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भारतीय राजनीति

पदोन्नति में आरक्षण

  • 30 May 2022
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

आरक्षण, पदोन्नति, सर्वोच्च न्यायालय, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, इंदिरा साहनी केस, एम नागराज केस 

मेन्स के लिये:

निर्णय और मामले, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से संबंधित मुद्दे, पदोन्नति में आरक्षण तथा इससे संबंधित विभिन्न मामले। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया है कि सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी / एसटी) के कर्मचारियों की पदोन्नति में आरक्षण को रद्द करने से कर्मचारियों में अशांति उत्पन्न हो सकती है तथा इसके विरोध में विभिन्न मुकदमें दायर किये जा सकते हैं। 

  • इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिये पदोन्नति में आरक्षण देने हेतु प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता का निर्धारण करने के लिये मापदंड तय करने से इनकार कर दिया था। 

आरक्षण के लाभ: 

  • यह उच्च शिक्षा में विविधता सुनिश्चित करता है, कार्यस्थल पर समानता लाता है और घृणा या द्वेष से पिछड़े वर्गों को सुरक्षा प्रदान करता है।   
  • यह वंचित व्यक्तियों के उद्धार में मदद करता है और इस प्रकार समानता को बढ़ावा देता है।   
  • यह जाति, धर्म और जातीयता के संबंध में विद्यमान रूढ़ियों को समाप्त करता है। 
  • यह सामाजिक गतिशीलता की वृद्धि करता है। 
  • सदियों के उत्पीड़न एवं भेदभाव की भरपाई करने और समान अवसर प्रदान करने हेतु यह काफी महत्त्वपूर्ण है। 
  • यह 'वर्गीकृत असमानताओं' को संबोधित कर समाज में समानता लाने का प्रयास करता है। 

आरक्षण के नुकसान: 

  • ऐसी चिंताएँ प्रकट की जाती हैं कि आरक्षण योग्यता के क्षरण की ओर ले जाता है।  
  • कई जानकार मानते हैं कि आरक्षण व्यवस्था रूढ़ियों को सुदृढ़ बनाती है, क्योंकि आरक्षण के माध्यम से प्राप्त वंचित वर्गों की उपलब्धियों को नीची नज़रों से देखा जाता है। 
    • आरक्षण के दायरे में आने वाले लोगों की सफलता को उनकी योग्यता और श्रम के बजाय आरक्षण का परिणाम बताया जाता है।   
  • ऐसी चिंताएँ भी प्रकट की जाती हैं कि आरक्षण ‘प्रतिलोम विभेदन’ (Reverse Discrimination) के एक माध्यम के रूप में कार्य कर सकता है। 
    • ‘प्रतिलोम विभेदन’ किसी अल्पसंख्यक या ऐतिहासिक रूप से वंचित समूह के सदस्यों के पक्ष में प्रभुत्वशाली या बहुसंख्यक समूह के सदस्यों के साथ भेदभाव का दृष्टिकोण है।  
  • गुज़रते समय के साथ भेदभावजनक विषयों में कमी आने के बावजूद वोट बैंक की राजनीति के कारण आरक्षण व्यवस्था को समाप्त करना कठिन है। 

आरक्षण से संबंधित महत्त्वपूर्ण निर्णय: 

  • मुकेश कुमार और अन्य बनाम उत्तराखंड राज्य तथा अन्य 2020: 
    • इस वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि संविधान के अनुच्छेद 16(4) या अनुच्छेद 16(4A) के तहत आरक्षण या पदोन्नति का कोई मौलिक अधिकार नहीं है, बल्कि वे परिस्थितियों के अनुसार आरक्षण प्रदान करने के प्रावधानों को सक्षम करते  हैं। 
      • हालाँकि ये घोषणाएँ किसी भी तरह से अनुच्छेद-46 के तहत संवैधानिक निर्देश को कम नहीं करती हैं जो यह कहता है कि राज्य लोगों के कमज़ोर वर्गों और विशेष रूप से अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक  आर्थिक हितों को विशेष देखभाल के साथ बढ़ावा देगा। 
      • वास्तव में दशकों से कमज़ोर वर्गों के प्रति कल्याणकारी राज्य की संवेदनशीलता के परिणामस्वरूप अनुच्छेद-16 के तहत बढ़ते वर्गीकरण के रूप में आरक्षण के दायरे का क्रमिक विस्तार हुआ, ऐसे समूह जिन्होंने न्यायालय में अनेक याचिकाएँ दायर कीं  परिणामस्वरूप सार्वजनिक रोज़गार में सकारात्मक कार्रवाई का निरंतर विकास हुआ है। 
  • इंदिरा साहनी वाद 1992: 
    • पदोन्नति में आरक्षण की इस नीति को इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ 1992 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा असंवैधानिक और शून्य माना गया क्योकि सार्वजनिक सेवाओं में भर्ती के समय केवल प्रवेश के स्तर पर अनुच्छेद 16 (4) के तहत राज्य को पिछड़े वर्गों के नागरिकों के पक्ष में आरक्षण की शक्ति प्रदान की गई है। 
    • 77वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 16(4A) को शामिल किया गया। 
  • 77वाँ संविधान संशोधन अधिनियम: 
    • अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को सरकारी नौकरियों में पदोन्नति के मामले में आरक्षण देने की व्यवस्था की गई। इस संशोधन से प्रोन्नति के मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय को निरस्त कर दिया गया। 
    • बाद में दो और संशोधन लाए गए, एक परिणामी वरिष्ठता सुनिश्चित करने के लिये और दूसरा एक वर्ष की अधूरी रिक्तियों को आगे बढ़ाने के लिये। पहले संशोधन ने अनुच्छेद 16(4A) के अतिरिक्त प्रावधान किये, जबकि दूसरे संशोधन ने 16(4B) को शामिल किया। 
  • एम नागराज वाद 2006: 
    • इस मामले में पदोन्नति हेतु अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में क्रीमी लेयर की अवधारणा को लागू करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इंद्रा साहनी मामले (1992) में अपने पूर्व निर्णय को पलट दिया, जिसमें उसने एससी/एसटी (जो ओबीसी पर लागू था) को क्रीमी लेयर की अवधारणा से बाहर कर दिया था। 
    • SC ने संवैधानिक संशोधनों जिसके द्वारा अनुच्छेद 16 (4A) और 16 (4B) को जोड़ा गया था यह कहते हुए बरकरार रखा कि वे अनुच्छेद 16 (4) से संबंधित हैं तथा ये अनुच्छेद की मूल संरचना को परिवर्तित नहीं करते हैं। 
    • इसने सार्वजनिक रोज़गार में एससी और एसटी समुदायों के लोगों की संख्या को बढ़ाने हेतु तीन शर्तें भी रखीं: 
      • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय को सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़ा होना चाहिये। 
      • सार्वजनिक रोज़गार में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व का अभाव हो। 
      • आरक्षण नीति प्रशासन में समग्र दक्षता को प्रभावित नहीं करेगी। 
    • न्यायालय ने कहा कि सरकार अपने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों हेतु पदोन्नति में कोटा तब तक लागू नहीं कर सकती जब तक कि यह साबित नहीं हो जाता कि विशेष समुदाय पिछड़ा हुआ है, अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने से लोक प्रशासन की समग्र दक्षता प्रभावित नहीं होगी। 
      • सरकार की राय मात्रात्मक आंँकड़ों पर आधारित होनी चाहिये। 
  • जरनैल सिंह वाद 2018: 
    • जरनैल सिंह मामले (2018) में सर्वोच्च न्यायालय ने नागराज फैसले को एक उच्च पीठ को संदर्भित करने से इनकार कर दिया, परंतु बाद में यह कहकर अपने निर्णय को बदल दिया कि राज्यों को SC/ST समुदायों के पिछड़ेपन का मात्रात्मक डेटा प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है। 
    • न्यायालय ने सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के सदस्यों के लिये "परिणामी वरिष्ठता के साथ त्वरित पदोन्नति" प्रदान करने के सरकार के प्रयासों को एक बड़ा प्रोत्साहन दिया था। 
  • संविधान (103वाँ संशोधन) अधिनियम, 2019: 
    • आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS), अन्य अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों के लिये सरकारी नौकरियों तथा शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश हेतु 10% आरक्षण वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती के अधीन है, जिसने एक संविधान पीठ को भेज दिया गया है। 
    • इस संबंध में प्रतीक्षित निर्णय भी आरक्षण के न्यायशास्त्र में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय साबित हो सकता है क्योंकि पिछड़ेपन को पारंपरिक रूप से सामाजिक पिछड़ेपन के बजाय आर्थिक पिछड़ेपन की दृष्टि से देखा जाना चाहिये। 
  • डॉ. जयश्री लक्ष्मणराव पाटिल बनाम मुख्यमंत्री (2021): 
    • इंद्रा साहनी वाद के निर्णय के बावजूद कई राज्यों की ओर से आरक्षण के दायरे का विस्तार करके नियमों का उल्लंघन करने का प्रयास किया गया है। 
    • महाराष्ट्र सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग अधिनियम 2018, (मराठा आरक्षण कानून) सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती के तहत आया, जिसने इसे पाँच न्यायाधीशों की पीठ के पास भेज दिया और यह पूछा गया कि क्या 1992 के फैसले पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। 
      • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने न केवल इंद्रा साहनी मामले में दिये गए निर्णय की पुष्टि की, बल्कि आरक्षण की सीमा के उल्लंघन का हवाला देते हुए अधिनियम की धारा 4(1)(A) और धारा 4(1)(B) को भी रद्द कर दिया, जिसमें मराठों के लिये शैक्षणिक संस्थानों में 12% और सार्वजनिक रोज़गार में 13% आरक्षण का प्रावधान किया गया था।  

आरक्षण में पदोन्नति के लिये संवैधानिक प्रावधान: 

  • संविधान के अनुच्छेद 16(4) के अनुसार, राज्य सरकारें अपने नागरिकों के उन सभी पिछड़े वर्गों के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के आरक्षण हेतु प्रावधान कर सकती हैं, जिनका राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। 
  • अनुच्छेद 16(4A) के अनुसार, राज्य सरकारें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के पक्ष में पदोन्नति के मामलों में आरक्षण के लिये कोई भी प्रावधान कर सकती हैं यदि राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। 
  • अनुच्छेद 16 (4B): इसे 81वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2000 द्वारा जोड़ा गया, जिसमें एक विशेष वर्ष के रिक्त SC/ST कोटे को अगले वर्ष के लिये स्थानांतरित करना है। 
  • अनुच्छेद 335: के अनुसार, सेवाओं और पदों को लेकर SC और ST के दावों पर विचार करने हेतु विशेष उपायों को अपनाने की आवश्यकता है, ताकि उन्हें बराबरी के स्तर पर लाया जा सके। 
  • 82वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2000 ने अनुच्छेद 335 में एक शर्त सम्मिलित की गई जो कि राज्य को किसी भी परीक्षा में अर्हक अंक में छूट प्रदान करने हेतु अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के पक्ष में कोई प्रावधान करने में सक्षम बनाता है। 

 स्रोत: द हिंदू 

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