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सामाजिक न्याय

मनरेगा के कार्यान्वयन से जुड़े मुद्दे

  • 01 Feb 2023
  • 12 min read

यह एडिटोरियल 30/01/2023 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित “In NREGA reforms, prioritise the worker and her dues” लेख पर आधारित है। इसमें मनरेगा को सही अर्थों में लागू करने के लिये आवश्यक सुधारों के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

वर्ष 2005 में पारित महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act- MGNREGA) एक मांग-संचालित योजना है जो प्रत्येक इच्छुक ग्रामीण परिवार के लिये प्रति वर्ष 100 दिनों के अकुशल कार्य की गारंटी देती है। वर्तमान में इस योजना के तहत 15.51 करोड़ सक्रिय श्रमिक नामांकित हैं।

  • हाल ही में केंद्र सरकार ने मनरेगा योजना के कार्यान्वयन की समीक्षा करने के लिये, विशेष रूप से गरीबी उन्मूलन साधन के रूप में इस कार्यक्रम की प्रभावकारिता का आकलन करने के लिये एक समिति का गठन किया है। पूर्व ग्रामीण विकास सचिव अमरजीत सिन्हा की अध्यक्षता वाली इस समिति की पहली बैठक नवंबर 2022 में आयोजित हुई थी और इसे अपने सुझाव देने के लिये तीन माह का समय दिया गया है।

योजना के कार्यान्वयन से संलग्न प्रमुख चुनौतियाँ

  • धन वितरण में देरी और अपर्याप्तता:
    • अधिकांश राज्य मनरेगा द्वारा निर्दिष्ट 15 दिनों के भीतर मज़दूरी वितरण करने में विफल रहे हैं। इसके अलावा, मज़दूरी के भुगतान में देरी के लिये श्रमिकों को मुआवजा भी नहीं दिया जाता है।
      • इसने योजना को मांग-संचालित के बजाय आपूर्ति-आधारित कार्यक्रम में बदल दिया गया है और इसके कारण श्रमिकों ने इसके तहत कार्य करने में रुचि खोनी शुरू कर दी है।
    • वित्त मंत्रालय की एक स्वीकारोक्ति के साथ ही पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं कि मज़दूरी भुगतान में देरी की स्थिति अपर्याप्त धन का परिणाम है।
  • जाति आधारित पृथक्करण:
    • देरी के मामले में जातियों के बीच उल्लेखनीय भिन्नताएँ दिखी हैं। जबकि अनुसूचित जाति वर्ग के 46% श्रमिकों और अनुसूचित जनजाति वर्ष के 37% श्रमिकों को निर्दिष्ट सात दिनों की अवधि के अंदर भुगतान प्राप्त हुआ, गैर-अनुसूचित जातियों/जनजाति के श्रमिकों के लिये यह आँकड़ा निराशाजनक रूप से 26% था।
    • मध्य प्रदेश, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे गरीब राज्यों में जाति-आधारित पृथक्करण का नकारात्मक प्रभाव तीव्र रूप से महसूस किया गया।
  • पंचायती राज संस्थान की अप्रभावी भूमिका:
    • बेहद सीमित स्वायत्तता के साथ पंचायती राज संस्थान (PRI) इस अधिनियम को प्रभावी एवं कुशल तरीके से लागू कर सकने में सक्षम नहीं हैं।
  • अधूरे कार्यों की बड़ी संख्या:
    • मनरेगा के तहत कार्यों को पूरा करने में देरी की स्थिति नज़र आई है और परियोजनाओं का निरीक्षण भी अनियमित रहा है। इसके साथ ही, मनरेगा के तहत संपन्न कार्य की गुणवत्ता और संपत्ति निर्माण भी समस्याजनक है।
  • जॉब कार्ड का निर्माण:
    • फर्जी जॉब कार्डों की मौजूदगी, फर्जी नामों को शामिल करने, प्रविष्टियों के गुम होने और जॉब कार्डों में प्रविष्टियाँ करने में देरी जैसी कई अन्य समस्याएँ भी देखी गई हैं।

मनरेगा योजना की प्रमुख उपलब्धियाँ

  • वर्ष 2022-23 की उपलब्धियाँ:
    • 11.37 करोड़ परिवारों को रोज़गार मिला।
    • 289.24 करोड़ व्यक्ति-दिवस रोज़गार सृजित किया गया है, जिसमें से:
      • 56.19% महिलाओं के लिये थे
      • 19.75% अनुसूचित जाति के लिये थे
      • 17.47% अनुसूचित जनजाति के लिये थे।
  • मनरेगा के तहत नई पहलें:
    • अमृत सरोवर’: देश के प्रत्येक ज़िले में कम से कम 75 अमृत सरोवरों का निर्माण/जीर्णोद्धार करना।ये सतह और भूमिगत दोनों स्तरों पर जल की उपलब्धता बढ़ाने में मदद करेंगे।
    • जलदूत’ ऐप: इसे 2-3 चयनित खुले कुओं के माध्यम से वर्ष में दो बार किसी ग्राम पंचायत में जल स्तर का मापन करने के लिये सितंबर 2022 में लॉन्च किया गया था।
    • MGNREGS के लिये लोकपाल: MGNREGS के कार्यान्वयन से संबंधित विभिन्न स्रोतों से प्राप्त शिकायतों की सुचारू रिपोर्टिंग और वर्गीकरण के लिये फ़रवरी 2022 में ‘लोकपाल ऐप’ लॉन्च किया गया।

आगे की राह

  • मज़दूरी भुगतान में देरी की समस्या को दूर करना:
    • राज्यों को धन के नियमित हस्तांतरण और कार्यान्वयन एजेंसियों को समय पर धन जारी करने सहित वित्तीय प्रबंधन प्रणाली में सुधार करना।
    • कार्यान्वयन एजेंसियों की प्रशासनिक क्षमता और जवाबदेही को सुदृढ़ करना।
    • मज़दूरी भुगतान प्रक्रिया की पारदर्शिता और दक्षता में सुधार करना, जिसके तहत भुगतान की ट्रैकिंग और देरी को रोकने के लिये डिजिटल टूल एवं प्लेटफॉर्म का उपयोग करना भी शामिल है।
  • कार्यान्वयन क्षमताओं को सुदृढ़ करना:
    • मनरेगा जैसे सार्वभौमिक, मांग-आधारित सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम के लिये सुधार कार्य केवल बेहतर ‘लक्ष्यीकरण’ पर आधारित नहीं हो सकते। इसके लिये बहिष्करण पर ध्यान केंद्रित करना होगा न कि समावेशन की ‘त्रुटियों’ पर।
    • केवल व्यय और आय निर्धनता (Income Poverty) को संकेतक के रूप में उपयोग करने के बजाय घरेलू स्तर पर बहिष्करण को भी चिह्नित किया जाना चाहिये।
    • इस बात के पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं कि मनरेगा पर्याप्त सुलक्षित है और निर्धनतम, विशेष रूप से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति परिवारों को लाभान्वित कर रही है। हालाँकि इसमें सुधार की पर्याप्त गुंजाइश मौजूद है।
    • उदाहरण के लिये, ऐसे पंचायत, प्रखंड और ज़िले को चिह्नित किया जाना चाहिये जहाँ अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति परिवारों के लिये रोज़गार जनसंख्या में उनके अनुपात के अनुरूप कम है।
      • यह उन क्षेत्रों को इंगित कर सकेगा जहाँ सर्वाधिक वंचित लोगों को कार्यक्रम से बाहर छोड़ा जा रहा है।
  • सार्वजनिक भागीदारी की भावना का निर्माण:
    • इस योजना को जनभागीदारी की भावना से प्रबल करने की ज़रूरत है।
    • सरकार को परामर्शी प्रक्रियाओं और राज्य एवं केंद्रीय रोज़गार गारंटी परिषदों जैसे मंचों का लाभ उठाना चाहिये, जो सरकार के लिये सूचना-संपन्न निर्णय लेने और लोगों की आवश्यकताओं एवं चिंताओं को दूर करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं।
    • किसी भी प्रस्तावित सुधार को नागरिक समाज संगठनों, श्रमिक संघों और स्वयं सहायता समूहों के प्रतिनिधियों के समक्ष चर्चा के लिये प्रस्तुत करने के साथ ही इन्हें संसद और राज्य विधानसभाओं के पटल पर पेश किया जाना चाहिये।
  • सुधारों के प्रभाव का मानचित्रण:
    • यह उपयुक्त समय है कि सरकारें मनरेगा की पहुँच और इसके व्यय के संबंध में प्रत्येक ‘सुधार’ के प्रभाव के मानचित्रण (विशेष रूप से गरीब राज्यों में) का गंभीर प्रयास करें।
    • ऊपर से नीचे की ओर कार्यान्वित किसी भी ‘सुधार’ (जिसकी अभिकल्पना में श्रमिकों की कोई भूमिका नहीं रही हो) के परिणामस्वरूप मनरेगा श्रमिकों के वैधानिक अधिकारों से वंचित होने की स्थिति के लिये सरकारी एजेंसियों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: मनरेगा के कार्यान्वयन में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है और इन्हें कैसे दूर किया जा सकता है?

यूट्यूब लिंक:

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा

प्र. निम्नलिखित में से कौन "महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम" से लाभ पाने के पात्र हैं?  (वर्ष 2011)

 (A) केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के परिवारों के वयस्क सदस्य
 (B) गरीबी रेखा से नीचे (BPL) परिवारों के वयस्क सदस्य
 (C) सभी पिछड़े समुदायों के परिवारों के वयस्क सदस्य
 (D) किसी भी घर के वयस्क सदस्य

 उत्तर: (D)

 व्याख्या:

  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी (मनरेगा), जो दुनिया में सबसे बड़ा रोज़गार गारंटी कार्यक्रम है, को वर्ष 2005 में अधिनियमित किया गया था, जिसका प्राथमिक उद्देश्य प्रति वर्ष 100 दिनों के मज़दूरी रोज़गार की गारंटी देना था, जिसके वयस्क सदस्य अकुशल शारीरिक कार्य करने के लिये स्वेच्छा से काम करते हैं। .
  • इसका उद्देश्य किये गए 'कार्यों' (परियोजनाओं) के माध्यम से गरीबी के कारणों को संबोधित करना है, और इस प्रकार सतत् विकास सुनिश्चित करना है। पंचायती राज संस्थाओं (PRI) को इन कार्यों की योजना बनाने और उन्हें लागू करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका देकर विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया को मज़बूत करने पर भी जोर दिया जा रहा है।

 अतः विकल्प D सही उत्तर है।

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