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कुलपतियों का चयन

  • 12 Nov 2022
  • 5 min read

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा कि कुलपति के पास विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में न्यूनतम 10 साल का शिक्षण अनुभव होना चाहिये और उसके नाम की सिफारिश एक खोज-सह-चयन समिति द्वारा की जानी चाहिये।

  • न्यायालय ने विश्वविद्यालय अधिनियम, 2019 की धारा 10(3) का उल्लेख किया जिसमें प्रावधान था कि समिति को उनकी पात्रता और योग्यता के आधार परकुलपति के रूप में नियुक्ति के लिये तीन व्यक्तियों की एक सूची तैयार करनी चाहिये।

कुलपति की नियुक्ति की प्रक्रिया:

  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) विनियम, 2018 के अनुसार, एक विश्वविद्यालय का कुलपति, सामान्य रूप से, विधिवत गठित खोज सह चयन समिति द्वारा अनुशंसित तीन से पाँच नामों के पैनल से विज़िटर/ चांसलर द्वारा नियुक्त किया जाता है।
  • किसी भी विजिटर के पास यह अधिकार होता है कि पैनल द्वारा सुझाए गए नामों से असंतुष्ट होने की स्थिति में वह नामों के एक नए सेट की मांग कर सकता है।
  • भारतीय विश्वविद्यालयों के संदर्भ में, भारत का राष्ट्रपति सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों का पदेन विजिटर होता है और राज्यों के राज्यपाल संबंधित राज्य के सभी राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति होते हैं।
  • यह प्रणाली सभी विश्वविद्यालयों में अनिवार्य रूप से एक समान नहीं है। जहाँ तक अलग-अलग राज्यों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं का संबंध है, उनमे भिन्नताएँ होती हैं।
  • यदि राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम और UGC विनियम, 2018 के बीच मतभेद होता है जिसमे राज्य का कानून प्रतिकूल है, तो UGC विनियम, 2018 मान्य होगा।
    • अनुच्छेद 254 (1) के अनुसार, यदि किसी राज्य के कानून का कोई प्रावधान संसद द्वारा बनाए गए कानून के प्रावधान के विरुद्ध है, जिसे संसद अधिनियमित करने के लिये सक्षम है या समवर्ती सूची में किसी भी मामले के संबंध में किसी मौजूदा कानून के साथ है, तो संसदीय कानून राज्य के कानून पर हावी होगा।

कुलपति की भूमिका:

  • विश्वविद्यालय के संविधान के अनुसार, कुलपति (VC) को 'विश्वविद्यालय का प्रधान शैक्षणिक और कार्यकारी अधिकारी' माना जाता है।
  • विश्वविद्यालय के प्रमुख के रूप में, उससे विश्वविद्यालय के कार्यकारी और अकादमिक प्रभाग के बीच ‘मध्यस्थ' के रूप में कार्य करने की उम्मीद की जाती है।
  • इस अपेक्षित भूमिका को सुविधाजनक बनाने के लिये विश्वविद्यालयों को हमेशा अकादमिक उत्कृष्टता और प्रशासनिक अनुभव के अलावा मूल्यों, व्यक्तित्व विशेषताओं और अखंडता वाले व्यक्तियों की तलाश रहती है।
  • राधाकृष्णन आयोग (1948), कोठारी आयोग (1964-66), ज्ञानम समिति (1990) और रामलाल पारिख समिति (1993) की रिपोर्टों में समय-समय पर होने वाले बहुप्रतीक्षित परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता एवं प्रासंगिकता को बनाए रखने में कुलपति की भूमिका के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है।
  • वह न्यायालय, कार्यकारी परिषद, अकादमिक परिषद, वित्त समिति और चयन समितियों का पदेन अध्यक्ष होगा और कुलाधिपति की अनुपस्थिति में डिग्री प्रदान करने के लिये विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करेगा।
  • यह देखना कुलपति का कर्तव्य होगा कि अधिनियम, विधियों, अध्यादेशों और विनियमों के प्रावधानों का पूरी तरह से पालन किया जाए तथा उसे इस कर्तव्य के निर्वहन के लिये आवश्यक शक्ति प्राप्त होनी चाहिये।

स्रोत: हिंदू

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