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भारत के सामाजिक सुरक्षा संजाल में सुधार

  • 25 Aug 2023
  • 25 min read

यह एडिटोरियल 23/08/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘Needed, a well-crafted social security net for all’’ पर आधारित है। इसमें सामाजिक सुरक्षा नीतियों के समक्ष विद्यमान मुद्दों और चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है तथा उनके शमन के उपायों पर विचार किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, सामाजिक सुरक्षा संहिता (2020), कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO), कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC), राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS), सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम, ई-श्रम, स्व-रोज़गार महिला संघ (SEWA), CAG

मेन्स के लिये:

सामाजिक सुरक्षा: योजनाएँ, मुद्दे, आगे की राह और सर्वोत्तम वैश्विक प्रथाएँ।

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey) वार्षिक रिपोर्ट 2021-22 के अनुसार भारत में वेतनभोगी कार्यबल के लगभग 53% को कोई सामाजिक सुरक्षा लाभ प्राप्त नहीं है, जिस पर मीडिया में चर्चा की जा रही है। इसका मूलतः अर्थ यह है कि ऐसे कर्मचारियों को भविष्य निधि, पेंशन, स्वास्थ्य देखभाल और विकलांगता बीमा तक कोई पहुँच प्राप्त नहीं है। 

भारत के निर्धनतम 20% कार्यबल में से केवल 1.9% को ही इन लाभों तक पहुँच प्राप्त है। इसके साथ ही, गिग वर्कर्स (जो भारत के सक्रिय श्रम बल में लगभग 1.3% की हिस्सेदारी रखते हैं) को तो शायद ही किसी सामाजिक सुरक्षा लाभ तक पहुँच प्राप्त है। भारत की सामाजिक सुरक्षा प्रणाली की रैंकिंग भी बदतर है, जहाँ ‘Mercer CFS’ ने वर्ष 2021 में 43 देशों की सूची में भारत को 40वाँ स्थान प्रदान किया। 

सामाजिक सुरक्षा:

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, सामाजिक सुरक्षा (Social Security) वह सुरक्षा उपाय है जो कोई समाज व्यक्तियों एवं परिवारों को स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच सुनिश्चित करने और आय सुरक्षा की गारंटी देने के लिये प्रदान करता है, विशेष रूप से वृद्धावस्था, बेरोज़गारी, बीमारी, विकलांगता, कार्य स्थल पर चोट का शिकार होने, मातृत्व या आजीविका की हानि के मामलों में।  

सामाजिक सुरक्षा नीतियाँ विभिन्न प्रकार के सामाजिक बीमाओं को दायरे में लेती हैं, जैसे पेंशन, स्वास्थ्य बीमा, विकलांगता लाभ, मातृत्व लाभ और ग्रेच्युटी। 

भारत में क्रियान्वित कुछ प्रमुख सामाजिक सुरक्षा नीतियाँ: 

  • सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 (The Code on Social Security, 2020): यह एक व्यापक कानून है जो सामाजिक सुरक्षा से संबंधित नौ पूर्ववर्ती कानूनों को समेकित और सरलीकृत करता है। यह संगठित एवं असंगठित दोनों क्षेत्रों के कर्मचारियों को कवर करता है और सेवानिवृत्ति पेंशन, भविष्य निधि, जीवन एवं विकलांगता बीमा, स्वास्थ्य देखभाल एवं बेरोज़गारी लाभ, बीमारी के दौरान वेतन एवं अवकाश (sick pay and leaves) और भुगतानप्राप्त मातृत्व-पितृत्व अवकाश (parental leaves) प्रदान करता है। 
  • कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ( Employees’ Provident Fund Organisation- EPFO): यह एक सांविधिक निकाय है जो कर्मचारी भविष्य निधि योजना, कर्मचारी पेंशन योजना और कर्मचारी डिपॉजिट लिंक्ड बीमा योजना का प्रबंधन करता है। ये योजनाएँ संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति पेंशन, भविष्य निधि और जीवन एवं विकलांगता बीमा प्रदान करती हैं। 
  • कर्मचारी राज्य बीमा (Employees’ State Insurance- ESI): यह एक स्व-वित्तपोषित सामाजिक सुरक्षा योजना है जो बीमारी, मातृत्व, विकलांगता एवं बेरोज़गारी के मामले में कर्मचारियों को चिकित्सा देखभाल और नकद लाभ प्रदान करती है। इसमें संगठित क्षेत्र के उन कर्मचारियों को शामिल किया गया है जो एक निश्चित सीमा से कम आय अर्जित करते हैं। 
  • राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (National Pension System- NPS): यह एक स्वैच्छिक, परिभाषित योगदान पेंशन योजना है जो व्यक्तियों को अपनी सेवानिवृत्ति के लिये बचत करने की अनुमति देती है। यह असंगठित क्षेत्र में कार्यरत लोगों सहित भारत के सभी नागरिकों के लिये उपलब्ध है। यह विविध निवेश विकल्पों और कर लाभों की पेशकश करती है। 
  • राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (National Social Assistance Programme- NSAP): यह एक सामाजिक सुरक्षा एवं कल्याण कार्यक्रम है जो गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों से संबंधित वृद्ध जनों, विधवाओं, विकलांग जनों और प्राथमिक अर्जक की मृत्यु पर शोक संतप्त परिवारों को सहायता प्रदान करता है। 

सामाजिक सुरक्षा नीतियों और उनके कार्यान्वयन से संबंधित मुद्दे एवं चुनौतियाँ:  

  • पर्याप्त बजटीय आवंटन का अभाव: राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा निधि (National Social Security Fund) की स्थापना असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिये महज 1,000 करोड़ रुपए के आरंभिक आवंटन के साथ की गई थी, जो कि 22,841 करोड़ रुपए से अधिक की अनुमानित आवश्यकता से पर्याप्त कम था। 
    • इससे पता चलता है कि सरकार ने अपने विकास एजेंडे के प्रमुख घटक के रूप में सामाजिक सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं दी है और समाज के कमज़ोर वर्गों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये पर्याप्त संसाधन आवंटित नहीं किये हैं। 
  • अकुशल निधि उपयोग और प्रबंधन: सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिये आवंटित धन का प्रभावी ढंग से या कुशलता से उपयोग नहीं किया गया है। उदाहरण के लिये, CAG के ऑडिट से उजागर हुआ है कि राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा निधि की स्थापना के बाद से इसमें जमा किये गए हुए 1,927 करोड़ रुपए का कोई उपयोग नहीं किया गया है। 
    • इसी तरह, दिल्ली में निर्माण श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये एकत्र किये गए उपकर (cess) का कुशलतापूर्वक उपयोग नहीं किया गया और लगभग 94% धन खर्च ही नहीं किया गया। 
    • इन उदाहरणों से संकेत मिलता है कि निधि प्रबंधन और निगरानी प्रणालियों में अंतराल मौजूद हैं, जिसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक धन की बर्बादी एवं न्यून उपयोग की स्थिति बनती है। 
  • भ्रष्टाचार और रिसाव: सामाजिक सुरक्षा नीतियों और उनके कार्यान्वयन से संबंधित एक अन्य चुनौती है भ्रष्टाचार और धन का रिसाव/लीकेज। हरियाणा का उदाहरण लें तो CAG ने पाया कि राज्य के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की प्रत्यक्ष लाभ योजना में मृत लाभार्थियों के खातों में 98.96 करोड़ रुपए हस्तांतरित किये गए थे।  
    • इससे पता चलता है कि लाभार्थियों की पहचान और सत्यापन के साथ-साथ सामाजिक सुरक्षा लाभ के वितरण तंत्र में व्यापक खामियाँ मौजूद हैं। 
    • इसके अलावा, सामाजिक सुरक्षा निधि के आवंटन और वितरण में धोखाधड़ी, रिश्वतखोरी, भाई-भतीजावाद एवं राजनीतिक हस्तक्षेप के दृष्टांत भी प्राप्त होते हैं। 
  • अपर्याप्त कवरेज और लाभ: भारत में सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के अपर्याप्त कवरेज और लाभों की समस्या भी लगातार बनी रही है। उदाहरण के लिये, वृद्धावस्था पेंशन योजनाओं में केंद्र का योगदान वर्ष 2006 से 200 रुपए प्रति माह तक गतिहीन बना रहा है, जो दैनिक न्यूनतम वेतन से भी कम है। 
    • इसके अलावा, कुछ योजनाओं के लिये पात्रता मानदंड अत्यंत प्रतिषेधात्मक हैं और कई पात्र लाभार्थियों को अपवर्जित कर देते हैं। उदाहरण के लिये, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम उन वृद्ध जनों पर केंद्रित है जिनके परिवार में कोई कार्यसक्षम अर्जंक नहीं है और वे 75 रुपए मासिक पेंशन अर्जित करने के पात्र हैं। 
      • इससे ऐसे कई गरीब वृद्ध जन इसके दायरे से बाहर रह जाते हैं, जिनके घर में भले कुछ आय अर्जक सदस्य हों, लेकिन फिर भी उन्हें आर्थिक कठिनाई एवं असुरक्षा का सामना करना पड़ता है। 
  • बजटीय कटौती: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के लिये बजटीय आवंटन में कमी करना सामाजिक कल्याण एवं ग्रामीण रोज़गार सृजन के लिये प्राथमिकता के अभाव का संकेत देती है। 
  • प्रौद्योगिकी और ‘डिजिटल डिवाइड’: कई सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ पंजीकरण और लाभ के संवितरण के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्म पर स्थानांतरित हो रही हैं। लेकिन आबादी का एक बड़ा हिस्सा, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, प्रौद्योगिकी और इंटरनेट तक पहुँच की कमी का शिकार हो सकता है, जिससे एक डिजिटल डिवाइड  पैदा होता है, जो इन कार्यक्रमों में उनकी भागीदारी को बाधित करता है। 
  • अनौपचारिक श्रम क्षेत्र: भारत का लगभग 91% कार्यबल (लगभग 475 मिलियन लोग) अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है, जहाँ प्रायः रोज़गार सुरक्षा, लाभ और औपचारिक सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों तक पहुँच का अभाव पाया जाता है। 

भारत द्वारा कदम उठाए जा सकने वाले संभावित कदम: 

  • सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा (Universal Social Security): समय आ गया है कि भारत अपनी मौजूदा सामाजिक सुरक्षा योजनाओं/तदर्थ उपायों को सुदृढ़ करे और अपने संपूर्ण श्रम कार्यबल को सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करे। जहाँ रोज़गार तेज़ी से मांग-आधारित बन रहे हैं और नौकरी पर रखने/निकालने की नीतियों का तीव्र प्रसार हो रहा है, भारत के कामगार रोज़गार के मोर्चे पर दिनानुदिन असुरक्षित होते जा रहे हैं। 
    • सामाजिक सुरक्षा की भावना प्रदान करने के साथ ही देश के विकास का लाभ सभी लोगों तक पहुँचाने के लिये नीति निर्माताओं को पारंपरिक आपूर्ति-पक्षीय आर्थिक सिद्धांतों का त्याग करना होगा और समतामूलक विकास को सक्षम करने वाली नीतियाँ अपनानी होगी। 
  • EPFO योगदान का विस्तार: कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) प्रणाली में योगदान का विस्तार औपचारिक कामगारों के लिये सामाजिक सुरक्षा की वृद्धि कर सकता है। इसमें नियोक्ता और कर्मचारी दोनों द्वारा ही निधि में योगदान किया जाना शामिल है। 
    • अनौपचारिक कामगारों के लिये आंशिक योगदान: सार्थक आय वाले अनौपचारिक कामगार, चाहे वे स्व-रोज़गार से संलग्न हों या अनौपचारिक उद्यमों में, आंशिक योगदान दे सकते हैं। 
      • अनौपचारिक उद्यमों को औपचारिक बनने और योगदान करने के लिये प्रोत्साहित करना भी इस दृष्टिकोण का एक अंग हो सकता है। 
  • कमज़ोर कामगारों के लिये सरकारी सहायता: बेरोज़गारी, अल्प रोज़गार या कम कमाई के कारण योगदान करने में असमर्थ लोगों को सरकारी सब्सिडी या सामाजिक सहायता प्रदान करने से यह सुनिश्चित होगा कि सभी को बुनियादी सामाजिक सुरक्षा सहायता तक पहुँच प्राप्त हो। 
  • डिजिटलीकरण और ई-श्रम प्लेटफॉर्म (e-Shram): डिजिटल प्लेटफॉर्म और डेटा सिस्टम में निवेश सामाजिक सुरक्षा सेवाओं के पंजीकरण, सत्यापन, वितरण, निगरानी एवं मूल्यांकन को सुव्यवस्थित करता है और इस प्रकार दक्षता एवं पारदर्शिता में सुधार करता है। 
    • ई-श्रम प्लेटफॉर्म के विस्तार और डिजिटलीकरण प्रयासों ने लाखों कामगारों के नामांकन एवं विस्तारित बीमा कवरेज को सक्षम किया है। 
      • हालाँकि, पंजीकरण का बोझ केवल अनौपचारिक कामगारों पर ही नहीं होना चाहिये; इसमें नियोक्ताओं को शामिल करने से औपचारिकता को बढ़ावा मिल सकता है। 
  • नियोक्ताओं के लिये अनिवार्य सामाजिक सुरक्षा: कर्मचारियों के लिये उनके नियोक्ताओं द्वारा प्रवर्तित अनिवार्य सामाजिक सुरक्षा अधिकारों को लागू करने से कर्मचारी-नियोक्ता संबंधों में औपचारिकता एवं जवाबदेही को बढ़ावा मिलेगा। 
  • अखिल भारतीय श्रम बल कार्ड (Pan-India Labour Force Card): एक राष्ट्रव्यापी श्रम बल कार्ड पेश करने से पंजीकरण प्रक्रिया सरल हो सकती है और निर्माण एवं गिग वर्कर क्षेत्रों से परे भी सामाजिक सुरक्षा कवरेज का विस्तार हो सकता है। 
  • सफल योजनाओं का विस्तार करना: कामगारों की व्यापक श्रेणी को कवर करने के लिये भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार योजना जैसी विभिन्न सफल योजनाओं का विस्तार किया जा सकता है। इसमें बेहतर लाभ सुवाह्यता के लिये कुछ नियंत्रणों (जैसे कूलिंग-ऑफ अवधि) पर पुनर्विचार की आवश्यकता पड़ सकती है। 
  • विशिष्ट श्रमिक समूहों को संबोधित करना: घरेलू कामगारों और प्रवासी कामगारों जैसे कमज़ोर कामगार समूहों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये। बच्चों की देखभाल जैसी सामाजिक सेवाओं के कवरेज का विस्तार और घरेलू कामगारों के लिये विभिन्न प्रयासों का आयोजन उन्हें अधिक स्थिरता प्रदान कर सकता है। 
  • मौजूदा योजनाओं को सुदृढ़ करना: सरकार को मौजूदा योजनाओं को सुदृढ़ करने का भी प्रयास करना चाहिये। उदाहरण के लिये, कर्मचारी भविष्य निधि (EPF), कर्मचारी राज्य बीमा योजना (ESI) और राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP) आदि को बजटीय समर्थन तथा कवरेज के विस्तार के साथ सुदृढ़ किया जा सकता है।  
  • प्रशासनिक सरलीकरण: सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों के प्रशासनिक ढाँचे को सरल बनाने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिये, असंगठित कामगारों के लिये मौजूदा सामाजिक सुरक्षा ढाँचा जटिल हो गया है, जहाँ राज्य और केंद्र के बीच अधिकार के अतिव्यापी क्षेत्र पाए जाते हैं तथा प्लेटफॉर वर्कर, किसी असंगठित क्षेत्र के कामगार और किसी स्व-रोज़गारी के बीच अंतर की भ्रामक परिभाषाएँ उपयोग की जा रही हैं। 
  • जागरूकता बढ़ाना: सामाजिक सुरक्षा के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये और अधिक उल्लेखनीय प्रयास किये जाने की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अधिकाधिक कामगार उपलब्ध लाभों के बारे में जागरूक हों। स्व-रोज़गार महिला सेवा संघ (SEWA) जैसे संगठन, जो शक्ति केंद्र (कार्यकर्ता सुविधा केंद्र) का संचालन करते हैं, उन्हें सरकार की सेवाओं एवं योजनाओं के साथ-साथ सामाजिक सुरक्षा अधिकारों के बारे में वृहत सूचना के प्रसार हेतु अभियान चलाने के लिये (विशेष रूप से महिलाओं के लिये) वित्तपोषित किया जा सकता है।  

भारत दूसरे देशों से क्या सीख सकता है? 

  • ब्राज़ील: ब्राज़ील में एक व्यापक और उदार सामाजिक सुरक्षा प्रणाली क्रियान्वित है जो 90% से अधिक आबादी को कवर करती है और विभिन्न परिस्थितियों में कामगारों एवं उनके परिवारों के लिये आय प्रतिस्थापन (income replacement) प्रदान करती है। 
    • भारत अपनी सामाजिक सुरक्षा प्रणाली के कवरेज और दायरे का विस्तार करने के साथ-साथ अपनी वित्तीय स्थिरता एवं दक्षता सुनिश्चित करने के लिये सुधारों को लागू करने में ब्राज़ील के अनुभव से प्रेरणा प्राप्त कर सकता है। 
  • जर्मनी: जर्मनी में एक सुविकसित सामाजिक सुरक्षा प्रणाली मौजूद है जो सामाजिक बीमा के सिद्धांत पर आधारित है, जहाँ कामगार और नियोक्ता ऐसी विभिन्न योजनाओं में योगदान करते हैं जो पेंशन, स्वास्थ्य देखभाल, बेरोज़गारी लाभ, दीर्घकालिक देखभाल और पारिवारिक भत्ते प्रदान करते हैं। 
    • भारत जर्मनी के सामाजिक बीमा मॉडल से प्रेरणा ग्रहण कर सकता है, जिसे जनता द्वारा व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है और भरोसेमंद माना जाता है तथा यह कामगारों के लिये पर्याप्त सुरक्षा एवं प्रोत्साहन प्रदान करता है। 
  • सिंगापुर: सिंगापुर में एक अनूठी सामाजिक सुरक्षा प्रणाली क्रियान्वित है जो व्यक्तिगत बचत के सिद्धांत पर आधारित है, जहाँ कामगारों को अपनी आय का एक हिस्सा केंद्रीय भविष्य निधि में बचत करने की आवश्यकता होती है, जिसका उपयोग फिर सेवानिवृत्ति, आवास, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा के लिये किया जा सकता है। 
    • भारत व्यक्तिगत उत्तरदायित्व और संपत्ति संचयन को बढ़ावा देने के साथ-साथ कामगारों को अपनी बचत का प्रबंधन करने के लिये लचीलापन एवं विकल्प प्रदान करने के सिंगापुर के दृष्टिकोण से प्रेरणा ग्रहण कर सकता है। 

निष्कर्ष: 

भारत में सामाजिक सुरक्षा के संबंध में ठोस नीति कार्यान्वयन, धन के उचित आवंटन, संसाधनों के पारदर्शी उपयोग और कुशल निरीक्षण तंत्रों की आवश्यकता है। इन मुद्दों को संबोधित किये बिना सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों के इच्छित लाभार्थियों के समक्ष चुनौतियों एवं अपर्याप्त समर्थन की स्थिति बनी रहेगी। सरकार द्वारा वर्ष 2020 में प्रस्तावित सामाजिक सुरक्षा संहिता (Code on Social Security) विभिन्न श्रेणियों के कामगारों के लिये (गिग अर्थव्यवस्था और अनौपचारिक क्षेत्रों से संबद्ध कामगारों सहित) सामाजिक सुरक्षा हेतु एक सांविधिक ढाँचा प्रदान करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है। 

अभ्यास प्रश्न: भारत की सामाजिक सुरक्षा नीतियों में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। इस आलोक में सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के समक्ष विद्यमान चुनौतियों की चर्चा कीजिये और उनके समाधान के उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) में शामिल हो सकता है? (2017)

(A) केवल निवासी भारतीय नागरिक
(B) केवल 21 से 55 वर्ष की आयु के व्यक्ति
(C) अधिसूचना की तारीख के बाद सेवाओं में शामिल होने वाले सभी राज्य सरकार के कर्मचारी तथा संबंधित राज्य की सरकारों द्वारा अधिसूचना किये जाने की तारीख के पश्चात सेवा में आये हैं
(D) सशस्त्र बलों सहित केंद्र सरकार के सभी कर्मचारी , जो 1 अप्रैल, 2004 या उसके बाद सेवाओं में शामिल हुए हैं

उत्तर: (C)


प्रश्न . 'अटल पेंशन योजना' के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (2016)

  1. यह मुख्य रूप से असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों पर लक्षित एक न्यूनतम गारंटीकृत पेंशन योजना है। 
  2. एक परिवार का एक ही सदस्य इस योजना में शामिल हो सकता है। 
  3. यह ग्राहक की मृत्यु के बाद जीवन भर के लिये पति या पत्नी हेतु समान राशि की पेंशन गारंटी है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: C

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