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डेली न्यूज़

  • 29 May, 2024
  • 53 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का सेवा क्षेत्र

प्रिलिम्स के लिये:

सेवा क्षेत्र, सकल घरेलू उत्पाद, क्रय प्रबंधक सूचकांक, विनिर्माण क्षेत्र, आर्थिक संकेतक

मेन्स के लिये:

व्यावसायिक विश्वास, आर्थिक संकेतक, सेवा क्षेत्र के लिये चुनौतियाँ और अवसर, सामाजिक सुरक्षा सुवाह्यता एवं सर्वोत्तम प्रथाएँ

स्रोत: इकॉनोमिक्स टाइम्स

चर्चा में क्यों?

मई 2024 में भारत में व्यावसायिक गतिविधि में मज़बूत विस्तार देखा गया, जो प्रमुख सेवा क्षेत्र द्वारा संचालित था, S&P ग्लोबल द्वारा संकलित HSBC के फ्लैश इंडिया कम्पोज़िट क्रय प्रबंधक (PMI) सूचकांक ने रिकॉर्ड निर्यात वृद्धि और लगभग 18 वर्षों में उच्चतम रोज़गार वृद्धि दर का संकेत दिया।

क्रय प्रबंधक सूचकांक:

  • यह एक सर्वेक्षण-आधारित उपाय है जो उत्तरदाताओं से पिछले माह की तुलना में प्रमुख व्यावसायिक चरों के संदर्भ में उनकी धारणा में आए परिवर्तन के संबंध में पूछता है।
  • PMI का उद्देश्य कंपनी के निर्णय निर्माताओं, विश्लेषकों और निवेशकों को वर्तमान तथा भविष्य की व्यावसायिक स्थितियों के बारे में जानकारी प्रदान करना है।
  • इसकी गणना विनिर्माण और सेवा क्षेत्र के लिये अलग-अलग की जाती है, फिर एक समग्र सूचकांक भी तैयार किया जाता है।
  • PMI आँकड़े पर मान 0 से 100 अंकों तक होता है, जिसमें 50 से ऊपर का स्कोर इसके विस्तार को दर्शाता है, 50 से नीचे का स्कोर संकुचन को प्रदर्शित करता है तथा ठीक 50 का स्कोर कोई भी परिवर्तन न होने का प्रतीक है।
  • प्रत्येक माह की शुरुआत में जारी किया जाने वाला और आर्थिक गतिविधि का एक प्रमुख संकेतक माना जाने वाला PMI, IHS मार्किट (S&P ग्लोबल का हिस्सा) द्वारा 40 से अधिक अर्थव्यवस्थाओं के लिये  संकलित किया जाता है, जो सूचना तथा विश्लेषण में एक वैश्विक अग्रणी की अंतर्दृष्टि को दर्शाता है।
  • PMI एक प्रमुख आर्थिक संकेतक है, जिसमें हाई रीडिंग सुदृढ़ विनिर्माण (Strong Manufacturing) और सेवा क्षेत्र के प्रदर्शन एवं आर्थिक विकास का संकेत देती है, जबकि लो रीडिंग सेक्टर संघर्ष एवं संभावित आर्थिक मंदी का सुझाव देती है।
  • फ्लैश मैन्युफैक्चरिंग PMI किसी देश में होने वाले विनिर्माण का अनुमान है, जो हर महीने कुल क्रय प्रबंधक सूचकांक (PMI) सर्वेक्षण प्रतिक्रियाओं के लगभग 85% से 90% पर आधारित है।

सेवा क्षेत्र क्या है?

  • परिचय:
    • सेवा क्षेत्र में वित्त, बैंकिंग, बीमा, रियल एस्टेट, दूरसंचार, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, पर्यटन, आतिथ्य, आईटी और BPO जैसी अमूर्त सेवाएँ प्रदान करने वाले उद्योग शामिल हैं।
  • भारत के सेवा क्षेत्र का योगदान:
    • सेवा क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 50% से अधिक का योगदान देता है।
      • जबकि कोविड-19 महामारी ने अर्थव्यवस्था के अधिकांश क्षेत्रों को नुकसान पहुँचाया है, सेवा क्षेत्र इनमें सर्वाधिक रूप से प्रभावित हुआ है, क्योंकि भारत के सकल मूल्य वर्द्धन (Gross Value Added - GVA) में इसकी हिस्सेदारी वर्ष 2019-20 में 55% से घटकर 2021-22 में 53% हो गई है।
    • भारत सॉफ्टवेयर सेवाओं के लिये एक प्रमुख निर्यात केंद्र है। भारतीय IT आउटसोर्सिंग सेवा बाज़ार में 2021 और 2024 के बीच 6-8% की वृद्धि होने का अनुमान है।
    • सितंबर 2023 में भारत ने वैश्विक नवाचार सूचकांक (Global Innovation Index- GII) में अपनी 40वीं रैंक बरकरार रखी, जो तकनीकी रूप से गतिशील और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कारोबार की जाने वाली सेवाओं की सफल प्रगति को प्रदर्शित करता है।
    • अप्रैल 2000 से दिसंबर 2023 के बीच भारतीय सेवा क्षेत्र 108 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के FDI प्रवाह का सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता था।

भारत के फ्लैश कम्पोज़िट PMI की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • समग्र PMI में वृद्धि: भारत के लिये फ्लैश कम्पोज़िट (Flash Composite) क्रय प्रबंधक सूचकांक (Purchasing Managers' Index- PMI) अप्रैल 2024 में 61.5 से बढ़कर मई 2024 में 61.7 हो गया, जो मज़बूत आर्थिक गतिविधि का संकेत देता है।
  • नौकरियों में तीव्र विस्तार: मई 2024 में निजी क्षेत्र की नौकरियों में सितंबर 2006 के बाद सबसे तीव्र विस्तार देखा गया, जो नए ऑर्डरों और क्षमता दबावों में मज़बूत वृद्धि के कारण हुआ।
  • निर्यात आदेश: विनिर्माण और सेवा दोनों क्षेत्रों में नए एक्सपोर्ट ऑर्डर में रिकॉर्ड स्तर पर वृद्धि देखी गई, जो सितंबर 2014 में शृंखला शुरू होने के बाद से सबसे तीव्र वृद्धि है।
  • इनपुट लागत और कीमतें: इनपुट लागत में तेज़ी से वृद्धि हुई, जिससे भारतीय वस्तुओं तथा सेवाओं के लिये लगाए जाने वाले मूल्य बढ़ गए, जिससे विशेष रूप से सेवा प्रदाताओं हेतु मार्जिन में कमी आई।

भारत के सेवा उद्योग से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • अपर्याप्त भौतिक अवसंरचना: अपर्याप्त परिवहन नेटवर्क के कारण देरी होती है और व्यय बढ़ता है (भारत में रसद लागत सकल घरेलू उत्पाद का 14% है), जो विकसित देशों के औसत से दोगुना है।
  • डिजिटल अवसंरचना: ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित हाई-स्पीड इंटरनेट पहुँच तथा साइबर सुरक्षा और डेटा संरक्षण से संबंधित चिंताएँ, जो ग्राहकों के विश्वास व अंतर्राष्ट्रीय अनुपालन मानकों को प्रभावित कर रही हैं।
    • उदाहरण के लिये 2019 में भारतीय रेलवे खानपान और पर्यटन निगम (Indian Railways Catering and Tourism Corporation- IRCTC) में हुए एक बड़े डेटा उल्लंघन ने लाखों उपयोगकर्त्ताओं की व्यक्तिगत जानकारी को उजागर कर दिया।
  • कौशल विकास: शैक्षणिक पाठ्यक्रम का उद्योग जगत की आवश्यकताओं के साथ तालमेल न होना और अपर्याप्त व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यबल की कमी (विश्व बैंक के अनुसार, 22% स्नातक कौशल अनुपयुक्त के कारण बेरोज़गार माने जाते हैं) को बढ़ाता है।
  • रोज़गार कार्यप्रणाली: कठोर श्रम कानून नियुक्ति और बर्खास्तगी में लचीलेपन के रूप में बाधा डालते हैं, जबकि कई सेवा नौकरियों में कम वेतन मिलता है और नौकरी की सुरक्षा का अभाव होता है, जिससे कभी-कभी बड़े पैमाने पर छँटनी होती है।
  • कराधान संबंधी मुद्दे: अनेक करों और अनुपालन आवश्यकताओं के कारण व्यवसायों का प्रशासनिक बोझ बढ़ जाता है, और यद्यपि वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax- GST) का उद्देश्य प्रणाली को सरल बनाना था, लेकिन इसका कार्यान्वयन कई सेवा प्रदाताओं के लिये चुनौतीपूर्ण रहा है।
  • घरेलू प्रतिस्पर्द्धा: अनेक SME के बीच तीव्र प्रतिस्पर्द्धा लाभप्रदता को सीमित करती है, जबकि सेवा उद्योग में असंगठित क्षेत्र के कारण सेवा की गुणवत्ता और मानकों में असंगति उत्पन्न होती है।
    • इसके अलावा भारतीय सेवा क्षेत्र में स्पष्ट अपस्ट्रीम-डाउनस्ट्रीम विभेद और स्वदेशी मूल का अभाव होने के कारण, स्थानीय सांस्कृतिक एवं आर्थिक विशेषताओं को अपनाने के बजाय विदेशी ढाँचे जैसा दिखने का जोखिम है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा: IT और वित्त जैसे क्षेत्रों में स्थापित वैश्विक कंपनियों की उपस्थिति स्थानीय फर्मों के लिये प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाती है, जबकि विदेशों में संरक्षणवादी उपाय भारतीय सेवा निर्यातकों हेतु बाज़ार तक पहुँच को प्रतिबंधित कर सकते हैं।
    • उदाहरण के लिये अमेरिका H-1B वीज़ा कोटा लागू करता है, जिससे भारतीय IT कंपनियों के लिये अमेरिका में परियोजनाओं पर कार्य करने हेतु कुशल श्रमिकों को भेजना कठिन हो जाता है।
  • वित्तीय पहुँच: किफायती वित्त तक सीमित पहुँच सेवा प्रदाताओं के लिये विकास एवं विस्तार को अवरुद्ध करती है, अनुसंधान और विकास में होने वाले निवेश में बाधा डालती है तथा नवाचार एवं प्रतिस्पर्द्धा को प्रभावित करती है। 
    • इससे पारंपरिक भौतिक प्रतिष्ठानों और उनके डिज़िटल समकक्षों के बीच प्रतिस्पर्द्धा एवं बाज़ार पहुँच में असमानता बढ़ जाती है।

सेवा क्षेत्र में भारत के लिये संभावित अवसर क्या हैं?

  • IT-BPO(Business Process Outsourcing)/ फिनटेक: यह क्षेत्र भारत में एक प्रमुख नियोक्ता और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में योगदान देने वाला क्षेत्र है, जिसमें कुशल IT पेशेवरों की बड़ी संख्या तथा फिनटेक उद्योग के लिये सरकारी समर्थन से विकास की संभावनाएँ बढ़ रही हैं।
  • स्वास्थ्य सेवा एवं पर्यटन: भारत का तेजी से बढ़ता स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र, बढ़ती उम्रदराज आबादी, बढ़ती प्रयोज्य आय और तेज़ी से बढ़ते चिकित्सा पर्यटन उद्योग द्वारा संचालित है, जो विकसित देशों की तुलना में कम लागत पर उच्च गुणवत्ता वाली देखभाल प्रदान करता है।
  • लॉजिस्टिक्स और परिवहन: भारत के अविकसित लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि की संभावनाएँ हैं, जिसे सरकारी बुनियादी ढाँचे में निवेश से बल मिलेगा, जिससे लॉजिस्टिक्स और परिवहन कंपनियों के लिये अवसरों का सृजन होगा।
  • शिक्षा: भारत की विस्तृत युवा आबादी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बढ़ती मांग ऑनलाइन शिक्षा एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण सेवाएँ प्रदान करने वाली कंपनियों के लिये विभिन्न अवसर उत्पन्न कर रही है।
  • पेशेवर सेवाएँ: भारत में लेखांकन, कानून और परामर्श जैसे क्षेत्रों में कुशल पेशेवरों की संख्या में वृद्धि, व्यवसायों को पेशेवर सेवाएँ प्रदान करने वाली कंपनियों के लिये पर्याप्त अवसर उत्पन्न कर रही है।

आगे की राह.

  • सामाजिक सुरक्षा पोर्टेबिलिटी: एक पोर्टेबल सामाजिक सुरक्षा प्रणाली डिज़ाइन करने की आवश्यकता है जो जो औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्रों के बीच संक्रमण करने वाले गिग श्रमिकों तथा लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करती है।
  • उद्यमिता और नवाचार: उद्योग-विशिष्ट स्टार्टअप्स इनक्यूबेटरों और त्वरकों की स्थापना करना तथा आशाजनक स्टार्टअप्स के लिये प्रारंभिक चरण के वित्त पोषण प्रदान हेतु एंजेल निवेशकों के नेटवर्क का विस्तार करना।
  • अधिकारहीन समुदायों के लिये लक्षित कार्यक्रम: SMILE अभियान की तरह, अधिकारहीन समुदायों से संबंधित व्यक्तियों के लिये लक्षित कौशल विकास कार्यक्रमों को कार्यान्वित करने की आवश्यकता है, जिससे समावेशिता सुनिश्चित हो और सक्रिय कार्यबल में भागीदारी को बेहतर किया जा सके।
  • एआई और ऑटोमेशन रीस्किलिंग: एआई, रोबोटिक्स और डेटा साइंस में प्रशिक्षण प्रदान करके ऑटोमेशन (सेंसर, नियंत्रण एवं एक्चुएटर्स का एक एकीकरण) के उदय के लिये कार्यबल को गठित करने की आवश्यकता है, जिससे श्रमिक, इस बदलते नौकरी बाज़ार के लिये अनुकूल हो सकेंगे तथा उनका विकास सुनिश्चित हो सकेगा।
  • दूरस्थ कार्य (Remote Work) अवसरों को सुविधाजनक बनाना: दूरस्थ कार्य को सुविधाजनक बनाने के लिये कंपनियों द्वारा प्रौद्योगिकी को अपनाने को बढ़ावा देना, शहरी केंद्रों के बाहर रहने वाले लोगों के लिये रोज़गार की पहुँच बढ़ाना और बेहतर कार्य-जीवन संतुलन को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
  • सर्वोत्तम प्रथाएँ: पेरू की राष्ट्रीय रणनीति से प्राप्त जानकारियों का लाभ उठाकर, अनौपचारिक कामगारों को आधिकारिक क्षेत्र में स्थानांतरण हेतु प्रेरित करने के लिये उपायों को कार्यान्वित करने की आवश्यकता है। इसके अंतर्गत, राज्य, व्यापार, शिक्षा संस्थान, कर्मचारी, नागरिक समाज और आदिवासी लोगों सहित विभिन्न हिस्सेदारों को शामिल किया जाना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत के सेवा क्षेत्र के समक्ष आने वाली विभिन्न चुनौतियों पर चर्चा कीजिये, साथ ही इनसे निपटने के उपाय भी सुझाइए।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. S&P 500 किससे संबंधित है? (2008)

(a) सुपरकंप्यूटर
(b) ई-बिज़नेस में एक नई तकनीक
(c) पुल निर्माण में एक नई तकनीक
(d) बड़ी कंपनियों के शेयरों का एक सूचकांक

उत्तर: (d)


प्रश्न. 'आठ मूल उद्योगों के सूचकांक (इंडेक्स ऑफ एट कोर इंडस्ट्रीज़)' में निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है? (2015)

(a) कोयला उत्पादन
(b) विद्युत् उत्पादन
(c) उर्वरक उत्पादन
(d) इस्पात उत्पादन

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न1. "सुधारोत्तर अवधि में सकल-घरेलू-उत्पाद (जी.डी.पी.) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती गई है।" कारण बताइए। औद्योगिक-नीति में हाल में किये गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं? (2017)

प्रश्न2. सामान्यतः देश कृषि से उद्योग और बाद में सेवाओं को अंतरित होते हैं पर भारत सीधे ही कृषि से सेवाओं को अंतरित हो गया है। देश में उद्योग के मुकाबले सेवाओं की विशाल संवृद्धि के क्या कारण हैं? क्या भारत सशक्त औद्योगिक आधार के बिना एक विकसित देश बन सकता है? (2014)


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत के अनौपचारिक श्रम बाज़ार में सुधार

प्रिलिम्स के लिये:

असंगठित क्षेत्र बनाम संगठित क्षेत्र, श्रम बल भागीदारी, भारत में अनौपचारिक श्रम बाज़ार की स्थिति, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, आयुष्मान भारत- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, ई-श्रम पोर्टल,

मेन्स के लिये:

भारत में असंगठित श्रमिक और संबंधित पहल

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

भारत का श्रम बाज़ार एक विशाल अनौपचारिक क्षेत्र के द्वारा चिह्नित है, जिसमें औपचारिक रोज़गार संरचना के बाहर से कार्यरत लगभग 400 मिलियन कामगार हैं।

  • अनौपचारिक कार्यबल देश के सकल घरेलू उत्पाद में आधे से अधिक का योगदान देता है। हालाँकि, निम्न आय वाले और अर्ध-कुशल श्रमिकों की व्यापकता औपचारिकरण एवं न्यायसंगत अवसरों की दिशा में संरचनात्मक बदलाव की तत्काल आवश्यकता को उजागर करती है।

नोट:

  • श्रम आपूर्ति: यह विभिन्न मज़दूरी दरों पर कार्य करने के इच्छुक व्यक्तियों की संख्या को संदर्भित करता है। यह मौज़ूदा मज़दूरी दर पर निर्भर करता है।
  • श्रम बल: यह वास्तव में काम करने वाले या काम करने के इच्छुक व्यक्तियों की संख्या को संदर्भित करता है।
    • यह मज़दूरी दर पर निर्भर नहीं करता है तथा इसे दिनों की संख्या के आधार पर मापा जाता है।
  • कार्यबल: यह वास्तव में काम करने वाले व्यक्तियों की संख्या को संदर्भित करता है।
    • इस विधि में उन व्यक्तियों को शामिल नहीं किया गया है जो काम करने के इच्छुक हैं लेकिन उन्हें रोज़गार नहीं मिल रहा है।

औपचारिक और अनौपचारिक श्रम बाज़ार में क्या अंतर है?

पहलू

औपचारिक श्रम बाज़ार

अनौपचारिक श्रम बाज़ार

परिभाषा

कानूनी मान्यता और विनियमन के अनुपालन के साथ संगठित क्षेत्र।

असंगठित क्षेत्र में औपचारिक मान्यता और विनियमन का अभाव है तथा श्रम कानूनों का न्यूनतम पालन होता है।

रोज़गार के प्रकार

निश्चित कार्य घंटे, स्थायी, संविदात्मक समझौते या अस्थायी नौकरियाँ।

(इसमें अंशकालिक कार्य और स्व-रोज़गार भी शामिल हैं)।

आकस्मिक, घरेलू कामगार, दैनिक मज़दूरी, अंशकालिक कर्मचारी या स्वरोज़गार।

नौकरी की सुरक्षा

श्रम कानूनों के कारण सामान्यतः नौकरी की सुरक्षा अधिक होती है।

नौकरी की न्यूनतम सुरक्षा; छँटनी का खतरा।

वेतन और लाभ

निश्चित वेतन, लाभ (जैसे, भविष्य निधि, बीमा)।

परिवर्तनशील वेतन, सीमित लाभ।

सामाजिक सुरक्षा

सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिये पात्र (जैसे, पेंशन)।

सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों तक सीमित पहुँच

कार्य की स्थिति

बेहतर कार्य स्थितियाँ (जैसे, सुरक्षा मानक)।

अक्सर खराब कार्य स्थितियाँ (जैसे, सुरक्षा उपायों की कमी)।

ट्रेड यूनियन

सक्रिय ट्रेड यूनियनें और सामूहिक सौदेबाज़ी।

सीमित संघीकरण और कमज़ोर सौदेबाज़ी शक्ति।

सेक्टर उदाहरण

विनिर्माण, IT, वित्त, सरकारी नौकरियाँ।

सड़क विक्रेता, घरेलू कामगार, कृषि।

श्रम बाज़ार की वर्तमान स्थिति क्या है? 

  • अनौपचारिक अर्थव्यवस्था की वैश्विक स्थिति:
    • वैश्विक कार्यबल का 60% से अधिक हिस्सा तथा विश्व भर के 80% उद्यम अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में कार्य करते हैं।
    • 2 अरब से अधिक श्रमिक अनौपचारिक रोज़गार के माध्यम द्वारा अपनी आजीविका अर्जित करते हैं।
    • अनौपचारिक रोज़गार का तात्पर्य है:
      • निम्न आय वाले देशों में कुल रोज़गार का 90%।
      • मध्यम आय वाले देशों में कुल रोज़गार का 67%।
      • उच्च आय वाले देशों में कुल रोज़गार का 18%।
    • वर्ष 2010 से 2016 तक उप-सहारा अफ्रीका, यूरोप, मध्य एशिया, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन में अनौपचारिक कार्य ने सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 40% का योगदान दिया।
  • भारत की स्थिति:
    • भारत के अनौपचारिक श्रम बाज़ार में देश का लगभग 85% कार्यबल संलग्न है।
      • इस अनौपचारिक कार्यबल का 90% से अधिक हिस्सा स्वरोज़गार या आकस्मिक मज़दूर के रूप में कार्य करता है।
    • अनौपचारिक क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आधे से अधिक भाग उत्पन्न करता है।
    • ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत 27.69 करोड़ अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों में से 94% से अधिक की मासिक आय 10,000 रुपए या उससे भी कम है और नामांकित कार्यबल का 74% से अधिक अनुसूचित जाति ( Scheduled Castes-SC), अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes- ST) व अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Classes-OBC) से संबंधित है।
      • सामान्य श्रेणी के श्रमिकों का अनुपात 25.56% है।
    • पंजीकृत अनौपचारिक श्रमिकों में से लगभग 94% की मासिक आय 10,000 रुपए या उससे कम है, जबकि 4.36% की मासिक आय 10,001 रुपए से 15,000 रुपए के बीच है।

अनौपचारिक श्रम बाज़ार द्वारा उत्पन्न चुनौतियाँ क्या हैं?

  • अनिश्चित रोज़गार: कृषि मज़दूरों और सड़क विक्रेताओं 
  • के कारण मौसमी बेरोज़गारीनिम्न मज़दूरी का सामना करना पड़ता है, जिससे आय असमानता तथा निर्धनता में वृद्धि होती है।
  • सतत् आजीविका: अनौपचारिक कार्यबल के लिये सतत् आजीविका और समान अवसर सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण है।
  • सामाजिक भेद्यता: बड़े परिवार कृषि मज़दूरों पर भार डालते हैं, जबकि निम्न आय के कारण घरेलू कामगार और सड़क पर सामान बेचने वाले लोगों को निचले सामाजिक दर्जे के चक्र में फँसा देती है। इससे सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा और अन्य बुनियादी अधिकारों तक उनकी पहुँच सीमित हो जाती है।
  • व्यावसायिक जोखिम: अपशिष्ट बीनने वालों व पुनर्चक्रण संबंधी करने वालों को असंगत कामकाज़ी परिस्थितियों और अपर्याप्त सुरक्षा उपायों के कारण स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों का सामना करना पड़ता है। इस क्षेत्र में बाल श्रम भी प्रचलित है।
  • संस्थागत चुनौतियाँ: अनौपचारिक श्रमिकों में कानूनी संरक्षण का अभाव है तथा वे अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न के प्रति संवेदनशील हैं।

अनौपचारिक मज़दूरों के लिये सरकारी योजनाएँ क्या हैं?

असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008:

  • कवरेज: यह अधिनियम अनौपचारिक श्रमिकों को परिभाषित करता है और उनका समर्थन करने का लक्ष्य रखता है, जिनके पास नियमित रोज़गार एवं सामाजिक सुरक्षा लाभ नहीं हैं।
  • लाभ: यह अधिनियम केंद्र व राज्य सरकारों को जीवन बीमा, विकलांगता कवरेज, स्वास्थ्य देखभाल, मातृत्व सहायता और यहाँ तक ​​कि शिक्षा तथा आवास में सहायता जैसे विभिन्न लाभ प्रदान करने वाली योजनाओं को किर्यान्वित करने का अधिकार देता है।
  • शासन: इन योजनाओं के कार्यान्वयन पर सलाह देने और निगरानी करने तथा उचित क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय और राज्य सामाजिक सुरक्षा बोर्ड स्थापित किये गए हैं।
  • पंजीकरण: अधिनियम के अनुसार ज़िला प्रशासन द्वारा अनौपचारिक श्रमिकों का पंजीकरण अनिवार्य है।
  • सुगम्यता: श्रमिक सुविधा केंद्रों की परिकल्पना सूचना प्रदान करने तथा श्रमिकों को अधिनियम के तहत प्रस्तावित विभिन्न योजनाओं तक पहुँच बनाने में सहायता करने के लिये की गई है।

आगे की राह

  • सार्वभौमिक कवरेज: ई-श्रम पोर्टल का लाभ उठाना और उद्योग संघों के साथ सहयोग करके धीरे-धीरे 400 मिलियन से अधिक अनौपचारिक कार्यबल को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में नामांकित करना।
  • पंजीकरण प्रक्रिया को सरल बनाना: अनौपचारिक व्यवसायों के लिये पंजीकरण प्रक्रिया को सरल बनाने से उन्हें और उनमें संलग्न श्रमिकों को औपचारिक अर्थव्यवस्था में एकीकृत करने में सहायता मिल सकती है।
  • स्वयं सहायता समूह (SHG) आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने और अनौपचारिक श्रमिकों के लिये कार्य स्थितियों में सुधार लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  • श्रम संहिताओं का कार्यान्वयन: वर्तमान चुनौतियों से निपटने के लिये चार समेकित श्रम संहिताओं (मज़दूरी, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा, व्यावसायिक सुरक्षा) को तेज़ी से लागू किया जाना चाहिये।
  • आवश्यकता-आधारित समर्थन:
    • अनुकूलित योजनाएँ: सड़क विक्रेताओं, कृषि मज़दूरों और निर्माण श्रमिकों जैसे विविध श्रमिक समूहों के लिये विशिष्ट सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम डिज़ाइन करना।
    • अनौपचारिक श्रमिकों को भी मातृत्व लाभ, दुर्घटना एवं मृत्यु मुआवज़ा, शिक्षा एवं अभावग्रस्त अवधि के दौरान आजीविका के अवसर प्रदान करना।
  • कौशल विकास और औपचारिकीकरण:
    • कौशल उन्नयन: अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों को प्रासंगिक कौशल से सुसज्जित करना ताकि उनकी रोज़गार क्षमता में वृद्धि हो सके तथा उन्हें औपचारिक क्षेत्र में स्थानांतरित किया जा सके।
    • औपचारिकीकरण प्रोत्साहन: श्रम बाज़ार के औपचारिकीकरण को प्रोत्साहित करने के लिये नीतिगत परिवर्तन और आकर्षक योजनाएँ लागू करना।
    • रोज़गार सेवाओं के लिये GST में कमी: रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने के लिये रोज़गार सेवाओं के GST दर में कमी (जैसे, 18% के बजाय 5%) के साथ "योग्यता सेवाओं" के रूप में माना जाना चाहिये।
    • रोज़गार के लिये कौशल: कौशल पहल को सीधे रोज़गार के अवसरों से जोड़ना।
  • शिकायत निवारण तंत्र: अनौपचारिक श्रमिकों की शिकायतों को एक सुलभ एवं आधिकारिक निगरानी तंत्र के माध्यम से नियमित रूप से सुना जाना चाहिये और उनका तत्काल निवारण किया जाना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

भारत के अनौपचारिक श्रम बाज़ार के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और समान अवसर तथा स्थायी आजीविका सुनिश्चित करने में कार्यबल के औपचारिकीकरण के महत्त्व की जाँच कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. प्रधानमंत्री MUDRA योजना का लक्ष्य क्या है? (2016) 

(a) लघु उद्यमियों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में लाना
(b) निर्धन कृषकों को विशेष फसलों की कृषि के लिये ऋण उपलब्ध कराना
(c) वृद्ध एवं निस्सहाय लोगों को पेंशन प्रदान करना
(d) कौशल विकास एवं रोज़गार सृजन में लगे स्वयंसेवी संगठनों का निधियन करना

उत्तर: (a) 


प्रश्न. प्रच्छन्न बेरोज़गारी का सामान्यतः अर्थ है कि:  (2013)

(a) लोग बड़ी संख्या में बेरोज़गार रहते हैं,
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है,
(c) श्रमिक की सीमांत उत्पादकता शून्य है,
(d) श्रमिकों की उत्पादकता नीची है,

उत्तर: (c)


मेन्स: 

प्रश्न: भारत में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धतियों का परीक्षण कीजिये और सुधार के सुझाव दीजिये। (2023)


शासन व्यवस्था

भारतीय उच्च शिक्षा का अति-राजनीतिकरण

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय उच्च शिक्षा, कुलपति, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद

मेन्स के लिये:

भारतीय उच्च शिक्षा में राजनीतिक हस्तक्षेप, शैक्षणिक स्वतंत्रता और स्वायत्तता

स्रोत द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

भारतीय उच्च शिक्षा का राजनीतिक एजेंडों के साथ जुड़ने का एक लंबा इतिहास रहा है। हाल के वर्षों में यह प्रवृत्ति और भी तीव्र हो गई है, जिसका प्रभाव शैक्षणिक जीवन एवं संस्थागत अखंडता के विभिन्न पहलुओं पर पड़ रहा है।

राजनीति ने भारतीय उच्च शिक्षा को किस प्रकार आकार दिया है?

  • राजनीतिक आधार: भारतीय उच्च शिक्षा संस्थान लंबे समय से राजनीतिक एजेंडों से प्रभावित रहे हैं, राजनेता अपने कॅरियर को बेहतर बनाने के लिये समय-समय पर कॉलेजों की स्थापना करते रहे हैं।
  • मतदाताओं की मांगें: मतदाताओं की सामाजिक-सांस्कृतिक मांगों को पूरा करने के लिये कई संस्थाओं का निर्माण किया गया है, जो भारतीय समाज की विविध और जटिल प्रकृति को दर्शाती हैं।
    • सरकारों ने शैक्षणिक संस्थानों को राजनीतिक रूप से लाभप्रद स्थानों पर स्थापित किया है, जो अक्सर सामाजिक-सांस्कृतिक मांगों को पूरा करते हैं।
  • नामकरण और पुनर्नामकरण: विश्वविद्यालयों का नामकरण और पुनर्नामकरण, विशेष रूप से राज्य सरकारों द्वारा, अक्सर राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित होता है।
    • उदाहरण: उत्तर प्रदेश तकनीकी विश्वविद्यालय (UPTU), लखनऊ का नाम कई बार बदला गया।
  • नियुक्तियाँ और पदोन्नतियाँ: शैक्षणिक नियुक्तियाँ और पदोन्नतियाँ कभी-कभी अभ्यर्थियों की योग्यता एवं गुणों के बजाय राजनीतिक विचारों से प्रभावित होती हैं।
    • कई भारतीय राज्य विश्वविद्यालयों के लिये राज्य के राज्यपाल को कुलाधिपति नियुक्त करने पर असहमति जता रहे हैं।
  • शैक्षणिक स्वतंत्रता: हालाँकि शैक्षणिक स्वतंत्रता के मानदंडों का हमेशा सख्ती से पालन नहीं किया गया है, विशेषकर स्नातक महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों ने अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों का पालन किया है, जिससे प्रोफेसरों को पढ़ाने, शोध करने और शोध पत्रों को स्वतंत्र रूप से प्रकाशित करने की अनुमति दी गई है।
    • सेल्फ-सेंसरशिप विशेष रूप से सामाजिक विज्ञान और मानविकी में प्रचलित हो रही है। प्रमुख शिक्षाविदों को विवादास्पद सामग्री प्रकाशित करने के लिये हानिकारक परिणाम भुगतने पड़े हैं।

भारत में उच्च शिक्षा:

  • भारत में उच्च शिक्षा से तात्पर्य 12 वर्ष की स्कूली शिक्षा के बाद प्रदान की जाने वाली तृतीयक स्तर की शिक्षा से है।
  • भारत में 58,000 से अधिक उच्च शिक्षा संस्थानों के साथ विश्व की दूसरी सबसे बड़ी उच्च शिक्षा प्रणाली मौज़ूद है।
  • वर्तमान में भारत में उच्च शिक्षा के लिये 43.3 मिलियन छात्र नामांकित हैं। लगभग 79% विद्यार्थी स्नातक पाठ्यक्रमों में नामांकित हैं, जबकि 12% विद्यार्थियों ने स्नातकोत्तर (मास्टर डिग्री) के लिये नामांकन दर्ज़ किया है। केवल 0.5% विद्यार्थी PhD के लिये अध्ययन कर रहे हैं, जबकि बाकी अधिकांश उप-डिग्री (Sub-Degree) डिप्लोमा कार्यक्रमों के तहत अध्ययनरत हैं।
    • सबसे लोकप्रिय स्नातक विषय क्षेत्र कला (34%) है, इसके बाद विज्ञान (15%), वा णिज्य (13%), और इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी (12%) हैं। 
    • स्नातकोत्तर स्तर पर, शीर्ष विषय क्षेत्र सामाजिक विज्ञान (21%) है, उसके बाद विज्ञान (15%) और प्रबंधन (14%) हैं। PhD स्तर के लिये इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी (25%) में सबसे अधिक छात्र नामांकित हैं, उसके बाद विज्ञान (21%) का स्थान आता है।
  • उच्च शिक्षा भागीदारी दर (GER) बढ़कर 28.4% हो गई है, जो वर्ष 2020-21 से 1.1% अधिक है।
    • उच्चतम GER वाले शीर्ष राज्य/केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़, पुडुचेरी, दिल्ली, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, केरल और तेलंगाना हैं।
  • वर्ष 2021-22 में भारतीय संस्थानों में विदेशी छात्रों की कुल संख्या लगभग 46,000 थी।

शिक्षा के अत्यधिक राजनीतिकरण के परिणाम क्या हैं?

  • शैक्षणिक स्वतंत्रता में कमी: इस बात को लेकर चिंता बढ़ रही है कि राजनीतिक प्रभाव शैक्षणिक स्वतंत्रता को कमज़ोर कर सकता है, जिससे संकाय और छात्रों पर राजनीतिक विचारधारा के साथ जुड़ने का दबाव पड़ सकता है।
    • पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय की अध्यक्ष लिज़ मैगिल ने कॉलेज परिसरों में यहूदी-विरोधी भावना के मुद्दे पर अमेरिकी कॉन्ग्रेस समिति के समक्ष गवाही दी। फिर धनी दानदाताओं और पूर्व छात्रों के दबाव में आकर उन्होंने त्यागपत्र दे दिया।
  • वैश्विक प्रतिष्ठा: राजनीतिकरण वाला शैक्षणिक माहौल प्रतिभाशाली छात्रों और शिक्षकों को भारतीय संस्थानों में दाखिला लेने या कार्य करने से हतोत्साहित कर सकता है। यह उच्च शिक्षा में वैश्विक नेता बनने के भारत के प्रयासों में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
  • विचारों की विविधता में कमी: जब राजनीतिक एजेंडा अकादमिक चर्चा पर हावी हो जाता है, तो इससे खुली बहस में बाधा उत्पन्न होती है और वैकल्पिक दृष्टिकोण का अन्वेषण करने में अरुचि उत्पन्न हो जाती है।
  • छात्र सक्रियता की संभावना: राजनीतिकरण बढ़ने से छात्र सक्रियता राजनीतिक दल के साथ या उसके विरुद्ध हो सकती है। हालाँकि छात्र सक्रियता सकारात्मक भी हो सकती है, लेकिन अगर यह अत्यधिक राजनीतिक हो जाए तो यह शैक्षणिक जीवन को बाधित भी कर सकती है।
  • शिक्षा क्षेत्र में सार्वजनिक विश्वास का ह्रास: जब विश्वविद्यालयों को राजनीतिक खेलों में मोहरे के रूप में देखा जाता है, तो शैक्षिक शोध के मूल्य और निष्पक्षता में लोक विश्वास भंग हो सकता है। यह सार्वजनिक नीति को आकार देने में शैक्षिक विशेषज्ञता की वैधता को कमज़ोर करता है।
  • शोध वित्तपोषण में कमी: अल्पकालिक एजेंडा वाले राजनेताओं द्वारा अनिश्चित वाणिज्यिक अनुप्रयोगों वाली दीर्घकालिक शोध परियोजनाओं में निवेश करने की संभावनाएँ कम हो सकती हैं।
    • इससे नवाचार और वैश्विक ज्ञान अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्द्धा करने की भारत की क्षमता बाधित हो सकती है।
  • रोज़गार में कमी: नियोक्ता आलोचनात्मक सोच, समस्या-समाधान और अनुकूलनशीलता जैसे कौशल को अधिक महत्त्व देते हैं। एक अति-राजनीतिक शिक्षा जो इन कौशलों पर विचारधारा को प्राथमिकता देती है, स्नातकों को कार्यबल के लिये असमर्थ बना सकती है।

राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करने के लिये क्या किया जा सकता है?

  • संस्थागत स्वायत्तता: अनुचित प्रभाव का विरोध करने के लिये संस्थागत स्वायत्तता को मज़बूत करना आवश्यक है। विश्वविद्यालयों को सरकारी निधियों पर निर्भरता कम करने के लिये वित्तपोषण स्रोतों में विविधता लाने हेतु प्रोत्साहित करना।
    • शैक्षिक स्वतंत्रता को एक अटूट सिद्धांत के रूप में बनाए रखना तथा स्वतंत्र विचार-विमर्श और अनुसंधान सुनिश्चित करना।
    • स्वायत्त विश्वविद्यालय बोर्ड की स्थापना करना, जिससे उच्च शोध गुणवत्ता को बढ़ावा मिले, विशेष रूप से उन विषयों में जो राजनीतिक प्रभाव के प्रति संवेदनशील हों।
    • विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों के लिये भारत के प्रयासों के अनुरूप, संस्थानों को स्वायत्त दर्ज़ा प्राप्त करने का प्रयास करना।
      • इससे उन्हें नवीन पाठ्यक्रम तैयार करने, विविध वित्तपोषित स्रोतों की तलाश करने और UGC अधिनियम 2017 के तहत उत्कृष्ट संस्थानों के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिये प्रतिस्पर्द्धा करने का अधिकार मिलता है, जिससे अंततः भारत में उच्च शिक्षा का परिदृश्य अधिक गतिशील एवं प्रतिस्पर्द्धी हो जाता है।
    • शैक्षिक, प्रशासनिक और वित्तीय मामलों में उच्च शिक्षा संस्थानों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करने के लिये राष्ट्रीय ज्ञान आयोग (National Knowledge Commission- NKC), वर्ष 2005 तथा यशपाल समिति (2009) की सिफारिशों को लागू करना।
    • NKC ने मौज़ूदा विश्वविद्यालयों में सुधार की सिफारिश की है: प्रत्येक तीन वर्ष में पाठ्यक्रम का अद्यतन किया जाए, आंतरिक मूल्यांकन प्रक्रिया का उपयोग किया जाए, पाठ्यक्रम क्रेडिट प्रणाली अपनाई जाए तथा प्रतिभाशाली संकाय को आकर्षित किया जाए।
      • पाठ्यक्रम और परीक्षाओं के लिये केंद्रीय एवं राज्य स्नातक शिक्षा बोर्ड की स्थापना की जाए।
      • संसद के एक अधिनियम द्वारा हितधारकों द्वारा उच्च शिक्षा के लिये स्वतंत्र विनियामक प्राधिकरण (Independent Regulatory Authority for Higher Education- IRAHE) का निर्माण किया जाएगा।
  • शासी निकायों का राजनीतिकरण: शैक्षणिक योग्यता और अनुभव के आधार पर कुलपति तथा अन्य प्रमुख पदों के चयन के लिये एक स्वतंत्र चयन प्रक्रिया से राजनीतिक प्रभाव कम हो सकता है।
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy- NEP) 2020 में स्पष्ट रूप से परिभाषित, स्वतंत्र, पारदर्शी भर्ती, पाठ्यक्रम/शिक्षणशास्त्र डिज़ाइन करने की स्वतंत्रता, उत्कृष्टता को प्रोत्साहित करने और संस्थागत नेतृत्व में बदलाव के माध्यम से संकाय की प्रेरणा, ऊर्जा एवं क्षमता निर्माण के लिये सिफारिशें की गई हैं। बुनियादी मानदंडों पर खरा नहीं उतरने वाले संकाय को जवाबदेह ठहराया जाएगा।
    • इससे यह सुनिश्चित करने में सहायता मिल सकती है कि निर्णय राजनीतिक लाभ के बजाय संस्थान और उसके छात्रों के सर्वोत्तम हित में लिये जाएँ।
  • असहमति और आलोचनात्मक जाँच की रक्षा: प्रतिशोध अथवा सेंसरशिप के भय के बिना शोध में संलग्न होने और विचार व्यक्त करने के संकाय के अधिकार को बनाए रखना उच्च शिक्षा की अखंडता को बनाए रखने के लिये आवश्यक है।
    • शैक्षणिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिये स्पष्ट नीतियाँ और सुरक्षा उपाय लागू किये जाने चाहिये।
  • छात्र संघ की स्वतंत्रता: यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि विश्वविद्यालय छात्र संघ छात्रों द्वारा निर्वाचित स्वायत्त निकाय बने रहें तथा उनके चुनाव अथवा कार्यप्रणाली में राजनीतिक दलों या प्राधिकारियों का हस्तक्षेप न हो।
  • सशक्त लोकपाल: राजनीतिक हस्तक्षेप, शैक्षणिक स्वतंत्रता के उल्लंघन या किसी भी हितधारक से राजनीतिक रूप से प्रेरित उत्पीड़न की शिकायतों की जाँच और समाधान के लिये एक स्वतंत्र लोकपाल तंत्र की स्थापना करना।

भारत में उच्च शिक्षा के लिये नियामक ढाँचा:

  • भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली की देखरेख केंद्रीय और राज्य स्तर पर शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत विभिन्न वैधानिक निकायों द्वारा की जाती है, जो उच्च शिक्षा की गुणवत्ता एवं मानकों को बनाए रखने के लिये ज़िम्मेदार हैं।
  • मुख्य नियामक निकाय:
    • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission- UGC): वर्ष 1956 में स्थापित एक वैधानिक निकाय है, जो विश्वविद्यालय शिक्षा में मानकों के समन्वयन एवं रखरखाव तथा अनुदान जारी करने के लिये ज़िम्मेदार है।
      • आयोग उच्च शिक्षा के विकास के उपायों पर केंद्र और राज्य सरकारों को सलाह देता है।
      • यह नई दिल्ली से संचालित होता है तथा इसके छह क्षेत्रीय कार्यालय बंगलूरू, भोपाल, गुवाहाटी, हैदराबाद, कोलकाता और पुणे में हैं।
    • अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE): इसकी स्थापना वर्ष 1945 में एक सलाहकार निकाय के रूप में की गई थी और बाद में वर्ष 1987 में इसे वैधानिक दर्ज़ा दिया गया
      • यह नए तकनीकी संस्थानों, पाठ्यक्रमों और प्रवेश क्षमता को अनुमोदित करता है तथा डिप्लोमा स्तर के संस्थानों के लिये राज्य सरकारों को कुछ विशिष्ट शक्तियाँ प्रदान करता है।
      • यह मानदंड और मानक निर्धारित करता है, संस्थानों को मान्यता देता है तथा विभिन्न योजनाओं के माध्यम से तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देता है।
      • AICTE का मुख्यालय नई दिल्ली में है तथा इसके क्षेत्रीय कार्यालय कोलकाता, चेन्नई, कानपुर, मुंबई, चंडीगढ़, भोपाल, बंगलूरू और हैदराबाद में हैं।
    • वास्तुकला परिषद (Council of Architecture- COA): इसकी स्थापना भारत सरकार द्वारा वास्तुविद् अधिनियम (Architects Act), 1972 के तहत की गई है। यह वास्तुविदों को पंजीकृत करने और मान्यता प्राप्त योग्यताओं के लिये मानकों के प्रबंधन को सुनिश्चित करने के हेतु उत्तरदायी है।
      • भारत में वास्तुकला शिक्षा और व्यवसाय के मानकों को नियंत्रित करता है।
  • नियामकीय ढाँचे से संबंधित हालिया घटनाक्रम:
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020: चिकित्सा और विधिक शिक्षा को छोड़कर सभी प्रकार की उच्च शिक्षा के लिये एकल व्यापक निकाय के रूप में भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (Higher Education Commission of India- HECI) की स्थापना का प्रस्ताव करती है। HECI में चार स्वतंत्र वर्टिकल शामिल होंगे:
      • विनियमन के लिये राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा विनियामक परिषद (NHERC)
      • मानक निर्धारण के लिये सामान्य शिक्षा परिषद (GEC) 
      • वित्तपोषण के लिये उच्चतर शिक्षा अनुदान परिषद (HEGC)
      • मान्यता के लिये राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद (NAC)
    • HECI प्रौद्योगिकी आधारित हस्तक्षेप के माध्यम से कार्य करेगा और मानदंडों एवं मानकों का पालन नहीं करने वाले उच्च शिक्षा संस्थानों को दंडित करने का अधिकार होगा।
      • राष्ट्रीय महत्त्व के सार्वजनिक और निजी दोनों प्रकार के उच्च शिक्षण संस्थान समान विनियमन, मान्यता एवं शैक्षणिक मानकों के अधीन होंगे।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. उच्च शिक्षा के राजनीतिकरण से क्या अभिप्राय है, विवेचना कीजिये। इसके परिणामों का विश्लेषण कीजिये तथा शैक्षणिक संस्थाओं की अखंडता और स्वतंत्रता को बनाए रखने के उपाय सुझाइये।

और पढ़ें: भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली में सुधार

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के संविधान के निम्नलिखित में से किस प्रावधान का शिक्षा पर प्रभाव है? (वर्ष 2012)

  1. राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत   
  2. ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकाय   
  3. पाँचवीं अनुसूची   
  4. छठी अनुसूची   
  5. सातवीं अनुसूची

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3, 4 और 5
(c) केवल 1, 2 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

 उत्तर- (d)


मेन्स:

प्रश्न. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020)

प्रश्न. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना कीजिये तथा भारत में उन्हें प्राप्त करने के उपायों का विस्तार से उल्लेख कीजिये। (2021)


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