प्रयागराज शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 29 जुलाई से शुरू
  संपर्क करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


शासन व्यवस्था

सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय में वृद्धि

  • 07 May 2024
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (NHP), आयुष्मान भारत PMJAY, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा (NHA) डेटा के निष्कर्ष, भारत में स्वास्थ्य निधि में हुई वृद्धि के प्रभावी उपयोग को सुनिश्चित करने से संबंधित चुनौतियाँ

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल के राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा (NHA) के आँकड़ों के अनुसार सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के अनुपात के रूप में सरकारी स्वास्थ्य व्यय (GHE) में वर्ष 2014-15 से वर्ष 2021-22 की अवधि के दौरान 63% की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा (NHA):

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य खाता (NHA) अनुमान राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केंद्र (NHSRC) द्वारा तैयार किया जाता है, जिसे केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा वर्ष 2014 में नेशनल हेल्थ अकाउंट्स टेक्निकल सेक्रेटेरिएट (NHATS) का दर्जा दिया गया था।
  • NHA अनुमान विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा विकसित स्वास्थ्य लेखा प्रणाली, 2011 के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत मानक के आधार पर एक लेखांकन ढाँचे का उपयोग करके तैयार किया जाता है।
  • ये अनुमान न केवल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तुलनीय हैं, बल्कि नीति निर्माताओं को देश के विभिन्न स्वास्थ्य वित्तपोषण संकेतकों में प्रगति की निगरानी करने में भी सक्षम बनाते हैं।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केंद्र

  • इसकी स्थापना वर्ष 2006-07 में भारत सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) के तहत तकनीकी सहायता के लिये एक शीर्ष निकाय के रूप में की गई थी।
  • इसका अधिदेश राज्यों को तकनीकी सहायता जुटाने और प्रदान करने तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) के लिये क्षमता निर्माण में नीति और रणनीति विकास में सहायता करना है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा (National Health Accounts- NHA) डेटा के निष्कर्ष क्या हैं?

  • स्वास्थ्य सेवा में बढ़ता सरकारी निवेश:
    • यह वर्ष 2014-15 और 2021-22 के बीच सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में सरकारी स्वास्थ्य व्यय (Government Health Expenditure- GHE) में उल्लेखनीय वृद्धि (1.13% से 1.84%) के रूप में परिलक्षित होता है।
      • स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति सरकारी व्यय भी इसी अवधि में लगभग तीन गुना हो गया है।
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (National Health Policy- NHP) का लक्ष्य हर किसी को सस्ती, गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच प्रदान करना है। इसमें वर्ष 2025 तक सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय को सकल घरेलू उत्पाद का 2.5% तक बढ़ाने का प्रस्ताव है।
  • सरकार द्वारा वित्तपोषित बीमा योजनाओं पर ध्यान देना:
    • आयुष्मान भारत PMJAY जैसी सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में निवेश तेज़ी से बढ़ा है (वर्ष 2013-14 से 4.4 गुना वृद्धि)।
    • स्वास्थ्य पर सामाजिक सुरक्षा खर्च की हिस्सेदारी में भी वृद्धि हुई है, जो एक अधिक व्यापक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की ओर परिवर्तन का प्रदर्शन करता है।
  • आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (OOPE) में कमी :
    • OOPE (स्वास्थ्य सेवा पर व्यक्तियों द्वारा सीधे खर्च किया गया धन) में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है, जो वर्ष 2014-15 से 2021-22 के बीच 62.6% से घटकर 39.4% हो गई है।
    • OOPE की कमी में योगदान देने वाले कारक:
      • आयुष्मान भारत PMJAY जैसी योजनाएँ लोगों को बिना किसी वित्तीय बोझ के गंभीर बीमारियों के इलाज तक पहुँच प्राप्त करने में मदद करती हैं।
      • सरकारी सुविधाओं का बढ़ता उपयोग, निशुल्क एम्बुलेंस सेवाएं तथा अन्य पहलें OOPE को कम करने में योगदान देती हैं।
      • आयुष्मान आरोग्य मंदिरों (AAM) पर निशुल्क दवाइयों और निदान की उपलब्धता स्वास्थ्य सेवा की लागत को और कम करती है।
  • आवश्यक दवाईयों के मूल्य विनियमन पर फोकस:
    • जन औषधि केंद्र किफायती जेनेरिक औषधियाँ और सर्जिकल आइटम उपलब्ध कराते हैं, जिससे वर्ष 2014 से अब तक नागरिकों को अनुमानित 28,000 करोड़ रुपए की बचत हुई है।
    • स्टेंट और कैंसर की दवाओं जैसी आवश्यक दवाओं के मूल्य को विनियमित करने से बचत में और अधिक वृद्धि हुई है (अनुमानित 27,000 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष)।
  • स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों को सशक्त बनाना:
    • सरकारी व्यय में वृद्धि न केवल स्वास्थ्य सेवाओं को लक्षित करती है, बल्कि इसमें जलापूर्ति और स्वच्छता (जल जीवन मिशन और स्वच्छ भारत मिशन के माध्यम से) में निवेश भी शामिल है।
  • स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना में निवेश:

नोट:

  • आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (OOPE) वह धनराशि है जिनका भुगतान स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करने के समय परिवारों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है।
  • इसमें किसी भी सार्वजनिक या निजी बीमा या सामाजिक सुरक्षा योजना के अंतर्गत आने वाले व्यक्ति शामिल नहीं हैं।

भारत में बढ़े हुए हेल्थकेयर फंड के प्रभावी उपयोग को सुनिश्चित करने से जुड़ी चुनौतियाँ क्या हैं?

  • बेहतर सुविधाओं तक पहुँच में असमानता:
    • लंबी यात्रा में लगने वाला समय और विशेषज्ञों तक सीमित पहुँच ग्रामीण जनसंख्या के लिये सामान्य समस्याएँ हैं, जिससे इनके निदान में विलंब हो सकता है तथा स्वास्थ्य परिणाम प्रभावित हो सकते हैं।
      • नीति आयोग की वर्ष 2021 की रिपोर्ट, शहरी क्षेत्रों (1:400) के पक्ष में डॉक्टर-रोगी अनुपात (1:1100) विषम वितरण के साथ महत्त्वपूर्ण अंतर को उजागर करती है।
      • राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल 2022 से पता चलता है कि मधुमेह और हृदय रोग जैसी गैर-संचारी बीमारियों (NCD) में वृद्धि हुई है, जिनका इलाज अत्यधिक महँगा है।
  • निधियों का दुरुपयोग और अक्षमताएँ:
    • नौकरशाही की अक्षमताएँ, कुप्रबंधन और संभावित भ्रष्टाचार धन को उसके इच्छित लाभार्थियों तक पहुँचने से रोकने के मुख्य कारक हैं।
  • मानव संसाधन बाधाएँ:
    • डॉक्टरों, नर्सों और अन्य स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों की कमी अक्सर अधिक काम करने वाले कर्मचारियों, देखभाल की गुणवत्ता से समझौता करने तथा लंबे समय तक प्रतीक्षा करने का कारण बनती है।
      • भारत में डॉक्टर-नर्स अनुपात वर्तमान में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा अनुशंसित 4:1 की तुलना में 1:1 के है।
      • इसके अतिरिक्त, वर्तमान स्थिति में, सरकारी अस्पतालों में चिकित्सक-रोगी अनुपात 1 ~11000 है, जो कि WHO की अनुशंसा 1:1000 से काफी अधिक है।

आगे की राह

  • उच्च वेतन, बेहतर आवास सुविधाओं और कॅरियर में प्रगति के अवसर जैसे प्रोत्साहनों के माध्यम से चिकित्सकों को प्रशिक्षित करने वाले कार्यक्रमों के साथ किफायती अस्पतालों और क्लीनिकों का निर्माण करके ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढाँचे में निवेश करना।
  • रोगी देखभाल के लिये धन का कुशल उपयोग सुनिश्चित करने एवं भ्रष्टाचार को रोकने के लिये प्रभावी निगरानी प्रणाली और सख्त नियमों की आवश्यकता है।
  • ऐसे अस्पतालों में जहाँ कर्मचारियों की संख्या कम है, सरकारी चिकित्सकों की संख्या बढ़ाने और रोगी-उन्मुख सुविधाओं में सुधार करने से रोगी की उचित देखभाल हो सकती है तथा उपचार के लिये प्रतीक्षा समय कम हो सकता है।
  • स्वस्थ जीवन शैली को प्रोत्साहन देने एवं रोग का शीघ्र पता लगाने वाले सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियानों के माध्यम से निवारक स्वास्थ्य देखभाल में निवेश से भविष्य में स्वास्थ्य देखभाल लागत कम हो सकती है।
    • जनता को स्वस्थ खान-पान की आदतों के विषय में शिक्षित करने एवं नियमित जाँच को प्रोत्साहित करने पर खर्च बढ़ाने से, संभावित रूप से महँगे इलाज वाली पुरानी बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या में कमी आ सकती है।

स्वास्थ्य सेवा से संबंधित हालिया सरकारी पहल क्या हैं?

निष्कर्ष:

  • वर्तमान में भारत के स्वास्थ्य देखभाल व्यय में वृद्धि हो रही है, आयुष्मान भारत जैसे सरकारी कार्यक्रमों से नागरिकों का स्वास्थ्य व्यय कम हो रहा है। हालाँकि, ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य कर्मियों का अभाव एवं दुर्गमता जैसी चुनौतियाँ अभी भी व्याप्त हैं।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल तक समान पहुँच सुनिश्चित करना एवं स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान देना वास्तविकता में सुदृढ़ एवं समतापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के लिये महत्त्वपूर्ण है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न :

भारत में बढ़े हुए हेल्थकेयर फंड के प्रभावी उपयोग को सुनिश्चित करने से जुड़ी चुनौतियों पर चर्चा करें।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन' के उद्देश्य हैं? (2017)

  1. गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण के बारे में ज़ागरूकता पैदा करना।
  2. छोटे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में एनीमिया के मामलों को कम करना।
  3. बाजरा, मोटे अनाज और बिना पॉलिश किये चावल की खपत को बढ़ावा देना।
  4. पोल्ट्री अंडे की खपत को बढ़ावा देना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) केवल 3 और 4

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • राष्ट्रीय पोषण मिशन (पोषण अभियान) महिला और बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जो आंँगनवाड़ी सेवाओं, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, स्वच्छ-भारत मिशन आदि जैसे विभिन्न कार्यक्रमों के साथ अभिसरण सुनिश्चित करता है।
  • राष्ट्रीय पोषण मिशन (NNM) का लक्ष्य 2017-18 से शुरू होकर अगले तीन वर्षों के दौरान 0-6 वर्ष के बच्चों, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं की पोषण स्थिति में समयबद्ध तरीके से सुधार करना है। अतः कथन 1 सही है।
  • NNM का लक्ष्य स्टंटिंग, अल्पपोषण, एनीमिया (छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोर लड़कियों के बीच) को कम करना तथा बच्चों के जन्म के समय कम वज़न की समस्या को दूर करना है। अत: कथन 2 सही है।
  • NNM के तहत बाजरा, बिना पॉलिश किये चावल, मोटे अनाज और अंडों की खपत से संबंधित ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। अत: कथन 3 और 4 सही नहीं हैं।

मेन्स:

प्रश्न. “एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता के अलावा, प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना धारणीय विकास की एक आवश्यक पूर्व शर्त है।” विश्लेषण कीजिये। (2021)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2