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भारतीय राजव्यवस्था

स्थानीय निकायों में OBC आरक्षण

  • 31 Aug 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

स्थानीय निकाय चुनावों में OBC आरक्षण, अनुच्छेद 243D(6) और अनुच्छेद 243T(6), के. कृष्णमूर्ति (डॉ.) बनाम भारत संघ (2010), पेसा अधिनियम 1996, ट्रिपल टेस्ट

मेन्स के लिये:

स्थानीय निकाय चुनाव, शिक्षा और नौकरियों में OBC आरक्षण, OBC आरक्षण के पक्ष और विपक्ष में तर्क

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में गुजरात राज्य सरकार ने पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिये आरक्षण को मौजूदा 10% से बढ़ाकर 27% कर दिया है।

नोट: 

  • वर्ष 2022 में सर्वोच्च न्यायालय ने मध्य प्रदेश को स्थानीय निकाय चुनावों में OBC को आरक्षण प्रदान करने की अनुमति दी।
  • जनवरी 2022 में महाराष्ट्र सरकार की एक याचिका के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2021 के अपने आदेश को वापस ले लिया, जिसमें स्थानीय निकाय चुनावों में OBC के लिये 27% आरक्षण पर रोक लगा दी गई थी।

निर्णय के मुख्य बिंदु:

  • यह निर्णय न्यायमूर्ति के. एस. झावेरी आयोग की सिफारिशों के बाद लिया गया, जिसे गुजरात में स्थानीय निकायों में OBC आरक्षण के लिये सुझाव देने हेतु वर्ष 2022 में सर्वोच्च न्यायालय (SC) के निर्देश के जवाब में गठित किया गया था।
  • विस्तारित 27% OBC आरक्षण स्थानीय निकायों के सभी स्तरों (नगर निगम, नगर पालिका, ग्राम पंचायत, तालुका पंचायत और ज़िला पंचायत) पर लागू होगा।
  • हालाँकि बढ़ा हुआ OBC आरक्षण पेसा अधिनियम 1996 के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में लागू नहीं होगा जहाँ अनुसूचित जनजाति (ST) की आबादी 50% से अधिक है। ऐसे क्षेत्रों में OBC उम्मीदवारों को 10% आरक्षण मिलेगा।
  • SC (14%) और ST (7%) के लिये मौजूदा कोटा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनिवार्य 50% आरक्षण सीमा के उल्लंघन के बिना अपरिवर्तित रहता है।

स्थानीय निकायों में आरक्षण के बारे में सर्वोच्च न्यायालय के विचार:

  • के. कृष्णमूर्ति (डॉ.) बनाम भारत संघ (2010) मामले में पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 243D(6) और अनुच्छेद 243T(6) की व्याख्या की, जो क्रमशः पंचायत एवं नगर निकायों में पिछड़े वर्गों के लिये कानून बनाकर आरक्षण की अनुमति देते हैं।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी माना कि राजनीतिक भागीदारी में बाधाएँ शिक्षा और रोज़गार जैसी बाधाओं की तरह नहीं हैं  जो शिक्षा और रोज़गार तक पहुँच को सीमित करती हैं।
  • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी माना कि यद्यपि स्थानीय निकायों में आरक्षण स्वीकार्य है लेकिन यह स्थानीय निकायों के संबंध में पिछड़ेपन की अनुभवजन्य जाँच/अनुसंधान के अधीन है, जिसे तीन-परीक्षण मानदंडों के माध्यम से पूरा किया जाता है जो निम्नलिखित तीन शर्तों को संदर्भित करता है:
    • स्थानीय निकायों में पिछड़ेपन की प्रकृति की अनुभवजन्य जाँच  करने के लिये एक विशेष आयोग का गठन किया जाना चाहिये।
    • स्थानीय निकाय-वार प्रावधानित किये जाने वाले अपेक्षित आरक्षण का अनुपात निर्दिष्ट करना चाहिये।
    • यह आरक्षण अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के लिये आरक्षित संपूर्ण सीटों के कुल 50% से अधिक नहीं होगा।

स्थानीय निकाय चुनावों में OBC आरक्षण से संबंधित सामान्य तर्क:

  • पक्ष में तर्क:
    • सशक्तीकरण, समावेशन एवं सहभागिता: आरक्षण OBC समुदाय के व्यक्तियों को स्थानीय शासन में सक्रिय रूप से भाग लेने का अवसर प्रदान करता है जिससे उन्हें अपनी बातों को रखने, अपने समुदायों की वकालत करने और नीति-निर्माण में योगदान करने का मौका मिलता है जो उनके जीवन को प्रभावित करता है।
    • नीति की प्रासंगिकता: OBC समुदायों के निर्वाचित प्रतिनिधि अपने समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियों को समझने और उन्हें प्रभावी ढंग से संबोधित करने की दिशा में काम करने की अधिक संभावना रखते हैं।
    • कौशल और नेतृत्व विकास: आरक्षण उन्हें नेतृत्व भूमिकाओं, सार्वजनिक भाषण एवं  निर्णयन में अनुभव प्राप्त करने के अधिक अवसर प्रदान करेगा।
    • राजनीतिक जागरूकता में वृद्धि: यह OBC समुदाय के सदस्यों के मध्य राजनीतिक जागरूकता और जुड़ाव को बढ़ावा देगा तथा उन्हें राजनीतिक प्रक्रिया में अधिक सक्रिय रूप से योगदान करने के लिये प्रेरित करेगा।
    • दीर्घकालिक सकारात्मक प्रभाव: समर्थकों का तर्क है कि इससे समय के साथ संसाधनों का अधिक न्यायसंगत वितरण हो सकता है जिसकी सहायता से सामाजिक-आर्थिक सूचकों में सुधार हो सकता है और समाज के विभिन्न वर्गों के बीच असमानताएँ कम हो सकती हैं।
  • विपक्ष में तर्क:
    • जाति-आधारित विभाजन: कुछ विरोधियों का तर्क है कि जाति-आधारित आरक्षण समाज के भीतर विभाजन को कायम रखता है, एकता को बढ़ावा देने के बजाय मतभेदों पर ज़ोर देता है।
    • OBC के भीतर वंचित समूह: एक चिंता यह है कि OBC श्रेणी के भीतर कुछ समूहों को दूसरों की तुलना में अधिक विशेषाधिकार प्राप्त (क्रीमी लेयर) हो सकते हैं। संपूर्ण OBC श्रेणी के लिये आरक्षण लागू करने से कुछ अपेक्षाकृत अधिक विशेषाधिकार प्राप्त समूहों को असंगत रूप से लाभ हो सकता है, जबकि हाशिये पर मौजूद OBC समूह का प्रतिनिधित्व कम रहेगा।
    • आरक्षण का प्रभाव: संशयवादी वास्तव में सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को संबोधित करने में आरक्षण की दीर्घकालिक प्रभावकारिता पर भी सवाल उठाते हैं। वे लक्षित कल्याण कार्यक्रम, कौशल विकास आदि जैसे वैकल्पिक दृष्टिकोण के पक्ष में तर्क देते हैं।
    • स्थानीय शासन पर प्रभाव: जब उम्मीदवार आरक्षण के माध्यम से चुने जाते हैं तो शासन संबंधी चिंताओं की तुलना में इनके राजनीतिक विचारों से अधिक प्रेरित होने की आशंकाएँ रहती हैं। यह प्रभावी निर्णय लेने और स्थानीय निकायों के समग्र विकास में बाधा उत्पन्न कर सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. स्थानीय स्वशासन की सर्वोत्तम व्याख्या यह की जा सकती है कि यह एक प्रयोग है: (2017)

(a) संघवाद का 
(b) लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का 
(c) प्रशासनिक प्रत्यायोजन का 
(d) प्रत्यक्ष लोकतंत्र का 

उत्तर: B


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

  1. किसी भी व्यक्ति के लिये पंचायत का सदस्य बनने के लिये न्यूनतम निर्धारित आयु 25 वर्ष है।
  2. पंचायत के समयपूर्व भंग होने के पश्चात् पुनर्गठित पंचायत केवल अवशिष्ट समय के लिये ही जारी रहती है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: B

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243F के अनुसार, ग्राम पंचायत का सदस्य बनने के लिये न्यूनतम आवश्यक आयु 21 वर्ष है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243E(4) के अनुसार, किसी पंचायत की अवधि समाप्त होने से पहले उसके विघटन पर गठित पंचायत केवल उस शेष अवधि के लिये जारी रहेगी, जिसके लिये भंग पंचायत जारी होती। अतः कथन 2 सही है।
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