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जैव विविधता और पर्यावरण

भारतीय परमाणु संयंत्रों से रेडियोधर्मी निर्वहन

  • 01 Feb 2024
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय परमाणु संयंत्रों से न्यूनतम रेडियोधर्मी निर्वहन, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC), परमाणु विखंडन, रेडियोधर्मी निर्वहन के निहितार्थ।

मेन्स के लिये:

भारतीय परमाणु संयंत्रों से न्यूनतम रेडियोधर्मी निर्वहन, पर्यावरण प्रभाव आकलन।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) के शोधकर्त्ताओं ने एक विश्लेषण में पाया है कि भारतीय परमाणु संयंत्रों से रेडियोधर्मी निर्वहन न्यूनतम हो गया है।

  • शोधकर्त्ताओं ने 20 वर्षों (वर्ष 2000-2020) की अवधि में भारत के छह परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से रेडियोलॉजिकल डेटा का विश्लेषण किया।

नोट: रेडियोधर्मी निर्वहन का तात्पर्य मानव गतिविधियों के परिणामस्वरूप पर्यावरण में रेडियोधर्मी पदार्थों की रिहाई से है, जो आमतौर पर परमाणु ऊर्जा संयंत्रों, अनुसंधान रिएक्टरों या रेडियोधर्मी सामग्रियों से जुड़ी अन्य औद्योगिक प्रक्रियाओं जैसी परमाणु सुविधाओं से होती हैं।

भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र

  • BARC महाराष्ट्र के मुंबई में स्थित भारत की प्रमुख परमाणु अनुसंधान केंद्र है।
  • यह एक बहु-अनुशासनात्मक अनुसंधान केंद्र है जिसमें उन्नत अनुसंधान और विकास के लिये व्यापक बुनियादी ढाँचा उपलब्ध है।
  • इसका उद्देश्य मुख्य रूप से परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण अनुप्रयोगों के तहत विद्युत् उत्पादन करना है।

विश्लेषण के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • न्यूनतम पर्यावरणीय प्रभाव:
    • परमाणु संयंत्रों से निकलने वाले रेडियोधर्मी निर्वहन का पर्यावरण पर न्यूनतम प्रभाव पाया गया।
    • 5 किमी. के दायरे से परे विखंडन उत्पादों की सांद्रता उपयोग किये गए उपकरणों की न्यूनतम पता लगाने योग्य गतिविधि से कम रही है, जिसका अर्थ है कि मॉनिटर किये गए मान "महत्त्वहीन" हैं।
  • रेडियोधर्मी निर्वहन के प्रकार:
    • वायुमंडल में छोड़े गए गैसीय अपशिष्ट में विखंडन उत्पाद उत्कृष्ट गैसें, आर्गन 41, रेडियोआयोडीन और कण रेडियोन्यूक्लाइड (कोबाल्ट-60, स्ट्रोंटियम-90, सीज़ियम-137 और ट्रिटियम) शामिल हैं।
    • तरल निर्वहन में विखंडन उत्पाद रेडियोन्यूक्लाइड, रेडियोआयोडीन, ट्रिटियम, स्ट्रोंटियम -90, सीज़ियम-137 और कोबाल्ट-60 जैसे सक्रियण उत्पाद शामिल होते हैं।
      • रेडियोधर्मी निर्वहन कठोर रेडियोलॉजिकल और पर्यावरण नियामक व्यवस्थाओं का पालन करते हुए, तनुकरण तथा फैलाव के माध्यम से किया जाता है।
  • वायु कण:
    • सभी सात परमाणु संयंत्रों में वायु कणों में औसत सकल अल्फा गतिविधि 0.1 मेगाबेक्यूरेल (mBq) प्रति घन मीटर से कम थी।
    • वायुमंडल में धूल के कणों की अत्यधिक मात्रा के कारणवश नरौरा परमाणु ऊर्जा स्टेशन, उत्तर प्रदेश का प्रदर्शन खराब रहा।
  • विशिष्ट मार्कर सांद्रता: 
    • सभी संयंत्रों पर वायु कणों में रेडियोन्यूक्लाइड (आयोडीन-131, सीज़ियम-137 तथा स्ट्रोंटियम-90) की औसत सांद्रता 1 mBq प्रति घन मीटर से कम थी।
    • परमाणु संयंत्रों के निकट नदियों, झीलों तथा समुद्री जल में सीज़ियम-137 एवं स्ट्रोंटियम-90 की सांद्रता निर्दिष्ट स्तर से कम थी।
  • तलछट सांद्रता:
    • तलछट में सीज़ियम-137 तथा स्ट्रोंटियम-90 की सांद्रता प्राकृतिक तलछट में पाए जाने वाले मूल्यों की सांख्यिकीय भिन्नता के समान थे और साथ ही यह जमाव अथवा संचय की किसी प्रवृत्ति से मुक्त था।
  • ट्रिटियम की मौजूदगी:
    • कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा स्टेशन के अतिरिक्त सभी संयंत्रों पर ट्रिटियम न्यूनतम पता लगाने योग्य गतिविधि से ऊपर पाया गया।
    • राजस्थान परमाणु ऊर्जा स्टेशन में ट्रिटियम की सांद्रता अपेक्षाकृत अधिक थी।

निष्कर्षों का क्या महत्त्व है?

  • ये निष्कर्ष भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करने के लिये संभावित मार्ग प्रदान करते हैं। न्यूनतम सार्वजनिक प्रभाव भारतीय परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के सुरक्षित संचालन को रेखांकित करती है।

रेडियोधर्मी विसर्जन के क्या प्रभाव हैं?

  • पर्यावरणीय प्रभाव:
    • पर्यावरण में उत्सर्जित रेडियोधर्मी पदार्थ पारिस्थितिक तंत्र असंतुलित कर सकते हैं जिससे पौधों, जानवरों और सूक्ष्मजीवों की स्थिति प्रभावित हो सकती है।
    • रेडियोधर्मी कण मृदा तथा तलछट पर जमा हो सकते हैं जिससे प्रदूषण उत्पन्न हो सकता है। जल निकायों में रेडियोधर्मी पदार्थ जमा होने से संभावित रूप से जलीय जीवन प्रभावित हो सकते हैं।
      • वर्ष 1986 में घटित चेरनोबिल दुर्घटना में वायुमंडल में अत्यधिक मात्रा में रेडियोधर्मी कण उत्सर्जित हुए। ये कण मृदा तथा जल निकायों पर जमा हो गए जिससे बड़े पैमाने पर प्रदूषण संचरित हुआ। निकटवर्ती प्रिप्यात (Pripyat) नदी एवं उसकी सहायक नदियाँ प्रदूषित हुईं जिससे जलीय जीवन प्रभावित हुआ।
  • मानव स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ:
    • रेडियोधर्मी विसर्जन से संबद्ध क्षेत्र की आबादी आयनीकृत विकिरण के संपर्क में आ सकती है। लंबे समय तक अथवा उच्च स्तर के संपर्क में रहने से कैंसर सहित विकिरण संबंधी स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है।
    • लोग विशेष रूप से दूषित वायु, जल अथवा भोजन के माध्यम से रेडियोधर्मी कणों को श्वसन के माध्यम से ग्रहण कर सकते हैं। इससे आंतरिक रूप से विकिरण का जोखिम हो सकता है।
      • चेरनोबिल दुर्घटना में श्रमिकों तथा स्थानीय निवासियों सहित प्रभावित आबादी में आयोडीन-131 की मौजूदगी के कारण थायराइड कैंसर की दर में वृद्धि हुई।
  • दीर्घकालिक स्वास्थ्य जोखिम:
    • स्ट्रोंटियम-90 और सीज़ियम-137 जैसे कुछ रेडियोधर्मी पदार्थों के संपर्क में आने से कैंसर का खतरा बढ़ जाता है, यदि यह संपर्क लंबे समय तक रहता है।
    • आयनीकृत विकिरण संभावित रूप से आनुवंशिक उत्परिवर्तन का कारण बन सकते हैं, जिससे भावी पीढ़ियों में वंशानुगत विकारों का खतरा बढ़ जाता है।
  • कृषि एवं खाद्य शृंखला पर प्रभाव:
    • यदि रेडियोधर्मी पदार्थ खाद्य शृंखला में प्रवेश करते हैं, तो कृषि उत्पाद और पशुधन दूषित हो सकते हैं, जिससे उपभोक्ताओं के लिये जोखिम पैदा हो सकता है।
    • वर्ष 2011 की फुकुशिमा परमाणु आपदा में, परमाणु विकिरण ने चावल और मछली जैसे कृषि उत्पादों को दूषित कर दिया, जिससे खाद्य सुरक्षा के बारे में चिंताएँ बढ़ गईं।
  • आर्थिक परिणाम:
    • रेडियोधर्मी रिसाव के संपर्क में आने वाले परमाणु रिएक्टरों के आसपास की संपत्ति का मूल्य सुरक्षा चिंताओं के परिणामस्वरूप गिर सकता है।
    • रेडियोधर्मी रिसाव की लगातार घटनाएँ परमाणु उद्योग की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा सकती हैं, जिसका वित्त पोषण और नई परियोजना के निर्माण पर असर पड़ सकता है।
      • थ्री माइल आइलैंड दुर्घटना (1979) ने परमाणु ऊर्जा में जनता के विश्वास को कम करने में योगदान दिया, जिससे नियामक जाँच में वृद्धि हुई और संयुक्त राज्य अमेरिका में नई परमाणु परियोजनाओं के विकास में मंदी आई।

सुरक्षित रेडियोधर्मी निर्वहन से संबंधित पहल क्या हैं?

  • अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन एवं समझौते:
    • परमाणु दुर्घटना की पूर्व सूचना पर कन्वेंशन:  यह वर्ष 1986 में अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency - IAEA) द्वारा अपनाई गई एक संधि है।
      • संधि के अनुसार, सरकारों को किसी भी परमाणु दुर्घटना की तत्काल सूचना देनी होगी जो अन्य देशों को प्रभावित कर सकती है।
    • प्रयुक्त ईंधन प्रबंधन की सुरक्षा और रेडियोधर्मी अपशिष्ट प्रबंधन की सुरक्षा पर संयुक्त सम्मेलन: यह IAEA की वर्ष 1997 की संधि है। यह वैश्विक स्तर पर रेडियोधर्मी अपशिष्ट प्रबंधन को निर्धारित करने वाली पहली संधि थी।
      • इसका उद्देश्य दुर्घटनाओं की रोकथाम और संभावित रेडियोलॉज़िकल खतरों को कम करने सहित प्रयुक्त ईंधन प्रबंधन तथा रेडियोधर्मी अपशिष्ट प्रबंधन की सुरक्षा को निर्धारित करना है।
    • परमाणु सुरक्षा पर सम्मलेन (convention on nuclear security- CNS): CNS  एक कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि है जिसे वर्ष 1994 में अपनाया गया था और इसका उद्देश्य परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। CNS एक प्रोत्साहन-आधारित संधि है जिसके लिये राज्यों को परमाणु सुरक्षा के लिये एक नियामक ढाँचा स्थापित करने और बनाए रखने की आवश्यकता होती है। CNS का उद्देश्य व्यक्तियों, समाज और पर्यावरण को आयनकारी विकिरण के हानिकारक प्रभावों से बचाना भी है।
    • रेडियोधर्मी अपशिष्ट और व्यय ईंधन प्रबंधन पर यूरोपीय संघ (European Union- EU) के निर्देश: यूरोपीय संघ के देशों को (EU) रेडियोधर्मी अपशिष्ट और व्यय किये गए ईंधन प्रबंधन निर्देश के लिये एक राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता है।
      • निर्देश में देशों को इन पदार्थों के प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम तैयार करने और इसे लागू करने की भी आवश्यकता है।
  • भारत की पहल:
    • परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (Atomic Energy Regulatory Board- AERB): AERB भारत में परमाणु और विकिरण सुरक्षा के लिये नियामक निकाय के रूप में कार्य करती है। यह रेडियोधर्मी निर्वहन के उपायों सहित परमाणु सुविधाओं के सुरक्षित संचालन को सुनिश्चित करने के लिये नियमों, दिशा-निर्देशों और मानकों को स्थापित कर उन्हें लागू करता है।
    • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment- EIA): ऊर्जा संयंत्रों सहित परमाणु परियोजनाएँ पर्यावरणीय प्रभाव के सख्त आकलन के अधीन हैं। ये आकलन किसी परियोजना को मंज़ूरी देने से पूर्व रेडियोधर्मी अपशिष्ट के निस्सरण सहित संभावित पर्यावरणीय और स्वास्थ्य प्रभावों का भी मूल्यांकन करते हैं।
    • प्रवाह उपचार और तनुकरण (मंदन): परमाणु सुविधाएँ निस्सरण से पूर्व तरल रेडियोधर्मी अपशिष्ट का प्रबंधन करने के लिये प्रवाह उपचार प्रणाली का उपयोग करती हैं। निस्सरण प्रक्रिया में रेडियोधर्मी पदार्थों की सांद्रता को कम करने के लिये प्रायः तनुकरण और प्रकीर्णन तकनीकों का उपयोग किया जाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

Q. कुछ लोगों का सोचना है कि तेज़ी से बढ़ रही ऊर्जा की ज़रूरत पूरी करने के लिये भारत को थोरियम को नाभिकीय ऊर्जा के भविष्य के ईंधन के रूप में विकसित करने के लिये शोध और विकास करना चाहिये। इस संदर्भ में थोरियम यूरेनियम की तुलना में कैसे अधिक लाभकारी है? (2012)

  1. प्रकृति में यूरेनियम की तुलना में थोरियम के कहीं अधिक भण्डार हैं।
  2. उत्खनन-प्राप्त खनिज से मिलने वाली प्रति इकाई द्रव्यमान ऊर्जा की तुलना की जाए, तो थोरियम,प्राकृतिक यूरेनियम की तुलना में, कहीं अधिक ऊर्जा उत्पन्न करता है।  
  3. थोरियम, यूरेनियम की तुलना में, कम नुकसानदेह अपशिष्ट उत्पादित करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


Q. निम्नलिखित में से किस देश में विश्व में यूरेनियम का सबसे बड़ा भंडार है? (2009)

(a) ऑस्ट्रेलिया
(b) कनाडा
(c) रूसी संघ
(d) संयुक्त राज्य अमेरिका 

उत्तर: (a)

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