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वन संरक्षण संशोधन विधेयक 2023

  • 29 Jul 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वन संरक्षण संशोधन विधेयक 2023, सर्वोच्च न्यायालय, वन संरक्षण नियम, वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980, वन (संरक्षण एवं संवर्द्धन) अधिनियम, 1980

मेन्स के लिये:

वन संरक्षण संशोधन विधेयक 2023 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 लोकसभा द्वारा पारित किया गया जिसका उद्देश्य वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन लाना है। यह भारत में वनों के संरक्षण के लिये एक महत्त्वपूर्ण केंद्रीय कानून है। 

पृष्ठभूमि: 

  • स्वतंत्रता के बाद वन भूमि के विशाल क्षेत्रों को आरक्षित और संरक्षित वनों के रूप में नामित किया गया था।
    • हालाँकि अनेक वन क्षेत्रों को छोड़ दिया गया था तथा बिना किसी स्थायी वन वाले क्षेत्रों को 'वन' भूमि में शामिल किया गया था।
  • वर्ष 1996 के गोदावर्मन मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने देश भर में पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगा दिया और फैसला सुनाया कि वन संरक्षण अधिनियम उन सभी भूखंडों पर लागू होगा जो या तो 'वन' के रूप में दर्ज थे या फिर शब्दकोश द्वारा परिभाषित वन के अर्थ से मिलते जुलते हों।
  • सरकार ने जून 2022 में वन संरक्षण नियमों में कुछ बदलाव किया, ताकि डेवलपर्स को "ऐसी भूमि, जिस पर वन संरक्षण अधिनियम लागू नहीं है", पर वृक्षारोपण करने की अनुमति दी जा सके और प्रतिपूरक वनीकरण की बाद की आवश्यकताओं के अनुसार ऐसे भूखंडों की अदला-बदली की जा सके।

वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 के प्रमुख प्रावधान: 

  • अधिनियम का दायरा:  
    • एक प्रस्तावना शामिल करके यह विधेयक अधिनियम के दायरे को व्यापक बनाता है।
    • इसके प्रावधानों की क्षमता को दर्शाने के लिये इस अधिनियम का नाम बदलकर वन (संरक्षण एवं संवर्द्धन) अधिनियम, 1980 कर दिया गया।
  • विभिन्न भूमियों पर प्रयोज्यता:  
    • यह अधिनियम, जिसे शुरू में सिर्फ अधिसूचित वन भूमि पर लागू किया गया था, बाद में राजस्व वन भूमि और सरकारी रिकॉर्ड में वन के रूप में दर्ज भूमि तक बढ़ा दिया गया।
    • संशोधनों का उद्देश्य दर्ज वन भूमि, निजी वन भूमि, वृक्षारोपण आदि पर अधिनियम के अनुप्रयोग को सुनिश्चित करना है।
  • छूट:  
    • विधेयक में वनों के बाहर वनीकरण तथा वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करने के लिये कुछ छूट का प्रस्ताव है।
    • सड़कों और रेलवे के किनारे स्थित बस्तियों एवं प्रतिष्ठानों के लिये कनेक्टिविटी प्रदान करने हेतु 0.10 हेक्टेयर वन भूमि का प्रस्ताव किया गया है, सुरक्षा संबंधी बुनियादी ढाँचे के लिये 10 हेक्टेयर तक भूमि का प्रस्ताव किया गया है तथा सार्वजनिक उपयोगिता परियोजनाओं के लिये वामपंथी उग्रवाद प्रभावित ज़िलों में 5 हेक्टेयर तक वन भूमि का प्रस्ताव दिया गया है। 
    • इन छूटों में अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं, वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control- LAC), नियंत्रण रेखा (Line of Control- LoC) आदि के 100 किमी. के भीतर राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित रणनीतिक परियोजनाएँ शामिल हैं।
  • विकास के लिये प्रावधान:  
    • विधेयक निजी संस्थाओं को पट्टे पर वन भूमि के आवंटन से संबंधित मूल अधिनियम के मौजूदा प्रावधानों को सरकारी कंपनियों तक भी विस्तारित करता है।
    • इससे विकास परियोजनाओं को सुविधा मिलेगी और अधिनियम के कार्यान्वयन में एकरूपता सुनिश्चित होगी। 
  • नवीन वानिकी गतिविधियाँ:  
    • संशोधनों में वनों के संरक्षण के लिये वानिकी गतिविधियों की शृंखला में अग्रिम पंक्ति के वन कर्मचारियों के लिये बुनियादी ढाँचे, इकोटूरिज़्म चिड़ियाघर और सफारी जैसी नई गतिविधियों को जोड़ा गया है। वन क्षेत्रों में सर्वेक्षण एवं जाँच को गैर-वानिकी गतिविधियाँ नहीं माना जाएगा। 
  • जलवायु परिवर्तन शमन एवं संरक्षण:  
    • इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ऐसे क्षेत्र वन संरक्षण प्रयासों के पहचाने गए भाग के रूप में जलवायु परिवर्तन से निपटने में भारत के प्रयासों में योगदान देना तथा वर्ष 2070 तक नेट शून्य उत्सर्जन जैसी भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं में योगदान देना।
  • स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना:  
    • विधेयक चिड़ियाघरों, सफारी और इकोटूरिज़्म की स्थापना जैसी गतिविधियों को प्रोत्साहित करता है, जिनका स्वामित्व सरकार के पास होगा, साथ ही यह संरक्षित क्षेत्रों के बाहर अनुमोदित योजनाओं में स्थापित किया जाएगा।
    • ये गतिविधियाँ न केवल वन संरक्षण तथा वन्यजीव संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाती हैं बल्कि स्थानीय समुदायों के लिये आजीविका के अवसर भी उत्पन्न करती हैं, उन्हें समग्र विकास के साथ एकीकृत करती हैं।

विधेयक से संबंधित चिंताएँ

  • हिंदी नाम पर आपत्ति: 
    • अधिनियम के नए नाम (जो अब हिंदी में है) पर इस आधार पर आपत्तियाँ थीं कि यह "गैर-समावेशी" था और इसमें दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर दोनों में "(गैर-हिंदी भाषी) आबादी के कई व्यक्ति शामिल नहीं थे।" 
  • पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों पर प्रभाव:  
    • विधेयक में प्रस्तावित छूट ने विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के पास रणनीतिक परियोजनाओं से संबंधित, पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों जैसे- हिमालय, ट्रांस-हिमालयी और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में निर्वनीकरण के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
    • विधेयक, 2023 (FCA) भारत की सीमाओं पर रहने वाले स्वदेशी समुदायों के अधिकारों को समाप्त कर देगा।
    • उचित "मूल्यांकन और शमन योजनाओं" के बिना, ऐसी मंज़ूरी से जैव विविधता को खतरा हो सकता है और विषम मौसम की घटनाओं को ट्रिगर किया जा सकता है। 
  • सीमित प्रयोज्यता:
    • विधेयक कानून के दायरे को केवल अक्तूबर 1980 या उसके बाद वन के रूप में दर्ज क्षेत्रों तक सीमित रखता है। इस बहिष्करण के परिणामस्वरूप वन भूमि और जैव विविधता वाले गर्म स्थानों के महत्त्वपूर्ण हिस्से अधिनियम के दायरे से बाहर हो सकते हैं, जिससे उन्हें गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिये संभावित रूप से बेचने, परिवर्तित करने, साफ करने तथा शोषण करने की अनुमति मिल जाएगी।
  •  समवर्ती सूची और केंद्र-राज्य संतुलन:  
    • कुछ राज्य सरकारों ने तर्क दिया है कि वन संरक्षण समवर्ती सूची के अंतर्गत आता है, जिसका अर्थ है कि इस मामले में केंद्र और राज्य दोनों की भूमिका है।
    • उनका मानना है कि प्रस्तावित संशोधनों से संतुलन केंद्र की ओर झुक सकता है और वन संरक्षण मामलों में राज्य सरकारों के अधिकारों पर असर पड़ सकता है।

आगे की राह 

  • प्रस्तावित संशोधनों और वनों, जैव विविधता तथा स्थानीय समुदायों पर उनके संभावित प्रभावों का गहन एवं व्यापक मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।
  • इस मूल्यांकन में पारिस्थितिक, सामाजिक और पर्यावरणीय कारकों पर विचार किया जाना चाहिये तथा इसमें विशेषज्ञों, गैर-सरकारी संगठनों, आदिवासी समुदायों और राज्य सरकारों सहित विभिन्न हितधारकों का योगदान होना चाहिये।
  • सभी हितधारकों के दृष्टिकोण को समझने और उनकी चिंताओं को दूर करने के लिये उनके साथ सार्थक परामर्श एवं संवाद जारी रखना। इससे पारदर्शिता, समावेशिता और बेहतर निर्णय लेने में मदद मिलेगी।

स्रोत : पी.आई.बी.

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