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सामाजिक न्याय

मंडल आयोग

  • 24 Apr 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 15, अनुच्छेद 16, आरक्षण, इंद्रा साहनी केस, OBC आरक्षण, मंडल आयोग, रोहिणी आयोग।

मेन्स के लिये:

मंडल आयोग, आरक्षण: लाभ और चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?

  • बिहार में शुरू हुए जाति सर्वेक्षण के दूसरे चरण के साथ ही कई अन्य राजनीतिक बहसों के कारण मंडल राजनीति एक बार फिर सुर्खियों में आ गई है।

मंडल राजनीति और मंडल आयोग:

  • परिचय:
    • मंडल राजनीति का आशय 1980 के दशक में उभरे ऐसे राजनीतिक आंदोलन से है जिसमें सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में सामाजिक एवं आर्थिक रूप से वंचित समुदायों (विशेष रूप से अन्य पिछड़ा वर्ग- ओबीसी) को शामिल करने पर बल दिया गया था।
    • इस आंदोलन का नाम मंडल आयोग के नाम पर रखा गया था।
  • मंडल आयोग:
    • मंडल आयोग या दूसरा सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग आयोग को वर्ष 1979 में भारत के ‘सामाजिक या शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों’ के लोगों की पहचान करने के लिये गठित किया गया था।
      • इसकी अध्यक्षता बी.पी. मंडल ने की थी और इसने वर्ष 1980 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की तथा वर्ष 1990 में इसे लागू किया गया था।
    • इस आयोग की रिपोर्ट से पता चला कि देश की 52% आबादी ओबीसी वर्ग से संबंधित है।
    • प्रारंभ में आयोग ने तर्क दिया कि सरकारी सेवा में आरक्षण के प्रतिशत को इस प्रतिशत से मेल खाना चाहिये।
      • हालाँकि यह एम.आर. बालाजी बनाम मैसूर राज्य मामले (1963) में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ गया, जिसने 50% की सीमा निर्धारित की थी। SC और ST के लिये पहले से ही 22.5% आरक्षण था।
    • इसलिये OBC के लिये आरक्षण को 27% पर सीमित कर दिया गया था।
      • आयोग ने गैर-हिंदुओं के बीच पिछड़े वर्गों की भी पहचान की।
  • मंडल आयोग की सिफारिशें:
    • OBC को सार्वजनिक क्षेत्र और सरकारी नौकरियों में 27% आरक्षण प्रदान किया जाना चाहिये।
    • उन्हें सार्वजनिक सेवाओं के सभी स्तरों पर पदोन्नति में समान 27% आरक्षण प्रदान किया जाना चाहिये।
    • आरक्षित कोटा, यदि पूरा नहीं किया गया है, को 3 वर्ष की अवधि के लिये आगे बढ़ाया जाना चाहिये।
    • OBC को SC और ST के समान आयु में छूट प्रदान की जानी चाहिये।
    • सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, बैंकों, सरकारी अनुदान प्राप्त निजी क्षेत्र के उपक्रमों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में आरक्षण प्रदान किया जाना चाहिये।
    • सरकार इन सिफारिशों को लागू करने के लिये आवश्यक कानूनी प्रावधान करे।
  • मंडल आयोग का प्रभाव:
    • मंडल आयोग के कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप सरकार को व्यापक विरोध का सामना करना पड़ा और जब सरकार ने इसे लागू करने का निर्णय लिया तो जहाँ छात्रों ने विरोध में आत्मदाह किया।
    • कार्यान्वयन को अंततः इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामले में चुनौती दी गई थी।

इंदिरा साहनी केस में सर्वोच्च न्यायालय का रुख:

  • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने OBC के लिये 27 प्रतिशत आरक्षण को संवैधानिक रूप से वैध माना लेकिन कुछ शर्तों के साथ:
    • न्यायालय ने कहा कि आरक्षण 50 प्रतिशत कैप की सीमा में ही होना चाहिये और पदोन्नति में इसे बढ़ाया नहीं जाना चाहिये।
    • क्रीमी लेयर की अवधारणा भी न्यायालय द्वारा समुदाय के संपन्न लोगों को बाहर करने के लिये पेश की गई थी।
    • कैरी फॉरवर्ड नियम (जिसके द्वारा आगामी वर्ष में अपूर्ण रिक्तियों को भरा जाता है) को 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन नहीं करना चाहिये।

मंडल आयोग की विशेषताएँ:

  • प्रतिनिधित्त्व में वृद्धि: मंडल आयोग ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में SEBC के प्रतिनिधित्त्व को बढ़ाने में मदद की।
    • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2014-2021 के दौरान सीधी भर्ती के माध्यम से कुल नियुक्ति के खिलाफ OBC का प्रतिनिधित्त्व लगातार 27 प्रतिशत से ऊपर था।
  • शिक्षा तक पहुँच: आरक्षण नीति ने कई OBC छात्रों को उच्च शिक्षा तक पहुँच में सक्षम बनाया है। इसके परिणामस्वरूप विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में OBC छात्रों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
    • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2014-2021 की अवधि के दौरान 2014-15 से उच्च शिक्षण संस्थानों में OBC का नामांकन लगातार बढ़ रहा है।
  • सामाजिक न्याय: मंडल आयोग की सिफारिशें सामाजिक न्याय के सिद्धांतों पर आधारित थीं और इसका उद्देश्य समाज के सभी वर्गों, विशेषकर उन लोगों को समान अवसर प्रदान करना था जो ऐतिहासिक रूप से वंचित रहे हैं।

मंडल आयोग के दोष:

  • समाज के उत्थान पर सीमित प्रभाव: इसका प्रभाव बहुत कम समुदायों तक सीमित रहा है। न्यायमूर्ति रोहिणी जी. आयोग के अनुसार, OBC में लगभग 6,000 जातियों और समुदायों में से केवल 40 समुदायों को केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश एवं सिविल सेवाओं में भर्ती हेतु 50% आरक्षण का लाभ मिला।
  • राजनीतिकरण: राजनेताओं ने प्रायः आरक्षण को अपने वोट बैंक की राजनीति के रूप में इस्तेमाल किया है। वर्ष 1980 के दशक के दौरान मंडल आयोग को राजनीति का एक नया रूप राजनीति-मंडल देते हुए अत्यधिक राजनीतिकरण किया गया था।
    • अभी भी इसका प्रयोग एक राजनीतिक उपकरण के रूप में किया जाता है। हाल ही में कर्नाटक में चुनाव प्रचार के दौरान एक राजनेता ने SC/ST/OBC आरक्षण पर 50% की सीमा को हटाने की मांग की है।
  • योग्यता/मेरिट पर नकारात्मक प्रभाव: आरक्षण नीति का योग्यता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है क्योंकि इस कारण कई योग्य उम्मीदवारों को सीट प्राप्त नहीं हुई, जबकि कम योग्यता वाले उम्मीदवारों का चयन कर लिया गया था।

आगे की राह

  • आरक्षण नीति की समय-समय पर समीक्षा: इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामले (1992) में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्देशित इसके प्रभाव का आकलन करने के लिये आरक्षण नीति की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिये।
  • शिक्षा के प्रारंभिक स्तर में सुधार: सरकार को शिक्षा के प्रारभिक स्तर में सुधार करने का प्रयास करते रहना चाहिये ताकि उच्च स्तर पर आरक्षण आसानी से समाप्त हो सके।
  • निजी क्षेत्र में नौकरी के अवसर बढ़ाना: सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र और रोज़गार के लिये आरक्षण पर निर्भरता को कम करने हेतु निजी क्षेत्र में नौकरी के अवसर बढ़ाने के लिये प्रयास करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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