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जैव विविधता और पर्यावरण

बाघ एवं मानव-वन्यजीव संघर्ष

  • 13 Aug 2019
  • 14 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस आलेख में बाघों की वर्तमान स्थिति तथा मानव-वन्यजीव संघर्ष पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

हाल ही में चतुर्थ बाघ जनगणना, 2018 जारी की गई है, इस जनगणना के अनुसार भारत में 2967 बाघ हैं और भारत में बाघों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। बाघों की संख्या वर्ष 2006 में 1411, वर्ष 2010 में 1706 तथा वर्ष 2014 में 2226 थी। बाघों की संख्या वृद्धिमान आँकड़े बाघ परियोजना अर्थात् प्रोजेक्ट टाइगर की सफलता को इंगित करते हैं। वर्ष 2010 की सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा में बाघों की संख्या को दोगुना करने का लक्ष्य भारत ने सफलतापूर्वक प्राप्त कर लिया है। हालाँकि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority-NTCA) के अनुसार, भारत में टाइगर रिज़र्व की क्षमता के अनुसार अधिकतम 3000 बाघ ही हो सकते हैं।

सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा 2010

(St. Petersburg Declaration 2010)

  • ऐसे 13 देश जिनमें बाघों का प्राकृतिक निवास है, वैश्विक बाघ पुनःप्राप्ति कार्यक्रम (Global Tiger Recovery Program) पर सहमत हुए।
  • इस घोषणा में वैश्विक स्तर पर बाघों की संख्या वर्ष 2022 तक दोगुनी करने का लक्ष्य रखा गया।
  • भारत, बांग्लादेश, भूटान, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, नेपाल, रूस, थाईलैंड और वियतनाम में प्राकृतिक रूप से बाघ पाए जाते हैं। ये सभी देश वैश्विक बाघ पुनःप्राप्ति कार्यक्रम के भागीदार हैं।

बाघों की बढ़ती आबादी मानव-वन्यजीव संघर्ष (Man-Animal Conflict-MAC) के रूप में सामने आई है। बढ़ती जनसंख्या और सिकुड़ते प्राकृतिक वन्यजीव आवासों के कारण मानव एवं वन्यजीवों के बीच भोजन एवं आवास, जैसे विभिन्न कारणों की वजह से संघर्ष की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है।

  • MAC धीरे-धीरे विश्व के विभिन्न भागों में कई प्रजातियों के जीवन के लिये सबसे बड़े खतरे के रूप में स्थापित होता जा रहा है, इसके साथ ही यह स्थानीय आबादी के लिये भी गंभीर खतरों को उत्पन्न कर रहा है।
  • केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2013 से 2017 की अवधि में बाघ, हाथी आदि द्वारा 1600 से भी अधिक लोगों को मारने के मामले सामने आए हैं।

क्या है मानव-वन्यजीव संघर्ष की परिभाषा?

वन्यजीवों और मनुष्यों के बीच संघर्ष की इस तरह की घटनाओं की बढ़ती संख्या को जैव विविधता से जोड़ते हुए विशेषज्ञ निरंतर चेतावनी देते रहे हैं कि मानव के इस अतिक्रामक व्यवहार से पृथ्वी पर जैव असंतुलन बढ़ रहा है। विज्ञान तथा तकनीकी विकास के चलते वन्यजीवों की हिंसा से उत्पन्न होने वाले भय तथा नुकसान से मनुष्य निश्चित रूप से लगभग मुक्त हो चुका है। वन्यजीव अपने प्राकृतिक पर्यावास की तरफ स्वयं रुख करते हैं, लेकिन एक जंगल से दूसरे जंगल तक पलायन के दौरान वन्यजीवों का आबादी क्षेत्रों में पहुँचना स्वाभाविक है। मानव एवं वन्यजीवों के बीच संघर्ष का यही मूल कारण है। मानव तथा वन्यजीवों के बीच होने वाले किसी भी तरह के संपर्क की वजह से मनुष्यों, वन्यजीवों, समाज, आर्थिक क्षेत्र, सांस्कृतिक जीवन, वन्यजीव संरक्षण या पर्यावरण पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव मानव-वन्यजीव संघर्ष की श्रेणी में आते हैं।

मानव-वन्यजीव संघर्ष में वृद्धि के कारण

आवास की क्षति: भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का सिर्फ 5 प्रतिशत हिस्सा ही संरक्षित क्षेत्र के रूप में विद्यमान है। यह क्षेत्र वन्यजीवों के आवास की दृष्टि से पर्याप्त नहीं है।

  • बाघ जैसे वन्यजीव के लिये लगभग 60-100 वर्ग किमी. क्षेत्र की आवश्यकता होती है। किंतु कुछ टाइगर रिज़र्व जैसे-महाराष्ट्र में स्थित बोर टाइगर रिज़र्व का कुछ क्षेत्र ही लगभग 140 वर्ग किमी. है।
  • एक ओर संरक्षित क्षेत्रों का आकार छोटा है, वहीं दूसरी ओर रिज़र्व में वन्यजीवों को पर्याप्त आवास उपलब्ध नहीं है। इसके अतिरिक्त बड़े वन्यजीवों जैसे बाघ, हाथी, भालू, आदि के शिकारों के पनपने के लिये भी पर्याप्त परिवेश उपलब्ध नहीं हो पता।
  • उपर्युक्त स्थिति के कारण वन्यजीव भोजन आदि की ज़रूरतों के लिये खुले आवासों अथवा मानव बस्तियों के करीब आने को मजबूर होते हैं। यह स्थिति मानव-वन्यजीव संघर्ष (MAC) को जन्म देती है।

विकास कार्यों में वृद्धि: वर्तमान में सरकार द्वारा विभिन्न विकासात्मक एवं अवसंरचनात्मक गतिविधयों में वृद्धि के लिये विभिन्न नियम और कानूनों में छूट दी है, इससे राजमार्ग एवं रेल नेटवर्क का विस्तार संरक्षित क्षेत्रों के करीब हो सकेगा। इससे मानव-वन्य जीव संघर्ष में और अधिक वृद्धि होने की आशंका व्यक्त की गई है। इससे पूर्व वाणिज्यक लाभ तथा ट्रॉफी हंटिंग (मनोरंजन के लिये शिकार) के कारण पहले ही बड़ी संख्या में वन्यजीवों का शिकार किया जाता रहा है।

  • टाइगर रिज़र्व के आसपास निर्माण किये जाने वाली जैसे- राजमार्ग, रेल, सिंचाई परियोजनाओं के अतिरिक्त प्राकृतिक आवासों से संबंधित कुछ अन्य बड़ी समस्याएँ भी मौजूद हैं। उदाहरण के लिये केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना के कारण पन्ना टाइगर रिज़र्व का 100 वर्ग किमी. क्षेत्र जलमग्न होने की स्थिति में है।
  • यह भी ध्यान देने योग्य है कि वन्यजीव विशेषज्ञों द्वारा अनुमान लगाया गया है कि भारत में लगभग 29 प्रतिशत बाघ संरक्षित क्षेत्र से बाहर हैं।

वन स्थिति रिपोर्ट-2017 में उल्लेख

  • देश के वन क्षेत्र में हो रही वृद्धि निस्संदेह एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन इसके साथ ही वन्यजीवों, विशेषकर तेंदुओं, गुलदारों और बाघों जैसे संरक्षित हिंसक जीवों तथा मनुष्यों के बीच होने वाले संघर्ष में वृद्धि चिंता का कारण बन गई है।
  • वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, देश के कुल वन क्षेत्र में लगभग एक प्रतिशत की वृद्धि के साथ ही इंसानों के साथ टकराव की जद में रहने वाले बाघ और हाथियों की संख्या में भी वृद्धि हुई है।
  • मंत्रालय से संबद्ध संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट में मानव और वन्यजीव संघर्ष में वृद्धि के कारण हाथी, बाघ एवं तेंदुए जैसे हिंसक जानवरों के हमलों में मरने वाले लोगों की संख्या पर भी चिंता जताई गई है।
  • वनाच्छादित क्षेत्र के विस्तार और वन्यजीवों की संख्या में बढ़ोतरी के समानांतर मंत्रालय के आँकड़े बताते हैं कि हिंसक पशुओं के हमलों में मृतकों की संख्या भी बढ़ी है।

भारत में वन्यजीवों के संरक्षण हेतु वैधानिक प्रावधान

  • वन्यजीवों के संरक्षण हेतु भारत के संविधान में 42वें संशोधन (1976) अधिनियम के द्वारा दो नए अनुच्छेद 48-। व 51 को जोड़कर वन्यजीवों से संबंधित विषय को समवर्ती सूची में शामिल किया गया।
  • वर्ष 1972 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम पारित किया गया। यह एक व्यापक केन्द्रीय कानून है, जिसमें विलुप्त हो रहे वन्यजीवों तथा अन्य लुप्तप्राय प्राणियों के संरक्षण का प्रावधान है। वन्यजीवों की चिंतनीय स्थिति में सुधार एवं वन्यजीवों के संरक्षण के लिये राष्ट्रीय वन्यजीव योजना 1983 में प्रारंभ की गई।

big picture on Tigers

क्या किया जाना चाहिये ?

  • पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि यदि वन्यजीव संरक्षण का कार्य सिर्फ संरक्षित क्षेत्रों यथा- राष्ट्रीय वन्यजीव पार्कों, टाइगर रिज़र्व आदि तक सीमित रहता है तो कई प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर खड़ी होंगी। उदाहरण के लिये ग्रेट इंडिया बस्टर्ड वन्यजीव संरक्षण आधिनियम की सूची-1 (इस सूची में शामिल वन्यजीवों को हानि पहुँचाना समग्र भारत में प्रतिबंधित है) में शामिल है और इस पक्षी के लिये विशेष अभयारण्य भी स्थापित किया गया है फिर भी यह प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर है।
  • वन्यजीवों के लिये सुरक्षित क्षेत्र के साथ-साथ इस प्रकार के संरक्षित क्षेत्र जो जन भागीदारी पर आधारित हों, के निर्माण पर भी बल देना चाहिये।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकने हेतु एकीकृत पूर्व चेतावनी तंत्र (Integrating Early Warning System) की सहायता से नुकसान को कम करने के लिये प्रयास किया जा सकता है। इसके लिये खेतों में बाड लगाना तथा पालतू एवं कृषि से संबंधित पशुओं की सुरक्षा के लिये बेहतर प्रबंधन करना आदि उपाय किये जा सकते हैं।
  • ऐसे वन्यजीव (हिरन, सुअर आदि) जो बाघ एवं अन्य बड़े पशुओं का भोजन है, के शिकार पर रोक लगानी चाहिये जिससे ऐसे पशुओं के लिये भोजन की कमी न हो?
  • पशुओं के व्यवहार का अध्ययन कर उचित वन्यजीव प्रबंधन के प्रयास किये जाने चाहिये ताकि आपात स्थिति के समय उचित निर्णय लिया जा सके और मानव-वन्यजीव संघर्ष से होने वाली हानि को रोका जा सके।
  • वन्यजीवों से होने वाले फसलों के नुकसान के लिये फसल बीमा का प्रावधान होना चाहिये इससे स्थानीय कृषकों में वन्यजीवों के प्रति बदले की भावना में कमी आएगी, जिससे वन्यजीवों की हानि को रोका जा सकता है।
  • भारत में हांथी गलियारों का निर्माण किया गया है, इसी तर्ज पर बाघ गलियारा एवं अन्य बड़े वन्यजीवों के लिये भी गलियारों का निर्माण किया जाना चाहिये, इसके साथ ही ईको-ब्रिज आदि के निर्माण पर भी ज़ोर देना चाहिये। इन कार्यों के लिये कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्त्व से कोष की प्राप्ति की जा सकती है।

निष्कर्ष

बाघ जैसे पशु पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य एवं विविधता में प्रमुख भूमिका निभाते हैं, साथ ही बाघ भारत का राष्ट्रीय पशु भी है। इस संदर्भ में भारत सरकार ने वर्ष 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत की। वर्ष 1973 से अब तक बाघों की संख्या में अच्छी खासी वृद्धि हुई है तथा मौजूदा समय में बाघ भारत में अपनी पारिस्थितिक क्षमता के करीब पहुँच चुके हैं। भारत में बाघों की बढ़ती संख्या मानव-वन्यजीव संघर्ष के रूप में सामने आई है। जीवों की संख्या में वृद्धि स्वस्थ पारिस्थितिक तंत्र का संकेतक होता है। अतः भारत को ऐसे संघर्षों में कमी करने के लिये जीवों के आवास क्षेत्र में वृद्धि तथा बफर क्षेत्रों आदि के निर्माण जैसे कार्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। यह भी ध्यान देने योग्य है कि इससे प्रभावित आबादी प्रमुख रूप से समाज के हाशिये पर मौजूद होती है। ऐसे संघर्ष स्थानीय समुदाय को आर्थिक हानि भी पहुँचाते हैं, इस पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।

प्रश्न: मानव-वन्यजीव संघर्ष (MAC) मानवों एवं वन्यजीवों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। कथन की विवेचना कीजिये।

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