सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं का सामाजिक लेखा-परीक्षण
प्रिलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री आवास योजना, मध्याह्न भोजन योजना, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, ग्राम सभा, सूचना-निगरानी, मूल्यांकन और सामाजिक लेखापरीक्षा मेन्स के लिये:सामाजिक लेखापरीक्षा की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (Ministry of Social Justice and Empowerment) ने वित्त वर्ष 2021-22 में सूचना-निगरानी, मूल्यांकन और सामाजिक लेखापरीक्षा (Information-Monitoring, Evaluation and Social Audit- I-MESA) नामक एक योजना तैयार की है।
प्रमुख बिंदु
I-MESA योजना के विषय में:
- इस योजना के अंतर्गत वित्त वर्ष 2021-22 से विभाग की सभी योजनाओं की सामाजिक लेखापरीक्षा आयोजित की जाएगी।
- यह सामाजिक लेखापरीक्षा राज्यों की सामाजिक लेखापरीक्षा इकाइयों (Social Audit Unit) और राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान के माध्यम से की जाती है।
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की महत्त्वपूर्ण योजनाएँ:
- आर्थिक विकास के लिये योजनाएँ:
- अनुसूचित जातियों (Scheduled Caste) के लिये ऋण गारंटी योजना।
- राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त और विकास निगम।
- राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त और विकास निगम।
- अनुसूचित जाति को विशेष केंद्रीय सहायता।
- अनुसूचित जाति विकास निगमों को सहायता योजना।
- स्व-रोज़गार:
- हाथ से मैला उठाने वालों के लिये पुनर्वास योजना।
- अनुसूचित जातियों के लिये उद्यम पूंजी कोष।
- सामाजिक अधिकारिता के लिये योजनाएँ:
- नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के कार्यान्वयन के लिये केंद्र प्रायोजित योजना।
- प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना।
सामाजिक लेखापरीक्षा
सामाजिक लेखापरीक्षा के विषय में:
- अर्थ: यह सरकार और लोगों (विशेष रूप से वे लोग जो योजना से प्रभावित हैं) द्वारा संयुक्त रूप से किसी योजना के क्रियान्वयन का मूल्यांकन है।
- लाभ: यह योजनाओं में पारदर्शिता, जवाबदेही और लोगों की भागीदारी को बढ़ावा देने हेतु एक सशक्त माध्यम है।
- सामाजिक अंकेक्षण सामाजिक कल्याण के लिये उठाए गए कदमों के उद्देश्यों और वास्तविकता के बीच अंतर को पाटने का काम करता है।
- स्थिति:
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (Mahatma Gandhi National National Rural Employment Guarantee Act- MGNREGA) ग्राम पंचायतों में शुरू की गई सभी परियोजनाओं की ग्राम सभा द्वारा सामाजिक लेखापरीक्षा को अनिवार्य करने वाला पहला अधिनियम था।
- अधिकांश राज्यों ने एक स्वतंत्र सामाजिक लेखापरीक्षा इकाई (एसएयू) की स्थापना की है तथा कुछ अन्य राज्यों ने प्रधानमंत्री आवास योजना, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम, मध्याह्न भोजन योजना और सार्वजनिक वितरण प्रणाली सहित अन्य कार्यक्रमों में सामाजिक लेखापरीक्षा की सुविधा शुरू कर दी है।
चुनौतियांँ:
- भ्रष्टाचार को रोकने के लिये सामाजिक लेखापरीक्षा को संस्थागत बनाने में पर्याप्त प्रशासनिक और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी का मतलब है कि देश के कई हिस्सों में सामाजिक लेखापरीक्षा कार्यान्वयन एजेंसियों से प्रभावित है।
- ग्राम सामाजिक अंकेक्षण सुविधादाताओं सहित सामाजिक लेखापरीक्षा इकाइयों को प्रतिरोध और धमकी का सामना करना पड़ रहा है तथा सत्यापन हेतु प्राथमिक अभिलेखों तक पहुंँचने में भी मुश्किल हो रही है।
- आम जनता के बीच शिक्षा, जागरूकता और क्षमता निर्माण की कमी के कारण लोगों की भागीदारी नगण्य रही है।
- सामाजिक लेखापरीक्षा के निष्कर्षों की जांँच और कार्रवाई करने हेतु एक स्वतंत्र एजेंसी का अभाव है।
सुझाव:
- नागरिक समूहों को सामाजिक लेखापरीक्षा को मज़बूत करने हेतु अभियान चलाने और राजनीतिक कार्यकारी तथा इसकी कार्यान्वयन एजेंसियों को जवाबदेह बनाने की आवश्यकता है।
- प्रत्येक ज़िले में सामाजिक अंकेक्षण विशेषज्ञों की टीम स्थापित की जानी चाहिये जो सामाजिक लेखापरीक्षा समिति के सदस्यों (हितधारकों) के प्रशिक्षण हेतु ज़िम्मेदार हों।
- सामाजिक अंकेक्षण के तरीकों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार किये जाने चाहिये जैसे कि सामाजिक लेखापरीक्षा रिपोर्ट तैयार करना और अंकेक्षण करना एवं उसे ग्राम सभा में प्रस्तुत करना।
- सामाजिक अंकेक्षण की प्रणाली को एक संस्थागत ढांँचे की स्थापना करने के लिये सहक्रियात्मक समर्थन और अधिकारियों द्वारा किसी भी निहित स्वार्थ के बिना प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता होती है।
स्रोत: पी.आई.बी
अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस
प्रिलिम्स के लिये:सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा, प्रोजेक्ट टाइगर 1973, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण,अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ मेन्स के लिये:भारत में बाघ संरक्षण परियोजनाएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस (29 जुलाई) के अवसर पर आयोजित आभासी बैठक में भारत के प्रधानमंत्री ने देश में बाघों के लिये सुरक्षित आवास सुनिश्चित करने और बाघों के अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र पोषित करने हेतु भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया।
- इस बैठक में भारत के 14 टाइगर रिज़र्व्स को ग्लोबल कंज़र्वेशन एश्योर्ड | टाइगर स्टैंडर्ड्स (CA|TS) की मान्यता दी गई।
प्रमुख बिंदु:
बाघ संरक्षण की स्थिति:
- भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची- I
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) रेड लिस्ट: लुप्तप्राय
- वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES): परिशिष्ट- I।
बाघ संरक्षण का महत्त्व:
- बाघ संरक्षण वनों के संरक्षण का प्रतीक है।
- बाघ एक अनूठा जानवर है जो किसी स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र और उसकी विविधता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- यह एक खाद्य शृंखला में उच्च उपभोक्ता है जो खाद्य शृंखला में शीर्ष पर होता है और जंगली (मुख्य रूप से बड़े स्तनपायी) आबादी को नियंत्रण में रखता है।
- इस प्रकार बाघ शिकार द्वारा शाकाहारी जंतुओं और उस वनस्पति के मध्य संतुलन बनाए रखने में मदद करता है जिस पर वे भोजन के लिये निर्भर होते हैं।
- बाघ संरक्षण का उद्देश्य मात्र एक खूबसूरत जानवर को बचाना नहीं है।
- यह इस बात को सुनिश्चित करने में भी सहायक है कि हम अधिक समय तक जीवित रहें क्योंकि इस संरक्षण के परिणामस्वरूप हमें स्वच्छ हवा, पानी, परागण, तापमान विनियमन आदि जैसी पारिस्थितिक सेवाओं की प्राप्ति होती है।
- इसके अलावा बाघ संरक्षण के महत्त्व को “तेंदुओं, सह-परभक्षियों और शाकभक्षियों की स्थिति-2018” (Status of Leopards, Co-predators and Megaherbivores- 2018) रिपोर्ट द्वारा दर्शाया जा सकता है।
- यह वर्ष 2014 की तुलना में एक उल्लेखनीय वृद्धि है, जो कि देश के बाघों वाले 18 राज्यों के वनाच्छादित प्राकृतिक आवासों में 7,910 थी।
- यह रिपोर्ट इस बात का प्रमाण है कि बाघों के संरक्षण से पूरे पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण होता है।
भारत में बाघ संरक्षण परियोजनाएँ:
- प्रोजेक्ट टाइगर 1973: यह वर्ष 1973 में शुरू की गई पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) की एक केंद्र प्रायोजित योजना है। यह देश के राष्ट्रीय उद्यानों में बाघों को आश्रय प्रदान करता है।
- राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण: यह MoEFCC के अंतर्गत एक वैधानिक निकाय है और इसको वर्ष 2005 में टाइगर टास्क फोर्स की सिफारिशों के बाद स्थापित किया गया था।
भारत की बाघ संरक्षण स्थिति:
- भारत वैश्विक स्तर पर बाघों की 70% से अधिक आबादी का घर है।
- भारत के 18 राज्यों में कुल 51 बाघ अभयारण्य हैं और वर्ष 2018 की अंतिम बाघ गणना में इनकी आबादी में वृद्धि देखी गई।
- भारत ने बाघ संरक्षण पर सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा (St. Petersburg Declaration) से चार वर्ष पहले बाघों की आबादी को दोगुना करने का लक्ष्य हासिल किया।
- भारत की बाघ संरक्षण रणनीति में स्थानीय समुदायों को भी शामिल किया गया है।
कंज़र्वेशन एश्योर्ड | टाइगर स्टैंडर्ड्स (CA|TS):
- CA|TS को टाइगर रेंज देशों (Tiger Range Countries- TRC) के वैश्विक गठबंधन द्वारा एक मान्यता उपकरण के रूप में स्वीकार किया गया है और इसे बाघ व संरक्षित क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा विकसित किया गया है।
- वर्तमान में 13 टाइगर रेंज देश हैं - भारत, बांग्लादेश, भूटान, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, लाओ PDR, मलेशिया, म्याँमार, नेपाल, रूस, थाईलैंड और वियतनाम।
- CA|TS विभिन्न मानदंडों का एक सेट है, जो बाघ से जुड़े स्थलों को इस बात को जाँचने का मौका देता है कि क्या उनके प्रबंधन से बाघों का सफल संरक्षण संभव होगा।
- इसे आधिकारिक तौर पर वर्ष 2013 में लॉन्च किया गया था।
- ग्लोबल टाइगर फोरम (GTF) बाघ संरक्षण पर काम करने वाला एक अंतर्राष्ट्रीय NGO है और वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड इंडिया भारत में CATS मूल्यांकन हेतु राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के दो कार्यान्वयन भागीदार हैं।
- 14 टाइगर रिज़र्व जिन्हें मान्यता दी गई है, वे हैं:
- असम में मानस, काजीरंगा और ओरांग टाइगर रिज़र्व,
- मध्य प्रदेश में सतपुड़ा, कान्हा और पन्ना टाइगर रिज़र्व,
- महाराष्ट्र में पेंच टाइगर रिज़र्व,
- बिहार में वाल्मीकि टाइगर रिज़र्व,
- उत्तर प्रदेश में दुधवा टाइगर रिज़र्व,
- पश्चिम बंगाल में सुंदरबन टाइगर रिज़र्व,
- केरल में परम्बिकुलम टाइगर रिज़र्व,
- कर्नाटक का बांदीपुर टाइगर रिज़र्व,
- तमिलनाडु में मुदुमलाई और अनामलाई टाइगर रिज़र्व।
स्रोत: पी.आई.बी.
शिक्षा क्षेत्र हेतु नई पहलें
प्रिलिम्स के लियेराष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, दीक्षा पोर्टल, स्वयं पोर्टल, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, निष्ठा मेन्स के लियेशिक्षा क्षेत्र में नई पहल : भविष्य में युवाओं के लिये लाभ, क्षेत्रीय भाषाओँ में शिक्षण का अभिप्राय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत किये गए सुधारों की पहली वर्षगाँठ के अवसर पर प्रधानमंत्री ने एक सम्मेलन में शिक्षा क्षेत्र में कई पहलों की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य भारत को वैश्विक ज्ञान महाशक्ति बनाना है।
- प्रधानमंत्री ने महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षा में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर फॉर नॉलेज शेयरिंग (DIKSHA) और स्टडी वेब्स ऑफ एक्टिव लर्निंग फॉर यंग एस्पायरिंग माइंड्स (SWAYAM) जैसे पोर्टलों द्वारा निभाई गई भूमिका का भी उल्लेख किया।
प्रमुख बिंदु
एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट:
- इसे एक डिजिटल बैंक के रूप में परिकल्पित किया गया है जिसमें कॉलेज या यूनिवर्सिटीज के छात्रों का डेटा स्टोर किया जाएगा। यह बहुविषयक और समग्र शिक्षा की सुविधा हेतु एक प्रमुख साधन है। यह उच्च शिक्षा में छात्रों के लिये कई प्रविष्टियाँ तथा निकास विकल्प प्रदान करेगा।
- यह युवाओं को भविष्योन्मुखी बनाएगा तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से संचालित अर्थव्यवस्था के लिये मार्ग प्रशस्त करेगा।
क्षेत्रीय भाषाओं में इंजीनियरिंग:
- देश के आठ राज्यों के 14 इंजीनियरिंग कॉलेजों में पाँच भारतीय भाषाओं : हिंदी, तमिल, तेलुगू, मराठी और बांग्ला में इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू करने की योजना है।
- शिक्षण के इस माध्यम से मातृभाषा पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित किया जा सकेगा जिससे गरीब, ग्रामीण और आदिवासी पृष्ठभूमि के छात्रों में आत्मविश्वास उत्पन्न होगा।
- हाल ही में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर किये गए एक सर्वेक्षण में यह पाया कि 42% छात्रों ने क्षेत्रीय भाषाओं में इंजीनियरिंग करने का पक्ष लिया।
- AICTE संसाधनों का एक डेटाबेस तैयार कर रहा है ताकि कॉलेजों को क्षेत्रीय भाषाओं में अधिक कार्यक्रम पेश करने की अनुमति मिल सके तथा इंजीनियरिंग सामग्री का 11 भाषाओं में अनुवाद करने हेतु एक उपकरण विकसित किया जा सके।
विद्या प्रवेश और सफल:
- ग्रेड 1 के छात्रों के लिये तीन महीने का प्ले आधारित स्कूल मॉड्यूल और CBSE स्कूलों में ग्रेड 3, 5 और 8 के लिये एक योग्यता आधारित मूल्यांकन ढाँचा, सफल (स्ट्रक्चर्ड असेसमेंट फॉर एनालिसिस लर्निंग लेवल) जारी किया जाएगा।
नेशनल डिजिटल एजुकेशन आर्किटेक्चर (NDEAR)
- यह नए शिक्षा पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण में मदद करेगा, जिससे एक डिजिटल नींव तैयार करने में मदद मिलेगी, साथ ही सभी हितधारकों, विशेष रूप से राज्यों और केंद्र को स्व-शासन के लिये बढ़ावा देगा।
- यह शिक्षाविदों को प्रतिभा और क्षमताओं के आधार पर मूल्यांकन का अवसर प्रदान करता है, जिससे छात्रों को उनकी विशिष्टताओं के क्षेत्र में और अधिक समझने में मदद मिलेगी, जिसका उपयोग उनके भविष्य के पेशे में किया जा सकेगा।
राष्ट्रीय शिक्षा प्रौद्योगिकी मंच (NETF):
- यह प्रौद्योगिकी आधारित हस्तक्षेपों पर केंद्र और राज्य सरकार की एजेंसियों को स्वतंत्र साक्ष्य-आधारित सलाह प्रदान करेगा। ज़मीनी स्तर पर शिक्षा में प्रौद्योगिकी की पहुँच में सुधार पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
- स्कूलों को छात्रों को उभरते तकनीकी कौशल सिखाने के लिये योग्य शिक्षकों को भी नियुक्त करना होगा।
- इस फोरम की स्थापना के बाद शैक्षणिक सामग्री और अनुसंधान को बढ़ाने के लिये प्रौद्योगिकी के उपयोग संबंधी कदमों के बारे में स्कूल-वार सूचना मांगी जाएगी।
- इसे सरकार द्वारा वित्तपोषित किया जाएगा, किंतु बाद के चरण में निजी वित्तपोषण और उद्योग निकायों से समर्थन जुटाया जाएगा।
निष्ठा 2.0:
- इससे शिक्षकों को उनकी ज़रूरत के मुताबिक प्रशिक्षण मिलेगा और वे अपने सुझाव विभाग को दे सकेंगे। इसमें 12 सामान्य और 56 विषय-विशिष्ट मॉड्यूल सहित 68 मॉड्यूल होंगे तथा इसमें लगभग 10 लाख शिक्षक शामिल होंगे।
- निष्ठा विश्व में अपनी तरह का पहला सबसे बड़ा शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम है, जो छात्रों में आलोचनात्मक सोच को प्रोत्साहित करने और बढ़ावा देने के लिये शिक्षकों को प्रेरित तथा सुसज्जित करता है।
एक विषय के रूप में सांकेतिक भाषा:
- भारतीय सांकेतिक भाषा (Indian Sign Language) को पहली बार भाषा विषय का दर्जा दिया गया है। छात्र इसे एक भाषा के रूप में भी पढ़ सकेंगे।
- 3 लाख से अधिक छात्र ऐसे हैं जिन्हें अपनी शिक्षा के लिये सांकेतिक भाषा की आवश्यकता है। इससे भारतीय सांकेतिक भाषा को बढ़ावा मिलेगा और दिव्यांगों को मदद मिलेगी।
संबंधित पिछली पहलें
- प्रौद्योगिकी वर्द्धित शिक्षा पर राष्ट्रीय कार्यक्रम
- राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (RUSA)
- प्रधानमंत्री अनुसंधान फैलोशिप (PMRF)
- शैक्षणिक और अनुसंधान सहयोग के संवर्द्धन के लिये योजना (SPARC)
- सर्व शिक्षा अभियान
- नीट (NEET)
- प्रज्ञाता
- मध्याह्न भोजन योजना
- शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
स्रोत: पी.आई.बी.
फैक्टरिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2021
प्रिलिम्स के लियेयूके सिन्हा समिति, फैक्टरिंग व्यवसाय मेन्स के लियेसंशोधन विधेयक संबंधी मुख्य प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राज्यसभा ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्र की मदद करने के उद्देश्य से कानून में बदलाव लाने के लिये ‘फैक्टरिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2021’ पारित किया है।
इसमें यूके सिन्हा समिति के कई सुझावों को शामिल किया गया है।
फैक्टरिंग व्यवसाय
- फैक्टरिंग व्यवसाय ऐसा व्यवसाय है, जहाँ एक इकाई एक निश्चित राशि के लिये किसी अन्य इकाई की प्राप्य राशि का अधिग्रहण कर लेती है।
- गौरतलब है कि प्राप्य की सुरक्षा के विरुद्ध बैंक द्वारा प्रदान की जाने वाली क्रेडिट सुविधाओं को फैक्टरिंग व्यवसाय नहीं माना जाता है।
- इस व्यवसाय में एक बैंक, एक पंजीकृत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी या कंपनी अधिनियम के तहत पंजीकृत कोई भी कंपनी शामिल हो सकती है।
- प्राप्य का आशय ऐसी कुल राशि से है, जो किसी भी सामान, सेवाओं या सुविधा के उपयोग के लिये ग्राहकों की ओर से (ऋणी के रूप में संदर्भित) बकाया है या जिसका भुगतान किया जाना है।
प्रमुख बिंदु
विधेयक के प्रमुख प्रावधान:
- परिभाषा में बदलाव
- यह ‘प्राप्तियों’, ‘असाइनमेंट’ और ‘फैक्टरिंग व्यवसाय’ की परिभाषाओं में संशोधन करता है, ताकि उन्हें अंतर्राष्ट्रीय मानकों के समान बनाया जा सके।
- NBFC की फैक्टरिंग सीमा में छूट:
- यह विधेयक ‘फैक्टरिंग विनियमन अधिनियम, 2011’ में संशोधन करने का प्रयास करता है. ताकि उन संस्थाओं के दायरे को बढ़ाया जा सके जो फैक्टरिंग व्यवसाय में संलग्न हो सकते हैं।
- वर्तमान कानून, भारतीय रिज़र्व बैंक को गैर-बैंक वित्त कंपनियों को फैक्टरिंग व्यवसाय में बने रहने की अनुमति देने का अधिकार देता है, यदि फैक्टरिंग उसका प्रमुख व्यवसाय है।
- यानी आधी से ज़्यादा संपत्तियाँ फैक्टरिंग कारोबार में तैनात हैं और आधी से अधिक आय भी इसी कारोबार से प्राप्त होती है।
- यह विधेयक इस सीमा को समाप्त करता है और इस व्यवसाय में गैर-बैंकिंग ऋणदाताओं को नए अवसर प्रदान करता है।
- शुल्क दर्ज करने के लिये TReDS:
- बिल में कहा गया है कि जहाँ ट्रेड रिसीवेबल्स को व्यापार प्राप्य बट्टाकरण/छूट प्रणाली (TReDS) के ज़रिये फाइनेंस प्रदान किया जाता है, वहाँ फैक्टर या फैक्टरिंग के आधार पर TReDS द्वारा ट्रांजैक्शन से जुड़ी डिटेल्स सेंट्रल रजिस्ट्री में फाइल की जानी चाहिये।
- TReDS मंच कई फाइनेंसरों के माध्यम से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) की व्यापार प्राप्तियों के वित्तपोषण की सुविधा के लिये एक ऑनलाइन इलेक्ट्रॉनिक संस्थागत तंत्र है।
- बिल में कहा गया है कि जहाँ ट्रेड रिसीवेबल्स को व्यापार प्राप्य बट्टाकरण/छूट प्रणाली (TReDS) के ज़रिये फाइनेंस प्रदान किया जाता है, वहाँ फैक्टर या फैक्टरिंग के आधार पर TReDS द्वारा ट्रांजैक्शन से जुड़ी डिटेल्स सेंट्रल रजिस्ट्री में फाइल की जानी चाहिये।
- RBI को विनियमित करना:
- यह भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को एक कारक को पंजीकरण प्रमाण पत्र देने, सेंट्रल रजिस्ट्री के साथ लेन-देन विवरण दाखिल करने तथा अन्य सभी मामलों के लिये विनियम बनाने का अधिकार देता है।
- पंजीकरण की समयावधि:
- यह फैक्टर या फैक्टरिंग द्वारा दर्ज किये गए प्रत्येक लेन-देन के विवरण हेतु निर्धारित 30 दिन की समयावधि को समाप्त करता है। ऐसे लेन-देन के लिये पंजीकरण प्राधिकरण, वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्गठन तथा प्रतिभूति हित का प्रवर्तन (सरफेसी) अधिनियम, 2002 के तहत केंद्रीय पंजीयन तंत्र है।
महत्त्व:
- गैर-एनबीएफसी कारकों और अन्य संस्थाओं को फैक्टरिंग की अनुमति देने से छोटे व्यवसायों के लिये उपलब्ध धन की आपूर्ति में वृद्धि होने की उम्मीद है।
- इसके परिणामस्वरूप धन की लागत कम हो सकती है और ऋण की कमी वाले छोटे व्यवसाय अधिक पहुँच में सक्षम हो सकते हैं, जिससे उनकी प्राप्तियों के खिलाफ समय पर भुगतान सुनिश्चित हो सके।
- MSME को आसान तरलता मिलेगी जिससे उनके संचालन में मदद होगी।
- प्राप्य में देरी के कारण MSME को कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है और यह बिल सुचारु कार्यशील पूंजी चक्र तथा स्वस्थ नकदी प्रवाह (Healthier Cash Flow) सुनिश्चित करने में मदद करेगा।
- यह अधिनियम में प्रतिबंधात्मक प्रावधानों को उदार बनाएगा और साथ ही सुनिश्चित करेगा कि RBI के माध्यम से एक मज़बूत नियामक/निगरानी तंत्र स्थापित किया जाए।
यूके सिन्हा समिति:
- रिज़र्व बैंक ने वर्ष 2019 में MSME क्षेत्र के लिये रूपरेखा की समीक्षा करने हेतु भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के पूर्व अध्यक्ष यूके सिन्हा के नेतृत्व में आठ सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया था।
- इसने MSME विकास अधिनियम में संशोधन, वित्तीय वितरण तंत्र को मज़बूत करने, विपणन समर्थन में सुधार, प्रौद्योगिकी अपनाने को प्रोत्साहित करने और MSME आदि के लिये क्लस्टर विकास समर्थन को मज़बूत करने के संबंध में सिफारिशें की हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
बादल फटना
प्रिलिम्स के लियेफ्लैश फ्लड, लैंडस्लाइड मेन्स के लियेबादल फटने की घटनाएँ और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत में कई स्थानों पर बादल फटने की सूचना मिली है।
प्रमुख बिंदु
परिचय:
- बादल फटना एक छोटे से क्षेत्र में छोटी अवधि की तीव्र वर्षा की घटना है।
- यह लगभग 20-30 वर्ग किमी. के भौगोलिक क्षेत्र में 100 मिमी./घंटा से अधिक अप्रत्याशित वर्षा के साथ एक मौसमी घटना है।
- भारतीय उपमहाद्वीप में आमतौर पर यह घटना तब घटित होती है जब मानसून उत्तर की ओर, बंगाल की खाड़ी या अरब सागर से मैदानी इलाकों में और फिर हिमालय की ओर बढ़ता है जो कभी-कभी प्रति घंटे 75 मिलीमीटर वर्षा करता है।
घटना:
- सापेक्षिक आर्द्रता और मेघ आवरण, निम्न तापमान एवं धीमी हवाओं के साथ अधिकतम स्तर पर होता है, जिसके कारण बादल बहुत अधिक मात्रा में तीव्र गति से संघनित होते हैं और इसके परिणामस्वरूप बादल फट सकते हैं।
- जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, वातावरण अधिक-से-अधिक नमी धारण कर सकता है और यह नमी कम अवधि में बहुत तीव्र वर्षा (शायद आधे घंटे या एक घंटे लिये) का कारण बनती है, जिसके परिणामस्वरूप पहाड़ी क्षेत्रों में अचानक बाढ़ आती है और शहरों में शहरी बाढ़ आती हैं।
बादल फटना वर्षा से भिन्न कैसे?
- वर्षा बादलों से गिरने वाला संघनित जल है, जबकि बादल फटना अचानक भारी वर्षा का होना है।
- प्रति घंटे 100 मिमी. से अधिक वर्षा को बादल फटने के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- बादल फटना एक प्राकृतिक घटना है, लेकिन यह अप्रत्याशित रूप से और अचानक घटित होती है।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
- कई अध्ययनों से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन से दुनिया भर के कई शहरों में बादल फटने की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि होगी।
- मई 2021 में विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने उल्लेख किया था कि इस बात की 40% संभावना है कि आगामी पाँच वर्षों में वार्षिक औसत वैश्विक तापमान अस्थायी रूप से पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुँच जाएगा।
- इसमें कहा गया है कि इस बात की 90 प्रतिशत संभावना है कि वर्ष 2021 और वर्ष 2025 के बीच कम-से-कम एक वर्ष ऐसा होगा जिसमें सबसे अधिक गर्मी रिकॉर्ड की जाएगी तथा वह वर्ष अब तक के सबसे गर्म वर्ष के रूप में वर्ष 2016 को प्रतिस्थापित कर देगा।
- हिमालयी क्षेत्र में बादल फटने की सबसे अधिक घटनाएँ देखी जा रही हैं, क्योंकि हिमालयी क्षेत्र में दशकीय तापमान वृद्धि वैश्विक तापमान वृद्धि की दर से अधिक है।
बादल फटने का परिणाम:
- फ्लैश फ्लड
- लैंडस्लाइड
- मडफ्लो
- लैंड कैविंग
पूर्वानुमान
- वर्तमान में बादल फटने की घटना का अनुमान लगाने के लिये कोई तकनीक उपलब्ध नहीं है, क्योंकि ये घटनाएँ बहुत कम देखने को मिलती हैं।
- बादल फटने की संभावना का पता लगाने के लिये अत्याधुनिक रडार के एक बेहतर नेटवर्क की आवश्यकता होती है, जो कि अपेक्षाकृत काफी महँगा है।
- इससे भारी वर्षा की संभावना वाले क्षेत्रों में इसका पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। बादलों के फटने की घटना के अनुकूल क्षेत्रों और मौसम संबंधी स्थितियों की पहचान कर नुकसान से बचा जा सकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विमानपत्तन आर्थिक विनियामक प्राधिकरण संशोधन विधेयक, 2021
प्रिलिम्स के लियेउड़ान (UDAN) क्षेत्रीय संपर्क योजना, संसदीय स्थायी समिति,पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण मेन्स के लियेAERA संशोधन विधेयक, 2021 के प्रमुख प्रावधान एवं महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में लोकसभा ने भारतीय विमानपत्तन आर्थिक नियामक प्राधिकरण (AERA) संशोधन विधेयक, 2021 को पारित किया।
- मार्च 2021 में इसे प्रथम बार पेश किया गया था तथा बाद में इसे परिवहन, पर्यटन और संस्कृति पर एक संसदीय स्थायी समिति के पास भेजा गया, जिसने इसमें बिना किसी परिवर्तन के मंज़ूरी दे दी।
- यह विधेयक, भारतीय विमानपत्तन आर्थिक नियामक प्राधिकरण अधिनियम, 2008 में संशोधन प्रस्तावित करता है।
प्रमुख बिंदु
प्रमुख प्रावधान:
- परिभाषा :
- यह हवाई अड्डों के एक समूह को शामिल करने के लिये प्रमुख हवाई अड्डे की परिभाषा में संशोधन का प्रस्ताव करता है।
- 2008 के अधिनियम के अनुसार, एक हवाई अड्डे को प्रमुख हवाई अड्डे के रूप में नामित किया जाता है यदि इस हवाई अड्डे से कम-से-कम 35 लाख यात्री वार्षिक तौर पर आवागमन करते हैं।
- केंद्र सरकार अधिसूचना के ज़रिये किसी भी हवाई अड्डे को प्रमुख हवाई अड्डे के रूप में नामित कर सकती है।
- यह हवाई अड्डों के एक समूह को शामिल करने के लिये प्रमुख हवाई अड्डे की परिभाषा में संशोधन का प्रस्ताव करता है।
- टैरिफ:
- यह AERA को न केवल 35 लाख से अधिक यात्रियों के वार्षिक यातायात वाले प्रमुख हवाई अड्डे के रूप में बल्कि हवाई अड्डों के एक समूह हेतु वैमानिकी सेवाओं के लिये टैरिफ तथा अन्य शुल्कों को विनियमित करने की अनुमति देगा।
- लाभदायक जुड़ाव:
- सरकार पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल के तहत निवेश हेतु एक व्यवहार्य संयोजन के लिये बोलीदाताओं को एक संयोजन / पैकेज के रूप में लाभदायक तथा गैर-लाभकारी हवाई अड्डों को जोड़ने में सक्षम होगी।
महत्त्व:
- यह अपेक्षाकृत दूरदराज़ के क्षेत्रों में हवाई संपर्क का विस्तार करने में मदद करेगा, परिणामस्वरूप उड़ान (UDAN) क्षेत्रीय संपर्क योजना को गति प्रदान करेगा।
- यह छोटे हवाई अड्डों के विकास को प्रोत्साहित करेगा।
चिंताएँ:
- 'हवाई अड्डों के समूह' की परिभाषा के तहत अर्हता प्राप्त करने के लिये कौन से हवाई अड्डों को एक साथ जोड़ा जाएगा, यह तय करने के मानदंड पर बिल में स्पष्टता का अभाव है , चाहे वह 35 लाख से अधिक यात्री यातायात हो या कुछ अन्य कारक हों।
भारतीय विमानपत्तन आर्थिक नियामक प्राधिकरण
पृष्ठभूमि:
- प्रारंभ में भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) द्वारा हवाई अड्डों का संचालन और प्रबंधन का कार्य किया जाता था। कुछ समय बाद नागरिक उड्डयन नीति में बदलाव किया गया क्योंकि कुछ निजी अभिकर्त्ताओं को भी हवाई अड्डे के संचालन का कार्य दिया गया था। इसके पीछे निहित उद्देश्य उपभोक्ताओं को बेहतरीन सेवाएँ प्रदान करना था।
- आमतौर पर हवाई अड्डों पर एकाधिकार का जोखिम होता है क्योंकि पर शहरों में प्रायः एक नागरिक हवाई अड्डा होता है जो उस क्षेत्र में सभी वैमानिकी सेवाओं को नियंत्रित करता है।
- निजी हवाई अड्डा संचालक अपने एकाधिकार का दुरुपयोग न कर सके यह सुनिश्चित करने के लिये विमानपत्तन क्षेत्र में एक स्वतंत्र शुल्क नियामक की आवश्यकता महसूस की गई थी।।
परिचय:
- भारतीय विमानपत्तन आर्थिक नियामक प्राधिकरण अधिनियम, 2008 (AERA अधिनियम) पारित किया गया जिसने AERA को एक वैधानिक निकाय के रूप में स्थापित किया।
- यह इस बात को ध्यान में रखते हुए स्थापित किया गया था कि देश को एक ऐसे स्वतंत्र नियामक की आवश्यकता है जिसके पास पारदर्शी नियम हों और जो सेवा प्रदाताओं के साथ-साथ उपभोक्ताओं के हितों का भी ध्यान रख सके।
कार्य:
- AERA प्रमुख हवाई अड्डों पर वैमानिकी सेवाओं (हवाई यातायात प्रबंधन, विमान की लैंडिंग एवं पार्किंग, ग्राउंड हैंडलिंग सेवाएँ) के लिये टैरिफ और अन्य शुल्क (विकास शुल्क तथा यात्री सेवा शुल्क) नियंत्रित करता है।
स्रोत: द हिंदू
केंदू पत्ता
प्रिलिम्स के लियेकेंदू (तेंदू) पत्ते, मलेरिया, बाल श्रम मेन्स के लियेकेंदू (तेंदू) पत्ते का संक्षिप्त परिचय एवं इसके उपयोग, केंदू पत्ते का महत्त्व एवं चिंताएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ओडिशा के कालाहांडी ज़िले में कई बच्चों को केंदू (तेंदू) पत्ते का संग्रहण करते हुए पाया गया।
प्रमुख बिंदु
परिचय:
- केंदू (Kendu) पत्ते को ओडिशा का हरा सोना कहा जाता है। यह बांँस और साल बीज की तरह एक राष्ट्रीयकृत उत्पाद है। यह ओडिशा में सबसे महत्त्वपूर्ण गैर-लकड़ी वनोपज में से एक है।
- तेंदू (केंदू) पत्ते का वानस्पतिक नाम डाइऑस्पिरॉस मेलानॉक्सिलॉन (Diospyros melanoxylon) है।
- स्थानीय लोगों के बीच इसकी पत्तियों का उपयोग बीड़ी निर्माण उद्योग के लिये प्रचलित है।
केंदू पत्ते का उत्पादन करने वाले राज्य:
- भारत में केंदू पत्तियों से बीड़ी का उत्पादन करने वाले राज्यों में मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, झारखंड, गुजरात तथा महाराष्ट्र शामिल हैं।
- मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के बाद ओडिशा केंदू के पत्ते का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
विशिष्टता:
- ओडिशा के तेंदू (केंदू) पत्ते की विशिष्टता संसाधित/प्रसंस्कृत रूप में है, जबकि भारत के शेष राज्य इसके फलों के प्रसंस्कृत रूप का उपयोग करते हैं।
- प्रसंस्कृत रूप में केंदू के पत्तों को विभिन्न गुणों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है जो कि पत्तों का रंग, बनावट, आकार और ढाँचागत स्थिति के अनुसार ग्रेड I से ग्रेड IV तक होते हैं तथा पैकेट को पाँच किलोग्राम के बंडल के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
महत्त्व:
- औषधि के रूप में:
- पारंपरिक चिकित्सक केंदू के फलों का उपयोग मलेरिया, दस्त और पेचिश के उपचार के लिये करते हैं।
- रोगाणुरोधी गुणों के कारण इन पत्तियों का उपयोग कट और खरोंच लगने पर भी किया जाता है।
- आजीविका का स्रोत:
- आदिवासी गाँवों के लिये तेंदू (केंदू) के पत्ते आजीविका के प्रमुख स्रोत हैं, क्योंकि यह राज्य की सबसे प्रमुख लघु वन उपज है।
- लघु वन उत्पादों में पौधे के सभी गैर-लकड़ी वन उत्पाद और बाँस, बेंत, चारा, पत्ते, गोंद, मोम, डाई, रेजिन और कई प्रकार के भोजन व नट, जंगली फल, शहद, लाख, टसर आदि शामिल हैं।
- वे इससे अपने भोजन, फलों, दवाओं और अन्य उपभोग की वस्तुओं का एक बड़ा हिस्सा प्राप्त करते हैं और बिक्री के माध्यम से नकद आय भी प्राप्त करते हैं।
- आदिवासी गाँवों के लिये तेंदू (केंदू) के पत्ते आजीविका के प्रमुख स्रोत हैं, क्योंकि यह राज्य की सबसे प्रमुख लघु वन उपज है।
- ओडिशा का वन राजस्व में प्रमुख हिस्सा:
- वर्ष 1990-2000 तक ओडिशा के कुल 868 मिलियन रुपए के वन राजस्व में से तेंदू (केंदू) का भाग अकेले 635 मिलियन रुपए है।
- ओडिशा में बीड़ी पत्ती का वार्षिक उत्पादन लगभग 4.5-5 लाख प्रति क्विंटल है, जो कि देश के वार्षिक उत्पादन का लगभग 20% है।
चिंता:
- कम भत्ता:
- केंदू पत्ता संग्रह केंद्रों पर काम करने वाले बच्चे अक्सर हर वर्ष अप्रैल-मई के दौरान आते हैं। उनका ज़्यादातर काम इन पत्तों को तोड़ना, सुखाना, इकट्ठा करना आदि है लेकिन उन्हें इस काम के लिये बेहद कम मज़दूरी का भुगतान किया जाता है।
- बच्चों का शोषण:
- 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को श्रमिक के रूप में कम पर नहीं लगाया जा सकता है तथा 14-18 वर्ष के बीच के बच्चों को केवल गैर-खतरनाक क्षेत्रों में ही लगाया जा सकता है।
- ऐसे में उनका शोषण किया जाता है।
आगे की राह
- इस क्षेत्र को बाल श्रम से मुक्त करने के लिये और कड़े कानूनों की ज़रूरत है। साथ ही माता-पिता तथा बच्चों को बाल अधिकारों के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है।
- बाल संरक्षण प्रणाली के अलावा चाइल्ड लाइन, ज़िला बाल संरक्षण इकाई, बाल कल्याण समिति आदि को बच्चों के अधिकार सुनिश्चित करने में अधिक सतर्क और सक्रिय रहना होगा।
- चूँकि केंदू पत्ता ग्रामीण समाज की वन अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, इसलिये लघु वन उत्पादों का विनियमन आवश्यक है ताकि आदिवासी और ग्रामीण लोग MFP पर अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकें।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
सतलुज नदी प्रदूषण
प्रिलिम्स के लियेनेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल, सतलुज नदी, लुहरी स्टेज-I जलविद्युत परियोजना मेन्स के लियेसतलुज नदी के जल प्रदूषण का स्रोत |
चर्चा में क्यों?
सतलुज नदी में प्रदूषण ने इंदिरा गांधी नहर के आसपास रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य के लिये गंभीर खतरा पैदा कर दिया है।
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने पंजाब सरकार और राजस्थान सरकार को सतलुज एवं ब्यास नदी में प्रवाहित प्रदूषित जल को रोकने के लिये की गई सुधारात्मक कार्रवाई के बारे में जल शक्ति मंत्रालय को तिमाही अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
प्रमुख बिंदु
सतलुज नदी के जल प्रदूषण का स्रोत:
- ‘बुड्ढा नाला’ को प्रदूषित करने वाले तीन प्रमुख स्रोत: बुद्ध नाला (एक सहायक नदी) सतलुज नदी में प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है।
- लुधियाना शहर के ‘सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट’ (STP) से अनुपचारित सीवेज कचरा।
- रंगाई इकाइयों और आउटलेट से अनुपचारित औद्योगिक अपशिष्ट जिसे प्रत्यक्ष रूप से नदी में छोड़ा जाता है।
- इलेक्ट्रोप्लेटिंग, होजरी, स्टील रोलिंग मिल जैसे छोटे पैमाने के उद्योग भी मुख्य रूप से नाले में अपशिष्ट जल की वृद्धि में योगदान करते हैं।
- हाई बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD): बुद्ध नाला एक दिन में लगभग 16,672 किलोग्राम ‘बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड’ नदी में प्रवाहित करता है और ‘ईस्ट बीन’ (पंजाब में दोआबा में एक नाला) एक दिन में 20,900 किलोग्राम ‘बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड’ नदी में प्रवाहित करता है।
- जितना अधिक कार्बनिक पदार्थ होता है (उदाहरण के लिये सीवेज और पानी के प्रदूषित निकायों में) उतना ही अधिक BOD होता है और BOD जितना अधिक होगा, मछलियों के लिये उपलब्ध घुलित ऑक्सीजन की मात्रा उतनी ही कम होती है।
- चमड़ा उद्योग: जालंधर ज़िले में एक और मौसमी नाला ‘चित्तीबेन’ तथा इसका उप-नाला, काला संघियन नाला, सतलुज नदी में उच्च प्रदूषण के लिये समान रूप से ज़िम्मेदार हैं।
- जालंधर के चमड़ा उद्योग से अनुपचारित अपशिष्ट, चित्तीबेन के प्रदूषण के प्रमुख कारणों में से एक है।
प्रदूषकों के घटक:
- सतलुज नदी में बुद्ध नाला/जलधारा (Buddha Nullah) के मिलने के बाद इसमें क्रोमियम और आर्सेनिक के अवशेष मिले हैं।
- बुद्ध नाला, चित्तीबेनऔर कला संघियन जैसे नालों में तथा उनके आसपास भूजल एवं सतही जल में पारा, सीसा, क्रोमियम, कैडमियम तथा सेलेनियम की मात्रा स्वीकार्य सीमा (MLP) से अधिक पाई जाती है।
- परीक्षण के बाद चारा, सब्जी, दूध, मूत्र और रक्त के नमूनों में भारी धातुओं एवं कीटनाशकों की मात्रा का पता चला है।
इंदिरा गांधी नहर पर प्रभाव:
- इंदिरा गांधी नहर देश की सबसे लंबी नहर है।
- यह पंजाब में सतलुज और ब्यास नदियों के संगम से कुछ किलोमीटर नीचे हरिके बैराज से निकलती है जो लुधियाना से होकर बहती है और उत्तर पश्चिमी राजस्थान में थार रेगिस्तान में समाप्त होती है।
- यह नहर उत्तरी और पश्चिमी राजस्थान में पीने और सिंचाई का मुख्य स्रोत है।
- यह राज्य के आठ ज़िलों के 7,500 गांँवों में रहने वाले 1.75 करोड़ लोगों को पानी उपलब्ध कराती है।
- इंदिरा गांधी नहर में प्रदूषकों की उपस्थिति के कारण पानी पूर्ण रूप से काला हो गया है।
- प्रदूषण के कारण लोगों में त्वचा रोग, गैस्ट्रोएंटेराइटिस, पाचन की समस्या और आंँखों की रोशनी कम होने जैसी कई स्वास्थ्य जटिलताएंँ पैदा हो गई हैं।
सतलुज नदी
- सतलुज नदी को ‘सतद्री’ के नाम से भी जाना जाता है। यह सिंधु नदी की सबसे पूर्वी सहायक नदी है।
- सतलुज नदी उन पाँच नदियों में से सबसे लंबी है जो उत्तरी भारत एवं पाकिस्तान के पंजाब के ऐतिहासिक क्षेत्र से होकर बहती हैं।
- झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज सिंधु की मुख्य सहायक नदियाँ हैं।
- इसका उद्गम सिंधु नदी के स्रोत के 80 किमी. दूर पश्चिमी तिब्बत में मानसरोवर झील के समीप राकसताल झील से होता है।
- सिंधु की तरह यह तिब्बत-हिमाचल प्रदेश सीमा पर शिपकी-ला दर्रे तक एक उत्तर-पश्चिमी मार्ग को अपनाती है। यह शिवालिक शृंखला को काटती हुई पंजाब में प्रवेश करती है।
- पंजाब के मैदान में प्रवेश करने से पहले यह ‘नैना देवी धार’ में एक गाॅर्ज का निर्माण करती है जहाँ प्रसिद्ध भाखड़ा बाँध का निर्माण किया गया है।
- अपनी आगे की यात्रा के दौरान यह रावी, चिनाब और झेलम नदियों के साथ सामूहिक जलधारा के रूप में मिठानकोट से कुछ किलोमीटर ऊपर सिंधु नदी में मिल जाती है।
- सिंधु की तरह यह तिब्बत-हिमाचल प्रदेश सीमा पर शिपकी-ला दर्रे तक एक उत्तर-पश्चिमी मार्ग को अपनाती है। यह शिवालिक शृंखला को काटती हुई पंजाब में प्रवेश करती है।
- लुहरी स्टेज-I जलविद्युत परियोजना हिमाचल प्रदेश के शिमला और कुल्लू ज़िलों में सतलुज नदी पर स्थित है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
NEET का अखिल भारतीय कोटा
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019 मेन्स के लिये:चिकित्सा/दंत चिकित्सा पाठ्यक्रम में स्नातक (UG) और स्नातकोत्तर (PG) हेतु अखिल भारतीय कोटा ( All India Quota- AIQ) योजना में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBCs) हेतु 27% आरक्षण और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) को 10% कोटा प्रदान करने का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने वर्ष 2021-22 से चिकित्सा/दंत चिकित्सा पाठ्यक्रम में स्नातक (UG) और स्नातकोत्तर (PG) हेतु अखिल भारतीय कोटा ( All India Quota- AIQ) योजना में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBCs) हेतु 27% आरक्षण और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) के लिये 10% कोटा की घोषणा की है।
प्रमुख बिंदु:
अखिल भारतीय कोटा (AIQ) योजना के बारे में:
- वर्ष 1986 में AIQ योजना को सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के तहत पेश किया गया था ताकि किसी भी राज्य के छात्रों को दूसरे राज्य में स्थित मेडिकल कॉलेज में अध्ययन करने की स्थिति में डोमिसाइल से मुक्त तथा योग्यता के आधार पर अवसर (Domicile-Free Merit-Based Opportunities) प्रदान किया जा सके।
- इसमें सरकारी मेडिकल कॉलेजों में UG सीटों का 15% और PG सीटों का 50% कोटा शामिल है।
- राज्य के मेडिकल/डेंटल कॉलेजों में सीटों का शेष हिस्सा अपने-अपने राज्यों में रहने वाले छात्रों के लिये आरक्षित है।
- जनवरी 2007 में अभय नाथ बनाम दिल्ली विश्वविद्यालय और अन्य ( Abhay Nath v University of Delhi and Others) केस में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि अनुसूचित जातियों के लिये 15% और अनुसूचित जनजातियों हेतु 7.5% आरक्षण AIQ में शामिल किया जाए।
- वर्ष 2007 तक मेडिकल प्रवेश के लिये अखिल भारतीय कोटा के भीतर कोई आरक्षण लागू नहीं किया गया था।
- जब वर्ष 2007 में केंद्रीय शैक्षणिक संस्थान (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम प्रभावी हुआ, तो ओबीसी को एकसमान 27% आरक्षण प्रदान किया गया, यह योजना सभी केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में लागू की गई थी।
- हालाँकि इसे राज्य के मेडिकल और डेंटल कॉलेजों की AIQ सीटों तक विस्तारित नहीं किया गया था।
- संविधान (103वाँ संशोधन) अधिनियम, 2019 के तहत 10% ईडब्ल्यूएस कोटा भी केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में लागू किया गया है, लेकिन राज्य संस्थानों के लिये राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (एनईईटी) एआईक्यू में लागू नहीं किया गया है।
- अब इस फैसले के बाद मेडिकल कॉलेजों में एआईक्यू के भीतर ओबीसी और ईडब्ल्यूएस श्रेणियों के लिये मौजूदा शैक्षणिक वर्ष से आरक्षण की पेशकश की जाएगी।
- इस निर्णय से दी गई श्रेणियों के तहत हज़ारों छात्रों को मदद मिलेगी।
NEET के विषय में:
- राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (National Eligibility-cum-Entrance Test- NEET) देश के सभी स्नातक और स्नातकोत्तर चिकित्सा तथा दंत चिकित्सा पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिये प्रवेश परीक्षा है।
- वर्ष 2016 तक अखिल भारतीय प्री-मेडिकल टेस्ट (All India Pre-Medical Test- AIPMT) मेडिकल कॉलेजों के लिये राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षा थी।
- जबकि राज्य सरकारें उन सीटों के लिये अलग प्रवेश परीक्षा आयोजित करती थीं, जिन पर अखिल भारतीय स्तर पर परीक्षा नहीं होती थी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2016 में भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम (Indian Medical Council Act), 1956 की नई सम्मिलित धारा 10-D को बरकरार रखा, जो हिंदी, अंग्रेज़ी और विभिन्न अन्य भाषाओं में स्नातक स्तर एवं स्नातकोत्तर स्तर पर सभी चिकित्सा शैक्षणिक संस्थानों के लिये एक समान प्रवेश परीक्षा प्रदान करती है।
- वर्तमान में भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 को राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम (National Medical Commission Act), 2019 द्वारा प्रतिस्थापित किये जाने के बाद निरस्त कर दिया गया है, जो 8 अगस्त, 2019 को अस्तित्व में आया था।
- यह राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (National Testing Agency) द्वारा आयोजित किया जाता है।