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भारतीय राजनीति

महिला आरक्षण विधेयक, 2023 में OBC संबंधी चिंताएँ

  • 28 Sep 2023
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

महिला आरक्षण विधेयक, 2023, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का उप-वर्गीकरण, सर्वोच्च न्यायालय, गीता मुखर्जी रिपोर्ट, मंडल आयोग, NCBC के लिये संवैधानिक दर्जा, न्यायमूर्ति जी. रोहिणी आयोग

मेन्स के लिये:

OBC महिलाओं के लिये सीटों के आरक्षण के पक्ष और विपक्ष में तर्क, OBC आरक्षण का ऐतिहासिक विकास

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में लोकसभा और राज्यसभा से पारित महिला आरक्षण विधेयक, 2023 में अन्य पिछड़ा वर्ग की महिलाओं के लिये कोटा खत्म किया जाना चर्चा का विषय बना हुआ है। आलोचकों ने इस कदम को प्रमुख सरकारी पदों पर OBC के निम्न प्रतिनिधित्व को लेकर चिंता के रूप में इंगित किया है।

अन्य पिछड़े वर्गों के प्रतिनिधित्व संबंधी चिंताएँ:

  • संदर्भ: 
    • महिला आरक्षण विधेयक 2023, जो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये 33% सीटें आरक्षित करता है, में OBC की महिलाओं के लिये कोई प्रावधान नहीं है।
      • इसके अलावा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के विपरीत भारतीय संविधान लोकसभा अथवा राज्य विधानसभाओं में OBC के लिये राजनीतिक आरक्षण का प्रावधान नहीं करता है।
  • प्रमुख मुद्दे
    • आलोचकों का तर्क है कि OBC, जो आबादी का 41% हिस्सा हैं (राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन के वर्ष 2006 के सर्वे के अनुसार), का लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय सरकारों में प्रतिनिधित्व अपर्याप्त है।
      • ये एससी और एसटी के लिये आरक्षण की तरह ही लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अपने लिये अलग कोटा की मांग कर रहे हैं।
      • हालाँकि सरकार ने विधिक एवं संवैधानिक बाधाओं का हवाला देते हुए ऐसा कोटा लागू नहीं किया है।
    • उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसी कई राज्य सरकारों ने इन्हें स्थानीय निकाय चुनावों में उचित प्रतिनिधित्व प्रदान किया है।
      • लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने समग्र आरक्षण पर 50% की सीमा आरोपित की है (विकास किशनराव गवली बनाम महाराष्ट्र राज्य), जिसमें OBC आरक्षण को 27% तक सीमित किया गया है।
        • 50% की यह ऊपरी सीमा इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ फैसले के अनुरूप है।
        • इस निर्णय की इस आधार पर आलोचना की गई कि 27% आरक्षण, राज्यों में OBC जनसख्या के अनुपात में नहीं है। 
  • लोकसभा में OBC सदस्यों की वर्तमान संख्या:
    • 17वीं लोकसभा में OBC समुदाय से लगभग 120 सांसद हैं, जो लोकसभा की कुल सदस्य क्षमता का लगभग 22% है।

  • गीता मुखर्जी रिपोर्ट:
    • गीता मुखर्जी रिपोर्ट में महिला आरक्षण विधेयक की व्यापक समीक्षा की गई थी जिसे पहली बार वर्ष 1996 में संसद में प्रस्तुत किया गया था।
    • इस रिपोर्ट में विधेयक में सुधार हेतु सात सिफारिशें की गईं थीं, जिसका उद्देश्य लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये 33% आरक्षण प्रदान करना था।
    • कुछ सिफारिशें इस प्रकार हैं:
      • 15 वर्ष की अवधि के लिये आरक्षण
      • एंग्लो इंडियंस के लिये उप-आरक्षण भी शामिल हो
      • ऐसे मामलों में आरFक्षण जहाँ राज्य में लोकसभा में तीन से कम सीटें हैं (या अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिये तीन से कम सीटें हैं)
      • इसमें दिल्ली विधानसभा के लिये आरक्षण भी शामिल है
      • राज्यसभा और विधानपरिषदों में सीटों का आरक्षण
      • संविधान द्वारा OBC के लिये आरक्षण का विस्तार करने के बाद OBC महिलाओं को उप-आरक्षण प्रदान करना

OBC महिलाओं के लिये सीटों के आरक्षण के पक्ष और विपक्ष में तर्क:

पक्ष में तर्क

विरुद्ध तर्क

  • उन्हें अपनी जाति, वर्ग और लिंग के आधार पर कई प्रकार के भेदभाव व उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। प्रायः उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, राजनीतिक प्रतिनिधित्व तथा सामाजिक न्याय तक पहुँच से वंचित कर दिया जाता है।
  • वे विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं, धर्मों और क्षेत्रों के साथ आबादी के एक बड़े एवं विविध वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनकी अलग-अलग आवश्यकताएँ और आकांक्षाएँ हैं जिनका अन्य श्रेणियों की महिलाओं द्वारा पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं किया जा सकता है।
  • उन्हें ऐतिहासिक रूप से राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर राजनीतिक क्षेत्र में कम प्रतिनिधित्व दिया गया है तथा हाशिये पर रखा गया है। उन्हें पितृसत्तात्मक मानदंडों, जातिगत पूर्वाग्रहों, हिंसा एवं धमकी, संसाधनों तथा  जागरूकता की कमी व कम आत्मविश्वास जैसी बाधाओं का सामना करना पड़ा है।
  • विधेयक में पहले से ही अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिये सीटों के आरक्षण का प्रावधान है, जो कि समाज में सबसे वंचित एवं कमज़ोर समूह हैं। OBC महिलाओं के लिये एक और कोटा जोड़ने से सामान्य श्रेणी की महिलाओं के लिये उपलब्ध सीटें कम हो जाएंगी, जिन्हें पुरुष-प्रधान राजनीतिक व्यवस्था में भेदभाव तथा चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है।
  • OBC महिलाओं के लिये अलग आरक्षण का विचार महिला आंदोलन के बीच और अधिक विभाजन एवं संघर्ष पैदा करेगा। यह सामाजिक परिवर्तन के लिये सामूहिक शक्ति के रूप में महिलाओं की एकजुटता व एकता को भी कमज़ोर करेगा।
  • OBC महिलाओं के लिये अलग आरक्षण से उनकी समस्याओं जैसे- गरीबी, अशिक्षा, हिंसा, पितृसत्ता, जातिवाद और भ्रष्टाचार के मूल कारणों का समाधान नहीं होगा।
  • यह राजनीतिक क्षेत्र में उनकी प्रभावी भागीदारी और प्रतिनिधित्व की गारंटी भी नहीं देगा, क्योंकि उन्हें अभी भी अपने दलों तथा समुदायों के पुरुष नेताओं द्वारा प्रतीकात्मकता, सह-विकल्प, हेर-फेर एवं वर्चस्व जैसी बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।

भारत में OBC आरक्षण का ऐतिहासिक विकास:

  • कालेलकर आयोग (1953): यह यात्रा वर्ष 1953 में कालेलकर आयोग की स्थापना के साथ शुरू हुई, जिसने राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जाति (Scheduled Castes- SC) और अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes- ST) से परे पिछड़े वर्गों को मान्यता देने का पहला उदाहरण पेश किया।
  • मंडल आयोग (1980): वर्ष 1980 में मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट में OBC आबादी 52% होने का अनुमान लगाया गया था और देशभर में 1,257 समुदायों को पिछड़े वर्ग के रूप में पहचाना गया। इसने मौजूदा कोटा (जो पहले केवल SC/ST के लिये लागू था) को 22.5% से बढ़ाकर 49.5% करने का सुझाव दिया।
    • इन सुझावों के बाद केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 16(4) के तहत OBC के लिये केंद्रीय सिविल सेवा में 27% सीटें आरक्षित करते हुए आरक्षण नीति लागू की। 
    • यह नीति अनुच्छेद 15(4) के तहत केंद्र सरकार के शैक्षणिक संस्थानों में भी लागू की गई थी।
  • "क्रीमी लेयर" बहिष्करण (2008): आरक्षण का लाभ सबसे वंचित व्यक्तियों तक पहुँचे यह सुनिश्चित करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय ने OBC समुदाय में से "क्रीमी लेयर" को आरक्षण से बाहर करने का निर्देश दिया।
  • NCBC के लिये संवैधानिक स्थिति (2018): 102वें संविधान संशोधन अधिनियम ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया, जिससे OBC सहित पिछड़े वर्गों के हितों की सुरक्षा हेतु इसके अधिकार और मान्यता में वृद्धि हुई।
  • न्यायमूर्ति जी. रोहिणी आयोग: संविधान के अनुच्छेद 340 के अनुसार, 2 अक्तूबर, 2017 को इसका गठन किया गया और न्यायमूर्ति जी. रोहिणी की अध्यक्षता वाले आयोग ने लगभग छह वर्ष बाद अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की जातियों के उप-वर्गीकरण के लिये लंबे समय से प्रतीक्षित रिपोर्ट सामाजिक न्याय तथा अधिकारिता मंत्रालय को सौंपी।
    • रिपोर्ट OBC के बीच उप-वर्गीकरण की अनिवार्यता को रेखांकित करती है।
    • इस उप-वर्गीकरण का उद्देश्य ऐतिहासिक रूप से कम प्रतिनिधित्व वाले OBC समुदायों के लिये अवसरों को बढ़ाने हेतु मौजूदा 27% आरक्षण सीमा के अंतर्गत आरक्षण आवंटित करना है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न.  भारत के निम्नलिखित संगठनों/निकायों पर विचार कीजिये: (2023)

  1. राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग
  2. राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग
  3. राष्ट्रीय विधि आयोग
  4. राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग

उपर्युक्त में से कितने सांविधानिक निकाय हैं? 

(a) केवल एक 
(b) केवल दो
(c) केवल तीन
(d) सभी चार 

उत्तर: (a)

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