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शासन व्यवस्था

परिसीमन

  • 08 Feb 2024
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

परिसीमन, परिसीमन आयोग अधिनियम 1952, भारतीय संविधान, परिसीमन आयोग, 15वाँ वित्त आयोग, भारत निर्वाचन आयोग

मेन्स के लिये:

परिसीमन की आवश्यकता और संबंधित चिंताएँ।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिये निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन वर्ष 2026 के बाद पहली जनगणना के आधार पर किया जाना है।

  • वर्ष 2021 की जनगणना मूल रूप से कोविड-19 महामारी और उसके बाद केंद्र सरकार की ओर से देरी के कारण स्थगित कर दी गई थी।

परिसीमन क्या है?

  • परिचय:
    • परिसीमन का अर्थ है लोकसभा और विधानसभाओं के लिये प्रत्येक राज्य में सीटों की संख्या और क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएँ तय करने की प्रक्रिया
    • यह 'परिसीमन प्रक्रिया' 'परिसीमन आयोग' द्वारा की जाती है जिसे संसद के एक अधिनियम के तहत स्थापित किया जाता है।
      • 1952, 1962, 1972 और 2002 के अधिनियमों के तहत परिसीमन आयोग चार बार स्थापित किये गए हैं - वर्ष 1952, 1963, 1973 और 2002 में।
        • पहला परिसीमन कार्य राष्ट्रपति द्वारा (निर्वाचन आयोग की मदद से) वर्ष 1950-51 में किया गया था।
  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
    • लोकसभा की राज्यवार संरचना में परिवर्तन लाने वाला अंतिम परिसीमन वर्ष 1976 में पूरा हुआ और यह वर्ष 1971 की जनगणना के आधार पर किया गया।
    • भारत का संविधान यह आज्ञापित करता है कि लोकसभा में सीटों का आवंटन प्रत्येक राज्य की जनसंख्या के आधार पर होना चाहिये ताकि सीटों का जनसंख्या से अनुपात सभी राज्यों में लगभग सामान हो। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक व्यक्ति के वोट का भारांक लगभग समान हो, भले ही वे किसी भी राज्य में रहते हों।
      • हालाँकि इस प्रावधान का अर्थ यह था कि जनसंख्या नियंत्रण में कम रूचि रखने वाले राज्यों को संसद में अधिक संख्या में सीटें मिल सकती हैं।
    • इस तरह के परिणामों से बचने के लिये संविधान में संशोधन किया गया। 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 ने वर्ष 1971 के परिसीमन के आधार पर वर्ष 2000 तक के लिये राज्यों में लोकसभा में सीटों के आवंटन और प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन पर रोक लगा दी।
    • 84वें संशोधन अधिनियम, 2001 ने सरकार को वर्ष 1991 की जनगणना के जनसंख्या आँकड़ों के आधार पर राज्यों में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्समायोजन और युक्तिकरण का अधिकार दिया।
    • 87वें संशोधन अधिनियम, 2003 में निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन का प्रावधान वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर किया गया, न कि वर्ष 1991 की जनगणना के आधार पर।
      • हालाँकि यह लोकसभा में प्रत्येक राज्य को आवंटित सीटों की संख्या में बदलाव किये बिना किया जा सकता है।
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • अनुच्छेद 82 के तहत संसद प्रत्येक जनगणना के बाद एक परिसीमन अधिनियम बनाती है।
    • अनुच्छेद 170 के तहत राज्यों को प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम के अनुसार क्षेत्रीयनिर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।

क्यों महत्त्वपूर्ण है परिसीमन?

  • प्रतिनिधित्त्व: 
    • परिसीमन जनसंख्या परिवर्तन के आधार पर सीटों की संख्या को समायोजित करके लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है।
    • यह "एक नागरिक-एक वोट-एक मूल्य" (one citizen-one vote-one value) के लोकतांत्रिक सिद्धांत को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • हिस्सेदारी:
    • परिसीमन का उद्देश्य समय के साथ जनसंख्या परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को पुनः समायोजित करके विभिन्न क्षेत्रों के बीच सीटों का समान वितरण सुनिश्चित करना है।
    • इससे विशिष्ट क्षेत्रों के कम प्रतिनिधित्व या अधिक प्रतिनिधित्व को रोकने में मदद मिलती है।
  • SC/ST केसीटों का आरक्षण:
    • परिसीमन संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिये आरक्षित सीटों का आवंटन निर्धारित करता है, जिससे हाशिये पर स्थित समुदायों के लिये पर्याप्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होता है।
  • संघवाद: 
    • परिसीमन राज्यों के बीच राजनीतिक शक्ति के वितरण को प्रभावित करके संघीय सिद्धांतों को प्रभावित करता है। विभिन्न क्षेत्रों के बीच सद्भाव बनाए रखने के लिये जनसंख्या-आधारित प्रतिनिधित्व और संघीय विचारों के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है।
  • जनसंख्या नियंत्रण के उपाय: 
    • ऐतिहासिक रूप से, वर्ष 1971 की जनगणना के आधार पर सीटों की संख्या की स्थिर करने का उद्देश्य जनसंख्या नियंत्रण उपायों को प्रोत्साहित करना था। हालाँकि, आसन्न परिसीमन प्रक्रिया बदलती जनसांख्यिकी के संदर्भ में इस नीति की प्रभावशीलता और निहितार्थ पर प्रश्नचिह्न लगाती है।

परिसीमन को लेकर कौन-सी चिंताएँ विद्यमान हैं? 

  • क्षेत्रीय असमानता:
    • निर्णायक कारक के रूप में जनसंख्या के कारण लोकसभा में भारत के उत्तर और दक्षिणी भाग के बीच प्रतिनिधित्व में असमानता है।
    • केवल जनसंख्या पर आधारित परिसीमन दक्षिणी राज्यों द्वारा जनसंख्या नियंत्रण में की गई प्रगति की अवहेलना करता है और संघीय ढाँचे में असमानताओं का कारण बनता है।
      • देश की जनसंख्या का केवल 18% होने के बावजूद दक्षिणी राज्य देश के सकल घरेलू उत्पाद में 35% योगदान करते हैं।
    • उत्तरी राज्य जनसंख्या नियंत्रण को प्राथमिकता नहीं देते हैं तथा उच्च जनसंख्या वृद्धि के कारण परिसीमन प्रक्रिया में उन्हें लाभ मिलने की उम्मीद है।
  • अपर्याप्त वित्तपोषण:
    • 15वें वित्त आयोग ने 2011 की जनगणना को अपनी सिफारिश के आधार के रूप में उपयोग करने के बाद दक्षिणी राज्यों के संसद में वित्तपोषण और प्रतिनिधित्व खोने के बारे में चिंता व्यक्त की है।
    • इससे पहले 1971 की जनगणना को राज्यों के लिये वित्तपोषण और कर विचलन सिफारिशों के आधार के रूप में उपयोग किया गया था।
  • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को प्रभावित करना:
    • सीटों के निर्धारित परिसीमन और पुनः आवंटन के परिणामस्वरूप न केवल दक्षिणी राज्यों के लिये सीटों की हानि हो सकती है बल्कि उत्तर में अपने आधार के साथ राजनीतिक दलों के लिये सत्ता में वृद्धि भी हो सकती है।
      • यह संभवतः उत्तर की ओर और दक्षिण से दूर शक्ति का स्थानांतरण कर सकता है।
    • यह प्रक्रिया प्रत्येक राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के लिये आरक्षित सीटों के विभाजन को भी प्रभावित करेगी (अनुच्छेद 330 और 332 के तहत)।

परिसीमन से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय प्रथाएँ कौन-सी हैं?

  • अमेरिका में:
    • वर्ष 1913 से हाउस ऑफ रिप्रेजेन्टेटिव (हमारी लोकसभा के समकक्ष) में सीटों की संख्या 435 तक सीमित कर दी गई है।
    • देश की जनसंख्या वर्ष 1911 के 9.4 करोड़ से लगभग चार गुना बढ़कर वर्ष 2023 में अनुमानतः 33.4 करोड़ हो गई है। प्रत्येक जनगणना के बाद 'समान अनुपात की विधि' (method of equal proportion) के माध्यम से राज्यों के बीच सीटों का पुनर्वितरण किया जाता है। इससे किसी भी राज्य को कोई महत्त्वपूर्ण लाभ या हानि नहीं होती है।
      • उदाहरण के लिये, वर्ष 2020 की जनगणना के आधार पर, पुनर्वितरण के परिणामस्वरूप 37 राज्यों की सीटों की संख्या में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
  • यूरोपीय संघ (EU):
    • 720 सदस्यों वाली यूरोपीय संघ संसद में सीटों की संख्या को ‘अधोगामी आनुपातिकता' (Degressive Proportionality) के सिद्धांत के आधार पर 27 सदस्य देशों के बीच विभाजित किया गया है।
    • इस सिद्धांत के तहत, जनसंख्या बढ़ने पर सीटों की संख्या का अनुपात बढ़ेगा
      • उदाहरण के लिये, लगभग 60 लाख की आबादी वाले डेनमार्क में 15 सीटें (प्रति सदस्य 4 लाख की औसत आबादी) हैं, जबकि 8.3 करोड़ की आबादी वाले जर्मनी में 96 सीटें (प्रति सदस्य 8.6 लाख की औसत आबादी) हैं।

परिसीमन आयोग क्या है?

  • नियुक्ति:
    • परिसीमन आयोग भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है तथा भारत निर्वाचन आयोग के सहयोग से कार्य करता है।
  • संरचना:
  • कार्य:
    • सभी निर्वाचन क्षेत्रों की जनसंख्या को लगभग बराबर करने के लिये निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या और सीमाओं का निर्धारण करना।
    • अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षित सीटों की पहचान करना, जहाँ उनकी जनसंख्या अपेक्षाकृत अधिक है।
  • शक्तियाँ:
    • आयोग के सदस्यों के बीच मतभेद के मामले में बहुमत की राय प्रबल होती है।
    • भारत में परिसीमन आयोग एक उच्च-शक्ति प्राप्त निकाय है, जिसके आदेशों को कानून का संरक्षण प्राप्त होता है और किसी भी न्यायालय के समक्ष इस पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता है।

आगे की राह

  • संघीय विचारों के साथ लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व को संतुलित करने की आवश्यकता है। सुझावों में ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र के लिये स्थानीय निकायों को सशक्त बनाने के साथ-साथ जनसंख्या के आधार पर विधायकों की संख्या में वृद्धि करते हुए लोकसभा सीटों की संख्या सीमित करना शामिल है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रश्न . परिसीमन आयोग के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2012)

  1. परिसीमन आयोग के आदेशों को किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
  2. परिसीमन आयोग के आदेश जब लोकसभा अथवा राज्य विधानसभा के सम्मुख रखे जाते हैं, तब उन आदेशों में कोई संशोधन नहीं किया जा सकता।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)

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