स्कूल बैग और होमवर्क को लेकर सरकार ने जारी की गाइडलाइंस
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को पहली और दूसरी क्लास के विद्यार्थियों को होमवर्क न देने के नए निर्देश जारी किये हैं। इसके अलावा दसवीं क्लास तक विद्यार्थियों के स्कूल बैग का वज़न भी तय कर दिया गया है।
क्या निर्देश दिये हैं केंद्र सरकार ने?
- विभिन्न विषयों को पढ़ाने और स्कूल बैग के वज़न को कंट्रोल करने के लिये सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को दिशा-निर्देश तैयार करने होंगे।
- पहली और दूसरी क्लास के विद्यार्थियों को होमवर्क नहीं दिया जाएगा। भाषा (Language) और गणित को छोड़कर कोई अन्य विषय निर्धारित नहीं किया जाएगा।
- तीसरी से पाँचवीं क्लास तक के विद्यार्थियों के लिये NCERT द्वारा निर्धारित भाषा (Language), EVS और गणित के अलावा कोई अन्य विषय निर्धारित नहीं किया जाएगा।
- विद्यार्थियों को अतिरिक्त किताबें, अतिरिक्त सामग्री लाने के लिये नहीं कहा जाएगा और स्कूल बैग का वज़न निर्धारित सीमा से अधिक नहीं होना चाहिये।
स्कूल बैग के वज़न को लेकर जारी निर्देश
- पहली और दूसरी क्लास के बच्चों के स्कूल बैग का वज़न 1.5 किग्रा. से अधिक नहीं होना चाहिये।
- तीसरी से लेकर पाँचवीं क्लास तक के बच्चों के स्कूल बैग का वज़न 2 से 3 किग्रा. होना चाहिये।
- छठी और सातवीं क्लास के विद्यार्थियों के स्कूल बैग का वज़न 4 किग्रा. से अधिक नहीं होना चाहिये।
- आठवीं और नवीं क्लास के विद्यार्थियों के स्कूल बैग का वज़न 4.5 किग्रा. से अधिक नहीं होना चाहिये।
- दसवीं क्लास के विद्यार्थियों के स्कूल बैग का वज़न 5 किग्रा. से कम होना चाहिये।
केंद्रीय विद्यालय में पहले से तय हैं नियम
केंद्रीय विद्यालय संगठन के 2009 में बने दिशा-निर्देशों के अनुसार, पहली और दूसरी क्लास के बच्चों के स्कूल बैग दो किग्रा. से ज्यादा भारी नहीं होने चाहिये, जिसमें बैग का वज़न भी शामिल है। इसके बाद तीसरी-चौथी के लिये तीन किग्रा., पाँचवीं से सातवीं तक के लिये चार किग्रा. तथा आठवीं से 12वीं तक के लिये छह किग्रा. वज़न रखा गया है।
अंतर्राष्ट्रीय नियम के अनुसार बच्चों के कंधे पर उनके कुल वज़न का 10 फ़ीसदी से ज़्यादा वज़न नहीं होना चाहिये। देश के चिल्ड्रन्स स्कूल बैग एक्ट, 2006 के तहत भी बच्चों के स्कूल बैग का वज़न उनके शरीर के कुल वज़न का 10 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिये।
बहुत पुराना है यह मुद्दा
बस्ते के बोझ को लेकर कई दशकों से चिंता जाहिर की जाती रही है। भारी स्कूल बैग की समस्या केवल प्राथमिक क्लासओं तक ही सीमित नहीं, बल्कि माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के स्कूल बैग का वज़न भी काफी अधिक होता है। यह मुद्दा काफी लंबे समय से चर्चा में रहा है और समय-समय पर इसके लिये आंदोलन और विरोध प्रदर्शन भी होते रहते हैं। संसद में भी इस मुद्दे को लेकर कई बार चर्चा होती रही है।
कई समितियाँ दे चुकी हैं सिफारिशें
- 1977 में ईश्वरभाई पटेल समिति ने पहली बार बस्ते का बोझ कम करने के लिये रिपोर्ट दी थी।
- 1990 में शिक्षा नीति की समीक्षा करने वाली समिति ने स्कूल बैग का भार कम करने की बात कही।
यशपाल समिति
1992 में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने एक राष्ट्रीय सलाहकार समिति बनाई। इस समिति में देश भर के आठ शिक्षाविदों को शामिल किया गया। इस समिति का अध्यक्ष प्रोफेसर यशपाल को बनाया गया। समिति को इस बात पर विचार करना था कि ‘शिक्षा के सभी स्तरों पर विद्यार्थियों, विशेषकर छोटी क्लास के विद्यार्थियों पर पढ़ाई के दौरान पड़ने वाले बोझ को कैसे कम किया जाए।‘ 1993 में यशपाल समिति ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी जिसमें भी स्कूल बैग का बोझ कम करने के उपाय बताए गए थे। स्कूलों के उस समय के माहौल और मुश्किलों का बड़े पैमाने पर विश्लेषण करते हुए समिति ने महत्त्वपूर्ण सिफारिशें दी थीं। समिति ने अपनी सिफारिशों में कहा था कि पाठ्यपुस्तकों को स्कूल की संपत्ति समझा जाए और बच्चों को स्कूल में ही किताब रखने के लिए लॉकर्स अलॉट किए जाएँ। रिपोर्ट में छात्रों के होमवर्क और क्लास वर्क के लिए भी अलग टाइम-टेबल बनाने के लिये कहा गया था ताकि बच्चों को रोज़ाना किताबें घर न ले जानी पड़ें।
- 2005 में राष्ट्रीय पाठ्यक्रम परिचर्या में स्कूल बैग का बोझ घटाने पर ज़ोर दिया गया।
- 2008 में CBSE ने भी गाइडलाइंस जारी की।
- शिक्षा का अधिकार कानून 2009 भी बच्चों पर बोझ कम करने की बात कहता है।
- 2012 में दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष पेश एक रिपोर्ट में माना गया कि भारी स्कूल बैग के कारण छोटे बच्चों का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। उस समय भी कुछ गाइडलाइंस जारी की गई थीं, लेकिन उन पर अमल नहीं हो पाया।
कुछ समय पहले मद्रास हाई कोर्ट ने पहली तथा दूसरी क्लास के बच्चों को होमवर्क नहीं देने के निर्देश दिये थे।