महात्मा गांधी की 154वीं जयंती
प्रिलिम्स के लिये:महात्मा गांधी, भारतीय बैंकनोट, भारतीय रिज़र्व बैंक, सेवाग्राम आश्रम, स्वच्छ भारत अभियान, सत्य, अहिंसा मेन्स के लिये:समकालीन विश्व में महात्मा गांधी के सिद्धांतों और शिक्षाओं की प्रासंगिकता |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
स्वतंत्रता संग्राम में उनके अपरिहार्य भूमिका के आलोक में 2 अक्तूबर, 2023 को पूरे देश में महात्मा गांधी की 154वीं जयंती मनाई गई। उनके सिद्धांत और आदर्श वर्तमान समय में अत्यंत प्रासंगिक हैं तथा राष्ट्र को प्रेरित करते हैं।
- स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के कारण उन्हें "राष्ट्रपिता" की उपाधि प्राप्त हुई, जिसके कारण उनका चित्र भारतीय बैंकनोटों पर चित्रित किया गया।
- बहुआयामी व्यक्तित्त्व वाले महात्मा गांधी संगीत में गहरी रुचि रखते थे और उन्होंने हमेशा ही पर्यावरण की सुरक्षा को बढ़ावा दिया।
महात्मा गांधी:
भारतीय मुद्रा और गांधी की तस्वीर:
- भारतीय मुद्रा पर गांधी की तस्वीर मुद्रित होने की शुरुआत:
- बैंक नोटों पर दिखाई देने वाली गांधी की तस्वीर वर्ष 1946 में ली गई उनकी एक तस्वीर का कट-आउट, अर्थात एक भाग है, जिसमें वह ब्रिटिश राजनेता लॉर्ड फ्रेडरिक विलियम पेथिक-लॉरेंस के साथ खड़े हैं।
- इस तस्वीर के चयन का प्रमुख कारण यह है कि इस तस्वीर में गांधीजी की मुस्कुराहट की अभिव्यक्ति सबसे उपयुक्त थी, साथ ही यह तस्वीर कट-आउट चित्र की दर्पण छवि (मिरर इमेज) है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम की धारा 25 के अनुसार, बैंकनोट की रूपरेखा (डिज़ाइन), स्वरूप और सामग्री भारतीय रिज़र्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड की अनुसंशा पर विचार करने के उपरांत केंद्र सरकार के अनुमोदन के अनुरूप की जाती है।
- भारतीय नोटों पर पहली बार गांधीजी की तस्वीर:
- गांधीजी की 100वीं जयंती के उपलक्ष्य में वर्ष 1969 में नोटों की एक नई सीरीज़/शृंखला जारी करने के साथ ही पहली बार भारतीय मुद्रा पर गांधी की तस्वीर अंकित की गई थी।
- फिर अक्तूबर 1987 में गांधीजी की तस्वीर वाले 500 रुपए के नोटों की एक शृंखला शुरू की गई।
- बैंक नोटों पर गांधी का स्थायित्त्व:
- गांधी के चयन का कारण उनका राष्ट्रीय महत्त्व था और वर्ष 1996 में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अशोक स्तंभ वाले बैंक नोटों को प्रतिस्थापित करने के लिये एक नई 'महात्मा गांधी शृंखला' शुरू की गई थी।
- सुरक्षा की दृष्टि से इन नोटों में एक गुप्त छवि, विंडोड सिक्योरिटी थ्रेड तथा दृष्टिबाधित लोगों के लिये इंटैग्लियो सुविधाओं से लैस किया गया था।
संधारणीयता के संबंध में गांधी के विचार:
- सादगी और न्यूनतावाद:
- गांधीजी ने सरल और न्यूनतावादी जीवन शैली को बढ़ावा दिया। उनका मानना था कि लोगों को आवश्यकता से कम उपभोग करना चाहिये और सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहिये।
- सरल जीवन अथवा "सर्वोदय" का यह विचार संसाधनों के संरक्षण और पारिस्थितिक फुटप्रिंट को कम करने के विचार को प्रोत्साहित करता है।
- आत्मनिर्भरता:
- गांधीजी ने सामुदायिक स्तर पर आत्मनिर्भरता के महत्त्व पर काफी बल दिया। उन्होंने भोजन, वस्त्र और अन्य बुनियादी आवश्यकताओं के मामले में गाँवों को आत्मनिर्भर बनने के विचार को बढ़ावा दिया।
- यह दृष्टिकोण बाहरी संसाधनों पर निर्भरता को कम करने के साथ ही लंबी दूरी के परिवहन तथा व्यापार से जुड़े पर्यावरणीय प्रभावों को कम करता है।
- अहिंसा:
- गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांत में मानवीय संबंधों के साथ-साथ सभी जीवित प्राणी और पर्यावरण समाहित हैं। वह पशुओं के प्रति नैतिक व्यवहार में विश्वास करते थे और स्वयं शाकाहारी थे।
- यह सभी प्राणियों के कल्याण के प्रति उनकी चिंता और प्रकृति के साथ सौहार्दपूर्वक सह-अस्तित्त्व के महत्त्व को दर्शाता है।
- धारणीय कृषि का विचार:
- गांधीजी ने धारणीय और जैविक कृषि पद्धतियों का समर्थन किया। उन्होंने मृदा की उर्वरता को बनाए रखने में रासायनिक तत्त्वों के उपयोग को कम करने तथा प्राकृतिक उर्वरकों, फसल चक्र और पारंपरिक खेती के तरीकों के उपयोग को बढ़ावा देने पर बल दिया।
- संसाधनों का संरक्षण:
- गांधीजी ने जल और वन जैसे प्राकृतिक संसाधनों के उत्तरदायित्त्वपूर्ण उपयोग एवं संरक्षण पर ज़ोर दिया।
- उनका मानना था आने वाली पीढ़ियों की इन संसाधनों तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये पर्यावरण की रक्षा और पुनरुद्धार आवश्यक हैं।
- स्थानीयता और विकेंद्रीकरण:
- गांधीजी सत्ता और संसाधनों के विकेंद्रीकरण के समर्थक थे। वह स्थानीय समुदायों को अधिकार सौंपने में विश्वास करते थे, जो उनकी अपनी पर्यावरणीय और धारणीय आवश्यकताओं के अनुरूप हो सकते हैं।
- स्वदेशी:
- गांधीजी ने स्वदेशी आंदोलन को बढ़ावा दिया, जिसने स्थानीय रूप से उत्पादित वस्तुओं और सामग्रियों के उपयोग को प्रोत्साहित किया।
- इस विचार का उद्देश्य क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देना और लंबी दूरी के व्यापार द्वारा पर्यावरण पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को कम करना था।
- प्रकृति का सम्मान:
- गांधी जी का मानना था कि मनुष्य को प्रकृति के प्रति गहन सम्मान और श्रद्धा रखनी चाहिये।
- उन्होंने प्रकृति को मानव जीवन का एक अनिवार्य अंग माना और पर्यावरण के संधारणीय प्रबंधन का आह्वान किया।
- वसुधैव कुटुंबकम्:
- वसुधैव कुटुंबकम् (पूरा विश्व एक परिवार है) में उनका विश्वास, हम सभी एक विश्व के नागरिक हैं, के विचार को प्रोत्साहित करता है तथा यह रेखांकित करता है कि हमें वैश्विक मुद्दों के प्रति सचेत रहना चाहिये।
महात्मा गांधी की राजनीतिक विचार का संगीत से संबंध:
- भजन और धार्मिक संगीत:
- गांधी का एक मज़बूत आध्यात्मिक पक्ष था और वह अक्सर भजन (हिंदू धार्मिक गीत) जैसे भक्ति संगीत का उपयोग अपने आंतरिक स्व से जुड़ने एवं सांत्वना पाने के साधन के रूप में करते थे।
- उनका मानना था कि भजन और धार्मिक गीत के गायन से मन को शुद्ध करने एवं परमात्मा के साथ संबंध जुड़ने में मदद मिलती है।
- प्रेरणादायक गीत:
- गांधीजी ने स्वतंत्रता संघर्ष में लोगों को एकजुट करने के लिये प्रेरणादायक और देशभक्ति गीतों के उपयोग को प्रोत्साहित किया।
- "रघुपति राघव राजा राम" और "वैष्णव जन तो" जैसे गीत उनके प्रिय में से थे तथा अक्सर उनकी प्रार्थना सभाओं एवं सार्वजनिक समारोहों के दौरान गाए जाते थे।
- उपवास और मौन:
- गांधीजी कभी-कभी विरोध प्रदर्शित करने या आत्म-शुद्धि के रूप में उपवास और मौन का अभ्यास करते थे।
- इस दौरान वह अक्सर लिखित संदेशों के माध्यम से दूसरों के साथ संवाद करते थे और अपने विचारों एवं भावनाओं को व्यक्त करने के लिये संगीत का उपयोग करते थे।
- सामुदायिक जुड़ाव:
- गांधीजी के अहिंसक आंदोलनों के दौरान समुदायों को एक साथ लाने में संगीत ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- मंत्रों, गीतों एवं संगीत ने दांडी मार्च जैसे विभिन्न अभियानों में भाग लेने वालों के बीच एकता और एकजुटता की भावना को बल प्रदान किया।
- लोक संगीत को प्रोत्साहन:
- गांधी पारंपरिक भारतीय संस्कृति के समर्थक थे और लोक संगीत एवं कलाओं के संरक्षण में विश्वास करते थे।
- उन्होंने जन सामान्य से जुड़ने के लिये स्थानीय भाषाओं एवं संगीत के प्रयोग को प्रोत्साहित किया, क्योंकि उनका मानना था कि वे अधिक प्रासंगिक और सुलभ थे।
- अहिंसक आंदोलन में भूमिका:
- संगीत गांधीजी के नेतृत्व वाले अहिंसक आंदोलनों का एक अभिन्न अंग था। इसने लोगों को प्रेरित करने और एकजुट करने, सामूहिक पहचान की भावना को बढ़ावा देने तथा चुनौतीपूर्ण समय के दौरान उनका मनोबल बढ़ाने के साधन के रूप में कार्य किया।
- सादगी का समर्थन:
- गांधीजी का सादगी और न्यूनतावाद का दर्शन संगीत तक विस्तृत था। वह सरल एवं मधुर धुनों को प्राथमिकता देते थे जिन्हें आम लोग आसानी से समझ सकें और सराह सकें।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन अंग्रेज़ी में प्राचीन भारतीय धार्मिक गीतों के अनुवाद 'सॉन्ग्स फ्रॉम प्रिज़न' से संबंधित है? (2021) (a) बाल गंगाधर तिलक उत्तर: (c) प्रश्न. भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के रचनात्मक कार्यक्रमों पर प्रकाश डालिये। (2021) |
बिहार में जाति-जनगणना
प्रिलिम्स के लिये:अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), अति पिछड़ा वर्ग (EBC), जनगणना, सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC), रोहिणी आयोग, उप-वर्गीकरण मेन्स के लिये:शासन में सुधार और वंचित वर्गों के लिये संसाधन जुटाने की प्रक्रिया पर जातिगत जनगणना का प्रभाव। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बिहार राज्य सरकार ने जाति-सर्वेक्षण, 2023 के निष्कर्ष जारी किये, जिसमें पता चला कि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) संयुक्त रूप से राज्य की कुल आबादी का 63% हैं।
- माना जाता है कि ये निष्कर्षों राज्य और राष्ट्रीय चुनावों के साथ ही विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के लिये इच्छित लाभार्थियों की पहचान करने में व्यापक रूप से सहायक साबित होंगे।
बिहार के जाति-सर्वेक्षण के प्रमुख निष्कर्ष:
विभिन्न जातियाँ और समुदाय (बिहार) |
प्रतिशत जनसंख्या (%) |
अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBCs) |
36.01 % |
अन्य पिछड़ा वर्ग (OBCs) |
27.12 % |
अनुसूचित जाति |
19.65 % |
अनुसूचित जनजाति |
1.68% |
बौद्ध, ईसाई, सिख और जैन |
< 1 % |
कुल जनसंख्या (बिहार) |
13.07 करोड़ |
जाति सर्वेक्षण में अपनाई गई प्रक्रिया:
यह सर्वेक्षण दो चरणों में किया गया, जिनमें से प्रत्येक के अपने मानदंड और उद्देश्य थे।
- पहला चरण:
- इस चरण के दौरान, बिहार के सभी घरों की संख्या दर्ज़ की गई।
- प्रगणकों को 17 प्रश्नों का एक सेट दिया गया था जिनका उत्तर प्रत्यर्थी को अनिवार्य रूप से देना था।
- दूसरा चरण:
- इस चरण के दौरान घरों में रहने वाले व्यक्तियों, उनकी जातियों, उप-जातियों और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के संबंध में डेटा एकत्र किया गया।
- हालाँकि परिवार के मुखिया का आधार संख्या, जाति प्रमाण पत्र संख्या और राशन कार्ड संख्या अंकित करना वैकल्पिक था।
बिहार जाति सर्वेक्षण के निष्कर्षों का महत्त्व:
- OBC कोटा बढ़ाना:
- इस सर्वेक्षण के निष्कर्ष से OBC कोटा को 27% से अधिक बढ़ाने और EBC कोटे के अंतर्गत कोटे की मांग में बढ़त होने की संभावना है।
- वर्ष 2017 से OBC के उप-वर्गीकरण पर विचार कर रहे जस्टिस रोहिणी आयोग ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है और इसकी सिफारिशें अभी तक सार्वजनिक नहीं की गई हैं।
- इस सर्वेक्षण के निष्कर्ष से OBC कोटा को 27% से अधिक बढ़ाने और EBC कोटे के अंतर्गत कोटे की मांग में बढ़त होने की संभावना है।
- आरक्षण सीमा का पुनर्निर्धारण:
- यह सर्वेक्षण डेटा इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ (1992) मामले में अपने ऐतिहासिक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई आरक्षण पर 50% की सीमा पर बहस को फिर से शुरू कर देगा।
- OBC की जनसंख्या के आधार पर, जाति समूहों के विभिन्न वर्ग जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण कोटा बढ़ाने की मांग कर सकते है।
- यह सर्वेक्षण डेटा इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ (1992) मामले में अपने ऐतिहासिक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई आरक्षण पर 50% की सीमा पर बहस को फिर से शुरू कर देगा।
- संवैधानिक दायित्व की पूर्ति:
- जाति सर्वेक्षण संविधान के भाग IV में उल्लिखित राज्य नीतियों के निदेशक सिद्धांतों (DPSP) में बताए गए उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता करेगा।
- इससे संविधान निर्माताओं द्वारा उल्लिखित सामाजिक-आर्थिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में प्रमुख रूप से मदद मिलेगी।
- जाति सर्वेक्षण संविधान के भाग IV में उल्लिखित राज्य नीतियों के निदेशक सिद्धांतों (DPSP) में बताए गए उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता करेगा।
- सर्वोदय की प्राप्ति:
- लक्षित उपायों को विकसित करने के लिये जाति जनगणना का उचित उपयोग किया जा सकता है ताकि राज्य भर में व्याप्त असमानता को कम किया जा सके और भविष्य में समानता एवं सामाजिक न्याय को बढ़ावा दिया जा सके।
जाति जनगणना से जुड़े मुद्दे:
- जाति जनगणना के परिणाम:
- जाति में एक भावनात्मक तत्त्व होता है और इस प्रकार जाति जनगणना के राजनीतिक एवं सामाजिक प्रभाव होते हैं।
- ऐसी चिंताएँ रही हैं कि जाति की गिनती से अस्मिता को मज़बूत बनाने में सहायता मिल सकती है।
- इन दुष्परिणामों के कारण, SECC (Socio-Economic and Caste Census) के लगभग एक दशक बाद, जाति जनगणना से संबंधित डेटा की एक बड़ी मात्रा अप्रकाशित है या केवल अंशों में जारी की गई है।
- जाति की संदर्भ-विशिष्टता:
- भारत में जाति कभी भी वर्ग या अभाव का प्रतीक नहीं रही है; यह एक विशिष्ट प्रकार का अंतर्निहित भेदभाव है जो अक्सर वर्ग से परे होता है।
- उदाहरण:
- दलित उपनाम वाले लोगों को रोज़गार के लिये साक्षात्कार के लिये बुलाए जाने की संभावनाएँ कम होती हैं, भले ही उनकी योग्यता उच्च जाति के उम्मीदवारों से बेहतर हो।
- मकान मालिकों द्वारा उन्हें किरायेदार के रूप में स्वीकार किये जाने की संभावनाएँ भी कम होती हैं।
- आज भी देश भर में एक सुशिक्षित, संपन्न परिवार के दलित लड़के से विवाह उच्च जाति की महिलाओं के परिवारों में हिंसक प्रतिशोध की भावना को भड़का सकता है।
भारत में अंतिम जाति-जनगणना का आयोजन:
- वर्ष 1931 की जाति-जनगणना:
- अंतिम जाति-जनगणना वर्ष 1931 में आयोजित की गई थी और इससे संबंधित डेटा तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया गया था।
- यह जाति-जनगणना मंडल आयोग की रिपोर्ट और उसके बाद सरकार द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग के लिये आरक्षण नीतियों के कार्यान्वयन का आधार बनी।
- वर्ष 2011 की जनगणना:
- वर्ष 2011 की जनगणना आज़ादी के बाद पहली ऐसी जनगणना है जिसमे जाति-आधारित डेटा एकत्र किये गए।
- हालाँकि राजनीतिक पक्षपात और अवसरवादिता के भय से जाति से संबंधित आँकड़े सार्वजनिक नहीं किये गये।
जनगणना:
- जनगणना की उत्पत्ति:
- भारत में जनगणना की शुरुआत वर्ष 1881 की औपनिवेशिक काल के समय हुई थी।
- जनगणना कार्य का विकास होता गया जिसका प्रयोग सरकार, नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों और अन्य व्यक्तियों द्वारा भारतीयों की जनसंख्या पर डेटा एकत्र करने, संसाधनों तक पहुँच बनाने, सामाजिक परिवर्तन की रूपरेखा बनाने, परिसीमन अभ्यास आदि के लिये किया जाता है।
- सामाजिक-आर्थिक और जाति-जनगणना (Socio-Economic and Caste Census- SECC) के रूप में पहली जाति जनगणना:
- इसे SECC पहली बार वर्ष 1931 में आयोजित किया गया था।
- SECC का उद्देश्य ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में प्रत्येक भारतीय परिवार से आँकड़े एकत्रित करना तथा उनसे जुड़े निम्नलिखित तथ्यों के बारे में पूछताछ करना है:
- आर्थिक स्थिति, केंद्र और राज्य अधिकारियों को अभाव, क्रमपरिवर्तन एवं संयोजन के विभिन्न संकेतक विकसित करने की अनुमति देती है, जिसका उपयोग प्रत्येक प्राधिकरण एक गरीब या वंचित व्यक्ति को नामित करने के लिये किया जा सके।
- इसका मतलब प्रत्येक व्यक्ति से उनकी विशिष्ट जाति का नाम पूछना भी है ताकि सरकार को यह पुनर्मूल्यांकन करने में मदद मिल सके कि कौन-सी जाति समूह आर्थिक रूप से पिछड़े थे और कौन-से बेहतर थी।
- जनगणना और SECC के बीच अंतर:
- जनगणना भारतीय जनसंख्या का वर्णन करता है, जबकि SECC राज्य सरकार द्वारा समर्थित लाभार्थियों की पहचान करने का एक उपकरण है।
- चूँकि जनगणना जनगणना अधिनियम,1948 के अंतर्गत आती है, इसलिये सभी डेटा को गोपनीय माना जाता है, जबकि SECC वेबसाइट के अनुसार, "SECC में दी गई सभी व्यक्तिगत जानकारियाँ सरकारी विभागों द्वारा परिवारों को लाभ प्रदान करने और/या लाभों से प्रतिबंधित करने हेतु उपयोग के लिये उपलब्ध होती।”
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2009)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) |
नीलगिरी जैवविविधता में बाघों की मृत्यु चिंतनीय
प्रिलिम्स के लिये:बायोस्फीयर रिज़र्व, नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व, बाघ मेन्स के लिये:बाघ संरक्षण का महत्त्व, संबंधित पहलें |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
तमिलनाडु का नीलगिरी ज़िला जैवविविधता से समृद्ध है और यहाँ बड़ी संख्या में बाघ पाए जाते हैं। हालाँकि पिछले दो महीनों में इस ज़िले में विभिन्न कारणों से 10 बाघों की मौत हो चुकी है।
- बाघों की मृत्यु के परिणामस्वरुप उनके संरक्षण एवं अस्तित्त्व को लेकर संरक्षणवादी और प्राधिकार चिंतित हैं।
नीलगिरी में बाघों की मृत्यु का कारण:
- बाघों का उच्च घनत्त्व:
- नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व के मुदुमलाई-बांदीपुर-नागरहोल परिसर में बाघों की संख्या व घनत्त्व अधिक होने के कारण काफी सारे बाघ मुकुर्थी राष्ट्रीय उद्यान, नीलगिरि तथा गुडलूर वन प्रभागों के आसपास के आवासों की ओर प्रस्थान कर रहे हैं, जिसके परिणामतः मानव-वन्यजीव संघर्ष के मामले में भी वृद्धि देखी गई है।
- बाघों की संख्या में वृद्धि से स्पॉटेड डियर और इंडियन गौर जैसी शिकारी प्रजातियों पर प्रभाव पड़ता है।
- प्राकृतिक शिकार की कमी के कारण बाघ, पशुओं को निशाना बना सकते हैं, जिससे संघर्ष बढ़ सकता है और परिणामस्वरूप अधिक मौतें हो सकती हैं।
- भुखमरी और संक्रमण:
- मुदुमलाई टाइगर रिज़र्व के बफर ज़ोन में बाघ के शावक मृत पाए गए, जिनकी उम्र दो सप्ताह बताई जा रही है।
- पोस्टमॉर्टम में भुखमरी या नाभि संक्रमण जैसे संभावित कारणों की आशंका जताई गई है।
- मुदुमलाई टाइगर रिज़र्व के बफर ज़ोन में बाघ के शावक मृत पाए गए, जिनकी उम्र दो सप्ताह बताई जा रही है।
बाघों की संख्या के खतरों को लेकर संरक्षणवादियों की चिंताएँ:
- अवैध शिकार का खतरा: नीलगिरी ज़िले में हाल ही में हुई शिकार की घटनाएँ बाघों के लिये लगातार खतरे को रेखांकित करती हैं।
- आखेटक, बाघों को उनके मूल्यवान शारीरिक अंगों, जैसे खाल, हड्डियों और अन्य अंगों के लिये निशाना बनाते हैं, जिससे आबादी के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न होता है।
- ट्रैकिंग और सुरक्षा का अभाव: बाघों की आबादी को प्रभावी ढंग से ट्रैक करने और उनकी सुरक्षा करने में प्रत्यक्ष चुनौतियाँ इसकी चिंताओं का कारण हैं।
- इन प्रभावशाली जानवरों की निगरानी और सुरक्षा करने में असमर्थता संरक्षणवादियों की चिंताओं में से एक है।
- शिकार प्रबंधन का अभाव: संरक्षित क्षेत्रों में अपर्याप्त शिकार जनसंख्या प्रबंधन से असंतुलन उत्पन्न हो सकता है।
- बाघों के लिये पर्याप्त शिकार सुनिश्चित करना उनके अस्तित्व के लिये आवश्यक है।
- पर्यावास का क्षरण: क्षरित आवास सीमित संसाधन प्रदान करते हैं, जिससे बाघों को भोजन की तलाश में भटकने के लिये मजबूर होना पड़ता है।
- मानवीय गतिविधियों, वनों की कटाई और अतिक्रमण से बाघों के निवास स्थान को क्षति पहुँचती हैं।
नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व:
- परिचय:
- नीलगिरि शब्द, जिसका अर्थ "नीले पहाड़" है, तमिलनाडु में नीलगिरि पठार में नीले फूलों से अच्छादित पहाड़ों (नीलकुरिंजी फूल) से लिया गया है।
- यह रिज़र्व तीन भारतीय राज्यों में फैला हुआ है: तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल।
- यह यूनेस्को के मानव और जीवमंडल कार्यक्रम के तहत भारत का पहला बायोस्फीयर रिज़र्व है, जो वर्ष 1986 में स्थापित किया गया था।
- यह आदियान, अरनादान, कादर, कुरिचियन, कुरुमन और कुरुम्बा जैसे कई आदिवासी समूहों का निवास स्थल है।
- यह विश्व के अफ्रीकी-उष्णकटिबंधीय और इंडो-मलायन जैविक क्षेत्रों के संगम को चित्रित करता है।
- नीलगिरि शब्द, जिसका अर्थ "नीले पहाड़" है, तमिलनाडु में नीलगिरि पठार में नीले फूलों से अच्छादित पहाड़ों (नीलकुरिंजी फूल) से लिया गया है।
- जीव-जंतु:
- यहाँ नीलगिरि तहर, नीलगिरि लंगूर, स्लेंडर लोरिस, काला हिरण, बाघ, गौर, भारतीय हाथी और नेवला जैसे जीव पाए जाते हैं।
- मीठे जल की मछलियाँ जैसे नीलगिरि डेनियो (Devario neilgherriensis), नीलगिरि बार्ब (Hypselobarbus dubuis) और बोवेनी बार्ब (Puntius bovanicus) इस बायोस्फीयर रिज़र्व के लिये स्थानिक हैं।
- NBR में संरक्षित क्षेत्र:
- मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य, वायनाड वन्यजीव अभयारण्य, बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान, नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान, मुकुर्थी राष्ट्रीय उद्यान और साइलेंट वैली इस रिज़र्व के अंदर मौज़ूद संरक्षित क्षेत्र हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित बाघ आरक्षित क्षेत्रों में "क्रांतिक बाघ आवास (Critical Tiger Habitat)" के अंतर्गत सबसे बड़ा क्षेत्र किसके पास है? (2020) (a) कॉर्बेट उत्तर: (c) |
मनरेगा योजना की सामाजिक लेखा परीक्षा
प्रिलिम्स के लिये:महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, सामाजिक लेखा परीक्षा तंत्र, मनरेगा और सतत् विकास लक्ष्य, क्रय शक्ति। मेन्स के लिये:मनरेगा के तहत सामाजिक लेखा परीक्षा तंत्र और संबंधित मुद्दे। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), भारत में सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों का एक मूलभूत घटक है, हालिया समय में इस योजना में भ्रष्टाचार की उच्च दर योजना की सार्थकता को लेकर चिंताएँ उत्पन्न करती है।
- हालाँकि इस कार्यक्रम में सामाजिक लेखा परीक्षा इकाइयाँ जैसे तंत्र शामिल हैं, फिर भी फंड रिकवरी और समग्र प्रभावशीलता के संदर्भ में हालिया आँकड़े निराशाजनक हैं।
हालिया आँकड़े:
- वर्तमान वित्तीय वर्ष (2023-24) में मनरेगा के सामाजिक लेखा परीक्षा के परिणामों में इस योजना के तहत ₹27.5 करोड़ की राशि की हेराफेरी की जानकारी दी गई है।
- सुधारात्मक कार्रवाई करने के बाद यह राशि घटकर ₹9.5 करोड़ हो गई लेकिन अभी तक इसका केवल ₹1.31 करोड़ (कुल का राशि का 13.8%) ही रिकवर किया जा सका है।
- पिछले वित्तीय वर्षों में रिकवरी की दरों में रिकवरी संबंधी अक्षमता की समान प्रवृत्ति थी:
- वित्तीय वर्ष 2022-23 में रिकवरी योग्य राशि ₹86.2 करोड़ थी, लेकिन केवल ₹18 करोड़ (कुल राशि का 20.8%) ही रिकवर की गई।
- वित्तीय वर्ष 2021-22 में, ₹171 करोड़ का लक्ष्य रखा गया था, फिर भी मात्र ₹26 करोड़ (कुल राशि का 15%) की रिकवर की जा सकी।
- रिकवरी दरों में लगातार गिरावट भ्रष्टाचार से निपटने में योजना की प्रभावशीलता के लिये चिंता का विषय है।
- रिकवरी दरों में नितन्तर गिरावट पूरी लेखा परीक्षा प्रक्रिया की विश्वसनीयता के लिये भी जोखिम उत्पन्न करती है। इससे मनरेगा की विश्वसनीयता और इसके उद्देश्य के संबंध में आमजन का विश्वास कम होने का एक अन्य खतरा है।
मनरेगा योजना:
- परिचय: मनरेगा ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2005 में शुरू किया गया था, यह विश्व के सबसे बड़े रोज़गार गारंटी कार्यक्रमों में से एक है।
- यह वैधानिक न्यूनतम वेतन पर सार्वजनिक कार्य से संबंधित अकुशल शारीरिक कार्य करने के इच्छुक किसी भी ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों के रोज़गार की कानूनी गारंटी प्रदान करता है।
- सक्रिय कर्मचारी: 14.32 करोड़ (2023-24)
- प्रमुख विशेषताएँ:
- मनरेगा की कानूनी गारंटी है कि प्रत्येक ग्रामीण वयस्क कार्य का अनुरोध कर सकता है और उसे 15 दिनों के अंतर्गत रोज़गार मिलना चाहिये।
- यदि यह प्रतिबद्धता पूरी नहीं होती है, तो "बेरोज़गारी भत्ता" प्रदान किया जाना चाहिये।
- इसके अंतर्गत महिलाओं को इस तरह से प्राथमिकता दी जाए कि कम से कम एक-तिहाई लाभार्थी पंजीकृत और रोज़गार चाहने वाली महिलाएँ हों।
- मनरेगा की धारा 17 के तहत निष्पादित सभी कार्यों का सामाजिक लेखा-परीक्षण अनिवार्य है।
- कार्यान्वयन एजेंसी: भारत सरकार का ग्रामीण विकास मंत्रालय (MRD) राज्य सरकारों के साथ मिलकर इस योजना के संपूर्ण कार्यान्वयन की निगरानी कर रहा है।
- उद्देश्य: यह अधिनियम मुख्य रूप से ग्रामीण भारत में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले व्यक्तियों को अर्ध या अकुशल कार्य प्रदान कर ग्रामीण लोगों की क्रय शक्ति में सुधार लाने के उद्देश्य से प्रस्तुत किया गया था।
- यह देश में अमीर और निर्धन के बीच के अंतर को कम करने का प्रयास करता है।
सामाजिक लेखापरीक्षा तंत्र:
- परिचय:
- सामाजिक लेखापरीक्षा लोगों की सक्रिय भागीदारी के साथ आयोजित कार्यक्रम/योजना की जाँच और मूल्यांकन है तथा वास्तविक स्थिति के साथ आधिकारिक रिकॉर्ड की तुलना करता है।
- यह सामाजिक परिवर्तन, सामुदायिक भागीदारी और सरकारी जवाबदेही के लिये एक शक्तिशाली उपकरण है।
- यह वित्तीय लेखापरीक्षा से भिन्न है। वित्तीय ऑडिट किसी संगठन के वित्तीय स्वास्थ्य का आकलन करने के लिये वित्तीय रिकॉर्ड की जाँच करते हैं, सामाजिक ऑडिट हितधारकों को शामिल करके अपने सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में कार्यक्रम की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
- सामाजिक लेखापरीक्षा लोगों की सक्रिय भागीदारी के साथ आयोजित कार्यक्रम/योजना की जाँच और मूल्यांकन है तथा वास्तविक स्थिति के साथ आधिकारिक रिकॉर्ड की तुलना करता है।
- MGNREGA के तहत सामाजिक लेखापरीक्षा तंत्र:
- प्रावधान:
- MGNREGA की धारा 17 में MGNREGA के तहत निष्पादित सभी कार्यों का सामाजिक ऑडिट अनिवार्य किया गया है।
- योजना नियमों की लेखापरीक्षा, 2011, जिसे महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजनाओं की लेखापरीक्षा नियम, 2011 के रूप में भी जाना जाता है, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) के सहयोग से ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा विकसित किये गए थे।
- ये नियम देश भर में पालन किये जाने वाले सामाजिक ऑडिट की प्रक्रियाओं और सोशल ऑडिट यूनिट (Social Audit Unit- SAU), राज्य सरकार एवं MGNREGA के फील्ड कार्यकर्त्ताओं सहित विभिन्न संस्थाओं के कर्त्तव्यों की रूपरेखा तैयार करते हैं।
- संबंधित मुद्दे:
- फंड की कमी से जूझ रही इकाइयाँ: सामाजिक लेखापरीक्षा इकाइयाँ अपर्याप्त वित्तपोषण से जूझ रही हैं, जिससे उनकी प्रभावी ढंग से कार्य करने की क्षमता बाधित हो रही है।
- केंद्र सरकार राज्यों से उनकी स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिये सामाजिक लेखा परीक्षा इकाइयों को धन प्रदान करती है।
- हालाँकि समय पर धन आवंटन न होने के कारण कर्नाटक और बिहार जैसे राज्यों में इकाइयाँ लगभग दो वर्षों तक बिना धन के रहीं।
- प्रशिक्षण की कमी: अपर्याप्त प्रशिक्षण और संसाधन कदाचार की पहचान करने में उनकी प्रभावशीलता में बाधा डालते हैं।
- कार्मिक की कमी: अपर्याप्त नियुक्तिकरण के कारण सामाजिक लेखापरीक्षा इकाइयों के लिये अपने कर्त्तव्यों को प्रभावी ढंग से पूरा करना कठिन हो जाता है।
- कम रिकवरी दर: गुजरात, गोवा, मेघालय, पुडुचेरी व लद्दाख सहित कई राज्यों ने पिछले तीन वर्षों में लगातार "शून्य मामले" और "शून्य रिकवरी" की सूचना दी है। इससे इन क्षेत्रों में निगरानी की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े होते हैं।
- तेलंगाना जैसे राज्य, सक्रिय सामाजिक लेखा परीक्षा इकाइयाँ होने के बावजूद, कम वसूली दर से जूझ रहे हैं।
- फंड की कमी से जूझ रही इकाइयाँ: सामाजिक लेखापरीक्षा इकाइयाँ अपर्याप्त वित्तपोषण से जूझ रही हैं, जिससे उनकी प्रभावी ढंग से कार्य करने की क्षमता बाधित हो रही है।
आगे की राह
- हितधारक जुड़ाव: सामाजिक लेखा परीक्षा प्रक्रिया के मूल्यांकन और पुन: डिज़ाइन में लाभार्थियों, नागरिक समाज संगठनों, सरकारी अधिकारियों एवं लेखा परीक्षकों सहित सभी हितधारकों को शामिल करना।
- साथ ही सामाजिक लेखा परीक्षा हेतु ज़िम्मेदार लेखा परीक्षकों के लिये प्रशिक्षण और क्षमता-निर्माण कार्यक्रमों में निवेश करने की आवश्यकता है।
- मुखबिर संरक्षण: MGNREGA परियोजनाओं में अनियमितताओं या भ्रष्टाचार की रिपोर्ट करने वाले मुखबिरों की सुरक्षा के लिये एक सुदृढ़ तंत्र स्थापित करना। व्यक्तियों को प्रतिशोध के भय के बिना आगे आने के लिये प्रोत्साहित करना आवश्यक है।
- सामुदायिक भागीदारी: लेखा परीक्षा प्रक्रिया में स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देना। उन्हें परियोजना की प्रगति और निधि उपयोग की निगरानी तथा रिपोर्ट करने के लिये सशक्त बनाना आवश्यक है।
- साथ ही समस्याओं के त्वरित समाधान के लिये ग्राम स्तर पर शिकायत निवारण समितियाँ स्थापित करने की भी आवश्यकता है।
- फीडबैक तंत्र: एक फीडबैक लूप स्थापित करना जहाँ लेखा परीक्षा निष्कर्षों का उपयोग MGNREGA कार्यक्रम को बेहतर बनाने के लिये किया जाता है। प्रणालीगत मुद्दों की पहचान करना और निरंतर सुधार की दिशा में कार्य करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन "महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम" से लाभान्वित होने के पात्र हैं? (2011) (a) केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति परिवारों के वयस्क सदस्य उत्तर: (d) |
समुद्री परिवहन 2023 की समीक्षा: UNCTAD
प्रिलिम्स के लिये:समुद्री परिवहन 2023 की समीक्षा, व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD), कोविड-19, ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन। मेन्स के लिये:समुद्री परिवहन 2023 की समीक्षा: UNCTAD |
स्रोत : डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) ने समुद्री परिवहन 2023 की समीक्षा की है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय नौपरिवहन से ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन के मुद्दों और डी-कार्बोनाइज़ेशन में चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है।
प्रमुख बिंदु
- अंतर्राष्ट्रीय नौपरिवहन से उत्सर्जन:
- अंतर्राष्ट्रीय नौपरिवहन से GHG उत्सर्जन एक दशक पहले की तुलना में वर्ष 2023 में 20% अधिक दर्ज़ किया गया।
- नौपरिवहन उद्योग वैश्विक व्यापार में 80% से अधिक एवं वैश्विक GHG उत्सर्जन में लगभग 3% का योगदान करता है।
- नौपरिवहन में वृद्धि:
- कोविड-19 के कारण वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में व्यवधान के कारण वर्ष 2022 में वैश्विक समुद्री नौपरिवहन मात्रा में 0.4% की गिरावट देखी गई।
- हालाँकि वर्ष 2023 में इसके 2.4% बढ़ने का अनुमान है।
- कंटेनरीकृत व्यापार वर्ष 2023 में 1.2% और वर्ष 2024-2028 के बीच 3% बढ़ने की उम्मीद है।
- वर्ष 2022 में तेल और गैस व्यापार में मज़बूत वृद्धि दर्ज़ की गई।
- वैकल्पिक ईंधन की अनुपलब्धता:
- जनवरी 2023 की शुरुआत में वाणिज्यिक जहाज़ औसतन 22.2 वर्ष पुराने थे और विश्व के आधे से अधिक बेड़े/जहाज़ 15 वर्ष से अधिक पुराने थे।
- जैसे-जैसे विश्व बेड़े की औसत आयु में वृद्धि हो रही है, तो यह बात चिंता का विषय बन गई है कि वैकल्पिक ईंधन अभी भी बड़े पैमाने पर उपलब्ध नहीं हैं और अधिक महंगे हैं, इसके अतिरिक्त जिन जहाज़ों में उनका उपयोग किया जा सकता है वे भी पारंपरिक जहाज़ों की तुलना में अधिक महंगे हैं।
- वैकल्पिक ईंधन में परिवर्तन:
- प्रौद्योगिकी और नियामक व्यवस्थाओं पर स्पष्टता के बिना जहाज़ मालिकों के लिये अपने बेड़े को नवीनीकृत करना बहुत मुश्किल है तथा बंदरगाह टर्मिनलों को भी ऐसी ही चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, विशेषकर निवेश निर्णयों के संबंध में।
- वैश्विक बेड़े का 98.8% भारी ईंधन तेल, हल्के ईंधन तेल और डीज़ल/गैस तेल जैसे पारंपरिक ईंधनों का उपयोग करता है।
- केवल 1.2% वैकल्पिक ईंधन, मुख्य रूप से LNG, LPG, मेथेनॉल और कुछ हद तक बैटरी/हाइब्रिड का उपयोग कर रहे हैं।
- हालाँकि प्रगति जारी है क्योंकि वर्तमान में ऑर्डर पर मौज़ूद 21% जहाज़ वैकल्पिक ईंधन, विशेष रूप से LNG, LPG, बैटरी/हाइब्रिड और मेथेनॉल पर परिचालन के लिये डिज़ाइन किये गए हैं।
- लागत अनुमान और परिवर्तन चुनौतियाँ:
- वर्ष 2050 तक वैश्विक बेड़े को डीकार्बोनाइज़ करने के लिये 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर से लेकर 90 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक के वार्षिक निवेश की आवश्यकता हो सकती है।
- पूर्ण डीकार्बोनाइज़ेशन से वार्षिक ईंधन लागत दोगुनी हो सकती है, जिससे इस क्षेत्र में उचित परिवर्तन की आवश्यकता होगी।
- अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (International Maritime Organization- IMO) ने लगभग वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य GHG उत्सर्जन प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है।
- वर्ष 2023 IMO GHG रणनीति का लक्ष्य वर्ष 2030 तक शून्य या लगभग-शून्य GHG ईंधन का उपयोग कम से कम 5-10% किया जाना है।
आर्थिक प्रोत्साहन हेतु UNCTAD की सिफारिशें:
- नवीकरणीय अमोनिया और मेथेनॉल ईंधन को दोहरे-ईंधन इंजन वाले नए जहाज़ों के लिये अधिक उपयुक्त माना जाता है।
- सतत् समुद्री परिवहन ईंधन को जीवन-चक्र 'वेल-टू-वेक' आधार पर शून्य या लगभग शून्य कार्बन डाइ-ऑक्साइड समकक्ष उत्सर्जन प्राप्त करना चाहिये।
- UNCTAD सिस्टम-व्यापी सहयोग, त्वरित नियामक हस्तक्षेप और हरित प्रौद्योगिकियों तथा बेड़े में मज़बूत निवेश का समर्थन करता है।
- आर्थिक प्रोत्साहन, जैसे लेवी या नौपरिवहन उत्सर्जन से संबंधित योगदान, वैकल्पिक ईंधन की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा दे सकते हैं और जलवायु के अनुरूप लचीले बुनियादी ढाँचे में निवेश का समर्थन कर सकते हैं।
- पर्यावरणीय लक्ष्यों को आर्थिक आवश्यकताओं के साथ संतुलित करने की आवश्यकता है, लेकिन यह रेखांकित करता है कि निष्क्रियता की लागत आवश्यक निवेश से कहीं अधिक है।
- स्वच्छ ईंधन के अतिरिक्त, नौपरिवहन उद्योग में दक्षता के साथ-साथ संधारणीयता में सुधार लाने के लिये AI और ब्लॉकचेन जैसे डिजिटल समाधानों को तेज़ी से अपनाने की आवश्यकता है।
अंतर्राष्ट्रीय नौपरिवहन को डीकार्बोनाइज़ करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय निकायों द्वारा की गई पहलें:
- ऊर्जा दक्षता मौज़ूदा जहाज़ सूचकांक (Energy Efficiency Existing Ship Index- EEXI):
- कार्बन तीव्रता संकेतक (Carbon Intensity Indicator- CII), जो जहाज़ों को वार्षिक रूप से कितने ईंधन की खपत करते हैं, के आधार पर A से E के बीच एक परिचालन कार्बन तीव्रता ग्रेड प्रदान करता है, और EEXI- यह जहाज़ के आकार और जहाज़ के प्रकार के आधार पर जहाज़ द्वारा उत्सर्जित करने के लिये डिज़ाइन की गई कार्बन डाइ-ऑक्साइड की मात्रा को सीमित करके जहाज़ की तकनीकी कार्बन तीव्रता को सीमित करता है। इन दोनों कारकों को ध्यान में रखते हुए अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) जहाज़ों के लिये अपने मौज़ूदा कार्बन तीव्रता नियमों में बदलाव करने जा रहा है।
- IMO का मध्यावधि मूल्यांकन उपाय:
- इसके अतिरिक्त, IMO मध्यावधि मूल्यांकन उपाय नामक नए नियम विकसित कर रहा है, जिसमें तकनीकी दृष्टि से ग्रीनहाउस गैस ईंधन मानक (GFS) और आर्थिक दृष्टि से कार्बन लेवी, शुल्क प्रणाली अथवा कैप-एंड-ट्रेड शामिल होंगे।
- IMO का लक्ष्य वर्ष 2025 तक इन उपायों पर सहमति बनाना और वर्ष 2027 में इन्हें लागू करना है।
- द ग्रीन वॉयेज़ 2050 प्रोजेक्ट:
- यह नॉर्वे सरकार और IMO के बीच मई 2019 में शुरू की गई एक साझेदारी परियोजना है, जिसका लक्ष्य नौपरिवहन उद्योग को निम्न कार्बन उत्सर्जन वाले उद्योग में बदलना है।
- जहाज़ों से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिये अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय (MARPOL Convention):
- MARPOL अभिसमय परिचालन अथवा आकस्मिक कारणों से जहाज़ों द्वारा समुद्री पर्यावरण के प्रदूषण की रोकथाम को कवर करने वाला मुख्य अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय है।
- इसे 2 नवंबर 1973 को IMO द्वारा अंगीकृत किया गया था।
भौतिकी में नोबेल पुरस्कार 2023
प्रिलिम्स के लिये:भौतिकी में नोबेल पुरस्कार 2023, इलेक्ट्रॉन डायनेमिक्स, एटोसेकंड पल्स, फेमटोसेकंड, स्पेक्ट्रोस्कोपी। मेन्स के लिये:एटोसेकंड भौतिकी के अनुप्रयोग |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भौतिकी के लिये वर्ष 2023 का नोबेल पुरस्कार तीन प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों को दिया गया है: पियरे एगोस्टिनी, फ़ेरेन्क क्रॉस्ज़ और ऐनी एल. हुइलियर।
- प्रायोगिक भौतिकी के क्षेत्र में उनके अभूतपूर्व कार्य ने एटोसेकंड पल्स के विकास को जन्म दिया है, जिससे वैज्ञानिकों को पदार्थ के भीतर इलेक्ट्रॉनों की तीव्र गतिशीलता का सीधे निरीक्षण और अध्ययन करने में मदद मिली है।
इलेक्ट्रॉन डायनेमिक्स:
- इलेक्ट्रॉन गतिशीलता परमाणुओं, अणुओं और ठोस पदार्थों के भीतर इलेक्ट्रॉनों के व्यवहार एवं गति के अध्ययन व समझ को संदर्भित करती है।
- इसमें इलेक्ट्रॉन व्यवहार के विभिन्न पहलुओं को शामिल किया गया है, जिसमें उनकी गति, विद्युत चुम्बकीय क्षेत्रों के साथ अंतःक्रिया और बाह्य बलों के प्रति अनुक्रिया शामिल है।
- इलेक्ट्रॉन ऋणात्मक आवेश वाले मूलभूत कण हैं और वे सघन नाभिक की परिक्रमा करते हैं। लंबे समय तक, वैज्ञानिकों को इलेक्ट्रॉन व्यवहार को समझने के लिये अप्रत्यक्ष पद्धतियों पर निर्भर रहना पड़ता था, जैसे कि एक तेज़ गति से चलने वाली रेस कार की लंबे समय तक एक्सपोज़र समय के साथ तस्वीर लेना, जिसके परिणामस्वरूप धुंधली छवि बनती है।
- इलेक्ट्रॉनों की तीव्र गति, इनके पारंपरिक माप तकनीकों के लिये लगभग अदृश्य थी।
- अणुओं में परमाणु फेम्टो सेकंड के क्रम पर गति प्रदर्शित करते हैं, जो बहुत ही कम समय अंतराल होते हैं, जो एक सेकंड के एक अरबवें हिस्से का दस लाखवाँ हिस्सा होते हैं।
- इलेक्ट्रॉन हल्के होने के कारण और इससे भी तेज़ गति से इंटरैक्ट करने के कारण, एटोसेकंड दायरे में गति करते हैं, एक सेकंड के अरबवें हिस्से का अरबवाँ हिस्सा (सेकंड का 1×10−18 भाग)।
नोट: एटोसेकंड पल्स प्रकाश का एक बहुत ही अल्पकालीन विस्फोट है जो सिर्फ एटोसेकंड तक रहता है।
वैज्ञानिकों द्वारा एटोसेकंड पल्स जेनरेशन:
- पृष्ठभूमि:
- 1980 के दशक में, भौतिक विज्ञानी केवल कुछ फेमटोसेकेंड तक चलने वाली हल्की पल्स बनाने में कामयाब रहे।
- उस समय यह माना जाता था कि हल्की पल्सों के लिये यह न्यूनतम प्राप्त अवधि थी।
- हालाँकि इलेक्ट्रॉनों को गति में 'देखने' के लिये और भी छोटी/अल्पकालीन पल्स की आवश्यकता थी।
- 1980 के दशक में, भौतिक विज्ञानी केवल कुछ फेमटोसेकेंड तक चलने वाली हल्की पल्स बनाने में कामयाब रहे।
- एटोसेकंड पल्स जेनरेशन में प्रगति:
- वर्ष 1987 में एक फ्राँसीसी प्रयोगशाला में ऐनी एल'हुइलियर और उनकी टीम ने एक महत्त्वपूर्ण सफलता हासिल की।
- उन्होंने एक उत्कृष्ट गैस के माध्यम से एक अवरक्त लेज़र किरण को गुजारा, जिससे ओवरटोन की उत्पत्ति हुई- तरंग दैर्ध्य के साथ प्रकाश की तरंगें जो मूल किरण के पूर्णांक अंश थे।
- गैस में उत्पन्न ओवरटोन पराबैंगनी प्रकाश के रूप में थे। वैज्ञानिकों ने देखा कि जब कई ओवरटोन परस्पर क्रिया करते हैं, तो वे या तो रचनात्मक व्यतिकरण के माध्यम से एक-दूसरे को तीव्र कर सकते हैं या विनाशकारी व्यतिकरण के माध्यम से एक-दूसरे को रद्द कर सकते हैं।
- अपने सेटअप को परिष्कृत करके, भौतिक विज्ञानी प्रकाश की तीव्र एटोसेकंड पल्स बनाने में कामयाब रहे।
- वर्ष 2001 में फ्राँस में पियरे एगोस्टिनी और उनके अनुसंधान समूह ने 250-एटोसेकंड प्रकाश पल्सों की एक शृंखला का सफलतापूर्वक उत्पादन किया।
- उन्होंने इस पल्स शृंखला को मूल बीम के साथ संयोजित कर तेज़ी से प्रयोग किये, जिन्होंने इलेक्ट्रॉन गतिशीलता में अभूतपूर्व अंतर्दृष्टि प्रदान की।
- इसके साथ ही ऑस्ट्रिया में फेरेन्क क्रॉस्ज़ और उनकी टीम ने एक पल्स शृंखला से व्यक्तिगत 650-एटोसेकंड पल्स को अलग करने की तकनीक विकसित की।
- इस सफलता ने शोधकर्त्ताओं को क्रिप्टन परमाणुओं द्वारा उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की ऊर्जा को उल्लेखनीय सटीकता के साथ मापने में मदद की।
- वर्ष 1987 में एक फ्राँसीसी प्रयोगशाला में ऐनी एल'हुइलियर और उनकी टीम ने एक महत्त्वपूर्ण सफलता हासिल की।
एटोसेकंड भौतिकी के अनुप्रयोग:
- अल्पकालिक प्रक्रियाओं का अध्ययन: एटोसेकंड पल्स वैज्ञानिकों को अल्ट्राफास्ट परमाणु और आणविक प्रक्रियाओं की 'छवियों' को कैप्चर करने में सक्षम बनाता है।
- इसका पदार्थ विज्ञान, इलेक्ट्रॉनिक्स और कैटेलिसिस जैसे क्षेत्रों, जिसमें त्वरित रूप से हो रहे परिवर्तनों को समझना महत्त्वपूर्ण होता है, पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
- मेडिकल डायग्नोस्टिक्स: क्षणिक चिह्नों के आधार पर विशिष्ट अणुओं की पहचान करने के लिये एटोसेकंड पल्स का उपयोग चिकित्सीय नैदानिक परीक्षणों में किया जा सकता है। यह मेडिकल इमेजिंग और डायग्नोस्टिक तकनीकों को बेहतर बनाने में मदद करता है।
- इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में प्रगति: एटोसेकंड भौतिकी कंप्यूटिंग और दूरसंचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अधिक तेज़ इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के विकास को बढ़ावा दे सकती है।
- उन्नत इमेजिंग और स्पेक्ट्रोस्कोपी: जीव विज्ञान से लेकर खगोल विज्ञान तक के क्षेत्र में अनुप्रयोगों के साथ, एटोसेकंड पल्स को संशोधित करने की क्षमता उच्च-रिज़ॉल्यूशन इमेजिंग और स्पेक्ट्रोस्कोपी में मदद करती है।
भौतिकी के क्षेत्र में अन्य नोबेल पुरस्कार विजेता:
- 2022:
- एलेन एस्पेक्ट, जॉन एफ क्लॉसर और एंटोन ज़िलिंगर "इनटैंग्ल्ड फोटॉन के साथ प्रयोगों के लिये वॉयलेशन ऑफ बेल इनइक्वलिटीज़ की स्थापना और क्वांटम सूचना विज्ञान के क्षेत्र में विकास करने के लिये"
- 2021:
- स्यूकुरो मनाबे और क्लॉस हैसलमैन को "पृथ्वी की जलवायु के भौतिक मॉडलिंग, परिवर्तनशीलता की मात्रा निर्धारित करने तथा ग्लोबल वार्मिंग की विश्वसनीय भविष्यवाणी करने के लिये"
- जियोर्जियो पेरिसी को "परमाणु से लेकर ग्रहों के स्तर पर भौतिक प्रणालियों में विकार और बदलावों की परस्पर क्रिया की खोज के लिये"
- 2020:
- रोजर पेनरोज़ को "ब्लैक होल का निर्माण सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत की एक प्रबल अनुमान है" की खोज के लिये”
- रेनहार्ड जेनज़ेल और एंड्रिया घेज़ को "हमारी आकाशगंगा के केंद्र में एक सुपरमैसिव कॉम्पैक्ट ऑब्जेक्ट की खोज के लिये"
- वर्ष 2019:
- "ब्रह्मांड के विकास और ब्रह्मांड में पृथ्वी के स्थान के बारे में समझ में योगदान के लिये"
- जेम्स पीबल्स "भौतिक ब्रह्माण्ड विज्ञान में सैद्धांतिक खोजों के लिये"
- मिशेल मेयर और डिडिएर क्वेलोज़ "सौर-प्रकार के तारे की परिक्रमा करने वाले एक एक्सोप्लैनेट की खोज के लिये"
- "ब्रह्मांड के विकास और ब्रह्मांड में पृथ्वी के स्थान के बारे में समझ में योगदान के लिये"
- वर्ष 2018:
- "लेज़र भौतिकी के क्षेत्र में अभूतपूर्व आविष्कारों के लिये"
- आर्थर अश्किन "ऑप्टिकल ट्वीज़र और जैविक प्रणालियों में उनके अनुप्रयोग के लिये"
- जेरार्ड मौरौ और डोना स्ट्रिकलैंड को "उच्च तीव्रता, अल्ट्रा-शॉर्ट ऑप्टिकल पल्स उत्पन्न करने की उनकी विधि के लिये"
- "लेज़र भौतिकी के क्षेत्र में अभूतपूर्व आविष्कारों के लिये"
- वर्ष 2017
- रेनर वीज़, बैरी सी. बैरिश और किप एस. थॉर्न को "LIGO डिटेक्टर तथा गुरुत्वाकर्षण तरंगों के अवलोकन में निर्णायक योगदान के लिये"
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से किस वैज्ञानिक ने अपने बेटे के साथ भौतिकी का नोबेल पुरस्कार साझा किया? (2008) (a) मैक्स प्लैंक उत्तर: (C) प्रश्न. नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक जेम्स डी. वाटसन किस क्षेत्र में अपने काम के लिये जाने जाते हैं? (2008) (a) धातु विज्ञान उत्तर: (D) प्रश्न. वर्ष 1990 के दशक में ब्लू एल.ई.डी. के आविष्कार के लिये अकासाकी, अमानो और नाकामुरा को संयुक्त रूप से वर्ष 2014 का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार दिया गया था। इस आविष्कार ने मनुष्य के दैनिक जीवन को कैसे प्रभावित किया है? (मुख्य परीक्षा, 2021) प्रश्न. प्रो. सत्येंद्र नाथ बोस द्वारा किये गए 'बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी' के कार्य की चर्चा कीजिये और प्रदर्शित कीजिये कि इसने किस प्रकार भौतिकी के क्षेत्र में क्रांति ला दी। (मुख्य परीक्षा, 2018) |
भारत में अवैध व्यापार
प्रिलिम्स के लिये:भारत में अवैध व्यापार, फिक्की कैस्केड, अवैध बाज़ार, वित्तीय प्रवाह, संगठित अपराध और आतंकवाद, धन शोधन, रेड सैंडर्स, GDP (सकल घरेलू उत्पाद)। मेन्स के लिये:भारत में अवैध व्यापार और भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव। |
स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
फिक्की कैस्केड/FICCI CASCADE द्वारा 'हिडन स्ट्रीम्स: लिंकेज बिटवीन इलिसिट मार्केट्स, फाइनेंशियल फ्लो, ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड टेरेरिज़्म' शीर्षक से जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अवैध अर्थव्यवस्था का 1-10 के पैमाने पर कुल स्कोर 6.3 है, जो अन्य 122 देशों में से 5 के औसत स्कोर से अधिक है, जो एक बड़ी अवैध अर्थव्यवस्था का संकेत देता है।
फिक्की कैस्केड:
- फिक्की कैस्केड/FICCI CASCADE (अर्थव्यवस्था को नष्ट करने वाली तस्करी और जालसाज़ी गतिविधियों के खिलाफ फिक्की की समिति), भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (Federation of Indian Chambers of Commerce and Industry- FICCI) की एक पहल है।
- इसकी स्थापना 18 जनवरी, 2011 को भारत और विश्व स्तर पर जाली, पास-ऑफ एवं तस्करी के सामानों के अवैध व्यापार के गंभीर मुद्दे को उजागर करने हेतु की गई थी।
अवैध व्यापार:
- अवैध व्यापार का तात्पर्य वस्तुओं एवं सेवाओं के अवैध आदान-प्रदान से है जो सरकारों या अंतर्राष्ट्रीय निकायों द्वारा स्थापित कानूनों, विनियमों या नियंत्रणों का अनुपालन नहीं करता है।
- ये गतिविधियाँ कानूनी ढाँचे के बाहर होती हैं और इनमें अक्सर विभिन्न प्रकार की प्रतिबंधित सामग्री, जालसाज़ी, चोरी, तस्करी, कर चोरी, धन शोधन एवं अन्य अवैध गतिविधियाँ शामिल होती हैं।
रिपोर्ट के मुख्य तथ्य:
- भारत में अवैध व्यापार का अवलोकन:
- 2022-23 के वित्तीय वर्ष में 3.5 टन सोना, 18 करोड़ सिगरेट स्टिक्स, 140 मीट्रिक टन रेड सैंडर्स और 90 टन हेरोइन ज़ब्त की गई।
- 122 देशों के औसत स्कोर 5.2 की तुलना में भारत का स्कोर 4.3 काफी कम है, जो संगठित अपराध अभिकर्त्ताओं की कम भागीदारी लेकिन आपराधिक नेटवर्क के महत्त्वपूर्ण प्रभाव का सुझाव देता है।
- 2022-23 के वित्तीय वर्ष में 3.5 टन सोना, 18 करोड़ सिगरेट स्टिक्स, 140 मीट्रिक टन रेड सैंडर्स और 90 टन हेरोइन ज़ब्त की गई।
- भारत में अवैध वित्तीय प्रवाह:
- वैल्यू गैप इंडिया (2009-2018):
- वर्ष 2009-2018 के दौरान अवैध आयात और निर्यात चालान के परिणामस्वरूप भारत को संभावित राजस्व में कुल 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ।
- असंगृहीत मूल्य वर्धित कर (VAT) की राशि कुल 3.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जो राजस्व अंतर में योगदान करती है।
- वर्ष 2009-2018 के दौरान अवैध आयात और निर्यात चालान के परिणामस्वरूप भारत को संभावित राजस्व में कुल 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ।
- वैल्यू गैप इंडिया (2009-2018):
- भारत में आतंक और अपराध:
- आतंकवाद और अपराध से निपटने में भारत ने वर्ष 2021 में क्रय शक्ति समता (Purchasing Power Parity- PPP) पर लगभग 1170 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किये, जो देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) का लगभग 6% है।
- PPP वृहत आर्थिक विश्लेषण द्वारा उपयोग किया जाने वाला एक मीट्रिक है जो "बास्केट ऑफ गुड्स" दृष्टिकोण के माध्यम से विभिन्न देशों की मुद्राओं की तुलना करता है, जिससे उन्हें देशों के बीच आर्थिक उत्पादकता और जीवन स्तर की तुलना करने की अनुमति मिलती है।
- आतंकवाद और अपराध से निपटने में भारत ने वर्ष 2021 में क्रय शक्ति समता (Purchasing Power Parity- PPP) पर लगभग 1170 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किये, जो देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) का लगभग 6% है।
- भारत में ड्रग अर्थव्यवस्था:
- स्वर्णिम त्रिकोण/गोल्डन ट्रायंगल (म्याँमार, लाओस व थाईलैंड) और स्वर्णिम अर्द्धचंद्र/गोल्डन क्रिसेंट(अफगानिस्तान, पाकिस्तान व ईरान) सहित प्रमुख ड्रग उत्पादक क्षेत्रों के पास का भारतीय क्षेत्र उन गतिविधियों से जुड़ा हुआ है जहाँ निषेध पदार्थों का आवागमन तथा वितरण शामिल हो सकता है।
- भारत में अवैध नशीले ड्रग के व्यापार में वृद्धि देखी गई है, वर्ष 2006-2013 के दौरान 1,257 मामलों की तुलना में वर्ष 2014-2022 के दौरान नशीले ड्रग की ज़ब्ती के 3,172 मामले दर्ज़ किये गए।
- बेंचमार्क औसत 5.4 की तुलना में 7.5 स्कोर के साथ कैनबिस की भारत में व्यापक उपस्थिति है। सिंथेटिक ड्रग व्यापार और हेरोइन व्यापार भी 6.5 के स्कोर के साथ बेंचमार्क औसत से अधिक है।
- भारत में संगठित अपराध और अवैध अर्थव्यवस्था:
- भारत में संगठित अपराध करने वालों का कुल स्कोर 122 देशों के औसत बेंचमार्क 5.2 की तुलना में 4.3 है।
- हालाँकि 6 अंक के साथ आपराधिक नेटवर्क का भारत में बड़ा प्रभाव है, जो 122 देशों के औसत अंक 5.8 से अधिक है।
- भारत में अवैध अर्थव्यवस्था का कुल स्कोर 6.3 है, जो 122 देशों में से 5 के औसत स्कोर से अधिक है।
- इससे पता चलता है कि यद्यपि आपराधिक तत्त्व संख्या में कम किन्तु व्यापक हैं और विभिन्न प्रकार की गैरकानूनी गतिविधियों में संलग्न हैं, जिनमें नशीली दवाओं की बिक्री तथा मानव तस्करी के आलावा वन्यजीव उत्पादों में अवैध व्यापार शामिल हैं।
- यह स्पष्ट विरोधाभास भारत में आपराधिक नेटवर्क की प्रभावशीलता के लिये ज़िम्मेदार हो सकता है, जो उनकी कम संख्या के बावजूद पर्याप्त अवैध वित्तीय प्रवाह करने में सक्षम बनाता है।
- भारत में संगठित अपराध करने वालों का कुल स्कोर 122 देशों के औसत बेंचमार्क 5.2 की तुलना में 4.3 है।
भारत में अवैध व्यापार से निपटने के लिये सरकार की पहलें:
- आतंकी वित्तपोषण और जाली मुद्रा (TFFC) सेल
- स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम (NDPS) 1985
- नशीली दवाओं की मांग में कमी के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPDDR)
- नशीली दवाओं के दुरुपयोग के नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कोष (NFCDA)
- धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA)
- PMLA (संशोधन) अधिनियम, 2012
- तस्कर और विदेशी मुद्रा हेरफेरकर्ता (संपत्ति की जब्ती) अधिनियम, 1976
- भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018
- काला धन (अघोषित विदेशी आय एवं संपत्ति) और कर अधिरोपण अधिनियम, 2015
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निन्मलिखित कथनों पर विचार कीजिये:(2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (c) |