भारतीय राजनीति
मराठा कोटा
- 28 Jul 2020
- 9 min read
प्रीलिम्स के लिये:उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय मेन्स के लिये:मराठा कोटा के संदर्भ में न्यायलय का निर्णय एवं राज्य की विकास नीतियों पर इसका प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उच्चतम न्यायालय (Supreme Court-SC) महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण के विरुद्ध दायर विशेष अनुमति याचिकाओं (Special Leave Petitions-SLPs: अनुच्छेद 136) पर दैनिक आधार पर वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अंतिम सुनवाई शुरू करने के लिये तैयार हो गया है।
प्रमुख बिंदु:
- शीर्ष न्यायालय राज्य में इस कोटा के तहत स्नातकोत्तर चिकित्सा और दंत चिकित्सा पाठ्यक्रमों में प्रवेश को चुनौती देने वाली याचिका पर भी सुनवाई करेगा।
- SLPs द्वारा बॉम्बे उच्च न्यायालय (High Court-HC) के उस निर्णय को चुनौती दी गई है, जिसमें राज्य के सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग अधिनियम, 2018 (Socially and Educationally Backward Classes-SEBC) के तहत मराठा कोटा की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा गया है।
- SEBC अधिनियम के तहत राज्य में शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिये तथा राज्य के तहत सार्वजनिक सेवाओं और पदों पर नियुक्तियों के लिये आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
- महाराष्ट्र देश के उन कुछ राज्यों में से एक है, जिनमें आरक्षण की सीमा 50% से अधिक है।
- महाराष्ट्र में आरक्षण की उच्चतम सीमा तमिलनाडु, हरियाणा और तेलंगाना से भी अधिक है।
- इंदिरा साहनी मामले, 1992 के निर्णय के अनुसार, पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण की कुल सीमा 50% से अधिक नहीं हो सकती है।
पृष्ठभूमि:
- मेडिकल की तैयारी करने वाले छात्रों के एक समूह द्वारा SEBC, Act 2018 में संशोधन की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई, जो वर्ष 2019-2020 में एमबीबीएस पाठ्यक्रमों में मराठा आरक्षण की अनुमति प्रदान करता है।
- जुलाई 2019 में, बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा इस याचिका को खारिज कर दिया गया तथा उच्चतम न्यायालय द्वारा भी बॉम्बे उच्च न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखते हुए कोटे पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया गया।
- हाल ही में उच्चतम न्यायालय द्वारा मेडिकल छात्रों द्वारा दायर याचिका पर अंतरिम रोक न लगाते हुए दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा गया कि शैक्षणिक वर्ष 2020-21 के लिये स्नातकोत्तर चिकित्सा तथा दंत चिकित्सा पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिये 12% कोटा व्यवस्था को लागू नहीं किया जाएगा।
मराठा:
- यह महाराष्ट्र का एक राजनीतिक रूप से सशक्त समुदाय है जिसमें मुख्य रूप से किसान और भू स्वामी शामिल हैं। इस समुदाय का राज्य की कुल आबादी में लगभग एक तिहाई हिस्सा है।
- वर्ष 1960 में राज्य गठन के बाद से ही राज्य के अधिकांश मुख्यमंत्री मराठा समुदाय से ही हैं।
- अधिकांश मराठा लोग मराठी भाषी हैं लेकिन सभी मराठी भाषी लोग मराठा समुदाय से नहीं हैं।
- ऐतिहासिक दृष्टि से, इस समुदाय को बड़े भू-स्वामी होने के साथ- साथ एक 'योद्धा' जाति के रूप में भी पहचाना जाता है।
- हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में भूमि के विभाजन तथा कृषि समस्याओं के कारण मध्य वर्ग और निम्न-मध्यम वर्ग मराठा समुदायों की समृद्धि में गिरावट आई है फिर भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मराठा समुदाय एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
बॉम्बे उच्च न्यायालय का निर्णय:
- जुलाई 2019 में, बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा निर्णय दिया गया कि राज्य द्वारा प्रदान किया गया 16% कोटा 'न्यायसंगत' नहीं था जिसे 11-सदस्यीय महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (Maharashtra State Backward Class Commission-MSBCC) की अनुसंशा पर शिक्षा में 12% और सरकारी नौकरियों में 13% तक घटा दिया गया था।
- आरक्षण की सीमा 50% से अधिक नहीं होनी चाहिये, लेकिन असाधारण परिस्थितियों में, इस सीमा को समकालीन डेटा की उपलब्धता के आधार पर, जो पिछड़ेपन के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता को दर्शाती है, प्रशासन में दक्षता को प्रभावित किये बिना बढ़ाया जा सकता है।
- जबकि समुदाय के पिछड़ेपन की तुलना अनुसूचित जाति (Scheduled Castes- SCs) और अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes-STs) के साथ नहीं की गई थी बल्कि इसकी तुलना मंडल आयोग की अन्य पिछड़ा वर्ग ( Other Backward Classes- OBC) की सूची में शामिल कई अन्य पिछड़े वर्गों के साथ की गई।
महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का सर्वेक्षण:
- महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा दो गाँवों के लगभग 45,000 परिवारों का सर्वेक्षण किया गया जिनमें प्रत्येक गाँव के 355 तालुकों में 50% से अधिक मराठा आबादी थी।
- सामाजिक पिछड़ापन
- 76.86% मराठा परिवार अपनी आजीविका के लिये कृषि एवं श्रम में लगे हुए हैं।
- लगभग 70% मराठा परिवार कच्चे आवासों में निवास करते हैं।
- केवल 35-39% मराठा घरों में व्यक्तिगत नल के पानी का कनेक्शन है।
- वर्ष 2013-2018 के दौरान कुल 13,368 किसानों ने आत्महत्या की जिनमें 23.56% मराठा किसान शामिल थे।
- घर के कामकाज़ के अलावा 88.81% मराठा महिलाएँ आजीविका के लिये शारीरिक श्रम में शामिल हैं।
- शैक्षिक पिछड़ापन
- 13.42% मराठा निरक्षर हैं, 35.31% प्राथमिक शिक्षित, 43.79% माध्यमिक तथा उच्च माध्यमिक शिक्षित, 6.71% स्नातक तथा स्नातकोत्तर एवं 0.77% तकनीकी और पेशेवर रूप से योग्य हैं।
- आर्थिक पिछड़ापन:
- 93% मराठा परिवारों की वार्षिक आय 1 लाख रुपए है जो मध्यम वर्गीय परिवारों की औसत आय से कम है।
- 37.38% मराठा परिवार गरीबी रेखा से नीचे ( Below Poverty Line- BPL) हैं जो राज्य के औसत (24%) से अधिक है।
- 71% मराठा किसानों के पास 2.5 एकड़ से कम ज़मीन है जबकि केवल 2.7% बड़े किसानों के पास ही 10 एकड़ जमीन उपलब्ध है।
- आयोग ने 15 नवंबर 2018 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें यह बताया गया कि मराठा समुदाय सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछडा हुआ है और साथ ही राज्य में सार्वजनिक रोज़गार में मराठा समुदाय के प्रतिनिधित्व का अभाव है।
महाराष्ट्र में मौजूद कुल आरक्षण:
- वर्ष 2001 के राज्य आरक्षण अधिनियम के बाद महाराष्ट्र में कुल आरक्षण 52% था।
- इसमें SC (13%), STs (7%), OBC (19%), विशेष पिछड़ा वर्ग (2%), विमुक्त जाति (3%), घुमंतू जनजाति (2.5%), घुमंतू जनजाति धनगर के लिये (3.5%)और घुमंतू जनजाति वंजारी (2%) के कोटा शामिल थे।
- घुमंतू जनजातियों और विशेष पिछड़े वर्गों के लिये कोटा कुल ओबीसी कोटा से बाहर किया गया है।
- 12-13% मराठा कोटा के साथ राज्य में कुल आरक्षण 64-65% है।
- 10% आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (Economically Weaker Sections- EWS) के लिये भी राज्य में कोटा प्रभावी है।