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सामाजिक न्याय

मनरेगा के तहत काम की मांग में वृद्धि

  • 01 Dec 2020
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना पोर्टल पर नवंबर माह तक उपलब्ध आँकड़ों के हालिया विश्लेषण से ज्ञात होता है कि मनरेगा (MGNREGA) के तहत कार्य की मांग में तेज़ी से वृद्धि हुई है।

प्रमुख बिंदु

  • यह एक मांग आधारित योजना है, जिसने कोरोना वायरस महामारी के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में वापस लौटने वाले बेरोज़गार प्रवासी श्रमिकों को आजीविका प्रदान करने में काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
  • आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि महामारी से संबंधित प्रतिबंधों में ढील देने के बावजूद वित्तीय वर्ष 2020-21 में पहली बार 96 प्रतिशत से अधिक ग्राम पंचायतों में योजना के तहत काम की मांग की गई है।

Panchayats-ratio

  • चालू वित्त वर्ष के दौरान शून्य कार्यदिवस वाली ग्राम पंचायतों की कुल संख्या देश भर में 2.68 लाख यानी केवल 3.42 प्रतिशत है, जो कि बीते आठ वर्षों का सबसे निचला स्तर है।
    • वर्ष 2019 की संपूर्ण अवधि में शून्य कार्यदिवस वाली ग्राम पंचायतों की कुल संख्या 2.64 लाख यानी 3.91 प्रतिशत थी।
  • आँकड़ों की मानें तो अप्रैल माह की शुरुआत से नवंबर माह के अंत तक तकरीबन 6.5 करोड़ घरों (जिनमें 9.42 करोड़ लोग शामिल हैं) को मनरेगा के तहत काम प्रदान किया गया है, जो कि अब तक की सबसे अधिक संख्या है।
    • इस वर्ष अब तक 265.81 करोड़ व्यक्ति दिवस उत्पन्न किये गए, जो कि वर्ष 2019 में उत्पन्न 265.44 करोड़ व्यक्ति दिवस से अधिक है।
    • अक्तूबर 2020 में 1.98 करोड़ परिवारों ने इस योजना का लाभ उठाया, जो वर्ष 2019 की इसी अवधि की तुलना में 82 प्रतिशत अधिक है।
    • मनरेगा (MGNREGA) के तहत काम की सबसे अधिक मांग तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में देखी गई।
  • इस अवधि के दौरान वेतन व्यय भी 53,522 करोड़ रुपए पर पहुँच गया है, जो कि अब तक का सबसे अधिक वेतन व्यय है।
  • तमिलनाडु में जुलाई माह के बाद से पूरे देश में इस कार्यक्रम का लाभ उठाने वाले परिवारों की संख्या सबसे अधिक है, जिसके बाद पश्चिम बंगाल का स्थान है।
    • ध्यातव्य है कि ये दोनों राज्य गरीब कल्याण रोज़गार अभियान के तहत शामिल नहीं थे।

राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (NREGS)

  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम अर्थात् मनरेगा को भारत सरकार द्वारा वर्ष 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 (NREGA-नरेगा) के रूप में प्रस्तुत किया गया था। वर्ष 2010 में नरेगा (NREGA) का नाम बदलकर मनरेगा (MGNREGA) कर दिया गया। 
    • राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (NREGS) का प्रस्ताव इसी अधिनियम के तहत किया गया था।
  • इस अधिनियम के तहत ग्रामीण भारत में प्रत्येक परिवार के अकुशल श्रम करने के इच्छुक वयस्क सदस्यों (18 वर्ष की आयु से अधिक) के लिये 100 दिन का गारंटीयुक्त रोज़गार का प्रावधान किया गया है, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को आजीविका सुरक्षा प्रदान की जा सके।
  • योजना के तहत केंद्र सरकार अकुशल श्रम की पूरी लागत और सामग्री की लागत का 75 प्रतिशत हिस्सा (शेष राज्यों द्वारा वहन किया जाता है) वहन करती है।
  • यह एक मांग-संचालित सामाजिक सुरक्षा योजना है जिसका उद्देश्य ‘काम के अधिकार’ को मूर्त रूप प्रदान करना है।
  • केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा राज्य सरकारों के सहयोग से इस योजना के कार्यान्वयन की निगरानी की जाती है।

गरीब कल्याण रोज़गार अभियान

  • इस अभियान की शुरुआत जून 2020 में देशव्यापी लॉकडाउन के कारण अपने गृह राज्यों में लौटे प्रवासी श्रमिकों और ग्रामीण नागरिकों को आजीविका के अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी।
  • यह कुल 125 दिनों का अभियान था, जिसे कुल 50,000 हज़ार करोड़ रुपए की लागत से मिशन मोड में संचालित किया गया था।
  • इस अभियान के तहत छह राज्यों यथा- बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड तथा ओडिशा से कुल 116 ज़िलों को चुना गया था।
    • आँकड़ों के अनुसार, इन ज़िलों में लॉकडाउन के कारण वापस लौटे प्रवासी श्रमिकों की संख्या सबसे अधिक थी।
    • अभियान के तहत चुने गए कुल ज़िलों में 27 आकांक्षी ज़िले (aspirational districts) भी शामिल थे। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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