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जनगणना

  • 25 May 2023
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

जनगणना, कोविड-19, भारतीय जनगणना अधिनियम 1948, निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन, प्रवासन, PDS

मेन्स के लिये:

जनगणना, इसका महत्त्व और नीति निर्माण में देरी के निहितार्थ

चर्चा में क्यों? 

भारत में वर्ष 2021 की जनगणना को कोविड-19 महामारी के कारण पिछले 150 वर्षों में पहली बार स्थगित करना पड़ा। महामारी समाप्त होने और सामान्य स्थिति में लौटने के बावजूद जनगणना अभी भी लंबित है।

  • शुरुआत में इसे पूरी तरह से डिजिटल अभ्यास के रूप में प्रस्तावित किया गया था, जिसमें गणनाकारों द्वारा सभी सूचनाओं को एक मोबाइल एप में फीड किया जाना था। हालाँकि 'व्यावहारिक कठिनाइयों' के कारण बाद में इसे 'मिक्स मोड' में संचालित करने का निर्णय लिया गया या मोबाइल एप या पारंपरिक पेपर फॉर्म का उपयोग किया गया।

नोट: हाल ही में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) द्वारा जारी स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट 2023 के अनुसार, भारत वर्ष 2023 के मध्य तक चीन को पीछे छोड़कर दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा।

जनगणना: 

  • परिभाषा: 
    • जनगणना एक देश या किसी देश के एक सुपरिभाषित हिस्से में एक विशिष्ट समय पर सभी व्यक्तियों के जनसांख्यिकीय, आर्थिक और सामाजिक डेटा से संबंधित संग्रह, संकलन, विश्लेषण और प्रसार की प्रक्रिया है।
    • जनगणना, पिछले एक दशक में देश की प्रगति की समीक्षा, सरकार की चल रही योजनाओं की निगरानी और भविष्य की योजना बनाने का आधार है।
    • यह किसी समुदाय की तात्कालिक विवरण प्रदान करता है, जो किसी विशेष समय पर मान्य होता है।
  • चरण: भारत में जनगणना का संचालन दो चरणों में किया जाता है:
    • मकानों की गणना: इसके अंतर्गत सभी स्थायी या अस्थायी भवनों का विवरण, उनके प्रकार, सुविधाओं एवं संपत्तियों की  गणना की जाती है।
    • जनसंख्या गणना: इसमें देश में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति, भारतीय नागरिक या अन्य के बारे में अधिक विस्तृत जानकारी शामिल की जाती है।
      • साथ ही उन सभी घरों की सूची तैयार की जाती है जिनका सर्वेक्षण किया जाता है।
  • आवृत्ति: 
    • पहली समकालिक जनगणना वर्ष 1881 में भारत के जनगणना आयुक्त डब्ल्यू.सी. प्लोडेन द्वारा कराई गई थी। तब से प्रत्येक दस वर्ष में एक बार निर्बाध रूप से जनगणना की जाती रही है।
    • भारतीय जनगणना अधिनियम, 1948 जनगणना हेतु कानूनी ढाँचा प्रदान करता है, हालाँकि इसमें समय या आवधिकता का उल्लेख नहीं है।
      • इसलिये भारत में जनगणना संवैधानिक रूप से अनिवार्य है लेकिन इसके लिये कोई संवैधानिक या कानूनी आवश्यकता नहीं है और दशकीय रूप से आयोजित करने की आवश्यकता है।
    • कई देशों (उदाहरण के लिये अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम) में 10 वर्ष की आवृत्ति का पालन किया जाता है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान जैसे कुछ देश इसे प्रत्येक पाँच वर्ष में आयोजित करते हैं।
  • नोडल मंत्रालय: 

जनगणना का महत्त्व:

  • प्राथमिक और प्रामाणिक डेटा: 
    • यह प्राथमिक और प्रामाणिक डेटा उत्पन्न करता है जो विभिन्न सांख्यिकीय विश्लेषणों का आधार बनता है। प्रशासन, अर्थव्यवस्था एवं सामाजिक कल्याण जैसे विभिन्न क्षेत्रों में नियोजन, निर्णय लेने तथा विकास की पहल हेतु यह डेटा आवश्यक है।
    • यह कानूनी आवश्यकता नहीं है बल्कि जनगणना की उपयोगिता ने इसे स्थायी व नियमित अभ्यास बना दिया है। इसका विश्वसनीय और अद्यतित डेटा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत की प्रगति के विभिन्न पहलुओं में उपयोग किये जाने वाले संकेतकों की यथार्थता को प्रभावित करता है।
  • परिसीमन: 
    • जनगणना के आँकड़ों का उपयोग निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन और सरकारी निकायों में प्रतिनिधित्व के आवंटन के लिये किया जाता है।
    • यह संसद, राज्य विधानसभाओं, स्थानीय निकायों और सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति (Scheduled Castes- SCs) तथा अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes- STs) के लिये आरक्षित सीटों की संख्या निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
      • पंचायतों और नगर निकायों के मामले में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये सीटों का आरक्षण जनसंख्या में उनके अनुपात पर आधारित है।
      • यह आनुपातिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है तथा राजनीतिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था में समावेशिता को बढ़ावा देता है।
  • व्यवसायों के लिये बेहतर पहुँच: 
    • जनगणना के आँकड़े व्यावसायिक घरानों और उद्योगों के लिये उन क्षेत्रों में व्यवसाय की पहुँच को मज़बूत करने तथा योजना बनाने के लिये भी महत्त्वपूर्ण हैं जहाँ अब तक उनकी पहुँच नहीं थी।
  • अनुदान देना: 
    • वित्त आयोग जनगणना के आँकड़ों से उपलब्ध जनसंख्या के आँकड़ों के आधार पर राज्यों को अनुदान प्रदान करता है।

विलंबित जनगणना के परिणाम

  • नीति निर्धारण में चुनौतियाँ: 
    • निश्चित कालावधि में होने वाली जनगणना के समक्ष आने वाली बाधाओं के परिणामस्वरूप  ऐसा डेटा उत्पन्न हो सकता है जिसकी तुलना पूर्ववर्ती जनगणना के आँकड़ों से नहीं की जा सकती, इससे विभिन्न रुझानों का विश्लेषण करने और सूचित नीतिगत निर्णय लेने में चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
    • विश्वसनीय डेटा का अभाव (लगातार बदलते मापदंडों के संदर्भ में 12 वर्ष पुराना डेटा विश्वसनीय नहीं होता) भारत के प्रत्येक संकेतक में पूर्ण रूप से परिवर्तन लाने और सभी प्रकार की विकासात्मक पहलों की प्रभावकारिता एवं दक्षता को प्रभावित करने की क्षमता रखता है।
  • राजनीतिक भ्रांति:
    • जनगणना में विलंबता का प्रभाव विभिन्न शासी निकायों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की सीटों हेतु आरक्षण पर पड़ेगा।
      • वर्ष 2011 की जनगणना के आंँकड़ों का उपयोग जारी रहने के परिणामस्वरूप सीटों का आरक्षण त्रुटिपूर्ण हो सकता है।
    • इससे विशेष रूप से उन कस्बों और पंचायतों में समस्या पैदा हो सकती है जहाँ पिछले दशक में जनसंख्या संरचना में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन देखा गया है।
  • कल्याणकारी उपायों को लेकरअविश्वसनीय अनुमान:
    • वस्तुतः विलंबता की स्थिति उन सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों को प्रभावित करेगी, जो नीति और कल्याणकारी उपायों को निर्धारित करने के लिये जनगणना के आँकड़ों पर निर्भर रहते हैं, साथ ही उपभोग, स्वास्थ्य एवं रोज़गार पर किये गए अन्य सर्वेक्षणों से अविश्वसनीय अनुमान प्राप्त होंगे।
      • सरकार के खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) से कम-से-कम 100 मिलियन लोगों के बाहर होने की संभावना है क्योंकि लाभार्थियों की संख्या की गणना के लिये जनसंख्या के आँकड़े वर्ष 2011 की जनगणना से संबद्ध हैं।
  • मकानों की गणना पर प्रभाव: 
    • मकानों की गणना पूर्ण होने में लगभग एक वर्ष का समय लगता है, क्योंकि इसके लिये गणनाकारों को आवासों का पता लगाने और प्रासंगिक जानकारी एकत्र करने की आवश्यकता होती है। भारत में मकानों की गणना विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि देश में एक मज़बूत पता प्रणाली का अभाव है।
    • जनगणना में विलंब का अर्थ है कि उक्त सूची पुरानी हो जाती है क्योंकि समय के साथ घरों, पते और जनसांख्यिकी में परिवर्तन होता रहता है।
      • इसके परिणामस्वरूप अपूर्ण या त्रुटिपूर्ण जानकारी  प्राप्त हो सकती है, जो बाद की जनसंख्या गणना और आँकड़ों के संग्रह के लिये कम विश्वसनीय आधार बन सकता है।
  • प्रवासन के आँकड़ों का अभाव:
    • वर्ष 2011 की जनगणना के अप्रचलित आंँकड़े प्रवासन की संख्या, कारण और प्रतिरूप जैसे महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर प्रदान करने में असफल रहे।
      • कोविड लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रमिकों द्वारा शहरों को छोड़कर अपने गाँव वापस जाने के दृश्य ने उनकी चुनौतियों को प्रदर्शित किया।
    • फँसे हुए प्रवासियों को खाद्य राहत और परिवहन सहायता तथा अन्य आवश्यकताओं को लेकर सरकार के पास जानकारी का अभाव था।
    • आगामी जनगणना से बड़े शहरों के अतिरिक्त छोटे शहरों में बढ़ता प्रवासन मौजूदा संसाधनों पर अधिक दबाव को इंगित करता है, जो प्रवासियों के लिये विशिष्ट स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं की ज़रूरतों पर प्रकाश डालती है। 
    • यह डेटा प्रवासियों और उनके निवास स्थानों के लिये आवश्यक समर्थन और सेवाओं की पहचान करने में मदद कर सकता है।

आगे की राह

  • सरकार को जनगणना को प्राथमिकता देनी चाहिये।
  • डेटा संग्रह प्रक्रिया को कारगर बनाने हेतु प्रौद्योगिकी और नवीन तरीकों का लाभ उठाने के प्रयास किये जाने चाहिये।
  • सरकार को जनगणना का सुचारु और कुशल संचालन सुनिश्चित कर संसाधनों का उचित वितरण सुनिश्चित करना चाहिये।
  • सटीक डेटा, सूचित नीतिगत निर्णयों, प्रभावी शासन और विभिन्न क्षेत्रों में समावेशी विकास के लिये जनगणना का समय पर आयोजन होना आवश्यक है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2009) 

  1. भारत की जनसंख्या का घनत्व वर्ष 1951 की जनगणना और वर्ष 2001 की जनगणना के बीच तीन गुना से अधिक बढ़ गया है।
  2. भारत की जनसंख्या की वार्षिक वृद्धि दर (घातीय) वर्ष 1951 की जनगणना और वर्ष 2001 की जनगणना के बीच दोगुनी हो गई है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d) 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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