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सामाजिक न्याय

महिला सशक्तीकरण, भारत की उन्नति

  • 10 May 2024
  • 21 min read

यह एडिटोरियल 09/05/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “India can unlock growth by boosting nari shakti” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के सामाजिक-आर्थिक परिणामों में लैंगिक समानता प्राप्त करने की राह की चुनौतियों की चर्चा की गई है और महिलाओं के बीच निम्न श्रम शक्ति भागीदारी जैसे मुद्दों को संबोधित कर सकने वाली नीतियों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

महिला सशक्तीकरण, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, महिला ई-हाट, मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम 2017, महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (CEDAW), आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2022-23, विश्व आर्थिक मंच का  ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स, 2023, उत्पादन  संबद्ध प्रोत्साहन, स्वयं सहायता समूह

मेन्स के लिये:

भारत में महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक विकास में बाधक प्रमुख कारक, महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के उपाय।

चूँकि भारत वर्ष 2047 तक एक ‘विकसित’ राष्ट्र बनने की महत्त्वाकांक्षा रखता है, इस चुनौती को पार करने में महिलाओं का सशक्तीकरण केंद्रीय भूमिका में होगा। महिला सशक्तीकरण और सामाजिक-आर्थिक विकास साथ-साथ आगे बढ़ते हैं, क्योंकि अकेले विकास से लैंगिक असमानताओं को दूर नहीं किया जा सकता है। अमर्त्य सेन ने वैश्विक स्तर पर विद्यमान लैंगिक असमानताओं को उजागर करने के लिये ‘मिसिंग वीमन’ (missing women) शब्द गढ़ा था।

चूँकि महिलाएँ हित या ‘वेल-बीइंग’ (well-being) के कई मापदंडों पर पिछड़ी हुई हैं, भारत को सामाजिक-आर्थिक परिणामों में लैंगिक समानता की ओर आगे बढ़ने के लिये प्रमुख नीतियों को अपनाने की आवश्यकता है।

महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण के लिये कौन-से प्रमुख प्रावधान मौजूद हैं?

  • संवैधानिक उपाय:
    • अनुच्छेद 14: यह विधि के समक्ष समता और विधियों के समान संरक्षण की गारंटी देता है; लिंग के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है।
    • अनुच्छेद 15(3): राज्य को महिलाओं और बच्चों के लिये विशेष उपबंध करने की अनुमति देता है।
    • अनुच्छेद 16: लोक नियोजन के विषय में समान अवसर प्रदान करता है।
    • अनुच्छेद 39(d): पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिये समान कार्य के लिये समान वेतन का आह्वान करता है।
    • अनुच्छेद 42: राज्य को कार्य की उचित एवं मानवीय दशाएँ सुनिश्चित करने और मातृत्व राहत प्रदान करने के लिये उपबंध करने का निर्देश देता है।
  • सरकारी पहलें:
    •  प्रधानमंत्री मुद्रा योजना: महिला उद्यमियों और स्वयं सहायता समूहों के लिये वहनीय/सस्ते ऋण तक पहुँच प्रदान करती है।
    • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ: शिक्षा के माध्यम से जागरूकता पैदा करने और महिला कल्याण में सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • महिला ई-हाट: यह महिला उद्यमियों और स्वयं सहायता समूहों को समर्थन देने के लिये एक ऑनलाइन विपणन मंच है।
    • महिला शक्ति केंद्र: कौशल विकास और उद्यमिता के लिये ग्राम स्तर पर सशक्तीकरण कार्यक्रमों और संसाधनों को सुगम बनाता है।
    • कामकाजी महिला छात्रावास: शहरी क्षेत्रों में कामकाजी महिलाओं के लिये सुरक्षित एवं सस्ती आवासन सुविधा उपलब्ध कराना।
    • प्रधानमंत्री आवास योजना: यह आवास का महिलाओं के नाम पर होना सुनिश्चित करती है।
    • मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम 2017: इसके तहत सवैतनिक मातृत्व अवकाश को बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया गया और कार्यस्थल पर क्रेच सुविधाओं को अनिवार्य बनाया गया।
  • अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय/समझौते:
    •  महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर अभिसमय ( Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women- CEDAW): वर्ष 1979 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंगीकृत यह कन्वेंशन महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन और उनके लिये समान अधिकार सुनिश्चित करने का आह्वान करता है।
      • भारत ने इस पर वर्ष 1980 में हस्ताक्षर किये और 1993 में इसकी पुष्टि की गई।
    • बीजिंग घोषणापत्र और ‘प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन’: इसे वर्ष 1995 में महिलाओं पर संयुक्त राष्ट्र वैश्विक सम्मेलन (UN World Conference on Women) में अंगीकृत किया गया। इसमें महिला सशक्तीकरण के लिये आर्थिक भागीदारी सहित एजेंडा क्षेत्र निर्धारित किये गए। भारत भी इसका एक पक्षकार है।
  • संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य (SDGs): इसके अंतर्गत लक्ष्य 5 वर्ष 2030 तक लैंगिक समानता प्राप्त करने और सभी महिलाओं एवं बालिकाओं को सशक्त बनाने का उद्देश्य रखता है, जिसमें आर्थिक सशक्तीकरण उपाय भी शामिल हैं।

भारत में महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक विकास में बाधा डालने वाले प्रमुख कारक कौन-से हैं?

  • सुदृढ़ सामाजिक मानदंड और पितृसत्तात्मक मानसिकता: गहराई से जड़ जमाये सामाजिक मानदंड और पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण प्रायः महिलाओं की गतिशीलता, शिक्षा और आर्थिक अवसरों को प्रतिबंधित करते हैं।
    • देश के कई हिस्सों में पुत्रों को प्राथमिकता दी जाती है और पुत्रियों के साथ भेदभाव किया जाता है।
    • उदाहरण: पुत्र को अधिक प्राथमिकता देने (Son meta-preference) के कारण लिंग-पक्षपाती लैंगिक चयन को बढ़ावा मिला है, जिसके परिणामस्वरूप हरियाणा, पंजाब आदि राज्यों में लिंग अनुपात में असमानता आई है।
  • निम्न श्रम बल भागीदारी: आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार भारत में महिला श्रम बल भागीदारी दर 47% के वैश्विक औसत की तुलना में लगभग 37% है।
    • इसके अलावा, चीन और बांग्लादेश की तुलना में भारत में वेतनभोगी कार्य में संलग्न व्यक्तियों का अनुपात भी कम है।
    • कृषि से दूर जाने और अनौपचारिक श्रम की व्यापकता ने महिलाओं को असमान रूप से प्रभावित किया है, जहाँ अनेक ग्रामीण महिलाएँ अनौपचारिक क्षेत्र में कार्य कर रही हैं।
  • अवैतनिक देखभाल कार्य में विसंगत हिस्सेदारी: भारतीय महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अवैतनिक घरेलू एवं देखभाल कार्यों का विसंगत रूप से अधिक बोझ उठाना पड़ता है। इससे शिक्षा, कौशल विकास और वैतनिक आर्थिक गतिविधियों के लिये उनके पास उपलब्ध समय सीमित हो जाता है।
    • ‘UN Women’ के अनुसार, महिलाएँ पुरुषों की तुलना में अपने दिन का लगभग तीन गुना (2.8) अधिक समय अवैतनिक देखभाल कार्यों में बिताती हैं।
  • लिंग आधारित वेतन अंतराल: भारत में विभिन्न क्षेत्रों और व्यवसायों में लिंग आधारित वेतन अंतराल काफी अधिक है।
    • महिलाओं को प्रायः नियुक्ति, पदोन्नति (‘ग्लास सीलिंग’ एवं ‘ग्लास क्लिप’) और वेतन में अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
    • विश्व आर्थिक मंच (WEF) के वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक 2023 (Global Gender Gap Index 2023) में भारत 146 देशों की सूची में 127वें स्थान पर है तथा उसने समग्र लैंगिक अंतराल के 64.3% को समाप्त कम कर दिया है।
      • हालाँकि, आर्थिक भागीदारी और अवसर के मामले में देश ने केवल 36.7% समानता ही हासिल की है।
  • संपत्ति के स्वामित्व और वित्तीय समावेशन का अभाव: समान उत्तराधिकार अधिकार प्रदान करने वाले कानूनों के बावजूद, भारत में केवल 20% महिलाओं के पास ही भूमि या संपत्ति है। सीमित संपत्ति स्वामित्व महिलाओं की आर्थिक सौदेबाज़ी की शक्ति और ऋण तक पहुँच को सीमित करता है।
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-21 के आँकड़ों से पता चलता है कि संपत्ति के स्वामित्व के मामले में महिलाओं की तुलना में पुरुषों का प्रतिशत अधिक है।
      • विशिष्ट रूप से, 42.3% महिलाओं और 62.5% पुरुषों के पास घर का स्वामित्व है, जबकि भूमि के स्वामित्व ( अकेले या संयुक्त रूप से) के मामले में यह आँकड़ा महिलाओं के लिये 31.7% और पुरुषों के लिये 43.9% है।
  • हिंसा का जोखिम: महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न आदि सहित हिंसा के विभिन्न रूपों की उच्च व्यापकता उनकी आवाजाही की स्वतंत्रता और आर्थिक क्षेत्रों में सुरक्षित रूप से भागीदारी कर सकने की क्षमता को बाधित करती है।
  • सीमित शिक्षा: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-21 के अनुसार, देश में कुल महिला साक्षरता दर 71.5% है, जो पुरुष साक्षरता दर 84.7% से पर्याप्त कम है।
    • प्राथमिक विद्यालय स्तर पर लिंग समानता सूचकांक 1 के आसपास  है, जो बालकों और बालिकाओं के लिये समान नामांकन को इंगित करता है। हालाँकि उच्च शिक्षा स्तर पर इसमें गिरावट आ जाती है।
  • सीमित राजनीतिक भागीदारी: संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है- लोकसभा में केवल 14.4% और राज्यसभा में 13%।
    • लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये 33% आरक्षण प्रदान करने वाला नारी शक्ति वंदना अधिनियम 2023 पारित तो हो गया है, लेकिन इसका क्रियान्वयन अभी भी लंबित है।

महिलाओं में सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के लिये उपाय:

  • महिला श्रम बल भागीदारी में वृद्धि करना: विश्व बैंक के आकलन के अनुसार, महिला श्रम बल भागीदारी दर को वर्तमान के लगभग 25% से बढ़ाकर 50% करने से भारत 8% जीडीपी विकास दर के निकट पहुँच सकता है।
    • सरकार को विनिर्माण क्षमता के विस्तार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, विशेष रूप से रेडीमेड परिधान, जूते और हल्के विनिर्माण जैसे श्रम-केंद्रित क्षेत्रों में, जहाँ महिलाएँ श्रमिकों के एक बड़े भाग का निर्माण करती हैं।
    • लागत संबंधी अलाभों को दूर करने के लिये इन श्रम-प्रधान क्षेत्रों को उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना के दायरे में लाया जा सकता है।
    • भारत आइसलैंड के ‘इक्वल पे सर्टिफिकेशन’ से प्रेरणा ग्रहण कर सकता है जो कंपनियों पर यह सिद्ध करने का दायित्व सौंपता है कि वे लैंगिक भेदभाव नहीं करते हैं।
  • कौशल तक पहुँच में सुधार लाना: महिलाओं को विशेष रूप से प्रशिक्षण देने वाले प्रशिक्षण संस्थानों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिये। वर्तमान में औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (ITIs) की कुल संख्या के केवल 17% ही विशेष रूप से महिलाओं को प्रशिक्षण प्रदान करते हैं।
    • करियर परामर्श, प्रशिक्षण संस्थानों में जॉब प्लेसमेंट प्रकोष्ठों का निर्माण और महिला प्रशिक्षुओं के लिये महिला ‘रोल मॉडल’ एवं परामर्शदाताओं को सक्रिय करने के लिये पूर्व छात्र नेटवर्क का उपयोग करना रोज़गार परिणामों में सुधार लाने के लिये प्रभावी साधन सिद्ध हो सकते हैं।
  • शहरी क्षेत्रों में महिलाओं की गतिशीलता को सक्षम बनाना: चूँकि भारत में तीव्र गति से शहरीकरण हो रहा है, शहरों को ऐसे लैंगिक दृष्टिकोण से योजनाबद्ध किया जाना चाहिये जो महिलाओं की गतिशीलता को समायोजित एवं सक्षम कर सके।
    • तीव्र जनसांख्यिकीय परिवर्तन और जनसंख्या की आयु वृद्धि के साथ, एक उच्च गुणवत्तापूर्ण एवं सब्सिडीयुक्त शहरी देखभाल अवसंरचना न केवल महिलाओं को देखभाल कार्य से मुक्त करेगी, बल्कि इस क्षेत्र में उनके लिये नए रोज़गार भी सृजित करेगी।
  • स्वच्छ ऊर्जा से ‘फ्यूल ड्रीम एनर्जी’ की ओर आगे बढ़ना: सरकार उपभोक्ताओं को स्वच्छ प्रौद्योगिकी की खरीद के समय नकद छूट देने के साथ-साथ स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में नए रोज़गार के सृजन के लिये उत्पादन प्रोत्साहन प्रदान कर सकती है।
    • ऐसे उपायों को अपनाने से महिलाओं को अकुशल, प्रदूषणकारी ईंधन के साथ खाना पकाने जैसी गतिविधियों में लगने वाले समय के बोझ को कम करने में मदद मिल सकती है और उन्हें अपने लक्ष्यों के प्रति अधिक केंद्रित बनाया जा सकता है।
  • माइक्रो-क्रेडेंशियल प्लेटफॉर्म विकसित करना: इन-डिमांड कौशल पर केंद्रित स्टैकेबल माइक्रो-क्रेडेंशियल्स की पेशकश करने वाले ऑनलाइन प्लेटफॉर्म विकसित किये जाएँ।
    • जेनरेटेड AI की मदद से तैयार ऐसे लघु पाठ्यक्रमों को लचीले ढंग से पूरा किया जा सकता है, जिससे बाल देखभाल या कार्य शेड्यूल को बाधित किये बिना महिलाओं को प्रासंगिक कौशल प्राप्त करने की अनुमति मिलेगी।
  • महिलाओं के नेतृत्व वाले आपूर्ति शृंखला नेटवर्क: ऐसी सरकार समर्थित पहलें सृजित की जाएँ जो महिलाओं के नेतृत्व वाले स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को प्रत्यक्षतः बड़े निगमों और सरकारी खरीद कार्यक्रमों से जोड़ सकें।
    • इससे महिलाओं को अपने उत्पादों एवं सेवाओं के लिये एक स्थिर बाज़ार उपलब्ध होगा, बिचौलियों की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और उनके लाभ मार्जिन में वृद्धि होगी।
    • महिला नेतृत्व वाले स्टार्टअप्स को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। उदाहरण के लिये, सेल्फ-मेड उद्यमी फाल्गुनी नायर ने देश के पहले ऑनलाइन ब्यूटी ई-मार्केटप्लेस नायका (Nykaa) की स्थापना के साथ भारतीय सौंदर्य बाज़ार को रूपांतरित कर दिया है।

अभ्यास प्रश्न: भारत में महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण को बाधित करने वाले कारकों पर विचार कीजिये तथा समावेशी विकास के लिये प्रभावी नीतिगत हस्तक्षेपों के सुझाव दीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा विश्व के देशों के लिये 'सार्वभौमिक लैंगिक अंतराल सूचकांक' का श्रेणीकरण प्रदान करता है? (2017)

(a) विश्व आर्थिक मंच
(b) संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद
(c) संयुक्त राष्ट्र महिला
(d) विश्व स्वास्थ्य संगठन

उत्तर: (a) 


प्रश्न: स्वाधार और स्वयं सिद्ध महिलाओं के विकास के लिये भारत सरकार द्वारा शुरू की गई दो योजनाएँ हैं। उनके बीच अंतर के संबंध में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये : (2010) 

  1. स्वयं सिद्ध उन लोगों के लिये है जो प्राकृतिक आपदाओं या आतंकवाद से बची महिलाओं, ज़ेलों से रिहा महिला कैदियों, मानसिक रूप से विकृत महिलाओं आदि जैसी कठिन परिस्थितियों में हैं, जबकि स्वाधार स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं के समग्र सशक्तीकरण के लिये है। 
  2.  स्वयं सिद्ध स्थानीय स्व-सरकारी निकायों या प्रतिष्ठित स्वैच्छिक संगठनों के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है जबकि स्वाधार राज्यों में स्थापित आईसीडीएस इकाइयों के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: (d) 


मुख्य परीक्षा 

प्रश्न 1: “महिलाओं का सशक्तीकरण जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है।” विवेचना कीजिये। (2019) 

प्रश्न 2: भारत में महिलाओं पर वैश्वीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों की चर्चा कीजिये? (2015) 

प्रश्न 3: महिला संगठन को लैंगिक पूर्वाग्रह से मुक्त बनाने के लिये पुरुष सदस्यता को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। टिप्पणी कीजिये। (2013)

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