इन्फोग्राफिक्स
भारतीय अर्थव्यवस्था
कृषि योजनाओं का युक्तिकरण एवं ऑयल सीड मिशन
प्रारंभिक परीक्षा के लिये:राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन - ऑयल सीड, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (PM-RKVY), कृषोन्नति योजना (KY), कृषि वानिकी, खाद्य सुरक्षा, जलवायु अनुकूल कृषि, पोषण सुरक्षा, आत्मनिर्भर भारत, NMEO-OP (ऑयल पाम), इंटरक्रॉपिंग, जीनोम एडिटिंग, SATHI पोर्टल, FPOs, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (PM-AASHA)। मुख्य परीक्षा के लिये:कृषि योजनाओं के युक्तिकरण का महत्त्व और तिलहनों में आत्मनिर्भरता हेतु राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन - ऑयल सीड (NMEO-ऑयल सीड) का कार्यान्वयन। |
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 18 केंद्र प्रायोजित योजनाओं को युक्तिसंगत बनाने के साथ राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन - ऑयल सीड (NMEO-ऑयल सीड) को मंजूरी दी।
योजनाओं के युक्तिकरण के संबंध में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- योजनाओं का वर्गीकरण: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत सभी केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSS) को दो प्रमुख योजनाओं में वर्गीकृत किया गया है, अर्थात् प्रधानमंत्री राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (PM-RKVY) और कृषोन्नति योजना (KY)।
योजना की मुख्य विशेषताएँ:
- PM-RKVY: इस योजना का उद्देश्य देश भर में धारणीय कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना है।
- इसमें मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, वर्षा आधारित क्षेत्र विकास, कृषि वानिकी, फसल विविधीकरण सहित विभिन्न पहल शामिल हैं।
- PM-RKVY में निम्नलिखित योजनाएँ शामिल हैं: मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, वर्षा आधारित क्षेत्र विकास, कृषि वानिकी, परंपरागत कृषि विकास योजना, प्रति बूंद अधिक फसल, फसल विविधीकरण कार्यक्रम, RKVY DPR घटक, कृषि स्टार्टअप के लिये एसेलिरेटर फंड।
- कृषोन्नति योजना (KY): यह खाद्य सुरक्षा और कृषि आत्मनिर्भरता पर केंद्रित है।
- व्यापक रणनीतिक दस्तावेज: राज्यों को अपने कृषि क्षेत्र के लिये एक व्यापक रणनीतिक दस्तावेज तैयार करने का अवसर दिया गया है।
- इससे जलवायु अनुकूल कृषि पर ध्यान देते हुए फसल उत्पादन और उत्पादकता में सुधार लाने तथा कृषि उत्पादों के लिये मूल्य श्रृंखला विकसित करने को बढ़ावा मिलता है।
- युक्तिकरण का उद्देश्य:
- दक्षता और एकीकरण: कृषि पहलों हेतु अधिक एकीकृत दृष्टिकोण को बढ़ावा मिल सके।
- उभरती कृषि चुनौतियाँ: पोषण सुरक्षा, स्थिरता, जलवायु अनुकूलन, मूल्य श्रृंखला विकास एवं निजी क्षेत्र की भागीदारी से संबंधित कृषि की उभरती चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित किया जा सके।
- राज्य-विशिष्ट रणनीतिक योजना: राज्यों को अपनी विशिष्ट कृषि आवश्यकताओं के अनुरूप रणनीतिक योजना तैयार करने की स्वतंत्रता मिल सके।
- सुव्यवस्थित अनुमोदन प्रक्रिया: राज्यों की वार्षिक कार्य योजना (AAP) को व्यक्तिगत योजना-वार AAP को अनुमोदित करने के बजाय एक बार में अनुमोदित किया जा सके।
NMEO-ऑयल सीड के संबंध में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय: इसे खाद्य तेल के आयात पर निर्भरता कम करने के क्रम में घरेलू तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देने हेतु कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया है।
- यह आत्मनिर्भर भारत के व्यापक लक्ष्य के अनुरूप होने के साथ देश में प्राथमिक तथा द्वितीयक तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
- अवधि: इस मिशन को वर्ष 2024-25 से 2030-31 तक की सात वर्ष की अवधि हेतु शुरू किया गया है।
- उद्देश्य: NMEO-OP (ऑयल पाम) के साथ मिलकर इस मिशन का लक्ष्य वर्ष 2030-31 तक घरेलू खाद्य तेल उत्पादन को 25.45 मिलियन टन तक बढ़ाना है, जिससे भारत की अनुमानित घरेलू आवश्यकता का लगभग 72% पूरा हो सकेगा।
- इसका उद्देश्य चावल और आलू की परती भूमि को लक्षित करने के साथ अंतर-फसल को बढ़ावा देने एवं फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने के साथ तिलहन की खेती को अतिरिक्त 40 लाख हेक्टेयर तक विस्तारित करना है।
- NMEO-OP (ऑयल पाम) का लक्ष्य वर्ष 2025-26 तक कच्चे पाम तेल का उत्पादन 11.20 लाख टन तक बढ़ाना है।
- प्रमुख लक्षित क्षेत्र:
- प्राथमिक तिलहन फसलों का उत्पादन: यह प्रमुख प्राथमिक तिलहन फसलों जैसे कि रेपसीड-सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी और तिल उत्पादन को बढ़ाने पर केंद्रित है।
- इसका लक्ष्य प्राथमिक तिलहन उत्पादन को वर्ष 2022-23 के 39 मिलियन टन से बढ़ाकर वर्ष 2030-31 तक 69.7 मिलियन टन तक करना है।
- द्वितीयक स्रोतों से निष्कर्षण: इसका उद्देश्य कपास के बीज, चावल की भूसी और वृक्ष जनित तेलों जैसे द्वितीयक स्रोतों से तेल के संग्रहण एवं निष्कर्षण दक्षता को बढ़ावा देना है।
- तकनीकी हस्तक्षेप: उच्च गुणवत्ता वाले बीज विकसित करने और उत्पादकता बढ़ाने के लिये जीनोम एडिटिंग जैसी अत्याधुनिक तकनीकों का लाभ उठाने पर ध्यान केंद्रित करना।
- प्राथमिक तिलहन फसलों का उत्पादन: यह प्रमुख प्राथमिक तिलहन फसलों जैसे कि रेपसीड-सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी और तिल उत्पादन को बढ़ाने पर केंद्रित है।
- बीज प्रबंधन के लिये SATHI पोर्टल: बीज प्रमाणीकरण, पता लगाने की क्षमता और समग्र सूची (SATHI) पोर्टल के माध्यम से 5 वर्षीय रोलिंग बीज योजना शुरू की जाएगी।
- इससे राज्यों को बीज उत्पादक एजेंसियों (FPOs, सहकारी समितियों और बीज निगमों) के साथ समन्वय स्थापित करने में मदद मिलेगी।
- बीज उत्पादन के बुनियादी ढाँचे में सुधार के क्रम में सार्वजनिक क्षेत्र में 65 नए बीज केंद्रों के साथ 50 बीज भंडारण इकाइयाँ स्थापित की जाएंगी।
- मूल्य श्रृंखला क्लस्टर: 347 ज़िलों में 600 से अधिक मूल्य श्रृंखला क्लस्टर विकसित किये जाएंगे, जिससे प्रतिवर्ष 10 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र कवर होगा।
- इन क्लस्टरों के किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले बीज, बेहतर कृषि प्रथाओं (GAP) का प्रशिक्षण तथा मौसम एवं कीट प्रबंधन से संबंधित परामर्श सेवाएँ उपलब्ध होंगी।
- मूल्य शृंखला क्लस्टर से आशय एक विशिष्ट उद्योग के तहत परस्पर संबंधित व्यवसायों, आपूर्तिकर्त्ताओं और संस्थानों का नेटवर्क से है जो उत्पादकता, नवाचार और प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करने के लिये सहयोग करते हैं।
- फसल-उपरांत सहायता: कपास के बीज, चावल की भूसी, मक्का तेल और वृक्ष-जनित तेलों (TBO) से प्राप्ति बढ़ाने के लिये फसल-उपरांत इकाइयों की स्थापना या उन्नयन के लिये FPO, सहकारी समितियों और उद्योग के अभिकर्त्ताओं को सहायता प्रदान की जाएगी।
भारत के तिलहन उत्पादन की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- तिलहन उत्पादन: भारत विश्व में चौथा सबसे बड़ा तिलहन उत्पादक है। भारत में तिलहन की कृषि के अंतर्गत वैश्विक क्षेत्रफल का 20.8% भाग आता है, जिसका वैश्विक उत्पादन में योगदान 10% है।
- वर्ष 2022-23 में उत्पादन रिकॉर्ड 413.55 लाख टन तक पहुँच गया, जो विगत वर्ष की तुलना में 33.92 लाख टन अधिक है।
- भारत मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी, तिल, नाइज़र बीज, सरसों और कुसुम सहित विभिन्न प्रकार के तिलहन का उत्पादन करता है।
- वर्षा आधारित कृषि: भारत की लगभग 72% तिलहन कृषि वर्षा आधारित कृषि तक ही सीमित है, जो मुख्य रूप से छोटे किसानों द्वारा की जाती है, जिसके कारण उत्पादकता कम होती है।
- प्रमुख तिलहन उत्पादक राज्य: राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र वर्ष 2021-22 में अग्रणी उत्पादक थे, जिन्होंने क्रमशः 23%, 21%, 18% और 16% का योगदान दिया।
- तिलहन निर्यात: वर्ष 2022-23 में तिलहन निर्यात 1.33 बिलियन अमेरिकी डॉलर का होगा।
- प्रमुख निर्यात गंतव्यों में इंडोनेशिया, वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया, थाईलैंड, संयुक्त अरब अमीरात और बाँग्लादेश शामिल हैं।
- तिलहन आयात: भारत तिलहन के आयात पर बहुत अधिक निर्भर है, जो खाद्य तेलों की घरेलू मांग का 57% हिस्सा है।
तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये पहले क्या उपाय किये गए हैं?
- राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन-ऑयल पाम (NMEO-OP): NMEO-OP को वर्ष 2021 में लॉन्च किया गया था, जिसका उद्देश्य पूर्वोत्तर राज्यों पर विशेष ध्यान देते हुए वर्ष 2025-26 तक पाम ऑयल के क्षेत्र को 10 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाना है।
- इसका लक्ष्य वर्ष 2025-26 तक कच्चे पाम ऑयल का उत्पादन बढ़ाकर 11.20 लाख टन करना है।
- वर्ष 2025-26 तक 19 किलोग्राम/व्यक्ति/वर्ष का उपभोग स्तर बनाए रखने के लिये उपभोक्ता जागरूकता बढ़ाना।
- तिलहन के लिये MSP: अनिवार्य खाद्य तिलहनों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में वृद्धि की गई है, प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (PM-ASHA) जैसी योजनाएँ यह सुनिश्चित करती हैं कि तिलहन किसानों को उचित मूल्य प्राप्त हो।
- आयात शुल्क संरक्षण: घरेलू उत्पादकों को सस्ते आयात से बचाने और स्थानीय कृषि को प्रोत्साहित करने के लिये खाद्य तेलों पर 20% आयात शुल्क लगाया गया है।
निष्कर्ष
केंद्र प्रायोजित योजनाओं को युक्तिसंगत बनाने और NMEO-तिलहन को आरंभ करने का उद्देश्य कृषि प्रयासों को सुव्यवस्थित करना, तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देना और आयात पर निर्भरता को कम करना है। आधुनिक तकनीक को एकीकृत करके, कृषि का विस्तारण करके और उसके उन्मूलन के पश्चात् बुनियादी ढाँचे का समर्थन करके, ये पहल भारत के खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लक्ष्य के साथ संरेखित हैं।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: राष्ट्रीय खाद्य तेल-तिलहन मिशन (NMEO-तिलहन) भारत को तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने में किस प्रकार सहायक हो सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रारंभिक परीक्षाप्रश्न: जलवायु-अनुकूल कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) |
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अमेरिका-भारत परमाणु सहयोग और स्माॅल मॉड्यूलर रिएक्टर
प्रारंभिक परीक्षा के लिये:स्माॅल मॉड्यूलर रिएक्टर, यूरेनियम, जीवाश्म ईंधन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, भारत-अमेरिका परमाणु समझौता, परमाणु अप्रसार संधि, अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी मुख्य परीक्षा के लिये:परमाणु ऊर्जा से संबंधित भारत का विकास, परमाणु ऊर्जा क्षमता बढ़ाने के भारत के तरीके। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल के घटनाक्रमों से भारत और अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु समझौते के पुनरुद्धार पर प्रकाश पड़ा है जो होल्टेक इंटरनेशनल के स्माॅल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR-300) पर केंद्रित है।
- होलटेक का उद्देश्य भारत की ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिये भारत के साथ सहयोग करना तथा SMR परिनियोजन के लिये मौजूदा कोयला संयंत्रों का उपयोग कर एवं संयुक्त विनिर्माण की संभावना तलाश कर स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करना है, जिससे भारत के स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण उद्देश्यों के साथ समन्वय स्थापित हो सके।
SMR-300 क्या है?
- परिचय: SMR-300 एक उन्नत दाबित हल्का जल रिएक्टर है, जिसमें विखंडन के माध्यम से कम से कम 300 मेगावाट (MWe) विद्युत शक्ति उत्पन्न करने के लिये लो इनरिच्ड यूरेनियम ईंधन का उपयोग होता है।
- कॉम्पैक्ट डिज़ाइन: SMR-300 के लिये पारंपरिक रिएक्टरों की तुलना में काफी कम भूमि की आवश्यकता होती है जिससे यह भारत में मौजूदा कोयला संयंत्रों के लिये उपयुक्त है।
- स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन के लिये समर्थन: यह प्रौद्योगिकी भारत के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों के लिये महत्त्वपूर्ण है जो बढ़ती ऊर्जा मांगों (विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डेटा केंद्रों जैसे प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में) को देखते हुए जीवाश्म ईंधन के लिये एक प्रतिस्पर्द्धी विकल्प प्रदान करती है।
- SMR विकसित करके भारत का लक्ष्य वैश्विक परमाणु बाज़ार में एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में अपनी स्थिति बनाना है तथा रूस और चीन जैसे स्थापित हितधारकों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करना है।
- भारत में SMR-300 के कार्यान्वयन से संबंधित चुनौतियाँ:
- परमाणुवीय नुकसान के लिये सिविल दायित्व अधिनियम, 2010: इस विधि के तहत मुख्य रूप से उपकरण निर्माताओं पर दायित्व डालकर विदेशी परमाणु आपूर्तिकर्त्ताओं के लिये चुनौतियाँ पैदा होती हैं।
- परिणामस्वरूप दुर्घटनाओं से उत्पन्न होने वाली संभावित वित्तीय देनदारियों की चिंता के कारण कई संभावित साझेदार भारत के परमाणु क्षेत्र में निवेश करने से पीछे हट रहे हैं।
- निर्यात विनियमन: अमेरिकी परमाणु ऊर्जा अधिनियम,1954 के तहत होलटेक जैसी अमेरिकी कंपनियों द्वारा भारत में परमाणु उपकरण बनाने पर प्रतिबंध होने से SMR घटकों के स्थानीय उत्पादन की संभावना जटिल हो जाती है।
- विधायी सीमाएँ: भारत के मौजूदा विधायी ढाँचे में दायित्व संबंधी कानूनों में संशोधन करने के लिये लचीलेपन का अभाव है, जिससे विदेशी संस्थाओं के साथ सहज सहयोग में बाधा उत्पन्न होती है।
- भारत में SMR-300 से संबंधित भविष्य की संभावनाएँ: SMR प्रौद्योगिकी पर सहयोग से अमेरिका-भारत संबंधों में वृद्धि होने के साथ दोनों देशों की तकनीकी बाधाओं और श्रम लागत चुनौतियों का समाधान हो सकता है।
- परमाणुवीय नुकसान के लिये सिविल दायित्व अधिनियम, 2010: इस विधि के तहत मुख्य रूप से उपकरण निर्माताओं पर दायित्व डालकर विदेशी परमाणु आपूर्तिकर्त्ताओं के लिये चुनौतियाँ पैदा होती हैं।
भारत-अमेरिका परमाणु समझौता
- भारत -अमेरिका परमाणु समझौते को अमेरिका-भारत असैन्य परमाणु समझौते के रूप में भी जाना जाता है, जिस पर वर्ष 2008 में हस्ताक्षर किये गए थे। यह समझौता वर्ष 2005 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश द्वारा दिये गए संयुक्त वक्तव्य के साथ हुआ था।
- इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच असैन्य परमाणु सहयोग को सुविधाजनक बनाना था, जो अमेरिकी नीति में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव था, जिसने पहले परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर न करने के कारण भारत के साथ परमाणु व्यापार को प्रतिबंधित कर दिया था।
- भारत-अमेरिका परमाणु समझौता, जिसे प्रायः "123 समझौता" कहा जाता है, अमेरिकी कंपनियों को भारत के असैन्य परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के लिये परमाणु ईंधन और प्रौद्योगिकी की आपूर्ति करने की अनुमति देता है।
- भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के एक भाग के रूप में, भारत ने अपने असैन्य परमाणु कार्यक्रम के लिये अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) से निरीक्षण की अनुमति देने की प्रतिबद्धता जताई थी।
- भारत को लाभ: भारत को यूरेनियम संवर्द्धन और प्लूटोनियम के पुनर्संसाधन हेतु सामग्री और उपकरण समेत अमेरिका से दोहरे उपयोग वाली परमाणु प्रौद्योगिकी को क्रय करने की पात्रता प्राप्त हुई।
- इस समझौते से भारत की ऊर्जा सुरक्षा में वृद्धि होने तथा परमाणु ऊर्जा के माध्यम से इसकी बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने में मदद मिलने की उम्मीद थी।
स्माॅल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) क्या हैं?
- परिचय: IAEA के अनुसार, स्माॅल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) उन्नत परमाणु रिएक्टर होते हैं, जिन्हें बेहतर सुरक्षा और दक्षता के लिये डिज़ाइन किया गया है। उनकी विद्युत उत्पादन क्षमता आमतौर पर 30 MWe से लेकर 300 MWe से अधिक तक होती है।
- विशेषताएँ:
- स्माॅल: पारंपरिक परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों की तुलना में भौतिक रूप से छोटे, जिससे विभिन्न स्थानों पर लचीले ढंग से तैनाती की सुविधा मिलती है।
- मॉड्यूलर: कारखाने में संयोजन के लिये डिज़ाइन किया गया, जिससे आसान स्थापना के लिये एक पूर्ण इकाई के रूप में परिवहन संभव हो सके।
- रिएक्टर: विद्युत उत्पादन या प्रत्यक्ष अनुप्रयोगों के लिये ऊष्मा उत्पन्न करने हेतु परमाणु विखंडन का उपयोग करते हैं।
- SMR प्रौद्योगिकी की वैश्विक स्थिति: वैश्विक स्तर पर 80 से अधिक SMR, उन्नत डिज़ाइन और लाइसेंसिंग के विभिन्न चरणों में हैं, जिनमें से कुछ पहले से ही संचालित हैं। ये डिज़ाइन विभिन्न श्रेणियों में आते हैं।
- भूमि-आधारित जल-शीतित SMR: इसमें परिपक्व प्रौद्योगिकियों का उपयोग करते हुए इंटीग्रल प्रेशराइज्ड वॉटर रिएक्टर (PWR) और बॉयलिंग वॉटर रियेक्टर (BWR) जैसे डिज़ाइन शामिल हैं।
- समुद्री-आधारित जल-शीतित SMR: समुद्री वातावरण में तैनाती के लिये डिज़ाइन किया गया है, जैसे जहाज़ों पर स्थापित तैरती इकाइयाँ।
- हाई टेंपरेचर गैस-कूल्ड (HTGR): 750 डिग्री सेल्सियस से अधिक ताप उत्पन्न करने में सक्षम, जिससे ये विद्युत उत्पादन और विभिन्न औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिये कुशल बन जाते हैं।
- लिक्विड मेटल कूल्ड फास्ट न्यूट्रॉन स्पेक्ट्रम SMR (LMFR): सोडियम और सीसा जैसे शीतलक के साथ फास्ट न्यूट्रॉन प्रौद्योगिकी का उपयोग।
- मोल्टन साल्ट रिएक्टर SMR (MSR): इसमें मोल्टन फ्लोराइड या क्लोराइड लवण को शीतलक के रूप में उपयोग किया जाता है, जिससे लंबे ईंधन चक्र और ऑनलाइन ईंधन आपूर्ति की क्षमता प्राप्त होती है।
- माइक्रो रिएक्टर (MR): अत्यंत छोटे SMR, जो विभिन्न शीतलकों का उपयोग करके आमतौर पर 10 मेगावाट तक विद्युत शक्ति उत्पन्न करने के लिये डिज़ाइन किये गए हैं।
नोट: अब तक, विश्व स्तर पर दो SMR परियोजनाएँ परिचालन स्तर पर पहुँच चुकी हैं। जिसमें रूस की अकादमिक लोमोनोसोव फ्लोटिंग पॉवर यूनिट और चीन की हाई टेंपरेचर गैस-कूल्ड (HTGR) पेबल-बेड शामिल है।
SMR के लाभ और चुनौतियाँ क्या हैं?
SMR के लाभ |
SMR से संबंधित चुनौतियाँ |
SMR को अलग-अलग विद्युत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये बढ़ाया या घटाया जा सकता है। मौज़ूदा विद्युत संयंत्रों को शून्य-उत्सर्जन ईंधन से पूरक बनाया जा सकता है या पुराने थर्मल पॉवर स्टेशनों का पुनः उपयोग किया जा सकता है। |
विभिन्न SMR प्रौद्योगिकियों की अलग-अलग विनियामक आवश्यकताएँ होती हैं। बड़े पैमाने पर तैनाती के लिये उचित तकनीक को प्राथमिकता देना और प्रौद्योगिकी तत्परता स्तर (TRL) में सुधार करना महत्त्वपूर्ण है। |
SMR आधारित विद्युत संयंत्रों में ईंधन भरने में प्रत्येक 3 से 7 वर्ष का समय लगता है, जबकि पारंपरिक संयंत्रों में ईंधन भरने में 1 से 2 वर्ष का समय लगता है, तथा कुछ संयंत्रों को ईंधन भरे बिना 30 वर्षों तक संचलित होने के लिये डिज़ाइन किया गया है। |
SMR प्रतिस्पर्द्धात्मकता के लिये आपूर्ति शृंखला के मुद्दे महत्त्वपूर्ण हैं। लचीली वैश्विक आपूर्ति शृंखला निर्माण के लिये और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है |
SMR निष्क्रिय सुरक्षा सुविधाओं का उपयोग करते हैं जो बिना विद्युत या मानवीय हस्तक्षेप के रिएक्टर को बंद करने और ठंडा करने के लिये भौतिकी पर निर्भर करते हैं, जिससे अंतर्निहित सुरक्षा सुनिश्चित होती है। |
SMR से रेडियोधर्मी अपशिष्ट उत्पन्न होता है जिसके लिये भंडारण और निपटान सुविधाओं की आवश्यकता होती है, जिससे सामाजिक-राजनीतिक प्रतिरोध उत्पन्न हो सकता है। |
नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के साथ एकीकृत किया जा सकता है, जिससे न्यून कार्बन वाले सह-उत्पाद प्राप्त होते हैं। दैनिक और मौसमी आधार पर ऊर्जा आपूर्ति में उतार-चढ़ाव को कम करता है। |
अभिनव डिज़ाइनों के साथ अनुभव की कमी सुरक्षा मानक अनुमोदन को जटिल बनाती है। परमाणु आपदाओं के भय से सार्वजनिक विरोध उत्पन्न हो सकता है, जिससे चिंताओं को दूर करने के लिये प्रभावी जागरूकता और सहभागिता की आवश्यकता होती है। |
भारत की SMR विकास आकांक्षाओं में क्या चुनौतियाँ हैं?
- तकनीकी असमानताएँ: भारत की वर्तमान परमाणु प्रौद्योगिकी, जो मुख्य रूप से भारी जल और प्राकृतिक यूरेनियम पर आधारित है, विश्व स्तर पर प्रमुख हल्के जल रिएक्टरों (LWRs) के साथ समन्वय करने में असमर्थ होती जा रही है।
- SMR में परिवर्तन के लिये, जिसमें विभिन्न प्रकार के ईंधन का उपयोग किया जा सकता है, महत्त्वपूर्ण तकनीकी अनुकूलन और विशेषज्ञता विकास की आवश्यकता होती है।
- उच्च बाह्य लागत: हालाँकि SMR को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाने के लिये डिज़ाईन किया गया है, लेकिन सुरक्षित रिएक्टरों के निर्माण और प्रयुक्त परमाणु ईंधन के प्रबंधन की लागत परियोजना के व्यय को काफी बढ़ा सकती है, जिससे आर्थिक व्यवहार्यता जटिल हो सकती है।
- नियामक संबंधी बाधाएँ: मौज़ूदा परमाणु नियामक ढाँचे मुख्य रूप से बड़े रिएक्टरों के लिये डिज़ाइन किये गए हैं, जिनमें SMR-विशिष्ट विशेषताओं को समायोजित करने के लिये अद्यतनीकरण की आवश्यकता है।
- विविध SMR प्रौद्योगिकियों और डिज़ाइनों को संबोधित करने वाले एक व्यापक विनियामक ढाँचे की स्थापना महत्त्वपूर्ण है।
- सार्वजनिक स्वीकृति और सुरक्षा धारणा: नवीन SMR डिज़ाइनों के संबंध में लोकसूचना का अभाव, चेरनोबिल आपदा जैसी परमाणु आपदाओं के भय के कारण सुरक्षा संबंधी चिंताओं और विरोध उत्पन्न हो सकता है।
- मानव संसाधन विकास: SMR की तैनाती को बढ़ाने के लिये बुनियादी ढाँचे और विनिर्माण सुविधाओं में महत्त्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता है। भारत में SMR संचालन में विशेषज्ञता वाले कुशल कार्यबल की कमी है जो प्रौद्योगिकी के सफल कार्यान्वयन और स्थिरता के लिये आवश्यक है।
आगे की राह
- भारत को डिज़ाइन और परिचालन विश्वसनीयता को प्रमाणित करने के लिये SMR प्रोटोटाइप का निर्माण करना चाहिये। वर्ष 2030 के दशक की शुरुआत तक अपने प्रकार की पहली SMR इकाइयों को चालू करने का लक्ष्य स्थापित करना, जिससे ऊर्जा संक्रमण में सुविधा होगी।
- नवीन SMR डिज़ाइनों को समायोजित करने के लिये मौज़ूदा परमाणु विनियमों की समीक्षा करना और उन्हें अद्यतन करना। सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करने के लिये परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड के अधीन एक व्यापक नियामक ढाँचा स्थापित करना।
- निजी निवेश को आकर्षित करने और परियोजना जोखिमों को कम करने के लिये हरित वित्त विकल्पों सहित नवीन वित्तपोषण मॉडल विकसित करना।
- कौशल अंतराल की पहचान करना और भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) के माध्यम से SMR परिचालन के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रमों को लागू करना।
- निरंतर SMR उत्पादन के लिये परमाणु आपूर्ति शृंखलाओं को सुदृढ़ करने के लिये रणनीति विकसित करना। परमाणु अप्रसार संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिये IAEA और अन्य देशों के सहयोग से SMR डिज़ाइन में सुरक्षा उपायों को एकीकृत करना।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: स्माॅल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) प्रौद्योगिकी अपनाने में भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, तथा उनकी सफल तैनाती को बढ़ावा देने के लिये सरकार को क्या कदम उठाने की आवश्यकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रारंभिक परीक्षाप्रश्न. परमाणु रिएक्टर में भारी पानी कार्य करता है? (वर्ष 2011) (a) न्यूट्रॉन की गति को धीमा कर देना उत्तर: (a) मुख्य परीक्षाप्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती हुई जरूरतों के परिप्रेक्ष्य में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? परमाणु ऊर्जा से संबंधित तथ्यों एवं भयों की विवेचना कीजिये। (2018) |
सामाजिक न्याय
IPC की धारा 498A और घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 का दुरुपयोग
प्रारंभिक परीक्षा के लिये:सुप्रीम कोर्ट, धारा 498A भारतीय दंड संहिता, घरेलू हिंसा अधिनियम 2005, भारतीय न्याय संहिता, 2023 (बीएनएस) की धारा 84, संज्ञेय और गैर-जमानती, मुख्य परीक्षा के लिये:घरेलू कानूनों का दुरुपयोग और संबंधित मुद्दे, लैंगिक न्यायपूर्ण कानून की आवश्यकता। |
स्रोत: इकोनाॅमिक टाइम्स
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498A (अब भारतीय न्याय संहिता) और घरेलू हिंसा अधिनियम 2005, सबसे अधिक दुरुपयोग किये जाने वाले कानूनों में शामिल हैं।
भारतीय दंड संहिता की धारा 498A क्या है?
- भारतीय दंड संहिता की धारा 498A विवाहित महिलाओं को पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता का शिकार होने से बचाने के लिये वर्ष 1983 में पेश की गई थी।
- भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 84 इसी प्रावधान से संबंधित है।
- दंड:
- अपराधी को तीन साल तक का कारावास हो सकता है और जुर्माना भी भरना पड़ सकता है।
- क्रूरता की परिभाषा:
- जानबूझकर किया गया कोई आचरण जो ऐसी प्रकृति का है जिससे किसी स्त्री को आत्महत्या करने के लिये प्रेरित करने के साथ उस स्त्री के जीवन, अंग या स्वास्थ्य की (जो चाहे मानसिक हो या शारीरिक) गंभीर क्षति या खतरा होने की संभावना हो।
- शिकायत दर्ज करना:
- इसके तहत शिकायत अपराध से पीड़ित महिला या उसके रक्त, विवाह या दत्तक ग्रहण संबंधित किसी भी व्यक्ति द्वारा दर्ज की जा सकती है और यदि ऐसा कोई रिश्तेदार नहीं है, तो राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित कोई लोक सेवक शिकायत दर्ज करा सकता है।
- समय सीमा: कथित घटना के तीन वर्ष के अंदर शिकायत दर्ज की जानी चाहिये।
- संज्ञेय और गैर ज़मानती: यह अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती है, जिसका अर्थ है कि इसमें अभियुक्त की तत्काल हिरासत संभव है।
घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 क्या है?
- उद्देश्य:
- घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 घरेलू हिंसा के विरुद्ध महिलाओं की सुरक्षा के संबंध में एक व्यापक कानूनी ढाँचा प्रदान करने के लिये लागू किया गया था, जिसमें पारिवारिक परिस्थितियों में शारीरिक और मानसिक दोनों रूपों की हिंसा को शामिल किया गया था।
- घरेलू हिंसा की परिभाषा:
- इस अधिनियम में घरेलू हिंसा को व्यापक रूप से परिभाषित करते हुए इसमें शारीरिक, भावनात्मक, यौन, मौखिक और आर्थिक दुर्व्यवहार को शामिल किया गया है।
- इसमें किसी महिला के स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान या चोट या ऐसी धमकी को शामिल किया गया है जिसमें जबरदस्ती, उत्पीड़न और संसाधनों या अधिकारों से वंचित करना शामिल है।
- दायरा और कवरेज:
- इसमें घरेलू संबंधों में शामिल सभी महिलाएँ शामिल हैं जिनमें पत्नियाँ, माताएँ, बहनें, बेटियाँ और लिव-इन पार्टनर शामिल हैं।
- यह महिलाओं को उनके पति, पुरुष साथी, रिश्तेदारों या घर के अन्य सदस्यों द्वारा की जाने वाली हिंसा से बचाता है।
- निवास का अधिकार:
- यह अधिनियम महिलाओं को संपत्ति पर उनके कानूनी स्वामित्व या हक से परे साझा घर में रहने का अधिकार प्रदान करता है।
- संरक्षण आदेश:
- घरेलू हिंसा के पीड़ित न्यायालय जा सकते हैं, जिससे दुर्व्यवहार या हिंसा को रोकने के साथ पीड़ित के कार्यस्थल या निवास में प्रवेश करने या पीड़ित के साथ किसी भी प्रकार का संचार या संपर्क करने से रोकने संबंधी मुद्दों का समाधान होता है।
- मौद्रिक राहत और मुआवजा:
- इस अधिनियम के तहत महिलाओं को घरेलू हिंसा के कारण होने वाली क्षति (जिसमें चिकित्सा व्यय, आय की हानि या अन्य कोई वित्तीय हानि शामिल है) के लिये वित्तीय मुआवज़ा मांगने का अधिकार दिया गया है। न्यायालय पीड़ित को भरण-पोषण के भुगतान का निर्देश भी दे सकते हैं।
- परामर्श और सहायता सेवाएँ:
- इस अधिनियम के तहत सुरक्षा चाहने वाली महिलाओं के लिये विधिक सहायता, परामर्श, चिकित्सा सुविधाएँ और आश्रय गृह (राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण जैसी योजनाओं के तहत) सहित सहायक सेवाओं के प्रावधान को अनिवार्य बनाया गया है।
- त्वरित न्यायिक प्रक्रिया:
- इस अधिनियम के तहत घरेलू हिंसा के मामलों के समाधान के लिये समयबद्ध प्रक्रिया सुनिश्चित की गई है।
- मजिस्ट्रेटों को 60 दिनों के अंदर शिकायतों का निपटारा करना आवश्यक है ताकि पीड़ितों को समय पर राहत मिल सके।
- गैर-सरकारी संगठनों (NGO) की भूमिका:
- नागरिक समाज की महत्त्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हुए यह अधिनियम गैर सरकारी संगठनों और महिला संगठनों को शिकायत दर्ज करने तथा पीड़ितों को सुरक्षा और सहायता प्रदान करने में सहायता करने की अनुमति देता है।
घरेलू हिंसा में योगदान देने वाले कारक क्या हैं?
- पितृसत्तात्मक सामाजिक संरचना: पितृसत्तात्मक मानदंड गहरी जड़ें जमाए हुए हैं, जो लैंगिक असमानता को बनाए रखते हैं, पुरुषों के वर्चस्व और महिलाओं पर नियंत्रण को सुदृढ़ करते हैं। इससे घरों में अधिकार जताने के साधन के रूप में हिंसा सामान्य बन गई है।
- सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंड: विभिन्न समाजों में घरेलू हिंसा को मौन स्वीकृति दी जाती है या अनदेखा कर दिया जाता है, विशेषकर जब यह निज़ी स्थानों पर घटित होती है।
- सांस्कृतिक मान्यताएँ अक्सर महिलाओं को अपनी बात कहने या सहायता मांगने से हतोत्साहित करती हैं, जिससे दुर्व्यवहार का चक्र मज़बूत होता है।
- आर्थिक निर्भरता: परिवार के पुरुष सदस्यों पर आर्थिक निर्भरता अक्सर महिलाओं को घरेलू हिंसा सहने के लिये मज़बूर करती है। आर्थिक स्वायत्तता की कमी उनके अपमानजनक संबंधों को छोड़ने या कानूनी सहायता लेने की क्षमता को सीमित करती है।
- मादक द्रव्यों का सेवन: शराब और मादक औषधियों का सेवन घरेलू हिंसा में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
- नशे में धुत्त व्यक्ति आक्रामक व्यवहार कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप परिवारों में शारीरिक या भावनात्मक दुर्व्यवहार हो सकता है।
- शिक्षा और जागरूकता का अभाव: विधिक अधिकारों और सहायता तंत्र के संबंध में सीमित शिक्षा और जागरूकता घरेलू हिंसा को बढ़ावा देती है।
- मनोवैज्ञानिक कारक: क्रोध प्रबंधन की समस्याएँ, आत्मसम्मान की क्षति या अनसुलझे आघात जैसे मुद्दे व्यक्तियों को अपने परिवार के सदस्यों के विरुद्ध हिंसक व्यवहार करने के लिये प्रेरित कर सकते हैं। दुर्व्यवहार करने वाले लोग नियंत्रण और अधिकार की विकृत धारणाओं के माध्यम से भी अपने कार्यों को उचित ठहरा सकते हैं।
- दहेज और वैवाहिक विवाद: दहेज संबंधी हिंसा घरेलू हिंसा का एक महत्त्वपूर्ण कारक बनी हुई है। दहेज की मांग या विवाह से असंतुष्टि के कारण होने वाले विवाद अक्सर महिलाओं के विरुद्ध भावनात्मक या शारीरिक हिंसा का कारण बनते हैं।
- हिंसा का अंतर-पीढ़ी संचरण: जो बच्चे अपने घरों में घरेलू हिंसा देखते हैं, उनके वयस्क होने पर अपने संबंधियों में भी दुर्व्यवहारपूर्ण व्यवहार दोहराने की अधिक संभावना होती है, जिससे पीढ़ियों तक हिंसा का चक्र चलता रहता है।
- कमज़ोर कानून प्रवर्तन और न्यायिक विलंब: अप्रभावी कानून प्रवर्तन, विलंबित न्याय, तथा अपराधियों के लिये कठोर दंड का अभाव घरेलू हिंसा की पुनरावृत्ति में योगदान देता है।
- पीड़ितों को प्रतिशोध के भय या व्यवस्था में अविश्वास के कारण विधिक संरक्षण हासिल करने में हतोत्साहित महसूस हो सकता है।
इन कानूनी उपायों का दुरुपयोग कैसे किया जाता है?
- व्यक्तिगत लाभ हेतु झूठे आरोप: घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 और धारा 498a का कभी-कभी पति और उनके परिवारों को परेशान करने के लिये झूठी शिकायतें दर्ज करके दुरुपयोग किया जाता है।
- इन प्रावधानों का उपयोग व्यक्तिगत प्रतिशोध के लिये या वैवाहिक विवादों में लाभ उठाने के लिये किया जाता है, जिसमें संपत्ति के निपटान, रखरखाव के दावे या हिरासत के प्रति लड़ाई शामिल हैं।
- वित्तीय समझौते के लिये दबाव: विभिन्न मामलों में, झूठे मामलों का इस्तेमाल पतियों और उनके संबंधियों को बड़े वित्तीय समझौते करने या गुज़ारा भत्ता देने के लिये मज़बूर करने के लिये किया जाता है।
- गिरफ्तारी या लम्बी कानूनी लड़ाई के भय से प्रायः आरोपी अनुचित मांगों को मानने के लिये मज़बूर हो जाता है।
- तत्काल गिरफ्तारी और प्रारंभिक जाँच का अभाव: धारा 498a एक गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध है, जिसके कारण पूर्व जाँच की आवश्यकता के बिना तत्काल गिरफ्तारी की संभावना रहती है।
- इस प्रावधान का दुरुपयोग अभियुक्त पर दबाव बनाने के लिये किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप अनुचित तरीके से हिरासत में लिया गया या दोष सिद्ध होने से पहले ही उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा है।
- अभियुक्त को सामाजिक और मनोवैज्ञानिक क्षति: घरेलू हिंसा के आरोपों से संबंधित कलंक अभियुक्त की सामाजिक प्रतिष्ठा, मानसिक स्वास्थ्य और पेशेवर जीवन को अपूरणीय क्षति पहुँचा सकता है।
- यदि आरोपी को बरी भी कर दिया जाता है, तो भी आरोपों से संबंधित नकारात्मक धारणा के कारण उसे दीर्घकालिक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
- दुरुपयोग पर न्यायिक टिप्पणियाँ: विभिन्न निर्णयों में न्यायालयों ने धारा 498a और घरेलू हिंसा अधिनियम के दुरुपयोग को स्वीकार किया है।
- इसकी प्रतिक्रिया में न्यायपालिका ने सुधारों की मांग की है, जिसमें गिरफ्तारी से पहले उचित जाँच की आवश्यकता तथा तुच्छ या दुर्भावनापूर्ण मामले दर्ज करने पर दंड की बात शामिल है।
आगे की राह
- विधि के अंतर्गत जमानती और गैर-संज्ञेय अपराधों के बीच स्पष्ट अंतर स्थापित करने की आवश्यकता है। किसी भी गिरफ्तारी से पहले गहन जाँच की जानी चाहिये।
- महिलाओं को हुए नुकसान की सीमा को ध्यान में रखते हुए, परिवार के सदस्यों को गिरफ्तार करते समय आनुपातिकता के सिद्धांत को लागू किया जाना चाहिये।
- मिथ्या और भ्रामक शिकायतों के लिये व्यक्तियों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिये।
- भारत को लैंगिक-न्यायपूर्ण कानून लागू करना चाहिये (जिसमें पुरुषों के विरुद्ध घरेलू हिंसा को भी मान्यता दी जाए) जो समानता को बढ़ावा देते हों तथा लैंगिक परवाह किये बिना प्रत्येक व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करना।
- भेदभाव, हिंसा और आर्थिक असमानताओं से निपटने के लिये विधिक ढाँचे की स्थापना एक समावेशी समाज के निर्माण के लिये महत्त्वपूर्ण है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: लैंगिक समानता प्राप्त करने के संदर्भ में लैंगिक तटस्थ कानूनों को लागू करने से संबंधित संभावित लाभों और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मुख्य परीक्षाप्रश्न. हमें देश में महिलाओं के प्रति यौन-उत्पीड़न के बढ़ते हुए दृष्टांत दिखाई दे रहे हैं। इस कुकृत्य के विरुद्ध विद्यमान विधिक उपबन्धों के होते हुए भी, ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस संकट से निपटने के लिये कुछ नवाचारी उपाय सुझाइये। (2014) प्रश्न. 'भारत में महिलाओं के आंदोलन ने निम्नतर सामाजिक स्तर की महिलाओं के मुद्दों को संबोधित नहीं किया है।' अपने विचार को प्रमाणित सिद्ध कीजिये। (2018) |
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत और श्रीलंका के बीच संबंधों का सुदृढ़ीकरण
प्रारंभिक परीक्षा के लिये:भारत-श्रीलंका संबंध, एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI), बौद्ध धर्म, नवीकरणीय ऊर्जा, हिंद महासागर, 13वाँ संशोधन, लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम/ लिट्टे (LTTE) मुख्य परीक्षा के लिये:भारत-श्रीलंका संबंध, भारत से संबंधित और/या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समूह तथा समझौते। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने श्रीलंका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके से कोलंबो में मुलाकात की, इस दौरान उन्होंने श्रीलंका के आर्थिक सुधार एवं विकास हेतु भारत के पूर्ण समर्थन का आश्वासन दिया।
भारत और श्रीलंका के बीच बैठक की मुख्य बातें क्या हैं?
- आर्थिक सहायता:
- इस बैठक के दौरान भारत ने पर्यटन, ऊर्जा और डेयरी जैसे क्षेत्रों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर बल दिया तथा श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को समर्थन देने के लिये भारतीय पर्यटकों के प्रवाह को बढ़ाने पर चर्चा की।
- इस दौरान वित्तीय संकट के समय की भारत की सहायता की सराहना की गई।
- मछुआरे और सुरक्षा चिंताएँ:
- भारत और श्रीलंका ने हिरासत में लिये गए भारतीय मछुआरों के मुद्दे को स्वीकार किया तथा उनकी रिहाई, जुर्माने की समीक्षा तथा नौकाओं जैसी परिसंपत्तियों की जब्ती के मुद्दे पर ध्यान देने की आवश्यकता पर बल दिया।
- तमिल अधिकारों के लिये समर्थन:
- भारत ने श्रीलंका के सभी समुदायों की आकांक्षाओं के प्रति अपना समर्थन दोहराया तथा तमिलों के लिये राजनीतिक समाधान के साथ 13वें संशोधन के कार्यान्वयन की आवश्यकता पर बल दिया।
- 13 वें संशोधन द्वारा प्रांतीय परिषदों की स्थापना के साथ सत्ता-साझाकरण की रूपरेखा सुनिश्चित हुई जिससे सिंहली बाहुल्य प्रांतों सहित सभी नौ प्रांतों को स्वशासन की अनुमति मिली।
- भारत ने श्रीलंका के सभी समुदायों की आकांक्षाओं के प्रति अपना समर्थन दोहराया तथा तमिलों के लिये राजनीतिक समाधान के साथ 13वें संशोधन के कार्यान्वयन की आवश्यकता पर बल दिया।
भारत-श्रीलंका संबंधों का ऐतिहासिक संदर्भ क्या है?
- तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में सम्राट अशोक के पुत्र महेंद्र ने श्रीलंका में बौद्ध धर्म की शुरुआत की, जिससे दोनों देशों के बीच मज़बूत सांस्कृतिक एवं धार्मिक संबंध स्थापित हुए।
- 10वीं शताब्दी ई. के दौरान दक्षिण भारत के चोल राजवंश ने श्रीलंका पर कई बार आक्रमण किया जिससे श्रीलंकाई कला, वास्तुकला और भाषा पर स्थायी प्रभाव पड़ा।
- भारत और श्रीलंका दोनों को क्रमशः वर्ष 1947 और 1948 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता प्राप्त हुई जिसमें भारत ने श्रीलंका की लोकतांत्रिक संस्थाओं को विकसित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) (एक आतंकवादी संगठन) का गठन वर्ष 1976 में हुआ था और यह वर्ष 1983 से 2009 तक श्रीलंकाई सरकार के साथ सशस्त्र संघर्ष में शामिल रहा।
- संघर्ष की प्रतिक्रया में भारत और श्रीलंका ने वर्ष 1987 में भारत-श्रीलंका समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसके परिणामस्वरूप 13वें संशोधन को लागू किया गया और श्रीलंका में इंडिया पीस कीपिंग फोर्स (IPKF) की तैनाती की गई।
- सैन्य हस्तक्षेप के बाद वर्ष 2009 में श्रीलंकाई गृह युद्ध समाप्त हो गया।
भारत और श्रीलंका के बीच सहयोग के प्रमुख क्षेत्र कौन-कौन से हैं?
- विकास सहयोग: भारत श्रीलंका को विकास सहायता प्रदान करने वाला एक महत्त्वपूर्ण प्रदाता है, जिसने लगभग 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता देने का वचन दिया है, जिसमें लगभग 560 मिलियन अमेरिकी डॉलर का अनुदान शामिल है।
- उल्लेखनीय पहलों में भारतीय आवास परियोजना शामिल है, जिसका लक्ष्य युद्ध प्रभावित समुदायों के लिये 50,000 घरों का निर्माण करना है। अतिरिक्त सहायता में विद्युत परियोजनाएँ, रेलवे विकास और विभिन्न सामुदायिक विकास पहल शामिल हैं।
- वर्ष 2022 में भारत ने उत्तरी श्रीलंका में हाइब्रिड विद्युत परियोजनाएँ स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की साथ ही कांकेसंथुराई और त्रिंकोमाली बंदरगाहों पर विकास परियोजनाएँ आरंभ कीं।
- आर्थिक सहयोग: भारत और श्रीलंका ने भारत-श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौते (ISFTA) के माध्यम से आर्थिक संबंधों को सुदृढ़ किया है, भारत श्रीलंका का तीसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है, 60% से अधिक निर्यात इस समझौते से लाभान्वित होता है।
- ये अपनी अर्थव्यवस्थाओं को और मज़बूत करने के लिये आर्थिक एवं प्रौद्योगिकी सहयोग समझौते (ETCA) पर भी विचार कर रहे हैं।
- श्रीलंका द्वारा भारत के एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) को अपनाने से फिनटेक कनेक्शन में सुधार हुआ है, व्यापार के लिये रुपए का उपयोग करने से उसकी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला है।
- सांस्कृतिक संबंध: वर्ष 1977 के सांस्कृतिक सहयोग समझौते ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान को सक्षम बनाया है, जबकि कोलंबो स्थित भारतीय सांस्कृतिक केंद्र भारतीय कलाओं को बढ़ावा देता है और अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का आयोजन करता है।
- इसके अतिरिक्त वर्ष 1998 में स्थापित भारत-श्रीलंका फाउंडेशन वैज्ञानिक और सांस्कृतिक सहयोग को मज़बूत करता है
- रक्षा और सुरक्षा सहयोग: वर्ष 2012 से भारत भारत-श्रीलंका रक्षा वार्ता में शामिल रहा है, जिसका ध्यान सुरक्षा साझेदारी पर है। दोनों देश अपने रक्षा सहयोग को बढ़ाने के लिये संयुक्त सैन्य (मित्र शक्ति) और नौसेना (SLINEX) अभ्यास साझा करते हैं।
- भारत एक फ्री-फ्लोटिंग डॉक सुविधा, एक डोर्नियर टोही विमान और एक प्रशिक्षण टीम के माध्यम से सहायता प्रदान कर रहा है, जिसका उद्देश्य हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा को सुदृढ़ करना है।
- बहुपक्षीय सहयोग: दोनों देश बिम्सटेक (बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक को-ऑपरेशन) और सार्क जैसे क्षेत्रीय संगठनों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र विश्व व्यापार संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय निकायों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।
भारत-श्रीलंका संबंधों में चुनौतियाँ क्या हैं?
- राजनीतिक अस्थिरता: श्रीलंका को हाल के वर्षों में राजनीतिक अशांति का सामना करना पड़ा है, जिसमें बार-बार सरकारों का परिवर्तन शामिल है, जिससे भारत के साथ जुड़ने और सहकारी आर्थिक पहल करने की उसकी क्षमता में बाधा उत्पन्न हुई है।
- भौगोलिक चिंताएँ: भारत वर्ष 1974 के समझौते के तहत कच्चातीवु पर श्रीलंका की संप्रभुता को मान्यता देता है, लेकिन द्वीप पर राजनीतिक टिप्पणियाँ और समझौते की प्रामाणिकता दोनों देशों के बीच कूटनीतिक चिंताएँ उत्पन्न करती हैं।
- सामरिक चिंताएँ: चीन द्वारा अपनी समुद्री रेशम मार्ग पहल के तहत कोलंबो और हंबनटोटा बंदरगाहों की स्थापना भारत के लिये सामरिक चुनौतियाँ प्रस्तुत करती है। इसके अतिरिक्त चीन ने उपग्रह प्रक्षेपण संबंधी कार्यों के लिये श्रीलंका के सुप्रीम सैट (Supreme SAT) के साथ साझेदारी की है।
- मछुआरों का मुद्दा: श्रीलंका ने अपने जलक्षेत्र में भारतीय मछुआरों द्वारा अवैध रूप से मत्स्याग्रह पर निरंतर चिंता व्यक्त की है, जिसके परिणामस्वरूप अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (IMBL) का उल्लंघन करने के लिये नियमित रूप से गिरफ्तारियाँ होती रही हैं।
- तमिल हित: भारत समानता, न्याय और शांति के लिये तमिल समुदाय की आकांक्षाओं को पूरा करना चाहता है, 13वें संशोधन में उल्लिखित शक्तियों के हस्तांतरण को बढ़ावा देना चाहता है। हालाँकि कोलंबो ने अभी तक इस संबंध में दृढ़ प्रतिबद्धता नहीं दिखाई है।
- सीमा सुरक्षा चिंता: भारत और श्रीलंका के बीच अनियमित समुद्री सीमा के कारण सीमा सुरक्षा से संबंधित चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं, जिनमें माल, मादक पदार्थों और अवैध आप्रवासियों की तस्करी भी शामिल है।
आगे की राह
- उन्नत समुद्री सुरक्षा: भारत और श्रीलंका हिंद महासागर में संयुक्त गश्ती के माध्यम से तथा श्रीलंकाई तट रक्षक कर्मियों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रमों की पेशकश करके समुद्री सुरक्षा सहयोग को सुदृढ़ कर सकते हैं।
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान: दोनों देशों के नागरिकों के बीच संबंधों को गहरा करने के लिये सांस्कृतिक आदान-प्रदान संबंधी पहल के माध्यम से लोगों के बीच संपर्क और पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- श्रीलंकाई छात्रों के लिये छात्रवृत्ति प्रदान करने तथा कौशल विकास कार्यक्रमों पर सहयोग करने के लिये छात्र विनिमय कार्यक्रम और कौशल विकास जैसी पहल की स्थापना की जा सकती है।
- विकासात्मक परियोजनाएँ: भारत श्रीलंका में बुनियादी ढाँचे के विकास में निवेश कर सकता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि परियोजनाएँ नियोजन से लेकर कार्यान्वयन तक सुचारू रूप से आगे बढ़ें।
- व्यापार सुविधा: दोनों देश व्यापार बाधाओं को कम करने और द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने के लिये आर्थिक और प्रौद्योगिकी सहयोग समझौते (ETCA) के शीघ्र और कुशल कार्यान्वयन का लक्ष्य रख सकते हैं।
- सत्य एवं सुलह आयोग: भारत, दक्षिण अफ्रीका के समान श्रीलंका में भी सत्य एवं सुलह आयोग की स्थापना में सहायता कर सकता है, ताकि गृहयुद्ध की विरासत से निपटा जा सके तथा तमिल समुदाय में सुधार को बढ़ावा दिया जा सके।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत-श्रीलंका संबंधों की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं, उनके समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं और दोनों देश इन मुद्दों के समाधान के लिये किस प्रकार योगदान दे सकते हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रारंभिक परीक्षाप्रश्न. कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला एलीफेंट पास का उल्लेख निम्नलिखित में से किस मामले के संदर्भ में किया जाता है? (2009) (a) बाँग्लादेश उत्तर: (d) मुख्य परीक्षाQ. 'भारत श्रीलंका का बरसों पुराना मित्र है।' पूर्ववर्ती कथन के आलोक में श्रीलंका के वर्तमान संकट में भारत की भूमिका की विवेचना कीजिये। (2022) Q. भारत-श्रीलंका के संबंधों के संदर्भ में विवेचना कीजिये कि किस प्रकार आतंरिक (देशीय) कारक विदेश नीति को प्रभावित करते हैं। (2013) |