शासन व्यवस्था
राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति
- 03 Jun 2023
- 13 min read
प्रिलिम्स के लिये:राज्यपाल, कुलपति, अध्यक्ष, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, केंद्रीय विश्वविद्यालय मेन्स के लिये:राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपति की नियुक्ति और आगे बढ़ने के मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच 10 वरिष्ठ प्रोफेसरों को राज्य द्वारा संचालित विश्वविद्यालयों के अंतरिम कुलपति के रूप में नियुक्त करने को लेकर खींचतान सामने आई है।
- पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री ने प्रोफेसरों की नियुक्तियों से इनकार करने का आग्रह किया और इस पर कानूनी राय मांगी।
विश्वविद्यालयों में राज्यपाल और राष्ट्रपति की भूमिका:
- राज्य विश्वविद्यालय:
- राज्य विश्वविद्यालयों में राज्य का राज्यपाल उस राज्य के विश्वविद्यालयों का पदेन कुलाधिपति होता है।
- जबकि राज्यपाल के रूप में वह मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से कार्य करता है। कुलाधिपति के रूप में वह मंत्रिपरिषद के बिना स्वतंत्र रूप से कार्य करता है और विश्वविद्यालय के सभी मामलों पर स्वयं निर्णय लेता है।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) विनियम, 2018 के अनुसार, एक विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति सामान्य रूप से कुलाधिपति द्वारा विधिवत गठित खोज सह चयन समिति द्वारा अनुशंसित तीन से पाँच नामों के पैनल से की जाती है।
- जहाँ राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम और UGC विनियम, 2018 के बीच गतिरोध होता है तो UGC विनियम, 2018 प्रबल होगा तथा राज्य कानून प्रतिकूल होगा।
- अनुच्छेद 254(1) के अनुसार, यदि किसी राज्य के कानून का कोई प्रावधान संसद द्वारा बनाए गए कानून के प्रावधान के विरुद्ध है जिसे संसद समवर्ती सूची के किसी विषय पर अधिनियमित करने के लिये सक्षम है तो संसदीय कानून राज्य के कानून पर प्रभावी होगा।
- केंद्रीय विश्वविद्यालय:
- केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 (Central Universities Act, 2009) और अन्य विधियों के तहत भारत का राष्ट्रपति केंद्रीय विश्वविद्यालय का कुलाधिपति होगा।
- केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में नाममात्र का प्रमुख होने के साथ ही राष्ट्रपति दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करने जैसी सीमित भूमिका का निर्वाह करता है, इसके साथ ही राष्ट्रपति द्वारा आगंतुक/विज़िटर की भी नियुक्ति की जाती है।
- कुलपति को भी केंद्र सरकार द्वारा गठित खोज और चयन समितियों (Search and Selection Committees) द्वारा चुने गए नामों के पैनल से विज़िटर द्वारा नियुक्त किया जाता है।
- किसी आगंतुक को दिये गए पैनल से असंतुष्ट होने की स्थिति में नए नामों के सेट की मांग करने का अधिकार है।
- अधिनियम में यह भी कहा गया है कि राष्ट्रपति को कुलाधिपति के रूप में विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक पहलुओं के निरीक्षण के लिये अधिकृत जानकारी प्राप्त करने का अधिकार होगा।
कुलाधिपति की भूमिका:
- विश्वविद्यालय के संविधान के अनुसार, कुलाधिपति (VC) को 'विश्वविद्यालय का प्रमुख शैक्षणिक और कार्यकारी अधिकारी' माना जाता है।
- विश्वविद्यालय के प्रमुख के रूप में उससे विश्वविद्यालय के कार्यकारी और अकादमिक सहयोग के बीच एक 'सेतु' के रूप में कार्य करने की अपेक्षा की जाती है।
- इस अपेक्षित भूमिका को सुविधाजनक बनाने के लिये विश्वविद्यालयों को हमेशा अकादमिक उत्कृष्टता और प्रशासनिक अनुभव के अलावा मूल्यों, व्यक्तित्व की विशेषताओं और अखंडता वाले व्यक्तियों की तलाश रहती है।
- राधाकृष्णन आयोग (1948), कोठारी आयोग (1964-66), ज्ञानम समिति (1990) और रामलाल पारिख समिति (1993) की रिपोर्टों में समय-समय पर होने वाले बहुप्रतीक्षित परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता एवं प्रासंगिकता को बनाए रखने में कुलपति की भूमिका के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है।
- वह न्यायालय, कार्यकारी परिषद, अकादमिक परिषद, वित्त समिति और चयन समितियों का पदेन अध्यक्ष होगा और कुलाधिपति की अनुपस्थिति में डिग्री प्रदान करने के लिये विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करेगा।
- यह देखना कुलपति का कर्त्तव्य होगा कि अधिनियम, विधियों, अध्यादेशों और विनियमों के प्रावधानों का पूरी तरह से पालन किया जाए तथा उसे इस कर्तव्य के निर्वहन के लिये आवश्यक शक्ति प्राप्त होनी चाहिये।
कुलपति की नियुक्ति को लेकर कई भारतीय राज्यों के सीएम और राज्यपालों के बीच मतभेद:
- हाल ही में तमिलनाडु विधानसभा ने दो विधेयक पारित किये, जो 13 राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों (VC) की नियुक्ति में राज्यपाल की शक्ति को स्थानांतरित करने का प्रावधान करते हैं।
- राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री को सभी राज्य-संचालित विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति बनाने की मांग करने वाला पश्चिम बंगाल का एक विधेयक वर्ष 2022 में विधानसभा द्वारा पारित किया गया था (अभी भी राज्यपाल की सहमति के लिये लंबित है)।
- महाराष्ट्र, कर्नाटक, झारखंड और राजस्थान राज्यों के कानून राज्य एवं राज्यपाल के बीच सहमति की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
आगे की राह
- समय आ गया है कि सभी राज्य राज्यपाल को सचिव के रूप में रखने पर पुनर्विचार करें।
- हालाँकि उन्हें विश्वविद्यालय की स्वायत्तता की रक्षा के वैकल्पिक साधन भी खोजने चाहिये ताकि सत्ताधारी दल विश्वविद्यालयों के कामकाज़ पर अनुचित प्रभाव न डालें।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत के किसी राज्य की विधानसभा के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही है। प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) व्याख्या:
मेन्सप्रश्न. क्या उच्चतम न्यायालय का निर्णय (जुलाई 2018) दिल्ली के उपराज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच राजनैतिक कशमकश को निपटा सकता है? परीक्षण कीजिये। (2018) प्रश्न. राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यक शर्तों का विवेचन कीजिये। विधायिका के समक्ष रखे बिना राज्यपाल द्वारा अध्यादेशों के पुनः प्रख्यापन की वैधता की विवेचना कीजिये। (2022) |