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जैव विविधता और पर्यावरण

पेरू में पर्यावरणीय आपातकाल

  • 24 Jan 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये: तेल रिसाव, बायोरेमेडिएशन, नेशनल ऑयल स्पिल डिज़ास्टर कंटीजेंसी प्लान ऑफ 1996, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन, बंकर कन्वेंशन।

मेन्स के लिये: तेल रिसाव, बायोरेमेडिएशन का पर्यावरणीय और आर्थिक प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

पेरू की सरकार ने तेल रिसाव के बाद क्षतिग्रस्त तटीय क्षेत्रों में 90-दिवसीय "पर्यावरणीय आपातकाल" की घोषणा की है, इस तेल रिसाव की घटना के दौरान समुद्र में 6,000 बैरल कच्चे तेल का रिसाव हुआ था।

  • यह रिसाव टोंगा में एक ज्वालामुखी के विस्फोट के परिणामस्वरूप उत्पन्न ‘फ्रीक वेव्स’ यानी अत्यधिक प्रतिक्रियाशील लहरों के कारण हुआ था।
  • यह तेल रिसाव स्पेनिश ऊर्जा फर्म रेप्सोल के एक टैंकर से हुआ। यह घटना पेरू की राजधानी लीमा से करीब 30 किलोमीटर उत्तर में स्थित ‘ला पैम्पिला रिफाइनरी’ में हुआ जो कि बंदरगाह शहर कैलाओ के वेंटानिला ज़िले में स्थित है।

PERU

प्रमुख बिंदु

  • फ्रीक वेव्स: 
    • ‘फ्रीक वेव्स’ को आमतौर पर एक ऐसी लहर के रूप में परिभाषित किया जाता है जिनकी ऊँचाई किसी क्षेत्र की ‘सिग्नीफिकेंट वेब’ की ऊँचाई से दो गुना अधिक होती है।
    • ‘सिग्नीफिकेंट वेब’ की ऊँचाई एक निश्चित अवधि में उठने वाली उच्चतम एक-तिहाई तरंगों का औसत है।
    • ये तथाकथित ‘फ्रीक वेव्स’ अटलांटिक महासागर या उत्तरी सागर तक ही सीमित नहीं हैं।
    • दक्षिण अफ्रीका के दक्षिण-पूर्वी तट उन जगहों में से एक है, जहाँ पर सबसे अधिक बार इस प्रकार की लहरें दर्ज की जाती हैं।
  • तेल रिसाव:
    • परिचय: तेल रिसाव पर्यावरण में कच्चे तेल, गैसोलीन, ईंधन या अन्य तेल उत्पादों के अनियंत्रित रिसाव को संदर्भित करता है। 
      • तेल रिसाव की घटना भूमि, वायु या पानी को प्रदूषित कर सकती है, हालाँकि इसका उपयोग सामान्य तौर पर समुद्र में तेल रिसाव के संदर्भ में किया जाता है।
    • प्रमुख कारण:
      • मुख्य रूप से महाद्वीपीय चट्टानों पर गहन पेट्रोलियम अन्वेषण एवं उत्पादन तथा जहाज़ों में बड़ी मात्रा में तेल के परिवहन के परिणामस्वरूप तेल रिसाव एक प्रमुख पर्यावरणीय समस्या बन गई है।
      • नदियों, खाड़ियों और समुद्र में होने वाला तेल रिसाव अक्सर टैंकरों, नावों, पाइपलाइनों, रिफाइनरियों, ड्रिलिंग क्षेत्र तथा भंडारण सुविधाओं से जुड़ी दुर्घटनाओं के कारण होता है। 
    • पर्यावरणीय प्रभाव:
      • स्थानीय लोगों के लिये खतरा: समुद्री भोजन पर निर्भर रहने वाली स्थानीय आबादी हेतु तेल प्रदूषण स्वास्थ्य के लिये खतरा उत्पन्न करता है।
      • जलीय जीवों के लिये हानिकारक: समुद्र की सतह पर मौजूद तेल जलीय जीवों के कई रूपों में हानिकारक होता है, क्योंकि यह पर्याप्त मात्रा में सूर्य के लिये प्रकाश को सतह में प्रवेश करने से रोकता है और साथ ही घुलित ऑक्सीजन के स्तर को भी कम करता है।
      • अतिताप (Hyperthermia): कच्चा तेल पक्षियों के पंखों और फर के तापरोधक व जलरोधक गुणों को नष्ट कर देता है।
        • अतः अतिताप (शरीर का  तापमान सामान्य स्तर से अधिक) के कारण तेल से लिप्त पक्षी व समुद्री स्तनधारी की मृत्यु हो सकती है।
      • विषाक्त प्रभाव: उपरोक्त के अलावा अंतर्ग्रहण तेल प्रभावित जानवरों के लिये विषाक्त हो सकता है और उनके आवास व प्रजनन दर को नुकसान पहुँचा सकता है।
      •  मैंग्रोव के लिये खतरा: खारे पानी युक्त दलदल और मैंग्रोव अक्सर तेल रिसाव से प्रभावित होते हैं।
    • आर्थिक प्रभाव:
      • पर्यटन: यदि समुद्र के तट और आबादी वाली तटरेखाएँ प्रदूषित होती है, तो पर्यटन व वाणिज्य बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं।
      • ऊर्जा संयंत्र: ऊर्जा संयंत्र और अन्य उपयोगिताएँ जो समुद्र के जल को खींचने या विसर्जित करने पर निर्भर करती हैं, तेल रिसाव से गंभीर रूप से प्रभावित होती हैं।
      • मत्स्य पालन: तेल रिसाव के बाद अक्सर वाणिज्यिक उद्देश्य से मछली पकड़ने में तत्काल कमी आती है।
    • उपचार:
      • जैव उपचार: जैव उपचार (बायोरेमेडिएशन) के ज़रिये समुद्र में फैले तेल को साफ करने के लिये बैक्टीरिया का इस्तेमाल किया जा सकता है। 
        • कुछ विशिष्ट जीवाणुओं, जो तेल और गैसोलीन में मौजूद होते हैं, का उपयोग हाइड्रोकार्बन जैसे विशिष्ट संदूषकों को जैव उपचारित करने के लिये किया जा सकता है।
        • पैरापरलुसीडिबाका(Paraperlucidibaca),साइक्लोक्लास्टिकस (Cycloclasticus), ओईस्पिरा (Oleispira), थैलासोलिटस (Thalassolituus) ज़ोंंगशानिया (Zhongshania) और इसी प्रकार के अन्य बैक्टीरिया का उपयोग करने से कई प्रकार के दूषित पदार्थों को हटाने में मदद मिल सकती है।
      • कंटेनमेंट बूम्स: तेल के प्रसार को रोकने और इसे हटाने के लिये फ्लोटिंग बैरियर, जिन्हें ‘बूम’ के नाम से जाना जाता है, का उपयोग किया जा सकता है।
      • स्कीमर: ये पानी की सतह पर मौजूद तेल को भौतिक रूप से अलग करने के लिये उपयोग किये जाने वाले उपकरण हैं।
      • सॉर्बेंट्स: विभिन्न प्रकार के सॉर्बेंट्स (उदाहरण के लिये स्ट्रॉ, ज्वालामुखीय राख और पॉलिएस्टर-व्युत्पन्न प्लास्टिक की छीलन) जो पानी से तेल को अवशोषित करते है, का उपयोग किया जाता है।
      • डिस्पर्सिंग एजेंट: ये ऐसे रसायन होते हैं, जिनमें तेल जैसे तरल पदार्थों को छोटी बूँदों में तोड़ने का काम करने वाले यौगिक मौजूद होते हैं। वे समुद्र में इसके प्राकृतिक फैलाव को तेज़ करते हैं।
    • भारत में संबंधित कानून:
      • वर्तमान में भारत में तेल रिसाव और इसके परिणामी पर्यावरणीय क्षति को कवर करने वाला कोई कानून नहीं है लेकिन ऐसी स्थितियों से निपटने हेतु भारत के पास वर्ष 1996 की राष्ट्रीय तेल रिसाव आपदा आकस्मिक योजना (National Oil Spill Disaster Contingency Plan- NOS-DCP) है।
        • यह दस्तावेज़ रक्षा मंत्रालय द्वारा वर्ष 1996 में जारी किया गया था। इसे अंतिम बार मार्च 2006 में अपडेट किया गया था।
        • यह भारतीय तटरक्षक बल को तेल रिसाव के सफाई कार्यों में सहायता के लिये  राज्य के विभागों, मंत्रालयों, बंदरगाह प्राधिकरणों तथा पर्यावरण एजेंसियों के साथ समन्वय करने का अधिकार देता है।
      • वर्ष 2015 में भारत ने बंकर तेल प्रदूषण क्षति, 2001 (बंकर कन्वेंशन) के लिये नागरिक दायित्व पर अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन की पुष्टि की। 
        • कन्वेंशन तेल रिसाव से होने वाले नुकसान के लिये पर्याप्त, त्वरित और प्रभावी मुआवज़ा सुनिश्चित करता है।
        • यह अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (International Maritime Organization - IMO) द्वारा प्रशासित है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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