डेली न्यूज़ (01 May, 2024)



भारत की वि-वैश्वीकृत खाद्य मुद्रास्फीति

प्रिलिम्स के लिये:

खाद्य मुद्रास्फीति, संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन, ब्लैक सी ग्रेन पहल, जैव ईंधन उत्पादन, खाद्य तेल, गैर-बासमती सफेद चावल पर निर्यात प्रतिबंध, आयातित मुद्रास्फीति

मेन्स के लिये:

वैश्विक खाद्य कीमतों में गिरावट में योगदान देने वाले कारक, भारत की वि-वैश्वीकृत खाद्य मुद्रास्फीति के लिये ज़िम्मेदार कारक

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?  

वर्ष 2023 में, विश्व खाद्य कीमतें अपने वर्ष 2022 के उच्चतम स्तर से काफी कम हो गईं। हालाँकि, दिसंबर, 2023 में भारत की खाद्य मुद्रास्फीति 9.5% के उच्च स्तर पर रही, जो कि -10.1% की वैश्विक अपस्फीति के विपरीत थी।

वैश्विक खाद्य कीमतों में गिरावट में कौन-से कारक योगदान दे रहे हैं?

  • प्रमुख फसलों की प्रचुर आपूर्ति: वर्ष 2023 में गेहूँ जैसी प्रमुख फसलों की पैदावार के कारण वैश्विक बाज़ार में अधिशेष हो गया।
    • यह प्रचुरता वर्ष 2022 की चिंताओं के विपरीत है, जब एक प्रमुख अनाज निर्यातक देश यूक्रेन, में युद्ध के कारण आपूर्ति में व्यवधान की चिंताओं के कारण कीमतें बढ़ गईं।
  • रूस और यूक्रेन से बेहतर आपूर्ति: जुलाई 2023 में ब्लैक सी ग्रेन पहल के विघटन के बावजूद, रूस और यूक्रेन दोनों गेहूँ निर्यात को बनाए रखने में सफल रहे हैं।
    • क्षेत्र से अनाज के इस निरंतर प्रवाह ने आपूर्ति संबंधी कुछ चिंताओं को कम करने में सहायता की है।
  • वनस्पति तेलों की कम मांग: संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के वनस्पति मूल्य सूचकांक में वर्ष 2023 में सबसे बड़ी गिरावट (32.7% तक) दर्ज़ की गई।
    • यह गिरावट कई कारकों के संयोजन के कारण हुई है, जिसमें वनस्पति तेल की आपूर्ति में सुधार और जैव ईंधन उत्पादन के लिये इसके उपयोग में कमी शामिल है।
    • जैसे-जैसे खाद्य प्रयोजनों के लिये अधिक तेल उपलब्ध हो जाता है और जैव ईंधन के लिये कम उपयोग किया जाता है, वनस्पति तेल की कुल मांग कम हो जाती है, जिससे कीमतें कम हो जाती हैं।
  • मांग का कम होना: उच्च मुद्रास्फीति और आर्थिक मंदी की आशंकाओं ने प्रमुख खाद्य-आयात क्षेत्रों सहित विश्व के कई भागों में उपभोक्ता मांग को कम कर दिया है, जिससे कुछ खाद्य वस्तुओं की आयात मांग में गिरावट आई है तथा तेल की वैश्विक कीमतों पर दबाव पड़ा है।

वैश्विक खाद्य कीमतों में गिरावट के बावजूद भारत उच्च खाद्य मुद्रास्फीति का अनुभव क्यों कर रहा है?

  • वैश्विक कीमतों का सीमित संचरण: जबकि वैश्विक खाद्य कीमतों में गिरावट आई, घरेलू बाज़ारों में अंतर्राष्ट्रीय कीमतों के सीमित संचरण के कारण भारत की खाद्य कीमतें ऊँची बनी रहीं।
    • भारत की आयात निर्भरता केवल खाद्य तेलों (खपत का 60%) और दालों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • अनाज, चीनी, डेयरी उत्पाद एवं फलों और सब्ज़ियों सहित अधिकांश अन्य कृषि-उत्पादों के लिये, भारत आत्मनिर्भर या निर्यातक है।
  • निर्यात प्रतिबंध और आयात शुल्क: भारत सरकार ने गेहूँ, गैर-बासमती सफेद चावल, चीनी और प्याज जैसे कुछ खाद्य पदार्थों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया तथा अन्य पर आयात शुल्क में छूट प्रदान की, जिससे घरेलू कीमतों पर वैश्विक बाज़ार के प्रभाव को प्रभावी ढंग से कम किया गया।
  • घरेलू उत्पादन चुनौतियाँ: विशेष रूप से अनाज, दालों और चीनी के लिये फसल की पैदावार को प्रभावित करने वाली मौसम की स्थिति जैसे मुद्दों ने घरेलू स्तर पर आपूर्ति की कमी एवं उच्च कीमतों में योगदान दिया।
    • दिसंबर 2023 में अनाज व दाल की मुद्रास्फीति दर क्रमशः 9.9% और 20.7% थी।
  • निम्न भण्डारण स्तर: गेहूँ और चीनी जैसी वस्तुओं के लिये कम भण्डारण स्तर ने कीमतों के दबाव को और बढ़ा दिया है।

नोट:

  • लाल सागर मार्ग में समस्याओं के कारण अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति शृंखला में व्यवधान से भारत मुख्यतः अप्रभावित रहता है क्योंकि अरहर और उड़द का आयात मुख्य रूप से मोज़ाम्बिक, तंज़ानिया, मलावी तथा म्याँमार से होता है, जो हाल ही में बाधित हुए स्वेज़ जलमार्ग-लाल सागर मार्ग को दरकिनार कर देता है।
  • ऑस्ट्रेलिया और कनाडा से मसूर का आयात, उत्तरी प्रशांत-हिंद महासागर मार्ग से होता है।
  • खाद्य तेलों का आयात अधिकतर इंडोनेशिया, मलेशिया, अर्जेंटीना तथा ब्राज़ील से होता है, जो दक्षिण अटलांटिक एवं हिंद महासागर के मार्ग द्वारा होता है और हूती संघर्ष से अप्रभावित रहता है।
  • इसके अतिरिक्त, वैश्विक कीमतों में गिरावट, जैसे रूसी गेहूँ 240-245 अमेरिकी डॉलर प्रति टन और इंडोनेशियाई पाम ऑयल 940 अमेरिकी डॉलर प्रति टन, ने भारत में आयातित मुद्रास्फीति के संकट को समाप्त कर दिया है।

आयातित मुद्रास्फीति क्या है?

  • परिचय: आयातित मुद्रास्फीति का तात्पर्य आयात की कीमत या लागत में वृद्धि के कारण किसी देश में वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में वृद्धि से है।
  • लाभ सीमा बनाये रखने के लिये, कंपनियाँ अक्सर अपनी वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ाकर उपभोक्ताओं के बढ़ी हुई आयात प्रस्तुत करती हैं।
  • उत्तरदायी कारक:
    • मुद्रा मूल्यह्रास कारक: किसी देश की मुद्रा में मूल्यह्रास को अक्सर आयातित मुद्रास्फीति के प्राथमिक चालक के रूप में देखा जाता है।
      • जब किसी मुद्रा का मूल्यह्रास होता है, तो विदेशी वस्तुओं या सेवाओं को खरीदने के लिये अधिक स्थानीय मुद्रा की आवश्यकता होती है, जिससे आयात लागत प्रभावी रूप से बढ़ जाती है।
      • एशियाई विकास बैंक ने हाल ही में चेतावनी दी थी कि पश्चिम में बढ़ती ब्याज दरों के बीच रुपए के संभावित मूल्यह्रास के कारण भारत को आयातित मुद्रास्फीति का सामना करना पड़ सकता है।
    • मुद्रा मूल्यह्रास के बिना आयात लागत में वृद्धि: मुद्रा मूल्यह्रास के बिना भी, अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि जैसे कारकों के कारण आयात लागत में वृद्धि से आयातित मुद्रास्फीति प्रभावी हो हो सकती है।
      • यह लागत-प्रेरित मुद्रास्फीति का एक प्रकार है, जो बताता है कि बढ़ती इनपुट लागत अंतिम वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में मुद्रास्फीति का कारण बन सकती है।

भारत में खाद्य मुद्रास्फीति की गणना कैसे की जाती है?

  • परिचय: भारत में खाद्य मुद्रास्फीति मुख्य रूप से खाद्य और पेय पदार्थों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) द्वारा मापी जाती है। CPI भारत में मुद्रास्फीति का एक प्रमुख माप है जो समय के साथ वस्तुओं एवं सेवाओं के एक समूह हेतु विशिष्ट उपभोक्ताओं द्वारा भुगतान की जाने वाली कीमतों में हो रहे बदलावों को चिह्नित करता है।
  • हाल के रुझान: उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में भोजन का भार 45.9% है, परंतु समग्र मुद्रास्फीति में इसका योगदान अप्रैल वर्ष 2022 में 48% से बढ़कर नवंबर 2023 में 67% हो गया।
    • हाल ही में जारी सरकार के पहले घरेलू उपभोग सर्वेक्षण के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य की खपत पहली बार 50% से कम होकर 46% रह गई और जबकि शहरी क्षेत्र में यह स्तर 39% रहा।
    • RBI के अनुसार, लगभग 90% खाद्य मुद्रास्फीति मौसम, आपूर्ति की स्थिति, अंतर्राष्ट्रीय कीमतों और उपलब्धता जैसे गैर-चक्रीय कारकों से निर्धारित होती है।
      • हालाँकि, औसतन 10% खाद्य मुद्रास्फीति महत्त्वपूर्ण समय भिन्नता के साथ मांग कारकों से प्रेरित होती है।

भारत खाद्य मुद्रास्फीति को प्रभावी ढंग से कैसे संबोधित कर सकता है?

  • कृषि उत्पादकता को बढ़ाना: फसल की पैदावार में वृद्धि तथा उत्पादन लागत को कम करने के लिये कृषि बुनियादी ढाँचे, प्रौद्योगिकी और अनुसंधान में निवेश करने से आपूर्ति को बढ़ावा मिल सकता है तथा कीमतें स्थिर हो सकती हैं।
  • कुशल आपूर्ति शृंखला प्रबंधन: रसद, भंडारण सुविधाओं और वितरण नेटवर्क को बढ़ाने से बर्बादी को कम किया जा सकता है तथा बाज़ार में खाद्य पदार्थों की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकती है, जिससे कीमतों में उतार-चढ़ाव कम हो सकता है।
  • कृषि का विविधीकरण: विभिन्न प्रकार की फसलों की खेती को प्रोत्साहित और वैकल्पिक कृषि पद्धतियों का समर्थन करके विविधीकरण को बढ़ावा देना कुछ वस्तुओं पर निर्भरता को कम कर सकता है तथा  बाज़ार की गतिशीलता को संतुलित कर सकता है।
  • मूल्य निगरानी और विनियमन: खाद्य कीमतों की नियमित रूप से निगरानी करने और प्रभावी मूल्य विनियमन तंत्र को लागू करने से मूल्य में हो रहे बदलावों को नियंत्रित किया जा सकता है तथा उपभोक्ताओं एवं उत्पादकों के लिये उचित मूल्य सुनिश्चित किया जा सकता है।
  • जलवायु लचीलापन: टिकाऊ कृषि पद्धतियों, जल प्रबंधन रणनीतियों और फसल विविधीकरण के माध्यम द्वारा जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का समाधान करने से उत्पादन जोखिमों को कम किया जा सकता है तथा दीर्घकालिक रूप से खाद्य सुरक्षा को बढ़ाया जा सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

भारत की वि-वैश्वीकृत खाद्य मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति को संचालित करने वाले प्रमुख कारक क्या हैं और देश की अर्थव्यवस्था के संदर्भ में इस असमानता को दूर करने के लिये कौन-सी रणनीतियाँ लागू की जा सकती हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये : (2020)

  1. खाद्य वस्तुओं का 'उपभोक्ता मूल्य सूचकांक' (CPI) में भार (weightage) उनके 'थोक मूल्य सूचकांक' (WPI) में दिये गए भार से अधिक है।
  2. WPI, सेवाओं के मूल्यों में होने वाले परिवर्तनों को नहीं पकड़ता, जैसा कि CPI करता है।
  3. भारतीय रिज़र्व बैंक ने अब मुद्रास्फीति के मुख्य मान हेतु तथा प्रमुख नीतिगत दरों के निर्धारण और परिवर्तन हेतु WPI को अपना लिया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (a)


मेन्स: 

प्रश्न. एक दृष्टिकोण यह भी है कि राज्य अधिनियमों के अधीन स्थापित कृषि उत्पादन बाज़ार समितियों (APMCs) ने भारत में न केवल कृषि के विकास को बाधित किया है, बल्कि वे खाद्य वस्तु महँगाई का कारण भी रही हैं। समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिये। (2014)


उच्च न्यायालय ने देनदारों के यात्रा के अधिकार को बरकरार रखा

प्रिलिम्स के लिये:

मौलिक अधिकार, अनुच्छेद 21, सर्वोच्च न्यायलय, भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018, अनुच्छेद 14, भारतीय रिजर्व बैंक, मनी लॉन्ड्रिंग

मेन्स के लिये:

भारत में ऋण चूककर्त्ताओं को नियंत्रित करने वाली रूपरेखा एवं उपायों का उद्देश्य ऋणदाताओं और उधारकर्त्ताओं के हितों को संतुलित करना है

स्रोत :इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

बॉम्बे उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (PSB) ऋण चूककर्त्ताओं के खिलाफ लुक आउट सर्कुलर (LOC) का अनुरोध नहीं कर सकते हैं।

  • न्यायालय ने PSB को ऐसा करने का अधिकार देने वाले केंद्र सरकार के कार्यालय ज्ञापन (OM) को रद्द कर दिया। न्यायालय ने कहा कि ये नीतियाँ संविधान के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं।

नोट:

  • LOC एक परिपत्र है जिसका उपयोग भारत में पुलिस अधिकारियों द्वारा यह जाँचने के लिये किया जाता है कि यात्रा करने वाला व्यक्ति पुलिस द्वारा वांछित है अथवा नहीं।

उच्च न्यायालय ने देनदारों की यात्रा पर प्रतिबंध लगाने वाले बैंकों के विरुद्ध नियम क्यों बनाया?

  • विधिक चुनौतियाँ:
    • 27 अक्तूबर, 2010 से कार्यालय ज्ञापन (OM) के आधार पर गृह मंत्रालय (MHA) के आव्रजन ब्यूरो द्वारा LOC जारी किये गए थे।
    • सितंबर 2018 में OM में संशोधन प्रस्तुत किये गए, जिससे व्यक्तियों को विदेश यात्रा करने से रोकने के लिये LOC जारी करने को अधिकृत किया गया, यदि उन देनदारों का प्रस्थान देश के "आर्थिक हित" के लिये हानिकारक था। 
      • इसने PSB अधिकारियों (प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारियों) को डिफॉल्ट उधारकर्त्ताओं के विरुद्ध LOC जारी करने के लिये आव्रजन अधिकारियों से अनुरोध करने का अधिकार दिया।
      • The default borrowers included not only the borrowers but also the डिफॉल्ट देनदारों में न केवल देनदार बल्कि ऋण चुकाने वाले गारंटर और कर्ज़ में डूबी कॉर्पोरेट संस्थाओं के प्रमुख अधिकारी या निदेशक भी शामिल थे।
  • याचिकाकर्त्ताओं के तर्क:
    • याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि OM मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, जिसमें अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा के साथ जीवन का अधिकार भी शामिल है।
    • उन्होंने तर्क दिया कि सरकार ने भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा विनियमित सार्वजनिक और निजी बैंकों के बीच एक अनुचित वर्गीकरण बनाया है।
    • याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि किसी PSB का "वित्तीय हित" "भारत के आर्थिक हित" के समान नहीं हो सकता है।
  • केंद्र का प्रस्तुतीकरण:
    • गृह मंत्रालय ने तर्क दिया कि परिपत्रों में स्थापित कानूनी प्रक्रिया के अनुसार, जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करने के लिये आवश्यक "जाँच और संतुलन" शामिल थे।
  • न्यायालय का रुख:
    • न्यायालय ने विराज चेतन शाह बनाम भारत संघ एवं अन्य, 2024 मामले का ज़िक्र करते हुए कहा कि व्यक्ति को विदेश यात्रा की अनुमति नहीं मिलने के कारण सरकार ऋण वसूली साबित करने में विफल रही।
      • इसने कानूनी कार्यवाही को दरकिनार करने के लिये एक मज़बूत रणनीति के रूप में LOC के उपयोग की आलोचना की, जिसे PSB असुविधाओं और परेशानियों के रूप में देखते हैं।
    • इसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया कि विदेश यात्रा के मौलिक अधिकार को सरकारी कानून के बिना कार्यकारी कार्रवाई द्वारा कम नहीं किया जा सकता है।
    • न्यायालय ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि PSB को ऋण वसूली के लिये एकतरफा शक्तियाँ प्रदान की गईं, जिस कारण वे प्रभावी ढंग से न्यायाधीश और प्रवर्तक बने। इसमें यह समझ से परे था कि बैंक अधिकारियों को उच्च पदस्थ पुलिस अधिकारियों के समान दर्जा दिया गया था।
    • न्यायालय ने पाया कि यदि कोई उधारकर्त्ता पूरी तरह से गैर-PSB के साथ लेनदेन करता है, तो कोई LOC जारी नहीं की जा सकती है, लेकिन PSB की एक भागीदारी भी जोखिम उत्पन्न करती है।
      • न्यायालय ने PSB और निजी बैंक कर्ज़दारों के बीच भेदभाव को मनमाना बताते हुए खारिज़ कर दिया। न्यायालय ने अनुच्छेद 14 के तहत अवैध मानते हुए LOC प्रावधान में केवल PSB को शामिल करने को मनमाना माना।
  • फैसले के निहितार्थ:
    • यह निर्णय सक्षम प्राधिकारियों द्वारा जारी मौजूदा प्रतिबंध आदेशों को प्रभावित नहीं करता है।
    • बैंक अभी भी व्यक्तियों को विदेश यात्रा से रोकने के लिये न्यायालयों या न्यायाधिकरणों से आदेश मांग सकते हैं, लेकिन केंद्र से लुक आउट सर्कुलर जारी करने के लिये नहीं कह सकते हैं।
    • बैंक ऋण की वसूली के लिये भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018 के तहत शक्तियों का भी उपयोग कर सकते हैं।
    • यह फैसला केंद्र सरकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुरूप उचित कानून बनाने से नहीं रोकेगा।

भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018:

  • यह उन आर्थिक अपराधियों की संपत्तियों को ज़ब्त करने का प्रयास करता है, जिन्होंने आपराधिक मुकदमे का सामना करने से बचने के लिये देश छोड़ दिया है या अभियोजन का सामना करने के लिये देश लौटने से इनकार कर दिया है।
  • यह अधिकारियों को 'भगोड़े आर्थिक अपराधी' की अपराध की आय तथा संपत्तियों की गैर-दोषी-आधारित कुर्की एवं ज़ब्ती का अधिकार देता है, जिसके विरुद्ध भारत में किसी भी न्यायालय द्वारा अनुसूचित अपराध के बारे में गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है और जिसने आपराधिक मुकदमे या न्यायिक प्रक्रियाओं से बचने के लिये देश छोड़ दिया है।
    • भगोड़ा आर्थिक अपराधी (FEO): एक ऐसा व्यक्ति जिसके खिलाफ अनुसूची में दर्ज़ किसी अपराध के संबंध में गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है और इस अपराध का मूल्य कम-से-कम 100 करोड़ रुपए है।
  • अधिनियम में सूचीबद्ध अपराधों में सरकारी स्टांप या मुद्रा की जालसाज़ी, चेक बाउंस, धन शोधन और लेनदारों को धोखा देने वाले लेनदेन शामिल हैं।

डिफॉल्टर्स के कानूनी अधिकार क्या हैं?

  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकों और वित्त कंपनियों को जानबूझकर चूक करने वालों या धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत खातों पर समझौता निपटान या तकनीकी राइट-ऑफ करने का निर्देश दिया।
    • इरादतन चूककर्त्ता (जान बूझकर ऋण न चुकाने वाला) अथवा धोखाधड़ी में शामिल कंपनियों को अब उनके खिलाफ की गई आपराधिक कार्यवाही के कारण ऋणदाताओं के पूर्वाग्रह का सामना नहीं करना पड़ेगा।
  • जिन उधारकर्त्ताओं ने समझौता निपटान कर लिया है, वे 12 माह की न्यूनतम विराम (कूलिंग) अवधि के पश्चात नए ऋण के लिये आवेदन कर सकते हैं।
    • विनियमित बैंकों और वित्त कंपनियों के पास अपनी बोर्ड-अनुमोदित नीतियों के अनुरूप उच्च विराम (कूलिंग) अवधि निर्धारित करने का अधिकार है।
  • भारत में डिफॉल्टरों के कानूनी अधिकारों में नोटिस प्राप्त करने का अधिकार, उचित ऋण वसूली प्रथाएँ, शिकायत निवारण, कानूनी सहायता लेना और निष्पक्ष क्रेडिट रिपोर्टिंग शामिल है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न :

प्रश्न. भारत में ऋण चूककर्त्ताओं को नियंत्रित करने वाले कानूनी और नियामक ढाँचे पर चर्चा कीजिये। डिफॉल्ट मामलों से निपटने में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की भूमिका और ऋण वसूली में उनके सामने आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये।

प्रश्न. ऋण चूक के मुद्दे से निपटने के दौरान बैंकिंग सुधार व्यापक वित्तीय समावेशन लक्ष्यों के साथ किस प्रकार संरेखण कर रहे हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के संचालन के संबंध में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. पिछले दशक में भारत सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पूँजी के अंतर्वेशन में लगातार वृद्धि हुई है।
  2. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को सुव्यवस्थित करने के लिये मूल भारतीय स्टेट बैंक के साथ उसके सहयोगी बैंकों का विलय किया गया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर: (b)


भारत में अवर्गीकृत वन

प्रिलिम्स के लिये:

अवर्गीकृत वन, भारत का सर्वोच्च न्यायालय, वन (संरक्षण) अधिनियम संशोधन (FCAA) 2023, वन अधिकार अधिनियम, 2006 

मेन्स के लिये:

FCCA (2023) के निहितार्थ, अवर्गीकृत वनों की सुरक्षा में प्रवर्तन तंत्र

स्रोत: द हिंदू   

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने विभिन्न राज्य विशेषज्ञ समिति (State Expert Committee- SEC) की रिपोर्ट अपनी वेबसाइट पर अपलोड की है।

  • यह अंतरिम आदेश एक जनहित याचिका का प्रत्युत्तर था जिसमें वन (संरक्षण) अधिनियम संशोधन (FCAA), 2023 की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी।
  • दायर की गई याचिका अवर्गीकृत वनों की स्थिति का ज्ञात न होने अथवा उनकी पहचान की पुष्टि से संबंधित प्रश्नों पर आधारित थी, जिनकी पहचान राज्य SEC रिपोर्टों द्वारा की जानी थी।

SEC की रिपोर्ट द्वारा ज्ञात तथ्य:

  • प्रमुख बिंदु:
    • किसी भी राज्य ने अवर्गीकृत वनों की पहचान, स्थिति और स्थान पर सत्यापन योग्य डेटा प्रदान नहीं किया।
      • सात राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (गोवा, हरियाणा, जम्मू व कश्मीर, लद्दाख, लक्षद्वीप, तमिलनाडु एवं पश्चिम बंगाल) ने SEC का गठन भी नहीं किया
    • 23 में से केवल 17 राज्यों ने उच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप रिपोर्ट प्रस्तुत की।
    • अधिकांश राज्य क्षेत्रीय स्तर पर या भौतिक सर्वेक्षण किये बिना वन और राजस्व विभागों के मौजूदा आंकड़ों पर विश्वास करते हैं तथा अधिकांश में अवर्गीकृत वन भूमि का सीमांकन नहीं किया गया है।
      • इन वनों की भौगोलिक स्थिति और वर्गीकरण पर स्पष्टता का अभाव है।
    • कई राज्यों की रिपोर्टों में भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India- FSI) के आँकड़ों के साथ महत्त्वपूर्ण विसंगतियाँ की गईं।
      • उदाहरण के लिये, गुजरात की राज्य विशेषज्ञ समिति रिपोर्ट में 192.24 वर्ग किमी के अवर्गीकृत वनों का उल्लेख किया, जबकि FSI ने 4,577 वर्ग किमी. की सूचना दी।
      • इसी प्रकार असम, जहाँ SEC रिपोर्ट में अवर्गीकृत वन क्षेत्र की सीमा 5,893.99 वर्ग किमी. बताई गई है, जबकि FSI ने 8,532 वर्ग किमी बताई है।
    • केवल नौ राज्यों ने अवर्गीकृत वनों की सूचना प्रदान की, जबकि अन्य राज्यों ने विभिन्न प्रकार के वन क्षेत्रों पर स्पष्ट डेटा साझा नहीं किया है।
      • कुछ राज्यों ने नष्ट हुये, साफ किये गये तथा अतिक्रमित वनों का विवरण दिया है, परंतु भिन्न-भिन्न रिपोर्टों में यह विवरण भिन्न-भिन्न है।
    • उपलब्ध रिकॉर्ड से डेटा निकालने और वनों की भौगोलिक स्थिति के संबंध में स्पष्टता की कमी है, तथा इनके पास कोई टोपो शीट पहचान मानचित्र (किसी क्षेत्र की प्राकृतिक और मानव निर्मित विशेषताओं को दर्शाने वाला मानचित्र) उपलब्ध नहीं है।
  • परिणाम:
    • SEC रिपोर्ट की शीघ्र एवं अपूर्ण प्रकृति के कारण अवर्गीकृत वनों का बड़े स्तर पर विनाश होने की संभावना है।
      • उदाहरण के लिये, केरल के SEC में मुन्नार में पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र, पल्लीवासल अनारक्षित क्षेत्र सम्मिलित नहीं था, जो 2018 की बाढ़ के कारण नष्ट हो गया था।
      • यह रिपोर्ट, मुन्नार के एक प्रसिद्द हाथी गलियारे, चिन्नाकनाल का उल्लेख करने में भी असफल रही, जो अब अति वाणिज्यिक पर्यटन के कारण समाप्त हो गया है, जिससे मानव-हाथी संघर्ष के कई उदाहरण सामने आए हैं।
    • इन वनों की व्यापक रूप से पहचान करने और उनकी सुरक्षा करने में विफलता 1996 के गोदावर्मन फैसले तथा भारतीय वन नीति के मैदानी इलाकों में 33.3% एवं पहाड़ियों में 66.6% वन क्षेत्र प्राप्त करने के लक्ष्य को कमज़ोर करती है।
      • भारतीय वन सर्वेक्षण की 2021 की रिपोर्ट देश में कुल मिलाकर 21% वन क्षेत्र (जिस पर विशेषज्ञों ने विवाद किया है) और पहाड़ियों में 40% दर्शाती है। सर्वेक्षण की समीक्षा के अंतिम चक्र में लगभग 900 वर्ग किमी. का नुकसान हुआ है।

अवर्गीकृत वन क्या हैं?

  • विधिक संरक्षण:
    • अवर्गीकृत वन, जिन्हें ‘मानित वन’ के रूप में भी जाना जाता है, को टी.एन.गोदावर्मन थिरुमुल्कपाद बनाम भारत संघ एवं अन्य, (1996) ऐतिहासिक मामले के अंतर्गत कानूनी सुरक्षा प्राप्त है। 
  • परिभाषा:
    • इनमें विभिन्न प्रकार की भूमि सम्मिलित है, जिनमें वन, राजस्व, रेलवे, सरकारी संस्थाएँ, सामुदायिक वन या निजी स्वामित्व वाली भूमि शामिल है।
    • इनके विविध स्वामित्व के बावजूद, इन वनों को आधिकारिक तौर पर भारतीय वन अधिनियम के तहत अधिसूचित नहीं किया गया है, हालाँकि, इस क्षेत्र में वन प्रकार की वनस्पति मौजूद है।
  • अभिनिर्धारण प्रक्रिया :
    • राज्य विशेषज्ञ समितियों (SECs) को देश भर में अवर्गीकृत वनों का निर्धारण करने का कार्य सौंपा गया था।
      • इस निर्धारण में वन कार्य योजनाओं तथा राजस्व भूमि रिकॉर्ड जैसे उपलब्ध आँकड़ों की जाँच करना, साथ ही वन जैसी विशेषताओं वाले भूमि क्षेत्र की भौतिक पहचान करना शमिल था।
  • FCAA के निहितार्थ:
    • वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023, जो दिसंबर, 2023 में लागू हुआ, ने वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 (FCA) में महत्त्वपूर्ण बदलाव प्रस्तुत किये।
    • इस संशोधन ने FCA के कवरेज को दो प्रकार की भूमि तक सीमित कर दिया:
      • भारतीय वन अधिनियम, 1927 या अन्य प्रासंगिक कानून के तहत आधिकारिक तौर पर वन के रूप में घोषित या अधिसूचित क्षेत्र।
      • 25 अक्तूबर, 1980 से सरकारी अभिलेखों में वन क्षेत्र के रूप में दर्ज़ की गई भूमि।
    • FCAA, 2023 ने अवर्गीकृत वनों के लिये कानूनी सुरक्षा के नुकसान के बारे में चिंता व्यक्त की, जिससे संभावित रूप से उन्हें गैर-वन उपयोग के लिये परिवर्तित किया गया।
    • FCAA के तहत, अवर्गीकृत वनों को किसी भी परिवर्तन के लिये केंद्र सरकार की मंज़ूरी की आवश्यकता होगी, भले ही आधिकारिक तौर पर अधिसूचित न किया गया हो।
  • चुनौतियाँ:
    • कानूनी संरक्षण:
      • वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम के अधिनियमन के साथ, अवर्गीकृत वनों को अपनी कानूनी सुरक्षा खोने का जोखिम है, जिससे उन्हें गैर-वन उपयोग के लिये परिवर्तित कर दिया जाएगा।
    • वन में निवास करने वाले समुदायों पर प्रभाव:
      • वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के प्रावधानों के अधीन 'मानित वनों' को मान्यता देने में संशोधन अधिनियम की विफलता वन-निवास समुदायों के अधिकारों को कमज़ोर करती है।
      • 'मानित वन' के रूप में वर्गीकृत वन भूमि को ग्राम सभाओं की सहमति के बिना स्थानांतरित किया जा सकता है, जो वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत मान्यता प्राप्त उनके अधिकारों का उल्लंघन है।
    • पर्यावरण और पारिस्थितिक चिंताएँ:
      • कानूनी स्थिति पर आधारित अधिनियमों में उल्लिखित वनों की सीमित परिभाषा इसके पारिस्थितिक महत्त्व को नज़रअंदाज़ करती है, जिससे अवर्गीकृत वन क्षेत्रों में संभावित रूप से कमी और जैवविविधता की हानि होती है।

टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ एवं अन्य मामला, 1996

  • वर्ष 1995 में टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद ने नीलगिरी वन भूमि को अवैध वनों की कटाई से बचाने के लिये भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की।
  • न्यायालय ने वनों के सतत् उपयोग के लिये विस्तृत निर्देश जारी किये और इस बात पर ज़ोर दिया कि स्वामित्व की परवाह किये बिना, वन के रूप में परिभाषित कोई भी क्षेत्र, वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के अधीन होगा। 
    • इस नई व्याख्या ने राज्यों को बिना अनुमति के संरक्षित वनों को गैर-वानिकी उपयोग के लिये आरक्षित करने से रोक दिया। 
  • मुख्य निर्देशों में से एक यह था कि पूरे देश में सभी वन गतिविधियाँ केंद्र सरकार की विशिष्ट मंज़ूरी के बिना भी बंद की जानी चाहिये।

आगे की राह

  • अवर्गीकृत वनों सहित सभी प्रकार के वनों की रक्षा के लिये टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुल्कपाद बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस, 1996 के निर्णय का सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित करें।
  • अवर्गीकृत वनों की सटीक पहचान एवं मानचित्रण के लिये भौतिक सर्वेक्षण और ज़मीनी सच्चाई को अनिवार्य करने की आवश्यकता है।
    • क्रॉस सत्यापन और अद्यतन रिकॉर्ड के माध्यम से SEC रिपोर्ट एवं FSI डेटा के बीच विसंगतियों को दूर करना।
  • उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिये दंड लागू अकरने की आवश्यकता है जो SEC का गठन करने या अवर्गीकृत वनों पर सटीक डेटा प्रदान करने में विफल रहते हैं।
  • इन लक्ष्यों की दिशा में प्रगति पर नज़र रखने और आवश्यकतानुसार रणनीतियों को समायोजित करने के लिये एक मज़बूत निगरानी तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में अवर्गीकृत वनों की सुरक्षा और प्रबंधन पर वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 के निहितार्थों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।

और पढ़ें: भारत का सर्वोच्च न्यायालय, वन (संरक्षण) अधिनियम संशोधन (FCAA) 2023, वन संरक्षण संशोधन विधेयक 2023, ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच

  UPSC सिवल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भारतीय वन अधिनियम, 1927 में हाल में हुए संशोधन के अनुसार, वन निवासियों को वनक्षेत्रों में उगाने वाले बाँस को काट गिराने का अधिकार है। 
  2. अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के अनुसार, बाँस एक गौण वनोपज है। 
  3. अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 वन निवासियों को गौण वनोपज के स्वामित्व की अनुमति देता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


प्रश्न. राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये कौन-सा मंत्रालय केंद्रक अभिकरण है? (2021) 

(a) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
(b) पंचायती राज मंत्रालय
(c) ग्रामीण विकास मंत्रालय
(d) जनजातीय कार्य मंत्रालय

उत्तर: (d)


प्रश्न. भारत का एक विशेष राज्य निम्नलिखित विशेषताओं से युक्त है: (2012)

  1. यह उसी अक्षांश पर स्थित है जो उत्तरी राजस्थान से होकर जाता है। 
  2. इसका 80% से अधिक क्षेत्र वनाच्छादित है।
  3.  12% से अधिक वन क्षेत्र इस राज्य के संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क के रूप में है। 

निम्नलिखित राज्यों में से कौन-सा एक उपर्युक्त दी गईं विशेषताओं से युक्त है?

(a) अरुणाचल प्रदेश
(b) असम
(c) हिमाचल प्रदेश
(d) उत्तराखंड

उत्तर: (a)


मेन्स: 

प्रश्न. "भारत में आधुनिक कानून की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पर्यावरणीय समस्याओं का संवैधानिकीकरण है।" सुसंगत वाद विधियों की सहायता से इस कथन की विवेचना कीजिये। (2022)


जापान की बदलती कूटनीतिक स्थिति

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-जापान रक्षा अभ्यास, G-20, क्वाड समूह, G-4

मेन्स के लिये:

जापान की बदलती कूटनीतिक स्थिति का महत्त्व, भारत-जापान संबंधों में चुनौतियाँ

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल के दिनों में बदलते भू-राजनीति परिदृश्य के रूप में विश्वस्तर एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिला है क्योंकि जापान, जो लंबे समय से युद्धोत्तर शांतिवाद का प्रतीक रहा है, अपनी सैन्य क्षमताओं को और मज़बूत कर रहा है। जापान के इस परिवर्तन में एशिया और उसके बाहर शक्ति संतुलन को प्रभावी रूप से बदलने की क्षमता है।

जापान की कूटनीतिक स्थिति के बारे में प्रमुख तथ्य क्या हैं?

  • द्वितीय विश्व युद्ध से पहले जापान की कूटनीतिक स्थिति:
    • अलगाव (1600-1850 ई.):
      • 200 से अधिक वर्षों तक जापान ने विश्व से न्यूनतम बाह्य संपर्क रखा। अलगाव की इस नीति का उद्देश्य सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखना और विदेशी प्रभाव का प्रसार होने से रोकना था।
    • संधि (1850-1900 ई):
      • 1853 में पुर्तगाली कमोडोर पेरी के "ब्लैक शिप्स" के आगमन ने जापान को स्वयं थोपे गए एकांत से बाहर निकलने के लिये मजबूर कर दिया। 
      • जापानी सरकार के उद्देश्य:
        • उन्होंने एक मज़बूत राष्ट्र बनने के लिये सेना का आधुनिकीकरण किया और पश्चिमी तकनीक को अपनाया।
        • जापान ने अपने व्यापार और विदेश नीति पर नियंत्रण पाने के लिये पिछली संधियों पर पुनः वार्तालाप किया।
    • आक्रामक रुख (1900-1930 ई.):
      • अपनी विजयों के बावजूद, जापान को पश्चिमी शक्तियों द्वारा पूर्ण रूप से समान नहीं माना गया, विशेष रूप से नस्लीय समानता के संबंध में (उदाहरण के लिये, वर्साय की संधि में नस्लीय समानता खंड की अस्वीकृति)।
      • पश्चिम के प्रति इस निराशा ने आक्रामक विस्तारवाद की ओर बदलाव को बढ़ावा दिया, जैसे 1931 में मंचूरिया का सैन्यवादी अधिग्रहण, द्वितीय विश्व युद्ध से पहले धुरी (Axis) राष्ट्रों गठबंधन का गठन आदि।
      • अनादर की इस भावना और पश्चिमी-प्रभुत्व वाली विश्व व्यवस्था को चुनौती देने की इच्छा ने अंततः जापान को सैन्य विजय के रास्ते पर ले जाया, जिसकी परिणति द्वितीय विश्व युद्ध में हुई।
      • अनादर की इस भावना और पश्चिमी वर्चस्व वाली वैश्विक व्यवस्था को चुनौती देने की इच्छा ने अंततः जापान को सैन्य विजय की और अग्रसर किया, जिसकी परिणति द्वितीय विश्व युद्ध में हुई।
  • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान की कूटनीतिक स्थिति:
    • द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका ने जापानी राज्य के कब्ज़े और पुनर्वास में मित्र राष्ट्रों का नेतृत्त्व किया। इस प्रकार, जापान ने शांतिवाद की नीति अपनाई।
    • सैन्य व्यय को कठोर नियमों के साथ सीमित किया गया था और राष्ट्र ने अपनी अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया। यह रणनीति सफल साबित हुई, जिससे जापान 1970 के दशक तक विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया।
    • हाल के दशकों में जापान ने अपनी कूटनीतिक स्थिति में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव किया है, जो युद्ध के बाद के शांतिवाद से दूर जा रहा है और वैश्विक मंच पर अधिक मुखर भूमिका की ओर बढ़ रहा है।

किन कारकों ने जापान को अपनी कूटनीतिक स्थिति बदलने के लिये प्रेरित किया?

  • बाह्य कारक:
    • चीन का उदय: चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति और पूर्वी चीन सागर में, विशेष रूप से सेनकाकू द्वीप जैसे विवादित क्षेत्रों के संबंध में, मुखर दावों ने जापान के लिये अपनी सुरक्षा को मज़बूत करने की तात्कालिकता की भावना उत्पन्न की है।
    • उत्तर कोरियाई जोखिम: उत्तर कोरिया द्वारा परमाणु हथियारों और बैलिस्टिक मिसाइलों का निरंतर विकास जापान के लिये प्रमुख सुरक्षा चिंता का विषय बना हुआ है।
    • अनिश्चित अमेरिकी प्रतिबद्धता: ट्रंप प्रशासन के तहत एशियाई सुरक्षा के प्रति अमेरिका की प्रतिबद्धता कम होने के साथ-साथ अमेरिका में बढ़ती अलगाववादी प्रवृत्तियों ने जापान को अपनी रक्षा में अधिक आत्मनिर्भर बनने के लिये प्रेरित किया है।
      • उदाहरणों में शांति बनाए रखने में संयुक्त राज्य अमेरिका की मध्य पूर्व नीति की विफलता शामिल है।
  • आंतरिक कारक:
    • रूढ़िवादी पुनरुत्थान: जापान में रूढ़िवादी विचारधाराओं की बढ़ती प्रबलता अधिक सक्रिय सुरक्षा करने की भूमिका का पक्षधार है और यह तर्क देती है कि "सामान्य शक्ति" के रूप में जापान की क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान करने एवं अपने हितों की रक्षा करने की ज़िम्मेदारी है।
    • शांतिवादी श्रम: सुरक्षा के लिये दशकों तक केवल अमेरिका पर निर्भर रहने के कारण कुछ लोगों ने इस दृष्टिकोण की स्थिरता पर प्रश्न उठाया है, विशेषकर बदलते क्षेत्रीय परिदृश्य के सामने।

जापान अपनी कूटनीतिक स्थिति कैसे बदल रहा है?

  • परिवर्तन की अभिव्यक्तियाँ:
    • रक्षा खर्च में वृद्धि: जापान ने सकल घरेलू उत्पाद के 1% की स्वयं लगाई गई सीमा को समाप्त करते हुए अपने रक्षा बजट में उल्लेखनीय वृद्धि की है।
      • वर्ष 1960 से 2020 तक जापान का सैन्य खर्च GDP का 1% या उससे कम रहाI 
    • सैन्य निर्माण: जापान नई सैन्य क्षमताएँ विकसित कर रहा है, जिसमें क्रूज़ मिसाइल जैसे आक्रामक हथियार और अन्य हथियारों के निर्यात पर प्रतिबंधों में छूट शामिल है।
      • प्रधानमंत्री किशिदा ने जापान द्वारा वर्ष 2027 तक रक्षा के वार्षिक व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 2% तक बढ़ाने की घोषणा की।
    • सहयोगियों के साथ गहन सुरक्षा सहयोग: जापान संयुक्त सैन्य अभ्यास पर अमेरिका के साथ मिलकर काम कर रहा है और कमांड संरचनाओं के गहन एकीकरण की खोज कर रहा है।
      • जापान-अमेरिका संयुक्त सैन्य अभ्यास के प्रमुख बिंदु कीन स्वॉर्ड, ओरिएंट शील्ड और वैलियेंट शील्ड (एक बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा-केंद्रित अभ्यास) अभ्यास हैं।
      • ग्लोबल कॉम्बैट एयर प्रोग्राम (GCAP) यूनाइटेड किंगडम, जापान और इटली के नेतृत्व में एक बहुराष्ट्रीय पहल है, जिसका लक्ष्य संयुक्त रूप से वर्ष 2035 तक छठी पीढ़ी का स्टील्थ फाइटर विकसित करना है।
      • इसके साथ ही जापान ने अपने सख्त रक्षा निर्यात नियमों को सरल बनाने का फैसला किया है, जिससे उसे कुछ शर्तों के तहत निर्यात के लिये अगली पीढ़ी के लड़ाकू जेट बनाने के लिये ब्रिटेन और इटली के साथ सहयोग करने की अनुमति मिल जाएगी।
  • सक्रिय क्षेत्रीय कूटनीति: जापान "स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक" दृष्टिकोण को बढ़ावा देते हुए, भारत तथा ऑस्ट्रेलिया जैसी अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के साथ अपने संबंधों को मज़बूत कर रहा है।
    • चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (QUAD): क्षेत्रीय सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिये जापान, अमेरिका, भारत और ऑस्ट्रेलिया को शामिल करते हुए एक रणनीतिक सुरक्षा संवाद
    • प्रशांत द्वीप फोरम (PIF): जापान प्रशांत द्वीप देशों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है, यह उनके साथ विकास सहायता की पेशकश करता है और घनिष्ठ संबंधों को बढ़ावा देता है।
    • यूक्रेन के लिये समर्थन: रूस के विरुद्ध यूक्रेन के समर्थन में जापान के कड़े रुख को, अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों को बनाये रखने तथा एशिया में इस तरह की आक्रामकता को रोकने की प्रतिबद्धता के संकेत के रूप में देखा जाता है।
  • ऐतिहासिक मुद्दों पर रुख बदलना: जापान एक अधिक सामंजस्यपूर्ण क्षेत्रीय सुरक्षा संरचना बनाने के प्रयास में अपने ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्वी दक्षिण कोरिया के साथ सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास कर रहा है।

नोट:

  • जापान ने दिवंगत प्रधानमंत्री शिंजो आबे के अंतर्गत संचालित की गई एक "विशालदर्शी  कूटनीति"(panoramic diplomacy) का प्रदर्शन कर, अपनी वैश्विक दृष्टिकोण का विस्तार किया है तथा अपनी सुरक्षा नीति को सामान्य बनाया है।
  • "शब्द "विशालदर्शी कूटनीति" का अनुवाद “विश्व के विशाल परिप्रेक्ष्य को प्रभावित करने वाली कूटनीति" अथवा "विशाल परिदृश्यों के साथ कूटनीति" है।
  • यह अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के लिये एक सक्रिय और बहुआयामी दृष्टिकोण पर ज़ोर देता है, जिसका लक्ष्य विभिन्न देशों के साथ मज़बूत संबंध बनाना है।
  • मुख्य लक्षण :
    • व्यापक दायरा: विशिष्ट क्षेत्रों या विचारधाराओं पर केंद्रित पारंपरिक गठबंधनों के विपरीत, विशालदर्शी कूटनीति यथासंभव अधिक से अधिक देशों के साथ पारस्परिक संबंध स्थापित करने का प्रयास करती है, भले ही उनके मूल्य पूरी तरह से जापान के साथ संरेखित न हों।
    • टकराव से अधिक, सहयोग पर ध्यान: हालाँकि चीन के बढ़ते प्रभाव के बारे में चिंताओं ने एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, परंतु विशालदर्शी कूटनीति ने केवल हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित नहीं किया, बल्कि वह अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और अन्य क्षेत्रों के देशों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ा रहा।

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जापान का बदलता रुख भारतीय हितों को कैसे प्रभावित करेगा? 

  • संभावित लाभ:
    • चीन का मुकाबला: भारत और जापान दोनों चीन को एक रणनीतिक चिंता के रूप में देखते हैं। जापान की बढ़ी हुई सैन्य क्षमताएँ और हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने से दोनों देशों की चीनी आक्रामकता को रोकने की क्षमता मज़बूत हो सकती है।
    • उन्नत सुरक्षा सहयोग: नई रणनीति भारत जैसे समान विचारधारा वाले देशों के साथ सहयोग पर ज़ोर देती है। इससे अधिक संयुक्त सैन्य अभ्यास, प्रौद्योगिकी साझाकरण और भारत के लिये जापानी रक्षा उपकरणों पर निर्यात प्रतिबंधों में संभावित रूप से छूट दी जा सकती है।
    • बुनियादी ढाँचा विकास: रणनीतिक उद्देश्यों के लिये नया जापानी आधिकारिक विकास सहायता (ODA) ऋण भारत को चीन के साथ सीमा क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिये आवश्यक निधि प्रदान कर सकता है। इससे भारत की रक्षा तैयारियों और संयोजकता में सुधार होगा।
      • भारत पिछले दशकों से जापानी ODA ऋण ढाँचे का सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता रहा है।
      • दिल्ली मेट्रो ODA के उपयोग के माध्यम से जापानी सहयोग के सबसे सफल उदाहरणों में से एक है।
      • भारत की वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC) परियोजना जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी द्वारा प्रदान किये गए सॉफ्ट लोन द्वारा वित्तपोषित है।
    • आर्थिक सहयोग:जापान का आर्थिक रूप से मज़बूत होना, भारत के लिये अधिक विश्वसनीय आर्थिक भागीदार सुनिश्चित कर सकता है, जिससे संभावित रूप से व्यापार और निवेश में वृद्धि होगी।
      • वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान भारत के साथ जापान का द्विपक्षीय व्यापार कुल 20.57 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा तथा भारत जापान के लिये 18वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था, और वर्ष 2020 में जापान भारत के लिये 12वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार रहा।
  • संभावित चुनौतियाँ:
    • प्रतिस्पर्धा: भारत और जापान दोनों लंबी दूरी की मारक क्षमता वाले आयुधों को विकसित कर रहे हैं। इससे क्षेत्र में हथियारों की होड़ शुरू हो सकती है, जिससे संसाधनों पर दबाव पड़ सकता है।
      • समान प्रकृति के बाज़ार में और अफ्रीका, फिलीपींस व दक्षिण अमेरिका जैसे सहयोगियों में जापान तथा भारत के बीच रक्षा उपकरण निर्यात करने की प्रतिस्पर्धा लंबे समय में भारत के हितों को हानि पहुँचा सकती है।
    • कूटनीतिक चुनौतियाँ: भारत के लिये क्वाड ग्रुपिंग और ब्रिक्स जैसे प्रतिस्पर्धी ब्लॉकों में अधिक मुखर शक्तियों को संतुलित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • वैचारिक संघर्ष: मानवाधिकार, परमाणु प्रसार और अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप जैसे क्षेत्रों में वैचारिक संघर्ष उत्पन्न हो सकते हैं, जहाँ भारत तथा जापान के रुख भिन्न-भिन्न हो सकते हैं।

निष्कर्ष:

  • जापान के कूटनीतिक परिवर्तन का एशिया और विश्व पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इससे संभवतः अधिक बहुध्रुवीय क्षेत्रीय व्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा, जिसमें जापान सुरक्षा गतिशीलता को आकार देने में अधिक प्रमुख भूमिका निभाएगा।
  • जापान की गतिशील अवस्था का भारत पर प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि दोनों देश संबंधों को कितने प्रभावी ढंग से प्रबंधित करते हैं। हालाँकि दोनों देशों के मध्य सुरक्षा और आर्थिक सहयोग में वृद्धि की अत्यधिक संभावना है, लेकिन पारस्परिक रूप से लाभकारी परिणाम के लिये प्रतिस्पर्धा, सामर्थ्य एवं रणनीतिक संरेखण से जुड़ी चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

हाल के दशकों में जापान के बदलते राजनीतिक रुख के बारे में चर्चा कीजिये। जापान के बदलते रुख का भारतीय हितों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रश्न1. निम्नलिखित में से किस एक समूह के चारों देश G20 के सदस्य हैं? (2020)

(a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की
(b) ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया और न्यूज़ीलैंड
(c) ब्राज़ील, ईरान, सऊदी अरब और वियतनाम
(d) इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • G20 में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, EU, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल हैं। अतः विकल्प (a) सही है। 

मेन्स:

प्रश्न. 'चतुर्भुजीय सुरक्षा संवाद (क्वाड)' वर्तमान समय में स्वयं को सैनिक गठबंधन से एक व्यापारिक गुट में रूपांतरित कर रहा है - विवेचना कीजिये। (2020)


हिंद महासागर के तापमान में वृद्धि

प्रिलिम्स के लिये:

ग्लोबल वार्मिंग, हिंद महासागर, हीटवेव राज्य, कोरल ब्लीचिंग, समुद्री घास, केल्प वन, मत्स्य पालन क्षेत्र, हिंद महासागर द्विध्रुव

मेन्स के लिये:

महासागरों के गर्म होने के कारण, हीटवेव और प्रभाव, समुद्र जलस्तर में वृद्धि

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM), पुणे ने समुद्री हीटवेव में दस गुना वृद्धि का संकेत दिया है, जो संभावित रूप से प्रतिवर्ष 20 दिनों से 220-250 दिनों तक चलने वाले चक्रवातों की गति को तेज़ कर सकती हैं।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • महासागर के तापमान में वृद्धि:
    • तीव्र तापन: हिंद महासागर का तापमान 1950 से 2020 तक की अवधि में 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है और 2020 से 2100 तक, 1.7 डिग्री सेल्सियस से 3.8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने का अनुमान है।
  • महासागरों की ऊष्मा में परिवर्तन:
    • गहरे महासागरों का गर्म होना: तापमान में वृद्धि सतह के साथ-साथ 2,000 मीटर की गहराई तक हुई है, जिससे समुद्र की कुल ऊष्मा सामग्री में वृद्धि हो रही है।
      • हिंद महासागर की ऊष्मा वर्तमान में प्रति दशक 4.5 ज़ेटा-जूल की दर से बढ़ रही है और भविष्य में प्रति दशक 16-22 ज़ेटा-जूल की दर से बढ़ने की उम्मीद है।
    • ऊर्जा की तुलना: तापमान में अनुमानित वृद्धि की तुलना लगातार दस वर्षों तक हर सेकंड एक हिरोशिमा परमाणु बम विस्फोट से निकलने वाली ऊर्जा से की जाती है।
  • समुद्र-स्तर में वृद्धि और तापीय विस्तार:
    • तापमान बढ़ने से मुख्य रूप से थर्मल विस्तार के माध्यम से समुद्र के स्तर में वृद्धि होती है, जो ग्लेशियर और समुद्री बर्फ के पिघलने के प्रभावों के अतिरिक्त हिंद महासागर में समुद्र के स्तर में हुई आधे से अधिक वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार है।
  • हिंद महासागर द्विध्रुव(IOD) और मानसून प्रतिरूपों में परिवर्तन:
    • IOD परिवर्तन: समुद्र की ऊष्मा में वृद्धि के कारण हिंद महासागर द्विध्रुव, जो मानसून की शक्ति का निर्धारण करने में एक महत्त्वपूर्ण कारक है, 21 वीं सदी के अंत तक चरम मौसमी घटनाओं में 66% की वृद्धि और मध्यम घटनाओं में 52% की कमी का अनुभव होने की संभावना है। 
    • मानसून हेतु निहितार्थ: ये परिवर्तन महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि द्विध्रुव के सकारात्मक चरण, जो पश्चिमी भाग में गर्म तापमान की विशेषता है, ग्रीष्मकालीन मानसून के लिये अनुकूल हैं।
  • भविष्य का दृष्टिकोण: 
    • चल रही गर्म हवाओं के बावजूद, IOD के सकारात्मक चरण के कारण आंशिक रूप से जून-सितंबर 2024 में "सामान्य से अधिक" गर्म मानसून मानसून की उम्मीद है।

स्थलीय हीटवेव और समुद्री हीटवेव के बीच अंतर:

विशेषता

भूमि हीटवेव 

समुद्री हीटवेव 

माध्यम 

हवा का तापमान

महासागरीय सतही जल

अवधि

दिन या सप्ताह

सप्ताह या महीने

पहचान

उच्च तापमान सीमा से अधिक है

समुद्र की सतह का असामान्य रूप से उच्च तापमान

प्रभाव 

हीट स्ट्रेस, निर्जलीकरण, वनाग्नि, विद्युत् कटौती

समुद्री पारिस्थितिक तंत्र बाधित, समुद्री जीवन को नुकसान, मौसम के पैटर्न को प्रभावित करता है (संभवतः चक्रवात तीव्र हो सकता है)

समुद्र का जलस्तर बढ़ने के कारण भारत पर क्या प्रभाव पड़ता है?

  • समुद्र स्तर में वृद्धि की दर:
    • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अनुसार, पिछली शताब्दी (वर्ष 1900-2000) के दौरान भारतीय तट पर समुद्र का स्तर औसतन लगभग 1.7 मिमी/वर्ष की दर से बढ़ता हुआ देखा गया।
    • समुद्र के स्तर में 3 सेमी. की वृद्धि से समुद्र लगभग 17 मीटर तक अंतर्देशीय घुसपैठ कर सकता है।
  • भारत की अतिसंवेदनशीलता 
    • समुद्र के जलस्तर में वृद्धि के जटिल प्रभावों के प्रति भारत सबसे अधिक संवेदनशील है।
    • हिंद महासागर में समुद्र के स्तर में आधी वृद्धि जल की मात्रा के विस्तार के कारण है क्योंकि समुद्र तेज़ी से गर्म हो रहा है। ग्लेशियर पिघलने का योगदान उतना अधिक नहीं है।
    • सतह के तापमान में वृद्धि के मामले में हिंद महासागर सबसे तेज़ी से गर्म होने वाला महासागर है।
  • निहितार्थ :
    • भारत अपनी तटरेखा पर जटिल तथा चरम घटनाओं का सामना कर रहा है। समुद्र के गर्म होने से अधिक नमी और गर्मी के कारण चक्रवातों की तीव्रता बढ़ रही हैं।
    • इससे समुद्री बाढ़ आने का खतरा भी बढ़ जाता है क्योंकि तूफानी लहरें प्रत्येक दशक में समुद्र के स्तर में वृद्धि कर रही हैं।
    • चक्रवातों में पहले से अधिक वर्षा हो रही  है. 
    • समय के साथ सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियाँ सिकुड़ सकती हैं तथा समुद्र के बढ़ते जलस्तर के कारण समुद्र का खारा जल इन नदियों के विशाल डेल्टा में प्रवेश कर सकता है तथा नदियों के डेल्टा के बड़े भाग को मानव निवास के लिये अनुपयुक्त कर देगा। 

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समुद्री हीटवेव और तीव्र चक्रवातों के खतरे से निपटने के क्या तरीके हैं?

  • शमन रणनीतियाँ:
    • उत्सर्जन कटौती रणनीतियाँ: यूरोपीय संघ की उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (ETS) के समान नीतियों को अपनाना तथा उनका समर्थन करना
      • ETS एक कैप-एंड-ट्रेड योजना है जो समुद्री हीट वेव के मूल कारण से निपटने के क्रम में उद्योगों को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये प्रोत्साहित करती है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण: जर्मनी के सौर और पवन ऊर्जा की ओर संक्रमण जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश कर उन्हें बढ़ावा देना।
      • इससे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होने के साथ समुद्र के तापमान पर दीर्घकालिक प्रभाव में कमी आती है।
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और तैयारी:
    • उन्नत निगरानी: ऑस्ट्रेलिया के एकीकृत समुद्री अवलोकन प्रणाली (IMOS) जैसे कार्यक्रमों का अनुकरण करना।
      • IMOS वास्तविक समय के समुद्र संबंधी डेटा एकत्र करने के लिये प्लवों, जहाज़ों और उपग्रहों के एक नेटवर्क का उपयोग करता है, जो समुद्री हीट वेव, हीटवेव तथा चक्रवात विकास में महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
    • पूर्वानुमानित मॉडलिंग: नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) के तूफान सीज़नल आउटलुक जैसी प्रगति का लाभ उठाना।
      • वायुमंडलीय और समुद्री डेटा का सांख्यिकीय विश्लेषण करके, NOAA चक्रवात गतिविधि के लिये पूर्वानुमान प्रदान करता है, जिससे सुरक्षा संबंधी बेहतर तैयारी करने के लिये पर्याप्त समय मिलता है।
  • तटीय अनुकूल के उपाय:
    • मैंग्रोव पुनर्स्थापना: मैंग्रोव वनों को पुनर्स्थापित करने के लिये बांग्लादेश के प्रयासों जैसी पहल लागू करना।
      • मैंग्रोव प्राकृतिक बाधाओं के रूप में कार्य करते हैं, तूफान को कम करते हैं और तटीय समुदायों को चक्रवातों से बचाते हैं।
    • बुनियादी ढाँचे में सुधार: नीदरलैंड के रोबस्ट सीवाॅल नेटवर्क जैसी प्रगति के लिये प्रयास करना।
      • अच्छी तरह से बनाए गए सीवाॅल और तटबंध तटीय बुनियादी ढाँचे एवं बस्तियों में चक्रवात से होने वाले नुकसान को काफी कम कर सकते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
    • डेटा साझाकरण और अनुसंधान: ग्लोबल ओशन ऑब्सेज़र्विंग सिस्टम (GOOS) के समान, वैज्ञानिक डेटा के खुले आदान-प्रदान को बढ़ावा देना।
      • GOOS समुद्री अवलोकन में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की सुविधा प्रदान करता है, जिससे समुद्री हीटवेव और चक्रवात विकास की बेहतर समझ मिलती है।
    • क्षमता निर्माण: विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के उष्णकटिबंधीय चक्रवात कार्यक्रम के समान विकासशील देशों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करना।
      • यह कार्यक्रम आर्थिक रूप से कमज़ोर देशों को चक्रवातों से निपटने के लिये बेहतर तैयारी करने के लिये संसाधनों एवं विशेषज्ञता प्रदान करता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. चक्रवात निर्माण और तीव्रता पर हिंद महासागर में समुद्री हीट वेव में अनुमानित वृद्धि के निहितार्थ पर चर्चा कीजिये। ऐसे अनुमान हिंद महासागर क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन रणनीतियों को कैसे सूचित कर सकते हैं? (250 शब्द)

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष द्वारा स्थापित स्टिग्लिट्ज आयोग अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में था। किसके साथ सौदा करने हेतु आयोग का समर्थन किया गया था? (2010)

(a) आसन्न वैश्विक जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियाँ और एक रोडमैप तैयार करना।
(b) वैश्विक वित्तीय प्रणालियों के कामकाज और अधिक टिकाऊ वैश्विक व्यवस्था को सुरक्षित करने के तरीकों तथा साधनों का पता लगाने हेतु।
(c) वैश्विक आतंकवाद और आतंकवाद के शमन के लिये एक वैश्विक कार्ययोजना तैयार करना।
(d) वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार।

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। भारत जलवायु परिवर्तन से किस प्रकार प्रभावित होगा? जलवायु परिवर्तन के द्वारा भारत के हिमालयी और समुद्रतटीय राज्य किस प्रकार प्रभावित होंगे? (2017)