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भारतीय अर्थव्यवस्था

वित्तीय समावेशन और महिला व्यवसाय प्रतिनिधि

  • 11 Feb 2023
  • 16 min read

यह एडिटोरियल 08/02/2023 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित “Financial inclusion faces hurdles” लेख पर आधारित है। इसमें महिला व्यवसाय संवाददाताओं (BCs) की बढ़ती हुई संलग्नता के औचित्य के साथ ही मौजूदा परितंत्र में इस पेशे को अव्यवहारिक बनाने से संबद्ध चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

व्यवसाय संवाददाता या व्यवसाय प्रतिनिधि (Business Correspondents- BCs) किसी बैंक की वित्तीय समावेशन रणनीति के महत्त्वपूर्ण अंग होते हैं, जहाँ ग्रामीण क्षेत्रों में 95% से अधिक बैंकिंग आउटलेट उनके द्वारा ही संचालित किये जा रहे हैं। महिला ग्राहकों के लिये विशेष रूप से प्रासंगिक व्यवसाय संवाददाता परिवहन लागत, समय और संकोच संबंधी बाधाओं को कम करते हुए उनके घरों (या घरों के आस-पास) से बैंकिंग लेनदेन सुविधा को सरल बनाने में अहम योगदान कर रहे हैं।

BCs वे मध्यस्थ हैं जो वित्तीय संस्थानों (जैसे बैंक और सूक्ष्म-वित्त संगठन) की ओर से उन भूभागों में वित्तीय सेवाओं की पेशकश करते हैं जहाँ पारंपरिक शाखाएँ स्थापित करना जटिल या महँगा है। BCs बैंक सुविधाओं से वंचित आबादी के घरों तक वित्तीय सेवाएँ पहुँचाने के लिये मोबाइल प्रौद्योगिकी सहित विभिन्न वितरण चैनलों का उपयोग करते हैं।

बहुत से लोग, विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में, वित्तीय सेवाओं तक पहुँचने में उल्लेखनीय बाधाओं का सामना करते हैं। इस परिदृश्य में व्यवसाय प्रतिनिधियों की सेवा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

BCs सेवा के प्रसार के बावजूद महिला व्यापार प्रतिनिधियों का प्रतिनिधित्व निराशाजनक रूप से कम रहा है और उपलब्ध आँकड़े बताते हैं कि वे BCs के कुल नेटवर्क के 10% से भी कम हिस्सेदारी रखती हैं। वर्तमान पारिस्थितिकी तंत्र में अभी भी कुछ ऐसी चुनौतियाँ मौजूद हैं जो इस पेशे को उनके लिये अव्यवहार्य बनाती हैं और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिये इस दिशा में तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।

महिला व्यापार प्रतिनिधियों से संबद्ध चुनौतियाँ 

  • वित्तीय समावेशन का अभाव:
    • कई महिला व्यवसाय प्रतिनिधियों (Woman Business Correspondents- WBCs) को अपनी निम्न सामाजिक-आर्थिक स्थिति और संपार्श्विक की कमी के कारण अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिये वित्तीय सेवाओं तथा ऋण तक पहुँच में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
  • डिजिटल निरक्षरता:
    • WBCs की एक बड़ी संख्या डिजिटल प्रौद्योगिकी से परिचित नहीं हैं और डिजिटल वित्तीय सेवाओं का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिये आवश्यक कौशल की कमी रखती है।
  • न्यूनतम योग्यता:
    • न्यूनतम योग्यता एक और बाधा है जो WBCs के इस पेशे में शामिल होने को बाधित करती है (विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में)।
    • इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ बैंकिंग एंड फाइनेंस से RBI द्वारा निर्दिष्ट वर्तमान बीसी/बिजनेस फैसिलिटेटर सर्टिफिकेशन के लिये परीक्षा में बैठने हेतु 10वीं पास को न्यूनतम योग्यता घोषित किया गया है।
      • कई बैंकों ने 12वीं पास को न्यूनतम योग्यता रखकर इसे और कठिन बना दिया है।
  • सामाजिक रवैया:
    • WBCs को प्रायः ऐसे सामाजिक रवैये का सामना करना पड़ता है जो महिलाओं को उद्यमियों के बजाय गृहिणी की पारंपरिक भूमिका में देखता है और यह उनके व्यवसाय प्रसार के अवसरों को सीमित कर सकता है।
  • सरकार और वित्तीय संस्थानों से समर्थन की कमी:
    • WBCs को प्रायः सरकार और वित्तीय संस्थानों की ओर से समर्थन की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके लिये अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिये आवश्यक संसाधनों तक पहुँच बनाना कठिन हो जाता है।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ:
    • कई WBCs ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत होती हैं जहाँ हिंसा और अपराध का उच्च जोखिम होता है, जो उनकी गतिशीलता को सीमित कर सकता है और लेन-देन कार्य के दौरान उन्हें खतरे में डाल सकता है।
  • सीमित वित्तीय सहायता:
    • महिला BCs के समक्ष विद्यमान गतिशीलता एवं सुरक्षा जैसी सामाजिक-आर्थिक बाधाओं को दूर करने के लिये व्यवसाय प्रतिनिधि नेटवर्क प्रबंधकों या बैंकों द्वारा प्रदान की जाने वाली अतिरिक्त वित्तीय सहायता बेहद सीमित है।

भारत में वित्तीय समावेशन से संबद्ध अन्य प्रमुख चुनौतियाँ 

  • जागरूकता की कमी:
    • ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में कई व्यक्ति और छोटे व्यवसाय उनके लिये उपलब्ध वित्तीय सेवाओं तथा उनके लाभों से परिचित नहीं हैं।
  • डिजिटल साक्षरता:
    • डिजिटल वित्तीय सेवाओं के उदय के साथ डिजिटल साक्षरता और प्रौद्योगिकी तक पहुँच की आवश्यकता है, जिसकी अभी भी भारत के कई हिस्सों में कमी है।
  • आधारभूत संरचना:
    • सड़क, दूरसंचार नेटवर्क और बिजली आपूर्ति जैसी भौतिक अवसंरचना की कमी दूरस्थ एवं ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय सेवाओं की पहुँच को बाधित करती है।
  • लागत:
    • दूरस्थ और ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय सेवाएँ प्रदान करने की लागत आधारभूत संरचना की कमी के कारण अधिक है, जो फिर इसे वित्तीय संस्थानों के लिये अलाभकारी बनाती है।
  • भरोसे का मुद्दा:
    • बैंक सेवा से वंचित आबादी के बीच भरोसे का निर्माण एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि अनुभव की कमी या पिछले नकारात्मक अनुभवों के कारण कई व्यक्ति औपचारिक वित्तीय संस्थानों के प्रति अविश्वास रखते हैं।

वित्तीय समावेशन को गहन करने में WBCs कैसे मदद कर सकती हैं?

  • तालमेल: वे छोटी बचत योजनाओं एवं सामाजिक सुरक्षा प्रस्तावों को बढ़ावा देते हुए विविध ग्राहक समूहों के साथ तालमेल बनाने और मांग-संचालित वृद्धिशील राजस्व को बढ़ावा देने में सक्षम हैं।
  • पारदर्शिता: महिला एजेंटों की अधिक संख्या प्रणाली की पारदर्शिता बढ़ा सकती है। महिला BC एजेंटों में नैसर्गिक रूप से अधिक धैर्य होता है और वे प्रश्नों को संबोधित करने या उत्पाद सुविधाओं की व्याख्या करने के लिये अधिक इच्छुक होती हैं।
  • अन्य महिलाओं को प्रोत्साहन: महिला ग्राहक अपने परिवार की वित्तीय समस्याओं और आवश्यकताओं को महिला BC एजेंटों के साथ अधिक खुले तौर पर साझा करने की प्रवृत्ति रखती हैं, जिससे उत्पाद बिक्री की बेहतर समझ पैदा होती है।
  • निष्पादन क्षमता: कार्य निष्पादन के मामले में महिला BC एजेंट पुरुष एजेंटों के समान या उनसे अधिक व्यवसाय लाती हैं और अधिक से अधिक वंचितों की सेवा कर सकती हैं। ग्राहकों के परिप्रेक्ष्य से, वे दूरदराज के इलाकों, बुजुर्गों और आबादी के अन्य वंचित वर्गों में ग्राहक सेवा के विस्तार की अधिक संभावना रखती हैं। वे कदाचारों के प्रति कम संवेदनशील होती हैं और ग्राहकों के प्रति कपटपूर्ण कार्य करने के लिये कम प्रवण होती हैं।

सरकार के अन्य संबंधित कदम 

  • ‘एक ग्राम पंचायत - एक व्यवसाय प्रतिनिधि सखी’:
    • इसे ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2023-24 के अंत तक इनकी संख्या को बढ़ाने और प्रत्येक पंचायत में कम से कम एक ‘व्यवसाय प्रतिनिधि सखी’ तैनात करने की महत्त्वाकांक्षी योजना के रूप में शुरू किया गया था।
    • अध्ययनों से संकेत मिलता है कि महिला BCs उच्च लाभप्रदता, वित्तीय उत्पादों की व्यापक क्रॉस-सेलिंग और कम संघर्षण दर (lower attrition rates) दिखाती हैं।
    • लॉकडाउन के दौरान व्यवसाय प्रतिनिधि सखी के रूप में संलग्न की गई स्व-सहायता समूह (SHG) की सदस्यों ने लोगों के घरों तक प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के नकद हस्तांतरण एवं अन्य प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के साथ ही बैंक शाखाओं की ओर लाभार्थियों की दौड़ को कम करने के लिये जागरूकता के प्रसार और पहुँच को सक्षम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 
  • अन्य योजनाएँ:

आगे की राह 

  • BCs को आकर्षित करने के लिये लैंगिक भर्ती रणनीति तैयार करना:
    • अधिकाधिक महिला व्यवसाय प्रतिनिधियों को आकर्षित करने के लिये एक लैंगिक भर्ती रणनीति (gendered recruitment strategy) तैयार करना (जिसमें उनके कर्मियों एवं कॉर्पोरेट BCs के लिये विशिष्ट लक्ष्य निर्धारित करना शामिल है) और संभावित महिला उम्मीदवारों की पहचान करने के लिये कॉर्पोरेट BCs को प्रशिक्षण एवं प्रोत्साहन देना उन संरचनात्मक बाधाओं को दूर करने में मदद कर सकता है जिनका सामना महिलाओं को करना पड़ता है।
    • उपकरण एवं किराया संबंधी सहायता प्रदान करना (महिलाओं के लिये अग्रिम पूंजी निवेश करने की आवश्यकता के बजाय), पहले वर्ष के लिये प्रारंभिक वित्तीय सहायता देने जैसा प्रोत्साहन, गतिशीलता के मुद्दों को हल करना, कार्यकरण के लचीले समय की पेशकश करना तथा महिला BCs एवं उनके परिवारों को सुरक्षा प्रदान करना (जैसे स्वास्थ्य बीमा प्रदान करना) आदि अनुकूल कार्रवाइयाँ महिला व्यवसाय प्रतिनिधियों के लिये प्रवेश बाधाओं को कम कर सकती है, जिससे वे इस व्यवसाय को चुनने के लिये प्रेरित होंगी।
    • इसके साथ ही, प्रशिक्षण, सलाह, निरंतर समर्थन सुनिश्चित करने (समर्पित अधिकारियों के माध्यम से) और महिला एजेंट समुदायों का निर्माण करने के माध्यम से महिला BCs के लिये एक सहायक वातावरण का सृजन करना उन्हें दीर्घकालिक रूप से फलने-फूलने में मदद करेगा।
  • डिजिटल अवसंरचना का विस्तार:
    • भारत सरकार और वित्तीय संस्थान दूरस्थ एवं अविकसित क्षेत्रों तक पहुँच के लिये ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी एवं मोबाइल फोन जैसे डिजिटल बुनियादी ढाँचे के विस्तार पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
    • इससे लोग अपने घरों से सरलतापूर्वक वित्तीय सेवाओं का उपयोग कर सकेंगे।
  • डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना:
    • आबादी के बीच डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने की भी ज़रूरत है, विशेष रूप से उन लोगों के बीच जो कम पढ़े-लिखे हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं।
      • इसे वित्तीय साक्षरता कार्यक्रम और जागरूकता अभियान जैसे विभिन्न पहलों के माध्यम से हासिल किया जा सकता है।
  • वहनीय वित्तीय उत्पादों का प्रावधान:
    • वित्तीय संस्थान वहनीय या किफायती वित्तीय उत्पाद प्रदान कर सकते हैं जो निम्न आय समूहों की विशिष्ट आवश्यकताओं (जैसे लघु ऋण, माइक्रो-इंश्योरेंस और निम्न न्यूनतम शेष राशि वाले बचत खाते) की पूर्ति करें।
  • सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच सहयोग:
    • वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिये सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों के लिये एक साझा लक्ष्य की दिशा में सहयोग करना और मिलकर कार्य करना महत्त्वपूर्ण है। इस क्रम में सरकार एक अनुकूल नियामक वातावरण का निर्माण कर सकती है, जबकि वित्तीय संस्थान आवश्यक वित्तीय सेवाएँ प्रदान कर सकते हैं।
  • महिला वित्तीय सशक्तीकरण पर ध्यान देना:
    • महिलाएँ प्रायः पारंपरिक बैंकिंग प्रणाली से बाहर छूट जाती हैं और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिये उन्हें विशेष रूप से लक्षित करने की आवश्यकता है।
    • महिलाओं को वित्तीय सेवाओं तक पहुँच प्रदान करने, श्रम बल में उनकी भागीदारी को बढ़ावा देने और लैंगिक बाधाओं को दूर करने से उनके वित्तीय सशक्तीकरण को साकार किया जा सकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत में वित्तीय समावेशन को गहन करने में महिला व्यवसाय प्रतिनिधि किस प्रकार मदद कर सकती हैं? टिप्पणी कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

Q. बैंक खाते से वंचित लोगों को संस्थागत वित्त के दायरे में लाने के लिये प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) आवश्यक है। क्या आप भारतीय समाज के गरीब वर्ग के वित्तीय समावेशन के लिये इससे सहमत हैं? अपने मत की पुष्टि के लिये उचित तर्क दीजिये। (2016)

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