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डेली न्यूज़

  • 12 Jun, 2024
  • 69 min read
भारतीय राजनीति

आनुपातिक प्रतिनिधित्व

प्रिलिम्स के लिये:

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, भारत निर्वाचन आयोग, सामान्य वित्तीय नियम, राष्ट्रीय और राज्य दल, फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (FPTP) निर्वाचन प्रणाली, आनुपातिक प्रतिनिधित्व (PR) निर्वाचन प्रणाली, एकल संक्रमणीय मत (STV) द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व (PR)।

मेन्स के लिये:

FPTP से आनुपातिक प्रतिनिधित्व निर्वाचन प्रणाली में बदलाव, आनुपातिक प्रतिनिधित्व के परिणाम और लाभ।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत में नागरिकों और राजनीतिक दलों के एक व्यापक वर्ग के बीच इस बात पर आम सहमति बन रही है कि वर्तमान फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (First-Past-The-Post- FPTP) चुनाव प्रणाली को एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में आनुपातिक प्रतिनिधित्व (Proportional Representation- PR) चुनाव प्रणाली से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिये।

फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (First-Past-The-Post- FPTP) चुनाव प्रणाली क्या है?

  • परिचय:
    • यह एक चुनावी प्रणाली है जिसमें मतदाता एक ही उम्मीदवार को मत देते हैं और सबसे अधिक मत पाने वाला उम्मीदवार चुनाव जीत जाता है।
      • इसे साधारण बहुमत प्रणाली या बहुलता प्रणाली के नाम से भी जाना जाता है।
    • यह सबसे सरल और सबसे पुरानी चुनावी प्रणालियों में से एक है, जिसका उपयोग यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका, कनाडा तथा भारत जैसे देशों में किया जाता है।
  • विशेषताएँ:
    • मतदाताओं को विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा नामांकित या स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों की सूची प्रस्तुत की जाती है।
    • मतदाता अपने मतपत्र या इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर निशान लगाकर एक उम्मीदवार का चयन करते हैं।
    • किसी निर्वाचन क्षेत्र में सबसे अधिक मत पाने वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाता है।
    • विजेता को बहुमत (50% से अधिक) प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि केवल बहुलता (सबसे अधिक संख्या) मत प्राप्त करने की आवश्यकता है।
    • इस प्रणाली के कारण संसद जैसे विधानसभा के सदस्यों के चयन में अक्सर असंगत परिणाम सामने आते हैं, क्योंकि राजनीतिक दलों को उनके समग्र मत के अनुपात के अनुरूप प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता है।
  • लाभ:
    • सरलता: यह एक सरल प्रणाली है जिसे मतदाता आसानी से समझ सकते हैं और अधिकारी इसे सरलतापूर्वक लागू भी कर सकते हैं। यह इसे अधिक लागत-प्रभावी और कुशल बनाता है।
    • स्पष्ट एवं निर्णायक विजेता: यह एक निश्चित विजेता के साथ परिणाम प्रदान करता है, जो चुनावी प्रणाली में स्थिरता और विश्वसनीयता में योगदान दे सकता है।
    • जवाबदेही: चुनावों में उम्मीदवार सीधे तौर पर अपने मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिससे आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की तुलना में बेहतर जवाबदेही सुनिश्चित होती है, जहाँ उम्मीदवार उतने प्रसिद्ध नहीं होते।
    • उम्मीदवार चयन: यह मतदाताओं को पार्टियों और विशिष्ट उम्मीदवारों के बीच चयन करने की अनुमति देता है, जबकि PR प्रणाली में मतदाताओं को एक पार्टी का चयन करना होता है तथा प्रतिनिधियों का चुनाव पार्टी सूची के आधार पर किया जाता है।
    • गठबंधन निर्माण: यह विभिन्न सामाजिक समूहों को स्थानीय स्तर पर एकजुट होने के लिये प्रोत्साहित करता है, व्यापक एकता को बढ़ावा देता है और कई समुदाय-आधारित दलों में विखंडन को रोकता है।

आनुपातिक प्रतिनिधित्व (Proportional Representation- PR) प्रणाली क्या है?

  • परिचय:
    • यह एक चुनावी प्रणाली है जिसमें राजनीतिक दलों को चुनावों में प्राप्त मतों के अनुपात में विधायिका में प्रतिनिधित्व (सीटों की संख्या) मिलता है।
  • विशेषताएँ:
    • यह मत के हिस्से के आधार पर राजनीतिक दलों का निष्पक्ष प्रतिनिधित्व करता है।
    • यह सुनिश्चित करता है कि संसद या अन्य निर्वाचित निकायों में सीटें आवंटित करने के लिये प्रत्येक मत महत्त्वपूर्ण हो।
  • प्रकार:
    • एकल हस्तांतरणीय मत (Single Transferable Vote- STV):
      • यह मतदाता को अपने उम्मीदवार को वरीयता क्रम में स्थान देने की अनुमति देता है, अर्थात् बैकअप संदर्भ प्रदान करके और मतदान करके।
      • एकल संक्रमणीय मत (STV) द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व (PR) मतदाताओं को पार्टी के सबसे पसंदीदा उम्मीदवार को चुनने और स्वतंत्र उम्मीदवारों को मत देने में सक्षम बनाता है।
        • भारत के राष्ट्रपति का चुनाव STV के साथ PR प्रणाली के माध्यम से किया जाता है, जहाँ राष्ट्रपति के चुनाव के लिये गुप्त मतदान प्रणाली का उपयोग किया जाता है।
        • निर्वाचक मंडल, जिसमें राज्यों की विधानसभाएँ, राज्य परिषद तथा राज्यसभा और लोकसभा के सदस्य शामिल होते हैं, STV का उपयोग करते हुए PR प्रणाली के माध्यम से भारतीय राष्ट्रपति का चुनाव करता है।
    • पार्टी-सूची PR:
      • यहाँ मतदाता पार्टी को मत देते हैं (व्यक्तिगत उम्मीदवार को नहीं) और फिर पार्टियों को उनके मत शेयर के अनुपात में सीटें मिलती हैं।
      • आमतौर पर किसी पार्टी के लिये सीट पाने की न्यूनतम सीमा 3-5% मत शेयर होती है।
    • मिश्रित सदस्य आनुपातिक प्रतिनिधित्व (MMP):
      • यह एक ऐसी प्रणाली है जिसका उद्देश्य किसी देश की राजनीतिक प्रणाली में स्थिरता और आनुपातिक प्रतिनिधित्व के बीच संतुलन प्राप्त करना है।
      • इस प्रणाली के तहत प्रत्येक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र से फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (FPTP) प्रणाली के माध्यम से एक उम्मीदवार चुना जाता है। इन प्रतिनिधियों के अलावा देश भर में विभिन्न पार्टियों को उनके मत प्रतिशत के आधार पर अतिरिक्त सीटें भी आवंटित की जाती हैं।
      • इससे सरकार में अधिक विविध प्रतिनिधित्व संभव हो सकेगा, साथ ही विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों से व्यक्तिगत प्रतिनिधियों की स्थिरता भी बनी रहेगी।
      • न्यूज़ीलैंड, दक्षिण कोरिया और जर्मनी ऐसे देशों के उदाहरण हैं जहाँ MMP क्रियाशील है।
  • लाभ:
    • यह सुनिश्चित करना कि प्रत्येक मत महत्त्वपूर्ण हो:
      • PR में हर मत संसद में सीटों के आवंटन के लिये गिना जाता है। इसका मतलब है कि मतदाताओं में लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भागीदारी की भावना अधिक होती है।
    • विविध एवं प्रतिनिधि सरकार:
      • PR प्रणाली के अंतर्गत छोटे दलों और अल्पसंख्यक समूहों को प्रतिनिधित्व मिलने की अधिक संभावना होती है, जिससे संसद में दृष्टिकोण तथा विचारों की विविधता बढ़ सकती है।
    • गेरीमैंडरिंग को कम करना:
      • PR प्रणालियाँ गेरीमैंडरिंग के प्रति कम संवेदनशील होती हैं, क्योंकि सीटों का वितरण ज़िला सीमाओं में हेर-फेर करके नहीं, बल्कि पार्टी को प्राप्त मतों के अनुपात के आधार पर निर्धारित किया जाता है।
      • परिणामस्वरूप, पार्टियाँ अपने लाभ के लिये चुनावी मानचित्र में अनुचित तरीके से हेरफेर नहीं कर सकतीं, जैसा कि कभी-कभी मनमाने निर्वाचन क्षेत्र सीमाओं वाली प्रणालियों में देखा जाता है।
  • नुकसान:
    • अस्थिर सरकारें: PR के कारण अस्थिर सरकारें बन सकती हैं, क्योंकि इसमें छोटे दलों और अल्पसंख्यक समूहों का प्रतिनिधित्व अधिक होने की संभावना होती है, जिससे स्थिर गठबंधन बनाना तथा प्रभावी ढंग से शासन करना कठिन हो सकता है।
    • अधिक जटिल: PR प्रणालियाँ FPTP प्रणालियों की तुलना में अधिक जटिल हो सकती हैं, जिससे मतदाताओं हेतु उन्हें समझना और सरकारों के लिये उन्हें लागू करना अधिक कठिन हो जाता है।
    • लागत: PR प्रणाली का संचालन महँगा होता है, क्योंकि चुनाव कराने के लिये बड़ी मात्रा में संसाधनों और धन की आवश्यकता होती है।
    • स्थानीय आवश्यकताओं की उपेक्षा: जनसंपर्क के कारण नेता स्थानीय आवश्यकताओं की अपेक्षा पार्टी के एजेंडे को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि एक निर्वाचन क्षेत्र में कई प्रतिनिधि होते हैं।
      • जवाबदेही के इस प्रसार के परिणामस्वरूप स्वार्थी राजनीतिक व्यवहार और विशिष्ट निर्वाचन क्षेत्र की चिंताओं की उपेक्षा हो सकती है।

FPTP प्रणाली से PR प्रणाली में बदलाव की आवश्यकता क्यों है?

  • अधिक अथवा कम प्रतिनिधित्व: FPTP प्रणाली के कारण राजनीतिक दलों का प्रतिनिधित्व (उनके द्वारा जीती गई सीटों के संदर्भ में) उनके प्राप्त वोट-शेयर की तुलना में अधिक या कम हो सकता है
    • उदाहरण: स्वतंत्रता के बाद पहले तीन चुनावों में कॉन्ग्रेस पार्टी ने मात्र 45-47% वोट शेयर के साथ तत्कालीन लोकसभा में लगभग 75% सीटें जीती थीं।
    • वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को केवल 37.36% वोट मिले और उसने लोकसभा में 55% सीटें जीतीं

  • अल्पसंख्यक समूहों के लिये प्रतिनिधित्व का अभाव: 2-दलीय FPTP प्रणाली में, कम वोट प्रतिशत वाली पार्टी कोई भी सीट नहीं जीत सकती है, परिणामस्वरूप जनसंख्या का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा सरकार में प्रतिनिधित्वहीन हो सकता है।
    • यूके तथा कनाडा जैसे देश भी FPTP का उपयोग करते हैं, लेकिन उनके संसद सदस्यों (MP) की अपने स्थानीय निर्वाचन क्षेत्रों के प्रति अधिक जवाबदेही होती है।
  • रणनीतिक मतदान: कई बार मतदाता उस उम्मीदवार को वोट देने के लिये दबाव महसूस कर सकते हैं जिसका वे वास्तव में समर्थन नहीं करते हैं ताकि वे उस उम्मीदवार को चुनाव जीतने से रोक सकें जिसे वे पसंद नहीं करते हैं। इससे ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है जहाँ मतदाताओं को लगता है कि वे वास्तव में अपनी पसंद व्यक्त नहीं कर रहे हैं।
  • छोटे दलों के लिये नुकसान: छोटे दलों को FPTP प्रणाली में जीतने के लिये संघर्ष करना पड़ता है और अक्सर उन्हें राष्ट्रीय दलों के साथ गठबंधन करना पड़ता है, जिससे स्थानीय स्वशासन एवं संघवाद की अवधारणा प्रभावित होती है।

अन्य वैकल्पिक चुनाव प्रणालियाँ:

  • रैंक्ड वोटिंग सिस्टम: ये ऐसी प्रणालियाँ हैं जो मतदाताओं को किसी एक उम्मीदवार को चुनने के बजाय वरीयता के क्रम में उम्मीदवारों को रैंक करने की अनुमति देती हैं।
  • स्कोर वोटिंग सिस्टम: ये ऐसी प्रणालियाँ हैं जो मतदाताओं को किसी एक उम्मीदवार को चुनने या उन्हें रैंकिंग देने के बजाय संख्यात्मक पैमाने पर उम्मीदवारों को स्कोर करने की अनुमति देती हैं।

अंतर्राष्ट्रीय प्रथाएँ:

  • राष्ट्रपति लोकतंत्र (जैसे- ब्राज़ील और अर्जेंटीना) तथा संसदीय लोकतंत्र (जैसे- दक्षिण अफ्रीका, नीदरलैंड, बेल्जियम, स्पेन, जर्मनी और न्यूज़ीलैंड) में भिन्न-भिन्न आनुपातिक प्रतिनिधित्व (PR) प्रणालियाँ होती हैं।
    • जर्मनी में मिश्रित सदस्य आनुपातिक प्रतिनिधित्व (MMPR) प्रणाली का उपयोग किया जाता है (बुंडेसटाग की 598 सीटों में से 50% सीटें FPTP प्रणाली के तहत निर्वाचन क्षेत्रों द्वारा भरी जाती हैं और शेष 50% सीटें कम-से-कम 5% वोट प्राप्त करने वाले दलों के बीच आवंटित की जाती हैं)।
    • न्यूज़ीलैंड में प्रतिनिधि सभा की कुल 120 सीटों में से 60% सीटें प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से FPTP प्रणाली के माध्यम से भरी जाती हैं, जबकि शेष 40% सीटें न्यूनतम 5% वोट प्राप्त करने वाले दलों को आवंटित की जाती हैं।

आगे की राह

  • विधि आयोग की सिफारिश:
    • विधि आयोग ने प्रयोगात्मक आधार पर अपनी 170वीं रिपोर्ट (1999) में मिश्रित सदस्य आनुपातिक प्रतिनिधित्व (MMPR) प्रणाली शुरू करने की सिफारिश की थी।
      • रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि लोकसभा की संख्या बढ़ाकर न्यूनतम 25% सीटें PR प्रणाली के माध्यम से भरी जा सकती हैं।
      • इसने वोट शेयर के आधार पर PR के लिये देशभर को एक इकाई के रूप में मानने की सिफारिश की या वैकल्पिक रूप से भारत की संघीय राजनीति को देखते हुए, इसे राज्य/केंद्रशासित प्रदेश स्तर पर विचार करने की सिफारिश की।
  • आगामी परिसीमन प्रक्रिया:
    • आगामी परिसीमन प्रक्रिया, जिसमें जनसंख्या परिवर्तन के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण किया जाएगा, धीमी जनसंख्या वृद्धि वाले राज्यों के लिये हानिकारक हो सकती है। यह संघवाद के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन कर सकता है और प्रतिनिधित्व खोने वाले राज्यों में नाराज़गी उत्पन्न कर सकता है।
    • इस प्रकार, जनसंख्या वृद्धि की परवाह किये बिना, हमें एक ऐसी प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है जो सभी राज्यों के लिये समान प्रतिनिधित्व की गारंटी सुनिश्चित करे। इस प्रणाली में निम्न शामिल हो सकते हैं:
      • प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधित्व के वर्तमान स्तरों को ध्यान में रखते हुए एक निष्पक्ष संतुलन बनाने में सहायता मिल सकती है। 
      • मिश्रित सदस्य आनुपातिक प्रतिनिधित्व (MMPR) जैसी वैकल्पिक प्रणालियों की जाँच करना लाभदायक हो सकता है।
  • MMPR प्रणाली के लिये अनुशंसा:
    • सत्ता का अधिक न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करने हेतु प्रत्येक राज्य/संघ राज्य क्षेत्र में अतिरिक्त सीटों या कम-से-कम मौजूदा सीटों के एक चौथाई के लिये MMPR प्रणाली लागू की जा सकती है। पूर्वोत्तर और छोटे उत्तरी राज्यों को संसद में अधिक सशक्त आवाज़ मिलेगी, भले ही उनकी कुल सीटों में वृद्धि हुई हो।

निष्कर्ष:

चूँकि भारत एक लोकतंत्र के रूप में विकसित हो रहा है, इसलिये आनुपातिक प्रतिनिधित्व और मिश्रित सदस्य आनुपातिक प्रतिनिधित्व जैसे चुनावी सुधारों की खोज से संभावित रूप से अधिक संतुलित एवं निष्पक्ष प्रणाली की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है।

भारत की अद्वितीय संघीय और विविध प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, इन परिवर्तनों को सोच-समझकर लागू करने से लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बढ़ावा मिलेगा साथ ही यह सुनिश्चित हो सकेगा कि प्रत्येक नागरिक का वोट वास्तव में महत्त्व रखता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

भारत के विविध राजनीतिक परिदृश्य के संदर्भ में फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (FPTP) चुनाव प्रणाली का मूल्यांकन कीजिये। मिश्रित सदस्य आनुपातिक प्रतिनिधित्व (MMPR) प्रणाली को अपनाने के संभावित लाभों और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. भारत का निर्वाचन आयोग पाँच-सदस्यीय निकाय है।
  2. संघ का गृह मंत्रालय, आम चुनाव और उप-चुनावों दोनों के लिये चुनाव कार्यक्रम तय करता है।
  3. निर्वाचन आयोग मान्यता-प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवाद निपटाता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. आदर्श आचार संहिता के उद्भव के आलोक में भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका का विवेचन कीजिये। (2022)

प्रश्न. भारत में लोकतंत्र की गुणता को बढ़ाने के लिये भारत के चुनाव आयोग ने वर्ष 2016 में चुनावी सुधारों का प्रस्ताव दिया है। सुझाए गए सुधार क्या हैं और लोकतंत्र को सफल बनाने में वे किस सीमा तक महत्त्वपूर्ण हैं? (2017)


शासन व्यवस्था

प्रधानमंत्री आवास योजना

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री, PMAY-ग्रामीण, PMAY-शहरी, गरीबी रेखा से नीचे (Below Poverty Line- BPL), SC/ST, जियो-टैगिंग, वैधानिक शहर, झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोग, क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी, CAG, स्वच्छ भारत मिशन, मनरेगा, जल जीवन मिशन, उज्ज्वला योजना, NABARD, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (Economically Weaker Sections- EWS), आवास बंधु

मेन्स के लिये:

PMAY की चुनौतियाँ, PMAY को मज़बूत करने के लिये आवश्यक कदम

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने अपने तीसरे कार्यकाल की पहली कैबिनेट बैठक में PMAY के तहत तीन करोड़ ग्रामीण और शहरी घरों के निर्माण के लिये सहायता को मंज़ूरी दी।

  • तीन करोड़ मकानों में से दो करोड़ मकान PMAY-ग्रामीण के तहत तथा एक करोड़ मकान PMAY-शहरी के तहत बनाए जाएंगे।

प्रधानमंत्री आवास योजना क्या है?

प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण (PMAY-G):

  • शुभारंभ: वर्ष 2022 तक “सभी के लिये आवास” के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये, पूर्ववर्ती ग्रामीण आवास योजना इंदिरा आवास योजना (IAY) को 1 अप्रैल 2016 से केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (PMAY-G) में पुनर्गठित किया गया।
  • शामिल मंत्रालय: ग्रामीण विकास मंत्रालय।
  • स्थिति: राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने लाभार्थियों को 2.85 करोड़ घर स्वीकृत किये हैं और मार्च 2023 तक 2.22 करोड़ घर पूरे हो चुके हैं।
  • उद्देश्य: मार्च 2022 के अंत तक सभी ग्रामीण परिवारों, जो बेघर हैं या कच्चे या जीर्ण-शीर्ण घरों में रह रहे हैं, को बुनियादी सुविधाओं के साथ पक्का घर उपलब्ध कराना।
    • गरीबी रेखा से नीचे (Below Poverty Line- BPL) जीवन यापन करने वाले ग्रामीण लोगों को आवास इकाइयों के निर्माण तथा मौजूदा अनुपयोगी कच्चे मकानों के उन्नयन में पूर्ण अनुदान के रूप में सहायता प्रदान करना।
  • लाभार्थी: अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, मुक्त बंधुआ मज़दूर और गैर-अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोग, युद्ध में मारे गए रक्षा कर्मियों की विधवाएँ या उनके निकट संबंधी, पूर्व सैनिक और अर्धसैनिक बलों के सेवानिवृत्त सदस्य, विकलांग व्यक्ति तथा अल्पसंख्यक
  • लाभार्थियों का चयन: तीन-चरणीय सत्यापन जैसे सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना 2011, ग्राम सभा और जियो-टैगिंग के माध्यम से।
  • लागत साझाकरण: मैदानी क्षेत्रों के मामले में केंद्र और राज्य 60:40 के अनुपात में व्यय साझा करते हैं तथा पूर्वोत्तर राज्यों, दो हिमालयी राज्यों एवं जम्मू-कश्मीर संघ राज्य क्षेत्र के मामले में 90:10 के अनुपात में व्यय साझा करते हैं।
    • केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख सहित अन्य केंद्रशासित प्रदेशों के मामले में केंद्र 100% लागत वहन करता है।

प्रधानमंत्री आवास योजना– शहरी (PMAY-U): 

  • शुभारंभ: 25 जून 2015 को प्रारंभ की गई इस योजना का उद्देश्य वर्ष 2022 तक शहरी क्षेत्रों में सभी के लिये आवास उपलब्ध कराना है।
  • कार्यान्वयनकर्त्ता: आवास एवं शहरी मामलों का मंत्रालय
  • स्थिति: PMAY (U) डैशबोर्ड के अनुसार, 118.64 लाख मकान स्वीकृत किये गए हैं, जिनमें से 83.67 लाख पूरे हो चुके हैं।
  • विशेषताएँ: 
    • पात्र शहरी गरीबों के लिये पक्का मकान सुनिश्चित करके झुग्गीवासियों सहित शहरी गरीबों के बीच शहरी आवास की कमी को दूर करना।
    • मिशन में संपूर्ण शहरी क्षेत्र शामिल है, जिसमें सांविधिक कस्बे, अधिसूचित योजना क्षेत्र, विकास प्राधिकरण, विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण, औद्योगिक विकास प्राधिकरण या राज्य विधान के तहत कोई भी ऐसा प्राधिकरण शामिल है, जिसे शहरी नियोजन एवं विनियमन का कार्य सौंपा गया है।
    • मिशन महिला सदस्यों के नाम पर या संयुक्त नाम पर मकान का स्वामित्व प्रदान करके महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देता है।

  • योजना चार खंडों में क्रियान्वित की गई:
    • निजी भागीदारी के माध्यम से संसाधन के रूप में भूमि का उपयोग करके मौजूदा झुग्गी निवासियों का यथास्थान पुनर्वास
    • ऋण लिंक्ड सब्सिडी: आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (Economically Weaker Section- EWS), निम्न आय समूह (Low Income Group- LIG) और मध्यम आय समूह (MIG-I और MIG-II) के लोग घर खरीदने या बनाने के लिये क्रमशः 6 लाख रुपए, 9 लाख रुपए और 12 लाख रुपए तक के आवास ऋण पर 6.5%, 4% तथा 3% की ब्याज सब्सिडी प्राप्त कर सकते हैं।
    • साझेदारी में किफायती आवास (Affordable Housing in Partnership- AHP): AHP के अंतर्गत, भारत सरकार द्वारा प्रति ईडब्ल्यूएस आवास के लिये 1.5 लाख रुपए की केंद्रीय सहायता प्रदान की जाती है।
    • लाभार्थी-नेतृत्व वाले व्यक्तिगत आवास निर्माण/संवर्द्धन: व्यक्तिगत आवास निर्माण/संवर्द्धन के लिये EWS श्रेणियों से संबंधित पात्र परिवारों को प्रति EWS आवास 1.5 लाख रुपए तक की केंद्रीय सहायता प्रदान की जाती है।

प्रधानमंत्री आवास योजना की चुनौतियाँ क्या हैं?

  • कार्यान्वयन में देरी: सरकार द्वारा आरंभ में मार्च 2022 तक PMAY-G के तहत 29.5 मिलियन आवास इकाइयों और PMAY-U कार्यक्रमों के तहत 12 मिलियन आवास इकाइयों के निर्माण की समय-सीमा निर्धारित की  गई थी।
    • हालाँकि सरकार इस लक्ष्य से चूक गई और अगस्त 2022 में “सभी के लिये आवास” सुनिश्चित करने की समय-सीमा को दिसंबर 2024 तक बढ़ा दिया।
  • अनुचित निष्पादन: कुछ राज्य अपने योगदान में देरी करते हैं जिससे प्रगति पर भारी असर पड़ता है। वर्ष 2020 में नौ राज्यों ने लाभार्थियों को 2,915.21 करोड़ रुपए का भुगतान करने में देरी की थी
  • वित्त तक पहुँच: ग्रामीण क्षेत्रों में घर बनाने के लिये 1.2/1.3 लाख की वितरित सब्सिडी राशि पर्याप्त नहीं है, इसलिये परिवारों को इस कमी को पूरा करने के लिये वित्तीय संस्थानों से अधिक धन की आवश्यकता होती है।
  • आवास की गुणवत्ता: CAG रिपोर्ट में पाया गया कि पर्यवेक्षण के अभाव के कारण PMAY-G में आवास की गुणवत्ता खराब है, लाभार्थियों को निर्माण मानकों की जानकारी नहीं है तथा प्रदान किये गए प्रोटोटाइप की प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिये कोई तंत्र नहीं है।
  • अभिसरण: पीएमएवाई योजना का उद्देश्य घर निर्माण के दौरान बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करने हेतु स्वच्छ भारत मिशन, मनरेगा (MGNREGA), जल जीवन मिशन और उज्ज्वला योजना जैसी अन्य सरकारी पहलों के साथ समन्वय करना है, लेकिन रिपोर्टें योजना समन्वय में कमियों को उजागर करती हैं, जैसे कि राजस्थान में अधूरे शौचालयों के कारण 'खुले में शौच मुक्त' स्थिति के झूठे दावे किये जाते हैं।
  • जागरूकता का अभाव: कई ग्रामीण निवासी PMAY के बारे में अनभिज्ञ हैं या उनके पास आवश्यक दस्तावेज़ों का अभाव है, अशिक्षा, खराब जागरूकता अभियान और जटिल दस्तावेज़ीकरण के कारण आवास सब्सिडी तथा ऋण तक उनकी पहुँच में बाधा आ रही है।

PMAY में अन्य नीति संबंधी मुद्दे

  • रसोईघर: PMAY-G में रसोईघर की व्यवस्था है, लेकिन कई लोग इसके बजाय अतिरिक्त कमरे पसंद करते हैं, अक्सर बाहर खाना बनाते हैं और रसोईघर के स्थान को रहने के कमरे के रूप में उपयोग करते हैं, जो आंशिक रूप से PMUY (LPG Gas) के सीमित उपयोग की व्याख्या करता है।
  • खाना पकाने का ईंधन: प्रयासों के बावजूद, कई PMAY-G परिवार बाहर खाना पकाने की आदत और रिफिल की लागत के कारण LPG सिलेंडर का उपयोग नहीं करते हैं, जिससे PMAY और PMUY कार्यक्रम एकीकरण में बाधा आ रही है।
  • शौचालय का उपयोग: PMAY-G घरों में निर्मित 10% शौचालयों का उपयोग नहीं हो रहा है। हालाँकि यह स्पष्ट नहीं है कि यह समुदाय की आदतों या खराब स्थापना के कारण है और इसकी जाँच की आवश्यकता है।
  • पेयजल: राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (National Rural Drinking Water Programme- NRDWP) का लक्ष्य वर्ष 2022 तक अधिकांश ग्रामीण घरों में पाइप से जल उपलब्ध कराना है, लेकिन PMAY-G घर मुख्य रूप से साझा जल बिंदुओं पर निर्भर हैं और उनमें उचित अपशिष्ट संग्रह, जल निकासी तथा स्ट्रीट लाइटिंग का अभाव है।
  • उधार का स्रोत: अधिकांश PMAY-G लाभार्थी बैंक ऋण विकल्पों के बारे में जानकारी होने के बावजूद, अतिरिक्त गृह निर्माण लागत को पूरा करने के लिये बैंकों के बजाय निजी स्रोतों से ऋण लेते हैं, जो बैंक ऋण पहुँच के साथ नीतिगत मुद्दे का संकेत देता है।

PMAY को मज़बूत करने हेतु क्या कदम उठाने की आवश्यकता है?

  • समय पर धनराशि जारी करना: कुछ राज्यों को केंद्र सरकार से धनराशि प्राप्त करने में देरी का सामना करना पड़ता है, वर्ष 2020 में 200 करोड़ रुपए का घाटा होने की सूचना है, जिससे राज्य के अंशदान को समय पर जारी करने और मनरेगा की तरह प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण की आवश्यकता उत्पन्न होती है।
  • औपचारिक ऋण सुविधा: ऋण वितरण की प्रगति धीमी है, क्योंकि SBI जैसे प्रमुख बैंकों के पास उच्च जोखिम और कम लाभ के कारण आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (Economically weaker Section- EWS) के लिये विशिष्ट उत्पाद नहीं हैं, जिससे 'सभी के लिये आवास' हेतु स्थिर वित्तपोषण हेतु सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
  • अधिक समावेशी: समय की मांग है कि मौजूदा योजना की सीमाओं को स्वीकार किया जाए और भूमिहीन ग्रामीण आबादी की आवास समस्या को हल करने के लिये एकमात्र हस्तक्षेप तैयार किया जाए।
  • गुणवत्ता आश्वासन: सरकार को गुणवत्ता निगरानी तंत्र को मज़बूत करने की सिफारिश की जाती है। सामाजिक अंकेक्षण जैसे उपायों पर विचार किया जा सकता है।
  • आवास बंधु: आवास बंधु (PMAY-G स्थानीय प्रेरक) पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे स्थानों में प्रगति को प्रभावी ढंग से गति दे रहे हैं। उचित प्रशिक्षण के साथ वे अभिसरण संभावनाओं को बढ़ाने के लिये एक महत्त्वपूर्ण साधन हो सकते हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) की प्रमुख विशेषताओं और उद्देश्यों पर चर्चा कीजिये। शहरी और ग्रामीण आवास पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. दीपक पारिख समिति अन्य चीज़ों के साथ-साथ निम्नलिखित में से किस एक उद्देश्य के लिये गठित की गई थी? (2009)

(a) कुछ अल्पसंख्यक समुदायों की वर्तमान सामाजिक-आर्थिक स्थितियों का अध्ययन के लिये
(b) बुनियादी ढाँचे के विकास के वित्तपोषण के लिये उपाय सुझाने के लिये
(c) आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों के उत्पादन पर नीति तैयार करने के लिये
(d) केंद्रीय बजट में राजकोषीय घाटे को कम करने के उपाय सुझाने के लिये

उत्तर: (b)


प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में  निम्नलिखित में से कौन-सा/से गैर-वित्तीय ऋण में सम्मिलित है/हैं? (2020)

  1. परिवारों का बकाया गृह ऋण
  2. क्रेडिट कार्डों पर बकाया राशि
  3. राजकोषीय बिल

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. भारत में नगरीय जीवन की गुणता की संक्षिप्त पृष्ठभूमि के साथ, ‘स्मार्ट नगर कार्यक्रम’ के उद्देश्यों और रणनीति बताइये। (2016)

प्रश्न. भारत में तीव्र शहरीकरण प्रक्रिया ने जिन विभिन्न सामाजिक समस्याओं को जन्म दिया, उनकी विवेचना कीजिये। (2013)


भारतीय अर्थव्यवस्था

लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका

प्रिलिम्स के लिये:

18वीं लोकसभा, गठबंधन सरकार, लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, साधारण बहुमत, स्थगन, अविश्वास और निंदा प्रस्ताव, कार्य मंत्रणा समिति, सामान्य प्रयोजन समिति और नियम समिति, अधिकार और विशेषाधिकार

मेन्स के लिये:

भारत में लोकसभा अध्यक्ष के बारे में मुख्य तथ्य, गठबंधन सरकार में अध्यक्ष की भूमिका

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

एक गठबंधन सरकार में लोकसभा अध्यक्ष की न केवल सदन के कुशल संचालन के लिये बल्कि विपक्ष और सत्तारूढ़ दल तथा उसके सहयोगियों के बीच शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिये भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, जैसा कि 18वीं लोकसभा का आगामी सत्र प्रदर्शित करेगा।

भारत में लोकसभा अध्यक्ष के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय:
    • लोकसभा अध्यक्ष सदन का संवैधानिक और औपचारिक प्रमुख होता है।
    • संसद के प्रत्येक सदन का अपना पीठासीन अधिकारी होता है।
    • लोकसभा के लिये एक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष तथा राज्यसभा के लिये एक सभापति एवं उपसभापति होते हैं।
    • संसदीय गतिविधियों, कार्यप्रणाली और प्रक्रिया के संबंध में अध्यक्ष को लोकसभा के महासचिव तथा सचिवालय के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा सहायता प्रदान की जाती है।
    • लोकसभा अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष कार्यों का निर्वहन करता है।
      • लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों की अनुपस्थिति में सभापति पैनल का कोई सदस्य सदन की अध्यक्षता करता है। हालाँकि, लोकसभा अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त होने पर सभापति पैनल का कोई सदस्य सदन की अध्यक्षता नहीं कर सकता।
  • निर्वाचन:
    • सदन अपने पीठासीन अधिकारी का चुनाव उपस्थित सदस्यों के साधारण बहुमत से करता है, जो सदन में मतदान करते हैं।
    • आमतौर पर, सत्तारूढ़ दल के सदस्य को लोकसभा अध्यक्ष के रूप में चुना जाता है, जबकि उपाध्यक्ष विपक्षी दल से चुना जाता है।
      • ऐसे भी उदाहरण हैं जब सत्तारूढ़ दल से बाहर के सदस्यों को लोकसभा अध्यक्ष पद के लिये चुना गया।
      • गैर-सत्तारूढ़ दल से संबंधित GMC बालयोगी और मनोहर जोशी 12वीं और 13वीं लोकसभा में अध्यक्ष के रूप में कार्यरत थे।
      • जब लोकसभा भंग हो जाती है तो अध्यक्ष, नया अध्यक्ष के चुने जाने के पूर्व तक नई लोकसभा की पहली बैठक तक अपने पद पर बना रहता है। 
  • निष्कासन:
    • संविधान ने निचले सदन को आवश्यकता पड़ने पर लोकसभा अध्यक्ष को हटाने का अधिकार दिया है।
      • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 94 के अनुसार सदन प्रभावी बहुमत (उपस्थित और मतदान करने वाले सदन की प्रभावी शक्ति (कुल शक्ति-रिक्तियों) के 50% से अधिक) द्वारा पारित प्रस्ताव के माध्यम से 14 दिनों के नोटिस पर लोकसभा अध्यक्ष को हटा सकता है।
    • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 7 और 8 के तहत लोकसभा सदस्य होने से अयोग्य घोषित होने पर लोकसभा अध्यक्ष को हटाया भी जा सकता है।
    • अध्यक्ष अपना त्याग-पत्र उपाध्यक्ष को भी दे सकता है।
  • शक्ति और कर्त्तव्यों के स्रोत: 
    • लोकसभा अध्यक्ष को अपनी शक्तियाँ और कर्त्तव्य तीन स्रोतों से प्राप्त होते हैं:
      • भारत का संविधान, 
      • लोकसभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियम, 
      • संसदीय परंपराएँ (अवशिष्ट शक्तियाँ जो नियमों में अलिखित या अनिर्दिष्ट हैं)
  • लोकसभा अध्यक्ष की स्वतंत्रता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के प्रावधान:
    • उन्हें कार्यकाल की सुरक्षा प्रदान की जाती है। उन्हें केवल लोकसभा द्वारा प्रभावी बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा ही हटाया जा सकता है।
    • उनके वेतन और भत्ते भारत की संचित निधि पर भारित होते हैं इसलिये वे संसद के वार्षिक मतदान के अधीन नहीं होते हैं।
    • उनके कार्य और आचरण पर लोकसभा में किसी ठोस प्रस्ताव के अलावा चर्चा या आलोचना नहीं की जा सकती।
    • सदन में प्रक्रिया को विनियमित करने, कार्य संचालन करने या व्यवस्था बनाए रखने की उनकी शक्तियाँ किसी न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के अधीन नहीं हैं।
    • वह पहले चरण में मतदान नहीं कर सकता। वह केवल बराबरी की स्थिति में ही निर्णायक मत का प्रयोग कर सकता है। इससे लोकसभा अध्यक्ष का पद निष्पक्ष हो जाता है।
    • वरीयता क्रम में उन्हें भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ छठे स्थान पर रखा गया है।

प्रोटेम स्पीकर:

  • जब पिछली लोकसभा का अध्यक्ष नवनिर्वाचित लोकसभा की पहली बैठक से ठीक पहले अपना पद खाली कर देता है, तो राष्ट्रपति लोकसभा के एक सदस्य को प्रोटेम स्पीकर (Speaker Pro Tem) के रूप में नियुक्त करता है।
    • सामान्यतः इस पद पर सबसे वरिष्ठ सदस्य का चयन किया जाता है।
    • प्रोटेम स्पीकर को राष्ट्रपति स्वयं शपथ दिलाता है।
  • वह नवनिर्वाचित लोकसभा की पहली बैठक की अध्यक्षता करता है और उसके पास अध्यक्ष की सभी शक्तियाँ होती हैं।
  • इसका प्रमुख कार्य नए सदस्यों को शपथ दिलाना और सदन को नए अध्यक्ष का चुनाव करने में सक्षम बनाना है।
  • जब सदन द्वारा नए लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव कर लिया जाता है तब प्रोटेम स्पीकर का कार्यकाल समाप्त हो जाता है।

loksabha speaker

लोकसभा अध्यक्ष की भूमिकाएँ और ज़िम्मेदारियाँ क्या हैं?

  • सदन की कार्यवाही की अध्यक्षता करना:
    • लोकसभा अध्यक्ष निचले सदन के सत्रों की देखरेख करते हैं तथा सदस्यों के बीच अनुशासन और मर्यादा सुनिश्चित करते हैं।
    • लोकसभा अध्यक्ष संसदीय बैठकों के लिये एजेंडा तय करता है और प्रक्रियात्मक नियमों की व्याख्या करता है। वह स्थगन, अविश्वास और निंदा प्रस्ताव जैसे प्रस्तावों को अनुमति देता है, जिससे व्यवस्थित संचालन सुनिश्चित होता है।
    • लोकसभा अध्यक्ष सदन के भीतर (a) भारत के संविधान, (b) लोक सभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमों तथा (c) संसदीय मिसालों के प्रावधानों का अंतिम व्याख्याता होता है।
  • कोरम लागू करना और अनुशासनात्मक कार्रवाई:
    • कोरम या गणपूर्ति के अभाव में लोकसभा अध्यक्ष आवश्यक उपस्थिति पूरी होने तक बैठक स्थगित कर देता है।
    • लोकसभा अध्यक्ष को संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत अनियंत्रित व्यवहार को दंडित करने और दलबदल के आधार पर सदस्यों को अयोग्य ठहराने का भी अधिकार है।
  • समितियों का गठन:
    • सदन की समितियों का गठन लोकसभा अध्यक्ष द्वारा किया जाता है और वे अध्यक्ष के समग्र निर्देशन में कार्य करती हैं।
    • सभी संसदीय समितियों के अध्यक्षों को लोकसभा अध्यक्ष द्वारा नामित किया जाता है।
    • कार्य मंत्रणा समिति, सामान्य प्रयोजन समिति और नियम समिति जैसी समितियाँ सीधे उनकी अध्यक्षता में काम करती हैं।
  • सदन के विशेषाधिकार:
    • लोकसभा अध्यक्ष सदन, उसकी समितियों और सदस्यों के अधिकारों और विशेषाधिकारों का संरक्षक होता है।
    • किसी विशेषाधिकार के प्रश्न को परीक्षण, जाँच और रिपोर्ट के लिये विशेषाधिकार समिति को भेजना पूर्णतः अध्यक्ष पर निर्भर करता है।
    • वह सदन के नेता के अनुरोध पर सदन की ‘गुप्त’ बैठक की अनुमति दे सकता है। जब सदन गुप्त रूप से बैठता है, तो लोकसभा अध्यक्ष की अनुमति के बिना कोई भी अजनबी कक्ष, लॉबी या दीर्घाओं में मौजूद नहीं हो सकता।
  • प्रशासनिक प्राधिकारी:
    • लोकसभा सचिवालय के प्रमुख के रूप में, अध्यक्ष संसद भवन के भीतर प्रशासनिक मामलों और सुरक्षा व्यवस्था का प्रबंधन करते हैं। वे संसदीय बुनियादी ढाँचे में परिवर्तन और परिवर्द्धन को नियंत्रित करते हैं।
  • अंतर-संसदीय संबंध:
    • लोकसभा अध्यक्ष भारतीय संसदीय समूह के पदेन अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं, जो अंतर-संसदीय संबंधों को सुगम बनाता है। वह विदेश में प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व करते हैं और भारत में विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन की अध्यक्षता करते हैं।

लोकसभा अध्यक्ष/उपाध्यक्ष से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 93/178: लोकसभा/विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की नियुक्ति।
  • अनुच्छेद 94/179: लोकसभा/विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद छोड़ना/त्याग-पत्र देना/पद से हटाया जाना।
  • अनुच्छेद 95/180: उपसभापति या अन्य व्यक्ति(यों) की लोकसभा/विधानसभा के अध्यक्ष के रूप में कार्य करने या पद के कर्त्तव्यों का पालन करने की शक्ति।
  • अनुच्छेद 96/181: लोकसभा अध्यक्ष या उपसभापति को पद से हटाने का प्रस्ताव विचाराधीन होने पर उनका अध्यक्षता न करना।
  • अनुच्छेद 97/186: लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन और भत्ते।

अध्यक्ष/उपाध्यक्ष से संबंधित न्यायिक प्रावधान

  • किहोतो होलोहन बनाम ज़ाचिल्हू मामले, 1993 में, सर्वोच्च न्यायालय ने घोषित किया कि पीठासीन अधिकारी का निर्णय अंतिम नहीं है और किसी भी अदालत में उस पर सवाल उठाया जा सकता है। यह दुर्भावना, दुराग्रह आदि के आधार पर न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने केशम मेघचंद्र सिंह बनाम माननीय अध्यक्ष मणिपुर विधानसभा एवं अन्य मामले, 2020 में फैसला दिया कि विधानसभाओं और संसद के अध्यक्षों को असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर तीन महीने की अवधि के भीतर अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला करना चाहिये।
  • नबाम रेबिया बनाम उप-सभापति मामले, 2016 में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि यदि किसी अध्यक्ष को हटाने का नोटिस लंबित है तो वह दल-बदल विरोधी कानून (संविधान की 10वीं अनुसूची) के तहत अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने से अक्षम हो जाएगा।
    • दूसरे शब्दों में, इस निर्णय ने पदच्युति नोटिस का सामना कर रहे लोकसभा अध्यक्ष को दल-बदल विरोधी कानून के तहत विधानसभा सदस्यों के विरुद्ध अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने से रोक दिया।
  • इसके अलावा, वर्ष 2023 में, सुभाष देसाई बनाम महाराष्ट्र के राज्यपाल के प्रधान सचिव मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष को विधायकों की अयोग्यता की याचिका पर निर्णय लेने के लिये समय-सीमा निर्धारित करने का निर्देश दिया।

लोकसभा अध्यक्ष के कार्यालय से संबंधित मुद्दे क्या हैं?

  • पक्षपात का मुद्दा: लोकसभा अध्यक्ष, जो अक्सर सत्ताधारी पार्टी से संबंधित होते हैं, पर पक्षपात का आरोप लगाया जाता है। किहोटो होलोहन बनाम ज़ाचिल्हू मामले (Kihoto Hollohan versus Zachilhu case) में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे उदाहरणों पर प्रकाश डाला है जहाँ लोकसभा अध्यक्ष ने कथित तौर पर अपने दल के पक्ष में कार्य किया है।
    • उदाहरण के लिये, धन विधेयक और राजनीतिक दल-बदल के मामलों पर निर्णय लेने में राजनीतिक संबद्धता वाले लोकसभा अध्यक्षों की विवेकाधीन शक्तियाँ इसका एक उदाहरण है।
    • वर्ष 2017 में मणिपुर विधानसभा दल-बदल विरोधी मामले में अदालत ने चार सप्ताह की उचित अवधि दी थी, लेकिन दल-बदल की शिकायत वर्षों तक लंबित रही।
  • राष्ट्रीय हित के ऊपर दल हितों को प्राथमिकता देना: वक्ताओं के पास ऐसी वाद-विवाद या चर्चाओं को प्रतिबंधित करने का अधिकार है जो राजनीतिक दलों के एजेंडे को प्रभावित कर सकती हैं, यदि वे चर्चाएँ राष्ट्र की भलाई के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • कार्यवाही में व्यवधान और रुकावट में वृद्धि: यदि लोकसभा अध्यक्ष को पक्षपाती माना जाता है तो इससे विपक्ष में निराशा और व्यवधान उत्पन्न हो सकता है, जिससे अंततः संसद की कार्यवाही में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
  • समितियों और जाँच को नज़रअंदाज़ करना: उचित समिति समीक्षा के बिना विधेयकों को जल्दबाज़ी में पारित करने से अप्रभावी कानून (जिस पर पर्याप्त विचार-विमर्श नहीं किया गया हो) बन सकता है।
    • उदाहरण: वर्ष 2020 में संसदीय समिति को भेजे बिना तीन कृषि कानूनों को पारित करने को विपक्ष द्वारा व्यापक विरोध और बाद में उन्हें वापस लेने का कारण बताया गया है।

आगे की राह 

  • स्थिरता बनाए रखना: लोकसभा अध्यक्ष की निष्पक्षता और न्यायसंगतता महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उन्हें विविध राजनीतिक हितों की जटिल गतिशीलता को संतुलित करना होता है।
    • अविश्वास प्रस्ताव की स्वीकृति, वाद-विवाद के लिये समय का आवंटन तथा सदस्यों की मान्यता जैसे मुद्दों पर उनके निर्णय सरकार की स्थिरता पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं।
  • विवादों के समाधान में भूमिका:
    • गठबंधन सरकार में, जहाँ अलग-अलग विचारधाराओं और एजेंडों वाली कई दल एक साथ आते हैं, वहाँ संघर्ष तथा विवाद अपरिहार्य हैं।
    • लोकसभा अध्यक्ष को इन विवादों में मध्यस्थता करने तथा सभी हितधारकों को स्वीकार्य समाधान ढूँढने में निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिये।
  • विधायी परिणामों पर प्रभाव: विधायी एजेंडे को नियंत्रित करके, लोकसभा अध्यक्ष विधेयकों के पारित होने और सरकार की समग्र नीति दिशा को प्रभावित कर सकता है।
    • भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा, "अध्यक्ष की भूमिका सिर्फ सदन चलाने तक ही सीमित नहीं है; बल्कि सरकार और विपक्ष के बीच सेतु बनने और यह सुनिश्चित करने की भी है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया कायम रहे”।
  • गैर-पक्षपात सुनिश्चित करना: पूर्ण गैर-पक्षपात सुनिश्चित करने के लिये लोकसभा अध्यक्ष द्वारा अपने राजनीतिक दल से त्याग-पत्र देने की प्रथा को संविधान के शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत को कायम रखने के लिये आगे बढ़ाया जा सकता है।
    • वर्ष 1967 में लोकसभा अध्यक्ष बनने पर एन. संजीव रेड्डी द्वारा अपने दल से त्याग-पत्र देना, गैर-पक्षपातपूर्ण आचरण का सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत करता है।
    • ब्रिटेन में स्पीकर पूरी तरह से गैर-दलीय सदस्य होता है। वहाँ परंपरा है कि स्पीकर को अपनी पार्टी से त्याग-पत्र देना होता है और राजनीतिक रूप से तटस्थ रहना होता है।

निष्कर्ष: 

  • लोकसभा अध्यक्ष केवल पीठासीन अधिकारी नहीं होते, बल्कि सदन के कामकाज को आकार देने और सत्तारूढ़ दल तथा विपक्ष के बीच संतुलन को प्रभावित करने में शक्ति रखते हैं, खासकर गठबंधन सरकार के मामले में। अध्यक्ष के निर्णयों और कार्यों का सरकार के कामकाज तथा स्थिरता पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारतीय संसदीय प्रणाली में अध्यक्ष की शक्तियों और ज़िम्मेदारियों पर प्रकाश डालते हुए संसदीय लोकतंत्र को सुनिश्चित करने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका के बारे में चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. लोकसभा के उपाध्यक्ष के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. लोकसभा के कार्य-पद्धति और कार्य-संचालन नियमों के अनुसार, उपाध्यक्ष का निर्वाचन उस तारीख को होगा जो लोकसभा अध्यक्ष नियत करे।
  2. यह आज्ञापक उपबंध है कि लोकसभा के उपाध्यक्ष के रूप में किसी प्रतियोगी का निर्वाचन या तो मुख्य विपक्षी दल से, या शासक दल से, होगा।
  3. सदन की बैठक की अध्यक्षता करते समय उपाध्यक्ष की शक्ति वैसी ही होती है जैसी कि अध्यक्ष की और उसके विनिर्णयों के विरुद्ध अपील नहीं हो सकती।
  4. उपाध्यक्ष की नियुक्ति के बारे में सुस्थापित संसदीय पद्धति यह है कि प्रस्ताव अध्यक्ष द्वारा रखा जाता है और प्रधानमंत्री द्वारा विधिवत समर्थित होता है।

उपर्युक्त कथनों में कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) 1, 2 और 3
(c) केवल 3 और 4
(d) केवल 2 और 4

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. आपकी दृष्टि में, भारत में कार्यपालिका की जवाबदेही को निश्चित करने में संसद कहाँ तक समर्थ है? (2021)

प्रश्न. आपके विचार में सहयोग, स्पर्धा एवं संघर्ष ने किस प्रकार से भारत में महासंघ को किस सीमा तक आकार दिया है? अपने उत्तर को प्रामाणित करने के लिये कुछ हालिया उदाहरण उद्धत कीजिये। (2020)


भारतीय अर्थव्यवस्था

नेशनल हेल्थ क्लेम एक्सचेंज

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI), स्वास्थ्य सेवा और स्वास्थ्य बीमा पारिस्थितिकी तंत्र, आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (OOPE) , डेटा गोपनीयता

मेन्स के लिये:

नेशनल हेल्थ क्लेम एक्सचेंज(NHCX) की मुख्य विशेषताएँ, भारत में नेशनल हेल्थ क्लेम एक्सचेंज की आवश्यकता।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (National Health Authority- NHA) और भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) ने स्वास्थ्य सेवा तथा स्वास्थ्य बीमा पारिस्थितिकी तंत्र में हितधारकों के बीच दावा-संबंधी सूचनाओं के आदान-प्रदान की सुविधा के लिये नेशनल हेल्थ क्लेम एक्सचेंज (NHCX) का शुभारंभ किया।

नेशनल हेल्थ क्लेम एक्सचेंज (NHCX) क्या है?

  • परिचय:
    • यह एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है जिसे भारत में स्वास्थ्य बीमा दावों के प्रसंस्करण को सुव्यवस्थित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • यह सभी स्वास्थ्य दावों के लिये एक केंद्रीकृत केंद्र के रूप में कार्य करेगा, अस्पतालों पर प्रशासनिक बोझ को कम करेगा और एक निर्बाध, पेपरलेस और सुरक्षित संविदात्मक ढाँचा प्रदान करेगा।
    • यह प्रणाली भारत की गतिशील और विविध स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को समायोजित करने के लिये डिज़ाइन की गई है, जो कि IRDAI के ‘2047 तक सभी के लिये बीमा’ प्राप्त करने के उद्देश्य के अनुरूप है।
  • लाभ:
    • NHCX का लक्ष्य नकदी रहित दावा प्रक्रिया को सरल और त्वरित बनाना है, जिससे संभावित रूप से प्रतीक्षा समय तथा मरीज़ों की आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (OOPE) में कमी आएगी।
    • NHCX कई पोर्टलों और मैनुअल कागज़ी कार्रवाई की आवश्यकता को समाप्त करके दावा प्रसंस्करण को सुव्यवस्थित करता है, जिससे अस्पतालों के लिये प्रशासनिक बोझ कम हो जाता है।
    • यह प्लेटफॉर्म एक समान डेटा प्रस्तुति और केंद्रीकृत सत्यापन के माध्यम से स्वास्थ्य सेवा मूल्य निर्धारण के लिये अधिक मानकीकृत दृष्टिकोण को जन्म दे सकता है।
    • यह प्रणाली डेटा सत्यापन के माध्यम से धोखाधड़ी वाले दावों का पता लगाने और उन्हें रोकने में मदद कर सकती है।

आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (OOPE):

  • आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (OOPE) वह धनराशि है जो स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करने के समय परिवारों द्वारा सीधे भुगतान की जाती है।
  • इसमें किसी भी सार्वजनिक या निजी बीमा या सामाजिक सुरक्षा योजना के अंतर्गत आने वाले व्यक्ति शामिल नहीं हैं।

IRDAI के अनुसार, भारत में बीमा की स्थिति:

  • भारत में कुल सामान्य बीमा प्रीमियम आय में स्वास्थ्य बीमा का योगदान लगभग 29% है।
  • जीवन बीमा व्यवसाय में भारत दुनिया में 10वें स्थान पर है। वर्ष 2019 के दौरान वैश्विक जीवन बीमा बाज़ार में भारत की हिस्सेदारी 2.73% थी।
  • गैर-जीवन बीमा व्यवसाय में भारत दुनिया में 15वें स्थान पर है। वर्ष 2019 के दौरान वैश्विक गैर-जीवन बीमा बाज़ार में भारत की हिस्सेदारी 0.79% थी।

बीमा प्रवेश और घनत्व:

  • बीमा प्रवेश और घनत्व दो ऐसे मापदंड हैं जिनका उपयोग अक्सर किसी देश में बीमा क्षेत्र के विकास के स्तर का आकलन करने के लिये किया जाता है।
  • बीमा प्रवेश को सकल घरेलू उत्पाद में बीमा प्रीमियम के प्रतिशत के रूप में मापा जाता है।
    • बीमा प्रवेश जो वर्ष 2001 में 2.71% था, वर्ष 2019 में लगातार बढ़कर 3.76% हो गया है (जीवन 2.82% और गैर-जीवन 0.94%)।
  • बीमा घनत्व की गणना प्रीमियम और जनसंख्या के अनुपात (प्रति व्यक्ति प्रीमियम) के रूप में की जाती है।
    • भारत में बीमा घनत्व जो वर्ष 2001 में 11.5 अमेरिकी डॉलर था, वर्ष 2019 में 78 अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया (जीवन- 58 अमेरिकी डॉलर और गैर-जीवन - 20 अमेरिकी डॉलर)।

स्वास्थ्य बीमा से संबंधित सरकारी पहल:

भारत में नेशनल हेल्थ क्लेम एक्सचेंज (National Health Claim Exchange) की क्या आवश्यकता है?

  • उच्च आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय: एक अध्ययन में आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय को कम करने में स्वास्थ्य बीमा के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है।
    • आँकड़े अस्पताल में भर्ती के लिये निजी बीमा पर चिंताजनक निर्भरता को दर्शाते हैं, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में (प्रति 100,000 लोगों पर 73.5 मामले)।
    • NHCX के माध्यम से सुव्यवस्थित दावा प्रसंस्करण से दावा निपटान में तेज़ी आ सकती है, जिससे मरीज़ों पर वित्तीय बोझ कम हो सकता है।
      • इससे अधिकाधिक लोग स्वास्थ्य बीमा का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित होंगे, जिससे अंततः जेब-से-भुगतान पर निर्भरता कम होगी तथा वित्तीय सुरक्षा में सुधार होगा।
  • दावा प्रक्रिया में अकुशलता: विभिन्न बीमा कंपनियों की अलग-अलग आवश्यकताओं और प्रक्रियाओं के कारण दावा निर्णयों में देरी तथा त्रुटियाँ होती हैं और दावा अनुमोदन या अस्वीकृति के पीछे मरीज़ों के लिये पारदर्शिता की कमी होती है।
  • अस्पतालों के लिये उच्च परिचालन लागत: वर्तमान में भारत में अस्पतालों को विभिन्न बीमा कंपनियों हेतु कई पोर्टलों के साथ-साथ दावे प्रस्तुत करने और ट्रैकिंग के लिये मैन्युअल प्रक्रियाओं के कारण प्रशासनिक बोझ का सामना करना पड़ता है।

नेशनल हेल्थ क्लेम एक्सचेंज (NHCX) को अपनाने में क्या बाधाएँ हैं?

  • डिजिटल को अपनाने में कमी: अस्पतालों और बीमा कंपनियों दोनों को NHCX प्लेटफॉर्म के साथ पूर्ण एकीकरण के लिये प्रोत्साहित करने हेतु निरंतर प्रयास तथा प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
    • उदाहरण: अस्पतालों, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के छोटे अस्पतालों, के पास NHCX प्लेटफॉर्म के साथ पूर्ण एकीकरण के लिये आवश्यक IT अवसंरचना या प्रशिक्षित स्टाफ का अभाव हो सकता है।
  • विश्वास और सहयोग का निर्माण: NHCX की सफलता के लिये कुशल सेवाओं तथा सुव्यवस्थित दावा प्रक्रियाओं के वितरण के माध्यम से पॉलिसीधारकों के बीच विश्वास का निर्माण करना।
    • उदाहरण: ऐतिहासिक रूप से, अस्पतालों और बीमा कंपनियों के बीच संचार अंतराल तथा जटिलताओं के कारण दावा प्रसंस्करण में समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं।
  • डेटा सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: डेटा गोपनीयता सुनिश्चित करने और सुरक्षा उल्लंघनों को रोकने के लिये मज़बूत उपाय आवश्यक हैं।
    • उदाहरण: संवेदनशील स्वास्थ्य और वित्तीय डेटा को संभालने वाले एक केंद्रीकृत प्लेटफॉर्म के साथ, डेटा उल्लंघनों को रोकने के लिये मज़बूत साइबर सुरक्षा उपाय महत्त्वपूर्ण हैं।

निष्कर्ष

NHCX केवल एक तकनीकी उन्नति नहीं है, यह भारत में स्वास्थ्य सेवा की सुलभता और सामर्थ्य में सुधार की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। मौजूदा अक्षमताओं तथा जटिलताओं को संबोधित करके, NHCX में रोगियों, अस्पतालों और बीमा कंपनियों को एक स्वस्थ भविष्य (Healthier Future) के लिये सशक्त बनाने की क्षमता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. नेशनल हेल्थ क्लेम एक्सचेंज (NHCX) की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए, भारत में इसे अपनाने में आने वाली बाधाओं पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन (नेशनल न्यूट्रिशन मिशन)' के उद्देश्य हैं?

  1. गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण से संबंधी जागरूकता उत्पन्न करना
  2. छोटे बच्चों, किशोरियों तथा महिलाओं में रक्ताल्पता की घटना को कम करना।
  3. बाजरा, मोटा अनाज तथा अपरिष्कृत चावल के उपभोग को बढ़ाना ।
  4. मुर्गी के अंडों के उपभोग को बढ़ाना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये  :

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1,2 और 3
(c) केवल 1,2 और 4
(d) केवल 3 और 4

उत्तर: (a)


मेन्स:

Q. सुभेद्य वर्गों के लिये क्रियान्वित की जाने वाली कल्याण योजनाओं का निष्पादन उनके बारे में जागरूकता के न होने और नीति प्रक्रम की सभी अवस्थाओं पर उनके सक्रिय तौर पर सम्मिलित न होने के कारण इतना प्रभावी नहीं होता है। -चर्चा कीजिये।  (2019)


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