शासन व्यवस्था
संधारणीयता के साथ आवास विस्तार का संतुलन
- 23 Feb 2024
- 26 min read
यह एडिटोरियल 22/02/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Beyond shelter, dweller needs within the four walls” लेख पर आधारित है। इसमें प्रधानमंत्री आवास योजना के क्रियान्वयन में निर्माण क्षेत्र के बढ़ते महत्त्व और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में इसके योगदान पर प्रकाश डाला गया है। इसमें निर्माण गतिविधियों के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के महत्त्व को भी रेखांकित किया गया है।
प्रिलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी, प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण, ग्रामीण विकास मंत्रालय, गरीबी रेखा से नीचे (BPL), सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना 2011, ग्राम सभा, किफायती किराया आवास परिसर (ARHC), ग्लोबल हाउसिंग टेक्नोलॉजी चैलेंज (GHTC) - भारत, महिला सशक्तीकरण। मेन्स के लिये:प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण का सतत् कार्यान्वयन |
अंतरिम बजट 2024 में वित्त मंत्रालय ने प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण (PMAY- G) के तहत अगले पाँच वर्षों में दो करोड़ अतिरिक्त आवासों के निर्माण और मध्यम वर्ग के लिये एक नई आवास योजना की शुरूआत की घोषणा की। यह ‘सभी के लिये आवास’ (Housing for All) के महत्त्वाकांक्षी पहल के लक्ष्यों को साकार करने की दिशा में एक सराहनीय कदम है और PMAY की सफलता से प्रेरित है, जिसने वर्ष 2015 से अब तक लगभग तीन करोड़ ग्रामीण और 80 लाख शहरी सस्ते आवासों के निर्माण को सुगम बनाया है।
यह घोषणा हमें आवास क्षेत्र के तेज़ी से विस्तार के परिणामस्वरूप जीवन की गुणवत्ता एवं पर्यावरणीय चिंताओं के साथ संभावित समझौते या ‘ट्रेड-ऑफ’ के बारे में गंभीरता से सोचने के लिये प्रेरित करती है। यह किफायती या सस्ते आवास के मामले में स्पष्ट है, जहाँ बड़े पैमाने के उत्पादन पर बल दिया गया है और ‘थर्मल कंफर्ट’ एवं निम्न-कार्बन अवसंरचना के कार्यान्वयन जैसे कारकों की तुलना में गति, लागत एवं निर्माण सुगमता को प्राथमिकता दी गई है।
PMAY क्या है?
- प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण (PMAY-G):
- शुभारंभ: वर्ष 2022 तक ‘सभी के लिये आवास’ के लक्ष्य की प्राप्ति के लिये पूर्ववर्ती ग्रामीण आवास योजना ‘इंदिरा आवास योजना’ (IAY) को प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (PMAY-G) के रूप में पुनर्गठित किया गया है जो 1 अप्रैल, 2016 से प्रभावी हुआ है।
- संलग्न मंत्रालय: ग्रामीण विकास मंत्रालय
- लक्ष्य: मार्च 2022 के अंत तक उन सभी ग्रामीण परिवारों को बुनियादी सुविधाओं के साथ एक पक्का घर उपलब्ध कराना, जो बेघर हैं अथवा कच्चे या जीर्ण-शीर्ण घरों में रह रहे हैं।
- पूर्ण अनुदान के रूप में सहायता प्रदान कर आवास इकाइयों के निर्माण और मौजूदा अनुपयोगी कच्चे घरों के उन्नयन में गरीबी रेखा से नीचे (BPL) रह रहे ग्रामीण लोगों की मदद करना।
- लाभार्थी: SC/ST से संबंधित लोग, मुक्त कराये गए बंधुआ मज़दूर एवं ग़ैर-SC/ST वर्ग, कर्तव्य निर्वहन के दौरान शहीद हुए रक्षाकर्मियों की विधवाएँ या निकट संबंधी, पूर्व सैनिक एवं अर्द्धसैनिक बलों के सेवानिवृत्त सदस्य, दिव्यांगजन और अल्पसंख्यक वर्ग।
- लाभार्थियों का चयन: तीन चरणों के सत्यापन— सामाजिक-आर्थिक-जातिगत जनगणना 2011, ग्राम सभा और जियो-टैगिंग, के माध्यम से।
- लागत साझेदारी: इकाई सहायता की लागत केंद्र और राज्य सरकारों के बीच मैदानी क्षेत्रों में 60:40 और पूर्वोत्तर एवं पहाड़ी राज्यों के लिये 90:10 के अनुपात में साझा की जाती है।
- प्रधानमंत्री आवास योजना- शहरी (PMAY-U):
- शुभारंभ: इसका शुभारंभ 25 जून 2015 को हुआ जो वर्ष 2022 तक शहरी क्षेत्रों में सभी के लिये आवास उपलब्ध कराने पर लक्षित था।
- संलग्न मंत्रालय: आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय
- मुख्य बातें:
- पात्र शहरी गरीबों के लिये पक्का घर सुनिश्चित कर झुग्गी निवासियों सहित शहरी गरीबों के बीच शहरी आवास की कमी को दूर किया जाना है।
- यह मिशन संपूर्ण शहरी क्षेत्र को दायरे में लेता है जिसमें सांविधिक क़स्बे (Statutory Towns), अधिसूचित योजना क्षेत्र, विकास प्राधिकरण, विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण, औद्योगिक विकास प्राधिकरण या राज्य विधान के तहत कोई भी ऐसा प्राधिकरण शामिल है जिसे शहरी नियोजन एवं विनियमन के कार्य सौंपे गए हैं।
- यह मिशन महिला सदस्यों के नाम पर या संयुक्त नाम पर घरों का स्वामित्व प्रदान कर महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देता है।
- चार कार्यक्षेत्रों में विभाजन:
- निजी भागीदारी के माध्यम से संसाधन के रूप में भूमि का उपयोग कर मौजूदा झुग्गीवासियों का स्व-स्थाने पुनर्वास
- क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी (Credit Linked Subsidy)
- भागीदारी में किफायती आवास
- लाभार्थी के नेतृत्व में व्यक्तिगत आवास का निर्माण/संवर्द्धन।
आवास क्षेत्र में प्रयुक्त विभिन्न आधुनिक प्रौद्योगिकियाँ कौन-सी हैं?
PMAY मिशन के ढाँचे के भीतर, ग्लोबल हाउसिंग टेक्नोलॉजी चैलेंज (GHTC) के एक भाग के रूप में लाइटहाउस प्रोजेक्ट्स (LHPs) क्रियान्वित हो रहे हैं जो छह राज्यों में छह साइटों तक विस्तृत हैं। यहाँ मिवान टेक्नोलॉजी (Mivan Technology) के अलावा अन्य आधुनिक प्रौद्योगिकी एवं नवोन्मेषी प्रक्रियाओं का लाभ उठाया जा रहा है ताकि निर्माण समय को कम किया जा सके और वंचितों के लिये अधिक प्रत्यास्थी एवं वहनीय आवास बनाए जा सकें।
- GHTC-India:
- आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय ने एक ग्लोबल हाउसिंग टेक्नोलॉजी चैलेंज- इंडिया (GHTC-India) की संकल्पना की है, जिसका उद्देश्य आवास निर्माण क्षेत्र के लिये दुनिया भर से ऐसी नवोन्मेषी प्रौद्योगिकियों के एक समूह की पहचान करना और उनका प्रमुखता से उपयोग करना है जो संवहनीय, पर्यावरण-अनुकूल एवं आपदा-प्रत्यास्थी हों।
- मार्च 2019 में GHTC-India का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री ने वर्ष 2019-20 को ‘निर्माण प्रौद्योगिकी वर्ष’ घोषित किया था।
- छह स्थलों पर लाइटहाउस परियोजनाएँ:
- देश भर में छह स्थानों- इंदौर (मध्य प्रदेश), राजकोट (गुजरात), चेन्नई (तमिलनाडु), रांची (झारखंड), अगरतला (त्रिपुरा) और लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में भौतिक एवं सामाजिक अवसंरचना से संपन्न लगभग 1,000 आवासों (प्रत्येक में) वाले छह LHPs का निर्माण किया जा रहा है।
- LHPs पारंपरिक ईंट एवं मोर्टार निर्माण की तुलना में त्वरित गति से तैयार बड़े पैमाने के आवास का प्रदर्शन एवं वितरण करेगा और यह अधिक किफायती, संवहनीय, उच्च गुणवत्ता एवं स्थायित्व से युक्त होगा।
- मिवान निर्माण प्रौद्योगिकी:
- इसके साथ ही, मिवान (Mivan) जैसी वैकल्पिक निर्माण प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने के प्रयास चल रहे हैं । यह प्रौद्योगिकी विभिन्न भवन तत्त्वों को ढालने और बनाने के लिये उन्नत एल्यूमीनियम फॉर्मवर्क का उपयोग करती है, जो पुनर्चक्रण योग्य एवं पुन: प्रयोज्य (recyclable and reusable) है।
- यह दृष्टिकोण गति और गुणवत्ता के मामले में पारंपरिक निर्माण विधियों से व्यापक रूप से बेहतर है और निर्माण चरण में अपव्यय या वेस्टेज की कमी के कारण अपेक्षाकृत कम पर्यावरणीय प्रभाव रखता है।
- इंसुलेटिंग कंक्रीट फॉर्मवर्क (ICF) प्रौद्योगिकी:
- इंसुलेटिंग कंक्रीट फॉर्मवर्क (Insulating Concrete Formwork- ICF) दृष्टिकोण के साथ भवन-निर्माता भवन की दीवारों के आधार के रूप में दोहरे-दीवार वाले पॉलीस्टीरिन पैनल का उपयोग करते हैं।
- एक सुदृढ़, टिकाऊ संरचना सुनिश्चित करने के लिये खाली पैनल को कंस्ट्रक्शन-ग्रेड रेडी-मिक्स्ड कंक्रीट से भरा जाता है। एयरटाइट ICF सिस्टम गर्मी और ध्वनि दोनों के लिये उत्कृष्ट इंसुलेशन प्रदान करते हैं और भवनों को स्थिर तापीय द्रव्यमान ऊर्जा बनाए रखने में मदद करते हैं।
- हाइब्रिड कंक्रीट कंस्ट्रक्शन:
- जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है, हाइब्रिड कंक्रीट कंस्ट्रक्शन विभिन्न निर्माण विधियों का एक संयोजन है। हाइब्रिड कंक्रीट निर्माण में विशेष रूप से इस्पात या कंक्रीट इकाइयों जैसी अन्य प्री-कास्ट सामग्रियों के साथ कास्ट-इन-प्लेस कंक्रीट का उपयोग किया जाता है।
- स्व-स्थाने निर्माण और प्री-कास्ट सामग्री दोनों का उपयोग करने वाली हाइब्रिड विधि निर्माण प्रक्रिया की समग्र गुणवत्ता को नियंत्रित करते हुए संरचना निर्माण में तेज़ी लाने और परियोजना लागत को कम करने में मदद करती है।
आवास क्षेत्र के विकास में संवहनीयता संबंधी कौन-सी चिंताएँ मौजूद हैं?
- विभिन्न निर्माण प्रौद्योगिकियों के कारण चिंताएँ:
- तापीय संकट के मुद्दे:
- उपयुक्त इंसुलेशन के बिना सीमेंट एवं इस्पात (स्टील) के व्यापक उपयोग के परिणामस्वरूप भवन आवरण द्वारा ऊष्मा ग्रहण बढ़ जाता है, जिससे तापीय संकट (Thermal Distress) पैदा होता है।
- ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन की वृद्धि:
- अपर्याप्त इंसुलेशन के कारण भवन में रहने वाले लोग एयर कंडीशनर जैसे शीतलन उपकरणों के उपयोग के लिये विवश होते हैं। शीतलन उपकरणों पर इस निर्भरता से बिजली की खपत में वृद्धि होती है, जिससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि होती है।
- बिजली की खपत में वृद्धि:
- कम खरीद लागत के कारण निम्न दक्षता वाले उपकरणों के अधिक उपयोग से बिजली की खपत बढ़ती है, जिससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन होता है।
- यह एक गंभीर विरोधाभास को रेखांकित करता है, जहाँ निम्न-कार्बन विकल्प की पेशकश करने वाली प्रौद्योगिकी परिचालन चरण के दौरान अनजाने में ही उच्च उत्सर्जन में योगदान करती है।
- तापीय संकट के मुद्दे:
- आवास परियोजनाओं में बाधा डालने वाले स्थानीय कारक:
- PMAY-U को किफायती आवास के लिये मास्टर प्लान में भूमि चिन्हित करने की आवश्यकता होती है। सैद्धांतिक रूप से, इससे शहरों और क़स्बों को यह सुनिश्चित करने की अनुमति मिलनी चाहिए कि निम्न-आय आबादी की दैनिक यात्रा की दूरी एवं लागत न्यूनतम रखी जाए।
- हालाँकि, भारत के 7,953 जनगणना क़स्बों (census towns) में से 76.2% के पास कोई मास्टर प्लान नहीं है। दिल्ली में कई नव निर्मित आवास क्षेत्र की अवस्थिति और सार्वजनिक परिवहन की भारी कमी के कारण इन्हें खरीदार नहीं मिल रहा।
- ‘बिल्डिंग टाइपोलॉजी’ में विसंगतियाँ:
- PMAY-U के तहत, राज्यों और शहरों को अतिरिक्त फ्लोर एरिया अनुपात (FAR), फ्लोर स्पेस इंडेक्स (FSI) या हस्तांतरणीय विकास अधिकार (TDR) प्रदान करना होगा और मलिन बस्तियों एवं कम लागत वाले आवास के लिये घनत्व नियमों में ढील देनी होगी, जिससे सघन, हाई-राइज़ विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।
- यह दृष्टिकोण भूमि उपयोग दक्षता में सुधार करता है, लेकिन ऊँची इमारतों के साथ प्रति इकाई क्षेत्र में उत्सर्जन की वृद्धि के कारण स्थिरता एवं वहनीयता संबंधी चिंताओं को भी बढ़ाता है।
- PMAY-U के तहत, राज्यों और शहरों को अतिरिक्त फ्लोर एरिया अनुपात (FAR), फ्लोर स्पेस इंडेक्स (FSI) या हस्तांतरणीय विकास अधिकार (TDR) प्रदान करना होगा और मलिन बस्तियों एवं कम लागत वाले आवास के लिये घनत्व नियमों में ढील देनी होगी, जिससे सघन, हाई-राइज़ विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।
- केंद्रीकृत प्रणालियों पर अत्यधिक निर्भरता:
- भारत की उपयोगिता एवं सेवा अवसंरचना अत्यधिक बोझग्रस्त केंद्रीकृत प्रणालियों पर निर्भर करती है, जिससे कई शहरों में 50% तक की कमी उत्पन्न होती है। केंद्रीकृत प्रणालियाँ, जबकि महंगी हैं, PMAY-U दिशानिर्देशों में वर्षा जल संचयन, विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन एवं अपशिष्ट जल उपचार के प्रावधानों का अभाव रखती हैं और इन्हें विभिन्न भवन एवं पर्यावरण नियमों द्वारा निर्देशित किया जाता है।
- अक्षम लाभार्थी-आधारित निर्माण:
- लगभग 63% PMAY-U परियोजनाएँ लाभार्थियों द्वारा स्व-निर्मित हैं, जो लचीली निर्माण गति की अनुमति देती हैं। हालाँकि, इस अनौपचारिक निर्माण में संवहनीयता मार्गदर्शन तक सीमित पहुँच के साथ भवन मानदंडों एवं सुरक्षा संहिता का पालन नहीं किया जाता है।
- यह दृष्टिकोण, जो निम्न-आय समूहों के बीच प्रमुखता रखता है, बेहतर वास-योग्यता के लिये किफायती संवहनीयता मानदंड और तकनीकी सहायता को एकीकृत करने की आवश्यकता को उजागर करता है।
- लगभग 63% PMAY-U परियोजनाएँ लाभार्थियों द्वारा स्व-निर्मित हैं, जो लचीली निर्माण गति की अनुमति देती हैं। हालाँकि, इस अनौपचारिक निर्माण में संवहनीयता मार्गदर्शन तक सीमित पहुँच के साथ भवन मानदंडों एवं सुरक्षा संहिता का पालन नहीं किया जाता है।
- बहु-हितधारक प्रकृति के कारण जागरूकता की कमी:
- अलग-अलग प्राथमिकता और जागरूकता स्तर वाले विभिन्न हितधारकों को शामिल करने वाली जटिल भवन मूल्य शृंखला के कारण पैसिव डिज़ाइनों को लागू करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- अंतिम-उपयोगकर्ताओं में लाभों के बारे में जागरूकता की कमी इसे अपनाने में और बाधा उत्पन्न करती है, जो हितधारकों के बीच बढ़ती जागरूकता एवं सहयोग की आवश्यकता को उजागर करती है।
आवास क्षेत्र को अधिक संवहनीय बनाने के लिये कौन-से कदम आवश्यक हैं?
- ‘थर्मल कंफर्ट’ को प्राथमिकता देना:
- दुनिया भर में बढ़ते ‘हीट स्ट्रेस’ से विभिन्न आबादी क्षेत्रों पर असर पड़ने का अनुमान है, जिससे शीतलन की मांग में व्यापक वृद्धि होगी।
- हालाँकि, इस बढ़ती मांग का प्रभाव शीतलन सुविधाओं तक सीमित पहुँच रखने वाले निम्न-आय वर्ग के समुदायों के बीच अधिक प्रकट होगा।
- इस परिदृश्य में, कमज़ोर समुदायों को हीट स्ट्रेस के प्रति प्रत्यास्थी बनाने के लिये यह ज़रूरी है कि आवासों का निर्माण थर्मल कंफर्ट के लिये पैसिव डिज़ाइन रणनीतियों को एकीकृत करने के रूप में बुनियादी सुविधाओं के प्रावधानीकरण तक ही सीमित न हो।
- दुनिया भर में बढ़ते ‘हीट स्ट्रेस’ से विभिन्न आबादी क्षेत्रों पर असर पड़ने का अनुमान है, जिससे शीतलन की मांग में व्यापक वृद्धि होगी।
- भवन संहिता को सुदृढ़ करना:
- कई लक्ष्यों के बीच सामंजस्यपूर्ण संतुलन प्राप्त करने का मार्ग भवन संहिता के भीतर अंतर्निहित दिशानिर्देशों के अनिवार्य कार्यान्वयन में निहित है, जैसा कि ‘इको निवास संहिता’ (Eco Niwas Samhita) जैसी पहलों द्वारा प्रकट किया गया है।
- स्मार्ट घर III परियोजना (Smart Ghar III project)—जो PMAY अनटेनेबल स्लम पुनर्विकास परियोजना (PMAY Untenable Slum Redevelopment project) के तहत एक किफायती आवास पहल है, पैसिव डिज़ाइन कार्यान्वयन के माध्यम से इनडोर थर्मल कंफर्ट प्राप्त करने का एक प्रमुख उदाहरण है।
- चूँकि LHPs के लिये विभिन्न निर्माण प्रौद्योगिकियों का परीक्षण किया जा रहा है, संहिता एवं दिशानिर्देशों को अपनाने के लिये भवन डिज़ाइन में विस्तृत पैसिव डिज़ाइन पहलुओं को शामिल करने के लिये यह सबसे उपयुक्त समय है।
- कई लक्ष्यों के बीच सामंजस्यपूर्ण संतुलन प्राप्त करने का मार्ग भवन संहिता के भीतर अंतर्निहित दिशानिर्देशों के अनिवार्य कार्यान्वयन में निहित है, जैसा कि ‘इको निवास संहिता’ (Eco Niwas Samhita) जैसी पहलों द्वारा प्रकट किया गया है।
- पैसिव डिज़ाइन (Passive Designs) के बारे में जागरूकता बढ़ाना:
- जबकि पैसिव डिज़ाइन कम ऊर्जा बिल और बेहतर आराम या कंफर्ट जैसे दीर्घकालिक लाभ प्रदान करते हैं, ये लाभ हमेशा घर के मालिकों के लिये तुरंत प्रकट नहीं होते हैं।
- इसलिये, संहिता को अपनाने और सही कार्यान्वयन को प्रोत्साहित करने के लिये संपूर्ण मूल्य शृंखला में एक पारिस्थितिकी तंत्र परिवर्तन की आवश्यकता है।
- इसके लिये हितधारकों के बीच जागरूकता बढ़ाने और सहयोग को बढ़ावा देने तथा पैसिव डिज़ाइनों को प्राथमिकता देने के लिये डेवलपर्स को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
- हरित भवनों को बढ़ावा देना:
- वर्तमान में भारत में ‘हरित भवनों’ (Green Buildings) की संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकी ये भवन बाज़ार में मात्र 5% हिस्सेदारी रखते हैं। हालाँकि, वर्तमान साक्ष्य उचित नीतियों और कार्यान्वयन प्रक्रियाओं के माध्यम से ऊर्जा की खपत एवं उत्सर्जन में कमी लाने की आशाजनक क्षमता को प्रदर्शित करते हैं।
- मैकिन्से (McKinsey) के एक अध्ययन से संकेत मिलता है कि भवन निर्माण एवं संचालन की ऊर्जा दक्षता में सुधार कर वर्ष 2030 तक बिजली की राष्ट्रीय मांग को 25% तक कम किया जा सकता है।
- ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) के आकलन से पता चलता है कि मौजूदा भवनों में भी बेहतर दक्षता के लिये ‘रेट्रोफिट’ उपायों (पुराने में नए साधनों के योग) के माध्यम से अपनी ऊर्जा का 30-50% तक बचाने की क्षमता है।
- स्थान अनुरूप परियोजनाएँ आरंभ करना:
- शहरी संकुल में निम्न-आय वर्ग के आजीविका स्वरूप को समझने के लिये सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण आयोजित किया जाए।
- शहरी संकुल में पारगमन नेटवर्क के साथ प्रमुख आर्थिक हॉटस्पॉट और उपयुक्त स्थानों की पहचान की जाए ताकि उस क्षेत्र में अधिकतम किफायती आवास प्रदान कर मिश्रित आय आवासन को बढ़ावा दिया जाए।
- क्षेत्रवार-आधारित समावेशन (Zoning-based inclusion) लक्षित आबादी के लिये रणनीतिक रूप से उपयुक्त स्थानों में किफायती आवास के लिये भूमि निर्धारित करने में सक्षम बना सकता है।
- उदाहरण के लिये, सुनिश्चित किया जाए कि कार्यात्मक प्राथमिक विद्यालय, सार्वजनिक चिकित्सा क्लीनिक और अन्य बुनियादी सुविधाएँ किफायती आवास स्थल के निकट मौजूद हों।
- शहरी संकुल में निम्न-आय वर्ग के आजीविका स्वरूप को समझने के लिये सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण आयोजित किया जाए।
- सुदृढ़ लेआउट और बिल्डिंग डिज़ाइन का अनुसरण करना:
- आवरण डिज़ाइन (Envelope design) और छाया साधन (shading devices) किसी भवन में ऊष्मा के ग्रहण या निर्मुक्ति के लिये प्रमुख रूप से ज़िम्मेदार होते हैं और इसलिये उस स्थान को ठंडा करने या गर्म करने की आवश्यकता निर्धारित करते हैं।
- इको निवास संहिता 2018 का सुझाव है कि सभी जलवायु क्षेत्रों में (शीत जलवायु को छोड़कर) भवन के आवरण (छत को छोड़कर) के माध्यम से शुद्ध ऊष्मा ग्रहण 15 वाट प्रति वर्ग मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए।
- आवरण की दक्षता आवास इकाई के उजागर सतह क्षेत्र और निर्मित क्षेत्र के अनुपात से भी निर्धारित की जा सकती है। विभिन्न राज्यों की आवास परियोजना के नमूनों पर CSE के एक अन्य अध्ययन से पता चलता है कि यदि यह अनुपात 0.92 से अधिक है तो आवरण को दक्ष नहीं माना जा सकता।
- आवरण डिज़ाइन (Envelope design) और छाया साधन (shading devices) किसी भवन में ऊष्मा के ग्रहण या निर्मुक्ति के लिये प्रमुख रूप से ज़िम्मेदार होते हैं और इसलिये उस स्थान को ठंडा करने या गर्म करने की आवश्यकता निर्धारित करते हैं।
निष्कर्ष
अंतरिम बजट 2024 का आवासन पर विशेष रूप से ध्यान देना ‘सभी के लिये आवास’ की दिशा में एक सराहनीय कदम है। यद्यपि ये प्रयास महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन ये जीवन की गुणवत्ता एवं पर्यावरण के साथ तालमेल के आलोचनात्मक परीक्षण के लिये भी प्रेरित करते हैं। संवहनीय अभ्यासों की ओर आगे बढ़ने के लिये पैसिव डिज़ाइनों को एकीकृत करने हेतु सहयोगात्मक प्रयास एवं प्रोत्साहन की आवश्यकता है। चूँकि भवन निर्माण क्षेत्र का पर्यावरणीय प्रभाव बढ़ता जा रहा है, भविष्य के लिये प्रत्यास्थी संरचनाओं के निर्माण हेतु सन्निहित एवं परिचालनात्मक उत्सर्जन को संतुलित करना महत्त्वपूर्ण है। आवासन पहलों में पर्यावरणीय चेतना को अपनाकर, हम न केवल ‘घर’ का निर्माण कर सकेंगे, बल्कि अधिक समावेशी भविष्य के लिये संवहनीयता के मॉडल भी प्रस्तुत कर सकेंगे।
अभ्यास प्रश्न: किफायती आवास पर प्रधानमंत्री आवास योजना के प्रभाव और इसकी संवहनीयता संबंधी चुनौतियों की चर्चा कीजिये। दीर्घकालिक पर्यावरणीय लाभों के लिये इन्हें किस प्रकार संबोधित किया जा सकता है?
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न: भारत में नगरीय जीवन की गुणता की संक्षिप्त पृष्ठभूमि के साथ 'स्मार्ट नगर कार्यक्रम' के उद्देश्य और रणनीति बताइये। (2016) प्रश्न: उन विभिन्न सामाजिक समस्याओं पर चर्चा करें जो भारत में शहरीकरण की तीव्र प्रक्रिया से उत्पन्न हुई हैं। (2013) |