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सर्वोच्च न्यायालय की हीरक जयंती

  • 08 Feb 2024
  • 18 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का सर्वोच्च न्यायालय, भारतीय संविधान, डिजिटल न्यायालय 2.0, भारत सरकार अधिनियम, 1935, भारत का मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये पात्रता मानदंड, न्यायाधीशों को हटाना, सर्वोच्च न्यायालय की स्वतंत्रता

मेन्स के लिये:

वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय से संबंधित प्रमुख मुद्दे, कॉलेजियम प्रणाली, NJAC 

स्रोत: पी.आई.बी. 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने दिल्ली के सर्वोच्च न्यायालय सभागार में अपना हीरक जयंती (Diamond Jubilee) समारोह (75वीं वर्षगांठ) आयोजित किया। यह भारतीय संविधान की 75वीं वर्षगाँठ के साथ भी मेल खाता है।

  • इस कार्यक्रम में न्यायिक पहुँच तथा पारदर्शिता बढ़ाने के उद्देश्य से कई नागरिक-केंद्रित सूचना तथा प्रौद्योगिकी पहलों का शुभारंभ किया गया।

आयोजन की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? 

  • कार्यक्रम के एक भाग के रूप में डिजिटल पहल जैसे डिजिटल सुप्रीम कोर्ट रिपोर्ट (Digi SCR) तथा डिजिटल कोर्ट 2.0 और सर्वोच्च न्यायालय की एक नई वेबसाइट का शुभारंभ किया गया।
    • डिजिटल सुप्रीम कोर्ट रिपोर्ट्स (Digi SCR) पहल का उद्देश्य पारदर्शिता तथा पहुँच को बढ़ावा देते हुए वर्ष 1950 के बाद से सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों की रिपोर्ट तक निशुल्क, इलेक्ट्रॉनिक पहुँच प्रदान करना है।
    • डिजिटल कोर्ट 2.0, कृत्रिम बुद्धिमत्ता के माध्यम से न्यायालय की कार्रवाई का वास्तविक समय प्रतिलेखन करने में सहायता करेगा जो कुशल रिकॉर्ड-कीपिंग और न्यायिक प्रक्रियाओं की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण सफलता प्रदर्शित करता है।
    • सर्वोच्च न्यायालय की नई वेबसाइट अब द्विभाषी प्रारूप (अंग्रेज़ी व हिंदी) में उपलब्ध है जो न्यायिक जानकारी तक निर्बाध पहुँच के लिये एक उपयोगकर्त्ता-अनुकूल इंटरफेस प्रदान करती है।
  • विशेष रूप से दूरवर्ती क्षेत्रों में न्याय प्रदान करने की पहुँच बढ़ाने के उद्देश्य के साथ सर्वोच्च न्यायालय की पहुँच विस्तारित करने के प्रयासों पर ज़ोर दिया गया।
  • सर्वोच्च न्यायालय कॉम्प्लेक्स के विस्तार हेतु निवेश की घोषणा की गई जो न्यायिक दक्षता बढ़ाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

सर्वोच्च न्यायालय से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं? 

  • स्थापना: भारत के संप्रभु लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनने के दो दिन पश्चात्, 28 जनवरी 1950 को सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई।
    • इसने भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत स्थापित भारत के संघीय न्यायालय का स्थान लिया।
    • इसने अपील की सर्वोच्च न्यायालय के रूप में ब्रिटिश प्रिवी काउंसिल को भी प्रतिस्थापित किया जिसके परिणामस्वरूप सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार पूर्ववर्ती के संघीय न्यायालय से अधिक है।
  • सांविधानिक उपबंध: संविधान के भाग V में अनुच्छेद 124 से 147 सर्वोच्च न्यायालय के संगठन, स्वतंत्रता, क्षेत्राधिकार, शक्तियों, प्रक्रियाओं आदि से संबंधित हैं।
    • इसके अतिरिक्त इन्हें संसद द्वारा विनियमित किया जाता है। 
  • वर्तमान संरचना: भारत के सर्वोच्च न्यायालय में भारत के मुख्य न्यायाधीश सहित 34 अन्य न्यायाधीश शामिल होते हैं जिनकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
    • वर्ष 1950 के मूल संविधान में एक मुख्य न्यायाधीश तथा 7 उप-न्यायाधीशों के साथ एक सर्वोच्च न्यायालय की परिकल्पना की गई थी तथा न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने का कार्य संसद क्षेत्राधिकार के तहत आता है।
  • नियुक्ति: सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों से परामर्श करने के बाद राष्ट्रपति द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति की जाती है।
    • अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश और अतिरिक्त न्यायाधीशों से परामर्श के बाद की जाती है।
    • भारत के मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त किसी भी अन्य न्यायाधीश की नियुक्ति के लिये भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श अनिवार्य है।
  • नियुक्ति के लिये पात्रता मानदंड: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के लिये एक व्यक्ति को भारतीय नागरिक होना चाहिये।
    • इसके अतिरिक्त उन्हें कम-से-कम पाँच वर्ष के लिये उच्च न्यायालय का न्यायाधीश अथवा कम-से-कम 10 वर्ष के लिये उच्च न्यायालय का अधिवक्ता होना चाहिये अथवा वह राष्ट्रपति की राय में एक पारंगत विधिवेत्ता होना चाहिये।
    • हालाँकि संविधान ने सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिये न्यूनतम आयु निर्धारित नहीं की है।
      • 65 वर्ष की आयु पूरी होने पर वे सेवानिवृत्त हो जाते हैं।
      • सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों को भारत में किसी भी न्यायालय में या किसी भी प्राधिकारी के समक्ष अभ्यास करने से प्रतिबंधित किया जाता है।
  • न्यायाधीशों को हटाना: राष्ट्रपति के आदेश द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उनके पद से हटाया जा सकता है।
    • राष्ट्रपति द्वारा न्यायाधीश को हटाने का आदेश तभी जारी किया सकता है जब उसे हटाने के लिये उसी सत्र में संसद का अभिभाषण राष्ट्रपति के सामने प्रस्तुत किया गया हो।
    • अभिभाषण को सिद्ध दुर्व्यवहार या अक्षमता के आधार पर, संसद के प्रत्येक सदन के विशेष बहुमत द्वारा समर्थित होना चाहिये अर्थात् उपस्थित और मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों के बहुमत से।
  • कार्यवाही और विनियमन की भाषा: सर्वोच्च न्यायालय में कार्यवाही विशेष रूप से अंग्रेज़ी में आयोजित की जाती है। 
    • सर्वोच्च न्यायालय के नियम, 1966 तथा सर्वोच्च न्यायालय के नियम 2013 को सर्वोच्च न्यायालय की कार्यप्रणाली और प्रक्रिया को नियंत्रित करने के लिये संविधान के अनुच्छेद 145 के तहत निर्मित किया गया है।
  • सर्वोच्च न्यायालय की स्वतंत्रता: 
    • निश्चित सेवा शर्तें: संसद न्यायाधीशों के वेतन, भत्तों एवं अन्य लाभों का निर्धारण करती है, जिससे सेवा शर्तों में स्थिरता सुनिश्चित होती है जब तक कि वित्तीय आपातकाल के दौरान इसमें बदलाव नहीं किया जाता है।
      • वेतन, भत्ते और प्रशासनिक लागतें समेकित निधि पर भारित होती हैं, जिससे उन्हें संसद द्वारा गैर-मतदान योग्य बना दिया जाता है, परिणामस्वरूप वित्तीय स्वतंत्रता सुनिश्चित होती है।
    • आचरण प्रतिरक्षा: संविधान के अनुच्छेद 121 के तहत संसद के सदस्यों को सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के आचरण पर चर्चा करने से प्रतिबंधित किया गया है।
    • अवमानना की शक्ति: सर्वोच्च न्यायालय के पास अपने निर्णयों एवं अधिकार के प्रति सम्मान सुनिश्चित करते हुए अवमानना ​​को दंडित करने का अधिकार है। (अनुच्छेद 129)
    • कर्मचारी नियुक्ति स्वायत्तता:भारत के मुख्य न्यायाधीश को कार्यकारी हस्तक्षेप से मुक्त होकर सर्वोच्च न्यायालय के कर्मचारियों को नियुक्त करने और उनकी सेवा शर्तें निर्धारित करने की स्वतंत्रता है।
    • क्षेत्राधिकार संरक्षण: संसद सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को कम नहीं कर सकती, हालाँकि वह इमें वृद्धि कर सकती है।
    • कार्यपालिका से पृथक्करण: संविधान सार्वजनिक सेवाओं में न्यायपालिका को कार्यपालिका से पृथक्करण का आदेश देता है, कार्यान्वयन पर न्यायिक मामलों में कार्यकारी प्रभाव को समाप्त कर देता है (अनुच्छेद 50)।
  • सर्वोच्च न्यायालय का महत्त्व:
    • संविधान का संरक्षक: सर्वोच्च न्यायालय अनुच्छेद 32 के तहत रिट जारी करके संविधान की रक्षा करता है, उसकी सर्वोच्चता सुनिश्चित करता है और साथ ही मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है।
    • विधिक शासन को बनाए रखना: यह कानूनी विवादों के अंतिम मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है, कानूनों की व्याख्या करता है और न्यायिक समीक्षा की शक्ति के माध्यम से उनके उचित अनुप्रयोग को सुनिश्चित करता है।
    • सामाजिक न्याय और मानवाधिकार: न्यायालय सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने, हाशिये पर पड़े समुदायों की रक्षा करने तथा मानवाधिकारों को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • कार्यकारी अतिरेक की निगरानी: यह सुनिश्चित करता है कि कार्यकारी शाखा कानून की सीमा के भीतर कार्य करती है।

सर्वोच्च न्यायालय से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • मामलों का लंबित होना: सर्वोच्च न्यायालय में मामलों का लंबित होना इसकी चल रही समस्याओं में से एक है। कार्यकुशलता में सुधार के प्रयासों के बावजूद, बड़ी संख्या में मामलों के कारण न्यायालय के संसाधनों पर दबाव पड़ रहा है।

  • न्यायिक सक्रियता बनाम न्यायिक संयम: न्यायपालिका की उचित भूमिका को लेकर बहस चल रही है, जिसमें इस बात पर चर्चा चल रही है कि क्या सर्वोच्च न्यायालय को सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को संबोधित करने में अधिक सक्रिय होना चाहिये अथवा संयम बरतना चाहिये या हस्तक्षेप को सीमित करना चाहिये।
  • न्यायाधीशों की नियुक्ति की चिंताएँ: न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया, विशेषकर कॉलेजियम प्रणाली की भूमिका, विवाद का विषय रही है। नियुक्ति प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के लिये राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग जैसे सुधारों पर चर्चा की गई है।
  • प्रौद्योगिकी एवं न्याय तक पहुँच: हालाँकि न्याय तक पहुँच में सुधार के लिये ई-फाइलिंग एवं वर्चुअल सुनवाई जैसी पहल लागू की गई है, लेकिन विशेष रूप से प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुँच वाले हाशिये पर रहने वाले समुदायों के लिये न्यायसंगत पहुँच सुनिश्चित करने में चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय में महिलाओं का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व: हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय के कुल न्यायाधीशों में से केवल तीन महिलाएँ हैं। यह कानून व्यवस्था में महिलाओं के विषम प्रतिनिधित्व को दर्शाता है।

आगे की राह

  • सर्वोच्च न्यायालय को विभाजित करना: भारत के 10वें विधि आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय को दो प्रभागों में विभाजित करने की सिफारिश की जिसमें संवैधानिक प्रभाग और कानूनी प्रभाग शामिल हैं।
    • प्रस्ताव के अनुसार संवैधानिक प्रभाग द्वारा केवल संवैधानिक कानून से संबंधित मामलों की सुनवाई की जाएगी।
    • इसी प्रकार 11वें विधि आयोग द्वारा वर्ष 1988 में दोहराया कि सर्वोच्च न्यायालय को खंडों में विभाजित करने से न्याय तक पहुँच में वृद्धि होगी और वादकारियों का शुल्क भी कम होगा।
    • इसके अतिरिक्त 229वीं विधि आयोग की रिपोर्ट, 2009 में गैर-संवैधानिक मुद्दों की सुनवाई के लिये दिल्ली, चेन्नई या हैदराबाद, कोलकाता तथा मुंबई में चार क्षेत्रीय पीठें स्थापित करने की सिफारिश की गई थी।
  • उन्नत न्यायिक व्यवस्था: मलिमथ समिति ने लंबित मामलों के बैकलॉग को संबोधित करने के लिये छुट्टियों के समय को 21 दिनों तक कम करने की सिफारिश करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के कार्य दिवसों को 206 दिनों तक बढ़ाने का प्रस्ताव दिया।
    • इसी तरह वर्ष 2009 के विधि आयोग ने अपनी 230वीं रिपोर्ट में मामलों के लंबित मामलों को कम करने के लिये न्यायपालिका के सभी स्तरों पर न्यायालयों की छुट्टियों को 10-15 दिनों तक कम करने की सिफारिश की थी।
  • NJAC की स्थापना पर फिर से विचार करना: इसकी संवैधानिकता सुनिश्चित करने के लिये सुरक्षा उपायों को शामिल करने हेतु NJAC (राष्ट्रीय न्यायिक आयोग विधेयक) अधिनियम में संशोधन किया जा सकता है, साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिये पुनर्गठित किया जा सकता है कि बहुमत का नियंत्रण न्यायपालिका के पास बना रहे।
  • न्यायपालिका में लैंगिक विविधता बढ़ाना: महिला न्यायाधीशों का एक निश्चित प्रतिशत लागू करने से भारत में लिंग-समावेशी न्यायिक प्रणाली के विकास को बढ़ावा मिलेगा।
    • सितंबर 2027 में भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना की आगामी नियुक्ति, न्यायपालिका के भीतर लैंगिक समानता प्राप्त करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. भारत के राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा सर्वोच्च न्यायालय सेवानिवृत्त किसी न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर बैठने और कार्य करने हेतु बुलाया जा सकता है। 
  2. भारत में किसी भी उच्च न्यायालय के अपने निर्णय के पुनर्विलोकन की शक्ति प्राप्त है जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय के पास है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


प्रश्न. 26 जनवरी, 1950 को भारत की वास्तविक सांविधानिक स्थिति क्या थी? (2021)

(a) लोकतंत्रात्मक गणराज्य
(b) संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न  लोकतंत्रात्मक गणराज्य
(c) संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य
(d) संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. भारत में उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2017)

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