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भारतीय राजनीति

महिला आरक्षण अधिनियम, 2023 - राजनीति में महिलाएँ

  • 28 Dec 2023
  • 50 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संविधान (128वाँ संशोधन) विधेयक, 2023, संविधान (106वाँ संशोधन) अधिनियम, 2023, लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधान सभाएँ, परिसीमन की प्रक्रिया, महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन, 1979, संविधान (104वाँ संशोधन) अधिनियम, 2019, सर्वोच्च न्यायालय, ट्रिपल टेस्ट, विश्व आर्थिक मंच (WEF), ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2023

मेन्स के लिये:

महिला आरक्षण अधिनियम, 2023 का लोकतंत्र में समावेशिता को बढ़ावा देने और इसे अधिक सहभागी बनाने तथा लंबे समय में जेंडर गैप को करने पर प्रभाव।

महिला आरक्षण अधिनियम, 2023 क्या है?

  • परिचय: 
    • संविधान (106वाँ संशोधन) अधिनियम, 2023, विधेयक लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिये एक-तिहाई सीटें आरक्षित करता है। यह लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित सीटों पर भी लागू होगा।
    • इस विधेयक के लागू होने के बाद आयोजित जनगणना के प्रकाशन के बाद यह आरक्षण प्रभावी होगा। जनगणना के आधार पर महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करने हेतु परिसीमन किया जाएगा। आरक्षण 15 वर्ष की अवधि के लिये प्रदान किया जाएगा।
    • प्रत्येक परिसीमन प्रक्रिया के बाद महिलाओं के लिये आवंटित सीटों का चक्रण संसदीय कानून द्वारा नियंत्रित किया जाएगा।
      • वर्तमान में 17वीं लोकसभा (2019-2024) के कुल सदस्यों में से लगभग 15% महिलाएँ हैं, जबकि राज्य विधानसभाओं में कुल सदस्यों में औसतन 9% महिलाएँ हैं।
  • महिला आरक्षण विधेयकों की विधायी प्रगति:
    • महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन, 1979 राजनीतिक और सार्वजनिक क्षेत्रों में लिंग-आधारित भेदभाव को समाप्त करने का आदेश देता है, जिसमें भारत भी एक हस्ताक्षरकर्त्ता है।
      • प्रगति के बावजूद, निर्णय लेने वाली संस्थाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अपेक्षाकृत कम है, पहली लोकसभा में 5% से बढ़कर 17वीं लोकसभा में 15% हो गया है।
    • संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करने के उद्देश्य से संवैधानिक संशोधन 1996, 1998, 1999 व 2008 में प्रस्तावित किये गए थे।
      • पहले तीन विधेयक (1996, 1998, 1999) तब समाप्त हो गए जब उनकी संबंधित लोकसभाएँ भंग हो गईं।
      • वर्ष 2008 का विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया और उसे मंज़ूरी दे दी गई, लेकिन 15वीं लोकसभा भंग होने पर यह भी समाप्त हो गया।
      • हालाँकि वर्तमान मामले में इसके लिये सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित "ट्रिपल टेस्ट" का पालन करना आवश्यक होगा।

तालिका 3: 2008 के विधेयक और 2023 में विधेयक पेश करने के बीच मुख्य परिवर्तन:

2008 में राज्य सभा द्वारा पारित विधेयक प्रस्तुत किया गया

2003 में विधेयक प्रस्तुत किया गया

लोकसभा में आरक्षण

प्रत्येक राज्य/केंद्रशासित प्रदेश में एक तिहाई लोकसभा सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित की जाएंगी।

एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित होंगी।

सीटों का रोटेशन

संसद/विधान सभा के लिये प्रत्येक आम चुनाव के बाद आरक्षित सीट का चक्रानुक्रम किया जाएगा।

प्रत्येक परिसीमन अभ्यास के बाद आरक्षित सीटों का रोटेशन होगा।

  • 1996 के विधेयक की संसद की संयुक्त समिति द्वारा जाँच की गई, जबकि वर्ष 2008 के विधेयक की कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर स्थायी समिति द्वारा जाँच की गई।
    • दोनों समिति ने महिलाओं के लिये सीट आरक्षण के विचार का समर्थन किया। उनकी कुछ सिफारिशों में शामिल हैं:
      • उचित समय पर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की महिलाओं के लिये आरक्षण पर विचार।
      • बाद की समीक्षाओं के साथ 15 वर्ष की अवधि के लिये आरक्षण लागू करना।
      • राज्यसभा और राज्य विधान परिषदों में महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करने की योजनाएँ तैयार करना।

ट्रिपल टेस्ट का मुद्दा:

  • सरकारी सूत्रों ने कहा कि महिलाओं के लिये आरक्षण हेतु "ट्रिपल टेस्ट" पास करने की आवश्यकता होगी।
  • वर्ष 2010 में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि स्थानीय निकायों के संबंध में पिछड़ापन "राजनीतिक" होना चाहिये जैसे कि राजनीति में कम प्रतिनिधित्व मिलना। यह "सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन" से भिन्न हो सकता है, जिसका उपयोग शैक्षणिक संस्थानों या सरकारी नौकरियों में सीटों के लिये आरक्षण देने हेतु किया जाता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2021 में एक फैसले में महाराष्ट्र स्थानीय निकाय चुनावों में OBC आरक्षण की वैधता पर निर्णय लेते हुए, तीन गुना परीक्षण निर्धारित किया था जिसका राज्य सरकारों को ये आरक्षण प्रदान करने के लिये पालन करना होगा।
    • सबसे पहले, राज्य को राज्य के भीतर स्थानीय निकायों में पिछड़ेपन की जाँच के लिये एक समर्पित आयोग स्थापित करने का आदेश दिया गया था।
    • दूसरा, राज्यों को आयोग के सर्वेक्षण डेटा के आधार पर कोटा का आकार निर्धारित करना आवश्यक था।
    • तीसरा यह आरक्षण, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कोटा के साथ मिलकर, स्थानीय निकाय में कुल सीटों के 50% से अधिक नहीं हो सकता है।
  • वर्ष 2022 और 2023 में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों के लिये स्थानीय निकाय चुनावों में OBC आरक्षण से पहले ट्रिपल टेस्ट लागू करना अनिवार्य बना दिया।
    • हालाँकि ऐसा "ट्रिपल टेस्ट" SC/ST के लिये राजनीतिक आरक्षण पर लागू नहीं होता है, क्योंकि चुनाव में आरक्षण अनुच्छेद 334 के तहत लागू होता है।
    • SC/ST के प्रतिनिधित्व के लिये "ट्रिपल टेस्ट" "केवल सरकारी रोज़गार में पदोन्नति हेतु कोटा के मामले में लागू होता है।"

इस मुद्दे पर विभिन्न समितियाँ और उनकी रिपोर्ट क्या हैं?

  • 1971 भारत में महिलाओं की स्थिति पर समिति (CSWI):
    • इसे अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष 1975 से पहले महिलाओं की स्थिति पर एक रिपोर्ट के लिये संयुक्त राष्ट्र के अनुरोध के जवाब में बनाया गया था।
    • पूर्ववर्ती शिक्षा और समाज कल्याण मंत्रालय द्वारा स्थापित।
    • इसने उन संवैधानिक, प्रशासनिक और कानूनी प्रावधानों की जाँच की जिनका महिलाओं की सामाजिक स्थिति, उनकी शिक्षा एवं रोज़गार पर प्रभाव पड़ता है तथा इन प्रावधानों का प्रभाव भी पड़ता है।
    • इसने रिपोर्ट प्रकाशित की - 'समानता की ओर' जिसके अनुसार, भारतीय राज्य लैंगिक समानता सुनिश्चित करने की अपनी संवैधानिक ज़िम्मेदारी निभाने में विफल रहा है।
      • इसके बाद कई राज्यों ने स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिये आरक्षण की घोषणा शुरू कर दी।
  • 1987 मार्गरेट अल्वा के अधीन समिति
    • वर्ष 1987 में सरकार ने तत्कालीन केंद्रीय मंत्री मार्गरेट अल्वा की अध्यक्षता में 14 सदस्यीय समिति का गठन किया।
    • वर्ष 1988 में समिति ने प्रधानमंत्री को महिलाओं के लिये राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना 1988-2000 प्रस्तुत की।
      • समिति की 353 सिफारिशों में निर्वाचित निकायों में महिलाओं के लिये सीटों का आरक्षण भी शामिल था।
    • परिणाम:
      • वर्ष 1992 में 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम पी. वी. नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्रित्व काल में पेश किये गए थे।
      • यह महिलाओं के लिये राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना का कार्य था इसने क्रमशः पंचायती राज संस्थानों (Panchayati Raj Institutions- PRI) और इसके सभी स्तरों पर अध्यक्ष के कार्यालयों एवं शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं हेतु (73वें व 74वें संशोधन के माध्यम से) 1/3 सीटें आरक्षित करना अनिवार्य कर दिया।
        • महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड और केरल जैसे कई राज्यों ने स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिये 50% आरक्षण सुनिश्चित करने हेतु कानूनी प्रावधान किये हैं।

पहला महिला आरक्षण विधेयक:

  • 12 सितंबर, 1996 को भारत सरकार ने 81वाँ संवैधानिक संशोधन विधेयक पेश किया, जिसमें संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये 1/3 सीटें आरक्षित करने की मांग की गई।
    • हालाँकि कई सांसदों, विशेषकर OBC से संबंधित लोगों ने विधेयक का विरोध किया।
    • नतीजतन विधेयक को गीता मुखर्जी की अध्यक्षता वाली संसद की प्रवर समिति को भेजा गया।  
  • गीता मुखर्जी समिति 1996:
    • समिति में 21 सदस्य लोकसभा से और 10 सदस्य राज्यसभा से थे। 
    • पैनल ने कहा कि महिलाओं के लिये सीटें SC/ST कोटा के भीतर आरक्षित की गई थीं, लेकिन OBC महिलाओं हेतु ऐसा कोई लाभ नहीं था क्योंकि OBC आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है।
    • इसने सिफारिश की कि सरकार उचित समय पर OBC के लिये भी आरक्षण बढ़ाने पर विचार करे ताकि OBC की महिलाओं को भी आरक्षण का लाभ मिल सके।
  • महिलाओं की स्थिति पर 2013 समिति:
    • 2013 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने महिलाओं की स्थिति पर एक समिति का गठन किया, जिसमें स्थानीय निकायों, राज्य विधान सभाओं, संसद, मंत्रिस्तरीय स्तरों और सरकार के सभी निर्णय लेने वाले निकायों में महिलाओं के लिये सीटों का कम-से-कम 50% आरक्षण सुनिश्चित करने की सिफारिश की गई।
  • महिला प्रतिनिधित्व की वर्तमान स्थिति:
    • विश्व आर्थिक मंच (WEF) की वैश्विक लिंग अंतर रिपोर्ट 2023 के अनुसार, भारत ने राजनीतिक सशक्तिकरण में प्रगति की है, इस क्षेत्र में 25.3% समानता हासिल की है।
    • महिलाएँ 15.1% सांसदों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो वर्ष 2006 में उद्घाटन रिपोर्ट के बाद से सबसे अधिक प्रतिनिधित्व है।

पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों में महिला आरक्षण की स्थिति क्या है?

  • महिला आरक्षण - पहल और वर्तमान डेटा
    • प्रारंभिक पहल:
      • वर्ष 1985 में कर्नाटक राज्य सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिये उप-कोटा के साथ मंडल प्रजा परिषदों में महिलाओं हेतु 25% आरक्षण लागू किया, ऐसा करने वाला वह पहला राज्य बन गया।
      • वर्ष 1987 में तत्कालीन संयुक्त आंध्र प्रदेश ने ग्राम पंचायतों में महिलाओं के लिये 9% आरक्षण लागू किया।
      • वर्ष 1991 में ओडिशा ने पंचायतों में महिलाओं के लिये 33% आरक्षण लागू किया।
        • वर्ष 1992 के संवैधानिक संशोधन ने इस आरक्षण को राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया और अनुसूचित जाति एवं जनजाति की महिलाओं के लिये 33% उप-कोटा निर्धारित किया।
  • 73वाँ और 74वाँ संशोधन:
    • वर्ष 1992 में महिलाओं के लिये राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना 1988-2000 की सिफारिशों के बाद, 73वें व 74वें संशोधन अधिनियम (1992) ने पंचायती राज संस्थानों (PRI) और शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं हेतु 1/3 सीटें आरक्षित करना अनिवार्य कर दिया। 
    • 'पंचायत', "स्थानीय सरकार" होने के नाते एक राज्य का विषय है और भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची का हिस्सा है।
      • संविधान का अनुच्छेद 243D प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा पूर्ण की जाने वाली सीटों की कुल संख्या और पंचायतों के अध्यक्षों के कार्यालयों की संख्या में से महिलाओं के लिये कम-से-कम 1/3 आरक्षण अनिवार्य करके PRI में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करता है।

विभिन्न राज्यों में स्थिति:

  • >50% आरक्षण वाले राज्य:
    • सरकारी आँकड़ों के अनुसार, सितंबर 2021 तक कम-से-कम 18 राज्यों में PRI में महिला निर्वाचित प्रतिनिधियों का प्रतिशत 50% से अधिक था:
      • ये राज्य हैं- उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, असम, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, ओडिशा, केरल, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, मणिपुर, तेलंगाना, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश।
        • गुजरात और केरल सहित इन 18 राज्यों ने PRI में महिलाओं के लिये 50% आरक्षण हेतु कानूनी प्रावधान भी किये हैं।
      • PRI में महिला प्रतिनिधियों का उच्चतम अनुपात - उत्तराखंड (56.02%)
        • न्यूनतम - उत्तर प्रदेश (33.34%)
        • भारत में कुल प्रतिशत - 45.61%
    • वर्ष 2006 में बिहार 50% (पंचायतों और ULB में) आरक्षण बढ़ाने वाला पहला राज्य था, उसके बाद अगले वर्ष सिक्किम ने आरक्षण बढ़ाया
  • नगालैंड विवाद:
    • अप्रैल 2023 में नगालैंड शहरी स्थानीय निकाय (ULB) चुनावों में महिलाओं के लिये सीटों के आरक्षण को लेकर विवादों में था।
      • यह मुद्दा वर्ष 2001 के नगालैंड नगरपालिका अधिनियम के इर्द-गिर्द केंद्रित है, जिसमें ULB चुनावों (74वें संशोधन के अनुसार) में महिलाओं के लिये 33% आरक्षण अनिवार्य है।
      • कई पारंपरिक आदिवासी और शहरी संगठनों ने इसका विरोध करते हुए तर्क दिया कि यह अनुच्छेद 371A द्वारा प्रदत्त विशेष प्रावधानों का उल्लंघन होगा।
        • उनके शीर्ष आदिवासी निकाय का तर्क है कि महिलाएँ पारंपरिक रूप से निर्णय लेने वाली संस्थाओं का हिस्सा नहीं रही हैं।
        • नगालैंड एकमात्र राज्य है जहाँ ULB सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित नहीं हैं।

विभिन्न राज्यों में सेवाओं में महिला आरक्षण की स्थिति क्या है? 

  • महिला आरक्षण और क्षैतिज आरक्षण:
    • भारत का संविधान स्पष्ट रूप से सार्वजनिक रोज़गार में महिलाओं के लिये आरक्षण की अनुमति नहीं देता है। इसके विपरीत अनुच्छेद 16(2) लिंग के आधार पर सार्वजनिक रोज़गार में भेदभाव पर रोक लगाता है।
    • इसलिये प्रसिद्ध इंद्रा साहनी मामले (1992) में सर्वोच्च न्यायालय की घोषणा के आधार पर, महिलाओं को केवल क्षैतिज आरक्षण प्रदान किया जा सकता है, ऊर्ध्वाधर नहीं।
    • क्षैतिज आरक्षण का तात्पर्य ऊर्ध्वाधर श्रेणियों से हटकर लाभार्थियों की श्रेणियों जैसे महिलाओं, दिग्गजों, ट्रांसजेंडर समुदाय और विकलांग व्यक्तियों को प्रदान किये गए समान अवसर से है।
      • क्षैतिज कोटा (Quota) को ऊर्ध्वाधर श्रेणी से अलग लागू किया जाता है।
        • उदाहरण के लिये यदि महिलाओं के पास 50% क्षैतिज कोटा है तो चयनित उम्मीदवारों (Candidates) में से आधे को ऊर्ध्वाधर कोटा श्रेणी जैसे- अनुसूचित जाति, अनारक्षित वर्ग इत्यादि की महिला होना चाहिये।
  • विभिन्न राज्यों में महिलाओं की नौकरी कोटा का परिदृश्य:
    • उत्तराखंड: 
      • वर्ष 2006 में उत्तराखंड राज्य सरकार ने एक आदेश जारी कर राज्य में महिला उम्मीदवारों के लिये 30% क्षैतिज आरक्षण सुनिश्चित किया। यह आरक्षण विशेष रूप से राज्य-निवासित महिलाओं हेतु सार्वजनिक रोज़गार के लिये था।
      • अगस्त 2022 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने इस आदेश पर रोक लगा दी। हालाँकि नवंबर 2022 में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को अपने 16 वर्ष पुराने फैसले को जारी रखने की अनुमति दी और उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसने भारत में कहीं से भी महिलाओं के लिये कोटा प्रारंभ किया था। जनवरी 2023 में सरकार फिर से आरक्षण के प्रावधानों को जारी रखने के लिये अध्यादेश लेकर आई।
    • कर्नाटक: 
      • वर्ष 2022 में कर्नाटक सरकार ने सभी विभागों में आउटसोर्स महिला कर्मचारियों के लिये 33% आरक्षित किया।
      • सर्कुलर के मुताबिक, राज्य सरकार डेटा एंट्री ऑपरेटर, हाउसकीपिंग स्टाफ और अन्य ग्रुप डी कर्मचारियों, ड्राइवरों की भर्ती आउटसोर्सिंग के माध्यम से करती है।
      • 33% आरक्षण सभी स्वायत्त निकायों, विश्वविद्यालयों, शहरी स्थानीय निकायों और अन्य सरकारी कार्यालयों के लिये लागू है।
    • त्रिपुरा: 
      • वर्ष 2022 में महिला दिवस के अवसर पर, त्रिपुरा सरकार ने किसी भी राज्य सरकार की नौकरी या उच्च शैक्षणिक संस्थानों के लिये सभी महिलाओं को 33% आरक्षण देने के अपने निर्णय की घोषणा की है।
    • पंजाब: 
      • वर्ष 2020 में पंजाब राज्य सरकार ने पंजाब सिविल सेवा, बोर्ड और निगमों के लिये सीधी भर्ती में महिलाओं हेतु 33% आरक्षण को मंज़ूरी दी।
      • 'पंजाब सिविल सेवा (महिलाओं के लिये पदों का आरक्षण) नियम, 2020' ने सरकार में पदों पर सीधी भर्ती के साथ-साथ समूह A, B, C, व D पदों पर बोर्डों और निगमों में भर्ती हेतु महिलाओं के लिये ऐसा आरक्षण प्रदान किया। 
    • पंजाब: 
      • वर्ष 2016 में राज्य कैबिनेट ने सभी सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 35% आरक्षण दिया।
      • इससे पहले, राज्य सरकार ने राज्य में पुलिस कांस्टेबल की भर्ती में महिलाओं के लिये 35% आरक्षण का प्रावधान भी किया था।

अन्य क्षेत्रों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व:

शासन:

  • 1947 में आज़ादी के बाद से भारत में एक महिला प्रधान मंत्री और दो महिला राष्ट्रपति रही हैं।
  • देश में अब तक पंद्रह महिलाएँ मुख्यमंत्री रह चुकी हैं।

न्यायतंत्र:

  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अब तक एक भी महिला मुख्य न्यायाधीश नहीं रही है।
  • अगस्त 2023 तक, शीर्ष अदालत में 34 की स्वीकृत संख्या में तीन महिला न्यायाधीश थीं, 25 उच्च न्यायालयों में 788 में से 106 महिला न्यायाधीश और निचली अदालतों में 7,199 महिला न्यायाधीश थीं। 
  • जस्टिस बी. वी. नागरत्ना वर्ष 2027 में भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनने की कतार में हैं।

रक्षा और पुलिस:

  • मार्च 2023 तक भारतीय सेना में 6,993 महिला अधिकारी थीं, नौसेना में 748। चिकित्सा कर्मचारियों को छोड़कर, भारतीय वायु सेना में महिला अधिकारियों की संख्या 1,636 थी।
  • देश में 2.1 मिलियन मज़बूत पुलिस बल में महिलाएँ केवल 11.7% हैं।

विमानन:

  • विश्व में पुरुषों के मुकाबले महिला पायलटों का अनुपात भारत में सबसे अधिक है, दक्षिण एशियाई देश में कुल लगभग 10,000 पायलटों में से 15% महिला पायलट हैं, जबकि वैश्विक स्तर पर यह 5% है।

कृषि:

  • 62.9% महिला भागीदारी के साथ वर्ष 2022 में कृषि में महिला श्रमिकों का प्रतिशत सबसे अधिक है, इसके बाद विनिर्माण क्षेत्र में 11.2% महिलाएँ हैं।
  • लाखों भारतीय महिलाएँ घरेलू और दिहाड़ी मज़दूर जैसे असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत हैं।

कॉरपोरेट:

  • वर्ष 2023 में निफ्टी 500 कंपनियों में 18.2% बोर्ड सीटों पर महिलाओं की हिस्सेदारी थी, जीवन विज्ञान क्षेत्र में बोर्ड पर सबसे अधिक महिला प्रतिनिधित्व 24% था।
  • टेक उद्योग में कार्यबल में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 34% है, लेकिन जब कार्यकारी पदों पर महिलाओं की बात आती है तो यह अन्य उद्योगों से पीछे है। 8.9% कंपनियों में शीर्ष प्रबंधकीय पदों पर महिलाएँ हैं।

परिसीमन से संबंधित मुद्दे क्या हैं? 

  • परिसीमन के बाद लागू होगा:
    • परिसीमन होने के बाद ही आरक्षण लागू होगा और अगली जनगणना के प्रासंगिक आँकड़े प्रकाशित होने के बाद ही परिसीमन किया जाएगा।
      • 2021 की जनगणना जिसे कोविड महामारी और कई अन्य कारणों से स्थगित कर दिया गया था, उसे अगले आदेश तक वर्ष 2024-25 तक बढ़ा दिया गया है।
      • केंद्रीय गृह मंत्री ने बताया कि परिसीमन के बाद आरक्षण लागू करने का निर्णय यह सुनिश्चित करना है कि परिसीमन आयोग जैसी अर्द्ध-न्यायिक संस्था सार्वजनिक परामर्श के बाद यह तय कर सके कि कौन-सी सीटें आरक्षित करनी हैं।
      • कानून मंत्री ने दावा किया कि तुरंत आरक्षण प्रदान करना संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है, यह देखते हुए कि कोई इसे अदालत में चुनौती दे सकता है और सरकार इस कानून को किसी तकनीकी विफलताओं के कारण निष्क्रिय नहीं होने देगी ।
  • परिसीमन से संबंधित वर्तमान मुद्दे:
    • सामान्यतः अनुमान के मुताबिक, 2011 में हुई पिछली जनगणना के बाद से देश की आबादी करीब 30 फीसदी बढ़ गई है। इसलिये लोकसभा की सीटें भी उसी अनुपात में बढ़ेंगी। 
    • उम्मीद है कि मौजूदा लोकसभा की 543 सीटों में करीब 210 सीटें बढ़ जाएँगी। यानी कुल सीटें 753 के आस-पास होने की संभावना है।

पिछले परिसीमन अभ्यास:

  • 2001 की जनगणना रिपोर्ट के आधार पर, 2022 के परिसीमन आयोग को इस अभ्यास को पूरा करने में लगभग पाँच वर्ष लग गए थे।
    • चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि वर्ष 1952, 1963, 1973 और 2002 में किये गए परिसीमन अभ्यास में किसी निर्वाचन क्षेत्र में महिलाओं की सटीक संख्या पर विचार नहीं किया गया है।
  • 2001 की जनगणना के बाद भी 2002 आयोग द्वारा असम, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और मणिपुर के लिये परिसीमन प्रक्रिया को रोक दिया गया था। 
  • नवगठित केंद्रशासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के लिये परिसीमन की कवायद मार्च 2020 से मई 2022 के बीच दो वर्ष से अधिक समय तक चली।
  • असम में इसे चुनाव आयोग द्वारा 2022 में शुरू किया गया था और अंतिम मसौदा अगस्त 2023 में प्रकाशित किया गया था। हालाँकि इस प्रक्रिया को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई है।
  • जहाँ तक अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड का सवाल है, केंद्र सरकार ने हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया था कि वह दोनों राज्यों के लिये परिसीमन आयोग गठित करने पर "विचार" कर रही है, जबकि मणिपुर में परिसीमन में देरी होगी।

OBC मुद्दा क्या है? 

SC और ST के विपरीत, संविधान लोकसभा या राज्य विधानसभाओं में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिये राजनीतिक आरक्षण प्रदान नहीं करता है।

  • अधिनियम के साथ OBC मुद्दा: महिला आरक्षण अधिनियम, जो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये 33% सीटें आरक्षित करता है, में OBC की महिलाओं के लिये कोटा शामिल नहीं है।
    • OBC, जो आबादी का 41% हिस्सा हैं (2011 की जनगणना के अनुसार) का लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय सरकारों में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व है।
      • वे SC और ST के लिये आरक्षण की तरह ही लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं में अपने लिये अलग कोटा की मांग कर रहे हैं।
        • हालाँकि सरकार ने कानूनी और संवैधानिक बाधाओं का हवाला देते हुए ऐसा कोटा लागू नहीं किया है।
      • उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसी कई राज्य सरकारों ने उन्हें स्थानीय निकाय चुनावों में प्रतिनिधित्व प्रदान किया है।
        • लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने समग्र आरक्षण पर 50% की सीमा लगा दी है (विकास किशनराव गवली बनाम महाराष्ट्र राज्य) जो OBC आरक्षण को 27% तक सीमित कर देता है।
        • यह 50% ऊपरी सीमा इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ फैसले के अनुरूप है।
  • लोकसभा में OBC की ताकत: 17वीं लोकसभा में OBC समुदाय से करीब 120 सांसद हैं। जो लोकसभा की कुल ताकत का लगभग 22% है।
    • संविधान (संशोधन) विधेयक, 2018 (नए अनुच्छेद 330A व 332A का सम्मिलन) प्रतिनिधि निकायों लोगों के सदन और राज्य की विधान सभाओं में OBC के लिये आनुपातिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का प्रस्ताव करता है।

क्या 33% आरक्षण के तहत OBC महिला आरक्षण होना चाहिये?

पक्ष में तर्क

विपक्ष में तर्क

  • OBC महिलाओं को उनकी जाति, वर्ग और लिंग के आधार पर कई प्रकार के भेदभाव व उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। उन्हें अक्सर शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और सामाजिक न्याय तक पहुँच से वंचित कर दिया जाता है।
  • OBC महिलाएँ विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं, धर्मों एवं क्षेत्रों के साथ देश की आबादी का एक बड़ा और विविध वर्ग हैं। उनकी अलग-अलग आवश्यकताएँ और आकांक्षाएँ हैं जिनका अन्य श्रेणियों की महिलाओं द्वारा पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं किया जा सकता है।
  • OBC महिलाओं को ऐतिहासिक रूप से राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर राजनीतिक क्षेत्र में कम प्रतिनिधित्व दिया गया है व हाशिये पर रखा गया है। उन्हें पितृसत्तात्मक मानदंडों, जातिगत पूर्वाग्रहों, हिंसा और धमकी, संसाधनों एवं जागरूकता की कमी व कम आत्मविश्वास जैसी बाधाओं का सामना करना पड़ा है।
  • अधिनियम पहले से ही SC/ST महिलाओं के लिये सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है, जो समाज में सबसे वंचित और कमज़ोर समूह हैं।
  • OBC महिलाओं के लिये एक और कोटा जोड़ने से सामान्य श्रेणी की महिलाओं हेतु उपलब्ध सीटें कम हो जाएँगी, जिन्हें पुरुष-प्रधान राजनीतिक व्यवस्था में भेदभाव एवं चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है।
  • OBC महिलाओं के लिये पृथक आरक्षण का विचार महिला आंदोलन के बीच और अधिक विभाजन एवं संघर्ष उत्पन्न करेगा। यह सामाजिक परिवर्तन के लिये सामूहिक शक्ति के रूप में महिलाओं की एकजुटता तथा एकता को भी कमज़ोर करेगा।
  • OBC महिलाओं के लिये अलग आरक्षण से उनकी समस्याओं जैसे निर्धनता, अशिक्षा, हिंसा, पितृसत्ता, जातिवाद और भ्रष्टाचार के मूल कारणों का समाधान नहीं होगा।
  • यह राजनीतिक क्षेत्र में उनकी प्रभावी भागीदारी और प्रतिनिधित्व की गारंटी भी नहीं देगा, क्योंकि उन्हें अभी भी अपने दलों एवं समुदायों के पुरुष नेताओं द्वारा प्रतीकात्मकता, सह-विकल्प, हेरफेर तथा वर्चस्व जैसी बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।

महिला आरक्षण से संबंधित विभिन्न संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?

  • निचले सदन में महिलाओं को आरक्षण: विधेयक में संविधान में अनुच्छेद 330A शामिल करने का प्रावधान किया गया है, जो अनुच्छेद 330 के प्रावधानों से लिया गया है। यह लोकसभा में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिये सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
    • विधेयक में प्रावधान किया गया कि महिलाओं के लिये आरक्षित सीटें राज्यों या केंद्रशासित प्रदेशों में विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन द्वारा आवंटित की जा सकती हैं।
    • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित सीटों में, विधेयक में रोटेशन के आधार पर महिलाओं के लिये एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने की मांग की गई है।
  • राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये आरक्षण: विधेयक अनुच्छेद 332A प्रस्तुत करता है, जो हर राज्य विधानसभा में महिलाओं के लिये सीटों के आरक्षण को अनिवार्य करता है। इसके अतिरिक्त SC और ST के लिये आरक्षित सीटों में से एक-तिहाई महिलाओं के लिये आवंटित की जानी चाहिये तथा विधान सभाओं के लिये सीधे मतदान के माध्यम से भरी गई कुल सीटों में से एक-तिहाई भी महिलाओं के लिये आरक्षित होनी चाहिये
  • राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में महिलाओं के लिये आरक्षण (239AA में नया खंड): संविधान का अनुच्छेद 239AA केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली को उसके प्रशासनिक और विधायी कार्य के संबंध में राष्ट्रीय राजधानी के रूप में विशेष दर्जा देता है।
    • विधेयक द्वारा अनुच्छेद 239AA(2)(b) में तद्नुसार संशोधन किया गया और इसमें यह जोड़ा गया कि संसद द्वारा बनाए गए कानून दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र पर लागू होंगे।
  • आरक्षण की शुरुआत (नया अनुच्छेद- 334A): इस विधेयक के लागू होने के बाद होने वाली जनगणना के प्रकाशन में आरक्षण प्रभावी होगा। जनगणना के आधार पर महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करने हेतु परिसीमन किया जाएगा।
    • आरक्षण 15 वर्ष की अवधि के लिये प्रदान किया जाएगा। हालाँकि यह संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा निर्धारित तिथि तक जारी रहेगा।
  • सीटों का रोटेशन: महिलाओं के लिये आरक्षित सीटें प्रत्येक परिसीमन के बाद रोटेट की जाएँगी, जैसा कि संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा निर्धारित किया जाएगा।

भारत में राजनीति में महिलाओं हेतु आरक्षण की पृष्ठभूमि क्या है?

  • राजनीति में महिलाओं के लिये आरक्षण का मुद्दा भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के समय सामने आया। वर्ष 1931 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में तीन महिला निकायों, नेताओं- बेगम शाह नवाज़ और सरोजिनी नायडू द्वारा नए संविधान में महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त रूप से जारी आधिकारिक ज्ञापन प्रस्तुत किये गए थे।
  • महिलाओं के लिये राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना में वर्ष 1988 में सिफारिश की गई थी कि महिलाओं को पंचायत से लेकर संसद के स्तर तक आरक्षण प्रदान किया जाना चाहिये।
    • इन सिफारिशों ने संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के ऐतिहासिक अधिनियमन का मार्ग प्रशस्त किया, जो सभी राज्य सरकारों को क्रमशः पंचायती राज संस्थानों एवं इसके प्रत्येक स्तर पर अध्यक्ष पदों तथा शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं हेतु एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने का आदेश देती हैं। इन सीटों में एक-तिहाई सीटें अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिये आरक्षित हैं।
  • महिला आरक्षण विधेयक पर चर्चा वर्ष 1996 से ही की जाती रही है। चूँकि तत्कालीन सरकार के पास बहुमत नहीं था, इसलिये विधेयक को मंज़ूरी नहीं मिल सकी।
  • महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करने हेतु किये गए प्रयास:
    • 1996: पहला महिला आरक्षण विधेयक संसद में पेश किया गया।
    • 1998-2003: सरकार ने 4 अवसरों पर विधेयक पेश किया लेकिन पारित कराने में असफल रही।
    • 2009: विभिन्न विरोधों के बीच सरकार ने विधेयक पेश किया।
    • 2010: केंद्रीय मंत्रिमंडल और राज्यसभा द्वारा पारित।
    • 2014: विधेयक को लोकसभा में पेश किये जाने की उम्मीद थी।
  • राष्ट्रीय महिला सशक्तीकरण नीति (National Policy for the Empowerment of Women), 2001 में कहा गया कि उच्च विधायी निकायों में भी आरक्षण पर विचार किया जाएगा।
  • मई 2013 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने महिलाओं की स्थिति पर विचार करने के लिये एक समिति का गठन किया, जिसने स्थानीय निकायों, राज्य विधानसभाओं, संसद, मंत्रिमंडलीय स्तर और सरकार के सभी निर्णयकारी निकायों में महिलाओं के लिये कम से कम 50% सीटों का आरक्षण सुनिश्चित करने की अनुशंसा की।
  • वर्ष 2015 में ‘भारत में महिलाओं की स्थिति पर रिपोर्ट’ (Report on the Status of Women in India) में दर्ज किया गया कि राज्य विधानसभाओं और संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व निराशाजनक बना हुआ है। इसने भी स्थानीय निकायों, राज्य विधानसभाओं, संसद, मंत्रिमंडलीय स्तर और सरकार के सभी निर्णयकारी निकायों में महिलाओं के लिये कम-से-कम 50% सीटें आरक्षित करने की सिफारिश की।

विधेयक के पक्ष में प्रमुख तर्क क्या है: 

  • आवश्यकता: लोकसभा में 82 महिला सांसद (कुल 15.2%) और राज्यसभा में 31 महिलाएँ (कुल 13%) हैं। जबकि पहली लोकसभा (5%) के बाद से यह संख्या काफी बढ़ी है लेकिन कई देशों की तुलना में अभी भी काफी कम है।
    • हाल के संयुक्त राष्ट्र महिला आँकड़ों के अनुसार, रवांडा (61%), क्यूबा (53%), निकारागुआ (52%) संसद में महिला प्रतिनिधित्व वाले शीर्ष तीन देश हैं। महिला प्रतिनिधित्व के मामले में बांग्लादेश (21%) और पाकिस्तान (20%) भी भारत से आगे हैं।
  • लैंगिक समानता:
    • राजनीति में महिलाओं का उपयुक्त प्रतिनिधित्व लैंगिक समानता की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा। ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट, 2022 के अनुसार, भारत राजनीतिक सशक्तीकरण के मामले में 146 देशों की सूची में 48वें स्थान पर था। 
    • इस रैंक के बावजूद उसका स्कोर 0.267 के अत्यंत निम्न स्तर पर था। इस श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग वाले कुछ देशों का स्कोर इससे बहुत बेहतर है। उदाहरण के लिये, आइसलैंड 0.874 के स्कोर के साथ पहले स्थान पर रहा, जबकि बांग्लादेश 0.546 के स्कोर के साथ 9वें स्थान पर था।
  • ऐतिहासिक रूप से कम प्रतिनिधित्व:
    • लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या पहली लोकसभा में 5% से बढ़कर 17वीं लोकसभा में 15% हो गई; लेकिन यह संख्या अभी भी बहुत कम है।
    • पंचायतों में महिलाओं के लिये आरक्षण के प्रभाव के बारे में वर्ष 2003 के एक अध्ययन से पता चला कि आरक्षण नीति के तहत निर्वाचित महिलाओं ने स्त्रियों से संबद्ध सार्वजनिक हित या ‘पब्लिक गुड्स’ में अधिक निवेश किया।
    • कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय संबंधी स्थायी समिति (2009) ने पाया कि स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिये सीटों के आरक्षण ने उन्हें सार्थक योगदान देने में सक्षम बनाया।
  • महिलाओं का स्व-प्रतिनिधित्व और स्व-निर्णय का अधिकार:
    • यदि किसी समूह को राजनीतिक व्यवस्था में आनुपातिक रूप से प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं होता है तो नीति-निर्माण को प्रभावित करने की उसकी क्षमता सीमित हो जाती है। महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर कन्वेंशन (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women) निर्दिष्ट करता है कि राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन में महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव को समाप्त किया जाना चाहिये।
    • विभिन्न सर्वेक्षणों से पता चलता है कि पंचायती राज की महिला प्रतिनिधियों ने गाँवों में समाज के विकास एवं समग्र कल्याण की दिशा में सराहनीय कार्य किया है और उनमें से कई निश्चित रूप से वृहत स्तर पर कार्य करने की इच्छा रखती हैं, लेकिन प्रचलित राजनीतिक संरचना में उन्हें विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • विविध परिप्रेक्ष्य:
    • एक अधिक विविधतापूर्ण विधानमंडल, जिसमें महिलाएँ उल्लेखनीय संख्या में शामिल हों, निर्णय लेने की प्रक्रिया में व्यापक दृष्टिकोण का प्रवेश करा सकता है। यह विविधता बेहतर नीति निर्माण और शासन की ओर ले जा सकती है।
  • महिलाओं का सशक्तीकरण:
    • राजनीति में महिला आरक्षण विभिन्न स्तरों पर महिलाओं को सशक्त बनाता है। यह न केवल अधिकाधिक महिलाओं को राजनीति में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करता है बल्कि महिलाओं को अन्य क्षेत्रों में भी नेतृत्व की भूमिका निभाने के लिये प्रेरित करता है।
  • महिला संबंधी मुद्दों को बढ़ावा:
    • राजनीति में सक्रिय महिलाएँ प्रायः उन मुद्दों को प्राथमिकता देती हैं और उनकी वकालत करती हैं जो महिलाओं को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं, जैसे लिंग-आधारित हिंसा, महिलाओं का स्वास्थ्य, शिक्षा एवं आर्थिक सशक्तीकरण उनकी उपस्थिति से नीतिगत विमर्शों में इन मुद्दों को प्राथमिकता प्राप्त हो सकती है।
  • ‘रोल मॉडल’:
    • राजनीति में सक्रिय महिला नेत्रियाँ बालिकाओं के लिये ‘रोल मॉडल’ के रूप में कार्य कर सकती हैं, जिससे उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व की भूमिका की आकांक्षा रखने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है। राजनीति में प्रतिनिधित्व रूढ़िवादिता को समाप्त कर सकता है और भावी पीढ़ियों को प्रेरित कर सकता है।
    • वर्ष 1966 से 1977 तक भारत की पहली एवं एकमात्र महिला प्रधानमंत्री के रूप में कार्यरत रहीं इंदिरा गांधी और भारत की दूसरी महिला विदेश मंत्री (इंदिरा गांधी के बाद) रहीं सुषमा स्वराज ने देश की बालिकाओं के लिये ऐसे ही ‘रोल मॉडल’ प्रस्तुत किये।

विधेयक के विपक्ष में प्रमुख तर्क क्या हैं?

  • महिलाएँ जाति समूह की तरह कोई सजातीय समुदाय नहीं हैं। इसलिये, जाति-आधारित आरक्षण के लिये जो तर्क दिये जाते हैं, वे महिला आरक्षण के पक्ष में नहीं दिये जा सकते।
  • महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करने का कुछ लोगों द्वारा इस आधार पर विरोध किया जाता है कि ऐसा करना संविधान में शामिल समता के अधिकार की गारंटी का उल्लंघन है। उनका दावा है कि यदि आरक्षण लागू हुआ तो महिलाएँ योग्यता के आधार पर प्रतिस्पर्द्धा नहीं कर पाएँगी, जिससे समाज में उनका स्थिति कमज़ोर हो सकती है।

महिलाओं का प्रभावी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिये और क्या किया जा सकता है? 

  • स्वतंत्र निर्णयन को सुदृढ़ करना:
    • एक स्वतंत्र निगरानी प्रणाली या समितियाँ स्थापित की जानी चाहिये जो पारिवारिक सदस्यों द्वारा महिला प्रतिनिधियों की निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावित करने पर स्पष्ट रूप से रोक लगाएँ।
    • पितृसत्तात्मक मानसिकता के प्रभाव को कम कर इसे प्रवर्तित किया जा सकता है।
  • जागरूकता और शिक्षा की वृद्धि:
    • महिलाओं में उनके अधिकारों और राजनीति में उनकी भागीदारी के महत्त्व के बारे में जागरूकता उत्पन्न करना आवश्यक है। शैक्षिक कार्यक्रम और जागरूकता अभियान महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने में सहायता कर सकते हैं।
  • लिंग आधारित हिंसा और उत्पीड़न को संबोधित करना:
    • लिंग-आधारित हिंसा और उत्पीड़न राजनीति में महिलाओं की भागीदारी की राह की बड़ी बाधाएँ हैं। नीतिगत एवं विधिक उपायों के माध्यम से इन मुद्दों को संबोधित करने से राजनीति में महिलाओं के लिये एक सुरक्षित और अधिक सहयोगी वातावरण तैयार हो सकता है।
  • चुनावी प्रक्रिया में सुधार:
    • आनुपातिक प्रतिनिधित्व और अधिमान्य मतदान प्रणाली शुरू करने जैसे सुधारों के माध्यम से अधिकाधिक महिलाओं का निर्वाचन सुनिश्चित होगा, जिससे राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने में सहायता मिल सकती है।
    • ये भारतीय राजनीति में महिलाओं की संख्या बढ़ाने के कुछ उपाय मात्र हैं। दीर्घकालिक परिवर्तन को प्रभावी करने के लिये एक बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता है जो विविध चुनौतियों को हल कर सके।

  सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. परिसीमन आयोग के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2012)

  1. परिसीमन आयोग के आदेशों को किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
  2. परिसीमन आयोग के आदेश जब लोकसभा अथवा राज्य विधानसभा के सम्मुख रखे जाते हैं, तब उन आदेशों में कोई संशोधन नहीं किया जा सकता।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)

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