शासन व्यवस्था
विशेष : एलटीटीई
- 18 May 2019
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संदर्भ
गृह मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार भारत ने लिबरेशन टाइगर ऑफ तमिल ईलम (Liberation Tiger of Tamil Eelam-LTTE) जिसे लिट्टे भी कहा जाता है, पर लगे प्रतिबंध को पाँच साल के लिये बढ़ा दिया है।
- भारत सरकार ने यह फैसला इसलिये लिया है क्योंकि लिट्टे अभी भी भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त है और भारतीय नागरिकों की सुरक्षा के लिये गंभीर खतरा बना हुआ है।
- गृह मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि भारत सरकार ने गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के प्रावधानों के तहत LTTE को गैर-कानूनी संगठन घोषित किया था।
- इसके लिये सरकार ने LTTE पर प्रतिबंध को लेकर अपनी 2015 की अधिसूचना को नवीनीकृत किया है।
LTTE पर प्रतिबंध
- दरअसल, 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद भारत में LTTE पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
- सरकार ने अपने गजट अधिसूचना में कहा है कि LTTE श्रीलंका का हिंसक व अलगाववादी संगठन है लेकिन भारत में इसके समर्थकों से सहानुभूति रखने वालों और एजेंटों का उद्देश्य सभी तमिलों के लिये एकमात्र भूमि तमिल ईलम की स्थापना करना है जो भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिये खतरा है। यह गैर-कानूनी गतिविधि के दायरे में आता है। इस वज़ह से LTTE को तुरंत प्रभाव से गैर-कानूनी संगठन घोषित करना ज़रूरी था।
- अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि LTTE ने मई 2006 में श्रीलंका में अपनी हार के बाद भी ईलम की अवधारणा को नहीं छोड़ा है। उसके बाद भी यह संगठन यूरोप में धन उगाही और प्रचार गतिविधियों को अंजाम देकर ईलम के प्रति दृढ़ता से काम कर रहा है।
- इसके साथ ही लिट्टे नेताओं और कैडरों ने बिखरे हुए कार्यकर्त्ताओं को फिर से संगठित करने की कोशिश शुरू कर दी है। साथ ही स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संगठन को फिर से जिंदा करने में भी इस संगठन के लोग जुट गए हैं।
- भारत में विशेष रूप से तमिलनाडु में LTTE अपना समर्थन आधार बढ़ाने में लगा हुआ है। इसके लिये LTTE इंटरनेट पोर्टल के ज़रिये विदेशों में रहने वाले लोगों का समर्थन पाने की कोशिश कर रहा है।
- सरकार ने LTTE पर आरोप लगाया कि वह अपने गैर-कानूनी गतिविधियों को जारी रखने के लिये सोशल मीडिया का भी प्रयोग कर रहा है।
- अधिसूचना में इस बात का उल्लेख किया गया है कि LTTE अपनी हार के लिये भारत को ज़िम्मेदार मानता है। इसे लेकर LTTE इंटरनेट पोर्टल में लेखों और अन्य सामग्रियों के ज़रिये श्रीलंकाई तमिलों के बीच भारत विरोधी भावना को भड़काने की कोशिश कर रहा है।
- सरकार का मानना है कि इंटरनेट के ज़रिये अगर ऐसा प्रचार जारी रहता है तो भारत में अनेक VVIP व्यक्तियों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
LTTE का गठन
- LTTE का गठन 70 के दशक में हुआ था जब ज़्यादातर किसान परिवार आर्थिक सुधारों से पूरी तरह प्रभावित थे।
- श्रीलंका का यह हिंसक, अलगाववादी संगठन उत्तरी और पूर्वी श्रीलंका को मिलाकर एक स्वतंत्र तमिल राज्य की स्थापना करना चाहता था। एशिया के इतिहास में एक अलग राज्य तमिल ईलम की मांग को लेकर सबसे लंबे समय तक गृहयुद्ध श्रीलंका में ही देखने को मिला।
- इस संगठन का नेता वेल्लुपिल्लई प्रभाकरन था।
LTTE का इतिहास
- 1970 के दशक का श्रीलंका उत्तर और पूर्वी क्षेत्र में लागू आर्थिक सुधारों से काफी परेशान था। इस इलाके में तमिल लोगों का दबदबा था।
- इसी दौर में तमिल लोगों की एक अलग तमिल राज्य की मांग धीरे-धीरे ज़ोर पकड़ने लगी।
- 1972 में वेलुपिल्लई प्रभाकरन ने तमिल न्यू टाइगर नाम का एक संगठन शुरू किया जिसमें युवा स्कूली बच्चे शामिल किये गए थे।
- 1976 में संगठन का नाम बदलकर लिबरेशन टाइगर ऑफ़ तमिल ईलम रखा गया। 1976 में ही विलिकाडे नरसंहार को अंजाम देकर LTTE एक कुख्यात संगठन के तौर पर मशहूर हो गया था।
- LTTE दुनिया के सबसे खतरनाक आत्मघाती हमलावर के रूप में मशहूर हो गया था लिसके लड़ाके ताबीज में सायनाइड के कैप्सूल बांधकर चलते थे।
- प्रभाकरन के नेतृत्व में आत्मघाती दस्तों ने कई बार श्रीलंका की सेना और राजनीतिक नेताओं को अपना निशाना बनाया।
- 1980 के दशक के आते-आते LTTE को विदेशों से समर्थन मिलने लगा था। हथियार खरीदने और दूसरी गतिविधियों के लिये LTTE के पास पैसा विदेशों में रहने वाले तमिलों से आता था। इनमें से ज़्यादातर पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका के देशों तथा आस्ट्रेलिया में रहने वाले तमिल लोग थे।
- 2001 में ब्रिटेन द्वारा LTTE पर प्रतिबंध लगाने तक संगठन का अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय लंदन में ही था लेकिन पेरिस में LTTE का कार्यालय 2002 तक ज़्यादातर काम संभालता रहा।
- वर्ष 2000 में अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने LTTE को आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल कर दिया था, वहीँ उसके बाद कई और देशों ने भी LTTE की गतिविधियों और उसके समर्थकों द्वारा चंदा एकत्रित करने पर रोक लगा दी थी।
- अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की तरफ से LTTE पर हिंसा का रास्ता त्यागकर बातचीत के ज़रिये अपनी समस्या सुलझाने का दबाव बनने लगा।
- 1985 में श्रीलंका सरकार और तमिल विद्रोहियों के बीच शांति वार्ता की पहली कोशिश नाकाम हो गई।
- वर्ष 1987 में सरकारी सेनाओं ने उत्तरी शहर जाफना में तमिल विद्रोहियों को और पीछे हटा दिया।
- सरकार ने एक ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर किये जिसके तहत तमिल बाहुल्य इलाकों में नई परिषदों का गठन किया जाना था।
- इधर भारत के साथ भी श्रीलंका सरकार का समझौता हुआ जिसके तहत 1987 में वहाँ भारत की शांति सेना की तैनाती हुई।
- वर्ष 1988 में वामपंथी धड़े और सिंहलों की राष्ट्रवादी पार्टी जनता विमुक्ति पैरामोना ने भारत-श्रीलंका समझौते के खिलाफ अभियान शुरू किया।
- 1990 में उत्तरी क्षेत्र में संघर्ष को देखते हुए भारतीय सेना वहाँ से वापस आ गई। श्रीलंका की सेना और पृथकतावादी तमिल विद्रोहियों के बीच हिंसा और बढ़ गई लेकिन LTTE इतना कमज़ोर नहीं था।
- उन्होंने आत्मघाती बेल्ट और आत्मघाती बम विस्फोट के आविष्कार को अपनी रणनीति के रूप में इस्तेमाल किया।
- वर्ष 1991 में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तमिलनाडु में एक आत्मघाती हमले में मौत हो गई जिसके लिये तमिल विद्रोहियों को ही ज़िम्मेदार ठहराया गया।
- इसके बाद श्रीलंका सरकार के साथ प्रभाकरन की बातचीत के दौर की शुरुआत हुई। वर्ष 2002 में हथियार छोड़ने की प्रक्रिया शुरू हुई। जाफना को श्रीलंका के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाली सड़क 12 साल के बाद खुली।
- पहले दौर की बातचीत थाईलैंड में शुरू हुई। दोनों पक्षों ने पहली बार युद्ध कैदियों की अदला-बदली की। तमिल विद्रोहियों ने अलग राज्य की मांग छोड़ दी जो एक बड़ी घटना थी।
- इसी साल दिसंबर में नार्वे में हुई शांति वार्ता में दोनों पक्ष सत्ता बँटवारे पर सहमत हुए और अल्पसंख्यक तमिलों को मुख्य रूप से तमिल भाषी पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्वायत्तता देने की बात हुई।
- वर्ष 2003 में फरवरी में शांति वार्ता का अगला दौर बर्लिन में संपन्न हुआ लेकिन अप्रैल में ही तमिल विद्रोहियों ने शांति वार्ता से यह कहते हुए हाथ खींच लिया कि उन्हें नज़रंदाज़ किया जा रहा है।
- 2006 की शांति प्रक्रिया के पूरी तरह से असफल होने के बाद श्रीलंकाई सैनिकों ने टाइगर्स के खिलाफ आक्रामक अभियान शुरू कर दिया। सरकार ने LTTE को पराजित कर पूरे देश को अपने नियंत्रण में ले लिया।
- टाइगर्स पर अपनी विजय को श्रीलंकाई राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे द्वारा 16 मई, 2009 को घोषित किया गया और LTTE ने 17 मई, 2009 को हार स्वीकार कर ली।
- 19 मई, 2009 को ही सेना ने विद्रोही नेता प्रभाकरन को मार गिराया जिसके साथ ही LTTE का अंत मान लिया गया।
- हालाँकि अभी भी इसके बचे हुए नेता दुनिया के कई देशों में फैले हुए हैं जो एक बार फिर इस संगठन को खड़ा करना चाहते हैं।
LTTE की आतंकी घटनाएँ
- LTTE ने अपने गठन के बाद से ही आतंकी वारदातों को अंजाम देना शुरू कर दिया था।
- वर्ष 1983 में LTTE ने घात लगाकर हमला किया जिसमें श्रीलंकाई सेना के 13 सैनिक मारे गए। इसके बाद तमिल विरोधी दंगे भड़क गए जिनमें सैकड़ों लोगों की मौत हुई।
- LTTE ने सिलसिलेवार ढंग से बड़े-बड़े हमलों को अंजाम दिया। वर्ष 1985 में महाबोधि हमले में LTTE ने अनुराधापुरा के एक मठ में 146 लोगों की हत्या कर दी। इसके अलावा 1987 में LTTE ने श्रीलंका में एक बम धमाके में 113 लोगों की हत्या कर दी। इस हमले को कोलंबो सेंट्रल बस अड्डा धमाका के नाम से याद किया जाता है।
- इसी साल अलुथ ओया नरसंहार हुआ जिसमें LTTE ने सिंहली बौद्ध के 127 लोगों को मौत के घाट उतारा था, वहीँ 1990 में इस अलगाववादी संगठन ने कुट्टनकुड़ी मस्जिद को निशाना बनाया जिसमें 147 लोगों की जान गई।
- LTTE ने 1991 में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की और वर्ष 1993 में श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदासा की हत्या कर दी।
- 1995 में LTTE ने श्रीलंकाई सेना के विमान पर हमला कर उसे गिरा दिया। इसी वर्ष LTTE ने श्रीलंका नौसेना के दो नावों को डुबो दिया था।
- इसके अलावा 1995 से 2001 तक तथाकथित तीसरे ईलम युद्ध के दौरान LTTE के अलगाववादियों ने श्रीलंका के साथ अनेक लड़ाइयाँ लड़ीं। तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रिका कुमारतुंगे पर हमला हुआ जिसमें वह बाल-बाल बच गईं।
- वर्ष 2004 में LTTE ने कोलंबो में एक आत्मघाती हमला किया जो 2001 के बाद का सबसे बड़ा हमला था।
- अगस्त 2005 में LTTE ने श्रीलंका के विदेश मंत्री लक्ष्मण कादिरगमर की हत्या कर दी जिसके बाद श्रीलंका में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की गई।
- वर्ष 2006 में LTTE ने एक बार फिर एक बड़ी घटना को अंजाम दिया। इस हमले को दिगमपटाया नरसंहार के नाम से भी जाना जाता है जिसमें श्रीलंकाई सेना को निशाना बनाते हुए 120 नाविकों को मौत के घाट उतार दिया गया था।
निष्कर्ष
2009 में LTTE प्रमुख वी. प्रभाकरन की हत्या के बाद LTTE का आतंक ख़त्म तो हो गया लेकिन श्रीलंका और भारत समेत दुनिया के अन्य देशों में फैले इसके समर्थक अभी भी चुनौती बने हुए हैं जिनसे लगातार सतर्क रहने की ज़रूरत है।
प्रश्न : वर्तमान स्वरूप में LTTE भारत के समक्ष किस प्रकार की चुनौती प्रस्तुत कर रहा है? उन चुनौतियों से निपटने के लिये भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की चर्चा कीजिये।