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जैव विविधता और पर्यावरण

समुद्री-घास का पारिस्थितिकीय महत्त्व

  • 20 Oct 2020
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

समुद्री-घास, सोसाइटी फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर

मेन्स के लिये:

समुद्री-घास का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 'सोसाइटी फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर' (SCON),  त्रिची (तमिलनाडु) के अध्यक्ष द्वारा ‘समुद्री-घास’ (Seagrasses) के महत्त्व को उजागर किया गया।

प्रमुख बिंदु:

  • SCON, भारत सरकार के 'सोसायटी अधिनियम' के तहत पंजीकृत एक गैर-लाभकारी, गैर-सरकारी संगठन है। 

समुद्री-घास के बारे में: 

  • समुद्री-घास समुद्री पुष्पी पौधे होते हैं जो मुख्यत: उथले सागरीय जल यथा- जलमग्न खाड़ी और लैगून में उगते हैं।
  • हालाँकि समुद्री-घास मृदा से लेकर चट्टानीय भागों तक उप-परत में पाई जाती है, लेकिन हरी-भरी समुद्री-घास मुख्यत: दलदल और रेतीली उपस्तरीय परत में पाई जाती है।
    • यहाँ उपपरत/सब्सट्रेट का तात्पर्य उस परत से जो सागरीय जल के नीचे पाई जाती है।
  • यह अलिस्मातालेस (Alismatales) गण (Order) से संबंधित है, जिसकी चार परिवारों से संबंधित 60 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
  • समुद्री-घास में प्रजातीय विविधता बहुत कम पाई जाती है (<60 प्रजातियाँ), लेकिन प्रजातियों का वितरण बहुत व्यापक स्तर पर पाया जाता है।

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समुद्री-घास के उदाहरण:

  • सी काउ ग्रास (सीमोडोसेया सेरुलता), थ्रीड सी ग्रास (सिमोडोशिया रोटंडेटा), नीडल सी ग्रास (सीरिंगोडियम आइसोइटिफोलियम), फ्लैट-टैप्ड सी ग्रास (हालोड्यूल यूनिनर्विस), स्पून सी ग्रास (हल्लोविला ओवल) आदि समुद्री-घास के कुछ उदाहरण हैं।

समुद्री-घास का वितरण:

  • समुद्री-घास  मुख्यत: समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय समुद्र तटों पर पाई जाती है। भारत के संपूर्ण तटीय क्षेत्रों में समुद्री-घास पाई जाती है परंतु तमिलनाडु में मन्नार की खाड़ी और पाक-जलडमरूमध्य में यह प्रचुर मात्रा में पाई जाती है।
  • मन्नार की खाड़ी में 21 द्वीप हैं। यहाँ के कुरुसादी, पुम्हारिचन, पुलिवासल और थलियारी द्वीपों के आसपास समुद्री-घास की प्रचुरता पाई जाती है। यहाँ समुद्री-घास के सभी 6 जेनेरा और 11 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।

Sea-grass-distribution

समुद्री-घास का पारिस्थितिकीय महत्त्व: 

  • समुद्री-घास कई प्रकार की पारिस्थितिकीय सेवाएँ प्रदान करती है। इसलिये इसे 'इकोसिस्टम इंजीनियर' के रूप में भी जाता जाता है।

तटीय जल की गुणवत्ता में वृद्धि:

  • समुद्री-घास जल की गुणवत्ता को बनाए रखने में मदद करती है। वह जल- स्तंभ में मौजूद तलछट और निलंबित कणों को फँसाकर, उनका नितल पर जमाव करते हैं जिससे जल की दृश्यता (Water Clarity) बढ़ती है।
    • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि जल में स्पष्टता का अभाव समुद्री जानवरों के व्यवहार को प्रभावित करता है।

पोषक तत्त्वों का निस्पंदन:

  • समुद्री-घास भूमि आधारित उद्योगों से जारी पोषक तत्वों को फ़िल्टर करती है, जिससे प्रवाल भित्तियों को शुद्ध पोषक तत्त्व प्राप्त होते हैं।
    •  प्रवाल भितियाँ पोषक तत्त्वों के प्रति बहुत अधिक संवेदनशील होती हैं ।

तटों की समुद्री धाराओं से सुरक्षा:

  • सागरीय तट और नितल समुद्री धाराओं और तूफानों की तीव्र लहरों के प्रति प्रवण होते हैं। 
  •  समुद्री-घास की जड़ों का ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज वितरण पाया जाता है। स्थलीय जड़ों के समान ये समुद्री नितल को स्थिर करके उसे मृदा क्षरण से बचाते हैं।

सागरीय जीवों का संरक्षण:

  • सुरक्षा: समुद्री-घास में मत्स्य की अनेक लघु प्रजातियाँ शरण लेती हैं, समुद्री-घास के मुलायम तलछट में अनेक समुद्री जीवों का आवास होता है।
  • आवास: समुद्री-घास मज़बूत सागरीय धाराओं से समुद्री कीड़ों, केकड़ों, स्टारफिश, समुद्री खीरे (Cucumbers), समुद्री अर्चिन आदि की रक्षा करती है। यह इन जीवों को आवास के साथ-साथ भोजन भी प्रदान करती है। सीहॉर्स लगभग पूरे वर्ष समुद्री-घास के मैदानों में रहते हैं।
  • भोजन: कुछ लुप्तप्राय समुद्री जीव जैसे डुगोंग, ग्रीन टर्टल आदि प्रत्यक्षत: भोजन के लिये समुद्री-घास पर निर्भर रहते हैं। कई अन्य सूक्ष्मजीव अप्रत्यक्ष रूप से समुद्री खाद्य  पदार्थों से पोषक तत्त्व लेते हैं। बॉटल-नोज़ डॉल्फिन भोजन के लिये समुद्री-घास में रहने वाले जीवों पर निर्भर रहती है।

पोषक तत्त्वों तथा उर्वरक की प्राप्ति:

  • मृत समुद्री-घास के विघटन से नाइट्रोजन और फॉस्फोरस जैसे पोषक तत्त्वों की प्राप्ति होती है। ये फाइटोप्लैंकटन के लिये पोषक तत्त्व के रूप में कार्य करते हैं। समुद्री-घास का इस्तेमाल रेतीली मृदा के लिये उर्वरक के रूप में किया जाता है।

कार्बन पृथक्करण के रूप में: 

  • एक एकड़ समुद्री-घास प्रतिवर्ष 740 पाउंड कार्बन का पृथक्करण (Sequester) कर सकती है।
  • उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों की तुलना में समुद्री-घास वातावरण से 35 गुना अधिक तेज़ी से कार्बन का पृथक्करण कर सकती है।

पारिस्थितिकी पर प्रभाव:

  • समुद्री-घास में 2-5 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से गिरावट हो रही है। हाल के दशक में लगभग 30,000 वर्ग किलोमीटर समुद्री-घास की कमी हुई है।
  • अवसादों का बढ़ना, मत्स्य ट्रोलिंग, तटीय इंजीनियरिंग निर्माण कार्य, प्रदूषण आदि के कारण सामुद्रिक घास पारिस्थितिकी में गिरावट देखी गई है।

आगे की राह:

  • 'अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ' (IUCN) को समुद्री-घास के संरक्षण के लिये तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिये और समुद्री-घास की विभिन्न प्रजातियों की स्थिति का अध्ययन करना चाहिये।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में समुद्री-घास महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। वैश्विक स्तर पर समुद्री-घास की प्रजातियों की पुनर्बहाली का प्रयास किया जाना चाहिये।समुद्री-घास के संरक्षण के लिये उपाय करने की तत्काल आवश्यकता है। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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