जैव विविधता और पर्यावरण
अखिल भारतीय बाघ अनुमान का चौथा चक्र- 2018
- 30 Jul 2019
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चर्चा में क्यों?
29 जुलाई, 2019 को विश्व बाघ दिवस के अवसर पर वर्ष 2018 में हुई बाघों की गणना के चौथे चक्र के आँकड़े जारी किये गए।
प्रमुख बिंदु
- पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अंतर्गत भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India) ने देश भर के टाइगर रिज़र्व, राष्ट्रीय उद्यान (National Park) तथा अभयारण्यों में बाघों की गिनती की।
- सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2018 में भारत में बाघों की संख्या बढ़कर 2,967 हो गई है। यह भारत के लिये एक ऐतिहासिक उपलब्धि है क्योंकि देश ने बाघों की संख्या को दोगुना करने के लक्ष्य को चार साल पहले ही प्राप्त कर लिया है।
- वर्तमान में भारत लगभग 3,000 बाघों के साथ सबसे बड़ा एवं सुरक्षित प्राकृतिक वास बन गया है।
- दुनियाभर में 29 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस के रूप में मनाया जाता है जिसका उद्देश्य बाघों के संरक्षण के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करना है।
- 29 जुलाई, 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग शहर में एक टाइगर समिट के दौरान दुनिया भर के बाघों की घटती संख्या के संदर्भ में एक समझौता किया गया था।
- समझौते के अंतर्गत वर्ष 2022 तक विश्व में बाघों की आबादी दोगुनी करने का लक्ष्य रखा गया था।
चौथे चक्र की रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष
- इस रिपोर्ट के अनुसार, बाघों की संख्या में 33 प्रतिशत की वृद्धि विभिन्न चक्रों के बीच दर्ज अब तक की सर्वाधिक वृद्धि है।
- उल्लेखनीय है कि बाघों की संख्या में वर्ष 2006 से वर्ष 2010 तक 21 प्रतिशत तथा वर्ष 2010 से वर्ष 2014 तक 30 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी।
- बाघों की संख्या में वर्तमान वृद्धि वर्ष 2006 से बाघों की औसत वार्षिक वृद्धि दर के अनुरूप है।
- मध्य प्रदेश में बाघों की संख्या सबसे अधिक 526 पाई गई, इसके बाद कर्नाटक में 524 और उत्तराखंड में इनकी संख्या 442 थी।
- छत्तीसगढ़ और मिज़ोरम में बाघों की संख्या में गिरावट देखने को मिली, जबकि ओडिशा में इनकी संख्या अपरिवर्तनशील रही।
- अन्य सभी राज्यों में सकारात्मक प्रवृत्ति देखने को मिली। बाघों के सभी पाँच प्राकृतिक वासों में उनकी संख्या में वृद्धि देखने को मिली।
- गौरतलब है कि इस नई रिपोर्ट में तीन टाइगर रिज़र्व बक्सा (पश्चिम बंगाल), डंपा (मिज़ोरम) और पलामू (झारखंड) में बाघों के अनुपस्थिति दर्ज की गई है।
बाघों की गणना के लिये अपनाई गई प्रक्रिया
- भारत में बाघों की संख्या का आकलन करने के लिये MK-रीकैप्चर फ्रेमवर्क को शामिल कर दोहरे प्रतिचयन दृष्टिकोण का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में होने वाली उन्नति के साथ समय-समय पर सुधार हुआ है।
- चौथे चक्र के दौरान सरकार की डिजिटल इंडिया पहल के साथ एक एन्ड्रॉयड आधारित एप्लीकेशन-मॉनिटरिंग सिस्टम फॉर टाइगर्स इंटेंसिव प्रोटेक्शन एंड इकोलॉजिकल स्टेट्स (Monitoring system for Tigers’ Intensive Protection and Ecological Status/M-STrIPES) का इस्तेमाल करते हुए आँकड़े एकत्र किये गए तथा एप्लीकेशन के डेस्कटॉप मॉडयूल पर इनका विश्लेषण किया गया।
- इस एप्लीकेशन ने करीब 15 महीने में बड़ी मात्रा में एकत्र किये गए आँकड़ों का विश्लेषण आसान बना दिया।
- इसके अलावा 26,760 स्थानों पर कैमरे लगाए गए, जिनसे वन्य जीवों की 35 मिलियन तस्वीरें प्राप्त की गईं, इनमें से 76,523 तस्वीरें बाघों की थीं।
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करने के कारण थोड़े ही समय में इन चित्रों को अलग करना संभव हुआ।
- जिस तीव्रता से यह कार्य किया गया, उसके परिणामस्वरूप बाघों की 83 प्रतिशत आबादी के आँकड़े एकत्र कर लिये गए। 2,461 बाघों के चित्र प्राप्त किये गए तथा बाघों की केवल 17 प्रतिशत आबादी के बारे में अनुमान लगाया गया।
बाघ अभयारण्य प्रबंध प्रणाली
- बाघ अभयारण्यों के प्रभावी मूल्यांकन प्रबंधन (Management Effectiveness Evaluation of Tiger Reserves- MEETR) के चौथे चक्र की रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश स्थित पेंच बाघ अभयारण्य में बाघों के संरक्षण लिये सबसे अच्छा प्रबंधन पाया गया, जबकि तमिलनाडु स्थित सत्यमंगलम बाघ अभयारण्य में पिछले चक्र के बाद से सबसे अच्छा प्रबंध देखने को मिला, जिसके लिये उसे पुरस्कृत किया गया।
- 42 प्रतिशत बाघ अभयारण्य प्रबंधन श्रेणी में बहुत अच्छी स्थिति में हैं जबकि 34 प्रतिशत अच्छी श्रेणी में तथा 24 प्रतिशत मध्यम श्रेणी में हैं।
- ध्यातव्य है कि चौथे चक्र की मूल्यांकन प्रबंधन रिपोर्ट के तहत किसी भी बाघ अभयारण्य को ‘खराब’ रेटिंग नहीं दी गई है।
- किसी भी बाघ की उपस्थिति दर्ज नहीं किये जाने के बावज़ूद भी डम्पा और पलामू को 'अच्छी’ श्रेणी जबकि बक्सा को ‘बहुत अच्छी’ श्रेणी के अभयारण्य में रखा गया है।
भारतीय वन्यजीव संस्थान
Wildlife Institute of India
- इसकी स्थापना वर्ष 1982 में की गई थी।
- यह पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्तशासी संस्थान है।
- यह प्रशिक्षण पाठ्यक्रम, अकादमिक कार्यक्रम के अलावा वन्यजीव अनुसंधान तथा प्रबंधन में सलाह प्रदान करता है।
- इसका परिसर समस्त भारतवर्ष में जैव-विविधता संबंधी मुद्दों पर उच्च स्तर के अनुसंधान के लिये श्रेष्ठतम ढाँचागत सुविधाओं से सुसज्जित है।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
Ministry of Environment, Forest and Climate Change
- यह भारत की पर्यावरण एवं वानिकी संबंधी नीतियों एवं कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के नियोजन, संवर्द्धन, समन्वय और निगरानी हेतु केंद्र सरकार के प्रशासनिक ढाँचे के अंतर्गत एक नोडल एजेंसी है।
- इसका मुख्य दायित्व देश की झीलों और नदियों, जैव विविधता, वनों एवं वन्यजीवों सहित प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, पशु कल्याण आदि से संबंधित नीतियों तथा कार्यक्रमों का क्रियान्वयन करना है।
- इन नीतियों और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में मंत्रालय सतत् विकास एवं जन कल्याण को बढ़ावा देने के सिद्धांतों का पालन करता है।
- यह मंत्रालय देश में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), दक्षिण एशिया सहकारी पर्यावरण कार्यक्रम (SACEP), अंतर्राष्ट्रीय एकीकृत पर्वत विकास केंद्र (ICIMOD) के लिये तथा पर्यावरण एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCED) के पालन हेतु भी नोडल एजेंसी की तरह कार्य करता है।
- इस मंत्रालय को बहुपक्षीय निकायों और क्षेत्रीय निकायों के पर्यावरण से संबंधित मामले भी सौंपे गए हैं।