इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


भारतीय राजनीति

विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की भूमिका

  • 09 Nov 2022
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विश्वविद्यालयों में कुलपति पर तमिलनाडु विधेयक, राज्य के विश्वविद्यालयों की नियुक्ति में राज्यपाल की भूमिका

मेन्स के लिये:

केंद्र-राज्य संबंधों में राज्यपाल की भूमिका

चर्चा में क्यों?

पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल ने भारत में नैतिक शासन के महत्त्व के बारे में बात की।

विश्वविद्यालय के संबंध में राज्यपाल की शक्तियाँ:

  • राज्य विश्वविद्यालय:
    • ज़्यादातर मामलों में राज्य के राज्यपाल उस राज्य के विश्वविद्यालयों के पदेन कुलाधिपति होते हैं।
    • राज्यपाल के रूप में वह मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से कार्य करता है, कुलाधिपति के रूप में वह मंत्रिपरिषद से स्वतंत्र रूप से कार्य करता है और सभी विश्वविद्यालयों के मामलों पर स्वयं निर्णय लेता है।
  • केंद्रीय विश्वविद्यालय:
    • केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 और अन्य विधियों के तहत भारत का राष्ट्रपति केंद्रीय विश्वविद्यालय का विज़िटर होगा।
    • केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति नाममात्र के प्रमुख होते हैं जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा आगंतुक के रूप में चुना जाता है, उनके कर्तव्यों को दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करने के लिये सीमित किया जाता है।
    • कुलपति की नियुक्ति, केंद्र सरकार द्वारा गठित खोज और चयन समितियों द्वारा चुने गए नामों के पैनलों से विज़िटर/आगंतुक द्वारा की जाती है।
    • अधिनियम में यह भी कहा गया है कि राष्ट्रपति को विज़िटर के रूप में विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक पहलुओं के निरीक्षण को अधिकृत करने एवं पूछताछ करने का अधिकार होगा।

राज्यपालों को कुलपति बनाने का मूल उद्देश्य:

  • राज्यपालों को कुलपति बनाना और उन पर कुछ वैधानिक शक्तियाँ लगाने का मूल उद्देश्य विश्वविद्यालयों को राजनीतिक प्रभाव से बचाना था।
  • आयोग की सिफारिशें:
    • सरकारिया आयोग:
      • न्यायमूर्ति आर.एस. सरकारिया आयोग ने पाया कि कुछ राज्यपालों द्वारा विश्वविद्यालय की कुछ नियुक्तियों में विवेक का इस्तेमाल करना आलोचना के दायरे में है।
      • इसने राज्यपाल की संवैधानिक भूमिका और कुलपति के रूप में निभाई गई वैधानिक भूमिका के बीच अंतर को स्वीकार करते हुए यह भी रेखांकित किया कि कुलपति सरकार की सलाह लेने के लिये बाध्य नहीं है।
    • एम.एम. पुंछी आयोग:
      • इस आयोग ने पाया कि राज्यपाल को ऐसी शक्तियाँ न दी जाएँ जिससे इसका पद विवादों या सार्वजनिक आलोचना के दायरे में आ जाए। इसने राज्यपाल को वैधानिक शक्तियाँ प्रदान करने को स्वीकार नहीं किया।

UGC की भूमिका:

  • शिक्षा समवर्ती सूची के अंतर्गत आती है, लेकिन संघ सूची की प्रविष्टि 66 "उच्च शिक्षा या अनुसंधान और वैज्ञानिक एवं तकनीकी संस्थानों के मानकों का समन्वय तथा निर्धारण" केंद्र को उच्च शिक्षा पर पर्याप्त अधिकार देता है।
  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में नियुक्तियों के मामले में भी मानक-निर्धारण की भूमिका निभाता है।
  • UGC (विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों और अन्य अकादमिक कर्मचारियों की नियुक्ति के लिये न्यूनतम योग्यता और उच्च शिक्षा में मानकों के रखरखाव के लिये अन्य उपाय) विनियम, 2018 के अनुसार, "विज़ीटर/चांसलर"- ज़्यादातर राज्यों में राज्यपाल, खोज-सह-चयन समितियों द्वारा अनुशंसित नामों के पैनल में से कुलपति की नियुक्ति करेंगे।
  • उच्च शिक्षण संस्थानों, विशेष रूप से जिन्हें UGC से फंड मिलता है, उन्हें इसके नियमों का पालन करना अनिवार्य है।
  • आमतौर पर केंद्रीय विश्वविद्यालयों के मामले में बिना किसी टकराव के इनका पालन किया जाता है, लेकिन कभी-कभी राज्य विश्वविद्यालयों के मामले में राज्यों द्वारा इसका विरोध किया जाता है।

आगे की राह

  • अब समय आ गया है कि सभी राज्य, राज्यपाल को कुलाधिपति के रूप में नियुक्त करने पर पुनर्विचार करें।
  • हालाँकि उन्हें विश्वविद्यालय स्वायत्तता की रक्षा के वैकल्पिक साधन भी खोजना चाहिये ताकि सत्तारूढ़ दल विश्वविद्यालयों के कामकाज़ पर अनुचित प्रभाव न डालें।

  यूपीएससी सिविल सेवा विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रारंभिक परीक्षा:

प्रश्न. भारत के किसी राज्य की विधानसभा के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. राज्यपाल वर्ष के पहले सत्र के प्रारंभ में सदन के सदस्यों को प्रथागत अभिभाषण देता है।
  2. जब किसी राज्य विधानमंडल के पास किसी विशेष मामले पर कोई नियम नहीं होता है, तो वह उस मामले पर लोकसभा के नियम का पालन करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर:C

व्याख्या:

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 176(1) में यह व्यवस्था है कि राज्यपाल प्रत्येक वर्ष के पहले सत्र के प्रारंभ में और पहले सत्र के प्रारंभ में एक साथ एकत्रित हुए दोनों सदनों को संबोधित करेगा और विधानमंडल को सूचित करेगा एवं विधायिका को उसके सम्मन के कारणों के बारे में सूचित करेगा। अत: कथन 1 सही है।  
  • अनुच्छेद 208 राज्य विधानमंडलों में प्रक्रिया के नियमों से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि: 
  • किसी राज्य के विधानमंडल का कोई सदन इस संविधान के प्रावधानों, इसकी प्रक्रिया और अपने कार्य के संचालन के अधीन विनियमन के लिये नियम बना सकता है।
  • जब तक खंड (1) के तहत नियम नहीं बनाए जाते, तब तक प्रक्रिया के नियम और स्थायी आदेश इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले संबंधित प्रांत के विधानमंडल के संबंध में लागू होते हैं, ऐसे संशोधनों के अधीन राज्य के विधानमंडल के संबंध में प्रभावी होंगे और जैसा कि विधानसभा के अध्यक्ष या विधानपरिषद के अध्यक्ष, जैसा भी मामला हो, द्वारा किया जा सकता है।
  • इसलिये जब औपनिवेशिक काल से राज्य विधानमंडल में किसी विशेष विषय पर कोई नियम नहीं होता है, तो राज्य विधानसभाएँ लोकसभा के नियमों का पालन करती हैं। अत: कथन 2 सही है।

अतः विकल्प (c) सही उत्तर है


प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. किसी राज्य के राज्यपाल के विरुद्ध उसकी पदावधि के दौरान किसी न्यायालय में कोई आपराधिक कार्यवाही संस्थापित नहीं की जाएगी।
  2. किसी राज्य के राज्यपाल की परिलब्धियां और भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किये जाएँगे।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (C)

व्याख्या:

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 361 भारत के राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपाल को कुछ प्रतिरक्षा प्रदान करता है:
  • राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के विरुद्ध उसकी पदावधि के दौरान किसी न्यायालय में कोई आपराधिक कार्यवाही जारी नहीं रखी जाएगी। अतः कथन 1 सही है।
  • राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल की गिरफ्तारी या कारावास की कोई प्रक्रिया उसकी पदावधि के दौरान किसी न्यायालय से जारी नहीं की जाएगी।
  • राष्ट्रपति या राज्यपाल के विरुद्ध उसकी पदावधि के दौरान किसी न्यायालय में उसके द्वारा व्यक्तिगत हैसियत से किये गए किसी कृत्य के संबंध में कोई सिविल कार्यवाही संस्थापित नहीं की जाएगी। हालाँकि दो महीने का नोटिस देने के बाद, कार्यालय में प्रवेश करने से पहले या बाद में किये गए अपने व्यक्तिगत कृत्यों के संबंध में कार्यकाल के दौरान उसके खिलाफ दीवानी कार्यवाही शुरू की जा सकती है।
  • अनुच्छेद 158 कहता है कि राज्यपाल की परिलब्धियों और भत्तों को उसके कार्यकाल के दौरान कम नहीं किया जाएगा। अतः कथन 2 सही है। अत: विकल्प (c) सही उत्तर है।

मुख्य परीक्षा:

प्रश्न: क्या सर्वोच्च न्यायालय का फैसला (जुलाई 2018) उपराज्यपाल और दिल्ली की निर्वाचित सरकार के बीच राजनीतिक खींचतान को सुलझा सकता है? परीक्षण कीजिये। (2018))

प्रश्न: राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यक शर्तों पर चर्चा कीजिये, अध्यादेशों को विधानमंडल के समक्ष रखे बिना राज्यपाल द्वारा उन्हें फिर से प्रख्यापित करने की वैधता पर चर्चा कीजिये (2022)

स्त्रोत: द हिन्दू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2