शासन व्यवस्था
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण
- 16 Mar 2022
- 9 min read
प्रिलिम्स के लिये:आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS), राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO), बेरोज़गारी दर, श्रम बल। मेन्स के लिये:रोज़गार, वृद्धि एवं विकास, मानव संसाधन, भारत में बेरोज़गारी के प्रकार, बेरोज़गारी से लड़ने हेतु सरकार द्वारा शुरू की गई पहलें। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जारी नवीनतम आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) से पता चलता है कि महामारी की पहली लहर के दौरान वर्ष 2020 में देशव्यापी लॉकडाउन के कारण बेरोज़गारी दर में तेज़ी से वृद्धि हुई थी।
- राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अंतर्गत सांख्यिकीय सेवा अधिनियम 1980 के तहत सरकार की केंद्रीय सांख्यिकीय एजेंसी है।
बेरोज़गारी दर क्या है?
- बेरोज़गारी दर: बेरोज़गारी दर को श्रम बल में बेरोज़गार व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है।
- श्रम बल: करेंट वीकली स्टेटस (CWS) के अनुसार, श्रम बल का आशय सर्वेक्षण की तारीख से पहले एक सप्ताह में औसत नियोजित या बेरोज़गार व्यक्तियों की संख्या से है।
- CWS दृष्टिकोण: शहरी बेरोज़गारी PLFS, CWS के दृष्टिकोण पर आधारित है।
- CWS के तहत एक व्यक्ति को बेरोज़गार तब माना जाता है यदि उसने सप्ताह के दौरान किसी भी दिन एक घंटे के लिये भी काम नहीं किया, लेकिन इस अवधि के दौरान किसी भी दिन कम-से-कम एक घंटे के लिये काम की मांग की या काम उपलब्ध था।
- वर्ष 2021 की अप्रैल-जून तिमाही में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों के लिये शहरी क्षेत्रों में वर्तमान साप्ताहिक स्थिति में श्रम बल भागीदारी दर 46.8% थी।
विगत वर्षों के प्रश्नप्रच्छन्न बेरोज़गारी का मतलब होता है: (2013) (a) बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार रहते हैं उत्तर: c |
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS):
- अधिक नियत समय अंतराल पर श्रम बल डेटा की उपलब्धता के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने अप्रैल 2017 में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) की शुरुआत की।
- PLFS के मुख्य उद्देश्य हैं:
- 'वर्तमान साप्ताहिक स्थिति' (CWS) में केवल शहरी क्षेत्रों के लिये तीन माह के अल्पकालिक अंतराल पर प्रमुख रोज़गार और बेरोज़गारी संकेतकों (अर्थात् श्रमिक-जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर, बेरोज़गारी दर) का अनुमान लगाना।
- प्रतिवर्ष ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में सामान्य स्थिति (पीएस+एसएस) और CWS दोनों में रोज़गार एवं बेरोज़गारी संकेतकों का अनुमान लगाना।
बेरोज़गारी से निपटने हेतु सरकार की पहल:
- "स्माइल- आजीविका और उद्यम के लिये सीमांत व्यक्तियों हेतु समर्थन" (Support for Marginalized Individuals for Livelihood and Enterprise-SMILE)
- पीएम-दक्ष (प्रधानमंत्री दक्ष और कुशल संपन्न हितग्राही) योजना
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA)
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY)
- स्टार्टअप इंडिया योजना
भारत में बेरोज़गारी के प्रकार
प्रच्छन्न बेरोज़गारी |
यह एक ऐसी घटना है जिसमें वास्तव में आवश्यकता से अधिक लोगों को रोज़गार दिया जाता है।
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मौसमी बेरोज़गारी |
यह एक प्रकार की बेरोज़गारी है, जो वर्ष के कुछ निश्चित मौसमों के दौरान देखी जाती है।
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संरचनात्मक बेरोज़गारी |
यह बाज़ार में उपलब्ध नौकरियों और श्रमिकों के कौशल के बीच असंतुलन होने से उत्पन्न बेरोज़गारी की एक श्रेणी है।
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चक्रीय बेरोज़गारी |
यह व्यापार चक्र का परिणाम है, जहाँ मंदी के दौरान बेरोज़गारी बढ़ती है और आर्थिक विकास के साथ घटती है।
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तकनीकी बेरोज़गारी |
यह प्रौद्योगिकी में बदलाव के कारण नौकरियों का नुकसान है।
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घर्षण बेरोज़गारी |
घर्षण बेरोज़गारी का आशय ऐसी स्थिति से है, जब कोई व्यक्ति नई नौकरी की तलाश या नौकरियों के बीच स्विच कर रहा होता है, तो यह नौकरियों के बीच समय अंतराल को संदर्भित करती है।
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सुभेद्य रोज़गार |
इसका मतलब है कि लोग बिना उचित नौकरी अनुबंध के अनौपचारिक रूप से कार्य कर रहे हैं तथा इस प्रकार इनके लिये कोई कानूनी सुरक्षा नहीं है।
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विगत वर्षों के प्रश्नप्रश्न: निरपेक्ष और प्रति व्यक्ति वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि आर्थिक विकास के उच्च स्तर का संकेत नहीं देती है, यदि: (2018) (a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ समन्वय बनाए रखने में विफल रहता है। उत्तर: (c) |