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भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी)

  • 13 Oct 2020
  • 11 min read

 Last Updated: July 2022 

परिचय:

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India- SEBI), भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम (Securities and Exchange Board of India Act), 1992 के प्रावधानों के तहत 12 अप्रैल, 1992 को स्थापित एक वैधानिक निकाय (Statutory Body) है।

  • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की उद्देशिका में सेबी के मूल कार्यों में प्रतिभूतियों (सिक्योरिटीज़) में निवेश करने वाले निवेशकों के हितों का संरक्षण, प्रतिभूति बाज़ार (सिक्योरिटीज़ मार्केट) के विकास का उन्नयन करना तथा उसे विनियमित करना और उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक विषयों का प्रावधान करना शामिल है।

पृष्ठभूमि:

  • सेबी के अस्तित्त्व में आने से पहले, पूंजीगत मुद्दों का नियंत्रक (Controller of Capital Issues) नियामक प्राधिकरण था; इसे पूंजी मुद्दे (नियंत्रण) अधिनियम, 1947 से अधिकार प्राप्त थे।
  • अप्रैल 1988 में भारत सरकार के एक प्रस्ताव के तहत सेबी का गठन भारत में पूंजी बाज़ार के नियामक के रूप में किया गया था।
  • प्रारंभ में सेबी एक गैर-वैधानिक निकाय था जिसे किसी भी तरह की वैधानिक शक्ति प्राप्त नहीं थी।
  • सेबी अधिनियम, 1992 के माध्यम से यह एक स्वायत्त निकाय बना तथा इसे वैधानिक शक्तियाँ प्रदान की गईं।
  • इसका मुख्यालय मुंबई में तथा क्षेत्रीय कार्यालय अहमदाबाद, कोलकाता, चेन्नई और दिल्ली में स्थित हैं।

संरचना

  • सेबी बोर्ड में एक अध्यक्ष तथा कई अन्य पूर्णकालिक एवं अंशकालिक सदस्य होते हैं।
  • यह समयनुसार तत्कालीन महत्त्वपूर्ण मुद्दों की जाँच हेतु विभिन्न समितियाँ भी नियुक्त करता है।
  • इसके अलावा सेबी के निर्णय से असंतुष्ट संस्थाओं के हितों की रक्षा के लिये एक प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण-सैट (Securities Appellate Tribunal- SAT) का गठन भी किया गया है।
  • SAT में एक पीठासीन अधिकारी तथा दो अन्य सदस्य शामिल होते हैं।
  • इसे दीवानी न्यायालय के समान शक्तियाँ प्राप्त हैं। इसके अलावा यदि कोई व्यक्ति SAT के निर्णय अथवा आदेश से असंतुष्ट है तो वह सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।

प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण

Securities Appellate Tribunal (SAT)

  • SAT, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
  • यह भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड या अधिनियम के तहत एक सहायक अधिकारी द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ अपील की सुनवाई कर सकता है तथा उस पर निर्णय दे सकता है; और अधिनियम या तत्समय लागू किसी अन्य कानून के तहत न्यायाधिकरण के अधिकार क्षेत्र, इसको प्रदत्त शक्तियों और अधिकारों का प्रयोग कर सकता है।
  • 27 मई, 2014 को जारी सरकारी अधिसूचना के परिणामस्वरूप SAT ने PFRDA अधिनियम, 2013 के तहत पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (Pension Fund Regulatory and Development Authority- PFRDA) द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ अपील की सुनवाई की और उसका निपटान किया।
  • इसके अलावा 23 मार्च, 2015 को जारी सरकारी अधिसूचना के संदर्भ में, SAT ने बीमा अधिनियम 1938, जनरल इंश्योरेंस बिज़नेस (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम 1972 तथा बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1999 एवं इनके अंतर्गत दिये गए नियमों एवं विनियमों तहत भारतीय बीमा विनियामक विकास प्राधिकरण (IRDAI) द्वारा पारित आदेशों के विरुद्ध अपील पर सुनवाई की।

सेबी की शक्तियाँ एवं कार्य:

  • सेबी एक अर्ध-विधायी और अर्ध-न्यायिक निकाय है जो विनियमों का मसौदा तैयार कर सकता है, पूछताछ कर सकता है, नियम पारित कर सकता है तथा ज़ुर्माना लगा सकता है।
  • यह तीन श्रेणियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये कार्य करता है-
    • जारीकर्त्ता- एक बाज़ार उपलब्ध कराके जिसमें जारीकर्त्ता अपना वित्त बढ़ा सकते हैं।
    • निवेशक- सही और सटीक जानकारी की आपूर्ति एवं सुरक्षा सुनिश्चित करके।
    • मध्यवर्ती/बिचौलिये- बिचौलियों के लिये एक प्रतिस्पर्द्धी पेशेवर बाज़ार को सक्षम करके।
  • प्रतिभूति कानून (संशोधन) अधिनियम, 2014 द्वारा सेबी अब 100 करोड़ रुपए या उससे अधिक राशि की किसी भी मनी पूलिंग योजना को विनियमित करने तथा गैर-अनुपालन के मामलों में संपत्ति को संलग्न करने में सक्षम है।
  • सेबी के अध्यक्ष के पास "तलाशी/जाँच और ज़ब्ती संबंधी ऑपरेशन" का आदेश देने का अधिकार है। सेबी बोर्ड किसी भी प्रकार के प्रतिभूति लेन-देन के संबंध में किसी भी व्यक्ति या संस्थाओं से टेलीफोन कॉल डेटा रिकॉर्ड जैसी जानकारी भी मांग सकता है।
  • सेबी उद्यम पूंजी कोषों और म्यूचुअल फंड सहित सामूहिक निवेश योजनाओं के कामकाज के पंजीकरण तथा विनियमन का कार्य करता है।
  • यह स्व-नियामक संगठनों को बढ़ावा देने उन्हें विनियमित करने और प्रतिभूति बाज़ारों से संबंधित धोखाधड़ी एवं अनुचित व्यापार प्रथाओं को प्रतिबंधित करने के लिये भी कार्य करता है।

सेबी से संबंधित मुद्दे

  • हाल के वर्षों में सेबी की भूमिका और अधिक जटिल हो गई है।
  • बाज़ार के आचरण के नियमन पर अत्यधिक ध्यान दिया जाता है जबकि विवेकपूर्ण नियमन पर कम।
  • सेबी की वैधानिक प्रवर्तन शक्तियाँ अमेरिका और ब्रिटेन में इसके समकक्षों की तुलना में अधिक हैं क्योंकि गंभीर आर्थिक क्षति के लिये दंड देने के मामले में यह तुलनात्मक रूप से अधिक शक्तिशाली है।
  • यह आर्थिक गतिविधि पर गंभीर प्रतिबंध लगा सकता है, ऐसा निवारक निरोध की तरह संदेह के आधार पर किया जाता है।
  • अधीनस्थ कानून बनाने के लिये सेबी अधिनियम के व्यापक विवेकाधिकार के रूप में इसकी विधायी शक्तियाँ निरपेक्ष हैं।
  • बाज़ार के साथ पूर्व परामर्श का घटक और विनियमों की समीक्षा की एक प्रणाली (जो यह देखने के लिये तैयार की गई है कि क्या विनियम व्यक्त किये गए उदेश्यों को पूरा करते हैं) काफी हद तक अनुपस्थित है। परिणामस्वरूप नियामक का डर व्यापक है।
  • विनियमन, चाहे वे नियम हों या प्रवर्तन, विशेष रूप से इनसाइडर ट्रेडिंग जैसे क्षेत्रों में, परिपूर्णता से बहुत दूर है।

सुझाव

  • वास्तव में एक अभिवृत्तिक परिवर्तन की आवश्यकता है क्योंकि बाज़ार के बारे में सैकड़ों की संख्या में ऐसी जानकारियाँ उपलब्ध हैं जो दर्शाती हैं कि बाज़ार अपराधियों से भरा हुआ है जिसके चलते सख्त कार्रवाई और गंभीर हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है।
  • बाज़ार को और बेहतर कैसे बनाया जाए इस संदर्भ में सेबी को गहन समीक्षा और शोध करने की आवश्यकता है। फंड्स के आकार में वृद्धि कभी भी सफलता का मानक नहीं हो सकती और न ही यह प्रदर्शित कर सकती है कि बाज़ार विनियमन के इस खंड/क्षेत्र में कैसा प्रदर्शन हो रहा है।
  • सेबी का सबसे बड़ा लक्ष्य बाज़ार के इस क्षेत्र में नीति-समष्टि संबंधी परिशोधन होना चाहिये।
  • सेबी को अपने संगठन के अंतर्गत मानव संसाधन और इससे संबंधी मामलों पर विशेष ध्यान देना चाहिये। सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिये सेबी को पार्श्व प्रविष्टि को प्रोत्साहित करना चाहिये। इसका कारण यह है कि सेबी में अग्रिम बाज़ार आयोग (Forward Markets Commission) के विलय के बाद वरिष्ठ कर्मचारियों का संरेखण और निर्धारण एक खुला कार्यक्षेत्र बना हुआ है।
  • निरंतर निगरानी और बाज़ार बुद्धिमत्ता में सुधार के साथ प्रवर्तन को मज़बूत किया जा सकता है। इसके लिये एक प्रतिभा समृद्ध पूल की आवश्यकता है।
  • भारत के वित्तीय बाज़ार एक दूसरे से विभाजित हैं। वित्तीय उत्पादों की ओवरलैपिंग के मामले में एक नियामक को दूसरे की विफलता के लिये दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। इस संदर्भ में एक एकीकृत वित्तीय नियामक, ओवरलैप तथा अपवर्जित सीमाओं दोनों के विषय में उत्पन्न गतिरोध को दूर करने के प्रयास कर सकता है।
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