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संसद में प्रस्ताव

  • 26 Jul 2023
  • 6 min read

हाल ही में एक सांसद ने मणिपुर में जातीय हिंसा पर तत्काल चर्चा की आवश्यकता का हवाला देते हुए लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव पेश किया।

  • यह प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में किसी सदस्य द्वारा किसी मामले पर चर्चा शुरू करने के लिये दिया गया एक औपचारिक प्रस्ताव है।

संसद में प्रयुक्त विभिन्न प्रकार के प्रस्ताव:

  • स्थगन प्रस्ताव: 
    • स्थगन प्रस्ताव अत्यावश्यक सार्वजनिक महत्त्व के एक निश्चित मुद्दे पर चर्चा करने के लिये प्रस्तुत किया जाता है तथा अध्यक्ष की सहमति से तत्काल चिंता का विषय होना चाहिये।
    • इस प्रस्ताव के लिये 50 सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता होती है। चूँकि यह सदन के सामान्य कामकाज़ में बाधा डालता है, इसलिये इसे एक असाधारण उपकरण माना जाता है।
    • यह प्रस्ताव लोकसभा में उपलब्ध है लेकिन राज्यसभा में नहीं।
    • यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि स्थगन प्रस्ताव पारित होने पर सरकार को इस्तीफा देने की आवश्यकता नहीं होती है लेकिन इसे सरकार की कड़ी निंदा माना जाता है।
  • समापन प्रस्ताव:  
    • यह सदन के समक्ष किसी मामले पर चर्चा को समाप्त करने के लिये एक सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया गया प्रस्ताव है। यदि प्रस्ताव को सदन द्वारा स्वीकृति दे दी जाती है, तो चर्चा तुरंत रोक दी जाती है और मामले को मतदान के लिये रखा जाता है।
  • मतदान की आवश्यकता के साथ प्रस्ताव:
    • इस प्रकार का प्रस्ताव लोकसभा में नियम 184 के तहत लाया जाता है। यह एक विशिष्ट प्रश्न पर मतदान के साथ चर्चा की अनुमति देता है और मतदान का परिणाम इस मुद्दे पर संसद की स्थिति निर्धारित करता है।
    • यदि ऐसा प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो यह सरकार को इस मामले पर संसद के निर्णय का पालन करने के लिये बाध्य करता है।
    • हालाँकि मतदान वाले प्रस्ताव अपेक्षाकृत दुर्लभ होते हैं और आमतौर पर महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय महत्त्व के मामलों के लिये आरक्षित होते हैं
  • अल्पावधि चर्चा:
    • लोकसभा के नियम 193 और राज्यसभा के नियम 176 के अंतर्गत छोटी अवधि की चर्चा हो सकती है।
    • छोटी अवधि की चर्चा सांसदों को सार्वजनिक महत्त्व के किसी विशिष्ट मुद्दे पर मतदान किये बिना चर्चा करने की अनुमति देती है। यह चर्चा आमतौर पर एक निश्चित अवधि के लिये होती है और दो घंटे से अधिक नहीं होती है ।
    • ऐसी चर्चाओं का उद्देश्य महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करना और बिना कोई औपचारिक निर्णय लिये विविध दृष्टिकोणों को सुनने की अनुमति देना है।
  • अविश्वास प्रस्ताव:
    • यह सरकार के प्रति विश्वास को परखने के लिये लोकसभा (राज्यसभा में नहीं) में प्रस्तुत किया गया एक प्रस्ताव है।
    • प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिये 50 सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता होती है।
    • यदि अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो सरकार को इस्तीफा देना होगा।
    • अविश्वास प्रस्ताव एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक घटना है जो आमतौर पर तब घटित होती हैं जब यह धारणा बनती है कि सरकार बहुमत का समर्थन खो रही है।
  • विश्वास प्रस्ताव: 
    • यह तब पारित किया जाता है जब बहुत कम बहुमत के साथ बनी सरकारों को राष्ट्रपति द्वारा सदन में अपना बहुमत साबित करने के लिये बुलाया जाता है।
    • परिच्छेद सरकार के शासन करने के निरंतर अधिदेश को इंगित करता है।
  • विशेषाधिकार प्रस्ताव: 
    • एक सदस्य इस प्रस्ताव को सदन में तब प्रस्तुत कर सकता है जब उसे लगता है कि किसी मंत्री ने किसी मामले के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी रोककर अथवा गलत या हेरफेर किये गए तथ्य के साथ सदन या उसके सदस्यों के विशेषाधिकारों का उल्लंघन किया है।
    • इस प्रस्ताव का प्राथमिक उद्देश्य संबंधित मंत्री के कार्यों पर अस्वीकृति व्यक्त करना तथा आलोचना करना है।
  • धन्यवाद प्रस्ताव: 
    • लोकसभा की कार्यवाही प्रारंभ होने पर राष्ट्रपति के अभिभाषण पर आभार व्यक्त करना संसदीय प्रक्रिया है।
    • चर्चा के अंत में प्रस्ताव को मतदान के लिये रखा जाता है। इस प्रस्ताव को सदन में पारित किया जाना चाहिये, अन्यथा यह सरकार की पराजय माना जाएगा।
  • कटौती प्रस्ताव: 
    • बजट में मांग की राशि कम करने का प्रस्ताव
    • लोकसभा द्वारा उनका पारित होना सरकार में संसदीय विश्वास की कमी की अभिव्यक्ति है और इसके कारण उसे त्यागपत्र देना पड़ सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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