बहुपक्षवाद, यूएनएससी सुधार हेतु जी-4 देशों की बैठक
चर्चा में क्यों
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के संबोधन में बहुपक्षवाद की निंदा किये जाने के कुछ समय बाद हाल ही में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ब्राज़ील, जापान और जर्मनी के विदेश मंत्रियों- क्रमशः अलॉयसियो नून्स फेरेरा, तारो कोनो तथा हीको मास की जी-4 बैठक की मेज़बानी की।
प्रमुख बिंदु
- इस बैठक में भारत और अन्य जी-4 देशों ने बहुपक्षवाद के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में प्रारंभिक सुधार किये जाने की मांग की।
- जी-4 देशों के मंत्रियों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि 21वीं शताब्दी की समकालीन ज़रूरतों के लिये संयुक्त राष्ट्र की स्वीकार्यता हेतु सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता है।
- जी-4 देशों के मंत्रियों ने व्यक्त किया कि सुरक्षा परिषद सुधार का समर्थन करने वाले संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के भारी बहुमत के बावजूद, 2009 में शुरू हुई बातचीत ने 10 वर्षों में वास्तविक प्रगति नहीं की है।
- इस बैठक के दौरान जी-4 देशों के मंत्रियों ने सुरक्षा परिषद सुधार की प्रक्रिया को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया और उन्होंने अपने देशों के संबंधित अधिकारियों को सुधार कार्य आगे बढ़ाने के तरीके पर विचार करने के लिये काम करने को कहा।
- उल्लेखनीय है कि जर्मनी और जापान संयुक्त राष्ट्र के बजट में पाँचववें हिस्से का योगदान करते हैं जबकि जी-4 देशों में विश्व की आबादी का पाँचवाँ हिस्सा रहता है।
- मंत्रियों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि "यूएनएससी की वर्तमान संरचना बदलती वैश्विक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित नहीं करती है और उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि आज की जटिल चुनौतियों का समाधान करने के लिये सुरक्षा परिषद में सुधार किया जाना आवश्यक है।"
- विदेश मंत्रियों द्वारा दिये गए सामूहिक बयान में संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक बहुपक्षीय व्यवस्था की कार्यपद्धति को मज़बूत करने के साथ-साथ एक-दूसरे की उम्मीदवारी के लिये उनके समर्थन पर काम करने की प्रतिबद्धता दोहराई गई।
ट्रंप के आरोप
- UNSC के स्थायी सदस्यों के रूप में शामिल होने के इन चार देशों की मांग के लिये अमेरिका का कोई सक्रिय विरोध नहीं है, लेकिन ट्रंप प्रशासन ने सुधार के लिये एक सौहार्द्रपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया है।
- अपने भाषण में ट्रंप ने बहुपक्षीय संस्थानों के खिलाफ व्यापक आरोप लगाते हुए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद और अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय पर हमला किया।
- इस प्रक्रिया पर नज़र रखने वाले राजनयिकों के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र और अन्य बहुपक्षीय निकायों में अमेरिकी असंतोष को देखते हुए, UNSC के पाँच स्थायी सदस्यों में से एक चीन ने इस निकाय के विस्तार के लिये किये जा रहे प्रयासों को धीमा कर दिया है।
- एक अधिकारी के अनुसार, हालाँकि सुधार के लिये कोई सक्रिय अमेरिकी समर्थन नहीं है, जबकि अन्य देशों को इस दिशा में कदम उठाने और संयुक्त राष्ट्र के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी साझा करने के लिये ट्रंप द्वारा किये गए आह्वान से सक्रिय चीनी विरोध के मुकाबले सुधार का समर्थन हो सकता है।
जी-4 देश और कॉफ़ी क्लब
- सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग के लिये जापान, जर्मनी, भारत और ब्राज़ील ने जी-4 के नाम से एक गुट बनाया है और स्थायी सदस्यता के मामले में एक-दूसरे का समर्थन करते हैं।
- सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता में विस्तार का यूएफसी (Uniting for Consensus-UFC) देश विरोध करते हैं। इनमें इटली, पाकिस्तान, मैक्सिको, मिस्र, स्पेन, अर्जेंटीना और दक्षिण कोरिया जैसे 13 देश शामिल हैं, जिन्हें 'कॉफ़ी क्लब' कहा जाता है।
- कॉफ़ी क्लब के देश स्थायी सदस्यता के विस्तार के पक्षधर न होकर अस्थायी सदस्यता के विस्तार के समर्थक हैं, लेकिन इन देशों की आशंका सामूहिक न होकर व्यक्तिगत हितों पर कहीं अधिक टिकी है।
सुरक्षा परिषद क्या है?
- यह संयुक्त राष्ट्र की सबसे महत्त्वपूर्ण इकाई है, जिसका गठन द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 1945 में हुआ था और इसके पाँच स्थायी सदस्य (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, रूस और चीन) हैं।
- सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के पास वीटो का अधिकार होता है। इन देशों की सदस्यता दूसरे विश्वयुद्ध के बाद के उस शक्ति संतुलन को प्रदर्शित करती है, जब सुरक्षा परिषद का गठन किया गया था।
- इन स्थायी सदस्य देशों के अलावा 10 अन्य देशों को दो साल के लिये अस्थायी सदस्य के रूप में सुरक्षा परिषद में शामिल किया जाता है। स्थायी और अस्थायी सदस्य बारी-बारी से एक-एक महीने के लिये परिषद के अध्यक्ष बनाए जाते हैं।