अवसर कम हो जाते हैं।
आवश्यक कदम
- शिक्षा बनाम रोज़गार का संतुलित अनुपात बनाए रखना: इस बात के लिये आश्वस्त किये जाने की आवश्यकता है कि जिस महिला शिक्षा के लिये बहुत भारी सब्सिडी दी जा रही है, उसे वास्तव में देश के लिये उपयोग किया जा सके।
- वे शेष महिलाएँ जो शिक्षित और कुशल हैं लेकिन श्रम शक्ति में भाग नहीं ले रही हैं, को भी अपनी प्रतिभा का उपयोग कर सक्षमता के साथ देश की जीडीपी में योगदान करना चाहिये।
- महिला उद्यमिता को प्रोत्साहित करना: महिलाओं को केवल नौकरी ढूँढने वालों की श्रेणी में ही नहीं बल्कि नौकरी सृजित करने के मामले में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करानी चाहिये।
- महिलाओं के बीच उद्यमिता भारत की अर्थव्यवस्था और समाज में रोज़गार, नवाचारों को बढ़ावा देने के साथ ही स्वास्थ्य तथा शिक्षा में निवेश को बढ़ा सकता है।
- कार्यस्थलों की पुनर्रचना करना: कार्यस्थलों के डिज़ाइन के तरीके पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
- कार्यबल में एक महिला को रखने के लिये अनिवार्य रूप से एक सप्ताह में 40 घंटे का काम या दो अतिरिक्त घंटे का काम कराने की आवश्यकता नहीं है।
- एक महिला से हम घर की ज़िम्मेदारियों के साथ 12+ घंटे काम करने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं, लेकिन कार्यस्थल को महिला केंद्रित बनाने के लिये वर्क फ्रॉम होम जैसी सुविधाएँ दी जा सकती हैं।
- महिलाओं को नेतृत्व की भूमिका में लाना: लैंगिक भागीदारी सामाजिक-आर्थिक मुद्दों से निर्धारित होती है, जिसे व्यवहार परिवर्तन द्वारा उपचारित किया जा सकता है। इसे बदला जा सकता है यदि अधिक महिलाओं को नेतृत्व की स्थिति दी जाए।
- इस प्रकार कंपनी बोर्डों से सांसदों तक, उच्च शिक्षा से लेकर सार्वजनिक संस्थानों तक विशेष उपायों और कोटा के माध्यम से समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
- मानसिकता में बदलाव: लड़कियों से लड़कों की तरह ही उनके सपने, लक्ष्य, आकांक्षाओं के बारे में परिवार के साथ-साथ स्कूलों द्वारा पूछा जाना चाहिये।
- यह विचार कि उनके सपने और करियर उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितना कि एक पुरुष के, यह विचार शुरू से ही लड़कियों के दिमाग में होना चाहिये।
- समाज को देश के विकास में महिलाओं की भूमिका और महत्त्व को भी पहचानना होगा।
- परिवारों को अपनी पसंद के काम के बारे में महिलाओं से बातचीत करनी चाहिये।
- अदृश्य कार्य को पहचानना: केयर इकॉनोमी और सामाजिक संरक्षण में महत्वपूर्ण निवेश करने के साथ ही सकल घरेलू उत्पाद को फिर से परिभाषित करने की ज़रूरत है जिसमें घर के कार्यों को भी गिना जाए।
- UNDP द्वारा शुरू की गई अस्थाई आधारभूत आय की अवधारणा अन्य समान पहलों के लिये एक हेडस्टार्ट साबित हो सकती है।
- लघु आवश्यकताएँ प्रदान करना भी सशक्तीकरण है: न केवल शिक्षा, नौकरी और उद्यमिता से महिलाओं का सशक्तीकरण होता है, बल्कि बुनियादी और अन्य छोटी-छोटी आवश्यकताएँ प्रदान करके भी उनका सशक्तीकरण किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये; महिलाओं के नाम पर एक बैंक खाता, स्वयं का घर या यहाँ तक कि कार्यस्थलों, शैक्षणिक संस्थानों आदि में उचित स्वच्छता और स्वच्छता की सुविधा।
- एक महिला जो कि शिक्षित है और इन बुनियादी आवश्यकताओं के साथ कार्यस्थलों पर काम कर चुकी है, भविष्य की पीढ़ियों के लिये इन सुविधाओं को सुनिश्चित कराने का भी प्रयास करेगी।
महिला भागीदारी का प्रभाव:
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization-ILO) की एक रिपोर्ट के अनुसार, यदि भारत में कार्यक्षेत्र में व्याप्त लैंगिक असमानता को 25% कम कर लिया जाता है तो इससे देश की जीडीपी में 1 ट्रिलियन डॉलर तक की वृद्धि हो सकती है।
- विश्व आर्थिक मंच के अनुसार, कार्यस्थलों पर महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि से कई सामाजिक और आर्थिक लाभ देखने को मिले हैं।
- शिक्षा और रोज़गार के अवसरों में वृद्धि से महिलाओं में स्वास्थ्य तथा विकास के प्रति जागरूकता बढ़ने के साथ-साथ अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता में वृद्धि होती है। इस बदलाव का सकारात्मक प्रभाव समाज तथा देश की अर्थव्यवस्था पर भी देखने को मिलता है।
- देश की अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भूमिका को स्वीकार करते हुए योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन के माध्यम से गरीबी, स्वास्थ्य और आर्थिक अस्थिरता से संबंधित चुनौतियों से निपटने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
निष्कर्ष
- महिला सशक्तीकरण एक लंबी यात्रा है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह प्रयासों के लायक नहीं है।
- महिला सशक्तीकरण हेतु परिपक्व और सहयोगी प्रयासों की आवश्यकता होगी।
- महिलाओं को सशक्त बनाने से एक शिक्षित और सशक्त महिला निर्विवाद रूप से सामने आएगी, जो भविष्य की पीढ़ियों के लिये शिक्षा और सशक्तीकरण सुनिश्चित करेंगी।
- महिलाओं की असीमित क्षमता और योग्यता को ध्यान में रखते हुए ज़रूरी है कि इन्हें आर्थिक एवं सामरिक क्षेत्र के केंद्र में रखा जाए ताकि देश विकास के नए आयाम स्थापित कर सके।